बुधवार, 13 मार्च 2013

यहाँ न पानी पीना चाहते हैं न लड़की ब्याहना

 बुधवार, 13 मार्च, 2013 को 10:15 IST तक के समाचार

कैंसर
इस गांव के लोग मानते हैं कि उन्हें गांव में कैंसर के प्रभाव का बहुत बड़ा खामियाज़ा भुगतना पड़ा है.
पंजाब का एक गांव कैंसर की ऐसी चपेट में है कि वहां के लोग इसकी बात करते ही गुस्से में आ जाते हैं. गांव वालों का कहना है कि न तो कोई यहां का पानी पीता है न ही कोई अपने बच्चों की शादी उनके यहां करता है.
बठिंडा ज़िले के जज्जल गांव के वासियों को जैसे ही पता चला कि मीडिया की एक टीम वहां पहुंची है तो वे गुस्से में आ गए.
वहां पहुंचना ज़रूरी इसलिए था क्योंकि यह गांव पंजाब के सबसे अधिक कैंसर प्रभावित गांवों में से एक माना जाता है.
लेकिन इस गांव के लोग मानते हैं कि उन्हें इसी बात का बहुत बड़ा खमियाज़ा भुगतना पड़ा है. उनका कहना है कि कोई भी इस गांव में न तो अपनी लड़की की शादी करता है और न ही कोई लड़की देना चाहता है.

पानी से डर

गांव के निवासी राज प्रदीप सिंह ने कहा, ''किसी और की तो क्या बात करें, अब आप यहां आए हैं और अगर हम आपको पानी दें तो आप उसे पिएंगे नहीं.''
दरअसल गांव वाले नहीं चाहते थे कि फिर किसी चैनल या अखबार के पन्ने पर उनके गांव की बदकिस्मती की दास्तां छपे या सुनाई जाए.
राज प्रदीप सिंह ने बताया कि साल 2005 में उनके पिता बलदेव सिंह की रीढ़ की हड्डी में कैंसर हुआ था जिसके बाद उनकी मौत हो गई थी.
गांव के सरपंच नाजर सिंह ने बताया, "यहां ऐसी कम ही गलियां हैं जहां किसी न किसी की कैंसर से मौत न हुई हो. यहां लगभग 530 घर हैं और साल 1984 से लेकर अब तक 60 से 70 लोग कैंसर का शिकार हुए हैं."
वे कैंसर के इस कदर यहां फैले होने का कारण 'दूषित पानी और कीटनाशकों को मानते हैं जो खेतों में छिड़का जाता है.'

सरकार की भूमिका

यहां के निवासी बताते हैं कि कई बार सरकार के नुमाइंदे यहां पर आए और कार्रवाई का भरोसा भी दिलाया लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया.
यहां रहने वाले हरदेव सिंह ने बताया, ''अभी कुछ महीने पहले 19 सांसदों का एक दल यहां पर आया, मौके का जायज़ा लिया, हम सब से मिले, कई कागज़ काले किए लेकिन हुआ कुछ नहीं.''
उन्होंने बताया कि पांच साल पहले वो अपने भाई शेर सिंह को कैंसर के हाथों खो चुके हैं. उन्हें ब्लड कैंसर था. ''काफी खर्चा हुआ, बीकानेर अस्पताल ले कर गए लेकिन वो ठीक नहीं हुए.''
क्या सरकार से कोई सहायता नहीं मिली. उन्होंने उत्तर दिया, ''जी नहीं.''

सालों से मातम

गांव के ही भोला सिंह बताते हैं कि कैंसर की वजह से इस गांव में सालों से मातम का माहौल रहा है.
उन्होंने कहा, ''आए दिन किसी न किसी के कैंसर के पीड़ित होने की खबर आती है. मुझे याद है नौ-दस साल पहले एक ही दिन दो लोगों की कैंसर से मौत हुई थी. मेरे पिता जीत सिंह ब्लड कैंसर का शिकार हुए.''
गांव वालों का कहना है कि उनकी तकलीफ का कारण भले ही कैंसर है लेकिन उन्हें दुख इस बात का बहुत अधिक है कि प्रचार की वजह से यहां के कई लड़के और लड़कियां ब्याही नहीं जा रही. और न ही इस गांव में मेहमान ही आते हैं जैसे कभी पहले आया करते थे.

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