तुष्टिकरण और भ्रष्ट राजनीति के साइड इफेक्ट |
सिद्धार्थ मिश्र”स्वतंत्र”
दुनिया भर में शांति एवं अहिंसा के केंद्र के रूप मे मशहूर बोधगया में हुए बम विस्फोटों ने एक बार दोबारा हमारी आंतरिक सुरक्षा प्रणाली को आईना दिखाने का काम किया है । दहशत फैलाने के उद्देश्य से किये गये इन धमाकों से भले जान माल की न्यूनतम क्षति हुई हो लेकिन इनके भविष्यगत परिणाम निश्चित रूप से गंभीर होंगे । ये विस्फोट आतंकियों के बढ़े हुए मनोबल को स्पष्ट दर्शाते हैं । ये धमाके दर्शाते हैं कि दहशतगर्दों के मन में भारतीय सुरक्षा व्यवस्था से कोई खौफ नहीं है। जहां तक प्रश्न इस घटना के जिम्मेदार संगठन का तो प्रारंभिक जांच के आधार पर इस घटना के पीछे इंडियन मुजाहीदीन का हाथ होने की आशंका है । इस पूरे प्रकरण में सबसे हास्यास्पद बात तो ये है कि एक ओर जब पूरा देश इन चरमपंथी घटनाओं से त्राहिमाम कर रहा है तो दूसरी ओर हमारे जन गण के अधिनायक लगातार अपनी सतही राजनीति जारी रखे हैं । लगातार हो रही इस बयानबाजी में बिना आधार के दूसरे पर दोष मढ़ने की बात भी शामिल है ।
गौरतलब है कि आईबी ने इस घटना के पूर्व ही बिहार सरकार को चेतावनी दे दी थी । चेतावनी मिलने के बावजूद ऐसा धमाका होना क्या साबित करता है ? इस विषय में सबसे बड़ी बात तो ये है हमारे सत्ता के भ्रष्ट निजाम इशरत जहां मामले में आईबी की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं । घटना को अल्पसंख्यक मुद्दा बनाकर वोटबैंक की राजनीति करना कांग्रेस की पुरानी शासन प्रणाली है । ऐसी ही सतही राजनीति हमें इशरत जहां प्रकरण में भी देखने को मिली जहां आई बी और सीबीआई आमने सामने आ खड़े हुए हैं । काबिलेगौर है कि एक ओर आईबी ने इशरत जहां को आतंकी बताया था तो दूसरी ओर सीबीआई उसे दूध का धुला ठहराने पर तुली हुई है । अपनी सीबीआई की कार्यप्रणाली से तो हम सभी बखूबी परिचित हैं । जब तोते को पिजरा रास आने लगे तो किया भी क्या जा सकता है ? हां इस पूरे मामले के राजनीतिकरण ने निसंदेह सुरक्षाबलों का हौंसला अवश्य तोड़ा होगा । देश की सुरक्षा की शपथ लेने वाले जवान भविष्य में किसी भी आतंकी पर उचित कार्रवाई करने से पूर्व सौ बार अवश्य सोचेंगे । हमारे सत्ता के इतिहास में ये कोई पहली घटना नहीं है,इसके पूर्व भी बाटला हाउस कांड में इस तरह की सियासत हम देख चुके हैं । इस कड़ी में कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह की संजरपुर की तीर्थ यात्रा भी शामिल है । इस सारी बातों का सार तत्व मात्र इतना है कि आतंकियों के बढ़े हुए हौंसले के पीछे सौ फीसदी हमारी भ्रष्ट एवं तुष्टिकरण परक राजनीति जिम्मेदार है ।
इस घटना का एक अन्य पहलू म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों का वहां के स्थानीय बहुसंख्यक बौद्धों के तथाकथित शोषण से भी जोड़कर देखा जा रहा है । बहरहाल घटना के तार म्यामांर से जुड़ना कोई बड़ी बात नहीं है । उस घटना की प्रतिक्रिया हम पूर्व में भी मुंबई में देख चुके हैं ।मुंबई में हुई इस हिंसक घटना के आरोपियों के विरूद्ध अब तक कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी है । ऐसा ही कुछ हाल असम में हुए दंगों का भी है । स्मरण रहे इन दंगों में भीषण जन-धन की हानि होने के बावजूद भी कोई इन घटनाओं का जिक्र करना मुनासिब नहीं समझता ,क्यों ? जबकि इसके विपरीत गोधरा में हुई प्रतिक्रियात्मक हिंसा दस वर्षों बाद तक आज भी सुर्खियों में बनी हुई है । इस विषय सबसे बुरी बात है तो ये है कि इस हादसे की शुरूआत में ट्रेन में जिंदा जलाये गये ५९ लोगों की मृत्यु पर चर्चा तक नहीं की जाती । सत्ता के निजामों के ये दोहरे मापदंड क्या दर्शाते हैं ? अथवा इस धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में हिंदू होना कोई अपराध है ? अथवा हिंदूओं के मानवाधिकार नहीं होते ? यदि होते हैं तो मानवाधिकारवादी, तुच्छ नेता इन घटनाओं पर चर्चा क्यों नहीं करते ? जहां तक देश में लगातार हो रहे धमाकों का प्रश्न है तो इसका एकमेव कारण है दोहरे मापदंड एवं तुष्टिकरण परक राजनीति ।
राष्ट्रवाद से जुड़े प्रत्येक मुद्दे पर राजनीति वास्तव में एक बेहद निंदनीय कृत्य है । दुर्भाग्यवश हमारा देश वर्तमान में इसी त्रासदी का शिकार है ।शायद यही वजह है कि भारत आज समूचे विश्व के आतंकियों का मनपसंद चारागाह बन चुका है । अब इस वर्तमान घटना को ही ले लीजीए इस पूरे प्रकरण के विषय में आईबी के एलर्ट के बावजूद इस तरह की घटनाओं का घटित होना हमारी राजनीतिक लापरवाही एवं आमजन के प्रति गैरजिम्मेदाराना रवैया ही प्रदर्शित करता है । उस पर नीतिश के सुशासन की बात अब तो हवा हवाई ही लगने लगी है । जहां तक इस पूरी घटना पर सत्ता के रवैये का प्रश्न है तो ये आप और हम सभी जानते हैं । इस विषम काल में सबसे खेदजनक बात है कांग्रेस के पालतू प्रवक्ताओं के बयान । ऐसे ही बयान में एक बड़े कांग्रेसी दिग्गज ने इस मामले को मोदीसे जोड़कर अपनी बेहद निरीह एवं तुच्छ मति का परिचय दे दिया है । अब आप ही बताइये जब सत्ता के निजाम ही आतंकियों की पैरवी करेंगे तो देश की हिफाजत कैसे की जा सकती है । राजनीति के तौर तरीके और सीबीआई के पैंतरों को देखकर मात्र इतना ही कहा जा सकता है कि ये धमाके भ्रष्ट राजनीति एवं तुष्टिकरण के साइड इफेक्ट से ज्यादा कुछ और नहीं हैं ।
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