शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

क्या कहता है? बाल श्रम ( प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम,

पिछले आलेख पर आई टिप्पणियों से लगा कि भारत में बाल-श्रम के प्रतिषेध के लिए वर्तमान कानून की जानकारी के बारे में बहुत जानकारी आम नहीं है।  वर्तमान में देश में  बाल श्रम ( प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 प्रभावी है। जिस के सामान्य प्रावधान निम्न प्रकार हैं…
  
बाल श्रम ( प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986  
इस अधिनियम का उद्देश्य समूचे बाल श्रम का उन्मूलन करना नहीं है, यह केवल कुछ प्रक्रियाओं एवं व्यवसायों में बाल श्रम के नियोजन को निषिद्ध करता है, जहां नियोजन निषिद्ध नही है, वहां बाल श्रमिकों की सेवा दशाओं को विनियमित करता है, 14 वर्ष की उम्र तक के बालकों को शिक्षा ग्रहण करने की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान करता है और उनकी कोमल अवस्था के विपरीत उनसे कठिन कार्य लेने पर रोक लगाता है तथा विभिन्न श्रम कानूनों में बालक (चाइल्ड) की परिभाषा को एक रूप देता है। इन्हीं उद्देश्यों से इस अधिनियम को विनिर्मित किया जाना इस अधिनियम में कहा गया है।
बाल श्रमिक की परिभाषा     
ऐसे श्रमिक जिन्होंने अपनी आयु के 14 वर्ष पूर्ण न किये हों इस अधिनियम की धारा -2 (II) के अन्तर्गत इस अधिनियम द्वारा “बालक” के रूप में परिभाषित किए गए हैं।
बाल श्रम पूर्ण रूप से निषेध  
अधिनियम की धारा-3 के अधीन भाग (अ) मे उल्लिखित व्यवसायों तथा भाग (ब) में उल्लिखित प्रक्रियाओं को खतरनाक घोषित करते हुये बाल श्रम नियोजित किया जाना पूर्ण रूप से निषिद्ध किया गया है। कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा-67, माइन्स एक्ट, 1952 की धारा-40, मर्चेन्ट शिपिंग एक्ट, 1958 की धारा-109 तथा मोटर ट्रान्सपोर्ट वर्क्स एक्ट, 1961 की धारा-21 की व्यवस्था के अनुसार इन उद्योगों  में चाहे वे खतरनाक अथवा गैर खतरनाक प्रकृति के हों इस अधिनियम द्वारा बाल श्रम पूर्ण रूप से निषिद्ध किया गया है।
बाल श्रम नियोजन का नियमन     
धारा-6 से 11- धारा-3 में उल्लिखित अनुसूची से भिन्न गैर खतरनाक अधिष्ठानों में बालकों को नियोजित किया जा सकता है।
बाल श्रमिक नियोजन की शर्तें     
बाल श्रमिकों को जहाँ नियोजित किया जा सकता है वहाँ उन्हें केवल निम्न की शर्तों के साथ ही नियोजित किया जा सकता है-
  • बाल श्रमिक से किसी भी दिन लगातार 3 घन्टे से अधिक कार्य नहीं लिया जा सकता है। तीन घंटे काम लेने के उपरांत या उस से पहले बालक को न्यूनतम एक घंटे का विश्राम काल देना आवश्यक  है।
  • बाल श्रमिक के कार्य के घन्टे विश्राम काल ( न्यूनतम एक घन्टा ) को सम्मिलित करते हुए छह घन्टे से अधिक नहीं हो सकते। अर्थात उन से दिन में पाँच घंटे से अधिक काम नहीं लिया जा सकता। इस में वह समय भी सम्मिलित है जिस समय उसे काम देने के लिए प्रतीक्षा कराई जाती है।
  • बाल श्रमिक को सप्ताह में एक दिन अवकाश दिया जाना अनिवार्य किया गया है।
  • सांय 07 बजे से प्रातः 08 बजे के मध्य बाल श्रमिक से कार्य नहीं लिया जा सकता है।
  • बाल श्रमिक से ओवरटाईम कार्य नहीं लिया जा सकता है।
  • गैर खतरनाक नियोजन में काम करने वाले बाल श्रमिक के नियोजक द्वारा उसे अपने खर्चे पर 2 घन्टे प्रतिदिन शिक्षा का लाभ दिलाया जाना आवश्यक कर दिया गया है।
अभिलेख     
प्रत्येक नियोजक को बाल श्रमिक का उपस्थित रजिस्टर पृथक से रखना अनिवार्य है, जिसमें वह उसका नाम, जन्मतिथि, कार्य का प्रकार, कार्य के घण्टे, अवकाश का समय आदि रखेगा।
बाल श्रम नियोजित करने हेतु नोटिस     
नियोजक यदि बाल श्रमिक नियोजित करता है तो बाल श्रमिक के पू
र्ण विवरण की सूचना क्षेत्र के निरीक्षक को पूर्ण विवरण सहित 30 दिन के अन्दर प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया गया है।
दण्ड  
इस अधिनियम की धारा-14 एवं 15 में निषिद्ध नियोजन सम्बन्धी प्रावधान का उल्लंघन करने वाले नियोजक को प्रथम अपराध पर न्यूनतम तीन माह की कैद जो एक वर्ष तक भी हो सकती है या दस हजार रूपये अर्थदण्ड जो बीस हजार रूपये तक भी हो सकता है अथवा दोनो दण्डों से दण्डित किया जा सकता है। अधिनियम के अन्य किसी प्रावधान का उल्लंघन करने वाले को एक माह तक की सजा या दस हजार रूपये तक अर्थदण्ड अथवा दोनों दण्ड दिये जा सकते हैं। फैक्ट्रीज एक्ट, 1948 की धारा-67, माइन्स एक्ट, 1952 की धारा-40, मर्चेन्ट शिपिंग एक्ट, 1958 की धारा-109 तथा मोटर ट्रान्सपोर्ट वर्क्स एक्ट, 1961 की धारा-21 के अधीन जहां भी बाल श्रम नियोजन निषिद्ध है के प्रावधानों का उल्लंघन भी इस अधिनियम की धारा-14 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है।
आयु का प्रमाण     
बाल श्रमिक की आयु के सम्बन्ध में विवाद उत्पन्न होने पर राजकीय चिकित्सक द्वारा आयु के सम्बन्ध में प्रदत्त प्रमाण पत्र को ही मान्य कर दिया गया है।

माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्देश

  
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा एम0 सी0 मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य ( 465/86) में दिये गये ऎतिहासिक निर्देश निम्नांकित बिन्दुओं में समाहित हैं -
  • प्रतिकर की वसूली-
खतरनाक उद्योगों में बाल श्रमिक नियोजित करने वाले सेवायोजकों से रूपया 20 हजार तक प्रतिकर भी वसूला जाये।
  • शिक्षा व्यवस्था।
खतरनाक उद्योगों से बाल श्रम को हटाकर उसे शिक्षा का लाभ दिलाया जाये ।
गैर खतरनाक नियोजन में काम करने वाले बाल श्रमिक के सेवायोजक द्वारा उसे अपने खर्चे पर 2 घन्टे प्रतिदिन शिक्षा का लाभ दिलाया जायेगा।
  • पुनर्वास
बाल श्रमिक के परिवार के एक वयस्क सदस्य को रोजगार दिलाया जाये।
  • कल्याण निधि का गठन।
नियोजकों से वसूल की गयी उक्त धनराशि से प्रत्येक जिले में एक श्रम कल्याण निधि का गठन किया जाये, जिसका उपयोग बाल श्रमिकों के कल्याण हेतु किया जाये।
उपरोक्त प्रावधानों के बाद भी अनेक निषिद्ध उद्योगों और प्रक्रियाओं में बाल श्रम  का उपयोग किया जा रहा है। लोग देख कर भी उस की अनदेखी करते हैं।  इस का एक मुख्य कारण यह भी है कि हमारे यहाँ अभी लोगों को शिकायत करने की आदत नहीं है।  शिकायत कर देने पर भी उचित कार्यवाही करने वाले निरीक्षकों की बहुत कमी है, जो हैं उन्हें भी ऐसे नियोजको द्वारा प्रायोजित कर लिया जाता है।  जब तक स्वयं जनता में बाल श्रम विरोधी जागरूकता उत्पन्न नहीं होती है, बाल-श्रम का पूरी तरह से उन्मूलन संभव नहीं है।

बाल मजदूरी

की नियुक्त करें।10 अक्तूबर 2006 से घरों और ढाबों में बच्चों से मजदूरी कराना दण्डनीय अपराध है। व्यअपने देश के समक्ष बालश्रम की समस्या एक चुनौती बनती जा रही है। सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कई कदम भी उठाये हैं। समस्या के विस्तार और गंभीरता को देखते हुए इसे एक सामाजिक-आर्थिक समस्या मानी जा रही है जो चेतना की कमी, गरीबी और निरक्षरता से जुड़ी हुई है। इस समस्या के समाधान हेतु समाज के सभी वर्गों द्वारा सामूहिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।वर्ष 1979 में भारत सरकार ने बाल-मज़दूरी की समस्या और उससे निज़ात दिलाने हेतु उपाय सुझाने के लिए 'गुरुपाद स्वामी समिति' का गठन किया था। समिति ने समस्या का विस्तार से अध्ययन किया और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की। उन्होंने देखा कि जब तक गरीबी बनी रहेगी तब तक बाल-मजदूरी को हटाना संभव नहीं होगा। इसलिए कानूनन इस मुद्दे को प्रतिबंधित करना व्यावहारिक रूप से समाधान नहीं होगा। ऐसी स्थिति में समिति ने सुझाव दिया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल-मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाए तथा अन्य क्षेत्रों में कार्य के स्तर में सुधार लाया जाए। समिति ने यह भी सिफारिश की कि कार्यरत बच्चों की समस्याओं को निपटाने के लिए बहुआयामी नीति बनाये जाने की जरूरत है।'गुरुपाद स्वामी समिति' की सिफारिशों के आधार पर बाल-मजदूरी (प्रतिबंध एवं विनियमन) अधिनियम को 1986 में लागू किया गया था। इस अधिनियम के द्वारा कुछ विशिष्टिकृत खतरनाक व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में बच्चों के रोजगार पर रोक लगाई गई है और अन्य वर्ग के लिए कार्य की शर्त्तों का निर्धारण किया गया। इस कानून के अंतर्गत बाल श्रम तकनीकी सलाहगार समिति के आधार पर जोखिम भरे व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं की सूची का विस्तार किया जा रहा है।उपरोक्त दृष्टिकोण की सामंजस्यता के संदर्भ में वर्ष 1987 में राष्ट्रीय बाल-मजदूरी नीति तैयार की गई। इस नीति के तहत जोखिम भरे व्यवसाय और प्रक्रियाओं में कार्यरत बच्चों के पुनर्वास कार्य पर ध्यान केन्द्रित किये जाने की जरूरत बताई गई।संयोजन पाठ्यक्रमबाल मज़दूरी की समस्या के समाधान के क्षेत्र में 'एम.वी. फाउंडेशन द्वारा एक अलग दृष्टिकोण विकसित किया गया है। यह संस्थान स्कूल छोड़े हुए, नामांकन से वंचित तथा अन्य कार्यरत बच्चों के लिए संयोजन पाठ्यक्रम (ब्रिज कोर्स) चला रहा है तथा उनकी उम्र के अनुरूप औपचारिक शिक्षा पद्धति के अंतर्गत स्कूल में नामांकन करा रहा है। यह पद्धति काम करने वाले बच्चों को स्कूल की ओर लाने में काफी हद तक सफल रहा है और इसे आँध्र प्रदेश सरकार के साथ प्रथम, सिनी - आशा,लोक जुम्बिश जैसी गैर सरकारी संस्थाओं ने भी अपनाया है।बाल मजदूरी के कारणयूनीसेफ के अनुसार बच्चों का नियोजन इसलिए किया जाता है, क्योंकि उनका आसानी से शोषण किया जा सकता है। बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम जिन कारणों से करते हैं, उनमें आम तौर पर गरीबी पहला है। लेकिन इसके बावजूद जनसंख्या विस्फोट, सस्ता श्रम, उपलब्ध कानूनों को लागू नहीं होना, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अनिच्छुक माता-पिता (वे अपने बच्चों को स्कूल की बजाय काम पर भेजने के इच्छुक होते हैं, ताकि परिवार की आय बढ़ सके) जैसे अन्य कारण भी हैं। और यदि एक परिवार के भरण-पोषण का एकमात्र आधार ही बाल श्रम हो, तो कोई कर भी क्या सकता है। बाल मजदूरी उन्मूलन हेतु किये जा रहे प्रयासबाल श्रम उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना कार्यक्रम के तहत 1.50 लाख बच्चों को शामिल करने हेतु 76 बाल श्रम परियोजनाएं स्वीकृत की गयी हैं। करीब 1.05 लाख बच्चों को विशेष स्कूलों में नामांकित किया जा चुका है। श्रम मंत्रालय ने योजना आयोग से वर्तमान में 250 जिलों की बजाय देश के सभी 600 जिलों को राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना में शामिल करने के लिए 1500 करोड़ रुपये देने को कहा है। 57 खतरनाक उद्योगों, ढाबा और घरों में काम करनेवाले बच्चों (9-14 साल की उम्र के) को इस परियोजना के तहत लाया जायेगा। सर्व शिक्षा अभियान जैसी सरकारी योजनाएं भी लागू की जा रही हैं।राज्य जिले स्वीकृत स्कूल शामिल बच्चे वास्तविक स्कूल शामिल बच्चे आंध्र प्रदेश 20 807 43550 610 36249 बिहार 8 174 12200 173 10094 गुजरात 2 40 2000 23 1254 कर्नाटक 3 100 5000 24 1200 मध्य प्रदेश 5 138 9800 87 6524 महाराष्ट्र 2 74 3700 24 1200 उड़ीसा 16 430 33000 239 14972 राजस्थान 2 60 3000 54 2700 तमिलनाडु 8 379 19500 307 14684 उत्तर प्रदेश 4 150 11500 105 7488 पश्चिम बंगाल 4 219 12000 164 8250 कुल 76 2571 2E+05 1810 1E+05 राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना के तहत शामिल राष्ट्रीय बाल मजदूरी परियोजना (संशोधित)- 2003नीतिसातवीं पंचवर्षीय योजनावधि के दौरान 14 अगस्त, 1987 को राष्ट्रीय बाल श्रम नीति को मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर किया गया। इस नीति का उद्देश्य बच्चों को रोजगार से हटाकर उन्हें समुचित रूप से पुनर्वास कराना था। इस तरह जिन क्षेत्रों में बाल श्रम अधिक है उन क्षेत्रों में इसके प्रभाव को कम करना है।इस नीति के तीन मुख्य घटक हैं –कानूनी कार्य योजना – विभिन्न श्रम कानूनों के अंतर्गत बाल श्रम से संबंधित कानूनी प्रावधानों को कठोरतापूर्वक एवं प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन को सुनिश्चित करनासामान्य विकास कार्यक्रम पर ध्यान देना – जहाँ तक संभव हो विभिन्न मंत्रालयों/विभागों द्वारा बाल श्रमिकों के कल्याण के लिए चलाए जा रहे विकास कार्यक्रमों का उपयोग करना।परियोजना आधारित कार्य योजना – जिन क्षेत्रों में बाल-श्रमिकों का प्रभाव अधिक है उन क्षेत्रों में कार्यरत बच्चों के लिए योजनाएँ बनाना।10वीं योजनावधि के दौरान श्रम नीति के अंतर्गत व्यापक दृष्टिकोण को अपनाया जाएगा।उद्देश्य1991 की जनगणना के अनुसार देश में बाल श्रमिकों की संख्या लगभग 1.1 करोड़ थी। संसाधनों की कमी और सामाजिक चेतना और जागरूकता के वर्तमान स्तर को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 10वीं पंचवर्षीय योजनावधि के अंत तक देश से बाल-श्रम समाप्त करने की समय-सीमा निर्धारित की है।लक्षित समूहइस योजना के अंतर्गत उन सभी बच्चों को शामिल किया है जिनकी उम्र 14 से कम है और जो काम कर रहे हैं –बालकों से संबंधित अनुसूची में सूचिबद्ध व्यवसाय एवं प्रक्रियाश्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 और/याव्यवसाय एवं प्रक्रिया, जो उनके स्वास्थ्य और मनोविज्ञान को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता हो।अंतिम सूची में बच्चों से संबंधित रोजगार की जोखिमता समुचित रूप से स्थापित किया जाना चाहिए।रणनीति1991 की जनगणना के अनुसार देश में बाल-मजदूरी करने वाले बच्चों की कुल संख्या 11.28 मिलियन थी। जबकि एनएसएसओ के 1999-2000 सर्वेक्षण प्रतिवेदन के अनुसार यह संख्या 10.40 मिलियन थी। इसके अंतर्गत यह प्रस्तावित है कि जोखिम भरे उद्योग में कार्यरत बच्चों का क्रमिक रूप पुनर्वास कार्य प्रारंभ हो। जोखिम भरे व्यवसायों में काम करने वाले बच्चों का सर्वेक्षण कर, उसे वहाँ से हटाकर विशेष स्कूलों (पुनर्वास-सह-कल्याण केन्द्र) में दाखिला दिलाया जाए ताकि सरकारी स्कूली व्यवस्था की मुख्यधारा से उन्हें जोड़ा जा सके। 10 वीं योजनावधि की रणनीति के अंतर्गत उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने की भी योजना है। बाल मजदूरी के बारे में और अधिक जानने हेतु निम्न लिंक पर क्लिक करें–http://labour.nic.in/cwl/ListHazardous.htm , http://labour.nic.in/cwl/Strategy.htm मजदूरी से शिक्षा की ओरबाल-मजदूरी रोकने के लिए आप क्या कर सकते हैं?जब किसी बच्चे को शोषित होते हुए देखें, तो उसकी व्यक्तिगत मदद करें।बच्चों की सुरक्षा के लिए कार्यरत संगठनों के लिए स्वेच्छा से समय निकालें।व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से कहें कि यदि वे बच्चों का शोषण बन्द नहीं करते हैं तो उनसे कुछ भी नहीं खरीदेंगे।बाल-श्रम से मुक्त हुए बच्चों के पुनर्वास और शिक्षा के लिए कोष जमा करने में मदद करें।आपके किसी रिश्तेदारों या परिजनों के यहां बाल-श्रमिक है, तो आप सहजता पूर्वक चाय-पानी ग्रहण करने से मना करें और इसका सामाजिक बहिष्कार करें।अपने कर्मचारियों के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करके बाल-श्रम की समस्या के बारे में सूचित करें और उन्हें प्रोत्साहित करें कि वे अपने बच्चों को नियमित रूप से स्कूल भेजें।अपनी कम्पनी पर दबाव डालें कि बच्चों के स्थान पर स्कों

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