मंगलवार, 28 मई 2013

‘दामादवाद’ की पीड़ा

‘दामादवाद’ की पीड़ाप्रवीण कुमार

उत्तर भारत में दामाद की खातिर कुछ भी कर गुजरने की परम्परा है। भले ही वह गैर कानूनी ही क्यों न हो। लगता है यह परम्परा अब दक्षिण भारत में भी अपना पांव पसार चुकी है। देश में एक के बाद एक कई ऐसे दामाद राष्ट्रीय परिदृश्य में उभरे हैं जिससे संबंधित परिवार तो क्या पूरे देश की साख को बट्टा लगा है। हम बात कर रहे हैं आईपीएल सट्टेबाजी में फंसे गुरुनाथ मयप्पन की जो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन के दामाद हैं। हम बात कर रहे हैं डीएलएफ भूमि घोटाले में फंसे उस रॉबर्ट वाड्रा की जो दुनिया की शक्तिशाली महिलाओं में शुमार और कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद हैं। हम बात कर रहे हैं उस रंजन भट्टाचार्य की जो देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दत्तक दामाद हैं। खास बात ये है कि इन दामादों का दायरा एक परिवार तक सीमित नहीं रहा है बल्कि खेल हो, राजनीति हो या देश की सत्ता, अपने-अपने तरीके से समय-समय पर इसके माध्यम से देश को प्रभावित किया है।
अंग्रेजी में एक कहावत है- `ईस्ट ऑर वेस्ट दामाद इज बेस्ट।’ यानी ऐसा शख्स (दामाद ) जिसपर आप सर्वस्व लुटा देते हैं और बदले में पाते हैं अपमान, तिरस्कार, घृणा और आपकी कमाई हुई दौलत पर लालच भरी निगाहें। ऐसा प्यारा और जग से न्यारा रिश्ता है दामाद का। भारत के कुछ हिस्सों में तो ऐसा भी माना जाता है कि दामाद को अगर घर में ज्यादा दिन टिका लिया तो वह घर भर को चकरघिन्नी बना देता है। हम यहां कुछ ऐसे ही चकरघिन्नी बना देने वाले दामादों की चर्चा करेंगे जिससे संबंधित परिवार तो परेशान हुआ ही, देश का नाम भी बदनाम हुआ। समय-समय पर देश ने इन दामादों की पीड़ा झेली। आजकल हर तरफ गुरुनाथ मयप्पन के नाम का शोर है। इससे पहले रॉबर्ट वाड्रा और रंजन भट्टाचार्य के नाम का शोर देश सुन चुका है। ये दामाद अपने सास और ससुर के प्रभाव का इस्तेमाल कर भ्रष्टाचार की चादर ओढ़ चुके हैं। खास बात ये है कि ये सब राष्ट्र की अस्मिता की कीमत पर हो रहा है। `दामादवाद` राष्ट्र की भावनाओं से खिलवाड़ है। गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान एक जनसभा में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने दामाद शब्द पर चुटकी लेते हुए सोनिया गांधी पर निशाना भी साधा था। मोदी ने कहा था कि छह करोड़ गुजराती ही मेरा परिवार हैं। मेरा कोई दामाद नहीं है इसलिए गुजरात में भ्रष्टाचार की कोई संभावना नहीं है। आइए जानते हैं देश के कुछ ऐसे दामाद जिनकी करतूत से देश शर्मिंदा है।

गुरुनाथ मयप्पन
बीसीसीआई अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन के दामाद और उनकी टीम चेन्नई सुपरकिंग्स के शीर्ष अधिकारी गुरुनाथ मयप्पन को मुंबई पुलिस ने सट्टेबाजी के आरोपों में गिरफ्तार किया है। मयप्पन चेन्नई सुपरकिंग्स के टीम प्रिंसिपल और सीईओ बताए जाते थे लेकिन चेन्नई टीम के मालिक इंडिया सीमेंट्स ने मयप्पन की गिरफ्तारी से ठीक पहले यह बयान जारी कर श्रीनिवासन के दामाद से किनारा कर लिया कि वह न तो टीम प्रिंसिपल हैं और न ही सीईओ। वह सिर्फ मानद सदस्य हैं। मयप्पन पर मुंबई पुलिस ने धोखाधड़ी और जालसाजी के भी आरोप लगाए हैं। मयप्पन का नाम सट्टेबाजी मामले में गिरफ्तार फिल्म अभिनेता विंदू दारा सिंह ने लिया था। मुंबई पुलिस के अनुसार मयप्पन के इस अपराध में शामिल होने के प्रमाण हैं इसलिए उन्हें गिरफ्तार किया गया। दामाद की गिरफ्तारी के बाद श्रीनिवासन पर बीसीसीआई के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के लिए दबाव बढ़ता जा रहा है लेकिन बोर्ड अध्यक्ष थेथर बने हुए हैं और कह रहे हैं कि जब उनकी कोई गलती नहीं है तो वह इस्तीफा क्यों दें। 35 साल के गुरुनाथ मयप्पन चेन्नई के रहने वाले हैं। श्रीनिवासन की बेटी रूपा से उन्होंने प्रेम विवाह किया था। श्रीनिवासन ने अंतरजातीय शादी का विरोध किया था। गोल्फ के शौकीन गुरुनाथ मयप्पन 9 करोड़ के यॉट के मालिक हैं। मयप्पन केवल अपने ससुर का ही कारोबार नहीं संभालते, वे अपने पिता की एवीएम प्रोडक्शनस एंड एंटरटेनमेंट, एवीएम स्टूडियो और एवीएम कंस्ट्रक्शनस के मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं। एवीएम देश का सबसे पुराना स्टूडियो है जहां हिंदी, तमिल और तेलुगु फिल्में बनती हैं। तो ऐसे में गुरुनाथ को `बोर्न विद द सिल्वर स्पून` कहना गलत नहीं होगा। गुरुनाथ के पिता एवी मयप्पन, जिन्हें ए. वी. एम. कहा जाता था, बेहद प्रख्यात फिल्म निर्माता थे।

रॉबर्ट वाड्रा
प्रियंका वाड्रा के पति और सोनिया गांधी के इकलौते दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। कथित रूप से अवैध संपत्ति जुटाने के आरोपों की निष्पक्ष जांच कराने की मांग भी उठाई गई है। टीम अन्ना के सदस्य रहे अरविंद केजरीवाल ने रॉबर्ट पर आरोप लगाते हुए कहा कि वाड्रा चार साल में 50 लाख से 300 करोड़ रुपए के स्वामी कैसे हो गए। डीएलएफ ने वाड्रा को बेहद सस्ती कीमतों पर कई फ्लैट के अलावा करोड़ों का कर्ज बिना ब्याज दिया। निश्चित रूप से एक शीर्ष राजनीतिक परिवार के दामाद द्वारा इतनी ज्यादा संपत्तियों का अधिग्रहण कई सवालों को जन्म देता है। भारत में इस राजनीतिक और आर्थिक ऑलिगार्की तथा क्रॉनी (बेईमान) कैप्टेलिज्म के सबसे नए नायक रॉबर्ट वाड्रा हैं। वाड्रा न तो सक्रिय राजनीति में हैं और न ही कांग्रेस के पदाधिकारी। उनकी सबसे बड़ी खासियत और उपलब्धि यही है कि वह भारत की सबसे ताकतवर राजनीतिक महिला और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद हैं। यूपीए सरकार में हो रहे बड़े-बड़े घोटालों के बावजूद सोनिया गांधी और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार का सीधा आरोप नहीं लगा था। उनकी छवि एक तरह से बेदाग थी। लेकिन अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने रॉबर्ट वाड्रा के जमीन जायदाद के गोरखधंधे को बेकनाब करके सोनिया गांधी की महान त्याग की छवि को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। भविष्य में कांग्रेस को कितना अधिक राजनीतिक नुकसान होगा यह कहना अभी मुश्किल है, लेकिन इतना जरूर है कि दामाद की वजह से सोनिया गांधी की छवि के धूमिल होने से कांग्रेस बुरी तरह से हिल गई।

रंजन भट्टाचार्य
रंजन भट्टाचार्य देश के एक ऐसे दामाद हैं जो चुपके-चुपके काम करते-करते चुपके से ही पर्दे से गायब हो गए। पर्दे पर हीरो की तरह कभी नहीं चमके। एक जमाने में दिल्ली के ओबेराय होटल में काम करने वाले और अटल बिहारी वाजपेयी की मित्र राजकुमारी कौल के दामाद रंजन भट्टाचार्य के बारे में लोग कहते हैं कि एनडीए सरकार में असल में सत्ता उन्हीं के हाथ में थी। लेकिन जैसे ही उनकी सत्ता का स्रोत यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 2004 में सत्ता से बाहर हुए, भट्टाचार्य भी अचानक से गायब हो गए। लेकिन लगभग आठ साल बाद एक शाम अचानक सारी मीडिया का फोकस अटल बिहारी वाजपेयी के दामाद रंजन भट्टाचार्य पर हो गया। अरविंद केजरीवाल ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक टेप बजाया जिनमें भट्टाचार्य की आवाज सुनी गई। टेप कांड से ही चर्चा में आईं नीरा राडिया से बातचीत में भट्टाचार्य ने कहा, `मुकेश भाई (मुकेश अंबानी) ने मुझसे कहा, कांग्रेस तो अपनी दुकान है।` भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी के दत्तक दामाद भट्टाचार्य की कांग्रेस के बारे में इस तरह की अपनेपन से भरी टिप्पणी भारतीय राजनीति के उस पहलू को बहुत अच्छे से उजागर करती है, जिसमें अक्सर यह कहा जाता है कि देश की सभी राजनीतिक पार्टियां मिली हुई हैं। दरअसल भट्टाचार्य 2010 में चर्चा में तब आए थे जब यूपीए-2 की सरकार में मंत्री तय करने के मामले में नीरा राडिया टेप कांड उछला था। आरोप है कि मई 2009 में उन्होंने नीरा राडिया को तसल्ली दिलाई थी कि वह कांग्रेस में अपने संपर्कों के जरिए दयानिधि मारन को टेलीकॉम मंत्री नहीं बनने देंगे। यानी जब भाजपा अपनी लगातार दूसरी हार के गम में डूबी थी, वाजपेयी के दत्तक दामाद कांग्रेस का मंत्रिमंडल सजाने में व्यस्त थे। कल्पना कर सकते हैं तब वाजपेयी को कैसा लगा होगा? ऐसा भी नहीं कि रंजन भट्टाचार्य को लेकर विवाद नहीं हुए। संघ प्रमुख केसी सुदर्शन ने एक बार कहा था कि भट्टाचार्य और वाजपेयी के प्रधान सचिव ब्रजेश मिश्रा की वजह से भाजपा की बुरी गत हुई। यूटीआई घोटाले में भी भट्टाचार्य का नाम उछला था। लेकिन प्रबंधन का कमाल कहिए कि कहीं कोई नुकसान नहीं हुआ।
बहरहाल, आज की तारीख में देश ‘दामादवाद’ की पीड़ा से पीड़ित है, आहत है। कल तक जो मयप्पन सिर्फ एन. श्रीनिवासन का दामाद बना हुआ था, कोई जानता तक नहीं था, आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग के चंगुल में फंसने के बाद मयप्पन अचानक से पूरे देश का बदनाम दामाद बनकर सुर्खियां बटोर रहा है। रंजन भट्टाचार्य और रॉबर्ट वाड्रा भी देश के ऐसे ही दामाद रहे हैं। ना जाने ऐसे कितने दामाद और भी होंगे जो पर्दे के पीछे दलाली और गद्दारी को करीने से अंजाम दे रहे होंगे। मीडिया को ऐसे और दामाद खोजने होंगे। बहुत जरूरी है सिर्फ ब्रेकिंग न्यूज के लिए ही नहीं, देशहित में भी।

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