क्या आम जनता ने अजित पवार को इसलिए देश की और अपना वोट इस लिए दिए था
नदी में पानी नहीं है तो क्या पेशाब करें: अजित पवार
आज तक ब्यूरो
| पुणे, 7 अप्रैल 2013 | अपडेटेड: 19:27 IST
जिस महाराष्ट्र में अकाल और सूखे से लोग बेहाल हैं, वहां के
उपमुख्यमंत्री अजीत पवार जो टिप्पणी करते हैं, वो आपत्तिजनक तो है ही, बेहद
शर्मनाक भी.
दावों की 'बाढ़', मगर प्यासी धरती, प्यासे लोग...
एनसीपी प्रमुख और केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने पुणे में आयोजित एक सभा में कहा कि जब पानी नहीं तो कहां से मिलेगा, बांध में पानी नहीं तो क्या करें. उन्होंने कहा कि भूख हड़ताल करने से पानी नहीं मिलेगा, क्या पानी-पानी करते हो. नदी में पानी नहीं है तो क्या पेशाब करें.
बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहा है महाराष्ट्रउन्होंने कहा कि वह एक आदमी 55 दिन से डैम में पानी छोड़ने की मांग को लेकर अनशन कर रहा है, क्या उसे पानी मिला. अब पानी ही नहीं है तो क्या छोड़ें? क्या अब वहां पेशाब कर दें.
वाह नेताजी वाह, एसी कमरे, बोतलबंद पानी, चौबीस घंटे ऐशोआराम. आपको क्या पता कि पानी के बूंद-बूंद के लिए तरसना क्या होता है. आपको क्या पता बिजली की किल्लत क्या होती है. तंग गलियों में, चिलचिलाती गर्मी के बीच एक दिन बिना पानी और बिना पंखे के रहकर दिखाइए. वैसे आपको इसकी जरूरत भी नहीं और जो जनता मजबूर है, वो रहे उनकी बला से.
एनसीपी प्रमुख और केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने पुणे में आयोजित एक सभा में कहा कि जब पानी नहीं तो कहां से मिलेगा, बांध में पानी नहीं तो क्या करें. उन्होंने कहा कि भूख हड़ताल करने से पानी नहीं मिलेगा, क्या पानी-पानी करते हो. नदी में पानी नहीं है तो क्या पेशाब करें.
बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहा है महाराष्ट्रउन्होंने कहा कि वह एक आदमी 55 दिन से डैम में पानी छोड़ने की मांग को लेकर अनशन कर रहा है, क्या उसे पानी मिला. अब पानी ही नहीं है तो क्या छोड़ें? क्या अब वहां पेशाब कर दें.
वाह नेताजी वाह, एसी कमरे, बोतलबंद पानी, चौबीस घंटे ऐशोआराम. आपको क्या पता कि पानी के बूंद-बूंद के लिए तरसना क्या होता है. आपको क्या पता बिजली की किल्लत क्या होती है. तंग गलियों में, चिलचिलाती गर्मी के बीच एक दिन बिना पानी और बिना पंखे के रहकर दिखाइए. वैसे आपको इसकी जरूरत भी नहीं और जो जनता मजबूर है, वो रहे उनकी बला से.
महाराष्ट्र ने दस साल में चार मुख्यमंत्री देखे, जिन्होंने 70 हजार करोड़ बहा दिए पानी के नाम पर, मगर महाराष्ट्र फिर भी प्यासा है. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास का ढोल सात समंदर पार तक सुनाई पड़ रहा है, मगर उससे दस जिलों की प्यास नहीं बुझ रही. देश की राजधानी दिल्ली भी जल-संकट से गुजर रही है. बड़े-बड़े दावों के बीच बूंद-बूंद को तरस रहे हैं लोग...
बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहा है महाराष्ट्र
आज तक वेब ब्यूरो
| नई दिल्ली/पुणे, 1 अप्रैल 2013 | अपडेटेड: 16:16 IST
महाराष्ट्र की धरती बूंद बूंद को तरस रही है. सूरज की सीधी किरणें जमीन
का सीना चीरने पर आमादा हैं. चालीस साल में कुदरत का ऐसा कहर कभी नहीं देखा
गया. ऐसा अकाल पहले कभी नहीं पड़ा, इंसान इतना बेबस कभी नहीं दिखा.
अभी गर्मी का प्रचंड रूप सामने नहीं आया है और अभी से ही महाराष्ट्र के
35 में से 16 जिले अकालग्रस्त हैं. करीब 11 हजार गांवों को सूखे ने अपनी
चपेट में ले रखा है. राज्य की 30 फीसदी यानी करीब सवा ग्यारह करोड़ जनता
पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रही है.
खेत-खलिहानों में सब्जियों व फसलों के लिए पानी की बात तो छोड़ ही दीजिए, लोगों को पीने का पानी भी बड़ी मुश्किल से मिल रहा है. महाराष्ट्र के 16 में से 5 जिलों की हालत बेहद खराब है.
वे पांच जिले हैं:
1. जालना
2. उस्मानाबाद
3. बीड़
4. सोलापुर
5. यवतमाल
कुदरत नाराज है, लिहाजा हर दिन पानी की किल्लत भी बढ़ती ही जा रही है.
सबसे खराब हालत है मराठवाड़ा की, जहां सिर्फ दस फीसदी पानी बचा है. नासिक डिविजन में 23 प्रतिशत पानी है और अमरावती में 30 फीसदी. पुणे डिविजन के बांधों में सिर्फ 31 प्रतिशत पानी बचा है और नागपुर डिविजन में 36 फीसदी. कोंकण डिविजन में 53 फीसदी पानी है.
यानी मराठवाड़ा की हालत सबसे ज्यादा खराब है और मराठवाड़ा में कुल आठ जिले हैं.
1. औरंगाबाद
2. नांदेड़
3. लातूर
4. जालना
5. बीड़
6. परभनी
7. उस्मानाबाद
8. हिंगोली
ऐसा नहीं है कि मराठवाड़ा पहली बार पानी की कमी से जूझ रहा है लेकिन इस बार के भीषण अकाल ने चालीस साल के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.
सूखे से निपटने के लिए सरकार हर मुमकिन कोशिश कर रही है. साल 2012-13 में करीब 2100 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं. लेकिन कुदरत के आगे सारी कोशिशें बेकार ही साबित हो रही हैं.
खेत-खलिहानों में सब्जियों व फसलों के लिए पानी की बात तो छोड़ ही दीजिए, लोगों को पीने का पानी भी बड़ी मुश्किल से मिल रहा है. महाराष्ट्र के 16 में से 5 जिलों की हालत बेहद खराब है.
वे पांच जिले हैं:
1. जालना
2. उस्मानाबाद
3. बीड़
4. सोलापुर
5. यवतमाल
कुदरत नाराज है, लिहाजा हर दिन पानी की किल्लत भी बढ़ती ही जा रही है.
सबसे खराब हालत है मराठवाड़ा की, जहां सिर्फ दस फीसदी पानी बचा है. नासिक डिविजन में 23 प्रतिशत पानी है और अमरावती में 30 फीसदी. पुणे डिविजन के बांधों में सिर्फ 31 प्रतिशत पानी बचा है और नागपुर डिविजन में 36 फीसदी. कोंकण डिविजन में 53 फीसदी पानी है.
यानी मराठवाड़ा की हालत सबसे ज्यादा खराब है और मराठवाड़ा में कुल आठ जिले हैं.
1. औरंगाबाद
2. नांदेड़
3. लातूर
4. जालना
5. बीड़
6. परभनी
7. उस्मानाबाद
8. हिंगोली
ऐसा नहीं है कि मराठवाड़ा पहली बार पानी की कमी से जूझ रहा है लेकिन इस बार के भीषण अकाल ने चालीस साल के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.
सूखे से निपटने के लिए सरकार हर मुमकिन कोशिश कर रही है. साल 2012-13 में करीब 2100 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं. लेकिन कुदरत के आगे सारी कोशिशें बेकार ही साबित हो रही हैं.
और भी... http://aajtak.intoday.in/story/drought-hits-16-districts-of-maharashtra-villagers-migrate-to-cities-1-726075.html
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