शनिवार, 27 अप्रैल 2013

साल 2030 तक खत्म हो सकती है गरीबी: विश्व बैंक

 रविवार, 28 अप्रैल, 2013 को 07:11 IST तक के समाचार

जिम यॉन्ग किम
विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम यॉन्ग किम के मुताबिक 2030 तक गरीबी कम की जा सकती है.
साल 2030 तक दुनिया भर में अत्यधिक क्लिक करें गरीबी को तकरीबन खत्म कर देने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम यॉन्ग किम को महत्वपूर्ण समर्थन मिला है.
बैंक के मंत्रालय स्तर की एक क्लिक करें कमेटी ने जिम यॉन्ग किम के इस विचार का समर्थन किया है कि गरीबी को कम करके इसे दुनिया की आबादी के तीन फीसदी पर रोक दिया जाए.
विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम यॉन्ग किम खुद यह मानते हैं कि यह लक्ष्य महत्वाकांक्षी जरूर है लेकिन इसे हासिल किया जा सकता है.
जिम यॉन्ग किम ने बताया, "हमने क्लिक करें अत्यधिक गरीबी को खत्म करने की एक समय सीमा तय की है. दुनिया भर के नेताओं के सहयोग, प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता के साथ हमें पूरा भरोसा है कि हम इसे संभव बना सकते हैं. यह कड़ी मेहनत से होगा. साल 2030 का लक्ष्य जितना आप सोचते हैं उससे कहीं अधिक नजदीक है. केवल 17 साल ही तो दूर है."

आमदनी में सुधार

"हमने अत्यधिक गरीबी को खत्म करने की एक समय सीमा तय की है. दुनिया भर के नेताओं के सहयोग, प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता के साथ हमें पूरा भरोसा है कि हम इसे संभव बना सकते हैं. यह कड़ी मेहनत से होगा. साल 2030 का लक्ष्य जितना आप सोचते हैं उससे कहीं अधिक नजदीक है. केवल 17 साल ही तो दूर है."
जिम यॉन्ग किम, विश्व बैंक के अध्यक्ष
उन्होंने कहा, "हम दुनिया के सामने इस काम की जरूरत को सामने लाएंगे. हम दुनिया भर में अत्यधिक गरीबी की दर पर हर देश के बारे में अपने काम की प्रगति रिपोर्ट सामने रखेंगे. इसके साथ ही हर एक देश के क्लिक करें निचले पायदान पर रह रहे 40 फीसदी लोगों की आमदनी में आने वाले बदलावों पर भी नजर रखेंगे."
कमेटी ने जिम यॉन्ग किम के इस विचार का भी समर्थन किया है कि सभी देशों के सबसे गरीब लोगों की आमदनी में सुधार करने के लिए की जाने वाली कोशिशों पर और अधिक ध्यान देकर समृद्धि का विस्तार किया जाए.
स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दों पर जिम यॉन्ग किम ने कहा, "इस सिलसिले में की गई बैठकों का तीसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि दुनिया के देश स्वास्थ्य, और शिक्षा के क्षेत्र में अधिक निवेश करने की जरूरत को अधिक तवज्जो दें."

शिक्षा तक सबकी पहुंच

जिम यॉन्ग किम का कहना है कि शिक्षा तक सबकी पहुंच सुनिश्चित कराए बिना और पढ़ाई-लिखाई के तौर तरीकों में बदलाव किए बगैर यह संभव नहीं. इससे सभी बच्चे न केवल स्कूल ही जा सकेंगे बल्कि वहां कुछ सीख भी सकेंगे.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबंध निदेश क्रिस्टीन लगार्डे ने इसके बारे में विस्तार से बताया कि उनका संगठन किस तरह से इन लक्ष्यों को पूरा कर पाने में मदद कर रहा था.
क्रिस्टीन ने कहा, "कम आमदनी वाले देशों को हम कर्ज देने की सहूलियत बढ़ा रहे हैं. महीने भर पहले ही इसे मंजूरी दी गई है. हम छोटे देशों को पहले से ज्यादा मदद दे रहे हैं."

एक पशु, जो है लाखों रुपए का

 रविवार, 28 अप्रैल, 2013 को 09:11 IST तक के समाचार

वेक्सर नाम का ये सांड 90 लाख रुपए में बिका.
आप क्या करेंगे, अगर आप बिल्कुल गज़ब का निवेश करना चाहें? बढ़िया शराब, बढ़िया कलाकृति या फिर बढ़िया नस्लों में निवेश करना चाहेंगे?
बढ़िया पुआल के गद्दे पर लेटा वेक्सर गार्थ सचमुच सोच रहा होगा कि उसने बड़ा हाथ मारा है.
दरअसल, वेक्सर एक सांड का नाम है, जिसे एक निजी अमरीकी कंपनी ने एक लाख 5000 पाउंड (लगभग 90 लाख रुपए) में खरीदा है.
वेक्सर को पालनेवाले किसान रे फर्मिंगर कहते हैं, “इसके पीछे अर्थशास्त्र ही है. इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है. उन्होंने केवल उसके स्वास्थ्य को देखकर उसे नहीं चुना है. दरअसल, उसकी रीसेल प्राइस बहुत ऊंची है.”
कोई भी नीलामी घर दरअसल इन दिनों पशुओं की ऊंची नस्ल के लिए खासी बोली लगा रहे हैं. दुनिया के रिकॉर्ड टूट रहे हैं.
पिछले साल, टेक्सस में एक भेड़ दो लाख, 31,000 पाउंड (लगभग दो करोड़ रुपए) में बिकी थी.

लाखों पाउंड की कमाई

फिर, इतना हंगामा क्यों बरपा है? निवेशक, दरअसल अपनी उम्मीदें पशुओं की कीमत बढ़ने पर लगाए हैं. उनसे अच्छी गुणवत्ता का मांस और भारी मात्रा में दूध मिलने की उम्मीद जो है.
"इसके पीछे अर्थशास्त्र ही है. इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है. उन्होंने केवल उसके स्वास्थ्य को देखकर उसे नहीं चुना है. दरअसल, उसकी रीसेल प्राइस बहुत ऊंची है"
वेक्सर को पालनेवाले किसान फर्मिंगर
लैंकेस्टर में व्यापार बहुत तेज़ हो रहा है. बेल्जियम ब्लू के एक झुंड का इन दिनों प्रदर्शन हो रहा है.
ब्रिटिश कैटल ब्रीडर्स क्लब के चेयरमैन फिलिप हॉलहेड कहते हैं, “मैं उन अमेरिकी निवेशकों की कल्पना करता हूं जिन्होंने वेक्सर नाम के उस सांड को खरीदा. वे दरअसल उसके वीर्य (सीमेन) को 50 पाउंड से 100 पाउंड (4000 से 8000 रुपए) में बेचने की योजना बनाए हैं.
फिलिप बताते हैं कि वेक्सर जैसा सांड उनलोगों के लिए रिकॉर्ड तोड़ कमाई करवा सकता है.
वेक्सर के पहले के मालिकों, सारा और जैन बूमार्स ने अपनी पारिवारिक परंपरा को बचाकर रखा.
वे दरअसल वेक्सर को जब रे फिर्मिंगर की सहायता से ख़रीद रहे थे, तो अपने परिवार के मूल्य को ही आगे बढ़ा रहे थे.
सारा कहती हैं, “कैरोलाइस की नस्ल हमारी पहली पसंद थी, जब हमने 2003 में अपना फर्म खरीदा था. उस समय इसकी अच्छी मांग थी.”
वेक्सर के वीर्य को 50 पाउंड से 100 पाउंड में बेचने की योजना है.
वित्त में अपना करियर बनाने की वजह से जैन ब्रिटेन में बेचने के लिए अच्छे नस्लों के पशुओं की कीमतें तो समझते ही थे.

पैसों की बचत

मांस की बढ़ती मांग ब्राजील और चीन की तरफ से हो रही है, जो उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं हैं.
इसी वजह से न केवल ब्रिटेन में, बल्कि अमरीका में भी ऐसे पशुओं की कीमत में खासा इज़ाफ़ा हुआ है.
उत्तरी अमरीकी लिमोज़िन फाउंडेशन के जो एपर्ली कहते हैं कि अर्थव्यवस्था ने ही पिछले पांच वर्षों में उत्पादों के दाम बढ़ा दिए हैं. वह लिमोजिन नस्ल की खरीद-बिक्री देखते हैं.
फिलिप हॉलहेड की मानें तो, भेड़ों और बैलों की बिक्री एक तयशुदा मुनाफे का धंधा है.

जोखिम तो है

केंटुकी के डी पी सेल्स मैनेजमेंट के डग पर्के का मानना है कि बाहर के निवेशक अधिकतर बैंकिंग या निर्माण उद्योग से आते हैं.
वह बताते हैं कि बिना जोखिम के हालांकि ये धंधा भी नहीं होता है. अचानक से आपका निवेश कोई चुरा ले जा सकता है या उसकी मौत हो सकती है.
इस धंधे में आपका निवेश आपकी प्रतिष्ठा है. अगर आप ढंग से निवेश करना चाहते हैं तो पहले पशुओं के बारे में पूरी जानकारी ले लें.
आखिरकार, आपका सांड अगर ढंग का है, तो वह राजा है.

जिसने हिटलर को परमाणु बम बनाने से रोका था

 रविवार, 28 अप्रैल, 2013 को 06:29 IST तक के समाचार

जोकिम रोनेनबर्ग
रोनेनबर्ग ने कहा कि हिरोशिमा पर बम गिरने के बाद उन्हें अपने मिशन के महत्व का पता चला था
जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर को परमाणु बम बनाने से रोकने के मकसद से क्लिक करें ब्रिटेन ने 70 साल पहले नार्वे का एक दल भेजा था जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के सबसे जाबांज और अहम मिशन को अंजाम दिया था.
उस दल के अगुआ और एकमात्र जीवित सदस्य जोकिम रोनेनबर्ग ने बीते गुरूवार को लंदन पहुंचकर एक युद्ध स्मारक पर पुष्पगुच्छ चढ़ाए. क्लिक करें नार्वे की सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख जब अपने वीरों को श्रद्धांजलि दे रहे थे तो 93 साल के रोनेनबर्ग चुपचाप इस दृश्य को देख रहे थे.
ये युद्ध स्मारक स्पेशल ऑपरेशंस एक्जक्यूटिव (एसओई) की याद में बनाया गया है जिसे विंस्टन चर्चिल ने क्लिक करें नाज़ियों के कब्जे वाले यूरोप में गुप्त अभियान चलाने का जिम्मा सौंपा था.
एसओई ने परमाणु बम बनाने की हिटलर के मंसूबों पर पानी फेर दिया था अन्यथा क्लिक करें द्वितीय विश्व युद्ध का परिणाम कुछ और हो सकता था.

फ़िल्म

एसओई के इस साहसिक कारनामे पर 1965 में द हीरोज़ ऑफ़ टेलीमार्क नाम से एक क्लिक करें हॉलीवुड फ़िल्म भी बनी थी जिसमें कर्क डगलस मुख्य भूमिका में थे.
नार्वे पर जब नाज़ियों ने कब्जा किया तो रोनेनबर्ग ब्रिटेन आ गए लेकिन वो स्वदेश लौटकर मातृभूमि को आजाद कराने के लिए लड़ना चाहते थे.
"अगस्त 1945 में जब हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराए गए तब हमें लगा कि हमने जो किया उसका बड़ा महत्व है"
जोकिम रोनेनबर्ग
रोनेनबर्ग ने बताया कि उन्हें लंदन में बेकर स्ट्रीट ट्यूब स्टेशन के ठीक ऊपर बने एसओई के ऑफिस में बुलाया गया और विशेष अभियान का जिम्मा सौंपा गया. उनसे कहा गया कि छह ऐसे लोगों को खोजिए जो जल्दी से जल्दी इस मिशन को अंजाम दे सकें.
इस मिशन का मकसद नार्वे के दूरदराज के इलाक़े वेरमॉक में स्थित दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत संयंत्र को नष्ट करना था. रोनेनबर्ग ने कहा कि उन्हें कभी नहीं बताया गया कि उन्हें ये जिम्मेदारी क्यों दी जा रही है.
ब्रितानी ख़ुफ़िया अधिकारियों को शक था कि नाज़ी उस संयंत्र को इसलिए बचा रहे थे क्योंकि उसमें भारी जल बनाया जा रहा है जिसे कि परमाणु बम बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है.

आशंका

रोनेनबर्ग ने बताया कि इस संयंत्र पर सीधे तौर पर बमबारी नहीं की जा सकती थी क्योंकि तरल अमोनिया के टैंकों के इसकी चपेट में आने से भारी संख्या में आम लोगों के हताहत होने की आशंका थी.
इसके लिए स्वालोज नाम से एक छोटी टीम का गठन किया गया जो अक्टूबर 1942 में अपने मिशन पर रवाना हुई. उनका काम दो ग्लाइडरों में भरे उन सैनिकों का मार्गदर्शन करना था जो संयंत्र को नष्ट करने जा रहे थे. लेकिन ये मिशन नाकाम रहा.
एक ग्लाइडर पहाड़ों में दुर्घटनाग्रस्त हो गया और दूसरा मैदानी इलाक़े में.
सभी सैनिक पकड़े गए और उन्हें मार दिया गया. लेकिन स्वालोज की टीम बच निकलने में सफल रही. वो जंगलों में भटकते रहे.

क्या होता है भारी जल

  • भारी जल यानि ड्यूटेरियम ऑक्साइड में हाइड्रोजन का आइसोटोप होता है. इसमें एक न्यूट्रॉन होता है जो कि इसके अणु को सामान्य जल की तुलना में भारी बनाता है
  • भारी जल परमाणु संयंत्र में न्यूट्रॉन मॉ़डिरेटर का काम करता है यानि ये न्यूट्रॉन की गति को कम करता है जिससे नाभिकीय विखंडन रिएक्शन की संभावना बढ़ जाती है
  • ये सामान्य जल से ज्यादा कारगर मॉडिरेटर है क्योंकि ये कम न्यूट्रॉन को सोखता है यानि संवर्धित यूरेनियम के बजाए प्राकृतिक यूरेनियम को संयंत्र में इस्तेमाल किया जा सकता है
  • इससे परमाणु हथियार बनाने में इस्तेमाल होने वाला प्लूटोनियम बनाना सस्ता और आसान होता है
तीन महीने बाद उन्हें संदेश मिला कि नार्वे के छह और लोगों को भेजा जा रहा है. इस मिशन को नाम दिया गया था गनरसाइड. रोनेनबर्ग को इस टीम का मुखिया बनाया गया.

मिशन

16 फरवरी को कड़ाके की सर्दी और घुप्प अंधेरे में रोनेनबर्ग ने विमान से छलांग लगा दी. स्नो सूट के नीचे उन्होंने ब्रितानी सैनिकों की पोशाक पहनी ताकि पकड़े जाने की स्थिति में उनके जिंदा रहने की उम्मीद बनी रहे.
अगर ये पता चल जाता कि वे नार्वे की आज़ादी के सिपाही हैं तो उन्हें तुरंत मार दिया जाता. लेकिन इसके लिए भी उन्होंने पूरी तैयारी की थी और वे अपने साथ सायनाइड की गोली ले गए थे.
टीम उत्तरी यूरोप के सबसे घने जंगल में गलत जगह पर उतरी. ये इलाक़ा पूर्व नियोजित स्थान से कई मील दूर था और उन्हें इंतजार कर रही टीम तक पहुंचने में पांच दिन लग गए.
आखिरकार वे रात के समय संयंत्र की तरफ बढ़े. संयंत्र तक पहुंचने का एक ही रास्ता था और इसके लिए नाले के ऊपर बने एक पुल को पार करना था. वहां कड़ा पहरा था. नाला बेहद ख़तरनाक था लेकिन टीम के अधिकांश सदस्यों ने इसे पार करने का विकल्प चुना.
वे एक रेलवे लाइन के साथ-साथ चलते हुए संयंत्र तक पहुंचे और उसके अंदर घुसने के लिए वायर कटर का इस्तेमाल किया. भारी जल संयंत्र के दरवाजे बंद थे इसलिए रोनेनबर्ग एक सुरंग के रास्ते रेंगते हुए अंदर पहुंचे.

महत्व

जोकिम रोनेनबर्ग
अपने साथियो की याद में आयोजित समारोह में जोकिम रोनेनबर्ग.
उन्होंने कहा, “मुझे लगा कि बाकी लोग मेरे पीछे-पीछे आएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और केवल एक सदस्य ही मेरे पीछे आया. दूसरे लोग सुरंग में आने का रास्ता नहीं खोज सके. हमने सोचा कि हम दोनों को अपना काम शुरू कर देना चाहिए.”
दो और लोग खिड़की तोड़कर अंदर दाखिल हो गए. उन्होंने संयंत्र को उड़ाने के लिए वहां विस्फोटक लगाया लेकिन उसकी आवाज़ वैसी नहीं हुई जैसी कि उनको उम्मीद थी. लेकिन वहां से निकलने की कहानी इस मिशन का सबसे दिलचस्प पहलू है.
इस टीम मे उत्तरी नार्वे का 200 मील का इलाक़ा स्की करते हुए पार किया. उनके पीछे जर्मन सेना की एक पूरी डिवीजन लगी थी और सिर पर हवाई जहाज मंडरा रहे थे. लेकिन टीम बच निकलने में सफल रही.
संयंत्र कुछ महीनों तक बंद रहा और बाद में अमरीकी बमवर्षकों ने इसे तबाह कर दिया. इस संयंत्र से भारी जल ले जा रही एक नौका को भी डुबो दिया गया.
ये पूछने पर कि उन्हें अपने मिशन के महत्व का एहसास कब हुआ, रोनेनबर्ग ने कहा, “अगस्त 1945 में जब क्लिक करें हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराए गए तब हमें लगा कि हमने जो किया उसका बड़ा महत्व है.”
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विपिन सर (Maths Masti) और मैं

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