आधुनिक भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन |
आज तीन जून है, आधुनिक भारतीय इतिहास का सबसे काल दिन, क्योंकि आज के दिन 66 वर्ष पूर्व देश के विभाजन की घोषणा हुई थी। जवाहरलाल नेहरु और एडविना माऊंटबेटन की बंद कमरे में तीन घंटे हुई ’वार्ता’ के बाद.
लार्ड माऊंटबेटन के जीवनीकार फिलिपज़िग्लेर ने लिखा है की अंग्रजों ने अखंड हिंदुस्तान के दो देशों ”भारत” और ”पाकिस्तान” में विभाजन को सिद्धांत रूप में स्वीकार कर लिया था (या यों कहें की अंग्रेजों की चाल थी की भारत के दो टुकड़े कर दिए जाएँ। यही कार्य ब्रिटिश हुकूमत ने इजराइल के साथ भी किया था। नवम्बर १९४७ में जब इजराइल राज्य का उदय हुआ तो येरूशलेम को इजराइल को नहीं सौंपा गया। जिसके लिए १९६७ के अरब इजराइल युद्ध में ही येरूशलेम को इजराइल में शामिल किया जा सका। लेकिन भारत इतना खुशनसीब नहीं रहा)। इसी लिए लार्ड माऊंटबेटन को भारत का गवर्नर जनरल बनाकर भेज गया था। क्योंकि अँगरेज़ जान चुके थे की उनके इस मंसुबे को केवल जवाहरलाल नेहरु के जरिये ही पूरा कराया जा सकता था, और बर्मा के युद्ध के समय से ही नेहरु की माऊंटबेटन परिवार से, विशेषकर एडविना माऊंटबेटन से अंतरंगता थी, तथा भारत आने के बाद माऊंटबेटन परिवार का पहला कार्य उन संबंधो को और मजबूत करना था।
अक्सर ये कह दिया जाता है की भारत तो एक हज़ार साल तक गुलाम रहा। लेकिन सच्चाई ये है की भारत ने एक हज़ार साल तक अपनी आज़ादी के लिए संघर्ष किया। गुलामी भारत के स्वाभाव में नहीं रही है। लेकिन ये अवश्य है की अपनी आपसी फुट के कारण पहले हमले में ही हम दुश्मन का एकजुट होकर मुकाबला नहीं कर पाए, और एक बार सत्ता गंवाने के बाद उसे पुनः प्राप्त करने के लिए प्रयास एवम संघर्ष करते रहे। खुले युद्ध से संभव न हुआ तो छापामार अथवा गुरिल्ला युद्ध का सहारा लिया। ठाकुर घनश्याम नारायण सिंह, जो देहरादून स्थित राष्ट्रीय दृष्टिबाधित विकलांगता संस्थान के निदेशक रहे, ने अपनी शोध पुस्तक में लिखा है की ” ठग और पिंडारी वास्तव में वही गुरिल्ला सैनिक थे जो अपनी रियासतें अथवा राज्य छीन जाने के कारण घाट लगाकर मुस्लिम सुल्तानों और मुग़ल बादशाहों की फौज पर हमले करते थे.कालांतर में लूटपाट ही उनका पेशा बन गया। इसी प्रकार प्रत्येक मुस्लिम शासक को अपने पूर्व शासक द्वारा विजित क्षेत्रों को पुनः जीतना पड़ता था क्योंकि वहां चल रही स्वतंत्रता की मुहीम के चलते पुनः अपना वर्चस्व प्रमाणित करना आवश्यक हो जाता था। मुग़लों के विरुद्ध संगठित प्रतिरोध राजा हेमचन्द्र, महाराणा प्रताप, और शिवाजी ने किया। शिवाजी के कारण मुग़ल सल्तनत पूरी तरह खोखली हो गयी.और औरंगजेब को लम्बे समय तक दक्षिण में युद्ध में जूझना पड़ा और अंत में १७०७ में वहीँ उसकी मौत हो गयी। उसकी कब्र औरंगाबाद में है जहाँ कोई जाना पसंद नहीं करता। औरंगजेब के बाद मुग़ल सल्तनत की हालत ये हो गयी की शाह आलम के समय कहावत बन गयी ” नाम है शाह आलम और राज है लाल किले से पालम”। अंग्रेजों के शासन सँभालने के समय दिल्ली के चारों और हिन्दू राज्य स्थापित हो चुके थे। मुग़लों के इस गिरते हुए राज के कारण जिन मुस्लिम जमींदारों और रिसलेदारों को पूर्व में सुविधाएँ एवं रुतबा प्राप्त था उनकी स्थिति डांवाडोल होने लगी, और उन्होंने मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फर को नेता बनाकर लड़ी गयी आज़ादी की पहली लडाई १८५७ के स्वातंत्र्य समर में हिस्सा लिया। लेकिन इस क्रांति के असफल हो जाने पर मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर हुमायूँ के मकबरे में छुपे हुए गिरफ्तार कर लिए गए। उनके परिवार के जितने लोग पकड़े जा सके सबको मार दिया गया। मुग़ल राज्य के जो बड़े ओहदेदार पकडे गए वो भी सब मार दिए गए। कहा जाता है की उस समय दिल्ली का कोतवाल गयासुद्दीन था जो जान बचाकर परिवार सहित हिन्दू नाम रखकर आगरा निकल भागा। कुछ लोगों का मानना है की वही गंगाधर नेहरु बन गए जो जवाहरलाल नेहरु के दादा थे.
१८५७ की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने मुसलमानों को सब सहूलियतें और नौकरियाँ देनी बंद करदी, ऐसे में एक मुस्लिम अफसर सैयद अहमद द्वारा ये कहा और लिखा गया की ” हिन्दू और मुसलमान दो अलग कौमें हैं जो कभी एक नहीं हो सकती”। अंग्रेजों ने इस बात का लाभ उठाया और सैयद अहमद को अपने पक्ष में करके हिन्दू और मुसलमानों के बीच खायी को बढ़ने का काम किया. इसी उद्देश्य से बाद में अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना की गयी।
इस विषय में बहुत कुछ लिखा जा चूका है की जिन्ना को उसके इंग्लेंड प्रवास के दौरान ही अंग्रेजों ने अपने पक्ष में जोड़ लिया था और बाद में केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढने वाले चौधरी रहमत अली के द्वारा 1933 में पाकिस्तान नाम से अलग मुस्लिम देश का प्रस्ताव रखने पर अलगाव की इस धरा को और बढ़ावा मिला।
लेकिन कांग्रेस ने कभी भी देश विभाजन को स्वीकार नहीं किया, और महात्मा गाँधी ने घोषणा की की पाकिस्तान का निर्माण मेरी लाश पर होगा।
लार्ड माऊंटबेटन का मुख्या काम देश विभाजन पर कांग्रेस की सहमति प्राप्त करना था। फिलिप जिगलर ने माऊंटबेटन की जीवनी में लिखा है की १ जून १९४७ को ये तय किया गया की इस काम के लिए नेहरु को मनाने के लिए लेडी माऊंटबेटन (एडविना) से बेहतर कोई नहीं हो सकता। अतः २ जून को दिल्ली की तपती दुपहरी में ११ बजे एडविना नेहरु के पास गयी और तीन घंटे तक एकांत में बंद कमरे में ’मंत्रणा’ के बाद नेहरु देश विभाजन के लिए राज़ी हो गए।
तीन जून को देश के विभाजन और इण्डिया और पाकिस्तान नामों से दो देशों के निर्माण की घोषणा कर दी गयी। जब महात्मा गाँधी से इस बारे में पूछा गया की आपकी घोषणा का क्या हुआ तो उन्होंने कह दिया की अब जब जवाहर ने हामी भर ली है तो मेरे में इतनी ताकत नहीं बची है की मैं विरोध में खड़ा हो जाऊं.हालाँकि बाद में पाकिस्तान बनने के बाद पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिए आमरण अनशन करने की ताकत महात्मा गाँधी में शेष थी.
आयें और तीन जून को ही ये संकल्प लें की जैसे भी हो पुनः अपने देश को अखंड करेंगे,भारतमाता की भुजाओं को पुनः जोड़ेंगे।
बचपन में हम संघ की शाखाओं पर गीत गाते थे ”कट गयी भुजा भारत माँ की अनहोनी ये भी होनी थी.थी तीन जून को हुई घोषणा भारत के बटवारे की, बन गयी कब्र भारत में ही भारत अखंड के नारे की……..”तो प्रत्येक वर्ष तीन जून को दिल में एक हूक सी उठती
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