शनिवार, 9 जून 2012

सोमवार, 17 जनवरी 2011

सुभाष जिनकी मृत्यु भी रहस्यमय है ..



http://srijanshilpi.com/archives/९५ 'सृजन शिल्पी ' का यह लेख अत्यंत अच्छा है , इसे यथावत यहाँ दिया जाता है ....

नेताजी सुभाष : सत्य की अनवरत तलाश

नेताजी के कथित रूप से लापता हो जाने से संबंधित अधिकांश आधिकारिक दस्तावेजों को सरकार ने अब तक अति गोपनीय श्रेणी में रखा है। यहाँ तक कि कोलकाता उच्च न्यायालय के आदेश पर उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मनोज मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित जाँच आयोग को भी सरकार ने बारंबार अनुरोध किए जाने के बावजूद इस मामले से संबंधित कई दस्तावेज नहीं उपलब्ध कराए और जाँच में अपेक्षित सहयोग भी नहीं दिया। मुखर्जी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सरकार के इस रवैये के बारे में विस्तार से लिखा है। इसके बावजूद मुखर्जी आयोग ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया और जाँच के पाँच प्रमुख बिन्दुओं पर 8 नवम्बर, 2005 को पेश अपनी रिपोर्ट में निम्नानुसार ठोस निष्कर्ष दिए: 
(क) क्या सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु हो चुकी है या वे जीवित हैं?
मुखर्जी आयोग - नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु हो गई है।
(ख) यदि उनकी मृत्यु हो चुकी है तो क्या उनकी मृत्यु जैसा कि कहा गया है हवाई दुर्घटना में हुई थी?
मुखर्जी आयोग - उनकी मृत्यु वायुयान दुर्घटना में नहीं हुई, जैसा कि बताया जाता है।
(ग) क्या जापानी मंदिर में जो अस्थियाँ रखी हैं वे नेताजी की अस्थियाँ हैं?
मुखर्जी आयोग - जापानी मन्दिर में रखे अवशेष नेताजी के नहीं हैं।
(घ) क्या उनकी मृत्यु किसी अन्य स्थान पर किसी अन्य ढंग से हुई है और यदि हाँ तो कब और कैसे?
मुखर्जी आयोग - किसी निश्चित साक्ष्य के अभाव में कोई सकारात्मक उत्तर नहीं दिया जा सकता।
(ङ) यदि वे जीवित हैं तो उनके पते-ठिकाने के संबंध में…
मुखर्जी आयोग – उत्तर (क) में पहले ही दिया जा चुका है।
लेकिन भारत सरकार संसद में प्रस्तुत अपनी कार्रवाई रिपोर्ट (ATR) में मुखर्जी आयोग के इस निष्कर्ष से सहमत नहीं हुई कि नेताजी की मौत 18 अगस्त, 1945 को कथित वायुयान दुर्घटना में नहीं हुई थी और जापान के रेन्कोजी मंदिर में रखी अस्थियाँ नेताजी की नहीं हैं। संसद में इस बारे में हुए वाद-विवाद के दौरान गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने सरकार की तरफ से यह सफाई दी कि इस मामले पर पूर्ववर्ती शाह नवाज खान जाँच समिति तथा जी. डी. खोसला आयोग के निष्कर्षों को सरकार अधिक विश्वसनीय मानती है।
जबकि इसके ठीक विपरीत 28 अगस्त, 1978 को लोक सभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने उन दो पूर्ववर्ती जाँचों के निष्कर्षों के संबंध में निम्न वक्तव्य दिया था:
18 अगस्त 1945 को मंचूरिया की हवाई यात्रा के दौरान तैहोकु हवाई अड्डे पर हवाई दुर्घटना में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु की रिपोर्ट के बारे में दो बार जांच की गई है जिनमें से एक मेजर जनरल शाह नवाज खां की अध्यक्षता में एक समिति द्वारा की गई थी और दूसरी पंजाब उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्री जी.डी. खोसला की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जाँच समिति द्वारा की गई थी। पहली समिति ने बहुमत से और श्री खोसला ने उनकी मृत्यु संबंधी रिपोर्ट को सच माना था। उसके बाद से इन दो रिपोर्टों में पहुंचे निष्कर्षों की सच्चाई को लेकर उचित शंकाएँ प्रस्तुत की गई हैं तथा साक्षियों की गवाही में अनेक महत्वपूर्ण असंगतियाँ देखी गई हैं, कुछेक अन्य और अधिक समकालीन सरकारी दस्तावेजी रिकार्ड भी उपलब्ध हो गए हैं। इन शंकाओं और असंगतियों तथा रिकार्डों के प्रकाश में सरकार यह स्वीकार करने में दिक्कत महसूस करती है कि पिछले निर्णय असंदिग्ध थे। 
तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने उपर्युक्त वक्तव्य देते समय जिन समकालीन आधिकारिक दस्तावेजी अभिलेखों का संदर्भ लिया था, उन दस्तावेजों के बारे में मुखर्जी आयोग द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और मंत्रिमंडल सचिवालय (रॉ) से बारंबार पूछे जाने पर यही जवाब मिला कि उनके पास इस तरह के कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। मुखर्जी आयोग ने सरकार के इस रवैये के बारे में निम्न शब्दों में टिप्पणी की:
2.5.7 अत: भारत सरकार के संबंधित मंत्रालयों/ कार्यालयों ने जो रुख अपनाया उससे यह देखा जा सकता है कि उनके पास इस तरह के कोई समकालीन सरकारी दस्तावेजी रिकार्ड उपलब्ध नहीं थे जिनके आधार पर स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई ने उपर्युक्त वक्तव्य दिया था जबकि आयोग अपने आपको यह समझाने और विश्वास करने में अत्यंत कठिनाई महसूस करता है कि देश का एक प्रधानमंत्री संसद के सदन में इस तरह का एक गलत वक्तव्य दे सकता है और उनके द्वारा उल्लिखित समकालीन सरकारी रिकार्डों के उपलब्ध न होने की स्थिति में अधिकार हनन का जोखिम आमंत्रित कर सकता है। अब जैसा कि भारत सरकार के संबंधित मंत्रालयों/ कार्यालयों के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दृढ़तापूर्वक उन रिकार्डों की अनुपलब्धता की बात कही गई है – इस स्थिति ने निश्चय ही जाँच की कार्रवाई में एक रोक लगा दी है।
नेताजी की मौत की परिस्थितियों की जाँच से संबंधित अभी तक के अनुभव से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी जब तक सत्ता में रहेगी तब तक इस मामले की सच्चाई जनता के सामने नहीं आ पाएगी। कोई गैर-कांग्रेसी सरकार ही मामले की सच्चाई के उजागर होने में निमित्त बन सकती है। खोसला आयोग की रिपोर्ट के जिन निष्कर्षों को 1978 में जनता पार्टी की सरकार ने खारिज कर दिया था, उसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार अब विश्वसनीय मान रही है। इसी तरह, वर्ष 1999 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा गठित जस्टिस मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट के निष्कर्षों से कांग्रेस के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार ने असहमति जता दी है। 
इस संबंध में 2 फरवरी, 2007 को कोलकाता उच्च न्यायालय ने मुखर्जी आयोग के मुख्य निष्कर्षों को खारिज करने वाली केन्द्र सरकार की कार्रवाई रिपोर्ट को रद्द किए जाने की मांग करते हुए दायर एक जनहित याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। इस याचिका में जापान के रेन्कोजी मंदिर में रखी अस्थियों को भारत लाए जाने की अनुमति नहीं दिए जाने की प्रार्थना भी की गई है। गौरतलब है कि कोलकाता उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिए गए आदेश पर ही भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग का गठन किया था।
सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत इस मामले से संबंधित आधिकारिक दस्तावेजों की प्रतियाँ हासिल करने की कोशिशों में जुटे दिल्ली की एक गैर-सरकारी संस्था मिशन नेताजी के अनुज धर के अनुभव कुल मिलाकर बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहे हैं। हाल ही में 19 जनवरी, 2007 को देश की बाह्य खुफिया एजेंसी रॉ ने अनुज धर को भेजे उत्तर में अपने पास नेताजी से संबंधित किसी गोपनीय दस्तावेज का अस्तित्व होने से इन्कार कर दिया है। लेकिन जैसा कि वर्ष 2001 में मुखर्जी आयोग के समक्ष तत्कालीन गृह सचिव कमल पाण्डे द्वारा दायर शपत्र पत्र के साथ संलग्न अति गोपनीय दस्तावेजों की सूची से पता चलता है कि रॉ के पास इस तरह के कुछ दस्तावेज अवश्य रहे हैं।

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