गुरुवार, 7 मार्च 2013

यहां किसान बेच रहे हैं किडनी

Updated on: Thu, 07 Mar 2013 12:48 PM (IST)
Where Is 52,000 Crore, Farmers Selling Organs In Andhra
यहां किसान बेच रहे हैं किडनी
नई दिल्ली। यूपीए सरकार ने लगभग पांच साल पूर्व महत्वाकांक्षी योजना के तहत किसानों को राहत देने के मकसद से 52 हजार करोड़ रुपये उनकी कर्ज माफी के लिए आवंटित की थी लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि आंध्र प्रदेश के किसान अपने कर्ज को चुकाने के वास्ते अपनी किडनी व अन्य अंग बेच रहे हैं।
सभी 35 राज्यों व संघ शासित प्रदेशों के किसानों को राहत देने के लिए घोषित 52 हजार करोड़ के पैकेज का लगभग 57 फीसद हिस्सा सिर्फ तीन राज्यों आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के पास गया। आंध्र प्रदेश को 11 हजार करोड़ दिए गए। जबकि उत्तर प्रदेश को 9095 करोड़ और महाराष्ट्र को 8900 करोड़ रुपये मिले। माना जाता है कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार इसी कर्ज माफी योजना की बदौलत 2009 में हुए आम चुनाव में लगातार दूसरी बार सत्ता पर कब्जा जमाने में सफल रही थी और उक्त जिन तीन राज्यों को सर्वाधिक पैसे दिए गए थे वहां कांग्रेस को फायदा भी मिला। 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस को आंध्र में 31, यूपी में 22 और महाराष्ट्र में 16 सीटें मिली जिससे वह लगातार दूसरी बार सत्ता पर कब्जा जमाने में सफल रही।
दूसरी तरफ नियंत्रण व लेखा परिषद [कैग] ने इस योजना में हुई भारी अनियमितता पर अपनी रिपोर्ट पेश की है। आंध्र प्रदेश में लगभग 77 लाख किसानों के बीच 11 हजार करोड़ की रकम बांटी गई थी जो कुल राशि का 21 फीसद था। लेकिन कैग ने खुलासा किया है कि बड़ी संख्या में वैसे किसानों को फायदा पहुंचाया गया जो इस योजना के लिए योग्य नहीं थे। छोटे और गरीब किसानों को इसका फायदा नहीं मिला और वह कर्ज के दुष्चक्र में फंसे रहे। और कर्ज का बोझ उतारने के लिए किसान अपनी किडनी बेच रहे हैं। कर्ज माफी योजना के तहत में हद तब हो गई जो कृषि लोन नहीं था उसे कृषि लोन में बदल कर फायदा पहुंचाया गया।
कैग ने अनियमितता के कई सैंपल पेश किए हैं। कैग के अनुसार आंध्र प्रदेश के बालिकुरावा स्थित आंध्र प्रदेश ग्रामीण बैंक ने कम से कम 17 कर्जदारों की लोन कैटिगरी ही बदल दी जिससे वे आसानी से कर्ज चुका सके। जो बड़े किसान थे उन्हें सीमांत किसान बनाकर पूरा लोन माफ कर दिया गया। यह केवल आंध्र प्रदेश की ही कहानी नहीं है बल्कि देश के कई राज्यों में ऐसा किया गया। कैग ने 25 राज्यों के 92 जिलों से 715 बैंक शाखाओं की गड़बड़ियां पेश की हैं जिसमें 80 हजार से ज्यादा किसानों को फायदा दिया गया। आंध्र प्रदेश में 32,00 कर्ज खातों की जांच की गई तो करीब 132 मामले ऐसे आए जिनमें गलत लोगों को इस स्कीम का फायदा पहुंचाया गया था। आंध्र से जुड़े सौ मामलों में कैग ने पाया कि पहले चरण में किसानों को जानबूझकर कर्ज नहीं बांटा गया जिससे बड़े किसानों को फायदा मिल सके।

ऐसे गेमचेंजर साबित हुई थी स्कीम

Updated on: Thu, 07 Mar 2013 11:15 AM (IST)
Scheme Be GameChanger For Congress
ऐसे गेमचेंजर साबित हुई थी स्कीम
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। कांग्रेस पार्टी के नेता 2008-09 की किसान कर्ज माफी स्कीम को यूं ही गेमचेंजर नहीं कहते। आंकड़े इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि संप्रग को 2009 के आम चुनाव में दोबारा सत्ता में लौटाने में इस स्कीम की अहम भूमिका थी। देश के तीन सबसे ज्यादा संसदीय सीट वाले राज्यों में इस स्कीम को लागू करने को प्राथमिकता दी गई।
देश के कुल माफ किए गए कर्ज का 56 फीसद हिस्सा सिर्फ उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के किसानों को दिया गया। यह महज इत्तेफाक नहीं है कि इन तीनों राज्यों में कांग्रेस संयुक्त तौर पर 72 सीटें जीतने में कामयाब रही। योजना पर कैग की रिपोर्ट में कई संकेतक हैं जो बताते हैं कि स्कीम का केंद्र को किस तरह से राजनीतिक फायदा मिला है। यह स्कीम पूरे देश के किसानों के लिए थी, लेकिन सबसे ज्यादा फायदा जिन राज्यों को दिया गया, वहां कांग्रेस को अधिक सीटें मिलीं। उक्त तीनों राज्यों में वर्ष 2004 के आम चुनाव में संयुक्त तौर पर कांग्रेस को 51 सीटें मिली थी। लेकिन किसान कर्ज माफी योजना को लागू करने के बाद 2009 के चुनाव में 72 यानी लगभग 40 फीसद ज्यादा सीटें मिली। आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में क्रमश: 77.55 लाख, 54.16 लाख और 42.48 लाख किसानों को इस स्कीम का फायदा दिया गया। तीनों राज्य जनसंख्या के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य है। यह भी एक वजह हो सकती है कि इन राज्यों पर अन्य के मुकाबले कर्ज माफी स्कीम को लागू करने में ज्यादा ध्यान दिया गया। वैसे केरल और मध्य प्रदेश में भी स्कीम के तहत काफी राशि आवंटित की गई।
केरल में पिछले आम चुनाव में कांग्रेस जहां 13 सीटें जीतने में सफल रही थी, वहीं मध्य प्रदेश में भी पार्टी ने सांसदों की संख्या चार से बढ़ाकर 12 कर ली थी। स्कीम के तहत सबसे ज्यादा पैसा जिन राज्यों को दिया गया, उनमें सिर्फ कर्नाटक ही ऐसा है, जहां कांग्रेस को कोई लाभ नहीं मिला। 2008 के बजट में जब वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इस स्कीम को लागू किया था तो सरकार व कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इसे गेमचेंजर स्कीम कहा था।

किसान कर्ज माफी में जमकर बंदरबांट

Updated on: Tue, 05 Mar 2013 11:09 PM (IST)
CAG finds lapses in Rs 52,000-cr farm debt waiver scheme
किसान कर्ज माफी में जमकर बंदरबांट
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। संप्रग-एक की 'गेम चेंजर' किसान कर्ज माफी योजना में भारी घोटाले का पर्दाफाश करने वाली कैग की रिपोर्ट बुधवार को सरकार ने सार्वजनिक कर दी। रिपोर्ट ने साफ कर दिया कि जिस स्कीम को संप्रग किसानों का हित साधने वाली अहम स्कीम बता रही थी, उसमें अरबों-खरबों रुपये की गड़बड़ियां हुई हैं। इस स्कीम के तहत वितरित लगभग 52,500 करोड़ में से कम से कम 20 फीसद राशि के इस्तेमाल को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। पहले से ही कई घोटालों में फंसी संप्रग-दो के लिए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के बाद राजनीतिक मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
दैनिक जागरण ने सबसे पहले किसान कर्ज माफी योजना में घोटाले को लेकर खबरें प्रकाशित की थीं। इस स्कीम के तहत 3.012 करोड़ किसानों को फायदा मिलने का दावा सरकार ने किया था। कैग ने इनमें से सिर्फ 90,576 खातों की जांच-पड़ताल की। इनमें से 20,242 खातों में कोई न कोई गड़बड़ी पाई गई। इस हिसाब से 22.34 फीसद मामलों में अनियमितता की बात कही जा सकती है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा इस आधार पर ही घोटाले का आकार 10,000 करोड़ रुपये बता रही है।
कैग ने सरकार को यह रिपोर्ट दिसंबर, 2012 में ही सौंप दी थी। लेकिन सरकार ने पहले अपनी एजेंसियों- नाबार्ड और रिजर्व बैंक के जरिये बैंकों को यह निर्देश जारी किया कि वे गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। जिन किसानों के कर्ज गलत तरीके से माफ किए गए हैं, उनसे माफ की गई राशि वसूली जाए। बैंकों से फरवरी के अंतिम हफ्ते तक रिपोर्ट देने को कहा गया था। यह मुद्दा पिछले हफ्ते राज्यसभा में भी उठ चुका है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि स्कीम को लागू करने से लेकर इसके तहत पैसे आवंटित करने तक में सरकार ने जरूरत से ज्यादा तेजी दिखाई। बैंकों की तरफ से स्कीम के तहत फायदा लेने वाले किसानों के नामों की जो सूची सौंपी गई, उसका किसी भी एजेंसी ने सत्यापन नहीं किया। वित्त मंत्रालय की तरफ से स्कीम को लागू करने की प्रक्रिया की कोई निगरानी व्यवस्था नहीं थी। बैंकों ने जितनी राशि मांगी, सरकार ने उतनी राशि का भुगतान किया। कैग ने कहा है कि कई जगहों से किसानों से कर्ज माफ करवाने के लिए फीस लेने की भी सूचना उन्हें मिली है।
स्कीम का एक प्रमुख उद्देश्य यह था कि किसानों पर बकाया कर्ज माफ किए जाएं और उन्हें नए सिरे से कर्ज दिया जाए ताकि वे खेती कार्य ठीक तरीके से कर सकें। कैग ने ऐसे हजारों मामलों का पता लगाया है, जहां कर्ज माफी के बावजूद किसानों को ऋण मुक्त होने का प्रमाणपत्र नहीं दिया गया। सरकारी, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सहकारी बैंक और निजी बैंकों ने एक समान रूप से स्कीम को लागू करने में नियमों को ताक पर रखा है।
किस राज्य को कितना फायदा
राज्य-किसान- राशि [करोड़ रुपये में]
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यूपी------54,16,041---9,095.11
बिहार-----17,57,519---3,158.90
झारखंड----6,66,426---789.60
मध्य प्रदेश--23,74,826--4,203.25
जम्मू-कश्मीर--50,530----97.06
दिल्ली----1,712-----7.36
हरियाणा---8,85,102--2,648.73
पंजाब----4,21,278---1,222.91
बंगाल--14,62,333--1,882.27
उत्तराखंड--1,73,695---317.65
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कैग रिपोर्ट में खास
-90,576 खातों की जांच, 20,424 में अनियमितता
-8.5 फीसद मामलों में उन्हें भी मिला फायदा जो नहीं थे पात्र
-सरकार से पैसा लेकर भी बैंकों ने किसानों को नहीं दिया फायदा
-बड़े पैमाने पर पुराने रिकॉर्डो में की गई गड़बड़ियां
-वित्त मंत्रालय के स्तर पर स्कीम की नहीं हुई निगरानी
-शहरी सहकारी बैंकों ने अभी तक नहीं बताए लाभान्वित किसानों के नाम
किसान कर्ज माफी योजना की सीबीआइ जांच कराए सरकार
नई दिल्ली। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने किसान कर्ज माफी योजना की जांच सीबीआइ से कराने की मांग की है। मंगलवार को सरकार ने वर्ष 2008-09 के बजट में घोषित इस योजना की जांच पर कैग की रिपोर्ट सदन पटल पर रखी। भाजपा सहित अन्य विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को दोनों सदनों में जोर-शोर से उठाने की बात कही है।
भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, 'यह दस हजार करोड़ रुपये का घोटाला है। संप्रग कार्यकाल में हुए अन्य घोटालों की कतार में यह सबसे जघन्य है, क्योंकि इसमें किसानों के हितों से खिलवाड़ किया गया है।'
जावड़ेकर ने कहा कि सरकार ने किसानों के 60 हजार करोड़ रुपये के कर्ज माफ कर दिए, लेकिन अभी भी किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हैं। सरकार ने अपने हित साधने के लिए योजना के नियमों में तमाम विवादास्पद बदलाव किए। एक बार भी बकाया कर्ज की अदायगी करने वाले किसानों को योजना में शामिल नहीं किया गया। ऐसे नियम बताते हैं कि योजना की शुरुआत ही गलत तरीके से हुई।
कैग रिपोर्ट के मुताबिक करीब 34 लाख हकदार किसानों को योजना का लाभ देने से इन्कार कर दिया गया, जबकि योजना के दायरे में नहीं आने वाले 24 लाख से ज्यादा किसानों को लाभ पहुंचाया गया। लोक लेखा समिति को रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए टिप्पणी देनी चाहिए। सरकार को जल्द ही योजना की सीबीआइ जांच करानी चाहिए, ताकि गड़बड़ी करने वालों के नाम सामने आ सकें।
वरिष्ठ भाजपा सदस्य व पूर्व वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने कहा कि यह योजना चुनाव को ध्यान में रखकर तैयार की गई थी। इसकी खामियां एक दिन देश के सामने आनी ही थीं। सवाल उठता है कि क्या आम जनता की राशि को किसी राजनीतिक दल के चुनाव को फंड करने के लिए दिया जाना चाहिए। वित्त मंत्रालय के स्थायी संसदीय सदस्य और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि वह बजट अभिभाषण के दौरान इस मुद्दे को पूरी ताकत के साथ उठाएंगे।
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