शुक्रवार, 31 मई 2013

ब्रिटेन का सबसे गरीब शहर: जहां दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं

 शनिवार, 1 जून, 2013 को 07:43 IST तक के समाचार

ब्रिटेन का सबसे गरीब शहर
नॉटिंघम में एक परिवार की औसत सलाना आमदनी पूरे ब्रिटेन से सबसे कम आंकी गई है.
एक क्लिक करें शहर जो कभी अपने मस्त डिजाइनों वाले साइकिल और जूतों, रॉबिन हुड, डीएच लॉरेंस जैसे ब्राण्डों के लिए दूर-दूर तक मशहूर था, आज दो वक्त की रोटी जुटाने में खुद को असमर्थ पा रहा है.
ब्रिटेन का वह शहर है नॉटिंघम. आजकल ये देश के सबसे क्लिक करें अभावग्रस्त शहर के रुप में चर्चा में है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग के ताजा आंकड़ों के अनुसार पूरे ब्रिटेन की तुलना में नॉटिंघम ही वह शहर है जहां लोगों की आमदनी सबसे कम है.
एक आंकड़े के अनुसार टैक्स चुकाने के बाद एक औसत ब्रितानी परिवार की सलाना आमदनी, 16,034 पाउण्ड बनती है जबकि नॉटिंघम में यह मात्र 10,834 पाउण्ड ही है.

तकाजे पर तकाजा

"दिन भर में एक टोस्ट के अलावा हमें खाने को कुछ भी नसीब नहीं होता. यह हेल्दी तो नहीं, मगर सस्ता जरूर है.”"
माइकेल, मेडोज का एक शहरी
इसलिए यह कड़वा सच है कि कर्ज देने वाले क्लिक करें महाजनों और बैंकों के लिए मेडोज एक 'स्वर्ग' है.
यहां उधार देने वाले लोग अपने ग्राहक की हैसियत के अनुसार उन्हें कर्ज देते है, लेकिन स्थिति इतनी आसान नहीं है.
मेडोज पार्टनरशिप ट्रस्ट की शेरोन मिल्स बताती हैं कि ऐसा क्यों है?
शेरोन मिल्स ने मुझे बताया, "आप हैरान परेशान हैं, और आपके बच्चे को तीन दिनों से एक दाना तक नसीब नहीं हुआ है. ऐसे में आपके दरवाजे पर कोई व्यक्ति पैसे लेकर हाजिर हो जाए, तो वो किसी मसीहा से कम नहीं लगता."
मगर मिल्स अगले ही पल बताती हैं, "मगर यही मसीहा कब भेड़िए का ऱुप ले लेगा, आपको पता नहीं चलेगा."
वे कहती हैं, "उसे पता है, आपकी तनख्वाह महीने की कौन सी तारीख को हाथ में आती है. अपने उधार दिए गए पैसे लेने के लिए वह उस दिन बिना एक पल की देर किए, दरवाजे पर तकाजा देने के लिए हाजिर रहता है."

'ड्रेसिंग गाऊन'

ब्रिटेन का सबसे गरीब शहर
मेडोज में गिने चुने लोग ही संपन्न हैं.
अभाव ने मेडोज का नक्शा ही बदल दिया है. अपराध, हिंसा, ड्रग्स और शराब जैसी खामियां इसकी खूबियां बन गई हैं. अब लोग इसे इसी रूप में पहचानने लगे हैं.
मैं माइकल से मिला. एक 20 साल का लंबा तगड़ा युवक.
माइकल ने मुझे बताया, "ऐसा लगता है मानों मैं किसी कैदखाने में रह रहा हूं."
उसने कहा, "एक टोस्ट के अलावा हमें खाने को कुछ भी नसीब नहीं होता, ये सेहतमंद नहीं है, मगर सस्ता जरूर है."
माइकेल सारा दिन मटरगश्ती और अड्डेबाजी करता है.
35 साल की राचेल ओल्डफील्ड बताती हैं, "दोपहर के 3.30 बजने वाले हैं. मगर देखो, सारे लोग अपने ड्रेसिंग गाउन में टहल रहे है. सब हताशा के मारे हुए हैं."
"मैं मेडोज में रहती हूं. इसलिए इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हूं कि मैं कौन हूं, और क्या कर सकती हूं."
राचेल ओल्डफील्ड, मेडोज की एक शहरी
वेतन मिलने वाले दिन कर्जदार तकाजा करने पहुंच जाते हैं.
राचेल बताती हैं कि उनका मूड उस दिन कैसे खराब हो जाता है.
वे बताती हैं, "मैं उस दिन दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रही होती हूं. मन ही मन प्लानिंग चलती रहती है कि आज दोस्तों के पास जाऊंगीं, हम बाहर खाना खाएंगे. मगर अफसोस, ऐसा कभी नहीं होता. क्योंकि तब तक पैसे देनदारों की जेब में पहुंच चुके होते हैं."

जिंदा रहने का संघर्ष

राचेल को हर महीने के अंत में तनख्वाह मिलती है. उनके सारे पैसे किराए और बिल भरने में खत्म हो जाते हैं.
महीने के बाकी दिन उन्हें 140 पाउण्ड के टैक्स क्रेडिट और 134 पाउण्ड के चाइल्ड बेनीफिट पर गुजारने होते हैं.
हालांकि वे खुद को गरीब नहीं मानतीं. वे तर्क देती हैं कि उनकी बेटी चॉकलेट खरीदती है और बेटा फुटबाल खेलता है...
वह मेडोज में रहने वाले और लोगों के बनिस्पत खुद को भाग्यशाली मानती हैं.
ब्रिटेन का गरीब देश
नॉटिंघम के कई हिस्सों में बेरोजगारी की दर 8 फीसदी से भी अधिक है.
वे बताती हैं, "मेरी गली में ऐसे कई बच्चे हैं जिनके मां बाप के पास कार नहीं है. वे कहीं घूमने भी नहीं जाते."

उम्मीदों का दामन

मेडोज के लोगों में पल रहे अभाव का सबसे बड़ा सबूत यह है कि यहां कोई वीकेंड नहीं मनाता.

अब्दुल हक मेडोज में साल 1973 में आकर बस गए. अभी वो जोड़ के दर्द की तकलीफ और मधुमेह की बीमारी से जूझ रहे हैं.
शारीरिक अक्षमता के लिए अब्दुल को जो गुजारा भत्ता मिलता है, उन्हें उसी पर गुजारा करना पड़ता है.
वे बताते हैं, "मैं पिछले छह सालों से छुट्टियां मनाने कहीं नहीं गया. यह संभव भी नहीं है. हमारी हैसियत इतनी नहीं है. इसलिए मैं टहल कर ही अपना मन बहला लेता हूं."
मगर मेडोज के लिए एक अच्छी खबर है. यहाँ एक नया फूड बैंक खुला है.
यहां बच्चों के लिए दूध और ब्रेड किफायती दरों पर उपलब्ध की जा रही है.
लोगों ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है. आमदनी का स्तर बढ़ाने के लिए जड़ी-बूटियों की खेती शुऱू की गई है.
आशा है कि यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी और मेडोज एक दिन जरूर इन चुनौतियों को जीत लेगा.

गुरुवार, 30 मई 2013

आप अपने प्रेमी को कद्दू कहेंगे, गोभी कहेंगे या हाथी?

 गुरुवार, 30 मई, 2013 को 14:26 IST तक के समाचार

प्रेम की भाषा
कार्ला ब्रूनी अपने पति और फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति निकोला सारकोज़ी को प्यार से ‘शू शू’ बुलाती हैं. समांथा कैमरन को अपने पति प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को कहते सुना गया- ‘आय लव यू बेब’.
अमरीका की प्रथम महिला क्लिक करें मिशेल ओबामा ने ट्विटर पर सबसे ज़्यादा ट्वीट की गई तस्वीर के बारे में कुछ यूं बयान किया- ‘ दैट्स माय हनी गिविंग मी अ हग’.
क्लिक करें प्रेम जताने के लिए कई भाषाओं में ‘बेबी’, ‘एंजेल’ और ‘स्वीटहार्ट’ जैसे लफ़्ज़ों का इस्तेमाल होता है. लेकिन कई जगह ऐसे शब्द के इस्तेमाल को अच्छा नहीं माना जाता है. अगर आप किसी फ्रैंच व्यक्ति से ‘हनी’ कहें तो वो इसकी तुलना पसीने में लथपथ किसी चीज़ से कर सकता है.
और आप इसे कैसे लेंगे, जब आपको कोई फूलगोभी, पिस्सू या हाथी का बच्चा कहकर बुलाए?
भाषा कोच पॉल नोबल की मदद से हम आपके लिए प्रेम की भाषा की एक गाइड पेश कर रहे हैं जिसका दुनियाभर में प्रयोग होता है. इनमें से कई उपमाएं पाक कला या फिर जानवरों से ली गई हैं.

लिटिल कैबेज यानी छोटा गोभी (फ्रेंच- पूटी शू)

love language
फ्रैंच भाषा में प्रियतम को कहते हैं- शू
‘शू’ यानी बंदगोभी शब्द का इस्तेमाल फ्रेंच में प्रियतम के लिए होता है. ‘शू’ का मतलब किसी छोटी और गोलमटोल चीज़ से है और फ्रेंच में इसे पफ़ पेस्ट्री के लिए प्रयोग करते हैं.
छोटे बच्चे के सिर के लिए भी यही शब्द है. सालों से फ्रेंच बच्चों को बताया जाता रहा है कि लड़के बंदगोभी में पैदा होते हैं और लड़कियां गुलाब में.
अगर आप किसी को दो बार ‘शू शू’ कहकर बुलाते हैं तो इसका मतलब होगा – डार्लिंग यानी प्रिय.

पम्पकिन यानी कद्दू (ब्राज़ील/पुर्तगाली- चूचूज़िन्हो)

ब्राजील में ‘चूचू’ को स्क्वैश यानी शर्बत के लिए इस्तेमाल किया जाता है. मगर ये शब्द फ्रेंच ‘शू शू’ के काफ़ी नज़दीक लगता है.
हो सकता है कि यही फ़्रेंच शब्द पुर्तगाली भाषा में प्रेमी को बुलाने के लिए इस्तेमाल होने लगा हो. (एक तरकारी का मतलब भी यही है).
आख़िर में लगे शब्द ‘ज़िन्हो’ का मतलब है ‘छोटा’. इससे व्यक्ति की चाहत का पता चलता है.

एग विद आईज़ (जापानी – तामागो कातो नो काओ)

जापान में महिलाएं अपने प्रेमियों को अक्सर ‘एन एग विद आइज़’ कहकर बुलाती हैं. हिंदी में कहें तो आंखों वाला अंडा.
इसे वहां बेहद सम्मानजनक समझा जाता है क्योंकि जापानी संस्कृति में अंडाकार चेहरा काफी आकर्षक माना जाता है.
आप इसे सदियों से उकेरी जा रही जापानी चित्रकला के नमूनों में भी देख सकते हैं.

लंप ऑफ सुगर (स्पेनिश – टेरॉन डे अज़ुकार)

love language
जापानी में प्रेमियों को एग विद आइज़ कहते हैं.
अंग्रेजी के ‘हनी’ शब्द की तरह आपको दूसरी भाषाओं में भी किसी मीठी चीज़ वाले क्लिक करें प्रेम या लगाव से जुड़े शब्द मिल जाएंगे.
स्पेनिश भाषा में लोकप्रिय शब्द ‘टेरॉन डे अज़ुकार’ का एक मतलब चीनी का टुकड़ा भी है.
ज़ाहिर है मिठास के पैमाने पर सबसे ऊपर होने कारण इसका इस्तेमाल भी कुछ किफायत के साथ ही होता है.

फ़्रूट ऑफ माय हार्ट (इंडोनेशियाई- बुआह हातिकु)

हालांकि इस इंडोनेशियाई मुहावरे का इस्तेमाल प्रेमगीतों और कविताओं में क्लिक करें रोमैंटिक अर्थ में होता है पर आजकल इसे बच्चों के प्रति स्नेह जताने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
विज्ञापनों में इसका इस्तेमाल परिवार से लगाव रखने वाले ग्राहकों और ख़ासकर युवा मध्यवर्गीय जोड़ों को रिझाने के लिए किया जाता है. मसलन ‘आपके फ्रूट ऑफ़ हार्ट के लिए सर्वोत्तम उपहार/भोजन/ प्रोडक्ट.’
आपको ये मुहावरा बच्चों की परवरिश से जुड़ी तकरीबन सभी किताबों और लेखों में देखने को मिलेगा. राजधानी जकार्ता के पास बने एक अस्पताल का नाम भी 'फ़्रूट ऑफ माय हर्ट' है. साथ ही ये मुहावरा बच्चों के लिए काम करने वाले संगठनों के नामों में भी मिलेगा.

माय फ्ली यानी मेरा पिस्सू (फ्रेंच – मा प्यूस)

love language
फ्रैंच का शब्द 'मा प्यूस' भी प्यार के इज़हार के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
‘मा प्यूस’ अंग्रेज़ी के शब्द ‘स्वीटी’ के काफ़ी करीब है. कुछ लोग इसे इंसानों और पिस्सुओं के बीच ऐतिहासिक रिश्ते से जोड़कर देखते हैं.
पुराने ज़माने में एक दूसरे के ऊपर से पिस्सुओं को हटाना रोज़मर्रा का काम होता था. कथित तौर पर यह एक आनंददायी और कभी कभी अंतरंग प्रक्रिया भी होती थी.

गैज़ेल (अरबी – ग़ज़ल)

क्लासिकल अरबी काव्य ख़ूबसूरत गज़ल (महिलाओं के लिए उपमा) के वर्णनों से भरा पड़ा हैं. ख़ूबसूरत महिलाओं की नज़रों के ‘ख़तरनाक तीरों’ के सैकड़ों हवाले आपको मिल जाएंगे.
अगर आप कवियों की बातों पर यक़ीन करें तो वो कहते हैं कि गज़ल की एक नज़र से लोग प्रेम रोग के शिकार होकर मर जाते थे.
आज कोई पुरुष किसी महिला को कह सकता है, ‘तुम्हारी आंखें गज़ल की तरह हैं.’ माना जा सकता है कि वो महिला के प्रेम में गिरफ़्तार है.

लिटिल एलीफ़ेंट यानी छोटा हाथी (थाई – चांग नोई)

love language
थाई लोग अपने प्रेमी को लिटिल एलीफेंट कहकर पुकारते हैं.
थाई लोगों को सभी जानवरों में हाथी सबसे प्यारे हैं. ख़ासकर सफ़ेद हाथियों को सौभाग्यशाली माना जाता है. इसलिए प्रेमी को लिए 'चांग नोई' छोटा हाथी भी कहा जाता है.
हाथी का प्रतीक शायद हिंदू देवता गणेश से आया है. जो बताता है कि भारतीय संस्कृति का पूरे क्षेत्र में कितना गहरा प्रभाव था.
हाथियों ने देश को इतना सम्मोहित कर रखा है कि एक वक्त वो देश के झंडे पर प्रतीक की तरह इस्तेमाल होते थे.

डाइविंग फ़िश स्वूपिंग गीज़ (चायनीज़ – चेन यू लुओ यान)

चीन के इतिहास में सबसे ख़ूबसूरत महिला शी श्री की एक कहानी है. कहा जाता है कि वो इतनी ख़ूबसूरत थीं कि जब उन्होंने तालाब में एक मछली को देखा तो मछली उनके सौंदर्य के वशीभूत तैरना भूल गई और धीरे-धीरे तली में चली गई.
ये भी कहते हैं कि जब हंस ने उन्हें देखा तो वो पंख फड़फड़ाना भूल गए और आखिरकारे ज़मीन पर आ गिरे.
आज जब एक चीनी पुरुष किसी चीनी महिला से प्रेम करता है तो वो उसे कह सकता है कि तुम बिल्कुल शी श्री की तरह सुंदर हो. इसके लिए वो सिर्फ ये चार शब्द कहेगा – चेन यू लुओ यान यानी डूबती मछली और फड़फड़ाता हंस.

छोटे कबूतर यानी लिटिल डव (रूसी– गोलुब्चिक/गोलुबुश्का)

मशहूर रूसी कवि पुश्किन ने एक कविता में अपनी नैनी के लिए ‘लिटिल डव’ शब्द का इस्तेमाल किया है. हो सकता है कि नैनी ने भी पुश्किन के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया हो, जब वो बच्चे थे.
प्रेम जताने के लिए इस शब्द का प्रयोग बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट के सॉन्ग ऑफ सॉन्ग्स में भी हुआ है (ओह माय डव…मुझे अपने अनुग्रह को देखने दो), जिसे मूलतः हिब्रू में लिखा गया था.
बाइबिल के स्लावोनिक अनुवाद का रूसी भाषा को आकार देने में काफ़ी योगदान रहा है. इसलिए इस शब्द के रूसी इस्तेमाल के पीछे बाइबिल का हाथ हो सकता है.

बुधवार, 29 मई 2013

नालंदा विश्वविद्यालय को मिली नई ज़िंदगी

 बुधवार, 29 मई, 2013 को 16:13 IST तक के समाचार

नालंदा विश्वविद्यालय
यूरोप के ऑक्सफ़ोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से भी कई सदी पहले बिहार का नालंदा विश्वविद्यालय शिक्षा और ज्ञान का एक प्रतिष्ठित केंद्र था.
पांचवी सदी में बने इस विश्वविद्यालय में एशिया के लगभग हर इलाक़े से लोग पढ़ने आते थे. लेकिन 1193 में हमलावरों ने इसे नष्ट कर दिया.
लेकिन अब 21वी सदी के पहले दशक में कुछ विद्वानों ने इस प्राचीन विश्वविद्यालय की गरिमा को बहाल करने की योजना बनाई है.
विद्वानों के इस गुट की अगुवाई की नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफ़ेसर अमर्त्य सेन ने.
सेन और उनके सहयोगी प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर से सटे हुए एक विश्व विख्यात विश्वविद्यालय बनाना चाहते हैं, जहां दुनिया भर के छात्र और शिक्षक एक साथ मिलकर ज्ञान अर्जित कर सकें.
इस नए विश्वविद्यालय में तमाम आधुनिक विषयों की शिक्षा दी जाएगी. लेकिन बिहार जैसे ग़रीब और अविकसित राज्य में एक विश्व स्तर का विश्वविद्यालय बनाना बहुत कठिन काम है.
अमरीका के बॉस्टन कॉलेज के प्रोफ़ेसर फ़िलिप ऑल्टबैक इस तरफ़ इशारा करते हुए कहते हैं, ''क्या उच्च स्तर के छात्र और शिक्षक ग्रामीण बिहार की तरफ़ आकर्षित होंगे?''

2014 से पहला बैच

"हमारा काम नए विश्वविद्यालय की स्थापना करना और पढ़ाई शुरू कर देना है. यह एक शुरूआत है. पुराना विश्वविद्यालय लगभग 200 वर्षों में अपनी ख्याति के चरमसीमा पर पहुंचा था. हमलोगों को शायद 200 साल नहीं लगेंगे लेकिन कुछ दशक तो लगेंगे ही."
प्रोफ़ेसर अमार्त्या सेन, विश्वविद्यालय के कुलाधिपति
लेकिन नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति अमर्त्य सेन इन सब अटकलों को ख़ारिज करते हुए कहते हैं, ''हमारा काम नए विश्वविद्यालय की स्थापना करना और पढ़ाई शुरू कर देना है. यह एक शुरुआत है. पुराना विश्वविद्यालय लगभग 200 वर्षों में अपनी ख्याति की चरमसीमा पर पहुंचा था. हमलोगों को शायद 200 साल नहीं लगेंगे लेकिन कुछ दशक तो लगेंगे ही.''
साल 2006 में भारत, चीन, सिंगापुर, जापान और थाईलैंड ने पुराने नालंदा विश्वविद्यालय को दोबारा शुरू करने की योजना की घोषणा की, जिसका बाद में अमरीका, रूस जैसे देशों ने भी समर्थन किया.
नए विश्वविद्यालय को राजगीर में बनाया जा रहा है जो प्राचीन विश्वविद्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है. सबसे पहले इतिहास और पर्यावरण की पढ़ाई होगी जिसके लिए दुनिया भर में विज्ञापन दिया जा चुका है.
अमार्त्या सेन( फाइल फोटो)
अमार्त्या सेन विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं.
साल 2014 से पहला बैच शुरू होगा.
विश्वविद्यालय के लिए ज़मीन बिहार सरकार ने दिया है जबकि बाक़ी ख़र्चों के लिए केंद्र सरकार और कई विदेशी देश सहायता कर रहे हैं. प्रोफ़ेसर सेन के अनुसार विश्वविद्यालय को धीरे-धीरे बनाया जाएगा और इस बीच पढ़ाई भी चलती रहेगी.
प्रोफ़ेसर सेन का कहना है कि नए विश्वविद्यालय की प्रेरणा एशियाई राज्यों से मिली है लेकिन शिक्षा, विषय और विशेषज्ञों के मामले में ये विश्व स्तर का होगा.

गौरवशाली इतिहास

पांचवी सदी में बने इस विश्वविद्यालय में एक समय में लगभग 10 हज़ार छात्र पढ़ते थे. छात्रों में ज्यादातर चीन, जापान, कोरिया और दूसरे एशियाई देशों से आने वाले बौद्ध भिक्षु थे.
चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने सातवीं सदी में नालंदा में शिक्षा हासिल की थी और उन्होंने अपनी किताब में तत्कालीन विश्वविद्यालय की भव्यता का ज़िक्र किया है. वह अपनी किताब में नौ मंज़िली लाइब्रेरी का ज़िक्र करते हैं.
दलाई लामा
दलाई लामा का मानना है कि बौद्ध धर्म का सारा ज्ञान नालंदा विश्वविद्यालय से ही मिला है.
जनवरी 2013 में जयपुर साहित्य मेले में तिब्बतियों के धार्म गुरू दलाई लामा ने कहा था, ''बौद्ध धर्म के सभी ज्ञान का स्रोत नालंदा विश्वविद्यालय है.''
नालंदा विश्वविद्यालय उस समय बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा शैक्षणिक केंद्र था. नया नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन संस्थान के बौद्धिक स्तर को पाने की कोशिश ज़रूर करेगा लेकिन ये कोई धार्मिक शिक्षण केंद्र नहीं होगा.
इस विश्वविद्यालय के क़रीब ही बोध-गया में महात्मा बुद्ध को 'ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी.

बाधाएं

दुनिया भर के बेहतरीन विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञ माने जाने वाले प्रोफ़ेसर ऑल्टबैक को इस नए विश्वविद्यालय के स्थान को लेकर काफ़ी शक है.
"नालंदा कुछ बड़े विद्वानों को ज़रूर अपनी ओर आकर्षित कर सकता है लेकिन शिक्षक उसी जगह रहना चाहते हैं जहां आधारभूत ढांचा उच्च स्तर का हो. वो कॉलेज परिसर के बाहर भी बौद्धिक लोगों को ढ़ूंढते हैं."
प्रोफ़ेसर ऑल्टबैक
उनका कहना है, ''नालंदा कुछ बड़े विद्वानों को ज़रूर अपनी ओर आकर्षित कर सकता है लेकिन शिक्षक उसी जगह रहना चाहते हैं जहां आधारभूत ढांचा उच्च स्तर का हो. वो कॉलेज परिसर के बाहर भी बौद्धिक लोगों को ढ़ूंढते हैं.''
लेकिन विश्वविद्यलय परियोजना से जुड़े लोग तनिक भी निराश नहीं हैं.
नालंदा विश्वविद्यालय के गवर्निंग बॉडी के सदस्य और लोकसभा सांसद नंद किशोर सिंह कहते हैं कि विश्वविद्यालय के कारण इस क्षेत्र का विकास होगा और विश्वविद्यालय आस-पास के 60 गांवों के साथ मिलकर काम कर रहा है.
नंद किशोर सिंह के अनुसार बिहार में तेज़ी से विकास हो रहा है और आधारभूत ढाँचों पर काफ़ी तवज्जो दी जा रही है. पास ही गया में एक अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बन रहा है और राज्य सरकार पूरी तरह से नालंदा विश्विद्यालय परियोजना के साथ है.

mulnivasi








मंगलवार, 28 मई 2013

एड. जे.एस.कश्यप (कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष, बहुजन मुकित पार्टी)


 यह किताब एड. जे.एस.कश्यप (कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष, बहुजन मुकित पार्टी) के द्वारा लिखी गर्इ है। इस किताब का प्रकाशक-मूलनिवासी पबिलकेशन ट्रस्ट है।





Mulnivasi nayak








mulnivasi nayak









कैसे मॉडर्न आर्ट में बदला काँगड़ा का गाँव!

 मंगलवार, 28 मई, 2013 को 17:03 IST तक के समाचार

13 कलाकारों ने मिलकर गाँव के चौक का रंगरोगन करके चमका दिया.
हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िले में गुनेहड़ गाँव गूगल मैप पर दिखलाई नहीं पड़ता. पर पिछले हफ़्ते वहाँ एक ऐसा अनोखा आर्ट प्रोजेक्ट आयोजित किया गया जिसमें गाँव के लोग भी उतने ही साझीदार थे, जितने देश-विदेश से आए कलाजीवी. महानगरों की चौंध से बहुत दूर और शहरी कलावीथिकाओं से बहुत बाहर इस गाँव के शॉपआर्ट/आर्टशॉप प्रोजेक्ट को पिछले चार हफ़्तों में 1,70,000 से ज़्यादा हिट्स तो फ़ेसबुक पर ही मिल गए. इसके लिए न तो कोई संस्थागत मदद थी, न सरकारी और न ही कोई बड़ी पब्लिसिटी.
बंगलौर, कोलकाता और गोवा के अलावा इस प्रोजेक्ट में शामिल होने वाले आर्टिस्ट हांगकांग, लिस्बन, मैक्सिको और दक्षिण अफ़्रीका से भी गुनेहड़ आए थे. पहले तो सबने मिलकर गाँव के चौक का रंगरोगन करके चमका दिया. चार हफ़्ते ये कलाकार बिना होटल वाले गाँव में लोगों के बीच ही रहे.
आयोजक फ़्रैंक श्लिच्टमैन का मानना है कि यह प्रोजेक्ट यह साबित करने में कामयाब रहा कि मॉडर्न आर्ट का आमफहम लोगों से एक रिश्ता क़ायम हो सकता है. हिमाचल प्रदेश में अगर आप सड़क किनारे रहते हैं, तो ये बहुत आम है कि आप वहाँ छोटी-छोटी दुकानें बना दें, भले ही वे चलें या न चलें. काँगड़ा में रेस्त्रां चलाने वाले फ़्रैंक ने इस प्रोजेक्ट के लिए भारत और बाहर से 13 कंसेप्चुअल आर्टिस्ट्स की मदद ली और गाँव की बंद पड़ी दुकानों को ही कला में बदलने का प्रस्ताव रखा. फ़्रैंक और उनके कलाजीवी दोस्तों के सामने चुनौती यह थी कि इन दुकानों के साथ चार हफ़्तों में स्थानीय सामग्रियों और परम्परा के साथ ऐसा क्या किया जा सकता है कि मॉडर्न आर्ट गाँव के लोगों से बात करने लगे. फ़्रैंक के मुताबिक़ एक ऐसी जगह पर आर्ट प्रोजेक्ट करने का एक पक्ष यह भी है कि कला पर कलाकार का रौबदाब हावी नहीं होता, क्योंकि लोग उनके बारे में कुछ जानते ही नहीं.
गुनेहड़ के लोगों के लिए शुरू में अजीब रहा, पर धीरे-धीरे वे भी इस रचना प्रक्रिया में शामिल होते गए. डच आर्टिस्ट एलेना परेरा ने वहां फूलों की दुकान सजाई और कहा, 'हम भले ही एक ज़ुबान में बात न करें, पर औरतें सौंदर्य समझती हैं और मेरा काम देखकर गाँव की औरतें मुझे देखकर मेरे पास आने लगीं और कहतीं, कितना सुंदर है.' एलेना ने काँगड़ा घाटी के फूलों के जंगली गोंद से पेंडेंट और फ़ानूस बनाए.
ब्रिटिश-दक्षिण अफ्रीकी आर्टिस्ट तान्या वेसल्स के लिए हिंदुस्तानी गाँवों से यह पहला साबका था. और उनकी निगाह गई औरतों की कुर्डी- तिकोनी शंकुनुमा टोकरियों की तरफ़, जो बाँस की होती हैं. उन्होंने चकमक रंगों वाली नायलोन की डोरियों से उनका कुछ ऐसा कायापलट किया कि गाँव की एक लड़की के मुताबिक़, 'अब वे दो हज़ार रुपयों की एक बिक सकती है'. क्या करेंगे इन कुर्डियों का? गांव की ही अनुपमा कहती है- शादी, त्यौहारों में मिठाई बाँटेंगे. गाँव की औरतों के लिए जो कुर्डी अब तक एक साधारण सी टोकरी थी, यकायक एक ऐसी 'एसेसरी' में बदल गई है, जिसके बारे में अब थोड़ा इतराया जा सकता है.
कोलकाता से आई स्प्रिहा चोखानी की नज़र गांव के लोगों के अलग-अलग तरह के जूतों पर गई और उन्होंने पेपरमैशे के वैसे ही जूते बनाकर अनिल कुमार की चाय दुकान के स्टूलों पर पहना दिए. स्प्रिहा के मुताबिक लोगों के जूते उनकी जिंदगी और यात्राओं की तरह अलग-अलग होते हैं- राजपूतों के अलग, गडरियों के अलग और बच्चों के अलग. अनिल के साथ मिलकर दोनों ने काग़ज़ की लुगदी से पर्दे भी बनाए और शैल्फ भी सजाए.
गोवा से आई बियांका बैलेन्टाइन ने गांव के बच्चों के साथ आर्ट वर्कशॉप की, जहाँ पहले तो सभी एक ही तरह के चित्र बना रहे थे, पर धीरे-धीरे वे गाँव के आसपास बिखरे कंकड़-पत्थरों, पत्तियों और टहनियों के साथ कलाकृतियाँ बनाने लगे. बंगलौर की युवा सिंधु तिरामलयसामी ने गाँव में 'आवाज़ की दुकान' खोली जिसमें बॉलीवुड के गानों के न बिके कैसेटों के बीच किसी निल्ली नाम की गायिका की आवाज में पहाड़ी गीतों का टेप ढूँढ निकाला जिसे सुनने में सबकी दिलचस्पी तो थी पर यह किसी को यकीन से नहीं पता था कि वह गीत कुल्लू का है या डोंगरी या फिर गद्दी गड़रियों का. बहुत पूछताछ और बहस के बाद पता चला कि वह जंगल के अंधेरे में भटकी एक लड़की के अपने घर, अपने देस जाने के बारे में है. सिंधू बंगलौर के एक अस्पताल की आवाज़ों पर प्रोजेक्ट कर चुकी हैं. लोकस्मृति से ओझल होते हुए इस गीत की गाँववालों की मदद से सिंधू ने सीडी बनाई, जिसे ख़ूब सुना गया. सीडी बिकी भी.
बच्चों के साथ ही फिल्मकार केएम लो ने एक रूपया मूवी थियेटर शुरू किया जिसमें बच्चों ने 10 आलसी भाइयों के मुसीबत में फँसी राजकुमारी को बचाने के क़िस्से को अपने हिसाब से शूट किया और फ़िल्म बनाई. इंस्टालेशन आर्टिस्ट विवेक चोक्कालिंगम ने गाँव के दो टीलों के बीच 'माउंटेन स्काईस्क्रेपर' बनाया जो गाँव के आस-पास फैले कचरे और कबाड़ से बना है और जिसमें चिप्स की प्लास्टिक थैलियाँ का भी इस्तेमाल किया गया है. शुरू में किसी को समझ नहीं आया कि ये क्या बन रहा है, पर धीरे-धीरे इसमें गाँव के लोग न सिर्फ दिलचस्पी दिखाने लगे, बल्कि हिस्सा भी लेने लगे.
हफ़्ते भर चली इस कला प्रदर्शनी की शुरूआत जहाँ 'ख़ामोश पानी' फ़िल्म के संगीतकार और जैजयात्रा के प्रमुख सूत्रधारों में से एक अर्जुन सेन के कंसर्ट से हुआ, जबकि आख़िरी शाम पहाड़ी संगीत के स्थानीय सितारे और 'नटी के शहंशाह' नरेन्द्र ठाकुर ने समां बाँधा, जिन्हें क़रीब 1500 लोगों ने उन्हें सुना.
क़रीब 1500 बाशिंदों के इस गाँव से सैलानी पास के बौद्ध मठ देखने या पैराग्लाइडिंग का रोमांच लेने गुज़र जाते हैं, वहाँ रुकते नहीं. पर शायद इस प्रोजेक्ट के बाद वे एक बार ठिठकने के लिए मजबूर ज़रूर हो जाएँगे. और अब जब ये फ़र्क करना मुश्किल है कि ये गाँव का मेला था या मॉडर्न आर्ट का प्रोजेक्ट, शायद गूगल के नक़्शे में गुनेहड़ गाँव भी एक चमकदार बिंदु की तरह जल्द ही दिखने लगे.
 

सलवा जुडूम का बदला लेकिन खेद भी: नक्सली नेता

 मंगलवार, 28 मई, 2013 को 12:42 IST तक के समाचार

महेन्द्र कर्मा (फ़ाइल फ़ोटो)
महेन्द्र कर्मा ने 2005 में सलवा जुडूम का गठन किया था जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ग़ैर-क़ानूनी क़रार दिया था.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी नेताओं के क़ाफ़िले पर हुए घातक हमले के तीन दिन बाद भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(माओवादी) ने कहा है कि हमले का लक्ष्य मुख्य रूप से महेन्द्र कर्मा तथा ‘कुछ अन्य कांग्रेस नेताओं का ख़ात्मा करना था.’
सोमवार देर शाम क्लिक करें बीबीसी को भेजी गई एक विज्ञप्ति और एक रिकॉर्ड किए गए बयान में दंडकारण्य विशेष ज़ोनल कमिटी के प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी ने हमले की ज़िम्मेदारी लेते हुए कहा कि सलवा जुडूम का बदला लेने के लिए हमला किया गया था.
गुड्सा उसेंडी का कहना था कि 'दमन की नीतियों' को लागू करने में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की समान भागीदारी है.
हालांकि माओवादियों के पास इसका कोई जवाब नहीं है कि छत्तीसगढ़ में तो पिछले 10 बरसों से भारतीय जनता पार्टी का शासन है फिर उन्होंने कांग्रेस की रैली से लौट रहे नेताओं को क्यों निशाना बनाया?
"कर्मा का परिवार ‘भूस्वामी होने के साथ-साथ आदिवासियों का अमानवीय शोषक व उत्पीड़क’ रहा है. बस्तर में जो तबाही मचाई गई और जो क्रूरता बरती गई, उसकी तुलना में इतिहास में बहुत कम उदाहरण मिलेंगे. माओवादियों के अनुसार सलवा जुडूम छत्तीसगढ़ की जनता के लिए अभिशाप बन गया था."
गुडसा उसेंडी
ग़ौरतलब है कि शनिवार को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा से लौट रहे नेताओं पर हुए नक्सली हमले में प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा समेत 24 लोगों की मौत हो गई थी.

'जनता के लिए अभिशाप'

सलवा जुडूम की चर्चा करते हुए उसेंडी का कहना था, "बस्तर में जो तबाही मचाई गई और जो क्रूरता बरती गई, उसकी तुलना में इतिहास में बहुत कम उदाहरण मिलेंगे."
माओवादियों के अनुसार सलवा जुडूम छत्तीसगढ़ की जनता के लिए अभिशाप बन गया था.
राज्य के पूर्व गृहमंत्री और छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल पर माओवादियों का आरोप है कि वो जनता पर ‘दमनचक्र चलाने में आगे रहे थे’.
नक्सली हमला
इस हमले में कुल 24 लोग मारे गए थे.
उसेंडी का कहना है कि पटेल के समय में ही बस्तर क्षेत्र में पहली बार अर्ध-सैनिक बलों की तैनाती की गई थी.
लेकिन पटेल तो छत्तीसगढ़ के बनने से पहले दिग्विजय सिंह के समय में मध्यप्रदेश के मंत्री थे.

वीसी शुक्ल

हमले का शिकार होने वाले कांग्रेसी नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री वीसी शुक्ल भी शामिल थे. शुक्ल बुरी तरह से घायल हुए थे और फ़िलहाल दिल्ली से सटे गुड़गांव के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है.
वीसी शुक्ल पर हमले के बारे में उसेंडी ने कहा, ''ये भी किसी से छिपी हुई बात नहीं है कि लंबे समय तक केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहकर गृह विभाग समेत विभिन्न अहम मंत्रालय संभालने वाले वीसी शुक्ल भी जनता के दुश्मन हैं, जो साम्राज्यवादियों, दलाल पूंजीपतियों और ज़मींदारों के वफ़ादार प्रतिनिधि के रूप में शोषणकारी नीतियाँ बनाने और लागू करने में सक्रिय रहे.''
लेकिन वीसी शुक्ल तो लगभग दस साल से छत्तीसगढ़ या केंद्र की राजनीति में अहम भूमिका नहीं निभा रहे हैं फिर उन्हें क्यों निशाना बनाया गया ये समझ से परे है.
कांग्रेस के क़ाफ़िले पर हुए हमले में कई निर्दोष लोगों की भी हत्या हुई जैसे वाहनों के ड्राइवर, ख़लासी और कांग्रेस के निचले स्तर के नेता.
"'दमन की नीतियों' को लागू करने में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की समान भागीदारी है."
गुडसा उसेंडी
माओवादियों ने इन लोगों की हत्या पर खेद प्रकट किया है.

'सेना की ज़रूरत नहीं'

इस बीच माओवादी हमले के कारण चौतरफ़ा हमला झेल रहे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने सुरक्षा में चूक की बात स्वीकार की है.
एक भारतीय समाचार चैनल से बातचीत के दौरान रमन सिंह ने कहा कि क्लिक करें नक्सलियों से निपटने के लिए फ़िलहाल सेना की ज़रूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि सेना का इस्तेमाल लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा.
उत्तर प्रदेश कांग्रेस इस हमले के ख़िलाफ़ मंगलवार को राज्य भर में विरोध प्रदर्शन कर रही है. प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री ने एक बयान जारी कर सभी ज़िला और नगर समितियों को धरना प्रदर्शन करने के लिए कहा है.
निर्मल खत्री ने बयान में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि रमन सिंह सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है.
हालांकि हमले के दूसरे दिन हालात का जायज़ा लेने छत्तीसगढ़ गए क्लिक करें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि फ़िलहाल दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सबसे पहले घायलों को बेहतर इलाज मुहैया कराने की ज़रूरत है.
 
 
 
 
'सलवा जुडूम का लिया बदला, निर्दोषों की हत्या का खेद'
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तान
First Published:28-05-13 10:12 AM
Last Updated:28-05-13 03:47 PM
 ई-मेल Image Loadingप्रिंट  टिप्पणियॉ: (2) अ+ अ-
नक्सलियों ने एक चिट्ठी लिखकर निर्दोषों, जैसे काफिले में शामिल ड्राइवर, कंडक्टर, कांग्रेस के छोटे नेताओं की हत्या के लिए माफी मांगी है। यह चिट्ठी बीबीसी को भेजी गई है। चिट्ठी के साथ-साथ रिकॉर्ड कराए गए बयान में माओवादियों ने कहा है कि कांग्रेस के काफिले पर हुए हमले में वाहनों के ड्राइवर, खलासी और कांग्रेस के निचले स्तर के नेताओं की मौत हुई है। उसके लिए हमें खेद है।
नक्सलियों ने कहा है कि उनका निशाना महेन्द्र कर्मा थे और यह हमला सलवा जुडूम चलाने की वजह से किया गया था। माओवादियों ने बयान में कहा गया है कि महेन्द्र कर्मा का परिवार भूस्वामी होने के साथ-साथ आदिवासियों का अमानवीय शोषक और उत्पीड़क रहा है। माओवादियों की चिट्ठी में आरोप लगाया गया है कि सलवा जुडूम के दौरान सैकड़ों महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। साथ ही उसमें दावा किया गया है कि सलवा जुडूम के गुंडों और सरकारी सशस्त्र बलों ने एक हजार से ज्यादा आदिवासियों की हत्या की। माओवादियों के बयान में कहा गया है कि रमन सिंह और महेन्द्र कर्मा के बीच कितना अच्छा तालमेल रहा, इसे समझने के लिए एक तथ्य काफी है कि मीडिया में कर्मा को रमन मंत्रिमंडल का सोलहवां मंत्री कहा जाने लगा था। नक्सलियों के जोनल कमेटी के प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी ने कहा कि कि राज्य के पूर्व गृहराज्य मंत्री रह चुके छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल जनता पर दमनचक्र चलाने में आगे रहे थे। उसेंडी ने कहा कि पटेल के समय में ही बस्तर क्षेत्र में पहली बार अर्द्ध−सैनिक बलों की तैनाती की गई थी।

विद्याचरण शुक्ल पर हुए हमले के बारे में माओवादियों ने कहा कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में रहने वाले विद्याचरण ने साम्राज्यवादियों, पूंजीपतियों और ज़मीनदारों के वफादार प्रतिनिधि के रूप में शोषणकारी नीतियों को बनाने और लागू करने में सक्रिय भागीदारी निभाई। अपने इस बयान में माओवादियों ने कहा है कि दमन की नीतियों को लागू करने में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की समान भागीदारी है और इसलिए संगठन ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को निशाने पर लिया है।

उसेंडी ने कहा कि 1996 में बस्तर में छठी अनुसूची में लागू करने की मांग से एक बड़ा आंदोलन चला था, हालांकि उस आंदोलन का नेतृत्व मुख्य रूप से भाकपा ने किया था लेकिन भाकपा−माले ने भी उसमें सक्रिय भूमिका निभाई थी।

क्या बृहस्पति के चंद्रमाओं पर है एलियन?

 मंगलवार, 28 मई, 2013 को 10:53 IST तक के समाचार

जूस नाम से एक नए मिशन की पेशकश 2022 में की जाएगी, जो जीवन की तलाश के लिए कम से कम 3 साल बृहस्पति पर बितायेगा.
मंगल पर भेजे गए उपग्रह अपॉर्च्युनिटी ने पिछले सप्ताह ऐसी कई दशाओं की खोज की जिससे इस बात को बल मिलता है कि मंगल पर कभी जीवन रहा होगा.
सौर मंडल में कहीं और जीवन की खोज की अधिकतम संभावनाओं के लिए हमें धूल भरे मैदानों, विशाल पर्वतों और मंगल की गहरी घाटियों से परे जाना होगा. इसके लिए हमें एस्टेरॉयड बेल्ट से भी आगे जाकर छानबीन करनी होगी.
वहाँ बृहस्पति ग्रह पर असली ज़िंदा जीव हो सकते हैं. दूसरी ओर लाल ग्रह कहे जाने वाले क्लिक करें मंगल पर वैज्ञानिकों को वर्षों पहले मर चुके कुछ जीवाणुओं के मिलने की उम्मीद ही है.
बृहस्पति के लगभग 70 चंद्रमाओं का ब्यौरा मिल चुका है और उनमें चार सबसे प्रमुख चंद्रमा हैं: लो, कैलिस्टो, गेनीमेड और यूरोपा.
लो ज्वालामुखियों, उबलते लावा और जहरीले सल्फर के गुबार से भरा हुआ है, कैलिस्टो बर्फ़ीले चट्टानों में ढका है लेकिन गेनीमेड और यूरोपा पर बर्फ की विशाल परत जमा है, जिसके नीचे पानी का समंदर है.

पानी मतलब जीवन

कई शोध इस बात का संकेत कर रहे हैं कि बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा में तरल जल और हाइड्रोजन परऑक्साइड हो सकते हैं.
और जहाँ पानी है, वहाँ जीवन की संभावना तो होगी ही.
इस कारण क्लिक करें यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थित बृहस्पति चंद्रमाओं के मिशन जूस की शुरुआत की है. जूस ज्यूपिटर आइसी मून्स एक्सप्लोरर का संक्षित्त नाम है.
इस अभियान के तहत 2022 में उपग्रह को प्रक्षेपित करने की योजना है, जो 2030 बृहस्पति तक पहुँचेगा.
उपग्रह करीब 3 वर्षों तक बृहस्पति के वातावरण और उसके बर्फीले चन्द्रमाओं का अध्ययन करेगा और अंत में गेनीमेड की कक्षा में दम तोड़ देगा. गेनीमेड सौर मंडल में सबसे कम उम्र का चंद्रमा है.

किसकी रहेगी तलाश

इस परियोजना के एक प्रमुख वैज्ञानिक यूनिवर्सीटी कॉलेज लंदन के एंड्रयू कोट्स ने कहा कि इस शानदार मिशन में सभी तीन (बर्फ वाले) चंद्रमाओं की तुलना की जाएगी और वहाँ जीवन की संभावनाओं को तलाशा जाएगा.
"आज हम यूरोपा के बारे में जितना जानते हैं, उसके आधार यह मानने की काफी संभावनाएँ हैं कि वहाँ जीवन है.”"
केविन हैंड, अंतरिक्ष जीवविज्ञानी, नासा जेट प्रपल्शन लैब्रटॉरी, कैलिफोर्निया
कोट्स ने कहा, “आप को (जीवन के लिए) ऊर्जा के स्रोत, तरल जल, कार्बन, नाईट्रोजन, ऑक्सीजन, फास्फोरस और सल्फर की आवश्यकता है. उसके बाद जीवन के विकास के लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता है.”
गेनीमेड और यूरोपा दोनों में ये सभी चीजें पाई जा सकती हैं. उनमें तरल जल तो निश्चित रूप से है और उनमें जीवन के लिए मॉलिकुलर बिल्डिंग ब्लॉक्स भी आसानी से हो सकते हैं. जहाँ तक ऊर्जा की बात है तो अंतरिक्ष जीवविज्ञानियों के बीच पारंपरिक तौर पर यूरोपा पसंदीदा रहा है.
यह बृहस्पति के चंद्रमाओं में एकलौता है जहाँ लहराता समुद्र हो सकता है. इसका अर्थ है कि वहाँ जलतापीय प्रपात की संभावना हो सकती है. चूंकि वहाँ सूर्य से उल्लेखनीय ऊर्जा नहीं मिलती है, इसलिए जलतापीय प्रपात जीवन के लिए रासायनिक ऊर्जा उपलब्ध करा सकते हैं.
यूरोपा के बारे में हम जो कुछ भी जानते हैं, वह नासा के क्लिक करें गैलिलियो मिशन से मिली है. 1990 के दशक के मध्य में शुरू हुए इस मिशन ने बृहस्पति और उसके चंद्रमाओं पर करीब 8 साल गुजारे.

यूरोपा पर जीवन

कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि बृहस्पति के एक अन्य चन्द्रमा गेनीमेड में जीवन की संभावनाएँ अधिक है.
जीवन के बारे में किसी सटीक निष्कर्ष तक पहुँच पाना अभी तक मुश्किल बना हुआ है, हालांकि नए शोध इस दावे को बल प्रदान करते हैं कि यूरोपा पर जीवन हो सकता है.
नासा के कैलिफोर्निया स्थित जेट प्रपल्शन लैब्रटॉरी के अंतरिक्ष जीवविज्ञानी केविन हैंड ने कहा, “जिसे हम जीवन मानते हैं, उसके मद्देनजर यह माना जा सकता है कि वहां पृथ्वी के मानकों के अनुसार जीवन की संभावना है.”
पृथ्वी पर स्थित दूरदर्शियों का इस्तेमाल करते हुए हैंड और उनके साथियों ने हाल में इस बात का पुष्टि की है कि यूरोपा की अधिकांश सतह पर हाइड्रोजन परऑक्साइड काफी मात्रा में उपलब्ध है. और मंगल के विपरीत वहाँ बड़े बहुकोशकीय जीव के लिए पर्याप्त ऊर्जा हो सकती है.
उन्होंने बताया कि, “हम पृथ्वी पर जीवन के जटिल स्वरूपों के विकास के बारे में बहुत अधिक नहीं जानते हैं और इसलिए यूरोपा के बारे में अधिक अटकलें लगाना मुश्किल है.”
हैंड ने समझाया, “यूरोपा के सतह पर बर्फ के विकिरण से तैयार हाइड्रोजन परऑक्साइड और ऑक्सीजन जैसे घटकों के संकेत मिलते हैं कि इससे रासायनिक और ऊर्जा सम्पन्न समुद्र की संभावना को बल मिलता है जो जटिल जीवों को जन्म देने में सक्षम हो सकता है.”
तो यदि वहाँ जीवन है तो वह किस रूप में हो सकता है?

एलियन मछलियाँ

बृहस्पति के चंद्रमाओं के बारे में हमारी जानकारी नासा के गैलिलियो मिशन पर आधारित है.
हैंड ने बताया, “जब आप एक दूसरे स्वतंत्र जीवन की उत्पत्ति के बारे में विचार करते हैं तो कुछ भी संभव है. मेरा दावा है कि यह ध्वनिक और सोनार संवेदी अवधारणा पर काफी निर्भर होगा, क्योंकि यह विशाल समुद्र में होगा और चूँकि बृहस्पति चंद्रमा को लगातार अपनी तरफ खींच रहा है, बर्फ की चट्टानें दिन-प्रति-दिन टूटती जा रही हैं.”
हालांकि विशाल कानों वाली एलियन मछलियों से भरे एक समुद्र की कल्पना काफी रोमांचक है, लेकिन जाहिर तौर पर यह अभी तक केवल अटकलबाजी ही है.
जीवन की संभावनाओं के प्रमाण बढ़ रहे हैं, लेकिन जीवन की संभावनाओं का अर्थ यह नहीं है कि वह जीव हैं. वास्तव में कोट्स बताते हैं कि गेनीमेड में कहीं बेहतर संभावनाएँ हैं.
वह कहते हैं कि, “इसके पास एक चुम्बकीय क्षेत्र है, जो उसे विकिरण से बचाता है. खास तौर से यूरोपा के साथ एक समस्या यह है कि वहाँ के वातावरण में विकिरण काफी अधिक है.” इसके अलावा गेनीमेड के तरल समुद्र के ऊपर जमी बर्फ भी उसे विकिरण से बचाती है.

बरसों लगेंगे

इस बारे में निराश करने बात बात यह है कि यदि सब कुछ तय योजना के मुताबिक होता चला गया तो भी हमें जूस के बृहस्पति तक पहुँचने के लिए 17 साल तक और गेनीमेड की कक्षाओं तक पहुँचने के लिए 19 साल इंतजार करना पड़ेगा, तभी हम किसी जवाब के नजदीक होंगे.
लेकिन कोट्स इसके उजले पक्ष की ओर देखते है: “यह सोचना उल्लेखनीय है कि जब जूस गेनीमेड की कक्षाओं में प्रवेश करेगा, उस समय आज दो साल का बच्चा पीएचडी कर रहा होगा.”
और अगर यह साबित होता है कि यूरोपा और गेनीमेड जैसी अजीबो-गरीब दुनिया में जीवन है तो इस बात की बहुत अधिक संभावनाएँ होंगी कि इस ब्रहमांड में जीवन बड़े पैमाने पर है.
और वास्तव में यह काफी रोमांचक है.

विपिन सर (Maths Masti) और मैं

  विपिन सर (Maths Masti) और मैं विपिन सर (Maths Masti) और मैं