भाग के शादी करने का जश्न..
- 15 मिनट पहले
मध्यप्रदेश के आदिवासी समुदाय में सालों से भगोरिया पर्व मनाने की प्रथा चली आ रही है.
यह भील और भीलाला आदिवासी समुदाय का सालाना त्यौहार है जो कि रंगों के त्यौहार होली के एक हफ़्ते पहले मनाया जाता है.
इस त्यौहार के दौरान समुदाय के नौजवान सदस्यों को अपने जीवनसाथी चुनने की पूरी आज़ादी होती है. भगोरिया का मतलब ही होता है भागना.
यह जीवन और प्रेम का उत्सव है जो संगीत,नृत्य और रंगों के साथ मनाया जाता है.
इस दौरान मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में कई मेले लगते हैं और हज़ारों की संख्या में नौजवान युवक-युवतियां इन मेलों में शिरकत करते हैं.
मेले के दौरान ये नौजवान मस्ती के आलम में रहते हैं.
इन दिनों ऐसा ही एक मेला मध्यप्रदेश के अलीराजपुर ज़िले के वालपुर गांव में लगा हुआ है और वहां बड़ी संख्या में औरतें अपने होने वाले पति की तलाश में चली आ रही है.
अलीराजपुर के सेवानिवृत बैंक कर्मचारी अनिल तावर का कहना है कि भगोरिया का मेला साप्ताहिक बाज़ारों में लगता है.
इस पर्व के दौरान झाबुआ और धार के कई आदिवासी इलाकों में ये मेले लगते हैं.
स्थानीय फ़ोटो स्टूडियो के मालिक सोनी का कहना है कि यहां पर नौजवानों के भाग कर शादी करने को स्वीकार्यता प्राप्त है.
वो आगे कहते हैं, "भील आदिवासियों में शादी के लिए अनिवार्य शर्त है कि अपने पसंद के लड़के या लड़की से शादी करें. और यह इस उत्सव का हिस्सा है."
पारंपरिक रंगीन कपड़ों में सजे-धजे नौजवान लोगों को इस तरह से मेले में अपने जीवनसाथी को ढूंढ़ते हुए देखना वाकई में एक रोमांचकारी अहसास है.
मेले के दौरान कुछ आदिवासी लोग बांसुरी बजाते हैं और अपने-अपने खेल-तमाशे दिखाते हैं.
वे पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र मंडल और ढोल की थाप पर नाचते-गाते हैं.
भगोरिया के मेले में जब जींस पहने और चश्मे लगाए नौजवान दिखते हैं तो उनमें आधुनिक दुनिया की भी झलक दिखती है.
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