भारत की आज़ादी का इतिहास
दो तीन गंभीर बाते कहने आपसे आया हु. और चाहता हु कि कुछ आपसे कह सकुं और अगर आप चाहें तो मुझसे कुछ पूछ सके. मेरे व्याख्यान के बाद अगर आपको लगे तो आप सवाल जरुर पूछिएगा. जिस विषय पर मै व्याख्यान देने वाला हूँ वो विषय आज हमारे देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, इसलिए अगर आप उसमे कुछ सवाल करेंगे तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी.
आज़ादी के ५० साल हो गए है, ऐसा भारत सरकार कहती है. १९४७ में हम आजाद हुए थे, अंग्रेजो की गुलामी से. और १९४७ में जब आज़ादी मिली, तो अब १९९७ आ गया है, ऐसा माना जाता है कि ५० साल पुरे हो गए, देश को आज़ाद हुए. मै मानता हु कि ये आज़ादी के ५० साल नही है बल्कि हिंदुस्तान की गुलामी के ५०० साल पुरे हुए है. ये, कभी कभी आपको आश्चर्य लगेगा कि ये राजीव भाई ऐसा क्यों बोलते है गुलामी के ५०० साल भारत सरकार तो कहती है कि आज़ादी को ५० साल हो गए है. और मै बहुत गंभीरता से ये मानता हु कि आज़ादी के ५० साल नहीं बल्कि गुलामी के ५०० साल पुरे हुए है. वो कैसे? उसको समझिए,
आज से लगभग ५०० साल पहले, वास्को डी गामा आया था हिंदुस्तान. इतिहास की चोपड़ी में, इतिहास की किताब में हमसब ने पढ़ा होगा कि सन. १४९८ में मई की २० तारीख को वास्को डी गामा हिंदुस्तान आया था. इतिहास की चोपड़ी में हमको ये बताया गया कि वास्को डी गामा ने हिंदुस्तान की खोज की, पर ऐसा लगता है कि जैसे वास्को डी गामा ने जब हिंदुस्तान की खोज की, तो शायद उसके पहले हिंदुस्तान था ही नहीं. हज़ारो साल का ये देश है, जो वास्को डी गामा के बाप दादाओं के पहले से मौजूद है इस दुनिया में. तो इतिहास कि चोपड़ी में ऐसा क्यों कहा जाता है कि वास्को डी गामा ने हिंदुस्तान की खोज की, भारत की खोज की. और मै मानता हु कि वो एकदम गलत है. वास्को डी गामा ने भारत की कोई खोज नहीं की, हिंदुस्तान की भी कोई खोज नहीं की, हिंदुस्तान पहले से था, भारत पहले से था, वास्को डी गामा यहाँ आया था भारतवर्ष को लुटने के लिए, एक बात और जो इतिहास में, मेरे अनुसार बहुत गलत बताई जाती है कि वास्को डी गामा एक बहूत बहादुर नाविक था, बहादुर सेनापति था, बहादुर सैनिक था, और हिंदुस्तान की खोज के अभियान पर निकला था, ऐसा कुछ नहीं था, सच्चाई ये है कि पुर्तगाल का वो उस ज़माने का डॉन था, माफ़िया था. जैसे आज के ज़माने में हिंदुस्तान में बहूत सारे माफ़िया किंग रहे है, उनका नाम लेने की जरुरत नहीं है, क्योकि मंदिर की पवित्रता ख़तम हो जाएगी, ऐसे ही बहूत सारे डॉन और माफ़िया किंग १५ वी सताब्दी में होते थे यूरोप में. और १५ वी. सताब्दी का जो यूरोप था, वहां दो देश बहूत ताकतवर थें उस ज़माने में, एक था स्पेन और दूसरा था पुर्तगाल. तो वास्को डी गामा जो था वो पुर्तगाल का माफ़िया किंग था. १४९० के आस पास से वास्को डी गामा पुर्तगाल में चोरी का काम, लुटेरे का काम, डकैती डालने का काम ये सब किया करता था. और अगर सच्चा इतिहास उसका आप खोजिए तो एक चोर और लुटेरे को हमारे इतिहास में गलत तरीके से हीरो बना कर पेश किया गया. और ऐसा जो डॉन और माफ़िया था उस ज़माने का पुर्तगाल का ऐसा ही एक दुसरा लुटेरा और डॉन था, माफ़िया था उसका नाम था कोलंबस, वो स्पेन का था. तो हुआ क्या था, कोलंबस गया था अमेरिका को लुटने के लिए और वास्को डी गामा आया था भारतवर्ष को लुटने के लिए. लेकिन इन दोनों के दिमाग में ऐसी बात आई कहाँ से, कोलंबस के दिमाग में ये किसने डाला की चलो अमेरिका को लुटा जाए, और वास्को डी गामा के दिमाग में किसने डाला कि चलो भारतवर्ष को लुटा जाए. तो इन दोनों को ये कहने वाले लोग कौन थे? अतुल भाई जो बता रहे थे, वही बात मै आपसे दोहरा रहा हु.
हुआ क्या था कि १४ वी. और १५ वी. सताब्दी के बीच का जो समय था, यूरोप में दो ही देश थें जो ताकतवर माने जाते थे, एक देश था स्पेन, दूसरा था पुर्तगाल, तो इन दोनों देशो के बीच में अक्सर लड़ाई झगडे होते थे, लड़ाई झगड़े किस बात के होते थे कि स्पेन के जो लुटेरे थे, वो कुछ जहांजो को लुटते थें तो उसकी संपत्ति उनके पास आती थी, ऐसे ही पुर्तगाल के कुछ लुटेरे हुआ करते थे वो जहांज को लुटते थें तो उनके पास संपत्ति आती थी, तो संपत्ति का झगड़ा होता था कि कौन-कौन संपत्ति ज्यादा रखेगा. स्पेन के पास ज्यादा संपत्ति जाएगी या पुर्तगाल के पास ज्यादा संपत्ति जाएगी. तो उस संपत्ति का बटवारा करने के लिए कई बार जो झगड़े होते थे वो वहां की धर्मसत्ता के पास ले जाए जाते थे. और उस ज़माने की वहां की जो धर्मसत्ता थी, वो क्रिस्चियनिटी की सत्ता थी, और क्रिस्चियनिटी की सत्ता में १४९२ के आसपास पोप होता था जो सिक्स्थ कहलाता था, छठवा पोप. तो एक बार ऐसे ही झगड़ा हुआ, पुर्तगाल और स्पेन की सत्ताओ के बीच में, और झगड़ा किस बात को ले कर था? झगड़ा इस बात को ले कर था कि लूट का माल जो मिले वो किसके हिस्से में ज्यादा जाए. तो उस ज़माने के पोप ने एक अध्यादेश जारी किया. आदेश जारी किया, एक नोटिफिकेशन जारी किया. सन १४९२ में, और वो नोटिफिकेशन क्या था? वो नोटिफिकेशन ये था कि १४९२ के बाद, सारी दुनिया की संपत्ति को उन्होंने दो हिस्सों में baantबाँटा, और दो हिस्सों में ऐसा बाँटा कि दुनिया का एक हिस्सा पूर्वी हिस्सा, और दुनिया का दूसरा हिस्सा पश्चिमी हिस्सा. तो पूर्वी हिस्से की संपत्ति को लुटने का काम पुर्तगाल करेगा और पश्चिमी हिस्से की संपत्ति को लुटने का काम स्पेन करेगा. ये आदेश १४९२ में पोप ने जारी किया. ये आदेश जारी करते समय, जो मूल सवाल है वो ये है कि क्या किसी पोप को ये अधिकार है कि वो दुनिया को दो हिस्सों में बांटे, और उन दोनों हिस्सों को लुटने के लिए दो अलग अलग देशो की नियुक्ति कर दे? स्पैन को कहा की दुनिया के पश्चिमी हिस्से को तुम लूटो, पुर्तगाल को कहा की दुनिया के पूर्वी हिस्से को तुम लूटो और १४९२ में जारी किया हुआ वो आदेश और बुल आज भी एग्जिस्ट करता है.
ये क्रिस्चियनिटी की धर्मसत्ता कितनी खतरनाक हो सकती है उसका एक अंदाजा इस बात से लगता है कि उन्होंने मान लिया कि सारी दुनिया तो हमारी है और इस दुनिया को दो हिस्सों में बांट दो पुर्तगाली पूर्वी हिस्से को लूटेंगे, स्पेनीश लोग पश्चिमी हिस्से को लूटेंगे. पुर्तगालियो को चूँकि दुनिया के पूर्वी हिस्से को लुटने का आदेश मिला पोप की तरफ से तो उसी लुट को करने के लिए वास्को डी गामा हमारे देश आया था. क्योकि भारतवर्ष दुनिया के पूर्वी हिस्से में पड़ता है. और उसी लुट के सिलसिले को बरकरार रखने के लिए कोलंबस अमरीका गया. इतिहास बताता है कि १४९२ में कोलंबस अमरीका पहुंचा, और १४९८ में वास्को डी गामा हिंदुस्तान पहुंचा, भारतवर्ष पहुंचा. koकोलंबस जब अमरीका पहुंचा तो उसने अमरीका में, जो मूल प्रजाति थी रेड इंडियन्स जिनको माया सभ्यता के लोग कहते थे, उन माया सभ्यता के लोगों से मार कर पिट कर सोना चांदी छिनने का काम शुरु किया. इतिहास में ये बराबर गलत जानकारी हमको दी गई कि कोलंबस कोई महान व्यक्ति था, महान व्यक्ति नहीं था, अगर गुजरती में मै शब्द इस्तेमाल करू तो नराधम था. और वो किस दर्जे का नराधम था, सोना चांदी लुटने के लिए अगर किसी की हत्या करनी पड़े तो कोलंबस उसमे पीछे नहीं रहता था, उस आदमी ने १४ – १५ वर्षो तक बराबर अमरीका के रेड इन्डियन लोगों को लुटा, और उस लुट से भर – भर कर जहांज जब स्पेन गए तो स्पेन के लोगों को लगा कि अमेरिका में तो बहुत सम्पत्ति है, तो स्पेन की फ़ौज और स्पेन की आर्मी फिर अमरीका पहुंची. और स्पेन की फ़ौज और स्पेन की आर्मी ने अमरीका में पहुँच कर १० करोड़ रेड इंडियन्स को मौत के घाट उतार दिया. १० करोड़. और ये दस करोड़ रेड इंडियन्स मूल रूप से अमरीका के बाशिंदे थे. ये जो अमरीका का चेहरा आज आपको दिखाई देता है, ये अमरीका १० करोड़ रेड इन्डियन की लाश पर खड़ा हुआ एक देश है. कितने हैवानियत वाले लोग होंगे, कितने नराधम किस्म के लोग होंगे, जो सबसे पहले गए अमरीका को बसाने के लिए, उसका एक अंदाजा आपको लग सकता है, आज स्थिति क्या है कि जो अमरीका की मूल प्रजा है, जिनको रेड इंडियन कहते है, उनकी संख्या मात्र ६५००० रह गई है.
१० करोड़ लोगों को मौत के घाट उतारने वाले लोग आज हमको सिखाते है कि हिंदुस्तान में ह्यूमन राईट की स्थिति बहुत ख़राब है. जिनका इतिहास ही ह्यूमन राईट के वोइलेसन पे टिका हुआ है, जिनकी पूरी की पूरी सभ्यता १० करोड़ लोगों की लाश पर टिकी हुई है, जिनकी पूरी की पूरी तरक्की और विकास १० करोड़ रेड इंडियनों लोगों के खून से लिखा गया है, ऐसे अमरीका के लोग आज हमको कहते है कि हिंदुस्तान में साहब, ह्यूमन राईट की बड़ी ख़राब स्थिति है, कश्मीर में, पंजाब में, वगेरह वगेरह. और जो काम मारने का, पीटने का, लोगों की हत्याए कर के सोना लुटने का, चांदी लुटने का काम कोलंबस और स्पेन के लोगों ने अमरीका में किया, ठीक वही काम वास्को डी गामा ने १४९८ में हिंदुस्तान में किया. ये वास्को डी गामा जब कालीकट में आया, २० मई, १४९८ को, तो कालीकट का राजा था उस समय झामोरिन, तो झामोरिन के राज्य में जब ये पहुंचा वास्को डी गामा, तो उसने कहा कि मै तो आपका मेहमान हु, और हिंदुस्तान के बारे में उसको कहीं से पता चल गया था कि इस देश में अतिथि देवो भव की परंपरा. तो झामोरिन ने बेचारे ने, ये अथिति है ऐसा मान कर उसका स्वागत किया, वास्को डी गामा ने कहा कि मुझे आपके राज्य में रहने के लिए कुछ जगह चाहिए, आप मुझे रहने की इजाजत दे दो, परमीशन दे दो. झामोरिन बिचारा सीधा सदा आदमी था, उसने कालीकट में वास्को डी गामा को रहने की इजाजत दे दी. जिस वास्को डी गामा को झामोरिन के राजा ने अथिति बनाया, उसका आथित्य ग्रहण किया, उसके यहाँ रहना शुरु किया, उसी झामोरिन की वास्को डी गामा ने हत्या कराइ. और हत्या करा के खुद वास्को डी गामा कालीकट का मालिक बना. और कालीकट का मालिक बनने के बाद उसने क्या किया कि समुद्र के किनारे है कालीकट केरल में, वहां से जो जहांज आते जाते थे, जिसमे हिन्दुस्तानी व्यापारी अपना माल भर-भर के साउथ ईस्ट एशिया और अरब के देशो में व्यापार के लिए भेजते थे, उन जहांजो पर टैक्स वसूलने का काम वास्को डी गामा करता था. और अगर कोई जहांज वास्को डी गामा को टैक्स ना दे, तो उस जहांज को समुद्र में डुबोने का काम वास्को डी गामा करता था.
और वास्को डी गामा हिंदुस्तान में आया पहली बार १४९८ में, और यहाँ से जब लुट के सम्पत्ति ले गया, तो ७ जहांज भर के सोने की अशर्फिया थी. पोर्तुगीज सरकार के जो डॉक्यूमेंट है वो बताते है कि वास्को डी गामा पहली बार जब हिंदुस्तान से गया, लुट कर सम्पत्ति को ले कर के गया, तो ७ जहांज भर के सोने की अशर्फिया, उसके बाद दुबारा फिर आया वास्को डी गामा. वास्को डी गामा हिंदुस्तान में ३ बार आया लगातार लुटने के बाद, चौथी बार भी आता लेकिन मर गया. दूसरी बार आया तो hindustहिंदुस्तान से लुट कर जो ले गया वो करीब ११ से १२ जहांज भर के सोने की अशर्फिया थी. और तीसरी बार आया और हिंदुस्तान से जो लुट कर ले गया वो २१ से २२ जहांज भर के सोने की अशर्फिया थी. इतना सोना चांदी लुट कर जब वास्को डी गामा यहाँ से ले गया तो पुर्तगाल के लोगों को पता चला कि हिंदुस्तान में तो बहुत सम्पत्ति है. और भारतवर्ष की सम्पत्ति के बारे में उन्होंने पुर्तगालियो ने पहले भी कहीं पढ़ा था, उनको कहीं से ये टेक्स्ट मिल गया था कि भारत एक ऐसा देश है, जहाँ पर महमूद गजनवी नाम का एक व्यक्ति आया, १७ साल बराबर आता रहा, लुटता रहा इस देश को, एक ही मंदिर को, सोमनाथ का मंदिर जो वेरावल में है. उस सोमनाथ के मंदिर को महमूद गजनवी नाम का एक व्यक्ति, एक वर्ष आया अरबों खरबों की सम्पत्ति ले कर चला गया, दुसरे साल आया, फिर अरबों खरबों की सम्पत्ति ले गया. तीसरे साल आया, फिर लुट कर ले गया. और १७ साल वो बराबर आता रहा, और लुट कर ले जाता रहा. तो वो टेक्स्ट भी उनको मिल गए थे कि एक एक मंदिर में इतनी सम्पत्ति, इतनी पूंजी है, इतना पैसा है भारत में, तो चलो इस देश को लुटा जाए, और उस ज़माने में एक जानकारी और दे दू, ये जो यूरोप वाले अमरीका वाले जितना अपने आप को विकसित कहे, सच्चाई ये है कि १४ वी. और १५ वी. शताब्दी में दुनिया में सबसे ज्यादा गरीबी यूरोप के देशो में थी. खाने पीने को भी कुछ होता नहीं था. प्रकृति ने उनको हमारी तरह कुछ भी नहीं दिया, न उनके पास नेचुरल रिसोर्सेस है, जितने हमारे पास है. न मौसम बहूत अच्छा है, न खेती बहुत अच्छी होती थी और उद्योगों का तो प्रश्न ही नहीं उठता. १३ फी. और १४ वी. शताब्दी में तो यूरोप में कोई उद्योग नहीं होता था. तो उनलोगों का मूलतः जीविका का जो साधन था जो वो लुटेरे बन के काम से जीविका चलाते थे. चोरी करते थे, डकैती करते थे, लुट डालते थे, ये मूल काम वाले यूरोप के लोग थे, तो उनको पता लगा कि हिंदुस्तान और भारतवर्ष में इतनी सम्पत्ति है तो उस देश को लुटा जाए, और वास्को डी गामा ने आ कर हिंदुस्तान में लुट का एक नया इतिहास शुरु किया. उससे पहले भी लुट चली हमारी, महमूद गजनवी जैसे लोग हमको लुटते रहे.
लेकिन वास्को डी गामा ने आकर लुट को जिस तरह से केन्द्रित किया और ओर्गनाइजड किया वो समझने की जरूरत है. उसके पीछे पीछे क्या हुआ, पुर्तगाली लोग आए, उन्होंने ७० – ८० वर्षो तक इस देश को खूब जम कर लुटा. पुर्तगाली चले गए इस देश को लुटने के बाद, फिर उसके पीछे फ़्रांसिसी आए, उन्होंने इस देश को खूब जमकर लुटा ७० – ८० वर्ष उन्होंने भी पुरे किए. उसके बाद डच आ गये हालैंड वाले, उन्होंने इस देश को लुटा. उसके बाद फिर अंग्रेज आ गए हिंदुस्तान में लुटने के लिए ही नहीं बल्कि इस देश पर राज्य भी करने के लिए. पुर्तगाली आए लुटने के लिए, फ़्रांसिसी आए लुटने के लिए, डच आए लुटने के लिए, और फिर पीछे से अंग्रेज चले आए लुटने के लिए, अंग्रेजो ने लुट का तरीका बदल दिया. ये अंग्रेजो से पहले जो लुटने के लिए आए वो आर्मी ले कर के आए थे बंदूक ले कर के आये थे, तलवार ले के आए थे, और जबरदस्ती लुटते थे. अंग्रेजो ने क्या किया कि लुट का सिलसिला बदल दिया, और उन्होंने अपनी एक कंपनी बनाई, उसका नाम ईस्ट इंडिया रखा. ईस्ट इंडिया कंपनी को ले के सबसे पहले सुरत में आए इसी गुजरात में, ये बहुत बड़ा दुर्भाग्य है इस देश का कि जब जब इस देश की लुट हुई है इस देश की गुजरात के रास्ते हुई है. जितने लोग इस देश को लुटने के लिए आए बाहर से वो गुजरात के रास्ते घुसे इस देश में. इसको समझिए क्यों ? क्योकि गुजरात में सम्पत्ति बहुत थी, और आज भी है. तो अंग्रेजो को लगा कि सबसे पहले लुटने के लिए चलो सूरत, पुरे हिंदुस्तान में कही नहीं गए, सबसे पहले सुरत में आए. और सुरत में आ के ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए कोठी बनानी है, ऐसा वहां के नवाब के आगे उन्होंने फरमान रखा. बेचारा नवाब सीधा सदा था, उसने अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी को कोठी बनाने के लिए जमीन दे दी. कभी आप जाइए सूरत में, वो कोठी आज भी खड़ी हुई है, उसका नाम है, कुपर विला. एक अंग्रेज था उसका नाम था जेम्स कुपर, ६ अधिकारी आए थे सबसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के, उनमे से एक अधिकारी था जेम्स कुपर, तो जेम्स कुपर ने अपने नाम पर उस कोठी का नाम रख दिया कुपर विला. तो ईस्ट इंडिया कंपनी की सबसे पहली कोठी बनी सूरत में. सूरत के लोगों को मालूम नहीं था, कि जिन अंग्रेजो को कोठी बनाने के लिए हम जामीन दे रहे है, बाद में यही अंग्रेज हमारे खून के प्यासे हो जाएँगे. अगर ये पता होता तो कभी अंग्रेजो को सुरत में ठहरने kiकी भी जमीन नहीं मिलती.
अंग्रेजो ने फिर वोही किया जो उनका असली चरित्र था. पहले कोठी बनाई, व्यापार शुरु किया, धीरे धीरे पुरे सुरत शहर में उनका व्यापार फैला, और फिर सन. १६१२ में सूरत के नवाब की हत्या कराइ, जिस नवाब से जमीन लिया कोठी बनाने के लिए, उसी नवाब की हत्या कराइ अंग्रेजो ने. और १६१२ में जब नवाब की हत्या करा दी उन्होंने, तो सूरत का पूरा एक पूरा बंदरगाह अंग्रेजो के कब्जे में चला गया. और अंग्रेजो ने जो काम सूरत में किया था सन. १६१२ में, वही काम कलकत्ता में किया, वही काम मद्रास में किया, वही काम दिल्ली में किया, वही काम आगरा में किया, वही काम लखनऊ में किया, माने जहाँ भी अंग्रेज जाते थे अपनी कोठी बनाने के लिए अपनी ईस्ट इंडिया कंपनी को ले के, उस हर शहर पर अंग्रेजो का कब्जा होता था. और ईस्ट इंडिया कंपनी का झंडा फहराया जाता था. २०० वर्षो के अंदर व्यापार के बहाने अंग्रेजो ने सारे देश को अपने कब्जे में ले लिया. १७५० तक आते आते सारा देश अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी का गुलाम हो गया.
किसी को नहीं मालूम था कि जिस ईस्ट इंडिया कम्पनी को हम व्यापार के लिए छुट दे रहे है, जिन अंग्रेजो को हम व्यापार के लिए जमीन दे रहे है, जिन अंग्रेजो को व्यापार के लिए हिंदुस्तान में हम बुला के ला रहे है, वही अंग्रेज इस देश के मालिक हो जाएँगे, ऐसा किसी को अंदाजा नहीं था, अगर ये अंदाजा होता तो शायद कभी उनको छुट न मिलती. लेकिन १७५० में ये अंदाजा हुआ, और अंदाजा हुआ १ व्यक्ति को, उसका नाम था सिराजुद्दोला, बंगाल का नवाब था, तो बंगाल का नवाब था सिराजुद्दोला, उसको ये अंदाजा हो गया कि अंग्रेज इस देश में व्यापार करने नहीं आए है, इस देश को गुलाम बनाने आए है, इस देश को लुटने के लिए आए है. क्योकि इस देश में सम्पत्ति बहुत है, क्योकि इस देश में पैसा बहुत है. तो सिराजुद्दोला ने फैसला किया कि अंग्रेजो के खिलाफ कोई बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ेगी. और उस बड़ी को लड़ाई लड़ने के लिए सिराजुद्दोला ने युद्ध किया अंग्रेजो के खिलाफ, इतिहास की चोपड़ी में आपने पढ़ा होगा कि पलासी का युद्ध हुआ, १७५७. लेकिन इस युद्ध की एक ख़ास बात है जो मै आपको याद दिलाना चाहता हु, आज के समय में भी वो बहुत महत्वपूर्ण है. १७५७ में जब पलासी का युद्ध हुआ. मै बचपन में जब विद्यार्थी था कक्षा ९ में पढता था मै, तो मै मेरे इतिहास के अध्यापक से ये पूछता था कि सर मुझे ये बताईए कि पलासी के युद्ध में अंग्रेजो की तरफ से कितने सिपाही थें लड़ने वाले. तो मेरे अध्यापक कहते थे कि मुझको नहीं मालूम. तो मै कहता था क्यों नहीं मालूम, तो कहते थे कि कुझे किसी ने नहीं पढाया तो मै तुमको कहाँ से पढ़ा दू. तो मै उनको बराबर एक ही सवाल पूछता था कि सर आप जरा ये बताईये कि बिना सिपाही के कोई युद्ध हो सकता है कि नहीं तो फिर हमको ये क्यों नहीं पढाया जाता है कि युद्ध में कितने सिपाही अंग्रेजो के पास. और उसके दूसरी तरफ एक और सवाल मै पूछता था कि अच्छा ये बताईये कि अंग्रेजो के पास कितने सिपाही थे ये तो हमको नहीं मालुम सिराजुद्दोला जो लड़ रहा था हिंदुस्तान की तरफ से उनके पास कितने सिपाही थे? तो कहते थे कि वो भी नहीं मालूम. पलासी के युद्ध के बारे में इस देश में इतिहास की १५० किताबे है जो मैंने देखी है, उन १५० मै से एक भी किताब में ये जानकारी नहीं दी गई है कि अंग्रेजो की तरफ से कितने सिपाही लड़ने वाले थे और हिनदुस्तान की तरफ से कितने सिपाही लड़ने वाले थे. और मै आपको सच बताऊ मै मेरे बचपन से इस सवाल से बहुत परेसान रहा. और इस सवाल का जवाब अभी ३ साल पहले मुझे मिला. वो भी हिंदुस्तान में नहीं मिला लन्दन में मिला. लन्दन में एक इंडिया हाउस लाइब्रेरी है बहूत बड़ी लाइब्रेरी है, उस इंडिया हाउस लाइब्रेरी में हिंदुस्तान के गुलामी के २०,००० से भी ज्यादा दस्तावेज़ रखे हुआ है. जो हमारे देश में नहीं है वहां रखे हुए है. भारतवर्ष को अंग्रेजो ने कैसे तोड़ा कैसे गुलाम बनाया इसकी पूरी विगतवार जानकारी उन २०,००० दस्तावेजो में इंडिया हाउस लाइब्रेरी में मौजूद है.
मेरे एक परिचित है प्रोफेसर धरमपाल, वो ४० वर्ष तक यूरोप में रहे है, मैंने एक बार उनको एक चिट्ठी लिखी, मैंने कहा सर, मै ये जानना चाहता हु बेसिक क्वेश्चन कि पलासी के युद्ध में अंग्रेजो के पास कितने सिपाही थे. तो उन्होंने कहा देखो राजीव, अगर तुमको ये जानना है तो बहुत कुछ जानना पड़ेगा, और तुम तैयार हो जानने के लिए, तो मैंने कहा मै सब जानना चाहता हु. मै इतिहास का विद्यार्थी नहीं लगा लेकिन इतिहास को समझना चाहता हु कि ऐसी कौन सी ख़ास बात थी जो हम अंग्रेजो के गुलाम हो गए, ये समझ में तो आना चाहिए अपने को, कि कैसे हम अंग्रेजो के गुलाम हो गए. ये इतना बड़ा देश, ३४ करोड़ की आबादी वाला देश ५० हजार अंग्रेजो का गुलाम कैसे हो गया ये समझना चाहिए. तो वो पलासी के युद्ध पर से वो समझ में आया. उन्होंने कुछ दस्तावेज़ मुझे भेजें, फोटोकॉपी करा के और मेरे पास अभी भी है. उन दस्तावेजो को जब मै पढता था तो मुझे पता चला कि पलासी के युद्ध में अंग्रेजो के पास मात्र ३०० सिपाही थे, ३ हंड्रेड. और सिराजुद्दोला के पास १८,००० सिपाही थे. अब किसी भी सामने के विद्यार्थी से, बच्चे से, या सामान्य बुद्धि के आदमी से आप ये पूछो के एक बाजु में ३०० सिपाही, और दुसरे बाजु में १८,००० सिपाही, कौन जीतेगा? १८,००० सिपाही जिनके पास है वो जीतेगा. लेकिन जीता कौन ? जिनके पास मात्र ३०० सिपाही थे वो जीत गए, और जिनके पास १८,००० सिपाही थे वो हार गए. और हिंदुस्तान के, भारतवर्ष के एक एक सिपाही के बारे में अंग्रेजो के पार्लियामेंट में ये कहा जाता था कि भारतवर्ष का १ सिपाही अंग्रेजो के ५ सिपाही को मारने के लिए काफी है, इतना ताकतवर, तो इतने ताकतवर १८,००० सिपाही अंग्रेजो के कमजोर ३०० सिपाहियो से कैसे हारे ये बिलकुल गम्भीरता से समझने की जरुरत है. और उन दस्तावेजो को देखने के बाद मुझे पता चला कि हम कैसे हारे. अंग्रेजो की तरफ से जो लड़ने आया था उसका नाम था रोबर्ट क्लाइव, वो अंग्रेजी सेना का सेनापति था. और भारतवर्ष की तरफ से जो लड़ रहा था सिराजुद्दोला, उसका भी एक सेनापति था, उसका नाम था मीर जाफ़र. तो हुआ क्या था रोबर्ट क्लाइव ये जनता था कि अगर भारतीय सिपाहियो से सामने से हम लड़ेंगे तो हम ३०० लोग है मारे जाएँगे, १ घंटे भी युद्ध नहीं चलेगा. और क्लाइव ने इस बात को कई बार ब्रिटिस पार्लियामेंट को चिट्ठी लिख के कहा था. क्लाइव की २ चिट्ठियाँ है उन दस्तावेजो में, एक चिट्ठी में क्लाइव ने लिखा कि हम सिर्फ ३०० सिपाही है, और सिराजुद्दोला के पास १८००० सिपाही है. हम युद्ध जीत नहीं सकते है, अगर ब्रिटिश पार्लियामेंट अंग्रेजी पार्लियामेंट ये चाहती है कि हम पलासी का युद्ध जीते, तो जरुरी है कि हमारे पास और सिपाही भेजे जाए. उस चिट्ठी के जवाब में क्लाइव को ब्रिटिश पार्लियामेंट की एक चिट्ठी मिली थी और वो बहुत मजेदार है उसको समझना चाहिए. उस चिट्ठी में ब्रिटिश पार्लियामेंट के लोगों ने ये लिखा कि हमारे पास इससे ज्यादा सिपाही है नहीं. क्यों नहीं है ? क्योकि १७५७ में जब पलासी का युद्ध शुरु होने वाला था उसी समय अंग्रेजी सिपाही फ़्रांस में नेपोलियन बोनापार्ट के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे. और नेपोलियन बोनापार्ट क्या था अंग्रेजो को मार मार के फ़्रांस से भगा रहा था. तो पूरी की पूरी अंग्रेजी ताकत और सेना नेपोलियन बोनापार्ट के खिलाफ फ़्रांस में लडती थी इसी लिए वो ज्यादा सिपाही दे नहीं सकते थे, तो उन्होंने कहा अपने पार्लियामेंट में कि हम इससे ज्यादा सिपाही आपको दे नहीं सकते है. जो ३०० सिपाही है उन्ही से आपको पलासी का युद्ध जीतना होगा. तो रोबर्ट क्लाइव ने apaaaaaaaaaअपने दो जासूस लगाए, उसने कहा देखो युद्ध लड़ेंगे तो मारे जाएँगे, अब आप एक काम करो, उसने दो अपने साथिओं को कहा कि आप जाओ और सिराजुद्दोला की आर्मी में पता लगाओ कि कोई ऐसा आदमी है क्या जिसको रिश्वत दे दें. जिसको लालच दे दें. और रिश्वत के लालच में जो अपने देश से गद्दारी करने को तैयार हो जाए, ऐसा आदमी तलाश करो. उसके दो जासूसों ने बराबर सिराजुद्दोला की आर्मी में पता लगाया कि हां एक आदमी है, उसका नाम है मीर जाफर, अगर आप उसको रिश्वत दे दो, तो वो हिंदुस्तान को बेंच डालेगा. इतना लालची आदमी है. और अगर आप उसको कुर्सी का लालच दे दो, तब तो वो हिंदुस्तान की ७ पुश्तो को बेंच देगा. और मीर जाफर क्या था, मीर जाफर ऐसा आदमी था जो रात दिन एक ही सपना देखता था कि एक न एक दिन मुझे बंगाल का नवाब बनना है. और उस ज़माने में बंगाल का नवाब बनना ऐसा ही होता था जैसे आज के ज़माने में बहुत नेता ये सपना देखते है कि मुझे हिंदुस्तान का प्रधानमंत्री बनना है, चाहे देश बेंचना पड़े. तो मीर जाफर के मन का ये जो लालच था कि मुझे बंगाल का नवाब बनना है. माने कुर्सी चाहिए, और मुझे पूंजी चाहिए, पैसा चाहिए, सत्ता चाहिए और पैसा चाहिए. ये दोनो लालच उस समय मीर जाफर के मन में सबसे ज्यादा प्रबल थे, तो उस लालच को रोबर्ट क्लाइव ने बराबर भांप लिया. तो रोबर्ट क्लाइव ने मीर जाफर को चिट्ठी लिखी है. वो चिट्ठी दस्तावेजो में मौजूद है और उसकी फोटोकोपी मेरे पास है. उसने चिट्ठी में दो ही बातें लिखी है, देखो मीर जाफर अगर तुम अंग्रेजो के साथ दोस्ती करोगे, और ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ समझौता करोगे, तो हम तुमको युद्ध जीतने के बाद बंगाल का नवाब बनाएँगे. और दूसरी बात कि जब आप बंगाल के नवाब हो जाओगे तो सारी की सारी सम्पत्ति आपकी हो जाएगी. इस सम्पत्ति में से ५ टका हमको दे देना, बाकि तुम जितना लूटना चाहो लुट लो. मीर जाफर चूँकि रात दिन ये ही सपना देखता था कि किसी तरह कुर्सी मिल जाए, और किसी तरह पैसा मिल जाए, तुरंत उसने वापस रोबर्ट क्लाइव को चिट्ठी लिखी और उसने कहा कि मुझे आपकी दोनों बातें मंजूर है. बताईए करना क्या है ? तो आखरी चिट्ठी लिखी है रोबर्ट क्लाइव ने मीर जाफर को कि आपको सिर्फ इतना करना है कि युद्ध जिस दिन शुरु होगा, उस दिन आप अपने १८,००० सिपाहियो को कहिए की वो मेरे सामने सरेंडर कर दें बिना लड़े. मीर जाफर ने कहा कि आप अपनी बात पे कायम रहोगे ? मुझे नवाब बनाना है आपको. तो रोबर्ट ने कहा कि बराबर हम अपनी बात पे कायम है, आपको हम बंगाल का नवाब बना देंगे. बस आप एक ही काम करो कि अपनी आर्मी से कहो, क्योकि वो सेनापति था आर्मी का, तो आप अपनी आर्मी को आदेश दो कि युद्ध के मैदान में वो मेरे सामने हथियार डाल दे, बिना लड़े, मीर जाफर ने कहा कि ऐसा ही होगा. और युद्ध शुरु हुआ २३ जून १७५७ को. इतिहास की जानकारी के अनुसार २३ जून १७५७ को युद्ध शुरु होने के ४० मिनट के अंदर भारतवर्ष के १८,००० सिपाहियो ने मीर जाफर के कहने पर अंग्रेजो के ३०० सिपाहियो के सामने सरेंडर कर दिया.
रोबर्ट क्लाइव ने क्या किया कि अपने ३०० सिपाहियो की मदद से हिंदुस्तान के १८,००० सिपाहियो को बंदी बनाया, और कलकत्ता में एक जगह है उसका नाम है फोर्ट विलियम, आज भी है, कभी आप जाइए, उसको देखीए. उस फोर्ट विलियम में १८,००० सिपाहियो को बंदी बना कर ले गया. १० दिन तक उसने भारतीय सिपाहियो को भूखा रखा और उसके बाद ग्यारहवे दिन सबकी हत्या कराई. और उस हत्या कराने में मीर जाफ़र रोबर्ट क्लाइव के साथ शामिल था, उसके बाद रोबर्ट क्लाइव ने क्या किया, उसने बंगाल के नवाब सिराजुद्दोला की हत्या कराई मुर्शिदाबाद में, क्योकि उस जमाने में बंगाल की राजधानी मुर्शिदाबाद होती थी, कलकत्ता नही. सिराजुद्दोला की हत्या कराने में रोबर्ट क्लाइव और मीर जाफ़र दोनों शामिल थे. और नतीजा क्या हुआ ? बंगाल का नवाब सिराजुद्दोला मारा गया, ईस्ट इंडिया कंपनी को भागने का सपना देखता था इस देश में वो मारा गया, और जो ईस्ट इंडिया कंपनी से दोस्ती करने की बात करता था वो बंगाल का नवाब हो गया, मीर जाफ़र. इस पुरे इतिहास की दुर्घटना को मै एक विशेष नजर से देखता हु. मै कई बार ऐसा सोंचता हु कि क्या मीर जाफ़र को मालूम नहीं था कि ईस्ट इंडिया कंपनी से दोस्ती करेंगे तो इस देश की गुलामी आएगी ? मिर जाफ़र जानता था इस बात को. मीर जाफ़र बराबर जानता था कि मै मेरे कुर्सी के लालच में जो खेल खेल रहा हु उस खेल में इस देश को सैंकड़ो वर्षो की गुलामी आ सकती है. ये वो जनता था. और ये भी जानता था कि अपने स्वार्थ में, अपने लालच में मै जो गद्दारी करने जा रहा हु इस देश के साथ उसके क्या दुष्परिणाम होंगे, वो भी उसको मालूम थे.
मै ऐसा सोंचता हु कि हम गुलामी से आजाद हो जाते, क्योकि १८,००० सिपाही हमारे पास थे और ३०० अंग्रेज सिपाहियो को मारना बिलकुल आसन काम था हमारे लिए. हम १७५७ में ही अंग्रेजो की गुलामी से आजाद हो जाते एक बात और दूसरी बात ये जो २०० वर्षो की गुलामी हमको झेलनी पड़ी १७५७ से १९४७ तक, और उस २०० वर्ष की गुलामी को भागने के लिए ६ लाख लोगों की जो क़ुरबानीयां हमको देनी पड़ी, वो बच गया होता. भगत सिंह, चंद्रशेखर, उधम सिंह, तांत्या टोपे, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, सुभाष चन्द्र बोस, ऐसे ऐसे नौजवानों की कुर्बानिया दी है ये कोई छोटे मोटे लोग नहीं थे. सुभाष चन्द्र बोस तो आईपीएस टोपर थे, उधम सिंह चाहता तो ऐयासी कर सकता था, बड़े बाप का बेटा था. भगत सिंह और चंद्रशेखर की भी यही हैसियत थी. चाहते तो जिन्दगी की, जवानी की रंगरलियां मानते और अपनी नौजवानी को ऐसे फंदे में नहीं फ़साते. ये सारे वो नौजवान थें जिनका खून इस देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण था. ६ लाख ऐसे नौजवानों की कुर्बानियां जो हमने दी, वो नहीं देनी पड़ती. और अंग्रेजो की जो यातनाए सही, जो अपमान हमने बर्दास्त किया, वो नहीं करना पड़ता अगर एक आदमी नहीं होता, मीर जाफ़र. लेकिन चूँकि मीर जाफ़र था, मीर जाफ़र का लालच था, कुर्सी का और पैसे का, उस लालच ने इस देश को २०० वर्ष के लिए गुलाम बना दिया.
और मै आपसे यही कहने आया हु कि १८५७ में तो एक मीर जाफ़र था आज हिंदुस्तान में हज़ारो मीर जाफ़र है. जो देश को वैसे ही गुलाम बनाने में लगे हुए है जैसे मीर जाफ़र ने बनाया था, मीर जाफ़र ने क्या किया था, विदेशो कंपनी को समझौता किया था बुला के, और विदेशो कंपनी से समझौता करने के चक्कर में उसे कुर्सी मिली थी और पैसा मिला था. आज जानते है हिंदुस्तान का जो नेता प्रधानमंत्री बनता है, हिंदुस्तान का जो नेता मुख्यमंत्री बनता है वो सबसे पहला काम जानते है क्या करता है ? प्रेस कॉन्फ्रेंस करता है और कहता है विदेशो कंपनी वालो तुम्हारा स्वागत है, आओ यहाँ पर और बराबर इस बात को याद रखिए ये बात १७५७ में मीर जाफ़र ने कही थी ईस्ट इंडिया कंपनी से कि अंग्रेजो तुम्हारा स्वागत है, उसके बदले में तुम इतना ही करना कि मुझे कुर्सी दे देना और पैसा दे देना. आज के नेता भी वही कह रहे है, विदेशी कंपनी वालों तुम्हारा स्वागत है. और हमको क्या करना, हमको कुछ नहीं, मुख्यमंत्री बनवा देना, प्रधानमंत्री बनवा देना. १०० – २०० करोड़ रूपये की रिश्वत दे देना, बेफोर्स के माध्यम से हो के एनरोंन के माध्यम से हो. हम उसी में खुश हो जाएँगे, सारा देश हम आपके हवाले कर देंगे. ये इस समय चल रहा है. और इतिहास की वही दुर्घटना दोहराइ जा रही है जो १७५७ में हो चुकी है. और मै आपसे मेरे दिल का दर्द रहा रहा हु कि एक ईस्ट इंडिया कंपनी इस देश को २०० – २५० वर्ष इस देश को गुलाम बना सकती है, लुट सकती है तो आज तो इन मीर जफरो ने ४००० विदेशी कम्पनियो को बुलाया है.
आपको मालूम है? इस देश में रोज समझौते होते है विदेशी कम्पनियो से. और दरवाजा खोल कर विदेशी कम्पनियो को ऐसे बुलाया जा रहा है जैसे वही अब इस देश के भाग्य का निर्धारण करेंगे. और इसमें हर एक पार्टी शामिल है, मै किसी पार्टी का नाम नहीं लेना चाहता क्योकि मन्दिर की पवित्रता का मुझे ज्ञान है, ये सब चोर और मीर जाफ़रो की औलाद है. जो पार्टी वाले हों, किसी का नाम लेने की जरूरत नहीं है. सत्ता में जब नहीं रहते है तो विदेशी कम्पनियो का विरोध करते है. और जैसे ही कुर्सी मिल जाती है, सबसे पहला काम विदेशी कम्पनियो को बुला के उनके सामने साष्टांग दंडवत प्रणाम कर के समझौते करते है. और कोई भी एक नेता इस देश का अपवाद नहीं है. हर पार्टी को इस देश में राज चलाने का मौका मिला है. किसी को कम किसी को ज्यादा, और हर पार्टी ने एक ही सबूत दिया है, विदेशी कम्पनियो को ज्यादा से ज्यादा बुलाओ. जानते है क्या होता है, महाराष्ट्र में अभी एक नाटक और तमाशा हो भी चूका है, उस तमाशे को आपने पढ़ा होगा, दो तीन दिन अखबारों में चर्चा का विषय रहा, जानते है क्या है? एडवांटेज महाराष्ट्र, और वो एडवांटेज महाराष्ट्र क्या है? महाराष्ट्र में विदेशी कम्पनियो का खुला स्वागत है, आप लुटने के लिए आइए ये कहने के लिए वो तमाशा आयोजित हुआ. और ऐसे तमाशे हिंदुस्तान के हर प्रदेश में हो रहे है. और जानते है होड़ क्या लगी हुई है, हरेक मुख्यमंत्री दुसरे मुख्यमंत्री के साथ इस कॉम्पीटिशन में लगा हुआ है कि मेरे प्रदेश में ज्यादा विदेशी कम्पनिया है या तुम्हारे प्रदेश में ज्यादा विदेशी कम्पनिया है. इतने बड़े लेवल पे ये नाटक चल रहा है. और इस नाटक के सूत्र देखिये क्या क्या है. अभी तक क्या था, कि विदेशी कम्पनियों को बुलाने के लिए इस देश में कुछ कायदे थे, कुछ कानून थे, उनके चलते वो ज्यादा से ज्यादा ३९% की पूंजी ले के आती थी. सरकार ने फैसला किया लिबरलाइजेशन के नाम पर कि अब विदेशी कम्पनियो को ३९% से ५१% तक पूंजी लगाने की खुली छुट है. और ५१% के बाद ७४% तक विदेशी पूंजी लगाने की छुट है, और अब फैसला हो गया है कि १००% तक पूंजी लगाने की खुली छुट है. माने १००% विदेशी कम्पनियो को बुलाएँगे. वो आ रहे है, पहले आए थे, ध्यान रखिए, बंदूक ले कर, तलवार ले कर लुटने के लिए, अबकी बार लुटने को उनके लिए बंदूक और तलवार की जरूरत नही है. उनको यहाँ अपनी सरकार बनाने की जरूरत नहीं है, जब यहाँ का हर नेता मीर जाफ़र हो गया है तो उनको जरूरत क्या है रोबर्ट क्लाइव को भेजने की.
और बहस पता है क्या चल रही है, अगर आपने, अगर ध्यान से आप पढ़ते हो, तो अखबारों में अभी एक बहुत बड़े नेता का बयान आया है. मै उसका भी नाम नहीं लेना चाहता, एक बड़े नेता जो बहुत जिम्मेदार माने जाते है इस देश के है, फाइनेंस मिनिस्टर है, उनका बयान पता है क्या? उनका ये कहना है कि हरेक पोलिटिकल पार्टी के ऍम. पी. को पार्लियामेंट के अन्दर विदेशी कम्पनियो का एजेंट बनने की खुली छुट मिलनी चाहिए. ये उनका बयान है, और क्यों? क्योकि हमको खानी है, हरेक कंपनी से. तो हिंदुस्तान में दलाली खाने की खुली छुट मिलनी चाहिए, और इस खुली छुट को देने के लिए अगर कोई कानून बनाना पड़े, तो वो कानून हिंदुस्तान की पार्लियामेंट को बना लेना चाहिए. ये बयान एक बहुत बड़ी पार्टी के, बहुत बड़े नेता, जो वित्त मंत्री रह चुके है उनका, ये कहना है कि हिंदुस्तान में जितनी विदेशी कम्पनिया आती है, हर कम्पनियो की दलाली करने की हमको छुट मिलनी चाहिए. माने ये मीर जाफ़र के भी बाप हो गए. और ये वो लोग है, जो एक तरफ कहते है भारतीय संस्कृति, और दूसरी तरफ पार्लियामेंट के अंदर उनका एक ऍम. पी. बोलता है कि हर विदेशी कंपनी से दलाली खाने की हमको छुट मिलनी चाहिए. ऐसे हिंदुस्तान में ५४० ऍम. पी. मौजूद है. और हर ऍम. पी. अगर एजेंट हो गया है, विदेशी कम्पनियो का, और कुछ हो गये है देशी कम्पनियो के, और इन अजेंटो में पता है क्या है, पुरे देश को एक कंपनी बना दिया है. जैसे कंपनी को चलाते है वैसे ही देश चला रहे है. जो मन में आता है वो कानून बना देते है. हिंदुस्तान में विदेशी कम्पनियो ने कहा कि हमको लुट की खुली छुट चाहिए, इसके लिए फेरा कानून ख़त्म करो, सरकार ने तय कर लिया कि फेरा कानून हटा देंगे, विदेशी कम्पनियो ने कहा कि हमको लुट की खुली छुट करने के लिए ऍम.आर.टी.पी. कानून की जरूरत नहीं है, हटाइए, सरकार ने फैसला किया कि ऍम.आर.टी.पी. कानून हटा देंगे. विदेशी कम्पनियो ने कहा कि हमारे ऊपर इनकम टैक्स ज्यादा लगाया जाता है, हमारे उपर इनकम टैक्स कम करना चाहिए, सरकार ने फैसला किया ४० टका वाला इनकम टैक्स १० टका कर दिया. विदेशी कम्पनियो ने कहा कि हमको कैपिटल गेन टैक्स में छुट मिलनी चाहिए, भारत सरकार ने तय किया ४० टका वाले कैपिटल गेन टैक्स को २० टका कर दिया विदेशी कम्पनियो के लिए. और उसके बाजु में दूसरी तरफ, जो स्वदेशी लोग है, जो भारतीय लोग है, उनपर टैक्स बराबर बढाना. विदेशी कम्पनियो पर टैक्स की छुट है, लेकिन भारतीय लोगों पर टैक्स बढ़ाना, अगर आपकी कंपनी है तो आपको कैपिटल गेन टैक्स देना पड़ेगा ४० टका, अगर विदेशी कंपनी है तो उसको कैपिटल गेन टैक्स देना पड़ता है २० टका. अगर आपकी कंपनी है, हिन्दुस्तानी कंपनी है, स्वदेशी कंपनी है तो आपको कॉर्पोरेट टैक्स देना पड़ेगा, और उसके बाद इनकम टैक्स देना पड़ेगा, विदेशी कंपनी है तो उन पर कॉर्पोरेट टैक्स की भी छुट है और इनकम टैक्स की भी छुट है. कुछ क्षेत्र तो ऐसे भी है जिनपर भारत सरकार ये तक फैसला कर लिया है कि अगर विदेशी कंपनी झूठे को ये लिख कर दे दे कि हम १००% एक्सपोर्ट करेंगे तो ५ से १० साल तक उनपर कोई टैक्स नही लगेगा. टैक्स हॉलिडे ये चल रहा है.
और इतना ही नही है, इसके बाद यहाँ तक बात पहुंच गई है, शायद आपको अंदाजा लग गया हो, सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया है कि अगर विदेशी कंपनी वाले कुछ लाख या कुछ करोड़ रूपये की सम्पत्ति इस देश में लाए, और लगाए, तो विदेशी कंपनी के अधिकारियों को भारतवर्ष का नागरिक माना जा सकता है. डुअल सिटीजनशिप, और ये बात हमारे देश के प्रधानमंत्री जब विदेश गए थें वहां कह के आए. यहाँ नहीं कहा पार्लियामेंट में, विदेश गए थें न्यूयोर्क और न्यूयोर्क में विदेशी कम्पनियों के अधिकारीयों ने जब उनको पूछा कि आप डुअल सिटीजनशिप के मामले में क्या कहने वाले है, तो हमारे प्रधानमंत्री ने ताल ठोक के कह दिया कि आप आइये, कुछ करोड़ रूपये की सम्पत्ति ले आइये, तो हम आपको हिंदुस्तान का नागरिक मानने को तैयार है. और अगर विदेशी कंपनी वाले हिंदुस्तान का नागरिक बन जाये, क्योंकि कुछ पूंजी ले कर आए है तो उनकी हैसियत आपकी हैसियत के बराबर हो जाएगी. और अगर विदेशी कंपनी का कोई अधिकारी इस देश का नागरिक हो सकता है तो इस देश के पार्लियामेंट का चुनाव भी लड़ सकता है. क्योकि इस देश में पार्लियामेंट का चुनाव लड़ने के लिए कोई क्वालिफिकेशन नहीं चाहिए, बस एक ही क्वालिफिकेशन कि आप इस देश के नागरिक है या नहीं है. आप चोर है - चुनाव लड़ सकते है, उच्चके है - चुनाव लड़ सकते है, गुंडे है - चुनाव लड़ सकते है, डॉन है - चुनाव लड़ सकते है, माफ़िया किंग है - चुनाव लड़ सकते है, और तो और छोड़ दीजिए अगर आपने ३० मर्डर किये है – तो चुनाव लड़ सकते है, और पार्लियामेंट में बैठ सकते है. और ऐसे एक दो लोग नहीं है, इस बार के आपके देश की लोक सभा में ८० से भी ज्यादा ऐसे ऍम. पी. है जो कि नोटेड हिस्ट्रीशीटर है.
और आपको मै मेरे घर की बात कहता हु, मै आपको दुसरे की बात नहीं कहता. मेरे पिताजी के बड़े भाई, पुलिस के बहुत बड़े ऑफिसर है, उत्तर प्रदेश में, और मै हमेशा उनको, मेरा दिल जलता है, जब मै उनको ये कहता हु उनको लगता है कि राजीव मजाक करता है. मै कहता हु कि ताउजी, मै उनको बड़े पिताजी या ताउजी कहता हु, वो क्या था कि पहले अपनी जेब में वारंट ले कर घूमते थें फूलन देवी को अरेस्ट करने के लिए, क्योकि फूलन देवी नोटोरियस क्रिमिनल है जिसने ३० से ज्यादा मर्डर किये है, तो मेरे बड़े पिताजी, मेरे पिताजी के बड़े भाई, पुलिस के बड़े ऑफिसर है उत्तर प्रदेश में. जेब में वारंट रहता था फूलन देवी को अरेस्ट करने के लिए, और आज उनकी हैसियत जानते है क्या है? वही व्यक्ति फूलन देवी की पुलिस सिक्यूरिटी के लिए काम करता है. ये स्थिति है. और मै उनसे कहता हु कि इस जलालत की नौकरी से अच्छा है कि लात मार कर बहार निकल आओ, माने कल तक जिसको गिरफ्तार करने के लिए वारंट ले कर घूमते थे, आज उसी फूलन देवी की सुरक्षा व्यवस्था में वो लगे रहते है. और फूलनदेवी जैसे ८० सांसद है इस देश में जो लोक सभा में बैठे है, उनके पास कोई क्वालिफिकेशन नहीं है सिवाय इसके कि उन्होंने मर्डर किये है, उन्होंने डकैतिया डाली है, उन्होंने चोरी की है, उन्होंने झूठ बोला है, और जो जितने ज्यादा मर्डर कर सके जो जितनी ज्यादा चोरीयां और डकैतिया कर सके, उतना ही बड़ा नेता है इस देश में. और इस देश की जनता का भी देख लीजिए कि ऐसे ऐसे लोगों को थम्पिंग मेजोरिटी से जीता के पार्लियामेंट में भेजा जाता है. ये हमारे देश के पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी सिस्टम के गाल पर सबसे बड़ा तमाचा है. और आज बम्बई में चुनाव हो रहा है, मै दो – तीन दिन से अख़बार पढ़ रहा हु, ये ख़बरें बराबर मै पढ़ रहा हु कि अंडर वर्ल्ड के लोग अब यहाँ चुनाव में खड़े हो कर पहुँच रहे है, माने आज तक जो कानून का उन्लंघन करते आए है कल को वो बैठेंगे कानून बनाने के लिए, और आप उनके द्वारा शासित होएंगे, माने अज्ञानी व्यक्ति, चोर, उच्चक्का, गुंडा, लुटेरा, लफंगा आपके ऊपर शासन करेगा, मंत्री बनेगा और आप उसको मालाएँ पहनेंगे, इससे बड़ा तमाचा पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी में कोई दूसरा हो नहीं सकता.
तो भारत सरकार ने तो फैसला कर लिया है कि अब तो हिंदुस्तान में विदेशी कंपनी वाले कुछ पूंजी ले कर के आये और इस देश में वो चुनाव लड़ सकते है. पार्लियामेंट में जा सकते है. और चुनाव कैसे लड़ा जाता है कैसे जीता जाता है, ये आप जानते हो मै भी जानता हु. चुनाव को जितने के लिए गुंडा शक्ति चाहिए, और चुनाव को जितने के लिए धन की शक्ति चाहिए, विदेशी कंपनियों के पास दोनों ही चीज़े मौजूद है, वो गुंडा शक्ति भी ला सकते है और वो धन की शक्ति भी इस देश में इकठ्ठी कर सकते है. तो अब तो विदेशी कम्पनियों को यहाँ तक छुट मिली है कि उनके अधिकारी आये, इस देश में कुछ पूंजी निवेश करें, इस देश के नागरिक हो जाएँ, और इस देश के नागरिक हो जाएँ तो चुनाव में खड़े हो सकते है और चुनाव में खड़े हो सकते है तो पार्लियामेंट में पहुँच सकते है. और अगर विदेशी कम्पनियों के अधिकारी हिंदुस्तान में चुनाव लड़कर पार्लियामेंट में पहुंचना शुरु कर देंगे तो हिंदुस्तान १९४७ कि वापिस पुरानी स्थिति में चला जाएगा, जब लार्ड माउन्ट बेटन हिंदुस्तान के पार्लियामेंट में आया था. अब विदेशी लोग इस देश के पार्लियामेंट में बैठेंगे. और ये कोई खाम खयाली की बात नहीं है ऐसा शुरु हो गया है. राज्यसभा में दो मेम्बर ऑफ़ पार्लियामेंट इस समय विदेशी नागरिक की हैसियत से पार्लियामेंट में एंट्री पा चुके है, दो लोग. नॉन रेजिडेंट इण्डियन्स के नाम पर उनको पार्लियामेंट में एंट्री मिली है. और बिहार की असेंबली में तीन ऐसे ऍम. एल. ए. है जो १००% विदेशी नागरिक है, लेकिन उनको बिहार की असेंबली में जगह मिली है. अब विदेशी लोग बाकायदा आपके पार्लियामेंट में बैठेंगे, पहले वो पार्लियामेंट में बैठते थें तो तरीका कुछ और होता था. अब वो पार्लियामेंट में बैठेंगे तो तरीका थोड़ा सा बदल जाएगा मेरे हिसाब से आज की स्थिति में और १९४६ की स्थिति में कोई फर्क नहीं है. इसलिए मैंने आपसे पहले ही कहा था कि मै इस बात को मानने को तैयार नहीं हूँ कि आज़ादी को ५० साल पुरे हो गए है, मै बराबर यही कह रहा हु कि गुलामी के जो ५०० साल शुरु हुए है वो ही कंटिन्यू हो रहे है. आज़ादी आई नहीं है,
और क्यों ? उसके गंभीर कारण है. और उन गंभीर कारणों को मै आपसे शेयर करना चाहता हु, जब इस देश को आज़ादी मिल रही थी, इस देश के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है, और इस देश के साथ बहुत बड़ी गद्दारी हुई. जो बेसिक सवाल हमको उठाने चाहिए थे, मेरे पुरखो ने शायद नहीं उठाए, और क्यों नहीं उठाए, उसके बारे में हमको विशलेषण कर लेना चाहिए, जो लोग इस देश की सत्ता की तरफ लपलपाती जीभ ले कर खड़े हुए थे, वो लोग कौन थे? पंडित जवाहरलाल नेहरु, कौन थें पंडित जवाहरलाल? हिंदुस्तान का सबसे ऐयाश व्यक्ति, जिसको इस देश का पहला प्रधानमंत्री बनने का गौरव मिला, वो मेरे लिए दुर्भाग्य था. और वो आदमी इस हद तक ऐयाश था कि एक औरत दो, और उससे जो चाहे करवा लो, लार्ड माउन्ट बैटन ने अपनी बीबी का इस्तेमाल पंडित नेहरु के लिए किया. और ये बात अब एक ओपन सीक्रेट है. दशीयो किताबे आपको मिल जाएंगी, जिनको आप पढें तो आपको पता चल जाएगा कि पंडित नेहरु किस किस्म का व्यक्ति था. और पंडित नेहरु के बारे में ब्रिटिश पार्लियामेंट में जब डिबेट चलता था तो वो डिबेट क्या होता था उसको समझिये, एक बार एक विलियम बिल्बर्ड फोर्ट नाम का एक ऍम. पी. था उसने पंडित नेहरु के बारे में एक स्टेटमेंट किया अपने पार्लियामेंट में, इंग्लैंड पार्लियामेंट में, उसने कहा कि पंडित नेहरु शरीर से देखने में हिन्दुस्तानी है, लेकिन दिमाग से १०० प्रतिशत खरा अंग्रेज है इसलिए इसके हाँथ में सत्ता दो, बिलकुल सुरक्षित है. और उसने वो भी माना. ऐसे आदमी के हाँथ में सत्ता दी गई और वो सत्ता देने का नाटक चला, और उस आदमी के हाँथ में सत्ता देने के लिए ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर के बहुत सारे अग्रीमेंट हुए, उनमे से दो – तीन अग्रीमेंट महत्वपूर्ण है जो समझने चाहिए, हिंदुस्तान में १९४७ तक अंग्रेजो की १२७ कम्पनिया काम कर रही थी. लार्ड माउन्ट बैटन को चिंता ये थी कि अगर हिन्दुस्तानी आजाद होने के बाद सारी अंग्रेजी कम्पनियों को हिंदुस्तान से भगा देंगे तो ये जो लूट हो रही है, ये जो सम्पत्ति मिल रही है, ये जो पैसा आ रहा है ये बंद हो जाएगा. तो पंडित नेहरु के साथ लार्ड माउन्ट बैटन की चर्चा हुई, और पंडित नेहरु ने कहा कि आप चिंता मत करिए, हम अंग्रेजो की एक कंपनी को भगाएँगे, ईस्ट इंडिया कंपनी को बाकि १२६ कम्पनियों को हिंदुस्तान में रख लेंगे. ईस्ट इंडिया कंपनी को भागना इसलिए जरूरी है क्योकि सारे देश में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ माहौल बना हुआ है. इसलिए सिर्फ ईस्ट इंडिया कंपनी को विदा कर दो, बाकि जो अंग्रेजी कम्पनिया है उनको हम रख लेंगे, और उनमे से एक दो नाम मै आपको बता दू जिनको पंडित नेहरु ने जाने नहीं दिया, ब्रूक बांड इंडिया लिमिटेड, ये अंग्रेजो की कंपनी है, आज की नहीं है. सन १८९० की है. लिप्टन इंडिया लिमिटेड, ये अंग्रेजो की कंपनी है, आज की नहीं है. सन १८९२ की है. आज से १०० साल १५० साल पहले की कंपनी है. और ऐसी १२६ कम्पनियों को पंडित नेहरु ने बाकायदा ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर की अग्रीमेंट कर के अंग्रेजो की कम्पनियों को रखा. तो आज़ादी का मतलब क्या था? ईस्ट इंडिया कंपनी भगा देंगे, और बाकि अंग्रेजी कम्पनिया जो इस देश को लुट रही है उसको नही भगाएँगे ?
और इतना ही नहीं जो दूसरी बात हुई वो इससे भी ज्यादा खरतनाक मै मानता हु. १९४६ में इंग्लैंड की पार्लियामेंट में इंडिया’ज इंडिपेंडेंट एक्ट पारित हुआ आज़ादी का कानून, भारत की आज़ादी का कानून, और मेरे जैसे नौजवान से अगर पूछा जाये तो हिंदुस्तान को ब्रिटेन के पार्लियामेंट से कानून पारित करने के बाद आज़ादी दी गई है. हमने आज़ादी ली नहीं है. क्योकि ये तो मै बहुत बेचारगी की स्थिति मानता हु कि कोई हमको कानून पारित कर के आजाद करे और पार्लियामेंट के नियम होते है, और अगर मान लीजिये आज पार्लियामेंट ने एक कानून पारित किया, और उस कानून के पारित होने के बाद हमको आजाद किया, कल को अगर वो पार्लियामेंट उस कानून को वापस ले ले, तो हमारी आज़ादी का होगा क्या? इसलिए ये सबसे गंभीर सवाल था कि १९४६ में इंग्लैंड का पार्लियामेंट अगर इंडिया’ज इंडिपेंडेंट एक्ट पारित करता है और उस एक्ट को पारित करने के आधार पास इस देश में कुछ लोगों का चुनाव होता है, जिनकी संविधान सभा बनाई जाती है, और उस संविधान सभा के आधार पर कोंस्टीट्युसन का निर्माण होता है, और कोंस्टीट्युसन भी क्या बना है, १९३५ में अंग्रेजो ने गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया रूल पारित किया, इस देश पर शासन करने के लिए, और १९३५ का जो गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया रूल था वो हिंदुस्तान को उन्होंने अगले १००० साल तक गुलाम बनाये रखने के लिए पारित किया था. उस गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया रूल को आज़ादी के बाद हिंदुस्तान के संविधान का आधार बनाया गया. ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है, दुनिया में कोई भी देश जब आजाद होता है, तो पुरानी व्यवस्थाओ को बना कर नहीं रखता है, उठा कर फेंक देता है. फ़्रांस भी अंग्रेजो का गुलाम रहा, और फ़्रांस ने १७९० में जब वहां क्रांति हुई और फ़्रांस की आज़ादी आई तो फ़्रांस ने अंग्रेजो का बनाया हुआ संविधान, फ्रांसीसी लोगों ने अंग्रेजो के बनाये हुए कानून सब उठा कर फेंक दिए, तब फ़्रांस आजाद हुआ. अमेरीका भी गुलाम रहा यूरोप के लोगों का, और जब अमेरीका में आज़ादी आई, अमेरिका अपने सिविल वार से बाहर निकला और अमेरिका जब आजाद हुआ तो अमेरिका की आज़ादी के बाद भी वहां के लोगों ने अंग्रेजो की बनाई हुई जितनी व्यवस्था और कानून थे, सब उठा के फेंक दिए. तो मैंने मेरे देश के पुरखो से ये पूछने का सवाल है मेरा, और ये मेरा हक बनता है कि जिस १९३५ के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया रूल को अंग्रेजो ने इस देश पर शासन करने के लिए बनाया था उसको हिंदुस्तान के लोगों ने फेंका क्यों नहीं उठा के, क्यों उसको हिंदुस्तान के संविधान का आधार बनाया? और जो संविधान अंग्रेजो के बनाये हुए कानून के आधार पर खड़ा हुआ है वो संविधान इस देश का भला कर नहीं सकता, उस बात से में कन्विंस हु. और आप देख लीजिये, १९३५ का गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया रूल मैंने निकलवाया, और १९३५ के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया रूल को एक बाजु में रखा और हिंदुस्तान के संविधान को दुसरे बाजु में रखा, फर्स्ट एक्ट के ९५ जो आर्टिकल है, अनुच्छेद है उनकी भाषा जैसी की तैसी है , कोमा, फुलस्टॉप भी नहीं बदला गया है. माने जो कुछ अंग्रेजो ने तय कर दिया था उसी को आजाद हिंदुस्तान के ऐयास प्रधानमंत्री ने हिंदुस्तान का संविधान मान लिया. ये आजादी कैसी आयी.
और उससे भी ज्यादा तीसरा गंभीर सवाल मै ये उठाता हु कि जिन कानूनो को अंग्रेजो ने हिंदुस्तान को लुटने के लिए बनाया था, वो कानून आज भी क्यों चलते है? १८६० में इंडियन पुलिस एक्ट बनाया, और १८६० का जो इंडियन पुलिस एक्ट बनाया अंग्रेजो ने वो जानते है क्यों बनाया? क्योकि १८५७ में बगावत हो गई थी, सारे देश में विद्रोह हो गया था, अंग्रेजो को डर लगने लगा था कि अगर १८५७ जैसी बगावत अगर फिर से रिपीट हो गई, तो हिंदुस्तान को छोड़ कर जाना पड़ेगा. उस बगावत को दबाने के लिए अंग्रेजो ने पुलिस की स्थापना की. और उस पुलिस को विशेष अधिकार दिए, उनमे से एक महत्वपूर्ण अधिकार था कि पुलिसवाले को डंडा पकड़ा दिया हाँथ में, वो आज भी ले के घूमता है. और वो जो डंडा पकड़ा दिया पुलिसवाले को हाँथ में उसके साथ कुछ अधिकार दे दिए, क्या अधिकार दे दिए कि कहीं भी किसी भी जगह पर ५ से ज्यादा लोग इकट्ठे है तो उसको लाठीचार्ज करने का अधिकार है. बिना चेतावनी दिए लाठीचार्ज करने का अधिकार है. अंग्रेजो ने १८६० में ये इंडियन पुलिस एक्ट बनाया अपनी सरकार को बचाने के लिए, ताकि इस देश में बगावत न हो, इस देश के लोगों की पिटाई करने के लिए क्योकि वो अंग्रेजो के खिलाफ बगावत चाहते थे, वो १८६० का बनाया हुआ इंडियन पुलिस एक्ट आज १९९७ में भी चलता है. इसीलिए मै कहता हु कि आज़ादी आई नहीं है. और उसी साल में अंग्रेजो ने इंडियन सिविल सर्विस एक्ट बनाया ये जो कलक्टर होते है न ये जो जिलाधिकारी होते है. ये इंडियन सिविल सर्विस एक्ट अंग्रेजो ने हिंदुस्तान के गाँव गाँव के लोगों से रेवेन्यू कलेक्शन करने के लिए, गाँव गाँव के लोगों पर अत्याचार कर के लगान वसूलने के लिए, कलेक्टर की पोस्ट बनाई, वो कलेक्टर की पोस्ट आज १९९७ में भी जारी है. १८६० का इंडियन सिविल सर्विस एक्ट आज भी चलता है. १८५८ में उन्होंने इंडियन एजुकेशन एक्ट बनाया और इंडियन एजुकेशन एक्ट बनाने के पीछे लार्ड मैकाले की बहुत स्पष्ट योजना थी, लार्ड मैकाले ये कहा कहता रहता था कि इस देश को अगर हमेशा हमेशा के लिए गुलाम बना कर रखना चाहते हो तो हिंदुस्तान की स्वदेशी शिक्षा पद्धति को ख़त्म करो, उसकी जगह पर अंग्रेजी वाली शिक्षा पद्धति लाओ. तो इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जो दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे वो इस देश की यूनिवर्सिटीज से निकलेंगे, और वो ही लोग शासन करेंगे तो हमारे हित में करेंगे. ये १८५८ में अंगेजी सरकार ने लागु किया ये एक्ट. और उसी एक्ट के लागु होने के बाद कलकत्ता यूनिवर्सिटी बना, बोम्बे यूनिवर्सिटी बना, मद्रास यूनिवर्सिटी बना, वो कानून १८५८ में जो बना था वो आज भी चलता है, और ये तीनो यूनिवर्सिटी उस गुलामी के प्रतिक इस देश में खड़े है. १८९४ में अंग्रेजी सरकार ने लैंड एक्वीजीशन एक्ट बनाया, जमीन को हडपने का कानून, और जमीन को हडपने के काम में हिंदुस्तान में डलहौजी नाम का एक कुख्यात अंग्रेज ऑफिसर था वो मशहूर था, जहाँ जाता था, जिस राज्य में जाता था उसी राज्य की जमीन हडप लेता था, झाँसी की स्टेट उसी ने हड़पी थी, जिसके खिलाफ झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की लड़ाई हुई थी. और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजो के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी अपने स्टेट को बचने के लिए, उस झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को मरवाने के काम जानते है किनलोगो किया था ? ये खंडिया, सिंधिया खानदान, और ये सिंधिया खानदान वही है जिसके सपूत माधवराज सिंधिया आज भी हीरे की अंगूठी ले के हिंदुस्तान के मंत्री बन कर बैठे है, ये वही लोग है जिन्होंने झाँसी की रानी की हत्या करवाई थी अंग्रेजो के साथ साजिश कर के, वो लोग आज भी इस देश को रुल करते है, वो गंदा खून जिसने अंग्रेजो की मदद से इस देश को बर्बाद करने में कसर नही छोड़ी वही खून आज भी इस देश का मंत्री बन कर बैठा है. उनकी अम्मा एक पार्टी में है और वो दूसरी पार्टी में है, और उनका बस चले तो बेटा बेटियो को तीसरी पार्टी में भर्ती कर दें, क्योंकि जिन्दगी भर ऐयासी का जो नशा चढ़ गया है वो उतरता नहीं है. राजे महाराजे अब ये दुसरे किस्म के पैदा हो गए है, पहले पुराने ज़माने के राजे महाराजे और होते थे, अब ये नए महाराजे पैदा हो गए है. तो अंग्रेजो द्वारा बनाये गए वो सारे कानून जो इस देश में चलते है. अंग्रेजो का बनाया हुआ संविधान का आधार, जो इस देश में चलता है, और सबसे बड़ी बात, १९४६ का इंडियाज इंडिपेंडेंस एक्ट जिसके आधार पर हमें आज़ादी मिली, इसीलिए मै कहता हु कि इस देश में आज़ादी आई नहीं, बहुत बड़ा झूठ और बहुत बड़ा फरेब आपके साथ किया.
और एक आखरी बात इस आज़ादी के बारे में और कह दू, जब लार्ड माउन्ट बैटन इस देश को आज़ाद करने की बात कर रहा था, तो इस देश के बहुत सारे ज्योतिषी थे, पुराने दस्तावेज़ मैंने बहुत इकट्ठे किये है और उनको जब मै देख रहा था तो १९४५ से इस देश में बहुत सारे ज्योतिषियो ने भविष्यवाणी करना शुरु किया, और सारे ज्योतिषी इस बात से सहमत थे कि १५ अगस्त १९४७ की रात को आज़ादी न ली जाये, वो दिन अच्छा नहीं है, उनके अपने कुछ कैलकुलेशन्स होंगे, ज्योतिष का शास्त्र है, ज्योतिष का विज्ञान है इस देश में, और बहुत विकसित विज्ञान है, मै मानता हु उसको. और इस देश के उस ज़माने के सारे बड़े ज्योतिष शास्त्री कह रहे थे कि १५ अगस्त १९४७ की रात को आज़ादी मत लीजिए, पंडित नेहरु से मना किया था, सरदार पटेल से मना किया था. लेकिन ये सत्ता के मोह में इतने अंधे थे कि जो कुछ अंग्रेज कह रहे है वो ही मानो, और उस ज़माने में एक फ़्रांसिसी लेखक था उसका नाम था डोमेनिक लापियरे, उसने लार्ड माउंट बैटन से एक इन्टरव्यू लिया. डोमेनिक लापियरे ने कई किताबे लिखी है. उसमे एक किताब है फ्रीडम एट मिडनाइट, और ऐसी ही उसकी एक दूसरी किताब है “द डिविजन ऑफ़ इंडिया इन लार्ड माउंट बैटन” उस इस दूसरी किताब में उसने लार्ड माउंट बैटन से जो इन्टरव्यू लिया है वो छापा है. और वो मैंने जब पढ़ा तो मेरा खून खौल गया. डोमेनिक लापियरे ने सवाल किया लार्ड माउंट बैटन से कि आप हिंदुस्तान को १५ अगस्त १९४७ की रात के १२ बजे आजाद क्यों करना चाहते है? ये काम तो दिन में करने के है, आज़ादी लेने और देने के काम तो दिन में होते है, रात के १२ बजे तो दुनिया में सबसे ज्यादा कुकर्म होते है. आप ये क्यों करना चाहते है? तो लार्ड माउंट बैटन का जवाब जानते है क्या था? लार्ड माउंट बैटन ने जवाब दिया है उस इन्टरव्यू में कि मैंने जानबूझ कर १५ अगस्त १९४७ की रात को १२ बजे इस देश को आजाद करने का फैसला किया है, क्यों, क्योकि मैंने सारे ज्योतिषियो से पता किया है कि १५ अगस्त १९४७ का दिन इस देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्य का दिन है और अगर उस दिन इस देश को आजाद किया जाए तो ये देश एक रह नहीं सकता, ये बंटेगा, खंड खंड बंटेगा. तो इसीलिए मैंने इस देश को १५ अगस्त १९४७ को रात को ही १२ बजे आजाद करने का फैसला किया है क्योकि सारे बड़े ज्योतिषी ये कह रहे है कि ये देश खंड खंड टूटेगा, एक नहीं रहेगा अगर इस दिन इस देश को आज़ादी मिले एक बात, और दूसरी बात इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है उसने कहा कि १५ अगस्त १९४५ अंग्रेजो के लिए विश्व विजय का दिवस है, क्यों? क्योकि १५ अगस्त १९४५ को जापान की आर्मी ने अंग्रेजो के सामने सरेंडर किया था. क्यों किया था? जापान के उपर २ एटम बम गिराए थे. ६ अगस्त और ९ अगस्त को, हिरोशिमा और नागासाकी पर, उसके बाद जापान ने सरेंडर कर दिया था, सेकंड वर्ल्ड वॉर में, और वो सरेंडर जो हुआ था वो इंग्लैंड की आर्मी के सामने हुआ था. तो लार्ड माउंट बैटन ने कहा कि १५ अगस्त १९४७ को जापान के सैनिको ने हमारे सामने सरेंडर किया है, वो हमारा विश्व विजय का दिवस है, इसीलए हम १५ अगस्त १९४७ को ही आजाद करेंगे.
और इस बात को पंडित नेहरु जानते थे, सरदार पटेल भी जानते थे, बहुत लोग जानते थे कि १५ अगस्त १९४७ की रात को १२ बजे आज़ादी लेना इस देश के ज्योतिष शास्त्र के सारे कानूनों के खिलाफ है और बहुत सारे ज्योतिषियों ने ये भविष्यवाणी कर दी थी कि आप आज़ादी लोगे और १ – २ साल के बाद ये देश टूट जाएगा. और वो टुटा, पाकिस्तान अलग हुआ. वही हुआ, और आगे भी उन्होंने यही अभिशाप दिया कि ये देश आगे भी खंड खंड टूट सकता है. और उसकी तयारी चल रही है. कश्मीर अलग हो जाए, पंजाब अलग हो जाए, आसाम अलग हो जाए, नागालैंड अलग हो जाए, त्रिपुरा अलग हो जाए, झारखण्ड अलग हो जाए, ये सारे आन्दोलन इस देश में चल रहे है और सभी आंदोलनों को अमेरिका और यूरोप से भरपूर हथियार मिलते है, पैसा भी मिलता है. aurऔर मै जानता हु ऐसे लोगों को जो इस देश में करोड़ो करोड़ो रूपये का फॉरेन फण्ड आता है, करोड़ो करोड़ो रूपये की ए. के. ४७ राइफल आती है, वाया पाकिस्तान या वाया चीन के बॉर्डर से ये तिब्बत के इलाके में हमारे देश में घुसाई जाती है. और उन्ही हथियारों से लेकर इसी देश के कुछ नौजवान जिन्हें कुछ बरगलाया गया है वो इस देश को खंड खंड बाँटने का आन्दोलन कर रहे है. आपको मालूम है, नागालैंड हिंदुस्तान से अलग होना चाहता है, आप नागालैंड में जाइये वो इस देश का पहला ऐसा प्रदेश है, जिसने घोषित किया है कि हमारी राज्यभाषा अंग्रेजी है. भारत के संविधान में कहीं नहीं है, ये नागालैंड में चलता है. और नागालैंड में मै गया पिछले साल, तो पिछले साल जब मै दीनापुर जा रहा था, कोहिमा से दीनापुर, तो रास्ते में मुझको रोक दिया, और रोकने के बाद पुलिस वाले ने कहा के आपके पास वीजा है? तो मेरे अन्दर से पहले कमकपी सी छुटी, मैंने कहा के वीजा मांग रहे हो? मेरे ही अपने देश के एक गाँव में जाने के लिए वीजा, तो बोला हां, आपको वो सारे परिपत्र चाहिए, नहीं तो हम आपको जाने नहीं देंगे. तो बॉर्डर पे दूसरा आदमी खड़ा था, उसने कहा कि आप हिंदुस्तान से आया है, मैंने कहा आप हिंदुस्तान का नहीं है क्या ? हम हिंदुस्तान का नहीं है, हम हिंदुस्तान से अलग होना मांगता. ये बात नागालैंड में घुसी हुई है, और आप नागालैंड जाइये, आपको अंदाज़ा नहीं लगेगा कि क्रिस्चियन मिशनरीज ने कितने बड़े लेवल पर पैसा बांट बांट कर वहाँ के लोगों का धर्म परिवर्तन करा के, सिर्फ धर्म ही परिवर्तन नहीं कराया, उनको हिंदुस्तान से अलग करना है, वहां तक मानसिकता बनाई है. और कल को आपको ये आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अलग नागालैंड की मांग करने वाले कुछ लोग वहां खड़े हो जाएँगे. तो हिंदुस्तान के ऐसे दशियो प्रदेश है जिनको अलग अलग हिंदुस्तान से बाँटना है, और इसकी पूरी प्लानिंग अमेरिका में सी. आई ए. के लोग बैठ कर बनाते है. क्योकि बिल क्लिंटन इस बात को कह चुके है, उनके पहले रोनाल्ड रीगन भी कह चुके थे कि हिंदुस्तान और चीन हमारी हिट लिस्ट में नम्बर १ है. सोवियत संघ को तो हमने तोड़ दिया, जैसे तोडना था. अब तोड़ने के लिए दो ही देश हमारे सामने है, या तो चीन है या भारतवर्ष. तो भारतवर्ष को तोडना है उसके तरीके वो जानते है, चीन के कैसे तोडना है इसको तरीके वो इस्तेमाल करने के कोशिश कर रहे है. ये अभिशाप आज का नही है, ये १९४७ का है, इसलिए मै कहता हु आज़ादी झूठी है. इस आज़ादी का कोई मतलब नहीं है.
और, ये एक और आखरी बात, इस देश के सबसे बड़े नेता महात्मा गाँधी ने कहा, कि ये जो ब्रिटिश पार्लियामेंट्री सिस्टम है ये बाँझ है वेश्या है, वो आदमी अहिंसा की बात कहने वाला, कटु शब्द भी उनके मुह से न निकले ऐसा व्यक्ति था, गाली तो कभी उसके मुह से निकलती नहीं थी, उस आदमी ने पार्लियामेंट्री सिस्टम को बाँझ और वैश्या कहा. और इसी लिए उस आदमी ने कहा था कि कांग्रेस को ख़त्म कर दो. तो कांग्रेस तो ख़त्म नहीं हुई लेकिन इस गाँधी को ख़त्म कर दिया इन कांग्रेस ने. क्योकि वो उनके रास्ते में आड़े आने लगा था, और वो ये कहता था कि ये कांग्रेसी ऐसे ही इस देश को लूटेंगे, जैसा ब्रिटिसर्स इस देश को लुटते रहे. क्योकि पार्लियामेंट्री डेमोक्रेटिक सिस्टम इस देश के लिए है नहीं. और अंग्रेजो ने जबरदस्ती इस देश पर लादा है वो सिस्टम. आज हम देख रहे है कि वो लुट कितनी बढ़ गई है, आपको याद है ये कांग्रेसी सरकारों ने पार्लियामेंट जाने के बाद सबसे पहले प्रिवी पर्क की बात की थी, इस देश में जो राजे रजवाड़े हुआ करते थे, उन राजे रजवाड़ों के लिए सरकार की तरफ से कुछ पैसा दिया जाता था, हर महीने, किसी को ६ महीने में किसी को साल भर में. तो ये सारे के सारे ऍम. पी. उस ज़माने के, कांग्रेस के ऍम. पी. हल्ला करते थें पार्लियामेंट में कि राजे रजवाड़ो के तो शासन ख़त्म हो गए, तो फिर ये प्रिवी पर्क क्यों मिलता है इनको, तो एक झटके में ही उन सब ने प्रिवी पर्क ख़त्म कर दिए. आज वही ऍम. पी. क्या कहते है? हमारी तनख्वाह बढाओ, हमारा टी. ए. बढाओ, हमारा डी. ए, बढाओ, हमारा एच. आर. ए. बढाओ, हमारे अलाउंसेज बढाओ, और पेट नहीं भरता, इतना खाते है, आपको अंदाजा नहीं है. एक एक ऍम. पी. की तनख्वाह में इस देश में प्रति व्यक्ति ढाई लाख (२,५००००) रुपये खर्च होता है. आपकी जेब से मेरी जेब से. और एक एक व्यक्ति से जो ढाई लाख खर्च हो रहा है, इस देश के एक एक राजे रजवाड़े को पालने के लिए, आप शायद गालियाँ देते होंगे उस ज़माने के राजे और रजवाड़ो को, यहाँ आज के ज़माने के राजे रजवाड़े बैठे है. जिनके बाप जो है ऍम. पी. थे, उनका बेटा भी ऍम. पी. है. और नाती भी ऍम. पी. बने इसकी कोशिस करते है. चाहे उसमे दम हो या न हो. माने राजे रजवाड़ो के खानदान में ऐसा चलता था कि उसका बाप राजा है तो उसका बेटा भी राजा. अब क्या हो गया है कि बाप ऍम. पी. है तो उसका बेटा भी ऍम. पी. बनेगा. चाहे बेटे में कोई गुण हो या न हो, ये कोशिश हर एक बड़ा नेता करता है. अपने बेटा बेटी को जबरदस्ती पार्लियामेंट में घुसाने की कोशिश करते है. तो एक एक ऍम. पी. के उपर ढाई ढाई लाख रुपया खर्च होता है हमारी जेब से, ये आपका टैक्स का पैसा, मेरे टैक्स का पैसा, और उस पर ये तागड़ धिन्ना करते है, मौज मस्ती करते है. और उसके बाद जब विदेश यात्राओ पर जाते है, विदेश प्रवास पर जाते है, और कई कई ऍम. पी. तो ये है कि सरकार के खर्चे पे अपना दिल का ऑपरेशन कराने जाते है. अपनी जेब से पैसा खर्च नहीं करेंगे, सरकार के खजाने से पैसा निकलना चाहिए. और वो पैसा उनके ऊपर खर्च होता है. और कैसे कैसे बहाने बनाकर ऍम. पी. को ले जाने के लिए, अभी एक डेलिगेशन गया, मेम्बर ऑफ़ पार्लियामेंट का, सैकड़ो करोड़ो रूपये खून पसीने की कमाई का बर्बाद कर दिया. क्या करने गये थे? दुसरे देश के पार्लियामेंट का अध्ययन करने गये थे. क्या अध्ययन कर के आये? कुछ अध्ययन वध्यन नहीं कर के आये, घर के लिए कुछ खरीदारी कर आये. बीबी के लिए साड़िया ले आये, लिपस्टिक ले आये, नेल पोलिस ले आये, पाउडर ले आये, और बाते करते है की जा रहे है वहां पर. ये पार्लियामेंट्री डेमोक्रेरिक सिस्टम हमारे लिए है नहीं. और उसी पार्लियामेंट्री डेमोक्रेरिक सिस्टम, और इसमें ऍम. पी. के साथ हिंदुस्तान की सभी असेंबली के ऍम. एल. एज. की तनख्वाह अगर आप जोड़ दें तो ये ढाई लाख रुपया जानते है कितना बैठता है? साढ़े पांच लाख रूपये, और ये साढ़े पांच लाख रूपये में अगर हिंदुस्तान की पार्लियामेंट की चलने वाली एक एक मिनट की कार्यवाही को जोड़ दें तो ये रुपया १०,००००० के आस पास बैठता है. प्रति व्यक्ति १०,००००० लाख रुपया खर्च होता है इस देश की बाँझ और वैश्या पार्लियामेंट को चलने के लिए. ये है इस देश का पार्लियामेंट्री डेमोक्रेरिक सिस्टम. और वहां बैठ के होता क्या है? कुछ नहीं होता है सिवाय एक काम के, जब मन करे वाक आउट करो, जबमन में आया हल्ला मचा दो, और आप अगर देखो, अब तो जीरो ऑवर की कार्यवाही का एक घंटे प्रसारण होता है. आपको लगता है कि ये पार्लियामेंट हिंदुस्तान के किसी मोंटेसरी स्कूल के बच्चो की क्लास से ज्यादा बेहतर है? जहाँ बच्चे आपस में लड़ते है, एक दुसरे को तू तू मै मै करते है, एक दुसरे को गलियाँ देते है, उससे ज्यादा बेहतर आपको लगता है कि पार्लियामेंट का स्टेटस है? जिस तरह से झगड़े होते है, जिस तरह से तू तू मै मै होती है और जिस तरह से एक दुसरे की धोती उतरने का काम करते है पार्लियामेंट में, आप सोंच सकते है, ये इस देश के ऍम. पी. है, और आप वहां की बात को तो छोड़ दीजिए, मेरे उत्तर प्रदेश में तो एक दिन ये हो गया कि माइक उठा उठा के पटक पटक के दूसरे को सर पे मारा, इनलोगों ने ये किया, पेपर वेट उठा उठा के मारा, पटक पटक के, सर फट गए लोगों के. ये मेरे यहाँ हुआ उत्तर प्रदेश में, और बिहार की असेंबली में तो रोज यही दृश्य रहता है. कब पेपर वेट उठा के दूसरा जो है दुसरे के खोपडे पे मार देगा पता नहीं.
माने हम जो है लाखो रुपया, १० लाख रुपया खर्च करते है एक एक ऍम. पीज पर, और इस पार्लियामेंट की एक एक मिनट की प्रोसीडिंग्स पर वो पार्लियामेंट हमको देता क्या है? वो पार्लियामेंट सिवाय एक काम करने के कुछ नहीं कर रहा है, देश बेंचो, देश बेंचो, और देश बेंचो. इंडिया इस ओन सेल. हिंदुस्तान की आज़ादी के पचासवे सालगिरह पर हमने हिंदुस्तान को बेंचने के लिए खोल दिया. ऐसे इस देश की स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है, और ये समझौते पता है कैसे होते है? आपने कभी कभी देखा होगा टेलीविजन पर हमारे प्रधानमंत्री दुसरे देश के प्रधानमंत्री से मुस्कुराते हुए हाँथ मिलते है, वो एक फाइल उनके हाँथ में पकड़ा देता है, वो दूसरी फाइल उनके हाँथ में पकड़ा देता है. देश बिकने का समझौता हो जाता है. फाइल के अंदर क्या लिखा हुआ है वो कभी खोल कर आपको दिखाया नहीं जाता है. और बराबर मुस्कुराते हुए ये काम होता है, माने देश बेचेंगे तो मुस्कुराते हुए सारे काम होते है. ये सारा चलता है, और इस देश में हमलोग जो है, बेवकूफ़ो की तरह से इस देश के पार्लियामेंटरियंस के उपर लाखो रुपया खर्च करते है, और इसीलए मैंने कहा कि इस देश में कोई आज़ादी आई नहीं, अंग्रेजो ने ये पार्लियामेंट अपने स्वार्थ के लिए बनाया था, वोही पार्लियामेंट इस देश में चलता है, अंग्रेजो ने अपने स्वार्थ के लिए जो कानून बनाये थे, वो कानून चलते है. अंग्रेजो ने अपने स्वार्थ के लिए संविधान दे दिया, वो संविधान चलता है. और अंग्रेजो ने अपने स्वार्थ के लिए जो अर्थव्यवस्था बनाई वही अर्थव्यवस्था चलती है और हमसब को जानते है क्या कहा जाता है? देश का विकास हो रहा है. इतना बड़ा भ्रम कभी हुआ नहीं इस देश को, विकास हो रहा है, इस विकास के पैमाने क्या है? जरा देखिए.
विकास का माने क्या? १९४७ में जब आजाद हुए, तब इस देश के उपर विदेश का एक नए पैसे का कर्ज नहीं था. और अब कितना विकास हो गया है, अब विकास हो गया है कि हिंदुस्तान का प्रत्येक बच्चा ८५०० रूपये का कर्जदार हो गया है. ये विकास हो गया है. पहले एक नए पैसे का कर्जा नहीं था. २०० साल अंग्रेजो ने लुटा, तो भी हमरे उपर एक नए पैसे का कर्जा नहीं था. और अब ५० साल की आज़ादी के बाद इस देश के बच्चे बच्चे को हमने कर्जदार बना दिया. ये विकाश हो गया. विकास की दूसरी परिभाषा मै आपको देता हु, कितना विकाश हुआ, हिंदुस्तान जब १९४७ – ४८ में आजाद हुआ तो सारी दुनिया में जितना एक्सपोर्ट होता था, जितना माल बिकता था, जितना ट्रेड चलता था, उस ट्रेड में हिंदुस्तान का हिस्सा २ फीसदी था, २ टका था, और आज १९९७ में सारी दुनिया के ट्रेड में हिंदुस्तान का हिस्सा घट कर ०.४ टका रह गया है, इतना विकास हो गया है. विकास कितना हुआ है? १९४७ – १९४८ में इस देश का विदेशी व्यापार का घाटा, माने आयात निर्यात का घाटा, आयात ज्यादा होता है, निर्यात कम होता है, उसकी वजह से घाटा आता है व्यापार में, तो १९४७ – ४८ में रिजर्व बैंक के आंकड़ो के अनुसार आयात निर्यात का घाटा २ करोड़ रूपये था. आज १९९७ – ९८ में आयात निर्यात का घाटा १५,००० करोड़ हो गया है ये विकास है देश का. और मै विकास की परिभाषा दू आपको, १९४७ – ४८ में चार आने में सेर का गेहूं मिलता था, आज १८ रूपये किलो का गेहूं हो गया है, ये विकास हो गया है. १९४७ – ४८ में रिजर्व बैंक के आंकड़ो के अनुसार ६ आने में १ सेर दूध मिलता था गाय का, शुद्ध, और अब २० रूपये किलो का पाउडर दूध पीजिये और कहिये आपका विकास हो गया है. १९४७ – ४८ में इस देश में ३ पैसे की १ सेर भाजी मिलती थी, सब्जी मिलती थी, आज २० रूपये की १ पाव भाजी मिल जाये तो अपने को आप भाग्यशाली समझिये, ये विकास हो गया है. १९४७ – ४८ में आपके पुरखो ने, जो दादा – दादी यहाँ बैठे है, बुजुर्ग, उनसे मै शायद ये जानना चाहूँगा कि हाफुस आम आपको खाने को ही नहीं, बाँटने को मिलता होगा, और अब १९९७ में आके आम तो गया बहुत दूर, मेंगो फ्रूटी मिलती है १६० रूपये किलो की, हम कहते है कि विकास हो गया है देश का. इस देश में इफरात मात्रा में पानी था, और इफरात मात्रा में इस देश की नदियाँ भरी रहती थी. आज इस देश में जमीन खोदिए तो ५०० फीट और ६०० फीट तक तो पानी नहीं मिलता, हम कहते है कि विकास हो गया. और अब धीरे धीरे हालात क्या हो गई है कि पहले दरिया देखते थे, महासागर देखते थे, तालाब देखते थे, पानी की अथाह जलराशि थी, आज कहीं कहीं फुव्वारा चलता है, थोड़ा थोड़ा पानी टपकता है, हम कहते है कि विकास हो गया है. १२ रूपये की पानी की बोतल मिलती है पीने के लिए, भारतीय संस्कृति में पानी कभी बेंचने की चीज नहीं रहा, दूध और पानी इस देश में कभी बेंचे नहीं जाते थे, जमीन भी कभी बेंची नहीं जाती, उस देश में दूध बिकता है, वो तो छोड़ दीजिये, पानी बिकता है १२ रूपये बोतल का और हम बोतल लगा कर गटागट पीते है, और कहते है विकास हो गया है. और हवा भी बिकेगी अब, क्योंकि आक्सीजन के सिलेंडर, आक्सीजन के मास्क अब बम्बई में अब आयेंगे, जिस तरह से प्रदुषण बढ़ रहा है, जहाँ स्थिति जापान जैसी होने जा रही है, कि जगह जगह पर भारत सरकार को टेलीफोन बूथ की तरह से आक्सिजन बूथ बनाने पड़ेंगे, आप १० मिनट चलेंगे, फिर बूथ में घुसेंगे, आक्सीजन लेंगे, फिर १० मिनट चलेंगे, फिर बूथ में घुसेंगे, फिर आक्सीजन लेंगे, तब जा के आप जो है अपने घर पहुंचेंगे. ऐसे आपका विकास हुआ. माने ये अजीबो गरीब परिभाषा है इस देश में विकास, और विकास का मापदंड क्या है? यही मेरे समझ में नहीं आता, इस देश के विकास में जानते है क्या होता है? पानी इस देश में पेट्रोल से ज्यादा महंगा बिकता है. और हम कहते है इस देश में विकास, और इसका हिसाब लगा लीजिये. पेप्सीकोला और कोकाकोला, ८ रूपये की बोतल बिकती है, ३०० मिलीलीटर पानी है, उस पानी में कुछ नहीं है कार्बन डाइऑक्साइड मिलाया हुआ है, दुनिया का सारा का सारा विज्ञान हमको ये सिखाता है कि कार्बन डाइऑक्साइड शरीर से बाहर निकलना चाहिए, हम पानी में मिलाया हुआ कार्बन डाइऑक्साइड गटागट पीते है, और कहते है कि साहब हमारी तो तरक्की हो गई, हमारा विकास हो गया क्योकि कार्बन डाइऑक्साइड पी रहे है, विज्ञान कहता है कि कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालो, पेप्सी के साथ कार्बन डाइऑक्साइड गटागट पीते है, और पैसा भी देते है, ८ रूपये का ३०० मिलीलीटर, माने २७ या २८ रूपये का १००० मिलीलीटर, १००० मिलीलीटर माने १ किलो, १ किलो पानी है २८ रूपये का, और १ किलो पेट्रोल है २५ रूपये का ये विकास है इस देश का. बाजार में जाइये ५ रूपये – ६ रूपये लीटर का दूध खरीदती है, और इन दोनों कम्पनियों के १४ कारखाने है पुरे देश में, एक कारखाने में एक दिन में ३०,००० लीटर दूध बर्बाद करते है ये दोनों कम्पनिया, और करोड़ो लीटर दूध बर्बाद करती है ये दोनों कम्पनियां, जिस दूध को ५ – ६ रूपये लीटर में खरीदती है गाँव के किसान से उसी दूध का चोकोलेट बनाती है तो बिकता है १८० रूपये किलो. चोकलेट कैडबरीज माने १८० रूपये किलो तो बादाम की बर्फी नहीं मिलती, बादाम की बर्फी से महंगी चोकलेट बिकती है इसमें जहर मिलाया हुआ है, निकेल और क्रोमियम का, माने जहर जो है बादाम से महंगा बिकता है और हम कहते है विकास हो गया है.
ये अजीब परिभाषाये है हमारे देश में. और दोस्तों सच मायने में कोई विकास नहीं हुआ है, विनाश हुआ है इस देश में, और ये विनाश जानते है कैसा हुआ है? आप एक बाजू में देखते हो, राजीव भाई को पूछोगे कि राजीव भाई येलो कार दोड़ती है, मारुती दौड़ती है, ५ स्टार होटल बन गए, इतने बड़े बड़े फ्लाई ओवर बन गए, इतनी चमक दमक हो गई है बम्बई में, केन्टकी फ्राइड चिकेन आया, मेक डोवेल आ गया, तो क्या ये सब बेवकूफी है? और मै आपको यही कहने आया हु कि ये जो कुछ आप जो देखते है ये सब उधार का विकास है. कर्जा लिया है और उसपर से ये है. और ये कर्जा आपको चुकाना पड़ेगा, और कर्जा चुकाने की औकात अब भारत सरकार की ख़त्म हो गई है. जानते है क्या होता है? हर साल भारत सरकार पिछला कर्ज चुकाने के लिए नया कर्ज लेती है. इस साल क्या स्थिति है ६०,००० करोड़ रूपये का ब्याज चुकाना है, कर्ज चुकाने की बात छोड़ दीजिए. और इस देश के बजट की हालत देखिये कि विकास का माने क्या भारत सरकार के नेशनल बजट में जो एक साल का करीब २ लाख करोड़ के आस पास था, २ लाख करोड़ के नेशनल बजट में ६०,००० करोड़ रुपया सिर्फ विदेशी कर्जे का ब्याज चुकाने में खर्च होता है. बजट का एक तिहाई, ६०,००० करोड़ विदेशी कर्जे का ब्याज चुकाने में खर्च होता है, और ५४,००० करोड़ देश का प्लेन्ड एक्सपेंडीचर है माने इस देश में सच में विकास करने के लिए ५४,००० करोड़ रूपया खर्च होता है और उस विकास को करने के लिए जो कर्ज लिया है उसका ब्याज चुकाने में ६०,०००. और तालियाँ बजा बजा के कहते है कि देश का विकास हो रहा है. और क्या होता है जिस दिन भारत सरकार को वर्ल्ड बैंक और आई. ऍम. ऍफ़, से कर्ज मिल जाता उस दिन हिंदुस्तान के सारे बड़े अखबारों में, माफ़ करेंगे दो अख़बार वाले यहाँ बैठे है, सारे बड़े अखबारों में मोटी मोटी हैडलाइन कि एड इंडिया कोन्फोरटियम से ५.६ बिलियन डोलर मिलने जा रहा है, १० हंड्रेड बिलियन डोलर मिलने जा रहा है, १५ बिलियन डोलर मिलने जा रहा है. माने ये नेशनल न्यूज़ बनती है. जो शर्म की बात है हमारे लिए वो नेशनल न्यूज़ बनती है. मीडिया में बैठे हुए लोगों के दिमाग का विकास भी जैसे हो गया. कि जिसको सम्पादकीय आने चाहिए थे शर्म के कि इस देश पर विदेशी कर्ज बढ़ता जा रहा है उन अख़बारो में इतनी बड़ी बड़ी हैडलाइन की खबर छपती है और अखबारों में ख़बरें छपती है वो तो एक बाजु में पार्लियामेंट में ताली बजा बजा के स्वागत होता है कि आज हमको विदेशी कर्ज मिल गया, स्वागत होता है. और जानते है इस सरकार का चरित्र क्या है? इस सरकार ने बेगर्स एक्ट बनाया है, आपको मालूम है, भिखारियों का कानून. और भिखारियो का कानून क्या है? दिल्ली में, यहाँ महताष्ट्र में, कई प्रदेशो में लागु है. उसमे क्या है अगर कोई भिखारी १० पैसे की भीख मांगे, ५० पैसे की भीख मांगे, १ रूपये की भीख मांगे तो पुलिसवाला बंद कर देगा. बेगर्स एक्ट में. तो माने १० पैसे, ५० पैसे, और १ रूपये की भीख अगर कोई मांगता है तो उसको जेल में बंद कर देते है और ये ५ अरब डोलर की भीख मांग कर लाते है तो ताली बजा बजा कर स्वागत करते है. इनको पकड़ के जेल में बंद नहीं करते. जरा पूछिये, कि ५० पैसे की जो भीख मांग रहा है बेचारा, वो गरीब आदमी है उसको तो पकड़ के तिहाड़ जेल में बंद कर देंगे. तो जो ५ अरब डालर की भीख मांग कर ला रहा है उसको बेस्ट फाइनेंस मिनिस्टर का अवार्ड देते है. ये इस देश की संगती है.
और ये सारा का सारा विदेशी कर्जे के आधार पर ताम झाम जो खड़ा किया है जानते है जिन जिन देशो ने दुनिया में विदेशी कर्ज के आधार पर अपना विकास किया है वो सारे देश दिवालिये जो गये है, बन्क्रप्त हो गए है. और आपको सुनना हो तो मेक्सिको की कहानी सुनिए. सुननी हो तो ब्राज़ील की कहानी सुनिए, सुननी हो तो कोस्टारिका की कहानी सुनिए, कोलंबिया की कहानी सुनिए, इथिओपिया की कहानी सुनिए, सोमालिया की कहानी सुनिए. जानते है इथियोपिया और सोमालिया में क्या हुआ है? उस देश के पास इतनी नेशनल प्रॉपर्टी होते हुए भी वो देश भुखमरी के कगार पर है, क्यों? सारी की सारी नेशनल प्रॉपर्टी इथियोपिया और सोमालिया की अमेरिका की कम्पनियों के कब्जे में चली गई है. क्यों चली गई है, सोमालिया की और इथियोपिया की सरकारों ने १० साल पहले इसी विकास का रास्ता पकड़ा था. विदेशो कर्ज लो और विकास करो. कर्ज लेते लेते १० साल के बाद अब ये हालात हो गई है कि आज अगर इथियोपिया अपनी पूरी राष्ट्रीय सम्पत्ति बेंच दे तो भी विदेशी कर्ज नहीं चूक सकता. ये हालत हो गई है. सोमालिया अगर अपनी पूरी सम्पत्ति बेंच दे तो उनके ऊपर जितना विदेशी कर्ज हो गया है वो चुक नहीं सकता. तो इन देशो ने जो रास्ता पकड़ा था उधार ले कर विकास करने का वोही रास्ता हमने पकड़ा, और जानते है धीरे धीरे हमारी हालत भी वही हो रही है. अगर भारत सरकार की नेट इनकम का हिसाब मै लगाऊ तो जितनी कुल आमदनी है, वो कुल आमदनी का करीब ६० प्रतिशत विदेशी कर्जे का ब्याज चुकाने में खर्च होता है. भारत सरकार की कुल आमदनी १ लाख १० हजार करोड़ की है. और ६० हजार करोड़ रूपये खर्च करती है विदेशी कर्जे का ब्याज चुकाने में. ये चल रहा है इस देश में. और बजट बनता कैसे है, अभी आ रहा है बजट, वो बनता कैसे है उसको समझ लीजये कि बजट का सबसे बड़ा हिस्सा विदेशी कर्जे का ब्याज चुकाने में खर्च हुआ, उसके बाद २० हजार करोड़ रुपया सरकार के कर्मचारियों को तनख्वाह देने में खर्च होता है, और उस २० हजार करोड़ के बाद लगभग ५ से ६ हजार करोड़ रुपया पेंशन देने में खर्च होता है, उसके बाद भारत सरकार का जो रक्षा मंत्रालय का बजट है वो २० – २२ हजार करोड़ रूपये का है, उसमे चला जाता है और उसके बाद जो कुछ बचा है वो नॉन प्लांड एक्सपेंडीचर में चला जाता है. प्लांड एक्सपेंडीचर से कहीं गुना ज्यादा प्लांड एक्सपेंडीचर है माने जहाँ सच में पैसा लगना चाहिए वहां पैसा लगता नहीं है और जहाँ नहीं लगना चाहिए, कम होना चाहिए वहां सबसे ज्यादा पैसा खर्च होता है. और वो बराबर घाटा चलता रहता है तो उस घाटे को पूरा करने के लिए क्या करते है? या तो नोट छापते है और नोट छापने से काम नहीं चलता है तो हिंदुस्तान की सरकार फिर विदेशो से कर्ज ले के आती है. और अबकी बार तो सरकार ने अदभुत फैसला किया है आपको लुटने का. जानते है क्या किया है भारत सरकार के रिजर्व बैंक ने तय कर लिया है कि इस साल १०० रूपये का सिक्का छपेगा, और १०० रूपये का सिक्का आपको २०० रूपये में बेंचा जाएगा. जरा सोंचिये ये आजाद हिंदुस्तान के बनने वाले नियम है. कि १०० रूपये का सिक्का बनेगा वो आपको बेंचा जाएगा २०० रूपये में, माने हर आदमी की जेब से १०० रुपया निकला जायेगा. ये सरकारे लुटने का काम कर रही है ये सरकारे. ये तो डकैत है, चोर है, उचक्के है, लुटेरे. इनको सरकार कहना तो सरकार की तौहीन करना है मेरे हिसाब से. और अंग्रेजो ने दोस्तों जितना नहीं लुटा है इस देश को उससे ज्यादा लुट पिछले ५० साल में इस देश में हुई है. इसी देश के कुछ बड़े अर्थशास्त्रियो में, जिनमे से प्रोफेसर एस. के. गोयल और ब्रह्मानंद जैसे लोग है. उनके कुछ रफ एस्टीमेट है, मै एक दिन हिसाब लगा रहा था कि ईस्ट इंडिया कंपनी कितना लुट कर ले जाती थी एक साल में इस देश से. तो भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी का एक साल का नेट प्रोफिट ६० करोड़ के बराबर था, तो ६० करोड़ रूपये ईस्ट इंडिया कंपनी दर वर्ष ले जाती थी लुट कर, अब कितना लुट रहे है ? हिंदुस्तान में इस समय ४००० से ज्यादा विदेशी कम्पनिया है वो सारी कम्पनिया एक साल में लगभग ७० हजार करोड़ रूपये ले जाती है. जब हम गुलाम थे, तो हमारी कम लुट होती थी. अब हम आजाद हो गए है तो इस देश में लुट ज्यादा बढ़ गई है. और कुछ उदहारण से समझ लीजिये कि लुट कैसे होती है, पेप्सीकोला और कोकाकोला कुछ नहीं बेंचता है, पानी बेंचता है. और पानी बेंचकर पिछले साल इनदोनो कम्पनियों ने २४० करोड़ rupyeरूपये लुटा, २४० करोड़ रूपये. एक बाजु में, इस देश में लाखो गाँव में पीने का पानी नहीं है और भारत सरकार कहती है इस बात को पार्लियामेंट में. शर्म आनी चाहिए कि आज़ादी के ५० साल बाद भी लाखो गाँव में पीने का पानी नहीं है. और ये हालत आपको देखनी है तो ज्यादा दूर मत जाइये, गुजरात के कच्छ के इलाके में चले जाइये, मै ३ महीने रहा हूं कच्छ में, जब कारगिल कंपनी के खिलाफ अभियान चलता था तो मै ३ महीने कच्छ में रहा था. चार चार दिन में पांच पांच दिन में एक टेंकर टेंकर आता है एक एक गाँव में, चार चार दिन में पांच पांच दिन में पीने का पानी नहीं मिलता, लेकिन उन गाँवो में मैंने पेप्सीकोला कोकाकोला बिकते देखा था. शुद्ध पीने का पानी नहीं मिलेगा, पेप्सी बिकेगा इस देश में, और पेप्सी बिकेगा तो उसका २४० करोड़ रुपया हिंदुस्तान के खून पसीने की कमाई का वो अमेरिका ले जायेंगे. इस २४० करोड़ रूपये से हिंदुस्तान के २.५ लाख गाँव में पीने का पानी दिया जा सकता है, जितने पैसे से हम पेप्सी और कोकाकोला पी के अमेरिका पहुंचाते है. और बराबर हम भी यही कहते है कि भारत माता की जय, २४० करोड़ गए अमेरिका और ताली पिट के भारत माता की जय, भारत माता जय कहाँ से होने वाली है? और हम भी यही मानते है कि जब तक पेप्सी नहीं पियेंगे कोकाकोला नहीं पियेंगे, हमारा विकास नहीं होगा. पहले घर घर में, गली गली में जाते थे, कोई केरी का रस पिलाता था, कोई शेरडी का रस पिलाता था, कोई निम्बू का रस पिलाता था, अब घुसिए घर में, तो सबसे पहले पूछेंगे, राजीव भाई चाय पियेंगे? तो राजीव भाई कहेंगे कि नहीं जी चाय नहीं पियेंगे, तो कॉफ़ी पियेंगे? नहीं नहीं कॉफ़ी भी नहीं पियेंगे तो ठंडा पियेंगे? पेप्सी या कोकाकोला पियेंगे? माने चाय पिलाओ तो मारो राजीव भाई को, क्योंकि कैफीन है, निकोटिन है दोनों ही जहर है, कॉफ़ी पिलाओ तो भी मारो राजीव भाई को, ऊपर से ठंडा पिला दो तो और भी जल्दी मार डालो राजीव भाई को, आये है राजीव भाई अथिति बन के और पिला रहे है उनको कोकाकोला. माने कार्बन डाईऑक्साइड, दिमाग ऐसा गुलाम हो गया है कि एक मिनट सोंचते नहीं है कि हम कर क्या रहे है. और ये सब विकास के ही नाम पर होता है, और एक एक कंपनी इस देश में आई है, ये जो विदेशी कम्पनिया है न, एक कंपनी है उसका नाम है कोलगेट पामोलिव, अमेरिका की कंपनी है, इस देश में आई, ५०,००० रूपये की पूंजी से उसने इस देश में धंधा चालू किया, आज कोलगेट पामोलिव कंपनी के एक साल के प्रॉफिट १८० करोड़ रुपया है.५०,००० से धंधा शुरु किया उसने. हिंदुस्तान लीवर, हालेंड की कंपनी है, असली नाम यूनिलीवर है, इस देश में आई धंधा करने, २४ लाख रूपये से धंधा शुरु किया, और आज उस कंपनी के प्रॉफिट ४८० करोड़ रूपये के आसपास है. कुछ लाख रूपये ले के आते है और सैकड़ो करोड़ रूपये की सम्पत्ति यहाँ से बटोर के ले जाते है. पूंजी वो नहीं लाते, पूंजी हमारे यहाँ से उनके वहां जाती है.
और ये सारे गरीब देशो की यही हालात है. दुनिया के १२० गरीब देशो से जितनी पूंजी दुनिया के अमीर देशो में जाती है आप सोंच नहीं सकते. लास्ट इयर के आंकड़े है अंकटाइड के यूनाइटेड नेशनस कमिसंस एंड ट्रेड एंड डेवलपमेंट की लास्ट इयर की बुकलेट के आंकड़े है. वो मै कोट कर रहा हु, कि १२० देशो में एक साल में अमीर देशो से लगभग ५ हंड्रेड बिलियन डालर की पूंजी आती है कर्जे के रूप में, फोरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के रूप में, फोरेन ऐड के रूप में और इन्ही १२० देशो से अमीर देशो को जो जाने वाली पूंजी है वो ७४५ अरब डालर है. ७४५ मीलियन डालर चला जाता है ५ हंड्रेड बिलियन वहां से आता है. वहां से आता कम है, जाता ज्यादा है. पूंजी वो नहीं लाते है, पूंजी हम उनको देते है. ये उनका दुष्चक्र बनाया हुआ है. और इसी लुट के दुष्चक्र को कायम बनाने के लिए ये लिबरलाइजेशन है, ग्लोबलाइजेशन है, गेट है, आई. ऍम. ऍफ़. है, वर्ल्ड बैंक है, डब्लू टी ओ है, ये जितने ताम झाम है ये सभी इस लुट के सिलसिले को बरकरार बनाये रखने के लिए है.
और एक आखरी आपसे और कह दू कि एक बाजु में तो ये लुट चल रही है, आर्थिक शोषण चल रहा है, राजनीति की हालत कितनी नपुंसक है वो आप देख रहे है, कि इस देश के पार्लियामेंट के माध्यम से सबकुछ बिक रहा है. अभी तो हीरे की खदान बिकेगी, विदेशी कंपनी को, सोने की खदान बिकेगी विदेशी कंपनी को, कोलसा की खदान बेंचने का फैसला हो गया है विदेशी कंपनीयो को, आयल एंड नेचुरल गैस जितना जमीन के अंदर है वो विदेशी कम्पनियो को बेंचना है वो घोषणा अभी यहाँ प्रधानमंत्री कर के गए है मुंबई में एक हफ्ते पहले, तो जितना जमीन के अंदर सोना है, चांदी है, हिरा है, कोलसा है या आपके जमीन के अंदर आयल और नेचुरल गैस है ये सब विदेशी कम्पनियों को बिकेगा ये तो धड़ल्ले से चल रहा है और इसके अलावा जितने पब्लिक सेक्टर है वो भी बिकेंगे. आज का अख़बार आप उठाइए देखिए इकनोमिक टाइम्स फाइनेंसियल सेक्शन में, भारत सरकार ने एक कमिशन बनाया पब्लिक सेक्टर के डिसइनवेस्टमेंट के लिए, उन्होंने रिकमेन्डेशन करना चालू किया है कि सब पब्लिक सेक्टर बेंचो एक तरफ, और इन पब्लिक सेक्टर में पैसा जानते है किसका है? आपका है मेरा है. हमारे आपके खून पसीने की कमाई का टैक्स का इस देश के पब्लिक सेक्टर में ३ लाख करोड़ रुपया लगाया हुआ है, इनके बाप का नहीं है जो ये बेंच दे. और एक मिनट भी इन्होने पार्लियामेंट से इजाजत नहीं ली, ये कहते है कि हमारे कैबिनेट ने फैसला कर लिया है हम बेचेंगे, तो तुम्हारा कैबिनेट देश बेचने का फैसला कर चूका है तो देश बेचेंगे. और ये देश बेच क्या रहे है, दिमाग में बराबर ध्यान रखिये, मीर जाफ़र ने इस देश को क्यों बेचा था? कुर्सी के लिए, पैसे के लिए, दो ही चीज़े चाहिए हरेक नेता को, या तो कुर्सी चाहिए, या तो पैसा चाहिए. तो एक बाजु में तो देश बिक रहा है. और दुसरे बाजु में उनको लगता है कि इस देश में नौजवान को जब ये बात समझ में आने लगेगी कोई राजीव दीक्षित या कोई अतुल शाह या कोई एक्स. वाई. जेड. कोई घूम जाएगा तो कोई दूसरा विवेकानंद भी पैदा हो सकता है. ये डर लगता है. और जानते है ये डर से वो करते क्या है? उनको बराबर विदेशी कंपनी वालों को विदेशी ताकतों को इस बात का डर है कि हिंदुस्तान की माटी में ऐसी कुछ खासियत है कि कोई भगत सिंह हो जाता है, कोई चंद्रशेखर हो जाता है, कोई उधम सिंह हो जाता है, कोई विवेकानंद हो जाता है, कोई दयानंद हो जाता है, कोई कुछ हो जाता है, ये माटी की खासीयत है, ये माटी कभी वीर विहीन नहीं रही है. हज़ारों साल से इस देश का यही इतिहास रहा है. तो उनको डर रहता है. तो उस डर को उन्होंने ख़त्म करने के लिए जानते है उन्होंने क्या किया है? उनका सीधा सा फार्मूला है, कि हिंदुस्तान का कोई भी नौजवान स्वामी विवेकानंद न होने पाए, हिन्दुस्तान का हर नौजवान माइकल जेक्सन हो जाये उसकी तयारी में लगे है. उनको डर है कि माइकल जेक्सन हो जाएँगे तो इस देश में कोई वांधा नहीं है. वो देश ही बेचने का काम करेंगे, भारतीय संस्कृति बेचने का काम करेंगे, और अगर कोई विवेकानंद खड़ा हो गया तो मल्टीनेशनल्स को मार मार के भगा देगा इस देश से, ये डर है.
तो इसके लिए जानते है उन्होंने क्या किया है? हिंदुस्तान के नौजवानों का चरित्र ख़राब करो ये उनका वन पॉइंट प्रोग्राम है, और इस वन पॉइंट प्रोग्राम के लिए वो ज़ी टी. वी. ले कर आये है, सी. एन. एन. ले कर आये है, स्टार टी. वी. ले कर आये है, प्राइम स्टार आया है, स्टार २१ आया है, वगेरह वगेरह १४ – १५ टेलीवीजन चैनल लगभग इस देश में है, और रात दिन उन सारे टेलीविजन चैनेलो पर जो दिखाया जाता है वो मनोरंजन नहीं है, वो मेरे और आपके चरित्र को बर्बाद कर देने का साधन है. मै अक्सर लोगों से पूछता हु कि भाई अब तक आपके घर में एंटीना लगा हुआ था, ये डिश एंटीना क्यों लगवा लिया? तो कहते है राजीव भाई मनोरंजन करना है. अभी डिश एंटीना नहीं होगा तो मनोरंजन कैसे करेंगे? तो जिनके घरो में डिश एंटीना है उन्होंने डिश एंटीना लगवा लिया और जिनके घरो में डिश एंटीना नहीं है उन्होंने केबल कनेक्शन ले लिया. और इस देश में धन्य वो लोग है जो अपने घर में आग लगा रहे है और अपने पड़ोसियों के घर में भी आग लगा रहे है डिश लगा लगा के, केबल लगा लगा के. घर घर में केबल कनेक्शन, घर घर में डिश एंटीना, और जिसके भी घर में घुसो, पूछो के भाई क्या करते हो तो कहते है कि राजीव भाई दिन भर काम करते है, थक जाते है तो कुछ तो मनोरंजन चाहिए, तो ठीक है मनोरंजन करो, तो क्या करते है मनोरंजन, छोटे – छोटे बच्चे बैठे है, उनके साथ उनके मम्मी पापा बैठे है, उनके साथ उनके दादा दादी बैठे है, उनके साथ उनके नाना नानी बैठे है, तीन तीन पीढ़िया एक साथ बैठी है और टेलीवीजन पर क्या चल रहा है? ए.टी.एन., ए.टी.एन. पर क्या आता है? तो चोली के पीछे क्या है, तू चीज बड़ी है मस्त मस्त, और आप मुझे अपने दिल पे हाँथ रख के कहो, चोली वाला गाना सुन के आपका मनोरंजन होता है या कुछ और होता है? तू चीज बड़ी है मस्त मस्त वाला गाना सुन के आपका मनोरंजन होता है या कुछ और होता है? और ये बात मै खासकर नौजवानों से और बच्चो से कह रहा हु कि तुम जरा अपने दिल पे हाँथ रख के मुझे बताओ कि अगर मान लो मेरे सामने मेरी माँ खड़ी है, तुम्हारे सामने तुम्हारी माँ खड़ी है और टेलीविजन पे गीत आता है तेरी चोली के पीछे क्या है. अपनी माँ से पूछने की हिम्मत है कि तेरी चोली के पीछे क्या है? मान लो हमारे सामने हमारी बहन खड़ी है जो हर साल मेरी कलाई पे राखी बांधती है और मेरे लिए दुआए करती है भगवान से वो बहन मेरे खड़ी है और ये गीत आ रहा हो तू चीज बड़ी है मस्त मस्त, अपनी बहन से ये पूछने की हिम्मत है? टू चीज बड़ी है मस्त मस्त. और जो गीत हम हमारी माँ के सामने नहीं गा सकते, जो गीत हम हमारी बहन के सामने नहीं गा सकते, वो गीत इस देश के बच्चो को क्यों दिखाए जाते है? जो गीत लिखने वाले है उनके बारे में मै मान सकता हु कि उन्होंने आत्मा बेचा है जमीर बेचा है सबकुछ बेचा है. जो ऐसा गीत लिखते है, भगवान उनकी आत्मा को जितनी जल्दी शांति दे उतना अच्छा है. लेकिन उससे ज्यादा जो मुझे दूसरा गुस्सा आता है कि उस घर में जहाँ अभी भी भारतीय संस्कृति की बाते कही जाती है, जिस देश में मुझे बचपन से ये सिखाया गया ytr”यत्र: नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” अभी उसी देश में मुझे कोई कहता है कि तू चीज बड़ी है मस्त मस्त, अभी उसी देश में कोई कहता है मुझे कि चोली के पीछे क्या है. और इस देश में संस्कृति का कबाड़ा हो गया है. जब मै इस देश के नौजवानों को ये गाते हुए सुनता हु, मेरा दिल तो ये कहता है कि इस देश के नौजवानों को गाना चाहिए, मेरा रंग दे बसंती चोला, लेकिन गा रहे है चोली के पीछे क्या है. ये संस्कृति का नाश हो रहा है. मनोरंजन नहीं है, ये घर घर में आग लग रही है, सुलग रही है अभी भी. लगी नहीं है अभी, जिस दिन घर घर में आग लगना शुरु हो जाएगी, आपसे देखा नहीं जाएगा कि आपके बच्चे क्या कर रहे है. और ये जो टेलीविजन आया है, ये दो ही चीज़े दिखता है, या तो सेक्स की वल्गरिटी या दिखता है वोइलेंस मारामारी, और इतनी वोइलेंस, इतनी वल्गरिटी, इतनी मारामारी दिखाते है. आपको मालूम है, आपके ये छोटे छोटे बच्चे, छोटे छोटे नौनिहाल जिनके बारे में आप कल्पना करते हो कि ये भविष्य में अच्छे डॉक्टर बनेंगे, ये अच्छे इंजिनियर बनेंगे, ये अच्छे साइंटिस्ट बनेंगे, क्या देखते है ये, और एक एक घर में जिनके यहाँ केबल कनेक्शन आ गया है, डिश एन्टेना आ गया है, मैंने मेरे शहर में सर्वे कराया था इलाहाबाद में, सामान्यत छोटा बच्चा एक दिन में ५ घंटे टेलीवीजन देखता है, सामान्यत: और होता क्या है कि स्कूल से आया, बस्ता फेंका, टी.वी. चालू हो गया, अब उसकी अम्मा कहेगी के बेटा खाना खाओ, तो टी.वी. के सामने, अम्मा कहेगी बेटा होमवर्क करो तो टी.वी. के सामने, अम्मा कहेगी के बेटा जाओ खेलने के लिए तो नहीं जाएंगे क्योकि चित्रहार आ रहा है, पडोसी के बेटा आपके घर में नहीं आएगा, आपका बेटा पड़ोसी के घर में नहीं जाएगा, दोनों बैठे हुए है टेलीविजन देख रहे है, बच्चे खेलना कूदना भूल गये है, आपस की उनकी जो धींगा मस्ती होती थी, वो भी भूल गये है, थोड़ी बहोबात करते थे वो भी भूल गये, टी.वी. से चिपक कर बैठे है. और ये टी.वी. का आकर्षण कितना जबरदस्त होता है बच्चो को छोड़ दीजिए, बड़ो की बात कर रहा हु के एक बार अगर चालू हो जाए, और आपको दिख रहा है कि ये दृश्य हमको बराबर अच्छा नहीं लगता है आपकी हिंम्मत नहीं होती के उठ कर उसको बंद कर दें, इतने गुलाम हो जाते है हम. ये टेलीविजन का जो आक्रमण है वो इतना जबर्दस्त होता है कि अच्छे खासे विवेक वाले व्यक्ति, अच्छे खासे तर्कशक्ति रखने वाले व्यक्ति, बराबर देखते है कि जो कुछ देख रहे है वो कुछ ठीक नहीं है लेकिन इतनी हिम्मत नहीं होती है कि उठ कर उसको बंद कर दें. इतने गुलाम हो जाते है, इतना जबर्दस्त आक्रमण होता है. और रात दिन उस पर आपके जो बच्चे देखते है, मैंने कैलकुलेशन्स किये है के एक ३ साल का बच्चा जब टी.वी. देखना शुरु करता है, और एक दिन में उनके घर में अगर केबल कनेक्शन है और १२ – १३ चैनल्स अगर उसके घर में उपलब्ध है, तो प्रतिदिन ५ घंटे के हिसाब से, वो बच्चा २० साल की उमर में जब पहुँचता है, तो अपनी आँखों के सामने ३३,००० हत्याए देखता है. मर्डर केसेस, ३३,०००, २० साल की उमर तक पहुंचते तक. और लगभग ७२,००० टाइम्स वो बच्चा रेप केसेस देखता है या मोलेस्टेसन के केस देखता है. आप सोंचो जरा एक गंभीर बात जो मै आपसे कह रहा हु. कि मंहात्मा गाँधी नाम का एक छोटा सा बच्चा, हरिश्चंद्र का नाटक देखने के बाद सत्यवादी हो गया, तो हरिश्चंद्र नाटक देखने के बाद उस बच्चे इतना असर करता है कि जिन्दगी भर सत्य और अहिंसा की बात करने वाला वो हो गया, तो जो बच्चे ३०,००० बार मर्डर देख रहे है, ७० – ७२ हजार बार रेप केसेस देख रहे है वो क्या बनने वाले है? आप उम्मीद करोगे कि हमारा बच्चा बड़ा साइंटिस्ट बनेगा, इंजिनियर बनेगा, मै आज आपको लिख कर दे सकता हु आपका बच्चा हो सकता है कि गली का डान बने, माफ़िया बने, और यही बालक जो रात दिन टेलीविजन पे वल्गरिटी देखेगा, सी.डी. देखेगा, तो आप देखोगे कि उम्र के एक दौर में पहुंच कर सडक के किनारे खड़ा हो जाएगा, कोई भी बहन जाएगी तो सिटी बजाएगा, या टोंट कसेगा या फिकरा कसेगा, आप जरा पूछिये, अपने अपने दिल से के ये लोग कहाँ से पैदा हो गये है? जो हमारी बहन बेटियों को सडक चलते छेड़ते है, कहाँ से आते है ये लोग? कौन है ये? और इतनी हैवानियत और राक्षसीपन वाले व्यक्ति जो ५ साल की बच्ची को नहीं छोड़ते है, १० साल की बच्ची को नहीं छोड़ते है, १५ साल की बच्चीयो को नहीं छोड़ते है, कहाँ से आते है? कौन सिखाता है उनको? किसी स्कूल में पढाया जाता है आप मुझे बताइए? हिंदुस्तान के किसी स्कूल के सिलेबस में ये पढाया जाता है किसी बच्चे को जरा ये बताइए, या हिंदुस्तान की किसी सिलेबस की किसी किताब में पढाया जाता है ये बताइए, किसी स्कूल में नहीं पढाया जाता, घर में कोई सिखाता नहीं है उनको, इसके बावजूद ये सिखने वाले लोग कहाँ से आ जाते है? दो ही कारण है या तो टेलीविजन या तो सिनेमा, और इस सिनेमा और टेलीविजन का असर क्या होता है ये मै आपको शेयर कर सकता हु. मै अक्सर छोटे छोटे बच्चो से बात करता हु. एक बार मेरे एक मित्र है, अहमदाबाद में रहते है, उनका ३ साल का बच्चा उससे मैंने पूछा कि बताओ तुम्हारा हीरो कौन है तो कहने लगा कि संजय दत्त, तो मैंने कहा क्यों, महात्मा गाँधी नहीं है? कहे नहीं है, भगत सिंह नहीं है? कहे नहीं है, चंद्रशेखर नहीं है? कहे नहीं है, स्वामी विवेकानंद नहीं है? कहे नहीं है, इनमे से कोई मेरा हीरो नहीं है, मेरा हीरो है संजय दत्त. मैंने कहा क्यों है तुम्हारा हीरो संजय दत्त? तो कहने लगा कि राजीव अंकल वो जब २५ मंजिल की इमारत से जब कूदता है तो उसको चोट नही लगती है, उसके कपड़े भी नहीं फटते कभी, और वो जो संजय दत्त नाम का आदमी है वो मोटर साइकिल ले के चलता है तो दीवाल तोड़ के निकल जाता है. मोटर साइकिल नहीं टूटती, संजय दत्त का सर नहीं टूटता, दीवाल टूट जाती है. फिर कहने लगा कि अंकल वो इतना ताकतवर है कि एक विलेन को अगर घूंसा मारे तो विलेन धराशाई हो जाता है. तो उस बच्चे से मैंने पूछा के भाई तुम्हारा हीरो अगर इतना ताकतवर है तो २ साल तक बम्बई की आर्थर रोड जेल में बंद क्यों था? जो दिवार तोड़ के निकल आता है, जो २५ मंजिल इमारत कूद सकता है, वो बम्बई की आर्थर रोड जेल की दीवाल नहीं तोड़ पाया. तो जानते है उस बच्चे ने बहुत गम्भीरता से मुझे जवाब दिया, तो क्या ये सब झूठ होता है? तो मैंने कहा तो क्या सच होता है. अब वो ३ साल का ४ साल का बच्चा, उसके भोलेपन को आप क्या कहोगे. क्योकि रात दिन उसको झूठ दिखाया जा रहा है, रात दिन उसको मारामारी दिखाई जा रही है, रातदिन उसको वोइलेंस दिखाए जा रहे है.
और ये जो वोइलेंस होती है न वो बहुत खतरनाक होती है, ये क्या होती है जितनी बार आप मर्डर के सीन देखोगे, जितनी बार आपका बच्चा मारामारी देखेगा, उतनी बार उसके मन से दया, करुणा, प्रेम ख़त्म हो जाएगा. और हमारे यहाँ एक वाक्य कहा जाता है, दया धर्म का मूल है. अगर मेरे दिल में दया नहीं रहेगी तो धर्म कहाँ रहेगा. और इसीलिए मै कहता हु कि ये वोइलेंस बहुत खतरनाक होती है जो दिखाई जाती है. और ये जान बुझ के दिखाई जाती है, ऐसा नहीं है कि उनके पास अच्छे कार्यक्रम नहीं है, अच्छे कार्यक्रम बनाने वाले लोग भी है और अच्छे कार्यक्रम दिखाने वाले लोग भी है, लेकिन जानबूझ कर वो दो ही चीज़े दिखाएँगे, या तो सेक्स की वल्गरिटी या तो वोइलेंस और मारामारी, और वोइलेंस और मारामारी हजारो बार देखते देखते देखते देखते हम इतने संवेदनाशून्य हो गये है कि १९८४ में जब १०,००० लोग भोपाल में मर गए तो किसी की आँखों से आंसू नहीं निकले इस देश में, इतने संवेदनाशून्य हो गए है इस देश में, सिनेमा में मर्डर देख देख कर, टेलीविजन पर मारामारी देख देखकर हमारी दिल की करुणा बिलकुल सुख गई है, दया बिलकुल ख़त्म हो गई है, हमारी आँखों के सामने जब मर्डर होता है हम बगल से हो कर निकल जाते है, सारी इंसानियत, सारी मानवीयता एक तरफ धरी रहती है, टेलीविजन का असर इतना हावी होता है. और इसीलिए मै आपसे २ ही बातें कहने आया हु कि एक बाजु में ये जो लुट चल रही है, इसको रोक दीजिए नहीं तो ये देश नहीं बचेगा, दुसरे बाजु में ये जो टेलीविजन का जो आक्रमण चल रहा है, उसको रोक दीजिए नहीं तो आपका घर नहीं बचेगा. देश बचेगा, समाज बचेगा ये बहुत दूर की बात है मै तो आपसे विनम्रतापूर्वक ये कहने आया हु कि आप अपना घर बचा लीजिए, देश बचाएँगे, समाज बचाएँगे, दूर की बाते है, पहले आप अपना घर बचा लीजिए, और घर बचाने की बात इसलिए कह रहा हु के हर मम्मी पापा के लिए अपना बेटा या बेटी दुनिया का सबसे लाडला व्यक्ति होता है और उसी को आपने झोंक दिया है उन दरिंदो के सामने, उन भेडियो के सामने जो जानते नहीं है, मानवीयता क्या होती है, इंसानियत के मोल क्या होते है.
ये घर घर में जो डिश एंटीना आ गया है, घर घर में ये जो केबल कनेक्शन आ गया है, और इसकी वजह से ये जो होड़ लग गई है कि मेरे पडोसी के घर में ये है तो मेरे घर में नहीं है. और जानते है ये सिखाता क्या है? आप जरा इसको गम्भीरता से समझिये कि ये कितनी खरतनाक चीज है, टेलीविजन आपको सिखाता है “घर की बढ़े शान, पड़ोसी की जले जान”, “नेबर्स एनमी, ओनर्स प्राइड” इसका माने जानते है क्या है कि आपके घर की शान तब बढ़ेगी जब पडोसी की जान जलेगी, आपका धर्म क्या कहता है, पड़ोसी से प्यार करो, टेलीविजन कहता है पड़ोसी की जान जलाओ. और हम क्या कर रहे है, अपने पड़ोसी की जान जलाने के लिए ओनिडा खरीद लाये, पड़ोसी हमारी जान जलाने के लिए ओनिडा खरीद लाया, दोनों पड़ोसी एक दुसरे की जान जलाने में लगे हुए है. कब दोनों के घर जलेंगे ये किसी को नही मालूम. और जिस दिन दिमाग में मेरे जैसे किसी आदमी के ये बैठ जाता है न, मै आपको बता रहा हु हम सब परेसान है न करप्सन – करप्सन, ये करप्सन की माँ कौन है? करप्सन की जड़ क्या है? उसको जरा समझिये एक उदाहरण में बहुत गंभीर बात आपको समझाने की कोशिस कर रहा हु. जिस दिन राजीव दीक्षित जैसे किसी नौजवान के दिमाग में ये बैठ जाता है कि घर की शान तब बढ़ेगी जब ओनिडा आएगा. घर की शान तब बढ़ेगी जब बी.पी.एल. की वाशिंग मशीन आएगा, घर की शान तब बढ़ेगी जब केल्विनेटर का रेफ्रीजरेटर घर आएगा, घर की शान तब बढ़ेगी जब मारुती की कार आ जाएगी, तो राजीव दीक्षित कहेंगे कि भाई मेरे जेब में तो १० रुपया नहीं है. अब ओनिडा आएगा कहाँ से, तो मेरे जैसा इमानदार आदमी जिसके दिमाग में आपने ये डाल दिया कि “घर की बढ़े शान पडोसी की जले जान” ओनिडा टेलीविजन, मै देखता हु मेरी जेब में तो १० रुपया नहीं है, ओनिडा टेलीविजन के लिए तो १७,००० रुपया चाहिए, तो रात दिन मेरे दिमाग में ये घनचक्कर शुरु हो जाएगा, घर की शान बढाइये, पडोसी की जान जलाइए, और एक दिन ऐसा आएगा कि राजीव दीक्षित १७,००० रूपये के लिए अपनी आत्मा को बेच देंगे, देश को बेच देंगे, क्योकि ओनिडा लाना है . यही से एक इमानदार आदमी के बेईमान होने की कहानी शुरु हो जाती है. जिस दिन एक इमानदार आदमी उसको कोंच कोंच कर कोई रोज कह रहा है कि तुम्हारे घर की शान तब बढ़ेगी जब ओनिडा आएगा, तो वो इमानदार आदमी १७,००० रूपये लाने के चक्कर में कहीं से रिश्वत लेगा, चोरी करेगा, डकैती डालेगा, आत्मा को बेचना पड़ेगा, बेच देगा, उसके घर में ओनिडा आ जायेगा. और अगर मान लीजिये ये बेईमान बनने की कहानी मेरे जैसे किसी नौजवान के मन में आई तो उसने करप्शन किया, बेईमान हो गया, मान लीजिए यही मेरे पिताजी के दिमाग में आ जाये कि घर की शान तब बढ़ेगी जब मारुती कार आएगी, तो मेरे पिताजी क्या करेंगे, वो कहेंगे लाओ कहीं से डेढ़ लाख रूपये की रिश्वत, क्योकि मारुती कार के बिना शान नहीं है तो वो एक इमानदार आदमी बेईमान हो जाएगा. और मान लीजिए यही कहानी मेरी अम्मा के मन में बैठ गई कि घर की शान तब बढ़ेगी जब ओनिडा आएगा, और घर की शान तब बढ़ेगी जब बी.पी.एल. की मशीन आएगी, तो मेरी अम्मा तो कहीं नौकरी करती नहीं है, मेरी अम्मा तो कोई बिज़नस करती नहीं है, वो बेचारी सीधी सादी हाउस वाइफ है. तो जानते है वो क्या कहेगी, अब इस लडके की जब शादी करेंगे तो दहेज मांगेंगे, तो एक ईमानदार माँ बेईमान होएगी, और उसकी बेईमानी का आप तंत्र देखिये, वो क्या कहेगी, देखिये साहब, हमको कुछ नहीं लेना – देना, जो देना है वो बेटी को दीजिए, और मालूम है कि सबकुछ ले के बेटी उसी के घर में आने वाली है. एक बाजु में कहेगी हमको कुछ नहीं लेना देना, दुसरे बाजु में कहेगी, बी.पी.एल. की मशीन दे दो, ओनिडा का टेलीविजन दे दो, मारुती की कार दे दो, क्यों दे दें साहब? अरे इस लड़के को इंजिनियर बनाया है, लाखो रुपया खर्च किया है, इन्वेस्टमेंट किया है वो वसूलेंगे कि नहीं वसूलेंगे? और उसके बाद पता चलेगा कि घर में सारा सामान आ गया, लेकिन एक टेलीविजन अगर नहीं दे पाया तो आनेवाली लडकी को जिन्दा जला देंगे हम दहेज के लिए. ये इसी देश में मैंने देखा है कही नहीं देखा है. टेलीविजन के लिए एक जीती जागती महिला को हम जिन्दा जला दें इससे ज्यादा संस्कृति की निकष्ट्ता कोई हो नहीं सकती. और तब मुझे आग लग जाती है दिल में कि शायद् आज के समाज में अब किसी जीती जागती बहन से ज्यादा कीमत टेलीविजन की हो गई है. और जब से ये लगना शुरु जो गई है तब से आप देखीये अखबारों में कोई अखबारों में कोई दिन बाकी नहीं जाता जब दहेज़ के लिए किसी की हत्या न होती हो. और अब स्थिति बहुत भयावह हो गई है, अब तो ये पता चल जाए कि गर्भ में पलने वाली बेटी है तो पहले ही एम्न्योसिथेसिस कराओ और साफ़ कर दो, गर्भ में से बाहर आ जाए, पैदा हो जाए, उससे उसके बाद मारे तो हत्या और गर्भ के अंदर ही मार दें तो एबोर्सन? ये अजीब कानून है इस देश में, के गर्भ से बाहर निकले कोई बच्चा उसकी करे तो हत्या, और गर्भ के अंदर अगर मार दें तो एबोर्सन. और मै गारेंटी से कहता हु आपसे आप इसको देख लीजिए मैंने मेरे शहर में सर्वे किया है जितने एबोर्सन के केसेस होते है उनमे ९९% केसेस बच्चियो के होते है, महिलाओ के होते है. क्योंकि बच्ची है गर्भ में इसिलए मार देते है, उसके नतीजे जानते है क्या होते है? एक बाजु में दहेज हत्या के लिए मार रहे है, दूसरी बाजु में एबोर्सन के पहले, एबोर्सन कराओ और लडकियों को ख़त्म कर दो, धीरे धीरे हिंदुस्तान में महिलाओ की संख्या पुरुषो से कम होती जा रही है. और एक दिन ऐसा आएगा, जब हिंदुस्तान में १००० भाइयो पर ५०० बहनों संख्या रह जाएगी, आप जरा कल्पना करिये कि समाज का होगा क्या? कौन सी बास्टर्ड सोसाइटी में हम कन्वर्ट होने जा रहे है. और हमने कुछ अजीब परिभाषाए बनाई है, हमने इतिहास में पढ़ा है, हमको किसी ने बताया है कि पुराने ज़माने में लडकियों की हत्या कर देते थे तो हम उसको राक्षस मानते है. आज के ज़माने में ये जो सफेद सफेद चोगा पहन कर, डिग्रियां ले कर जो बच्चियों की हत्या करते है, उनको हम डॉक्टर कहते है? वो राक्षस नहीं है? और अगर यही चलता रहेगा, तो आप इस समाज को बचा नहीं पाएंगे.
इसीलिए मै आपसे निवेदन करने आया हु. २ निवेदन करने आया हु, एक तो ये कि इस देश को जो लुट रहे है इससे इस देश को बचाइए. और इस देश की लुट से इस देश को बचाने का काम आप ही करोगे राजनैतिक पार्टिया नहीं करने वाली है. क्योंकि राजनैतिक पार्टिया तो देश बेचने में लगी हुई है. देश बचेगा कैसे? मै आपसे छोटे छोटे कुछ निवेदन करने आया हु. के आज के बाद आप यहाँ से ये फैसला कर के जाइए कि मेरे घर में पेप्सी या कोकाकोला आएगा नहीं. इस देश के लाखों लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता, और मेरे घर में मेरे बच्चे पेप्सी और कोका पियेंगे, इससे बड़ा नेशनल क्राइम कोई दूसरा हो नहीं सकता. आप फैसला करिये, आपके घर में कोलगेट, क्लोजअप, सिबाका, फोरहंस आएगा नहीं. हमारे देश में जो स्वदेशी नीम का दातुन है, बबूल का दातुन है वो हम खरीदेंगे, वो करेंगे, देश का पैसा देश के बाहर नहीं जाने देंगे. हमारे घर में लक्स, लिरिल, लाइफबॉय, रेक्सोना आएगा नहीं क्योंकि ये विदेशी कम्पनियों के साबुन है. हमारे बच्चे बाटा, एडिडास का जूता पहनेंगे नहीं, गाँव का मोची जो जूता बनाता है वो ही हम पहनेंगे. और मै आपसे यही विनम्र निवेदन करने आया हु, वोट मांगने आया नहीं, कभी आऊंगा नहीं. मै आपसे एक निवेदन करने आया हु कि इस देश को बचाना है तो सबसे पहला काम अपने अपने घर से विदेशी कम्पनियों का बहिष्कार कीजिए, इनका माल खरीदना बंद कीजिए. दुश्मन से जब लड़ाई लड़ते है, तो दुश्मन की सप्लाई लाइन सबसे पहले काटते है. ये सप्लाई लाइन हमारे घरों से बनी हुई है, हम हमारे घरो में विदेशी कम्पनियों का माल खरीदते है और वो पैसा इनको जाता है. वो पैसा देना बंद करिए, और हमारे देश में स्वदेशी लाइए. और स्वदेशी में मेरा बहुत स्पष्ट मानना है कि टाटा, बिरला, डालमिया स्वदेशी है नहीं. ये भूल कभी मत कीजिएगा, मेरे लिए स्वदेशी है नीम का दातुन, मेरे लिए स्वदेशी है अगर मेरे गाँव में कोई साबुन बनता है वो, मेरे लिए स्वदेशी है मेरे गाँव में बनता है कोई जूता वो, मेरे लिए स्वदेशी है खादी का कपड़ा बनता है वो, मेरे लिए स्वदेशी की परिभाषा बहुत स्पष्ट है, कि जो मेरे सबसे नजदीक बनता है और जो मेरे भाई को रोजगार देता है वो स्वदेशी है. वो परिभाषा आप तय कर ले. तो अपने गाँव में जो बनता है, मेरे शहर में जो बनता है वो ही मै खरीदूंगा, ये बड़े टाटा, बिरला, डालमियां भी स्वदेशी नहीं है, क्योंकि ये रोज विदेशी कम्पनियों के सामने सरेंडर कर रहे है, रोज कोलाबरेसन कर रहे है. टाटा ने अपने आप को बेच दिया हिंदुस्तान लीवर को, पारले ने अपने आपको बेच दिया कोकाकोला को, जिलेट को बेच दिया ये आपके भारत मल्होत्रा प्रोडक्ट्स वालो ने अपने आप को. ३० बड़े घराने मल्टीनेशनल के सामने सरेंडर कर चुके है. तो वो कब विदेशी हो जाएँगे कुछ नहीं कहा जा सकता. और विदेशी कम्पनियों के साथ लुटने में उनको भी कुछ हिस्सा मिले यही उनकी कोशिश चल रही है तो ये स्वदेशी कभी हो नहीं सकते, स्वदेशी माने सादगी, स्वदेशी माने जो मेरे गाँव के नजदीक बनता है, मेरे आदमी को रोजगार देता है, स्वदेशी माने जिसका पैसा देश के बाहर नहीं जाता. तो एक तो आप अपने अपने घर से स्वदेशी सामान खरीदने का संकल्प ले, और दूसरा निवेदन मै आपसे करने आया हु कि इस देश को सांस्कृतिक आक्रमण से बचाए, अपने अपने घर का टेलीविजन बंद करे. ये ताकत आपके हाँथ में है, इसके लिए देवेगौडा से पूछने जाने की जरूरत नहीं है. हाँ और इसके लिए आप ये कहोगे कि राजीव भाई पार्लियामेंट से कोई कानून पारित हो जाएगा उसके बाद हो जाएगा, आपके घर में रिमोट कण्ट्रोल आपके हाँथ में है. हिम्मत करिये और ऑफ कर दीजिए. ऑफ करने में कोई ताकत नहीं लगती, मन का संकल्प चाहिए. और अगर आप बंद कर देंगे, तो आपके बच्चे बंद कर देंगे, नहीं तो ऐसा नहीं होगा कि आप घर में बैठ कर टी.वी. देखें और बच्चो से आप कहे कि भाई तुम मत देखो, ये नहीं चलने वाला, आप बंद करिये आपके बच्चे बंद कर देंगे. तो ये टी.वी. बंद हो जाएगा तो आप कहोगे कि समय बचेगा और वो समय बचेगा उसमे आप बहुत सारे काम कर सकते है. सामयिक करिये, प्रतिक्रमण करिये, आपको कहने वाले बड़े बड़े गुरुदेव है, समय बचाइए तो कुछ धर्म के काम करिये, और सबसे बड़ा धर्म का काम क्या है, पड़ोसी के घर जाइये, उसके दुःख दर्द पूछिये, हमने पड़ोसी के घर जाना बंद कर दिया, पड़ोसी हमारे घर नही आता, एक दुसरे के घर जाने का जो रिश्ता बनाया हुआ था समाज को जिस पर टिका हुआ था वो टूट रहा है. और वो पड़ोसी के घर जाना आप तभी शुरु करोगे जब आपके पास समय बचेगा. तो टी.वी. बंद करिये उसमे से समय बचेगा.
और एक आखरी निवेदन आपसे. अपने अपने बच्चों को कान्वेंट स्कूल में मत भेजिए. ये जो कान्वेंट स्कूल है जानते है यूरोप में किन बच्चों को कान्वेंट स्कूल में भेजा जाता है, यूरोप में वर्षो वर्षो एक बड़ी परम्परा रही है, अनाथ बच्चे होते है, मम्मी पप्पा है फिर भी बच्चो को छोड़ देते है, वहां है. सैकड़ो नहीं हजारों वर्षो से यूरोप में ये परम्परा है बच्चो को एबेंडन छोड़ने की. अभी कुछ कम हुई है, १४ वी. १५ वी. शताब्दी तक तो भयंकर परंपरा थी. तो जिन बच्चो के मम्मी पप्पा का पता नहीं होता है उन बच्चो के लिए कान्वेंट स्कूल वहां खोले जाते थे. और हम क्या करते है, मम्मी पप्पा जिनके है वो बच्चे कान्वेंट स्कूल में जाते है. माने अपने मम्मी पप्पा के रहते हुए अपने बच्चो को क्यों अनाथ बना रहे है. हमारे दिमाग में एक बहुत बड़ी गलतफहमी है कि बच्चा जब अंग्रेजी सीख जाएगा तो बड़का विद्वान हो जाएगा, दुनिया में इससे बड़ा झूठ और कोई है नहीं. कोई भी देश ऐसा नहीं है दुनिया में जिसने अंग्रेजी भाषा में सबकुछ कर के तरक्की की हो, दो देशो के उदहारण तो मै दे सकता हु जिनको मैंने देखा, फ़्रांस इतना जबरदस्त उस देश ने, यूरोप के शब्दों में कह रहा हु, मै मेरे शब्दों में नहीं कह रहा, हालाँकि मै मानता नहीं कि उन्होंने कोई तरक्की और विकास किया है लेकिन यूरोप के शब्दों में संदर्भो ने देखें तो फ़्रांस ने बहुत तरक्की की है, बहुत विकास किया है. पुरे फ़्रांस में अंग्रेजी में पढ़ते नहीं है बच्चों को, फ्रेंच में ही पढ़ते है. जापान में जाइये, छोटे बचपन से ले कर हायर एजुकेशन तक सब जापानीज में पढाया जाता है. जर्मनी में जाइये, बचपन से मातृभाषा जर्मन है. इटली में जाइये, मातृभाषा इटालियन है. होलेन्ड में जाइये, मातृभाषा डच है. किसी भी देश में जाइये, लैटिन अमेरिका के देशों में जाइये वहां भी अंग्रेजी नहीं है, मातृभाषा है दुनिया में अंग्रेजी नाम की मातृभाषा तो कुछ जमा ४ – ५ या ६ बहुत हो तो १० देशो में है इससे ज्यादा है नहीं. और जिन देशों में अंग्रेजी वाली भाषा है उनकी कोई तरक्की हो नहीं रही है, अमेरिका की यूनिवर्सिटीज में जितने टोपेर्स निकल रहे है पिछले १० साल से वो सब नॉन अंग्रेजी वाले है ये ध्यान रखिये. पिछले १० सालों में अमेरिका की यूनिवर्सिटी में जितने टोपेर्स पैदा हुए है कोई भी अंग्रेजी वाला नहीं है. और दुसरे देशो में भी यही हालात है ये बहुत बड़ा भ्रम है हमारे मन में कि अंग्रेजी सीख जाएगा बच्चा तो उसकी कुछ तरक्की हो जाएगी ऐसा कुछ नहीं है, दुनिया में बहुत सारे ऐसे देश है जिन्होंने बिना अंग्रेजी के बहुत आगे गए है और बहुत तरक्की की है. जापान, फ़्रांस, या जर्मनी ये तमाम उदाहरण है, ये गलतफहमी आप अपने दिमाग से निकल दीजिये कि अंग्रेजी ही पढ़ेगा तो हमारे बच्चे का विकास होगा, बच्चे का सबसे अच्छा विकास तब होता है जब वो मातृभाषा में पढता है. अगर गुजराती आपकी मातृभाषा है तो गुजराती में पढ़ाइये, अगर मराठी मातृभाषा है तो मराठी में पढ़ाइये, अंग्रेजी में तो बिलकुल नहीं. और ये अंग्रेजी में पढ़ाने का सिस्टम मैकाले ने इस देश में शुरु किया वो गुलाम बनाने के लिए था, तो हम आज़ादी के बाद अपने बच्चो को जानबूझ कर गुलाम बनाने के लिए और मम्मी पप्पा के रहते हुए जानबुझ कर अनाथ बनाने के लिए, बराबर याद रखिये, कान्वेंट स्कूल माने अनाथ बच्चों का स्कूल यूरोप में. कान्वेंट स्कूल वही होते है जहाँ पर अनाथ बच्चे पढ़ते है. तो अनाथ बच्चे नहीं है हमारे, मम्मी पप्पा के बच्चे है इसीलिए आप अपने बच्चो को मत भेजिए उससे ये जो अंग्रेजियत की जो संस्कृति आ रही है बच्चों में, ये बंद हो जाएगा, इस अंग्रेजियत की संस्कृति से नफरत है, अंग्रेजो से शायद उतनी नफरत हमको नहीं हो सकती जितनी अंग्रेजियत से है. और वो अन्ग्रेजियत से इसिलए नफरत है क्योकि सारी दुनिया का नाश करने वाली है वो संस्कृति, राक्षसी संस्कृति है, उनमे कुछ मानवीयता के तत्व है नहीं, इंसानियत के तत्व है नहीं.
तो २ -३ बातें मैंने कही है, फिर मै रिपीट कर रहा हु. घर घर में स्वदेशी, अपने अपने बच्चे को मातृभाषा के स्कूल में भेजिए, अंग्रेजी के चक्कर से बाहर निकालिए, आपका बच्चा ज्यादा बुद्धिमान बनेगा, ज्यादा तर्कशाली बनेगा, ज्यादा विवेकशील बनेगा अगर मातृभाषा में पढ़ेगा तो. और अपने अपने घर से टेलीविजन की ये जो दुष्चक है उसमे से आप बाहर निकलिए, बच्चो को बाहर निकालिए इस देश का बहुत बड़ा कल्याण हो जाएगा. आप ये पूछ सकते हो कि राजीव भाई आपने ना तो वोट माँगा और ना आपने नोट माँगा, ना मै आपसे वोट मांगने आया, ना तो नोट मांगने आया, मौसम तो वोट का है और नोट का है. कल चुनाव होने जा रहा है फिर भी मै ये बाते नहीं कर रहा हु, बहुत लोग आते होंगे आपके बीच में बहुत अच्छे भाषण करते होंगे और अंत में कहते होंगे, मोहर लगा दीजिएगा हमारे इस निशान पर. तो मै वो कहने आया नहीं कभी आऊंगा नहीं. फिर मै आपसे मांगने आया हु, मुझे आपका समय दान चाहिए, आपके जीवन का कुछ समय चाहिए मुझे, ना वोट चाहिए न नोट चाहिए, आपके जीवन का समय चाहिए. तो आप क्या करें, एक दिन में २४ घंटे का समय है आपके पास, इस २४ घंटे में से २३ घंटे आप अपने व्यापार के लिए, अपने बच्चो के लिए, अपने परिवार के लिए रखिये, १ घंटा देश को दीजिए, आपके १ घंटे की इस देश को बहुत जरूरत है. आप इस १ घंटे में क्या करे एक छोटी सी कह के ख़त्म करूंगा.
१७५७ का जब पलासी का युद्ध हुआ था. ३०० अंग्रेज सिपाहियो को ले कर रोबर्ट क्लाइव आया और १८,००० हिन्दुस्तानी सिपाहियो पर विजय हासिल की.
युद्ध जितने के बाद जानते है रोबर्ट क्लाइव ने एक जुलुस निकला और उसके लिए उसने लिखा है अपनी डायरी में, उस डायरी के २ पन्ने मेरे पास है और जब जब मै पढता हूँ मेरे दिल में आग लग जाती है. क्लाइव ने लिखा अपनी डायरी में कि मैंने जब पलासी का युद्ध जीत लिया तो ३०० अंग्रेज सिपाहियों के साथ मैंने एक विजय जुलुस निकला, कलकत्ता से मुर्शिदाबाद तक. तो उस विजय जुलुस में क्या होता था, क्लाइव घोड़े पे बैठ के आगे आगे चलता था उसके पीछे ३०० सिपाही चलते थे. उसने डायरी में लिखा है कि मेरे ३०० सिपाहियों का जुलुस देखने के लिए सडक के दोनों किनारे करोड़ो करोड़ो हिन्दुस्तानी खड़े होते थे. और उसने आखरी वाक्य लिखा है जो सडको के दोनों किनारे खड़े हो कर मेरा जुलुस देखते थे और तालियाँ बजाते थे, अगर उनमे से एक एक हिन्दुस्तानी ने एक एक पत्थर का टुकड़ा उठा कर मारा होता तो देश का इतिहास बदल जाता. ये बात मेरे दिल में आग की तरह लगने लगी है के वो ३०० लोग थे हम करोड़ो की संख्या में थे उनका जुलुस देखते रहे, तालियाँ पिटते रहे. हमने एक पत्थर उठा के नहीं मारा. आज भी वही हो रहा है, और मै इसी के लिए आपसे कहने आया हूँ कि प्रतिदिन कम से कम एक घंटा निकालिए और कम से कम एक पत्थर का टुकड़ा तो मारिये. वो गलती तो मत करिये जो हमारे पुरखों ने की है.
आगे है ............................................
आप अपने दोस्त के घर में कहोगे और अगर वो इतना भी कर देगा कि आपकी बात को सुन कर वो पेप्सी या कोकाकोला पीना बंद कर देगा या कोलगेट खरीदना बंद कर देगा तो तो मेरा आना सार्थक होगा.
एक दो जरूरी सवाल है जिनका जवाब देना मुझे लगता है कि देना चाहिए, एक भाई ने सवाल किया है कि ये सब चैनल के सामने अपन कुछ बोल नहीं सकते है क्या? टेलीविजन के चैनल के बारे में, हम बराबर बोल सकते है और बोलना चाहिए और हम बोल भी रहे है. मै आपको मेरी जानकारी दूँ, इस समय मै एक केस लड़ रहा हूँ सारे विदेशी टेलीविजन चैनल और दूरदर्शन के खिलाफ पहले ये केस मैंने किया था प्रेम कुमार की अदालत में, दिल्ली में, और प्रेम कुमार जी ने ३ जुलाई १९९६ में फैसला सुनाया हमारे पक्ष में, और प्रेम कुमार जी का ये फैसला है कि सारे विदेशी चैनल बंद कर देने चाहिए. और उसके उपर ये जो दूरदर्शन है, दूरदर्शन के बारे में प्रेम कुमार जी का ये कहना है कि दूरदर्शन पर चित्रहार जैसे कोई भी कार्यक्रम नहीं आने चाहिए. जिसमे सेक्स की वल्गरिटी और ओब्सेनिटी इतनी दिखाई जाती है. तो हमको ऐसा लगता था कि जैसे ही ये फैसला आएगा सारे देश में लागु हो जाएगा, लेकिन मै आपको बताऊ कि ये विदेशी टेलीविजन कंपनी चलाने वालों की लॉबी बहुत मजबूत है. उसमे रूपर्ड मडोर्क है, स्टार टी.वी. का मालिक है. उनमे ज़ी टी.वी. का मालिक है, उसमे ए.टी.एन. वाले है, ये अमिताभ बच्चन है. तो इन्होने सब ने क्या किया कि जैसे ही प्रेम कुमार जी कि अदालत में हम ये केस जीते ये सब लोग हमारे खिलाफ एक साथ मिल कर हाई कोर्ट में चले गए. और हाई कोर्ट में अभी वो केस चल रहा है. हाई कोर्ट में मुझे दूसरा आश्चर्य तब हुआ कि ये सारे कुकृत लोगों के साथ भारत सरकार भी हमारे खिलाफ खड़ी है. और आप ये जान लीजिए कि इन विदेशी टेलीवीजन कम्पनियों की तरफ से वकील के रूप में कौन कौन है, आपको मै नाम बताऊ, हिंदुस्तान का सबसे बड़ा वकील सॉली सोराबजी, वो विदेशी कम्पनियों की तरफ से हमारे खिलाफ केस लड़ रहा है. हाई कोर्ट में, दिल्ली में. और सॉली सोराबजी के साथ पी.एन. लेखी सारे दिग्गज वकील ये सब विदेशी कम्पनियों की तरफ से लड़ रहे है और हमारे पास दुर्भाग्य से कोई वकील नहीं है क्योंकि पैसा नही है. हम आपको सच बता रहे है, और हमारा केस हम खुद लड़ रहे है. लोअर कोर्ट में भी मैंने ही बहस की थी, प्रेम कुमार जी के यहाँ हमारे दोस्तों ने बहस की थी, कभी मेरे दोस्त जाते थे, और हाई कोर्ट में भी ऐसा ही चल रहा है, कभी मै जाता हु कभी मेरे दोस्त जाते है. उसके बावजूद अब तक जितनी सुनवाई हुई है, इतने सारे दिग्गज वकीलों के उनके पाले में होने के बावजूद भी हमें उम्मीद है कि फैसला हमारे पक्ष में आने वाला है. क्योंकि जो तर्क हमने दिए है वहां कोर्ट में, उन तर्कों का जवाब ना तो सॉली सोराबजी दे पाए है ना दीपांकर भट्टाचार्य दे पाए है न ये पी.एन. लेखी.
मै मानता हु रावण चाहे जितना शक्तिशाली हो, चाहे जितने राक्षस हों, सत्य की विजय होती है. ऐसा मुझे लगता है, तो हाई कोर्ट में हम ये केस चला रहे है, लड़ रहे है, अगर हाई कोर्ट में फैसला हमारे पक्ष में आया तो हमारी कोशिश ये होगी के वो कानून बन के पार्लियामेंट से लागु हो, इस बीच में अगर वो लोग सुप्रीम कोर्ट में जाएँगे तो हम सुप्रीम कोर्ट तक लड़ने की तयारी है हमारी, और इस केस को हम छोड़ने वाले नहीं है.
इसमें एक दूसरा काम हमने और शुरु किया है इसी बीच में, कि ये केबल टी.वी. ऑपरेटर्स है, जो चलाते है, वो हमारे ही अपने भाई है. स्टार टी.वी. विदेशी कंपनी है, लेकिन स्टार टी.वी. का चैनल चलाने वाले अपने ही भाई है, तो अभी दिल्ली में मैंने एक सम्मेलन किया था, केबल टी.वी. ऑपरेटर्स का एसोसिएशन है उनका मैंने सम्मेलन किया था. और उन भाइयो को मैंने गुड सेन्स में अपील की थी कि भाई तुम्हारे भी छोटे बच्चे है, मेरे भी छोटे भाई बहन है, हम सब के घर अगर बर्बाद हो रहा है आपके इस धंधे से तो आप क्यों न ऐसा फैसला करें की हम ये धंधा छोड़ दें. तो उनमे आपको मै ख़ुशी की बात बताऊ कि ६० टके से ज्यादा केबल टी.वी. ऑपरेटर्स कहते है कि राजीव भाई जिस दिन हमको ये लगेगा कि आप लड़ाई हार गए हाई कोर्ट में उस दिन हम ये धंधा छोड़ देंगे. तो उनकी तरफ से हमको ये आश्वासन है, और उन्होंने ही हमको कहा है कि बम्बई का केबल टी.वी. ऑपरेटर्स का जो एसोसिएशन है उसकी भी जल्दी आपकी एक मीटिंग हम करवाएँगे और उनके साथ भी हम बात करने वाले है, डायलाग करने वाले है. तो उन भाइयो को हम हमारे साथ कन्विंस करा सकें तो इन विदेशी कम्पनियों की हम जड़ खोद देंगे. इतना हमको मालूम है.
तो ये लड़ाई में हम सारे चैनलों के खिलाफ लड़ सकते है, बोल सकते है, इसमें आपकी मदद चाहिए. आप क्या मदद कर सकते है? हरी भाई अख़बार के एडिटर है, आप अगर सबलोग तय करें तो कम से कम ५०० – १००० लेटर्स टू एडिटर दे सकते है, सम्पादक के नाम जो चिट्ठी जाती है. उसमे ये विदेशी टेलीविजन का मामला ले लीजिए कभी कभी कोई खबर ऐसी बन सके तो हरी भाई जैसे लोगों की मदद से अखबारों में छपवाइए. टी.वी. के खिलाफ, तो उससे क्या होता है, कि जो जज बैठा है फैसला देने वाला, वो भी अख़बार पढता है. और अख़बारों की ख़बर से वो प्रभावित होता है. तो अगर जगह जगह ऐसा कुछ होना शुरु हो जाए तो जज के दिमाग में ये सब बातें बैठेगी जब वो ये फैसला सुनाएगा. तो हममे से हरेक व्यक्ति ये सकता है. जितने अखबारों में आप लेटर्स टू एडिटर लिख सकें उतने लेटर्स टू एडिटर लिखिए. जितने अखबारों में न्यूज़ आइटम के रूप में ये ख़बर छप सके वो खबर के रूप में छपवाइए या और तरीके आप इसके ढूंडीए. वो आप कर सकते है और ये आपकी हमारे लिए बड़ी मदद होगी. और फिर मै रिपीट कर रहा हु, कि ये जो लड़ाई जो हम लड़ रहे है इस लड़ाई में आप हमें सहभाग दें तो एक ही तरीका है कि आप टी.वी. बंद रखें. तो आप जो है इस लड़ाई में हमारी मदद कर सकते है.
वस्त्र अगर हम धारण करें तो नतीजे जानते है क्या है, हिंदुस्तान में जितना कपड़ा बिकता है, उस कपड़े में सिर्फ १ टका कपड़ा कॉटन का बिकता है, १ टका, १%. ९९% कपड़ा सिंथेटिक बिकता है. इम्पोर्टेड यार्न का बिकता है, १ % खादी बिकता है तो हिंदुस्तान के १५ लाख लोगों को रोजगार मिलता है. मै सपना देखता हु कि अगर १०० % खादी बिकना शुरु हो जाए, तो १५०० लाख लोगों को रोजगार मिल सकता है. माने हिंदुस्तान की सरकार कहती है कि कुल बेरोजगारी १२ करोड़ की है, १५ करोड़ लोगों को रोजगार तो हम दे सकते है अगर हम खादी पहनना शुरु कर दें. तो इसीलिए भी खादी पहनिए कि १५ करोड़ लोगों को रोजगार रोजगार मिलता है. और इसीलिए भी खादी पहनिए कि सबसे ज्यादा अहिंसक पद्धति से बनने वाला कपड़ा है वो. गाँव गाँव के लोगों को रोजगार ही नहीं देता, पुरे अहिंसक पद्धति से बनता है, क्योंकि कपास उत्पादन, उसके बाद सूत बनाना उससे कपड़ा बनाना एकदम अहिंसक पद्धति है, और इसमें ये टेरेलीन, टेरीकॉट, सिंथेटिक कपड़े सब हिंसक पद्धति से बनते है. तो हमारी संस्कृति बचे, १५ करोड़ लोगों को रोजगार मिले. और मै उसके भी आगे कहता हु कि खादी के साथ साथ अगर ग्रामोद्योगीक सामान खरीदना हम शुरु कर दें तो और १५ करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा. ३० करोड़ लोगों को रोजगार देने की क्षमता है खादी और ग्रामोधोगों में. तो आप अपने अपने घर में खादी पहने. अगर आप १०० % खादी पहने, मुझे बहुत ख़ुशी होगी. लेकिन कोई ये भी कह सकता है कि एकदम ये नहीं हो सकता, तो आप कम से कम एक कपड़ा खादी का खरीदिये, अगर आप एक कपड़ा भी खादी का पहनेंगे तो ५० लाख लोगों को रोजगार मिल जाएगा. तो हम खादी इसलिए नहीं पहन रहे है खादी इसलिए पहन रहे है कि इससे देश के लाखो करोड़ो को रोजगार दे रहे है. और ये रोजगार देने की क्षमता यही पर है, और कहीं दूसरी जगह में में नहीं है.
दूसरा सवाल है, एक भाई ने कहा है कि आज के लालची नेताओं से आज़ाद होने के लिए हमें क्या करना चाहिए. मैंने अपने भाषण के अंत में प्रतीक रूप में यही कहा था के आज के लालची नेताओं से बचने के लिए हमको कुछ नहीं एक एक पत्थर एक टुकड़ा उठाइए और मारना शुरु कर दीजिए. वही एक तरीका है इन आज के लालची नेताओं से बचने का. और एक एक पत्थर का टुकड़ा उठा के मारने की बात करता हु तो उसका गहरा मतलब है? उसका मतलब है कि नेताओं को फूलमाला हम ही डालते है, इन नेताओं के लिए जय जयकार हम ही करते है, इन नेताओं के लिए चंदा जुटाने का काम हम ही करते है, इन नेताओं को वोट डालने का काम हम ही करते है ये सारे काम आप बंद कर दीजिए, ये ऊपर आकास से जमीं पे ओंधे मुह आ जाएँगे, इतनी गारंटी मै आपको दे सकता हु.
ये छोटा सा उदाहरण है जो अभी ताज़ा है, ऐसा ही एक बार और भी हुआ था, कारगिल एक कंपनी है, नमक बनाने के लिए आई गुजरात में, और हमको पता चला, तो कुछ गांधीवादी लोगों ने आन्दोलन किया उसके लिए, मै भी पहुँच गया. मुझे कोई जनता नहीं था गुजरात में, मै गुजरात में किसी को नहीं जनता था, लेकिन पहुँच गया पता चला कि कारगिल के खिलाफ आन्दोलन है. तो वहां पहुंचा तो लोगों से मैंने पूछा कि क्या करने वाले है के आन्दोलन करेंगे, इस कंपनी को भागना है, तो मैंने कहा ठीक है, मेरा नाम भी लिख लीजिए उसमे. अब हम निकले वहां से अहमदाबाद से तो गाँधीधाम पहुंचे, जहाँ पे कारगिल का वो बनने वाला था तो मैंने पता किया कि वो कारगिल आ कहाँ रहा है? कंदला बन्दरगाह, गांधीधाम के पास, तो कांडला बन्दरगाह के सामने एक वैठ है, द्वीप है, सबसाइडा वैठ और वो करीब ७०,००० हेक्टेयर का है. तो चिमन भाई पटेल की सरकार ने वो पूरा का पूरा द्वीप कारगिल कंपनी को दे दिया. और पता है किस भाव में दिया? १५ पैसे स्कवायर फीट. हमने पता किया कि इसके पीछे का रहस्य क्या है तो खोजते खोजते इस नतीजे पर पहुंचे कि चिमन भाई पटेल का एक लड़का है, उस लडके ने कारगिल कंपनी से जॉइंट वेंचर किया है और इसलिए १५ पैसे स्कवायर फीट में उन्होंने जमीन दे दी है. और वो जमीन पर कारगिल कंपनी का कारखाना लगेगा. फिर कारगिल कंपनी क्या है इसके बारे में पता किया तो पता चला कि वो अमेरिका की सबसे बड़ी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है. और प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के जो कानून होते है वो इस तरह के होते है कि आप अगर जानना चाहो कि ये कंपनी क्या करती है तो वो कंपनी अगर नहीं चाहे तो बताएगी नहीं. आप पूछ नहीं सकते कि क्या करते है तुम क्या करते हो. मैंने कहा कि भैया, ये सबसाइडा वेठ पे ये कारगिल वाले क्यों आ रहे है? बहुत दिन दिमाग घुमाते रहे, एक दिन उसका जवाब मिला कि सबसाइडा वेठ पर ही क्यों आ रहे है? गुजरात में और कहीं जगह क्यों नहीं जा रहे है? मुंद्रा है, मांडवी है, कच्छ में किसी और गाँव में जा सकते है, संतालपुर वगेरह है जहाँ नमक बनता है लेकिन वहां नहीं जा रहे है. वही पे आ रहे है. जवाब मिला कि सबसाइडा वेठ से पाकिस्तान का करांची १०० नॉटिकल माइल पे है. और उस दिन दिमाग में ये सारा किस्सा साफ़ हो गया कि ये क्यों आ रहे है कच्छ में. ये इसलिए आ रहे है कि अब गुजरात को अब कश्मीर बनाना है. और अमेरिका के रिश्ते पाकिस्तान से कितने अच्छे है ये आप भी जानते है मै भी जनता हु. ये अमेरिका रोज पाकिस्तान को हथियार देता है. तो कारगिल कंपनी जब वहां आ जाएगी, उनका अड्डा जब बन जाएगा तो उस अड्डे के माध्यम से वो पाकिस्तान से रिश्ते शुरु हो जाएँगे क्योंकि पाकिस्तान का करांची वहां से १०० नॉटिकल पर है, तो उनके लिए पाकिस्तान आना जाना बिलकुल मुश्किल का काम नहीं रहेगा. और उसके अंदर क्या हो रहा है कंपनी में ये हम पता नहीं कर सकेंगे तो मुझे समझ में आ गया के ये कच्छ को दूसरा कश्मीर बनाने की सारी साजिश है और फिर देखना शुरु किए तो ये हिंदुस्तान को घेर रहे है. नार्थ ईस्ट में चीन बैठा है, निचे श्रीलंका में आग लगी हुई है, उसके बाद आप नार्थ ईस्ट से थोड़ा निचे जाइए वहां भी आग लगना शुरु हो गई है. कश्मीर और पंजाब में आग लगी ही रहती है. अलग कश्मीर चाहिए, अलग पंजाब चाहिए ये बात कहने वाले भी बहुत है, तो इसके बाद अब बचा हुआ एक हिस्सा है पश्चिम भारत जो थोड़ा शांत है अब उस पश्चिम भारत में गुजरात की छाती पे बैठ जाएँगे तो पश्चिम भारत को भी अशांत बनाएँगे. तो ये बात जब मुझे समझ में आई तो मैंने तय किया कि अब मै कहीं जाऊंगा नहीं, यही रहूँगा कच्छ में, गुजरती मुझे आती नहीं है, कच्छी तो बिलकुल भी समझ में नहीं आती. फिर भी जाता था, स्कूलों में जाता था, कॉलेजों में जाता था. कहीं कोई परिचय नहीं होता था, प्रिंसिपल के पास जाता था, कहता था कि मेरा नाम ये है, मै आया हु, मुझे आपके विद्यार्थियों से कुछ बात कहनी है. वो कहता था कि क्या बात कहनी है तो मै कहता था कि यहाँ पे एक विदेशी कंपनी आ रही है. और तुम्हारी छाती पे बंदूक चलाएगी. वो बताने आया हु, तो कोई भी प्रिंसिपल ऐसा नहीं मिला जिसने मना किया, उसने कहा कि हाँ राजीव भाई बताइए इन लोगों को.
ये बात बराबर है कि हमारा बजट हमलोगों को ही बनाना चाहिए, लेकिन मैंने बताया कि इस देश के नेताओं ने सारा देश बेंच दिया है. आई.एम.ऍफ़., वर्ल्ड बैंक के अधिकारी इस देश में अब बजट बनाते है, हमारे देश के लोग तो सिर्फ माने मजबूरी के लिए उनके साथ बैठते है. आपको मै ये जानकारी दे दू चिदम्बरम बजट नहीं बना रहा है, इस समय ६ आई.एम.ऍफ़. के अधिकारी साउथ ब्लाक में बैठे हुए है, वो रात दिन बजट बना रहे है. तो हमको हमारा बजट बनाना ही चाहिए, विदेशी लोग बजट बनाये ये इस देश के लिए सबसे ज्यादा अपमान की बात है. ये तो अब ऐसा है कि चिदम्बरम जैसे लोग मनमोहन सिंह जैसे लोग अगर वित्त मंत्री होंगे तो ये तो होगा ही होने ही वाला है, अब जनमत एक है, मै आपको बताऊ सच में, ( ऑफिसियली डिक्लेअर किया है? ) हां ऑफिसियली भी डिक्लेअर किया है, शायद आज के एक दो अखबारों में हो. मुझे लगता है कि इसके लिए एक ही तरीका है. ध्यान रखिये चितम्बरम कभी न कभी तो बम्बई आएगा, हाँ कभी ना कभी तो आएगा बम्बई, तो जिस दिन चितंबरम बम्बई आए, उस दिन आप हिम्मत करिए, मै आपके साथ चलूँगा. मै अपने सारे काम छोड़ के आऊंगा, और हम उसको एअरपोर्ट से बम्बई में घुसने नहीं देंगे. चिदम्बरम आएगा तो उसके साथ ये होगा और अगर मनमोहन सिंह आएगा तो उसके साथ भी यही होगा. और उनको बता दिया जाएगा कि तुम हो कौन? तुम वर्ल्ड बैंक और आई.एम.ऍफ़. के एजेंट लोग हो, तुमको इस पवित्र धरती पर कदम नहीं रखने देंगे. ये हम कर सकते है और ये एकता की ताकत है. बम्बई में जिस दिन आपको लगे कि चिदम्बरम आ रहा है आप राजीव दीक्षित को एक फ़ोन कर दीजिए, मै जहाँ भी रहूगा आऊंगा, आपका साथ अगर मिले, चिदम्बरम क्या चिदम्बरम के बाप को भी सबक सिखा दूंगा. कुछ नहीं है ये, पानी के बुलबुले है ये, आज है कल निचे आ जाएँगे, इनकी कोई हैसियत नहीं है. इनकी कोई ताकत नहीं है. तभी तक हैसियत और ताकत है जब तक वो आपको बेवकूफ बना लें. जिस दिन आप बेवकूफ बनना बंद हो जाएँगे उस दिन ये सारे चिदम्बरम ठीक हो जाएँगे. ये मै आपसे कह सकता हु.
( श्रोता गुजराती में बीच में –> एक बार जब लालू प्रसाद यादव बम्बई के एअरपोर्ट पर उतर रहे थे, तब हालाँकि तो ये अहिंसक है परन्तु इनकी अहिंसा ऐसी है कि कभी १ – २ घंटे और मिले शांति से तो ये आपको समझा दें कि मात्र १२ घंटे में अंदर ३०,००० लोगों के साथ ये सांताक्रुस के एअरपोर्ट पे पहुँच गए थे और लालू प्रसाद को खड़ी पूंछ (उलटे पांव) जाना पड़ा था, इतनी ताकत इनके अंदर भरी हुई है, आप इनको एक बार ऐलान करो, और क्या नहीं हो सकता है ये देख ले आप) .
राजीव भाई –> तो ये चिदम्बरम के साथ भी हो सकता है, अगर लालू के साथ हो सकता है तो सब के साथ हो सकता है. और मै आश्वस्त हूँ कि ऐसा हो जाए.
एक भाई ने पूछा है कि भारत में सब काम अंग्रजी में ही क्यों कराते है. और उसके निचे फिर उन्होंने उदाहरण के लिए लिखा है कि कम्पुटर वगेरह की ये भाषा जो है वो अंग्रेजी वाली क्यों है. मै आपसे कहता हु कि अंग्रेजी में काम करना इस देश में ऐसा माना गया है कि शान की बात है. ये गुलामी की बात है, इसमें कोई शान नहीं है उन्होंने हमारे ऊपर २५० – ३०० वर्ष राज किया, उन्ही की भाषा को ले के हम है. ये शान की बात है, ये दिमाग से निकलना है. और ये दिमाग से निकालने का काम हर क्षण चलना चाहिए, जैसे मै आपको उदाहरण दू छोटे छोटे, आप जब दस्तखत बनाते हो तो आपके मन में अक्सर ये लड़ाई चलनी चाहिए कि मै अंग्रेजी में बनाऊ, हिंदी में बनाऊ या गुजराती में बनाऊ. ये संघर्ष आपके मन में जब तक नहीं चलेगा तब तक अंग्रेजी जाएगी नहीं, ऐसे ही आप अपने बच्चो के नाम रखते हो तो डिम्पी, पिम्पल, ये डिम्पी पिम्पल होता क्या है? बॉबी, ट्विंकल ये सब ये सब जो है वाहियात बेवकूफी के नाम है. तो आपके मन में ये संघर्ष बराबर चलना चाहिए कि मै मेरे बच्चो के ऐसे बेहुदे अंग्रेजी वाले नाम नहीं रखूंगा. स्वदेशी, भारतीय भाषा के, गुजराती भाषा के हिंदी भाषा के नाम रखूंगा. तो ये लड़ाई हर व्यक्ति की है, जब भी आपका हाँथ दस्तखत करने के लिए बढे तो अपने आप से पूछिये कि आप अंग्रेजी में दस्तखत करने जा रहे हो या हिंदी में है गुजराती में, अगर आप अंग्रेजी में करने जा रहे है तो अपने आप को रोकिये और कहिए कि नहीं मै प्रयासपूर्वक हिंदी में या गुजराती में ही दस्तखत करूंगा. ये लड़ाई जिस दिन आपके घर से शुरु हो जाएगी आप इस देश में अंग्रेजी को विदा कर देंगे, ऐसा मुझे भरोसा है. हाँ, तो ऐसे ही हम सब अपने अपने व्यक्तिगत स्तर से करें ये अंग्रेजी वैसे ही जाएगी, मै इसके लिए एक ही वाक्य इस्तेमाल करूंता हु कि जैसे अंग्रेजो को इस देश से मार मारकर पिट पीट कर भगाया वैसे ही अंग्रेजी को मार मार के पिट पिट के भागना पड़ेगा. नहीं तो ये जाने वाली नहीं है. इसके लिए हम अपने व्यक्तिगत स्तर पर जहाँ तक संभव हो, जैसे उदाहरण मै दू, अंग्रेजी अख़बार खरीदना बंद कर दें, और इनको सबक सिखा दीजिए, और ये अंग्रेजी अख़बार करते क्या है? आप देखिए मै नाम ले के कह रहा हु, “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” किसका है? अशोक जैन का, क्या करता है? रोज “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” में किसी न किसी लड़की की आधी नंगी या पूरी नंगी तस्वीर आती है, रोज, रोज “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” में. और ये “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” वो अख़बार है जिसने हिंदुस्तान की संस्कृति का कबाड़ा कर दिया है. जानते है यही “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” है जिसने “भारत सुन्दरी”, “मिस इंडिया”, “मिस फेमिना” ये सारी प्रतियोगिताएं शुरु की, यही “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” ग्रुप. फ़ेमिना उन्ही की पत्रिका है, तो फ़ेमिना के माध्यम से उन्होंने “मिस फेमिना”, मिस इंडिया” चालू किया, अब वो “मिस इंडिया”, “मिस वर्ल्ड” और“मिस यूनिवर्स” हो गया है. और वो सारे उसी धंधे में लगे हुए है. और इसके पास कोई धंधा नहीं है, रोज का “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” आप उठा के देखिये, तो कभी पहले पेज पर इतनी बड़ी फोटो मिलेगी, कभी दुसरे पेज पर, जबकि इसकी कोई जरूरत नहीं है| न उसकी कोई खबर है, न हीं खबर से कोई लेना देना है, जबरदस्ती आधे नंगी लडकियों की तस्वीर पेश करना यही उसकी पत्रकारिता हो गई है. हाँ हाँ जो भी ऐसे अख़बार है, मै तो सबके लिए कहता हु कि इन अखबार वालों को कौन कण्ट्रोल करेगा? ये कोई भगवान के दूत नहीं है. ये मत मान लीजिए कि अख़बार वाले कोई भगवान के दूत है करप्शन मीडिया में भी है, पॉलिटिक्स में ही करप्शन नहीं है, इकॉनमी में ही करप्शन नहीं है, करप्शन मीडिया में भी है, तो कम से कम ऐसे अख़बार आप खरीदना बंद कर दो. तो सबसे पहले आप अगर कर सको तो “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” का बहिष्कार. और मै आपको गारंटी देता हु कि जिस दिन बम्बई में “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” की ५०,००० प्रतिया कम बिकना शुरु हो जाएंगी, अशोक जैन शीर्षासन करना शुरु कर देंगे. और जो आप कहोगे वो फिर अशोक जैन मानेंगे. तो इनको शबक सिखाने का एक ही तरीका है, कि जिस जिस के घर में “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” आता हो वो“टाइम्स ऑफ़ इंडिया” बंद करें और बकायदा “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” के एडिटर को चिट्ठी लिखिए कि हम आपका अख़बार बंद कर रहे है. क्यों कर रहे है? क्योंकि आप ये सब नग्नता फैला रहे है. एक तो अंग्रेजियत फैला रहे है, उपर से ये नग्नता और अश्लीलता. हमारी बहनों को, बेटियों को उल्टा सीधा छाप छाप के आपने जो है कबाड़ा कर दिया है हमारे घर का. तो ये कह के आप “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” बंद करिये. इनकी दो मिनट में इनको नानी याद आ जाएगी. जिस दिन ५०,००० प्रतिया कम हुई बिकना, उसी दिन आप देखिएगा अशोक जैन सर के बल चल के यहाँ आएगा. जिस दिन उनको, जबतक ये नहीं लगता कि हमारे ऊपर कोई खतरा है. और अगर सम्भव हो तो आपका कांदिवली का जैन समाज मै तो एक कदम आगे जा के कहता हु कि कल या हफ्ते भर बाद सम्भव हो तो होली के दिन “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” की होली जला दीजिए और इस बात को बाकायदा अख़बार में कहिये कि हम “टाइम्स ऑफ़ इंडिया” की होली जला रहे है क्यों? कि“टाइम्स ऑफ़ इंडिया” एक तो अंग्रेजियत फैला रहा है, दूसरा अंग्रेजियत से ज्यादा खतरनाक अश्लीलता और नग्नता फैला रहा है. तो अगर ये काम आप कर दोगे तो सारे देश के लिए खबर बन जाएगी. अगर आपकी बात वो नहीं सुनते है तो आपको असहकार आयर असहयोग करने का पूरा हक़ है, आप एक दिन ५ – ७ हजार कोपियाँ ले के यहाँ कहीं जला दीजिए “मिड डे” के और “मिड डे” वालों को सबक सीख में आ जाएगा, जिस दिन दुसरे अख़बारों में ये खबर छप जाएगी कि“मिड डे” की होली जलाई कांदिवली के हैं समाज ने. क्यों जलाई?
श्रोता –> वो कर देते है, लेकिन आप आओ, बिंदास कर देते है.
राजीव भाई –> बिलकुल, मै इस काम में आपके साथ हु, जिस दिन आप ऐसे अख़बारों की होली जलाएँगे, मै आपके साथ बराबर इस काम में खड़ा रहूँगा. तो आप जिस दिन मुझे बुलाएँगे कि राजीव भाई, आज होली करनी है, मै आपको गारंटी से कह रहा हु कि मै सारे काम छोड़ के आऊंगा क्योंकि ऐसे काम करना इस समय बहुत जरूरी है. इनको सबक सिखाना बहुत जरूरी है.
एक भाई ने सवाल किया है कि इस देश को राजीव गाँधी जैसा प्रधानमंत्री मिलता है लेकिन राजीव दीक्षित जैसा वड़ा प्रधान नहीं मिलता है. इस सवाल का मै जवाब नहीं देना चाहता. जिस भाई ने भी पूछा है ये पर्सनल सवाल है उनको मै व्यक्तिगत रूप से जवाब दे दूंगा.
श्रोता –> नहीं नहीं, आप जब पी.एम्. बनेंगे तभी हम बोलेंगे कि इनका लेक्चर हमने कन्दिवली में सुना था
राजीव भाई –> ऐसा सम्भव नहीं है, वो मै आपको बता दू इस खुशफहमी में आप मत रहिये, राजीव दीक्षित जो विदेशी कम्पनियों के पीछे डंडा ले के घूमता है वो पी.एम्. नहीं बन सकता है. क्योंकि विदेशी कंपनी वाले जानते है कि ये आदमी अगर २४ घंटे के लिए भी पी.एम्. बन गया तो कुछ करे ना करे सारे मल्टीनेशनल को हिंदुस्तान से विदा कर देगा. इसलिए वो लोग अपनी पूरी ताकत लगाएंगे और मुझे मालूम है कि ऐसे लोगों को वो टिकने नहीं देंते, ये राजीव दीक्षित का सवाल नही है कोई भी एक्स.वाई.जेड. हो. इसलिए इस खुशफहमी में आप मत रहिए, हाँ, इस देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के खिलाफ कोई बड़ा आन्दोलन खड़ा हो और उसमे मेरी जान भी चली जाये तो भी मुझे कोई वांधा नही है, मुझे लगेगा कि मेरा जन्म सार्थक हो गया. प्रधानमंत्री बनने से ज्यादा बेहतर है कि इस देश में किसी विदेशी कंपनी के खिलाफ लड़ते हुए मै मर जाऊ, ये मेरे दिल की अपनी तमन्ना है.
पहला सवाल जो पूछा है मुझसे कि यूनियन कार्बाइड वाली जो दुर्घटना हुई थी उसका सच क्या है? यूनियन कार्बाइड वाली दुर्घटना के बारे में सारे देश को ये बताया गया है कि ये अचानक से भोपाल में उनके कारखाने से गैस रिस गई है, मिथाइल आइसोसाईनेट और लोग मर गए, लेकिन उस यूनियन कार्बाइड के काम में बहूत गहरे मै उतरा, और इस कंपनी के बारे में बहुत केस स्टडी का काम मैंने किया, मेरे विद्यार्थी जीवन में. और सच ये है कि भोपाल के कारखाने में ३ दिसम्बर १९८४ की रात को जो जहरीली गैस निकली थी वो अपने आप नहीं निकली थी, वो बाकायदा एक्सपेरीमेंट किया गया था. भोपाल दुर्घटना एक्सीडेंट नही था वो एक एक्सपेरिमेंट था. और वो एक्सपेरिमेंट क्या था, यूनियन कार्बाइड अमेरिका की कंपनी है, और दुनिया में ऐसे अमीर देशो की ढेरों कम्पनिया है जो हथियार बनती है, आपके देश में ये कम्पनियां आती है, साबुन बेचती है, मंजन बेचती है, जुटे चप्पल बेचती है, लेकिन ये कम्पनियां अपने अपने देशों में बहुत ज्यादा हथियार बनती है. और अमेरिका जैसे देश की आमदनी का सबसे बड़ा हिस्सा हथियार की बिक्री से आता है, इस देश की पुरे की पूरी इकॉनमी, अमेरिका की पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था हथियारों के व्यवसाय पर टिकी हुई है. तो हथियारों का व्यवसाय चलना चाहिए, ये उनकी हमेशा की जरुरत रहती है. तो हथियारों का व्यवसाय कब चल सकता है, दो ही तरीके से चलता है, या तो दो देशों के बीच युद्ध चल रहा हो, और उस युद्ध में वो हथियार बेंचे जाए, एक तरीका तो ये हो गया. दूसरा तरीका ये होता है कि अगर दो देशों के बीच ना हो कर सारी दुनिया में कोई युद्ध चल रहा हो, और उसमे हथियार बेंचे जाये. और आज के ज़माने में सारी दुनिया में एक अघोषित युद्ध चल रहा है जिसको आप आतंकवाद कहते हो, ये जो आतंकवाद के लोगों को, जो भी लगे हुए है उसमे, चाहे वो कश्मीर में हो, चाहे वो आसाम में हो, चाहे वो नागालैंड में हो, चाहे त्रिपुरा में हो, चाहे मणिपुर में हो या किसी भी दुसरे देश के दुसरे हिस्से में हो, इन सारे बड़े बड़े आतंकवादियों को हथियार भेजने का काम ऐसी ही कम्पनियां करती है. एक बंदूक है आपने उसका नाम सुना होगा ए.के.४७, ये जो ए.के.४७ नाम की बंदूक है ये अमेरिका की कंपनी की बनाई हुई है. और ये हिंदुस्तान में कैसे आती है, पहले अमेरिका की कम्पनियां उसको चीन में बेंचती है, चीन उसको पाकिस्तान को देता है, और पाकिस्तान के माध्यम से फिर हिंदुस्तान में आती है. और हर साल अमेरिका और यूरोप के बहुत सारे देश लाखों करोड़ो रूपये का हथियार का व्यावसाय करते है. और हथियार दो तरह के होते है. एक तो वो हथियार होते है, जो बंदूक की तरह के है, तोप, गोला, बारूद की तरह के, लेकिन आज की दुनिया में कुछ खतरनाक किस्म के भी हथियार बनते है, जिनको हम केमिकल बम कहते है. और ये जो केमिकल बम होते है, वो केमिकल बम तोप के गोले से कुछ भिन्न तरीके के होते है. उनमे जहरीली गैसे भरी जाती है, और वो जहरीली गैसे, जब बम फटता है तो पुरे वातावरण में फ़ैल जाती है, और वो वातावरण में जो भी आदमी सुंघेगा उस गैस को वो मर जाता है. तो तोप के गोले से ज्यादा असरकारक होता है केमिकल बम. और अमेरिका की ढेरों कम्पनियां केमिकल बम बनती है. और उन केमिकल बम को बनाने के लिए दो तीन जहरीली गैसे इस्तेमाल होती है, एक गैसे है उसका नाम है फ़ोस्जीन, दूसरी गैस है उसका नाम है मिथाइल आइसोसाईनेट, और ऐसी ही दो तीन और भी गैसे है. तो ये जो भोपाल के कारखाने से जो गैस निकली थी वो मिथाइल आइसोसाईनेट थी. और मिथाइल आइसोसाईनेट गैस का ये टेस्ट करके देखना हो कि ये कितने लोगों को मार सकती है, ये अमेरिका में नहीं किया जा सकता था. क्योंकि अमेरिका में वो मानते है कि लोगों के जिन्दगी की कीमत बहुत है. इसलिए अमेरिका में नहीं कर सकते. और अमेरिका में ही नहीं कर सकते, अमीर देशों में कहीं भी नहीं कर सकते इस तरह के एक्सपेरीमेंट, कारण क्या है? कारण उसका एक सीधा सादा है कि उनके पर्यावरण के कानून बहुत शख्त है, और सरकारों ने कुछ ऐसी व्यवस्थाऐ बनाई है कि वहां के लोगों की हत्या नहीं होनी चाहिए, कोई भी एक्सपेरीमेंट करें. तो ऐसी कम्पनियां, ऐसे प्रयोग करने के लिए, जहरीली गैसों के प्रयोग करने के लिए हिंदुस्तान जैसे देशों को तलाशती है. और यही हुआ था भोपाल में. मिथाइल इसोसाईनेट गैस निकली और एक रात में १०,००० लोग मर गए, और पिछले १२ साल में ५ लाख से ज्यादा लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए है. अभी भी मौत का तांडव चलता है भोपाल में, अभी भी लोग मरते है उस जहरीली गैस के असर से. वो उन्होंने बाकायदा खूबसूरत प्रयोग कर के देखा, और इसी प्रयोग के बाद फिर अमेरिका की फौजों ने और यूरोप के देशों की फौजों ने केमिकल बम गिराए इराक के ऊपर जब खाड़ी युद्ध हुआ. खाड़ी युद्ध में वही गैसों के जहरीले बम, वही केमिकल बम उन्होंने गिराए और उनको बराबर उसके परिणाम मिले, लेकिन बम गिराने के पहले के जो प्रयोग किये गए वो हिंदुस्तान जैसे देशों में, ब्राज़ील जैसे देशों में, चिली और कोस्टारिका जैसे देशों में, कोलंबिया जैसे देशों में, ऐसे गरीब देशों में जहाँ की सरकारें बिकाऊ होती है, वहां पर इस तरह के एक्सपेरीमेंट किये जाते है. तो जो भोपाल में जो कुछ भी हुआ था वो ऐसे ही कोई दुर्घटना नहीं है, वो हिंदुस्तान के लोगों पर किया गया एक्सपेरीमेंट था. और ये एक्सपेरीमेंट आगे और बढ़ेंगे, ऐसे ढेरों एक्सपेरीमेंट किए जा रहे है. कोई विदेशी कंपनी आई है, हिंदुस्तान में दवा बेंचती है और वो दवा दुनिया के किसी भी देश में नहीं बिकती, अभी तक उस दवा के ऊपर कोई क्लिनिकल टेस्ट नहीं किया गया, कोई क्लिनिकल ट्राई नहीं किया गया है, लेकिन यहाँ के लोगों के ऊपर उस दवा का क्लिनिकल टेस्ट, और क्लिनिकल ट्रायल हो रहा है, उस दवा का नाम है नोरप्लांट, बहनों के ऊपर हो रहा है, ये दिल्ली में चल रहा है. और दिल्ली के सारे डॉक्टर जानते है कि इस दवा का क्लिनिकल टेस्ट कहीं हुआ नहीं है, उसको हिंदुस्तान में भेजा गया है. और ऐसी ही एक नहीं, शायद आप लिस्ट बनाये तो सैकड़ो दवाए है, जिनको दुनिया के तमाम देशों ने जहर घोषित किया है वो हिंदुस्तान में धड़ल्ले से बिकती है, और ऐसी कम्पनियां ले के आteते है.
ब्रिटेन में नहीं चलती, ऐसी तकनीकों को ला के हिंदुस्तान में डंप कर रहे है, और आप को मै बताऊ, ये जो बम्बई है और बम्बई के बाजु में पूरा गुजरात है. मै aaआज आपसे ये कह रहा हूँ कि अभी तो सिर्फ एक भोपाल बना है हिंदुस्तान में, गुजरात में तो ५० से ज्यादा ऐसे भोपाल बन गए है. आपको मालूम है ये भोपाल, गुजरात की कहानी क्या है? ये गुजरात एक ज़माने में कृषि प्रधान प्रदेश था, आज पूरा का पूरा प्रदेश केमिकल इंडस्ट्री वाला प्रदेश बन गया है. मै जब भी बड़ोदा से गुजरता हु, जब भी भरूच और अंकलेश्वर से मेरी ट्रेन गुजरती है, सर में चक्कर आने लगते है. बड़ोदा के लोग मुझसे बताते है, मै जाता हूँ बड़ोदा, पानी वहां का जहरीला हो गया है, जमीन के निचे से निकलने वाला पानी जहरीला हो गया है. और ऐसे ६० से ज्यादा प्रोजेक्ट गुजरात में चल रहे है, जो टेक्नोलॉजी आई है विदेशों से वो दुनिया के सारे देशों में रद्द कर दी गई है, बैन कर दी है, वो टेक्नोलॉजी गुजरात में लाई गई है. तमाम जगहों पर उसके कारखाने चल रहे है और और पर्यावरण का प्रदुषण ही नहीं बढ़ रहा, लोगों के मौत की तयारी चल रही है. किसी भी दिन आपको पता चलेगा कि दूसरा भोपाल कहीं बड़ोदा में बनेगा, या बड़ोदा के आस पास बनेगा. और एक बार बच चूका है, बड़ोदा के पास जो बड़ा प्रोजेक्ट है, केमिकल टेक्नोलॉजी वाला, एक बार उसमे ऐसी दुर्घटना हुई है, भगवान की कुछ ऐसी कृपा थी कि उस दिन हवा जो थी वो बड़ोदा के बाहर की तरफ बह रही थी अगर हवा बड़ोदा शहर के अन्दर की तरफ बह रही होती तो बड़ोदा नहीं रहता. इतने खतरनाक प्रोजेक्ट इस देश में है. ये सब टेक्नोलॉजी के नाम पर लाये गए है. ऐसे जगह जगह विनाश के कारखाने खड़े किये जा रहे है. और ये सारी की सारी केमिकल इंडस्ट्रीज वहां से बंद की जा रही है, यूरोप के देशों में, अमेरिका के देशों में, और उसको हमारे यहाँ आ के लगा रहे है. मुझे दुःख बहुत है अपने दिल में भोपाल का क्योंकि १२ साल हो गया है अभी तक किसी को न्याय नहीं मिला है. हमारे जैसे लोग १२ साल से, मै तो मेरे विद्यार्थी जीवन से से मांग कर रहा था कि वारेन एंडरसन, जो यूनियन कार्बाइड कंपनी का सबसे बड़ा ऑफिसर है, उसको ला के हिंदुस्तान में गिरफ्तार कर के मुकदमा चलाया जाना चाहिए, लेकिन आज तक किसी सरकार को फुरसत नहीं है उसको गिरफ्तार करने की. इस देश में न्याय की पद्धिति क्या है? आपकी आँखों के सामने, मेरी आँखों के सामने हजारों लोग मरे है, लाखों लोग मर रहे है, लेकिन उनको हम न्याय नहीं दे पा रहे है. ये कैसा न्याय है. ये भोपाल में हुआ है और अगले तमाम जगहों पर होने की तयारी है इसीलिए मै आपको चेतावनी दे रहा हूँ कि ये भोपाल एक नहीं है, हिंदुस्तान में ६० – ७० भोपाल बन सकते है किसी भी दिन. जिस दिन वहां वहां इस तरह के एक्सपेरिमेंट होने शुरु हो जाएँगे उस दिन वो भोपाल जो जाएँगे. क्योंकि वो मानते है कि हम और हमारे जैसे लोग तो विदेशी कम्पनियों की लेबोरेटरी के चूहें है हमारी तो कोई औकात नहीं है, हमारी तो कोई हैसियत नहीं है, मरे तो मर जाये, और इससे ज्यादा दुःख तो मुझे दूसरी बात का होता है कि भोपाल में जो हजारों लोग मर गए, हमारे दिल में कोई हलचल नही हुई. सारे देश में शांति के साथ इसको देखा गया. सरकार बिक जाती है, समझ में आता है, कोर्ट कुछ नहीं करता, समझ में आता है. लेकिन देश एक लोग इतने मरे हुए है कि मेरा भाई मर गया है, मेरे पडोसी मर गये है, लेकिन हमारी आँखों का पानी नही निकला, जानते है ये क्यों हुआ है, मै मेरे भाषण में कहता हु कि ये दुर्घटना नही है, भोपाल एक चेतावनी है, अगले कुछ वर्षो में अगर हम नहीं जगे, तो हिंदुस्तान में जगह जगह भोपाल बनेंगे.
दूसरा सवाल यहाँ पर पूछा था कि आप चुनाव क्यों नहीं लड़ते? और मेरा जवाब मै आपको बता दू कि अगर मै चुनाव लड़ के पार्लियामेंट में पहुँच भी जाऊ, तो ये पार्लियामेंट मेरा नही है, ये पार्लियामेंट उनका है, ये पार्लियामेंट्री डेमोक्रेटिक सिस्टम मेरा नहीं है, स्वदेशी नहीं है, ये विदेशी तंत्र है, और इस विदेशी तंत्र में आप किसी भी अच्छे से अच्छे आदमी को भेज दीजिए, वो वही करने वाला है जो हो रहा है. इसको एक उदाहरण से समझिये. हमारे यहाँ पता है क्या होता है? और तीसरे सवाल का जवाब भी इसी में आ जाएगा कि ये भाजप अपनी है कि नहीं है. क्या होता है कि ये पूरी की पूरी व्यवस्था एक मोटरगाड़ी की तरह है आप ड्राईवर बदलते जाते हो लेकिन कार वही चलती जाती है. एक ड्राईवर बदला, दूसरा आया, दूसरा बदला तीसरा आया, तीसरा बदला चौथा चला आया, चौथा बदला पांचवा आया, लेकिन आप दुर्भाग्य से वो कार नहीं बदल रहे हो ड्राईवर बदल रहे हो, तो कार को जो करना है वो करने वाली है. और धीरे धीरे एक दिन आपको ये समझ में आएगा कि अभी तक तो वो इंडियन ड्राईवर से काम चला रहे है, चार पांच साल और रुक जाइए, इंडियन ड्राईवर को निकाल बाहर कर देंगे, खुद बैठने वाले है स्टीयरिंग सीट पे, जो मैंने बताया आपको के पार्लियामेंट में वो पहुचने वाले है, तो आपके ड्राईवर की भी जरुरत नहीं है. इसलिए कोई पार्टी आपकी हो नहीं सकती. और इस पर बहुत गम्भीरता से सोंचीये कि क्या हमको पार्लियामेंट्री डेमोक्रेटिक सिस्टम चाहिए? और मै आपसे पुरे गंभीरता से कह रहा हूँ कि दुनिया के उन तमाम देशों में जहाँ पर पार्लियामेंट्री डेमोक्रेटिक सिस्टम चल रहा है, फेल हो गया है. किसी भी देश में, चाहे अमेरिका में, चाहे ब्रिटेन में, चाहे जर्मनी में, चाहे फ़्रांस में, हर देश में क्राइसिस है पॉलिटिक्स में. और वो क्राइसिस इस सिस्टम की है, और वही सिस्टम हम चला रहे है. तो इस पार्लियामेंट्री डेमोक्रेटिक सिस्टम में आप बिलकुल उम्मीद मत करिये, कांग्रेस को हटा दीजिये, जनता दल आ जाएगा, जनता दल को हटा दीजिए सी.पी.एम. को ले लाइए, सी.पी.एम. को हटा दीजिये बी.जे.पी. को ले आइये, काम सबके वैसे ही होने वाले है. और नहीं हो तो कर के देख लीजिये आप, गुजरात में तो आपने सारे प्रयोग किये, देख लीजिये अब, हमारी आँखों के सामने है. महाराष्ट्र में तो प्रयोग चल ही रहा है, राजस्थान में प्रयोग चल ही रहा है, आप तीनो प्रदेशो में से कोई एक प्रदेश बता दीजिये जहाँ विदेशी कंपनीयां नहीं आ रही है. या इनकी सरकारें कुछ और काम कर रही हो पुरानी सरकारों से अलग. सब तो एक ही तरह का काम कर रही है. और मै तो कभी कभी ये बात गम्भीरता से कहता हूँ लेकिन मजाक की बात है. मै कहता हु कि हर पार्टी का चुनाव घोषणापत्र उठा लीजिये आप, और उसका कवर पेज फाड़ दीजिये, और उसके बाद गड्ढ़ मडढ कर दीजिये, और मै आपको दे दूँ, आप बता नहीं सकते है कि कौन सा घोषणापत्र किस पार्टी का है. सबके चुनाव घोषणापत्र एक जैसे है, फर्क बस इतना है कि किसी के चुनाव घोषणापत्र में कोई बात पेज नंबर १ पर होगी तो दूसरी पार्टी के चुनाव घोषणापत्र में पेज नंबर १० पर होगी, किसी में वो बात पेज नंबर १५ पर है तो किसी में पेज नंबर ४० पर हो जाएगी. इससे ज्यादा कोई फर्क नहीं है. कोई क्वालिटी का फर्क नहीं है. और मै तब आपसे कह रहा हूँ कि हमको गंभीरता से विचार करना चाहिए कि ये संसदीय लोकतंत्र हमको चाहिए क्या? और अगर ये संसदीय लोकतंत्र चाहिए तो इसके स्वरूप के बारे में तय करिए. मै बहुत गंभीरता से इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ पिछले कुछ वर्षो में, हो सकता है कि मेरा निष्कर्ष गलत हो मै ये नहीं कहता हूँ कि यही एक आखिरी सच है, मै मानता हूँ की हिंदुस्तान से पार्टियों का शासन ख़त्म करना पड़ेगा. इन पार्टियों को हटाना पड़ेगा. जानते है क्यों? मै मेरे घर का उदाहरण देता हु, बिलकुल ताजा उदाहरण है, उत्तर प्रदेश में चुनाव हुआ, चुनाव हुआ तो मेरे पिताजी ने मुझे फ़ोन किया, मै एक जगह गया हुआ था ऐसे ही व्याख्यान करने, मेरे पिताजी ने फ़ोन किया, क्या फ़ोन किया कि तुमको घर आना है. मैंने कहा किसलिए, तो वोट डालना है. चुनाव आ गया, वोट डालना है तो मैंने कहा क्यों वोट डालें, ये तुम्हारा बहुत पवित्र काम है वोट डालना. तो मैंने कहा कि कहे को आये घर पे, तो उस दिन मै बताऊ आपको कि ३५ मिनट मेरे पिताजी फ़ोन पर बात करते रहे एस.टी.डी. पे, और मुझको समझाते रहें अंत में उन्होंने कहा कि तुमको इसलिए आना है कि कांग्रेस को वोट डालना है. थोड़ी देर के बाद मेरी माँ ने उनके हाँथ से फ़ोन छीन लिया. मेरी माँ कहने लगी कि तुमको घर इसलिए आना है कि वोट भाजपा को डालना है. मेरा भाई भी था उनके साथ वहां फ़ोन पे, तो उसने कहा कि भैया आपको इसलिए आना है यहाँ पे कि न हम भाजपा को वोट देना चाहते है न हम कांग्रेस को वोट देना चाहते है, हम किसी इंडिपेंडेंट को वोट देना चाहते है. मेरा एक घर है, उस घर में मेरे पिताजी कहते है कि कांग्रेस को वोट डालो, मेरी माँ कहती है कि भाजपा को वोट डालो, मेरा भाई कहता है कि इंडिपेंडेंट को वोट डालो. मै कहता हूँ कि वोट डालने की जरुरत ही नहीं है वो पद जाएगा वैसे ही. मै जाऊ या न जाऊ वो वोट पड़ने वाला है. तो ये जो तंत्र है, इसने जानते है नतीजा क्या पैदा किया? मेरा एक घर, जिसमे मै, मेरी माँ, मेरा भाई, मेरे पिताजी ४ हिस्सों में बटें हुए है. एक कहता है भाजपा, दूसरा कहता है कंग्रेस, तीसरा कहता है इंडिपेंडेंट, चौथा कहता है कि वोट ही मत डालो, माने मै मेरे घर की हैसियत के हिसाब से एकता कायम नहीं रख सकता. घर के चार हिस्से हो गये है, ये हर घर है. एक भाई भाजपा में, दूसरा कांग्रेस में, तीसरा जनता दल में, चौथा सी.पी.एम. में, पांचवा सी.पी.आई. में, जानते है अंग्रेजों ने इस देश को कैसे तोडा था? साम, दाम, दंड, और भेद, तो साम से तोड़ नहीं पाए, दंड से तोड़ नहीं पाए, भेद की निति बराबर चली, और भेद किया समाज के हर हिस्से में, पुरे समाज को बांट दिया, और पुरे समाज को बांट के हिंदुस्तान को तबाह कर दिया. जो भेद की निति अंग्रेजों ने अपनाई इस देश में, आज का पोलिटिकल सिस्टम वही भेद की निति अपना रहा है. घर घर में क्राइसिस खड़ी हो रही है, कि तुम इस पार्टी में जाओ, कि तुम उस पार्टी में जाओ, और हम एक देश की हैसियत से, उदेश्य सबके बराबर है, लेकिन लड़ाई लड़ रहे है अलग अलग, और मै जनता हूँ कि मेरा वोट मैंने जिस पार्टी को दे दिया, सत्ता में आने के बाद वो मुझको भूल जायेंगे, नमस्कार भी नहीं करंगे, उसके पहले तक मेरे घर पे आएँगे, हाँथ जोड़ेंगे, पैर छुएंगे, गधे को बाप बना लेंगे, क्योंकि वोट चाहिए, और वोट मिल जाएगा तो पांच साल तक शक्ल दिखाई नहीं देगी आपको. तो ये पोलिटिकल सिस्टम अपना है नहीं, ये तो अंग्रेजो ने हमको बर्बाद करने के लिए दे दिया. और इस पोलिटिकल सिस्टम को अगर आप और आगे चलाएँगे तो समाज और ज्यादा टूटेगा. मेरा जो दर्द है वो दर्द ये है कि समाज टूट रहा है, पॉलिटिक्स उस पर चल रही है. समाज में विभाजन हो रहा है, घर घर में टूटन हो रही है, पॉलिटिक्स उस पर चल रही है. और वो पॉलिटिक्स किसी बड़े उदेश्य के लिए होती तो मेरे समझ में आता, अब सबका उदेश्य सिर्फ सिमित रह गया है कि किसी तरह सत्ता हासिल कर लो, और सत्ता सुख भोग लो, ज्यादा से ज्यादा उससे ज्यादा क्या है कि हमारे पास ब्लैक कैट कोमंडोस हो जाएँगे, वही हमारा स्टेटस सिंबल है, एक बार मिनिस्टर हो जाएँये, ब्लैक कैट कोमंडोस हो जाएँगे. और सब वही कर रहे है, इस देश में अगर आप जननेता हों, इस देश के अगर आप लोकनायक हों तो ये ब्लैक कैट कोमंडोस की क्या जरूरत है, और मान लो कोई आपको मार भी देगा तो ठीक है, तैयारी रखिये मरने की, हाँ? क्यों डरते है मरने से, और ये तो वो देश है जहाँ बार बार जन्म की कल्पना है, मुझे तो अगला भी जन्म मिलने वाला है, तो कहे को चिंता कर रहे है कि मर जाएँगे अगली बार हो सकता है कि फिर नेता बन के पैदा हो जाएँगे आप. तो मरने की तयारी है नहीं और बड़ी बड़ी बातें करेंगे कि हम समाज के जन नेता है, लोक नेता है, और मै आपको ये बता सकता हूँ कि ये जो ब्लैक कैट कोमंडोस की व्यवस्था है, दुनिया की कोई भी ताकत लगा दीजिए, अगर आपको कोई मारने वाला पैदा हो गया तो बच नहीं सकते है. अगर बचाने वाला होता तो इंदिरा गाँधी का क्या हुआ? अगर बचाने वाले होते तो राजीव गाँधी का क्या हुआ? कुत्ते की तरह से मारे गये दोनों के दोनों. तो अगर आपको कोई मारने वाला पैदा हो गया है तो छोड़ दीजिये, और फिर हमारे यहाँ तो है जिसको प्रभु रखता है उसको कौन मार सकता है? और जब प्रभु ने तय कर लिया है तो आपको बचा कौन सकता है? तो इतनी तयारी रख के काम करिए. भारतीय की संस्कृति में कभी मरने से डर नहीं रहा है किसी को, और ये आज सबसे ज्यादा डरपोक नेता पैदा हो गए है, ब्लैक कैट कोमंडोस ले के, आगे पीछे घूमते है जब, बड़ा रौब पड़ता है. माने लाखों करोड़ो रुपया बर्बाद करते है, ये पार्लियामेंट्री डेमोक्रेटिक सिस्टम के नतीजे है और दुनिया में मैंने नहीं देखा, सारी दुनिया तो मैंने नहीं देखी, लेकिन कुछ देश तो देखे है, किसी भी देश में, एम्.पी.ज को घर नहीं दिए जाते है रहे है, लेकिन यहाँ है, महल है उनके पास, किसी देश में नहीं हैं, ब्रिटेन में नहीं है, फ़्रांस में नहीं है, जर्मनी में नहीं है, स्वीडेन में नहीं है, अमेरिका में नहीं है. एम्.पी.ज को रहने के लिए कोठीयां नहीं मिलती है सरकार की तरफ से, उनको किराये के घरों में रहना होता है या तो अपने घरों में रहना होता है. ये अंग्रेजों ने व्यवस्था डाली हिंदुस्तान में, और अंग्रेजों की डाली हुई व्यवस्था आज भी चल रही है. एक एक एम्.पी. के पास दो दो घर हैं, तीन तीन घर है, एक घर पार्टी को दे रखा है, एक घर अपने लिए, काहे के लिए भाई? किराये के घर में रहिए. और इनको आप कहते हो कि ये सब समाजसेवी है? तनख्वाह ले के काम करने वाले क्लर्क हो गए है सब के सब, ये नेता अपना टी.ए. बढ़ाना हो, अपना डी.ए. बढ़ाना हो तो पूरा पार्लियामेंट एक हो जाये, puchhiपूछिये जरा इनसे, कोई एक पार्टी माई की लाल थी जो जब ये डी.ए. बढ़ने की बात हुई थी पार्लियामेंट के अंदर, अपने भत्ते बढ़ने की बात आई थी पार्लियामेंट के अन्दर, सारे पार्टी के एम्.पी.ज एक हो गये और फटाफट बिल पारित हो गया. और यहाँ तक नहीं, व्यवस्था यहाँ तक कर ली है कि अगर आप एक बार घुस गये पार्लियामेंट में, तो जनम जिन्दगी आपके नाती पोतों को भी पेंशन मिलती रहे, काहे के लिए भाई? एक तरफ कहोगे कि हम जननेता है, एक तरफ कहोगे हम जननायक है, दूसरी तरफ तनख्वाह ले के काम करने की तुम्हारी स्थिति बनी हुई है. तनख्वाह ले के काम तो क्लर्क करता है, जननेता तो नहीं करता इस देश में काम, जो कहें, पार्टी में घोषणा करें कि हमारे एम्.पी.ज तनख्वाह नही लेंगे. तो आप कहोगे कि भरण पोषण की व्यवस्था वो हम करेंगे, समाज के लोग करेंगे, इस देश में तो हमेशा से व्यवस्था रही है कि जो समाजसेवा के काम में निकलता है, समाज उसकी व्यवस्था करता है. ये कोई आज की बात थोड़ी ही है, हजारों सालों से यही चला आया है इस देश में. जिन्होंने समाजसेवा का काम किया है, समाज ने उसकी व्यवस्था की है, तो ये जो पॉलिटिशियनस कहते है कि हम समाजसेवा कर रहे है, छोडिये अपनी सारी व्यव्स्थाए, समाज आपकी व्यवस्था करेगा, आप देश चलाने का काम करिए. लेकिन ये तो सब वेतन भोगी हो गये है, भत्ते वाले हो गये है, टी.ए., डी.ए. इनके बढ़ने चाहिए, ऐसे जैसे दुसरे लोगों के बढ़ते जाते है. और बराबर बढ़ते चले जा रहे है. अभी नया कमीशन बैठा दिया है, तो उस पे कमीशन के माध्यम से अधिकारीयों की तनख्वाह बढ़ेगी, तो एम्.पी., एम्.एल.ए. की भी तनख्वाह बढ़ाने का काम चालू है. ये काहे का पोलिटिकल सिस्टम, इसलिए दोस्त मै, इस पोलिटिकल सिस्टम में जाने का माने इस देश से गद्दारी समझता हु. इसलिए मै चुनाव नही लड़ रहा. और मै आपको एक बात और बता दू कि चुनाव लड़ के पार्लियामेंट में जा के कभी क्रांति नहीं हो सकती है. मैंने बड़े बड़े दिग्गजों को देखा है, मैंने मेरी आँखों से देखा है. जो बड़े बड़े दिग्गज है जो अपनी आँखों में सपने ले के, क्रांति के, बगावत के, ये, वो, और यही दिग्गज बड़ा झंडा ले के १९७७ में पहुंचे थे पार्लियामेंट में. आपको मालूम है, बहुत बड़ा आन्दोलन हुआ था इस देश में, जे.पी. आन्दोलन, जयप्रकाश आन्दोलन, और उसमे बड़े बड़े क्रन्तिकारी लोग थे, ऐसे ऐसे क्रन्तिकारी लोग थे जो बड़ोदा डाईनामईट केस के अपराधी थे, और इस देश के नौजवानों में सरफरोसी पैदा करते थे, जैसे ही पार्लियामेंट एक अन्दर घुसे, उनकी सारी तेजश्विता नष्ट हो गयी, आज वो किसी काम के नहीं रहे, सिवाय इसके कि कभी इस पार्टी का पल्ला पकड़ो, या उस पार्टी का पल्ला. पूरी ताकत उनकी जिन्दगी की अब इसी काम में जा रही है. ऐसे क्रांतिकारियों को हमने देखा है जो आग उगलते थे, जब तक पार्लियामेंट के अन्दर नहीं गये थे, और अब पार्लियामेंट में जाने के बाद मुह सुख गया है उनका, जवाब नहीं दे सकते है अगर उनसे सवाल पूछे तो. तो उस पार्लियामेंट में कुछ है नहीं. और जे.पी. की एक बात मुझे बराबर याद रहती है, कि ये पार्लियामेंट में बैठे हुए लोग कुत्ते की से तरह सुखी हड्डियाँ चूस रहे है. तो मै कुत्ते की तरह से सुखी हड्डी चुसने के लिए परिअमेंट में नहीं जाना चाहता. और मुझे भरोसा है कि इस देश में अगर क्रांति होगी तो पार्लियामेंट के बाहर होगी, पार्लियामेंट के अन्दर नहीं होगी. पार्लियामेंट के बाहर क्रांति होगी, और मै ज्यादा नहीं कहता, १ – २ लाख नौजवान मिल जाये, कमिटमेंट वाले, जिनको मरने से डर नहीं लगता, और ऐसे नौजवान जिनको मरने से डर नहीं लगता, वो मेरी डायरी में अपना नाम लिख दें, ज्यादा नहीं कहता, १ – २ लाख चाहिए, इस देश की सारी व्यवस्था बदल देंगे, ये बिलकुल मुश्किल काम नहीं है, कमिटमेंट वाले १ – २ लाख लोग हो जाये, सारी व्यवस्था बदल जाएगी, हमने तो दुनिया में देखा है मुट्ठी भर लोगों ने व्यवस्थाए बदली है. फ़्रांस का रिवोल्युसन हुआ था १७ लोग थे बस, और उन १७ लोगों ने पुरे फ़्रांस को बदल दिया. जर्मनी में क्या हुआ था, हिटलर एक अकेला था, सारा देश खड़ा कर दिया था. कहीं भी देखिये दुनिया में, कुछ कमिटमेंट वाले लोग, शर्त एक ही है, जिनको मरने से डर नहीं लगता, ऐसे कमिटमेंट वाले लोग चाहिए, ये पार्लियामेंट क्या दुनिया की सारी व्यवस्थाए बदल सकती है. और वो पार्लियामेंट के बाहर से होता है, पार्लियामेंट के अंदर से नहीं होता है.
और आखरी सवाल का जवाब एक लाइन में, जैसे कांग्रेस है, जैसे जनता दल है, जैसे सी.पी.एम्. है, जैसे सी.पी.आई. है, वैसे ही भारतीय जनता पार्टी है. उसमे और बाकि पार्टियों में मेरे हिसाब से कोई फर्क नहीं है. वो भी सत्ता की लड़ाई में वैसे ही शामिल हो गये है जैसे दूसरी पार्टियाँ वाले शामिल है. उनको भी अब सत्ता ही दिखाई देती है, न आदर्श दिखाई देते है, न अपनी घोषणाए दिखाई देती है जो सत्ता के पहले वो करते थे. वहां पहुँच के तो भाषा ऐसी हो गई, आपने देखा है, पार्लियामेंट में जो १३ दिन की डिबेट चल रही थी, क्या क्या समझौते करने की तयारी हो चुकी थी, एक कुर्सी के लिए, अपनी सारी आइडियोलॉजी उठा के कूड़े में फेंक दिया, एक कुर्सी के लिए. ये उनके अंदर भी आ गया है, इसलिए उनमे और बाकि पार्टियों में कोई फर्क नहीं है. और मै आपसे एक निवेदन और कर दू आप जितने दिन पार्टियों के चक्कर में रहेंगे, उतना ही अपना नुकसान करेंगे, देश का नुकसान करेंगे. इन पार्टियों का चक्कर छोड़ दीजिये. पार्टियों का चक्कर छोड़ कर देश के चक्कर में पड़िए. आज इनके लिए पता है क्या हो गया है? पार्टी देश से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है. देश नहीं है, पार्टी महत्वपूर्ण है, और उसमे क्या है, पार्टी नहीं टूटनी चाहिए, देश टूटे तो टूट जाये. सारे समझौते किस लिए करते है? पार्टी नहीं टूटनी चाहिए, चाहे जितने गलत समझौते करने पड़े, सरकार नही जानी चाहिए चाहे जितने गलत समझौते करने पड़े, तो अब इनके लिए भी देश महत्वपूर्ण नहीं है, समाज महत्वपूर्ण नहीं है, पार्टी महत्वपूर्ण है. सत्ता महत्वपूर्ण है. और मै आपको बता दूँ कि पार्टी कभी देश से बड़ी हो नहीं सकती. जो लोग इस भ्रमणा में है कि पार्टी इस देश से बड़ी हो गई है, उनको मै ये कह रहा हूँ कि पार्टी कभी देश से बड़ी होती नहीं है, देश बड़ा होता है, ये देश रहेगा तो आप रहेंगे, ये देश नहीं रहा तो आप भी नहीं रहेंगे, इसीलिए पार्टीयों का चक्कर छोडिये, और इस पॉलिटिक्स की बात छोडिये, अब तो क्रांति की बात करिये, जितनी देर पॉलिटिक्स की बात करेंगे उतनी ही ज्यादा आपको निराशा होगी, जितनी देर क्रांति की बात सोंचना शुरु करेंगे उतने ही ज्यादा आशा का संचार होगा. उत्साह आएगा, उमंग पैदा होगा, बस यही जवाब मुझे देना है.
श्रोता : राजीव जी, अगर आपकी इजाजत हो तो और भी कुछ सवाल है, क्या आपने कोई मल्टीनेशनल कंपनी मार भगाई है?
राजीव भाई : हाँ, है तो हमलोग बहुत छोटे ताकत में लेकिन कुछ दो तीन काम किये है, अभी तो ताजा ताजा एक आपको सुना सकता हु, राजस्थान का, राजस्थान में एक जिला है, उसका नाम है अलवर. अलवर जिले में एक जगह है उसका नाम है तेजारा, तेजारा एक बहुत मशहूर जैन तीर्थस्थान है. दिगम्बर जैन के लोगों का एक बहुत महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है, तो वहां क्या हुआ, अमेरिका की एक कंपनी है विल्सन और हिंदुस्तान की एक कंपनी है केडिया. दोनों ने मिल के शराब के कारखाने लगाने के लिए तेजारा के पास के साढ़े चार सौ गाँव की ५०,००० बीघा जमींन एक्वायर की. मै एक बार अलवर गया हुआ था. कुछ भाई लोग मेरे पास आये कि राजीव भाई आप तो विदेशी कम्पनियों के पीछे डंडा ले के घूमते हो, हमारे गाँव में विदेशी कंपनी आ गई है. तो मैंने कहा कि क्या करने के लिए आई है? तो कहने लगे कि शराब बेंचने के लिए आई है. तो शराब का कारखाना खुलेगा, तो मुझे लगाया, मैंने पूछा उनसे कि आपका गाँव अलवर से कितना दूर है, तो उन्होंने कहा कि बिलकुल नजदीक है, आप चाहो तो कल चल सकते है. तो मैंने मेरे सारे प्रोग्राम पोस्टपोन किये और मै अगले दिन अलवर गया. और वहां जा के मैंने देखा कि सामने जैन मंदिर है और बिलकुल बाजु में जमींन दे दिया शराब बनाने के लिए. किसने किया? सरकार ने, किसकी सरकार है? भारतीय जनता पार्टी की. मुझे बहुत क्रोध आया, फिर मैंने गाँव के लोगों की मीटिंग बुलाई. मैंने कहा कि आपने जमीन क्यों बेंची? तो उन्होंने कहा कि साहब जमीं हमने नहीं बेंची, जबरदस्ती हमसे अंगूठा लगवाया. रात के दो दो बजे, तीन तीन बजे कलेक्टर, एस.एस.पी. फ़ोर्स ले के गाँव में जाते थे, गाँव के लोगों को धमकाते थे, कि जमीन बेचो, नहीं बेचोगे तो जेल के अन्दर डाल देंगे. ये काम उन्होंने करवाया. और इस तरह से गाँव के लोगों को डरा के, धमका के, जमीन एक्वायर कर ली, तो मैंने कहा कि अगर ऐसा हुआ है, तो हम तो लड़ेंगे आपके लिए, आप बोलो कितनी मदद करोगे, तो उन्होंने कहा कि जो आप कहें. तो मैंने कहा कि सबसे पहला काम ये करो कि ग्राम पंचायत की मीटिंग बुलाओ. तो ग्राम पंचायत की मीटिंग बुलवाई. ग्राम पंचायत की मीटिंग में मैंने पूछा सबसे कि आप बताओ कि आपने कोई प्रस्ताव पारित किया था जमीन बेचने के लिए? तो ग्राम पंचायत का हर सदस्य कहता था कि हमने कभी कोई बात नहीं की. तो मैंने कहा कि ये बताओ कि जितनी जमीन गई है उसमे गौचर की जमीं भी है? तो बोले हाँ साहब, बड़ी जमीन तो गौचर की है, वो ले लिया शराब के कारखाने बनाने के लिए. तो हमने कहा कि आज आप प्रस्ताव पारित करिए कि ग्राम पंचायत ने, ग्राम सभा ने कोई भी जमीन दी नहीं है विदेशी कंपनी को जबरदस्ती हमसे ये जमीन ली गई है. और ग्राम सभा ने ग्राम पंचायत ने ऐसा प्रस्ताव पारित किया और ऐसा ४० गाँव में हमने करवाया. और वो ४० गाँव में जब ये प्रस्ताव पारित जो गए तो मैंने कहा कि अब हम जाएँगे कोर्ट में, और कोर्ट में हम गए. और हमने ये केस लगवाया. और कहा कि देखिये किस तरह से कानून का सरेआम उन्लंघन होता है, और ये जमीन जो थी वो खेती की जमीन थी, बहुत अच्छी खेती होती है. मैंने कंपनी से आंकड़े मंगवाए, मैंने कहा आप अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट दीजिये, केडिया और विल्सन का जो जॉइंट वेंचर था उसकी प्रोजेक्ट रिपोर्ट जब मेरे पास आई तो मैंने देखा, उसमे उन्होंने ये लिखाया हुआ था कि ५ करोड़ लीटर पानी उनको चाहिए प्रतिदिन, शराब बनाने के लिए. और उस पुरे एरिया को राजस्थान सरकार ने डार्क जोन घोषित किया, डार्क जोन माने सूखे वाला इलाका. जमीन के १०० फीट निचे तक पानी नहीं है वहां पे, तो मेरे समझ में नहीं आया कि ये ५ करोड़ लीटर पानी प्रतिदिन लायेंगे तो कहाँ से लायेंगे? तो उसी प्रोजेक्ट रिपोर्ट को आगे पढने पे पता चला कि वो ग्राउंड वाटर का इस्तेमाल करेंगे. माने अपने पंप लगायेंगे, और पंप लगा के जमीन के निचे का पानी खिचेंगे. और प्रतिदिन अगर ५ करोड़ लीटर पानी खीचा जाएगा, तो २ – ३ साल में वो एकदम सुखा पड़ जाएगा. तो ये ४० गाँव की जनता रहती है उसका क्या होगा? वो तो शराब बनायेंगे, बेचेंगे, मुनाफा कमाएँगे. इस देश को शराबी बना देंगे, लेकिन इस गाँव की जनता का क्या होगा? और इस बात को ले के हमने आन्दोलन शुरु किया. और गाँव गाँव में मैंने पदयात्राए की, तीन महीने मै रहा उस इलाके में, और पैदल जाता था, एक गाँव से दूसरा, दुसरे से तीसरा, तीसरे से चौथा, घूमते घूमते मेरे साथ एक जमात खड़ी हो गई, नौजवानों की, उसमे सब तरह के लोग थे, हिन्दू भी थे, मुसलमान भी थे, जैन भी थे, दिगम्बर जैन उस क्षेत्र में बहुत है. वहां एक बात एक साधू भगवन आए, दिगम्बर जैन समुदाय के, मै उनके पास गया, मैंने कहा ये देखिये, इतना अनर्थ हो रहा है आपका आशीर्वाद चाहिए, ये बड़ी लड़ाई हमने हाँथ में ली है. उन्होंने कहा कि इस काम के लिए सर्वदा मेरा आशीर्वाद है. मैंने कहा कि आप जैन समाज को कॉल दीजिए कि इस लड़ाई में हमारे साथ आए. तो उनका कॉल आया तो पूरा का पूरा जैन समाज हमारे साथ खड़ा हुआ, बड़ी ताकत मिली उसमे. फिर उसके बाद मै एक मौलाना साहब से मिला वहां पे मुसलमान समुदाय के लोग है, मैंने कहा कि आपके यहाँ तो शराब अधर्म है. तो उन्होंने कहा कि मै भी आदेश करूंगा, उन्होंने आदेश किया तो मुसलमान हमारे साथ आये. हिन्दू पहले से ही साथ में थे वहां के. और ऐसी बड़ी ताकत खड़ी हुई १०,००० नौजवानों का संगठन की. और हमने सबसे एक ही बात की कि आप जिस पार्टी के हों उसको घर में रख दो. अभी ये बचानी है जमीन, जो जा रही है विदेशी कंपनी के हाँथ में. और हर गाँव के आदमियों का दर्द यही था कि ये जमीन बचनी चाहिए. तो १०,००० लोग खड़े हो गए तो एक दिन हमने कुछ नहीं किया, हम गये जुलुस निकालते हुए, और जहाँ से इनका कारखाना बनाने का सारा तामझाम रखा हुआ था, कोई छोटी मोटी बिल्डिंग बनाई हुई थी, वहां पे तार की बाड़ वाड़ लगा दी थी उन्होंने, हमने कुछ नहीं किया, वो जा के उनकी तार की बाड़ हटा दी. और उनके जो कारखाने वारखाने थे उन सब को हटा दिया, एक तरफ रख दिया और वहा पे ये लिख के टांग दिया कि ये जमीन गाँव की है, ये कभी विदेशी कंपनी की हो नहीं सकती. उससे गाँव वालों में बहुत ताकत आई. पहले गाँव वाले डरते थे कि हम इस विदेशी कंपनी के खिलाफ कैसे करेंगे. सरकार पिटेगी, पुलिस मारेगी, मैंने कहा मारेगी इससे ज्यादा क्या करेगी. और उस दिन क्या हुआ कि जब हम ये सारा काम कर रहे थे, तब केडिया कंपनी ने अपने कुछ गुंडे बुलवाए और उससे गोली चलवाई. गोली चली हमलोगों के ऊपर. उपरवाले की महेरबानी थी या महाराज साहब की कृपा थी मुझे मालूम नहीं, मुझे नहीं लगी, मेरे बगल वाले साथी को लगी. तो उसके बाद भी हमने काम नहीं रोका. ये उनके डराने का तरीका था, जो हमको धमकी दे रहे थे कि देखो तुमको मार डालेंगे. हमने कहा हमको मरने का डर ही नहीं लगता तो हमको मरोगे क्या? और उसके बाद नतीजा निकला कि जब गोली चली तो गाँव में और ज्यादा उत्साह फैला, तो पता चला कि १०,००० की फ़ौज अब २०,००० – २५,००० की फ़ौज में कन्वर्ट होनें वाली है. फिर धीरे धीरे अख़बारों में आना शुरु हुआ. और अख़बारों में आना शुरु हुआ तो एक दिन फिर हमने क्या किया पता है, वहां के सरकार के मंत्री द्वारा उदघाटन का एक पत्थर लगाया था उन्होंने, शराब के कारखाने के उदघाटन का. हमने कुछ लडको को इकठ्ठा किया और एक दिन उस पत्थर को उठा के फेंक दिया. और जिस दिन हमने वो पत्थर हटाया, सारे गाँव में हमने ये ऐलान कर दिया कि आज के बाद ये जमीन हमारी है. हम इस पर खेती करेंगे, फसल बोयेंगे, देखें कौन आता है और इसको रोकता है. और हमने गाँव में बैरिकेड लगवा दिए कि आज के बाद इस गाँव में कोई पुलिस अधिकारी या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट बिना गाँवसभा की परमिशन के गाँव में घुसेगा नहीं. तुम जयपुर में सरकार चलते हो चलाओ, हमारे गाँव में हमारी सरकार है और हमारी सरकार ये आदेश करती है कि आज के बाद कोई भी मंत्री, कोई भी एम्.एल.ए. कोई भी कलेक्टर घुसेगा नहीं गाँव में बिना गाँव सभा के परमिशन के. तो एक बार क्या हुआ कि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने कोशिश की अपनी जीप ले के आया लाल बत्ती, हरी बत्ती टे टे टे टे करते हुए, गाँव में बेरिकेड लगाया हुआ था, वहां आ के जीप खड़ी हो गई, आदेश देने लग गया कि इसको हटाओ, गाँव की बहने निकली, और एक एक लट्ठ उठाया और मार मार के कार के शीशे तोड़ दिए. भागे सब वहां से दुम दम दबा के डी.एम्. भागा और उसके पीछे पीछे उसका अर्दली भी भागा. और गाँव वालो ने देखा की हमारे सामने जब डी.एम्. भाग सकता है दुनिया की कोई भी तो उनकी ताकत भाग सकती है. उमकी हिम्मत वापस आई, और आज नतीजा ये है कि राजस्थान सरकार को वो लाइसेंस रद्द कर देने पड़े. छोटे काम है, शुरु शुरु में जब उठाये जाते ही वो पचासों लोग कहते है कि अरे ये हो नहीं पायेगा, लेकिन मुझे लगता है कि अगर संकल्प शक्ति हो और मन में पवित्रता का भाव हो, आपका उदेश्य बड़ा हो, समाज के हित में हो, तो जीत तो होती ही है, भले ही हमारी शक्ति कम है, आज कम है कल अधिक हो जाएगी, और अधिक कैसे होगी, ऐसी छोटी लड़ाईयां लड़ते लड़ते किसी बड़ी लड़ाई की तयारी हम करेंगे या कर रहे है. १९९२ से हमने ये अभियान शुरु किया था, १९९२ से अबतक इतना कर पाए है, हम ३ – ४ लोगों ने ये अभियान शुरु किया था, तब सबलोग कह रहे थे कि क्या फालतू का काम कर रहे हो अच्छा खासा कैरियर छोड़ के इस तरह के काम में लग गये, परिवार वाले भी नाराज़ है, रिश्तेदार वाले भी नाराज़ है, हमने कहा ठीक है, आप नाराज़ रहिये क्योंकि ये पशु बन के जिन्दा रहना तो हमें मंजूर नहीं है कि हाय पैसा, हाय पैसा, हाय पैसा, पैसा जिंदगी का सबकुछ नहीं होता है, देश उससे बड़ा होता है, समाज उससे बड़ा होता है, संस्कृति बड़ी होती है, और कभी अगर भगत सिंह हो सकते है, चंद्रशेखर हो सकते है तो आज क्यों नहीं भगत सिंह और चंद्रशेखर हो सकते है. आज भी तो वही परिस्थितियां है, तो कुछ लोगों को तो ये करना ही पड़ेगा और निकल हमलोग पागलों की तरह से और आज होते होते कुछ हजार की संख्या हमारे पास है और तीन चार साल चलेंगे तो शायद कुछ लाख की संख्या हो जाएगी और जिस दिन वो हो जाएगी तो उस दिन उनको आमने सामने की टक्कर दे के युद्ध की आखरी लड़ाई लड़ेंगे, वो आशीर्वाद आपका चाहिए, आपकी दुआएं हमको चाहिए आपका सहयोग हमको चाहिए, आपका समर्थन हमको चाहिए, इस बड़ी लड़ाई में, इस धर्मयुद्ध में जितना आप लोगों की मदद, हमलोगों का सहयोग करेंगे, आपका बहुत बहुत सुक्रिया.
जय हिन्द
जय भारत
वन्दे मातरम
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