शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

क्या यह बच्चे भी जानते होंगे बाल दिवस का मतलब ???

क्या यह बच्चे भी जानते होंगे बाल दिवस का मतलब ???

यह तस्वीरें मुझे मेरे दोस्त की फॉरवर्ड मेल से मिले थे...
And we say that we are working hard


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


सुबह ८:३० बजे जब एन सी आर में आज ठण्ड अपने चरम पर थी, मै अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने अपनी कार से हीटर चला कर पहुंचा, अभी स्कूल के पास पहुंचा ही था कि मैंने अचानक देखा मेरे बगल में एक रिक्शा रुकता है, जिसमे पांच- छह बच्चे बैठे थे… पर ये कोई खास बात नहीं थी.. खास बात तो ये थी… कि उस रिक्शे को खींचने वाला उन्ही बच्चों की उम्र का एक बच्चा ही था, उसके बारे में जानने की उत्सुकता वश मैंने उससे पूछ ही लिया कि बेटा तुम्हारा नाम क्या है, और तुम इस उम्र में रिक्शा क्यों चला रहे हो.? पढ़ने क्यों नहीं जाते ? वो पहले तो थोडा शरमाया फिर बताया कि मै पढ़ने नही जाता हूँ, काम पर जाता हूँ, पापा रिक्शा चलाते हैं, कभी कभी मुझे ही रिक्शे पर भेज देते हैं, इतने में रिक्शे पर बैठे बच्चे भी कहने लगे अंकल हम भी इस से यही पूछ रहे हैं कि ये क्यों स्कूल नहीं जाता, मै कुछ और पूछता इस से पहले एक दूसरा रिक्शे वाला पीछे से आया और मुझे जाने क्या समझ बच्चे से बोलाचल बे चल… चक्कर में मत पड़, अपना काम कर और वो मुझे अवाक् छोड़ रिक्शा खींचते हुए निकल गया…. फिर जब मै वापस आने लगा तो मेरी आँखें लगातार इधर उधर कुछ ढूंढ रहीं थीं और कुल तीन किलोमीटर के रस्ते में मैंने इस तरह के कई बच्चे देखे …
कुछ ही आगे गया तो मुझे दो बच्चे दिखे जो सुबह की कडाके की सर्दी में सुबह ही अपनी सिगरेट गुटखे की दूकान पर बैठ कर सामान बेच रहे थे…(बच्चे के हाथ में सिगरेट देखी जा सकती है… विधि अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र वाले को तम्बाकू वाले पदार्थ बेचना अपराध है… पर 14 वर्ष से कम के द्वारा बेचना ….???). मैंने उनसे पता किया तो एक ने अपना नाम सलीम(परिवर्तित) बताया और बताया कि दोनों सगे भाई थे और रोज़ दूकान पर बैठ कर पिता का हाथ बटाते हैं, मैंने पूछा कि पढ़ने नहीं जाते? तो बताया मै तो जाता था पर छोड़ दिया और मेरा छोटा भाई नहीं जाता… इतने में उनका पिता जी आये और मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगे… और मैंने ज्यादा पूछ ताछ करना ठीक न समझ अपना रास्ता लिया(ज्ञातव्य हो कि ये गाज़ियाबाद का भोपुरा इलाका है जो मुसलमानों और लड़ाई झगडे वाले बदमाशों के लिए जाना जाता है) … थोडा और आगे हिंडन एयर बेस के पास लेबरों की पैठ लगती है … वहां रुक कर देखा तो वहां भी औरतों के साथ साथ ऐसे कई कम उम्र श्रमिक दिखे जो अपने ग्राहक का इंतज़ार कर रहे थे, और ज़्यादातर बाहर से आये हुए लगते थे… उनमे से दो(एक लगभग 15 वर्ष और दूसरा लगभग 17वर्ष) के बाल श्रमिकों से मिला …. उन्हों ने बताया कि वे बाराबंकी से आये हैं और बिल्डिंग में सरियों जाल बनाने का काम करते हैं … मैंने कहा कि ये तो खतरनाक काम है और बिल्डिंग की ऊँचाइयों पर भी ये काम करना होता है …तो उनमे से एक हंसा और बोला ये तो हम कई सालों से करते हैं … मैंने जब पूछा कि तुम लोंग पढ़ने कभी नहीं गए? तो उनकी भावभंगिमा ऐसी थी जैसे मैंने कोई मजाक किया हो, वो शायद सोच रहे थे कि ये कैसा बचकाना सवाल है… ये पढ़े लिखे लोंग ऐसे ही हमारा मजाक उड़ाते हैं … खैर …आगे दस कदम पर ही मुझे एक और बच्चा(उम्र लगभग दस वर्ष) दिखा जो अपनी मूंगफली की दूकान पर मुस्तैदी से मूंगफली बेच रहा था… उत्सुकता वश मैंने उस से उस का नाम पूछा तो उस ने अपना नाम राजू बताया, पढाई के बारे में पूछने पर पता चला कि उसने तीसरी क्लास से पढाई छोड़ दी है, और अपने पिता के साथ दुकान सम्हालता है… उसी ने बताया कि उसका छोटा भाई(उम्र लगभग आठ साल) भी मूंगफली की दुकान चलता है …उसकी दूकान से मात्र दस कदम बगल ही थी, उसके पास भी गया तो वो अपनी छतरी लगाने के लिये कील ठोंक रहा था, मैंने पूछा कि बेटा तुम्हारा नाम क्या है तो बोला राजू (???) मैंने कहा ये नाम तो तुम्हारे भाई का है … तो बोला नहीं उसका नाम तो आलम है ….. मुझे आलम की होशियारी पर हँसी आ गयी…. शायद उसने मेरी नीयत भांप ली थी और अपना नाम गलत बता दिया था … उसने बताया कि मै टूशन पढता हूँ स्कूल नहीं जाता (छोटा था पर था बहुत चालाक और वाचाल.. सच का पता नहीं) मैंने जब पूछा कि ये मूंगफली का हिसाब कैसे लगते हो ….तो बोला बेचते बेचते आ गया है … अभी पापा भी आते होंगे … और फिर मुझे अंत में मिला सोनू …. सोनू की उम्र भी लगभग १३ वर्ष की ही थी….उसने बताया कि चौथी क्लास तक पढ़ा है … पापा अब नहीं रहे . मम्मी हैं वो भी फक्ट्री में काम करने जाती हैं …उत्सुकता वश मैंने उनकी कुल आमदनी पूछने की धृष्टता भी कर बैठा… उसने बताया कि उनकी माँ को एक महीने में तीन हज़ार मिलते हैं … जब कोई छुट्टी न करें तो तीन सौ अलग से …. पर इस महगाई में इतने में होता क्या है .. इस लिए मै भी दूकान रख कर बैठा हूँ … इसमें ज्यादा से ज्यादा रोज़ सौ से डेढ़ सौ तक आमदनी हो जाती है …. इतने में घर का खर्चा ही नहीं चल पाता ठीक से पढाई क्या करूँ …… उसकी बात का क्या जवाब हो सकता था …. इसके बावजूद भी मैंने ढीठता से एक जुमला फेंक ही दिया …. वैसे फिर भी तुम्हें पढ़ना चाहिए…… और उसका जवाब सुने बिना उस से निगाह बचा अपने घर चला आया ….
ये तो बानगी है साहब ….और ये केवल तीन किलोमीटर के रास्ते का एक छोटा सा उदाहरण है ……मैने ये सारे उदाहरण इस लिए दिए कि अभी जल्द ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया है कि वह इस साल मई के अंत तक शिक्षा का अधिकार विधेयक लागू कर देगी। सरकार ने दावा किया कि इससे देश में बालश्रम समाप्त हो जाएगा। इस विधेयक में 6-14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य रूप से मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान है। ये निर्णय स्वागत योग्य हो सकता है … पर अगर हम सरकार की नीयत पर भरोसा भी कर लें तो क्या आप मानते हैं, कि बाल शिक्षा के सम्बन्ध में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन होने वाला है…. ऊपर दिए गए लगभग सभी उदाहरणों में बच्चों को स्कूल न भेजे जाने के पीछे उनके परिवार की सहमति भी है…. या फिर मजबूरी और गरीबी एक भी एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है….. अब प्रश्न ये उठता है कि अगर परिवार अपने बच्चों को पढाना आवश्यक नहीं समझता… या मजबूरी वश उन्हें कच्ची उम्र में कमाने की मशीन के रूप में इस्तेमाल शुरू कर देता है …. तो सरकार द्वारा बाल शिक्षा के लिए किये जा रहे प्रयास कितने कारगर और प्रभावी होंगे… दूसरा बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण कारण है गरीबी …. मंहगाई के सम्बन्ध में कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं…. क्या इनके माता पिता इन्हें पढ़ाना नहीं चाहते या समस्या और गरीबी वश स्कूल भेज नहीं पाते
प्रायः देखा जाता है कि पांच छह साल का होते होते बच्चे स्कूटर की दूकान या ऐसे ही किसी छोटे मोटे कारखानों में काम करते नज़र आते हैं……शहर के होटलों में या अन्य स्थानों में भी ऐसे कितने बच्चे मिलेंगे जो दिन भर काम करके अपना पेट पालते हैं और न तो वे लिखना-पढ़ना जानते हैं और न तो जान पाते हैं। उन्हें तो बस दिन भर वहाँ कामकरना है। उनके जीवन में न तो पढ़ाई हैन तो खेल है और न तो उनके विकास का कोई साधन है। …. आप सोच सकते हैं कि ऐसे बच्चों का भविष्य क्या होगा ?.….अब इस का कारण चाहे गरीबी को मानें चाहे जनसँख्या और चाहे महंगाई …. पर एक चीज़ गौण है … वो है परिवार की सहमति और पढाने की इच्छाशक्ति की कमी … जो बच्चे किसी कारणवश अनाथ या खोई हुई स्थिति में हैं ऐसे बच्चों के लिए दो जून की रोटी की व्यवस्था करना उनकी मजबूरी हो सकती है … पर जिनके माँ बाप होते हुए भी पढाई से वंचित हैं… जिनके परिवार ही वर्त्तमान की छोटी छोटी आवश्यकताओं के लिए उनके बड़े भविष्य की संभावनाएं छीन लेते हैं उनके बारे में सरकार और उसकी योजनाएं भी क्या कर सकती हैं?…
प्रश्न यहीं नहीं खत्म होता …हम केवल उन मध्य वर्ग की बात न करें जो जैसे तैसे स्कूलों की दादागीरी और लूट खसोट के बीच अपने बच्चों को पढाने में कामयाब रहते हैं…सरकार कहती है कि अनिवार्य शिक्षा लागू होते ही, बाल श्रम भी अपने आप खतम हो जाएगा … शायद समस्या को छोटा कर के आँका गया है… गरीबी, जनसँख्या, मजबूरी और अज्ञानता के चलते वर्तमान को बचने की जद्दोजहद में बच्चों के भविष्य दांव पर हैं … मैंने अपने गांव के किसी मजदूर से उसके चौथे बच्चे के बारे में पूछा था … उसने हंसी में (पर शायद सच) कहा … अगर चार बच्चे दिन में सौ सौ रुपये भी कमा कर लाते हैं तो चार सौ हो जाते हैं … जीवन का ये गणित पढाई के महत्व से बहुत ऊपर लगता है … एयर कंडीशन में बैठे बुद्धि जीवियों की सोच कितनी गहरी जाती है वो तो अलग बात … पर ये कटु सत्य है कि भारत का एक बड़ा वर्ग जिसे हम आम आदमी कहते हैं (या आम टाइप के आम आदमी) जो सुबह सर्दी गर्मी और बरसात में पेपर में रोटी लपेटे फक्ट्री की तरफ लपकते हुए जाते हैं और पूरा दिन वही रोटी पांच रुपये के छोले के साथ खा कर बिताते हैं … और महीने भर की हाड तोड़ मेहनत और ओवर टाइम के बाद भी 3000-5000 तक बमुश्किल कमा पाते हैं … उसपर भी ठेकेदार का शोषण और लात मार कर निकाल दिए जाने का डर अलग … ऐसे में जिंदगी को बचाए रखने और जीवन के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की व्यवस्था करने की ज़द्दोजहद के बीच शिक्षा और जागरूकता की बात करना उनके लिए महत्वहीन और मजाक से ज्यादा कुछ नहीं …
कुछ परिवार या कुछ जातियां ऐसी भी हैं जो अपने जीविकोपार्जन के लिए हमेशा एक जगह से दूसरी जगह स्थान बदलती रहती हैं… इनका काम मजमा लगाना, फेरी लगा कर कुछ बेचने से लेकर नाच गा कर परिवार चलाना होता है… ऐसे में इनको नए इलाकों की खोज में लगातार भटकते रहना होता है, रेलवे स्टेशन.. बाग.. और खंडहरों में झुग्गी झोपड़ी बना कर रहने वाले इन खानाबदोश जातियों के बच्चे शिक्षा से कोसों दूर हैं… इनके लिए शिक्षा का अधिकार क़ानून बना देना क्या काफी होगा ? शायद नहीं … समस्या वहीँ है … परिवार शिक्षा के महत्व को समझे …अथवा जिंदगी जीने की मूलभूत आवश्यकताओं का सीना चीर बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें शिक्षित करे .पर लानत उनपर है जो इस लायक होते हुए भी अपने वर्तमान के सुख के लिए अपने बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं… शिक्षित नहीं कर रहे हैं …
………….. आप क्या सोचते हैं ??

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