क्या यह बच्चे भी जानते होंगे बाल दिवस का मतलब ???
यह तस्वीरें मुझे मेरे दोस्त की फॉरवर्ड मेल से मिले थे...
And we say that we are working hard
सुबह ८:३० बजे जब एन सी आर में आज ठण्ड अपने चरम पर थी,
मै अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने अपनी कार से हीटर चला कर पहुंचा, अभी स्कूल के पास पहुंचा ही था कि मैंने अचानक देखा मेरे बगल में एक रिक्शा रुकता है, जिसमे पांच- छह बच्चे बैठे थे… पर ये कोई खास बात नहीं थी.. खास बात तो ये थी… कि उस रिक्शे को खींचने वाला उन्ही बच्चों की उम्र का एक बच्चा ही था, उसके बारे में जानने की उत्सुकता वश मैंने उससे पूछ ही लिया कि बेटा तुम्हारा नाम क्या है, और तुम इस उम्र में रिक्शा क्यों चला रहे हो.? पढ़ने क्यों नहीं जाते ? वो पहले तो थोडा शरमाया फिर बताया कि मै पढ़ने नही जाता हूँ, काम पर जाता हूँ, पापा रिक्शा चलाते हैं, कभी कभी मुझे ही रिक्शे पर भेज देते हैं, इतने में रिक्शे पर बैठे बच्चे भी कहने लगे अंकल हम भी इस से यही पूछ रहे हैं कि ये क्यों स्कूल नहीं जाता, मै कुछ और पूछता इस से पहले एक दूसरा रिक्शे वाला पीछे से आया और मुझे जाने क्या समझ बच्चे से बोला“चल बे चल… चक्कर में मत पड़, अपना काम कर“ और वो मुझे अवाक् छोड़ रिक्शा खींचते हुए निकल गया…. फिर जब मै वापस आने लगा तो मेरी आँखें लगातार इधर उधर कुछ ढूंढ रहीं थीं और कुल तीन किलोमीटर के रस्ते में मैंने इस तरह के कई बच्चे देखे …
![P190110_08.51_[01]](https://padmsingh.files.wordpress.com/2010/01/p190110_08-51_011.jpg?w=300&h=225)




ये तो बानगी है साहब ….और ये केवल तीन किलोमीटर के रास्ते का एक छोटा सा उदाहरण है ……मैने ये सारे उदाहरण इस लिए दिए कि अभी जल्द ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया है कि वह इस साल मई के अंत तक शिक्षा का अधिकार विधेयक लागू कर देगी। सरकार ने दावा किया कि इससे देश में बालश्रम समाप्त हो जाएगा। इस विधेयक में 6-14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य रूप से मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान है। ये निर्णय स्वागत योग्य हो सकता है … पर अगर हम सरकार की नीयत पर भरोसा भी कर लें तो क्या आप मानते हैं, कि बाल शिक्षा के सम्बन्ध में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन होने वाला है…. ऊपर दिए गए लगभग सभी उदाहरणों में बच्चों को स्कूल न भेजे जाने के पीछे उनके परिवार की सहमति भी है…. या फिर मजबूरी और गरीबी एक भी एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है….. अब प्रश्न ये उठता है कि अगर परिवार अपने बच्चों को पढाना आवश्यक नहीं समझता… या मजबूरी वश उन्हें कच्ची उम्र में कमाने की मशीन के रूप में इस्तेमाल शुरू कर देता है …. तो सरकार द्वारा बाल शिक्षा के लिए किये जा रहे प्रयास कितने कारगर और प्रभावी होंगे… दूसरा बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण कारण है गरीबी …. मंहगाई के सम्बन्ध में कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं…. क्या इनके माता पिता इन्हें पढ़ाना नहीं चाहते या समस्या और गरीबी वश स्कूल भेज नहीं पाते

प्रश्न यहीं नहीं खत्म होता …हम केवल उन मध्य वर्ग की बात न करें जो जैसे तैसे स्कूलों की दादागीरी और लूट खसोट के बीच अपने बच्चों को पढाने में कामयाब रहते हैं…सरकार कहती है कि अनिवार्य शिक्षा लागू होते ही, बाल श्रम भी अपने आप खतम हो जाएगा … शायद समस्या को छोटा कर के आँका गया है… गरीबी, जनसँख्या, मजबूरी और अज्ञानता के चलते वर्तमान को बचने की जद्दोजहद में बच्चों के भविष्य दांव पर हैं … मैंने अपने गांव के किसी मजदूर से उसके चौथे बच्चे के बारे में पूछा था … उसने हंसी में (पर शायद सच) कहा … अगर चार बच्चे दिन में सौ सौ रुपये भी कमा कर लाते हैं तो चार सौ हो जाते हैं … जीवन का ये गणित पढाई के महत्व से बहुत ऊपर लगता है … एयर कंडीशन में बैठे बुद्धि जीवियों की सोच कितनी गहरी जाती है वो तो अलग बात … पर ये कटु सत्य है कि भारत का एक बड़ा वर्ग जिसे हम आम आदमी कहते हैं (या आम टाइप के आम आदमी) जो सुबह सर्दी गर्मी और बरसात में पेपर में रोटी लपेटे फक्ट्री की तरफ लपकते हुए जाते हैं और पूरा दिन वही रोटी पांच रुपये के छोले के साथ खा कर बिताते हैं … और महीने भर की हाड तोड़ मेहनत और ओवर टाइम के बाद भी 3000-5000 तक बमुश्किल कमा पाते हैं … उसपर भी ठेकेदार का शोषण और लात मार कर निकाल दिए जाने का डर अलग … ऐसे में जिंदगी को बचाए रखने और जीवन के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की व्यवस्था करने की ज़द्दोजहद के बीच शिक्षा और जागरूकता की बात करना उनके लिए महत्वहीन और मजाक से ज्यादा कुछ नहीं …
कुछ परिवार या कुछ जातियां ऐसी भी हैं जो अपने जीविकोपार्जन के लिए हमेशा एक जगह से दूसरी जगह स्थान बदलती रहती हैं… इनका काम मजमा लगाना, फेरी लगा कर कुछ बेचने से लेकर नाच गा कर परिवार चलाना होता है… ऐसे में इनको नए इलाकों की खोज में लगातार भटकते रहना होता है, रेलवे स्टेशन.. बाग.. और खंडहरों में झुग्गी झोपड़ी बना कर रहने वाले इन खानाबदोश जातियों के बच्चे शिक्षा से कोसों दूर हैं… इनके लिए शिक्षा का अधिकार क़ानून बना देना क्या काफी होगा ? शायद नहीं … समस्या वहीँ है … परिवार शिक्षा के महत्व को समझे …अथवा जिंदगी जीने की मूलभूत आवश्यकताओं का सीना चीर बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें शिक्षित करे .पर लानत उनपर है जो इस लायक होते हुए भी अपने वर्तमान के सुख के लिए अपने बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं… शिक्षित नहीं कर रहे हैं …
………….. आप क्या सोचते हैं ??
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें