शनिवार, 9 जून 2012


'मेरी मां को नेहरू से प्यार था'

15 Jul 2007, 1449 hrs IST,भाषा  
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नई दिल्ली ( पीटीआई ): भारत के अंतिम वायसरॉय लॉर्ड माउंटबैटन की पत्नी एडविना और देश के पहले प्रधानमंत्री पं . जवाहरलाल नेहरू के प्यार के किस्से दुनिया भर में मशहूर रहे हैं। एक बार फिर इन रिश्तों पर रोशनी डाली है माउंटबैटन की बेटी पामेला माउंटबैटन ने। पामेला ने डायरी और पारिवारिक ऐलबम के दस्तावेजों को आधार बनाकर किताब ' इंडिया रिमेम्बर्ड : पर्सनल अकाउंट ऑफ माउंटबैट्न्स ड्यूरिंग ट्रांसफर ऑफ पावर ' लिखी है। चाव से नेहरू को मामू ( मामा ) कहकर बुलाने वाली पामेला ने इस किताब के एक भाग को ' स्पेशल रिलेशन ' नाम दिया है। इस भाग में पामेला लिखती हैं , ' मेरी मां के पहले भी कई प्रेमी रहे थे। मेरे पिता उनसे आहत थे , लेकिन नेहरू के केस में स्थिति थोड़ी अलग थी। ' अन्य मामलों की तुलना में नेहरू के साथ मेरी मां के संबंध थोड़े अलग थे। पामेला ने एक खत का जिक्र किया है , जो जून 1948 में माउंटबैटन ने अपनी बड़ी बहन को लिखा था। इस खत में उन्होंने एडविना - नेहरू के संबंधों के बारे में लिखा कि नेहरू और एडविना के बीच काफी मधुर संबंध थे। वे दोनों एक दूसरे की ओर बेहद खूबसूरत अंदाज में आकर्षित हुए हैं। पैमी और मैं हर वह काम कर रहे हैं , जो इससे निपटने में मददगार हो।

पामेला के मुताबिक नेहरू काफी अच्छी अंग्रेजी बोला और लिखा करते थे। उन्होंने मार्च 1957 में नेहरू द्वारा एडविना को लिखे एक और खत का हवाला दिया है। नेहरू ने इस पत्र में एडविना को लिखा कि अचानक मुझे महसूस हुआ ( और शायद तुम्हें भी हुआ हो ) कि हमारे बीच गहरा लगाव है और कोई अनियंत्रित ताकत है, जिसने हमें एक दूसरे का बना दिया। मैं इससे बेहद रोमांचित हूं। हम एक दूसरे से काफी अंतरंगता से बात किया करते थे। जैसे ही थोड़ा सा पर्दा उठा हम बेखौफ एक दूसरे की आंखों में देखने लगे।

एडविना 1947 में जब भारत आईं, तब उनकी उम्र 44 साल थी। माउंटबैटन आजादी के दौरान दिशा - निर्देश देने अंतिम वायसरॉय के रूप में भारत आए थे। पामेला को अपने मां - बाप के साथ भारत आने के कारण अपना स्कूल छोड़ना पड़ा। तीनों अगले 15 महीने भारत में रहे और देश का विभाजन दो नए राष्ट्रों का उदय देखा।

पामेला अपनी मां को अंतर्मुखी बताती हैं। उनका कहना है कि मेरे पिता और मां एक टीम की तरह काम करते थे। मेरे पिता मेरी मां के फैसलों पर विश्वास करते थे और पंडित नेहरू के साथ उनके संबंध काफी महत्वपूर्ण थे , क्योंकि यह वह समय था जब भारत में ब्रिटिश राज खत्म हो रहा था और कश्मीर समस्या अत्यंत जटिल मुद्दे के रूप में छाई हुई थी।

पामेला लिखती हैं कि पंडित नेहरू खुद भी एक कश्मीरी थे , इसलिए इस समस्या के प्रति वह काफी भावुक थे। मेरे पिता मां से कहते थे कि नेहरू से इस दुखद लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दे को देखने के लिए कहो। पामेला के मुताबिक नेहरू और उनकी मां के बीच गहरे प्रेम संबंध इसलिए हुए क्योंकि नेहरू की पत्नी का देहांत हो चुका था और उनकी बेटी इंदिरा की शादी हो चुकी थी ... जब आप सत्ता के शिखर पर होते हैं आप अकेले होते हैं। उनका कहना है कि मेरी मां और नेहरू के बीच दार्शनिक संबंध थे , कि शारीरिक।

माउंटबैटन और एडविना की नेहरू से 1946 में मलाया में मुलाकात हुई थी , जहां नेहरू ने एडविना को एक मेज के नीचे से बचाया था। पामेला के मुताबिक मेरी मां भारतीय कल्याण समूह के साथ थीं। जैसे ही परिचय के लिए वह आगे आईं , पंडित जी के प्रशंसकों की भीड़ उमड़ पड़ी और मेरी मां पैरों के बल गिर गईं। वह एक मेज के नीचे गईं , जहां से नेहरू ने उन्हें बचाया।

माउंटबैटन के लंदन लौटने के बाद भी नेहरू और एडविना साल में दो बार मिलते थे। अपने विदेश प्रवास के कार्यक्रम में एडविना भारत को शामिल कर लेती थीं , जबकि नेहरू कॉमनवेल्थ प्रधानमंत्रियों के सम्मेलन में लंदन आया करते थे और वीकएंड माउंटबैटन दंपती के साथ बिताते थे।

भारत यात्रा के कुछ समय बाद 1960 में जब 58 वर्षीय एडविना की नींद में मौत हो गई तो उनके सिरहाने से नेहरू द्वारा लिखे खतों का एक पैकिट बरामद हुआ। अपनी वसीयत में एडविना ने एक सूटकेस भरे ये खत माउंटबैटन को सौंपे थे। मेरे पिता को उम्मीद थी कि इन खतों में ऐसा कुछ भी नहीं होगा जो उन्हें आहत करेगा , फिर भी थोड़े संदेह के कारण उन्होंने पहले मुझे ये खत पढ़ने के लिए दिए। ये उल्लेखनीय खत थे पर उनमें ऐसा कुछ भी नहीं था जो मेरे पिता को दुख पहुंचाए।

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