तथाकथित आजादी में कांग्रेस और गांधी ने मूलनिवासियों के लिए क्या किया?
भारत में तथाकथित आजादी में ब्राह्राणों ने सिर्फ अपनी आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ार्इ लड़ी थी। इसका प्रमाणिक भाषण मा. वामन मेेश्राम (राष्ट्रीय अध्यक्ष बामसेफ) ने 16 अप्रैल 2013 को बाबा साहब की जयन्ती के उपलक्ष्य में सुर्दशन अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा था जिस भाषण को समय पर पेपर में न छापने के लिए हमें खेद है क्योंकि हजारों की उपसिथति का फोटो साथ में लगाना चाहते थे। लेकिन कैमरा ठीक न हो पाने के कारण समय लगा ऐतिहासिक भाषण यह था कि ब्राह्राणों ने अपनी आजादी के लिए 1885 को कांग्रेस संगठन बनाया जिसके संस्थापक मुखर्जी जी बंगाली ब्राह्राण गोखले, तिलक और आगरकर ये पूना के ब्राह्राण इन्हाेंने 1885 में कांग्रेस की स्थापना की और इन लोगाें ने प्रचार करना शुरू किया। कि इस देश के लोगों को अंग्रेजों ने गुलाम बनाया। ये उन्होंने कहना शुरू किया। उस समय हमारा सबसे बड़ा पुरखा जोतिराव फुले जी जीवित थे। 1885 को कांग्रेस की स्थापना हुर्इ, और 1890 को जोतिराव फुले का मृत्यु हुआ। तो हमारा सबसे बड़ा पुरखा जीवित था। ब्राह्राणों की इस बात को मानने से इन्कार किया। कि केवल अंग्रेजों ने भारतीय लोंगाें को गुलाम बनाया। इस सिद्धान्त को मानने से इन्कार किया। उनकी यह सोच थी कि अंगे्रज आने से पहले ब्राह्राण आजाद थे और जब ब्राह्राण आजाद थे। तभी हम गुलाम थे। इसका मतलब यह हुआ जब अंग्रेज भारत में आये तो अंग्रेजाें ने ब्राह्राणाें को गुलाम बनाया। हम तो पहले से ब्राह्राणों के गुलाम थे। जब अंग्रेजों ने ब्राह्राणों को गुलाम बनाया तो ब्राह्राण अंग्रेजों के गुलाम हुए। हम ब्राह्राणों के गुलाम थे। इसका मतलब हम गुलाम के गुलाम थे। सिंगल गुलाम नहीं थे, डबल गुलाम थे। और अंग्रेजाें के आने से पहले ब्राह्राणाें ने हम लोगाें को गुलाम बनाया था। इसलिए जोतिराव फुले ने ये सोचा कि ब्राह्राण केवल ये कहते हैं कि अंग्रेजाें ने ही केवल हम लोगाें को गुलाम बनाया तो वो तो झूठा सिद्धान्त था। इसलिए जोतिराव फुले ने इस बात को मानने से इन्कार किया। वैसे इस देश में 1848 में ही जोतिराव फुले ने हमारे आजादी का आंदोलन शुरू किया था। 1848 को उन्होंने ने जो लिख कर रखा उसके आधार पर हम आप लोगाें को बता रहा हूँ। उन्हाेंने ने लिखा जब तक अंंग्रेज भारत में हैं। तब तक शूद्र और अतिशूद्रों को अवसर है शूद्र का मतलब है ओबीसी और अतिशूद्रों का मतलब है एससी और एसटी ये भी एक बात समझ में नहीं आता शूद्रो का मतलब है अदर बैकवर्ड क्लास अतिशूद्रोें का मतलब है शिडूयल कास्ट एवं शिडूयल कास्ट एससी और एसटी इसको भी हमारे लोगाें को समझना बहुत जरूरी है। क्याेंकि हमारी समझदारी अच्छी न हो तो हम अपने लोगाें को जगाने का काम नहीं कर सकते ये सही है। इसलिए उन्होंने कहा जब तक अंग्रेज भारत में हैं तब तक अवसर है। इस अवसर का फायदा लेकर शूद्रों और अतिशूद्रों को जल्दी से जल्दी जागृत होना चाहिए और जागृत होकर अंग्रेजों कि गुलामी से नहीं ब्राह्राणों की भी गुलामी की आजादी हासिल करना चाहिए। इसके बाद जोतिराव फुले ने 1848 को कही इसका मतलब हैं जोतिराव फुले केवल समाज सुधार का आंदोलन नहीं चला रहे थे। बलिक ब्राह्राणों की गुलामी से हमारी आजादी का आंदोलन भी चला रहे थे। इससे सिद्ध होता कि 1885 से ब्राह्राणाें के द्वारा शुरू किये गये आंदोलन अंग्रेजाें की गुलामी से आजादी हासिल करने का आंदोलन था। 1848 को जोतिराव फुले के द्वारा शुरू किया गया आंदोलन ब्राह्राणी के गुलामी से आजादी हासिल करने का आंदोलन था। इसका मतलब है इस देश में दो आजादी के आंदोलन चल रहे थे। एक नहीं दो आजादी के आंदोलन चल रहे थे। 1848 को जब जोतिराव फुले ने हमारे शूद्रों और अतिशूद्रोें के आजादी का आंदोलन जो शुरू किया था। तब गांधी पैदा भी नहीं हुए थे। गांधी जी 2 अक्टूबर 1869 को पैदा हुए। हमारे लोगाें को कम से कम तारीख समझ में आती है। तारीख के साथ बता रहा हूँ। और 1848 को जोतिराव फुले ने हमारे आजादी का शूद्रों और अतिशूद्रों के आजादी का आंदोलन शुरू किया था। इसका मतलब है गांधी जी के पैदा होने से 21 साल पहले हमारे आजादी का आंदोलन ब्राह्राणों की गुलामी से आजादी हासिल करने का आंदोलन शुरू किया गया था। इस बात को हम लोंगाें को जो पढ़े-लिखे लोग हैं, उन लोगाें को समझना होगा। जानना होगा। बहुत जरूरी बातें मैं आप लोगों को बता रहा हूँ।
1885 से अंग्रेजो की गुलामी से आजादी हासिल करने का आंदोलन 15 अगस्त 1947 को समाप्त हो गया। मगर 1848 को जो ब्राह्राणों के गुलामी से आजादी हासिल करने का आंदोलन अभी भी जारी है। इसे समझने की जरूरत है। हमारे असंख्य लोग पढ़े-लिखे लोग हैं। उन लोगों को यह सही इतिहास पता नहीं है। आज बाबा साहब के जन्म दिन के अवसर पर आप लोगाें ने ये अवसर दिया। तो मैं आप लोगों को यह इतिहास बताना चाहता हूँ।
आपने आगे बताते हुए कहा साथियाें हम लोगों को इस देश में एक झूठा इतिहास पढ़ाया जाता है। बताया जाता है कि 1857 का जो वह विद्रोह था वह विद्रोह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का था। ऐसा इतिहास हमको पढ़ाया जाता है। मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ कि 1857 के विद्रोह में कौन लोग इसके रहनुमा थे। नाम के साथ बताना चाहता हूँ। इसके कौन-कौन से रहनुमा थे। एक था नाना पेशवा जो हमारे महाराष्ट्रा का कोकन एरिया का कोकनस्थ ब्राह्राण था। हमारे महाराष्ट्रा में कोकनस्थ ब्राह्राण को कोकन का 'को और ब्राह्राण को और ब्राको अगर जोड़ दो तो एक नया शब्द बनाता है। 'कोब्रा कोकन का 'को और ब्राह्राण 'बरा शब्द जोड़ तो एक तीसरा शब्द बनता है। 'कोबरा कोबरा साप की प्रजाति का नाम है और आदमी को डंस ले तो आदमी पानी मांगने से पहले ही राम नाम सत्य हो जाता है और जिसका राम नाम सत्य हो जाता है पता नहीं मरने के बाद जो लोग पीछे-पीछे चलते हैं वो राम नाम सत्य है ऐसा लोग क्यों कहते हैं पता नहीं है। मगर कहते हैं। तो कोकनस्थ ब्राह्राण जो कोबरा है नाना पेशवा ये उस कोकनस्थ ब्राह्राण समूहों का व्यकित है जिसने छत्रपति शिवाजी महाराज को जहर देकर मारा और सभाजी को उसके शरीर के टुकडे़ करते-करते उसके टुकड़े कर मार डाला। महाराष्ट्र का इतिहास आप लोगाें को बता रहा हूँ। नाना सा पेशवा उसके बाद दूसरा कोकनस्थ ब्राह्राण था। तात्था टोपे दोनाें ब्राह्राण वो भी कोकनस्थ ब्राह्राण इस आजादी के आंदोलन में जो दूसरा राजशाही था। वो था बहादूरशाह जफर ये बहादूरशाह जफर कौन थे। हुमायूँ, बाबर, अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब ये जो मुगल खानदान के लोग मुसलमान नहीं मुगल बहुत लोगाें को ये भी नहीं पता है कि मुगलों और मुसलमानों में अन्तर है। बहुत लोगाें को यह सही तरीके से इतिहास पता नहीं है। मुगल रेस हैं वंश है। वो मुगलों की प्रजा है। मुगल तो राजा थे। खानदानी राजा थे। इतिहास को समझने के लिए बता रहा हूँ। तो तात्या साहब टोपे सारे देश भर में घूम-घूम करके देश के नामी ज्ञानी पणिडतों से मुलाकात की और रिजर्वेशन पास किया प्रस्ताव पास किया। और प्रस्ताव पास करके तातिया साहब तोते बहादुरशाह जफर के पास लेकर गये। दिल्ली का बादशाह था बहादुरशाह जफर और वहां जाकर कहा कि सारे देश के ब्राह्राण जो आधा दिमांग के ब्राह्राण हैं। उन्हाेंने रिजुलेशन पास किया है, प्रस्ताव पास किया हैे। कि आपके नेतृत्व में अंग्रेजो कें विरोध में हथियार बन्द आंदोलन चलाया जाये। ध्यान रखो, मुगल और कोकनस्थ ब्राह्राण डी.एन. के अनुसार यह प्रमाणित हो गया कि ये जो ब्राह्राण हैं ये भारतीय लोग नहीं है, तो मुगल विदेशी, आक्रमणकारी और ब्राह्राण विदेशी, ये दोनों ने मिलकर गठबंधन बनाया। और गठबंधन बनाकर जो तीसरा विदेशी अंग्रेज था। उसके खिलाफ हथियार बन्द आंदोलन चलाया। दूबारा बताता हूँ कि क्याेंकि ये सामान्य बात नहीं है। इसको समझने के लिए बहुत दिमाग लगाना पड़ेगा। मुगल आक्रमणकारी विदेशी, जिन्हाेंने भारत के लोगाें को गुलाम बनाया है। दूसरा ब्राह्राण जिन्हाेंने मुगलों के लिए हजार-दो हजार साल पहले भारत के अन्दर आकर यहां के प्रजा को गुलाम बनाया था। ब्राह्राण और मुगलों ने गठबंधन बनाया। और जो तीसरा विदेशी था अंग्रेज उसके विरोध में आंदोलन शुरू किया। ये आंदोलन हथियार बिन आंदोलन था। ब्राह्राणाें ने तात्या टोपेे से बहादुर सा जफर को कहा सारे ब्राह्राण आपके समर्थन में हैं। आप हथियार उठाये अंग्रेजों के विरोध में, ब्राह्राणों ने सोचा था कि अगर बहादूरशाह जफर हथियार उठायेगा। और अगर पकड़ा जायेगा तो फांसी की सजा बहादुरशाह को होगी। ब्राह्राण को कुछ नहीं होगा। और अगर मान लो बहादुरशाह जीत जाता है तो जैसा बाबर ने अपने वसियत में नसीहत लिखकर रखी है। बाबर ने वसियत में नसीहत लिखी। नसीहत में लिखा यै मेरी संतानों अगर तुम भारत पर अधिक समय तक राज करना चाहते हो। तो ब्राह्राणों के साथ मिलजूलकर भारत पर राज करो। तो बाबर की नसीहत को मानते हुए अबकर ने राजपुतों और ब्राह्राणों को 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी दी। पता नहीं इतिहास सही तरीके से पढ़ाते हैं या नहीं 40 प्रतिशत हिस्सेदारी राजपुतों और ब्राह्राणाें को थी अकबर के राज में और यही वजह थी कि ब्राह्राणों ने कभी भी मुगलों के विरोध में आजादी का आंदोलन नहीं चलाया। चलाया हो तो मुझे बता देना। ऐसा कोर्इ इतिहास उपलब्ध नहीं हैै। जिस तरह से मुगल आक्रमणकारी थे। अंग्रेज भी आक्रमणकारी थे। ब्राह्राणों ने जिस तरह से अंग्रेजों के विरोध में आजादी का आंदोलन चलाया था। वैसे आजादी का आंदोलन ब्राह्राणाें ने मुगलों के विरोध में नहीं चलाया। और चलाया हो तो मुझे बता देना ऐसा कोर्इ इतिहास उपलब्ध नहीं है। कोर्इ तत्थ उपलब्ध नहीं है। इसका कारण था ब्राह्राणों ने मुगलों के विरोध में आजादी का आंदोलन क्याें नहीं चलाय? कारण था मुगलों ने ब्राह्राणों और राजपूतों को 40 प्रतिशत सत्ता में हिस्सेदारी दी थी। भारत और भारतीयों को गुलाम बनाये रखने के लिए इसलिए मुगलों के विरोध आजादी का आंदोलन नहीं चलाया गया। मगर जब अंग्रेजों ने मुगलों और ब्राह्राणाें दोनाें को परास्त करके जब उन्हाेंने अपना रास्ता स्थापित किया। तो ब्राह्राणाें ने पहल कर मुगलों के साथ मिलकर गठबंधन बनाया। और गठबंधन बना करके हथियार बंद आंदोलन अंग्रेजों के विरोध में जो तीसरा विदेशी था। उसके विरोध में आंदोलन शुरू किया। अब आपको मैं बताना चाहता हूँ कि ये जो 1857 का विद्रोह था जिसको ब्राह्राण इतिहासकार आजादी का प्रथम आंदोलन बताते हैं, कहते हैं। उसके मुगल विदेशी आक्रमणकारी, ब्राह्राण विदेशी थे। मुगल और ब्राह्राण दोनों ने जब गठबंधन बनाया। दोनों विदेशी थे। तीसरा जो अंग्रेज था। उसके विरोध में आंदोलन चलाया। यानि लड़ार्इ तीनाें विदेशियाें में ही चल रही थी। तीनो के तीनो विदेशी थे। लड़ार्इ केवल विदेशियों के बीच में चल रही थी। और तात्या साहब टोपे नाना साहब पेशवा इन लोगों ने इसके लिए पहल किया था। आप लोगों को एक ऐतिहासिक किस्सा बताना चाहता हूँ आपके उत्तर प्रदेश के केदार नाथ पाण्डेय जिन्हाेेंने अपना नाम बदलकर अपना महापणिडत राहुल सास्कृत्यान उन्होंने एक किताब लिखी उस किताब का नाम हैं बोलगा से गंगा, बोलगा से गंगा नाम के किताब में उन्होंने लिखा नाना सा पेशवा मंगल पाण्डेय के मिलते, नाना साहब पेशवा और कहते है कि हमें ब्राह्राणों की आजादी के लिए लड़ार्इ लड़नी चाहिए। नाना साहब पेशवा मंगल पाण्डेय से कहते हैं। हमें ब्राह्राणों की आजादी के लिए लड़ार्इ लड़नी चाहिए। तो मंगल पाण्डेय नाना साहब पेशवा से कहते हैं, कि यदि हम ब्राह्राणों की आजादी के लिए लड़ार्इ लड़े तो दूसरे जाति के लोग हमें साथ सहयोग क्यों देंगे। नाना सा पेशवा ने मंगल पाण्डेय के सवाल का जवाब दिया, कहा हमें यह बात सबको बतानी नहीं है। क्या बताना नहीं हैं? कि हम ब्राह्राणों की आजादी के लिए लड़ रहे हैं। यह बात सबको बताना नहीं है। तो मंगल पाण्डेय जो ने फिर पूछा लोगों को फिर क्या बताना है? फिर नाना सा पेशवा ने जवाब दिया। लोगों को बताना है। हम सभी लोगों के आजादी लिए लड़ार्इ लड़ रहे हैं मगर हमें याद रखना होगा। और इसे भूलना नहीं होगा। कि हम केवल मात्र ब्राह्राणाें की आजादी के लिए लड़ रहे हैं। यह हमको भूलना नहीं होगा। यह बात नाना सा पेशवा ने मंगल पाण्डेय को कहते हैें तो नाना पेशवा और तात्या टोपे 1857 के आंदोलन के रहनुमा थे। सरदार थे। तो इस तरह से वो इस आंदोलन को कह रहे हैं कि सभी लोगाें के लिए आजादी का आंदोलन था। परन्तु इन लोगाें ने इस आजादी के आंदोलन में ऐसा कोर्इ डिकलररेशन नहीं किया था। कि यदि हम लोगों को आजादी मिलती है तो देश में लोकतंत्र लागू होगा। ऐसा कोर्इ डिकलररेशन नहीं किया था।
संविधान होगा और राजा के घर में राजा पैदा नहीं होगा। रानी के पेट राजा पैदा नहीं होगा। ऐसा कोर्इ डिकलररेशन इनके द्वारा घोषित नहीं किया गया था। इतना ही नहीं उन्होंने कि लोगों को मानव अधिकार मिलेंगे। लोगाें को लोकतांत्रिक अधिकार मिलेंगे। लोगों को मौलिक अधिकार मिलेंगे और लोगाें को अपना राजा अपना शासन चुनने का पूरा अधिकार होगा। ऐसा कोर्इ डिकिलयेरेशन 1857 के आंदोलन में आंदोलन कर्ता लोगाें ने नहीं किया। कोर्इ दस्तावेजी प्रमाण भी उपलब्ध नहीं है। इससे सिद्ध होता है। यदि अंग्रेज कल्पना करो थोड़ी देर के लिए यदि अंग्रेज, परास्त हो गये होते तो क्या होता? बहादुरशाह ने भारत का सम्राट हो गया होता। मुगले आजम उर्दू में, हिन्दी में सम्राट और तात्या सा टोपे इस देश का पेशवा हो गया होता यदि पूना के एरिया में अछूताें और अतिशूद्रों के साथ जो व्यवहार हुआ पेशवा अपने राज्य से अगर देश का पेशवा पूना का ब्राह्राण हो गया होता तो सारे देशभर में वो पूना की व्यवस्था लागू हो गयी होती। कल्पना करो, इसलिए ये बात मैं आप लोगाें को समझा रहा हूँ। मगर हम लोगों को ये इतिहास पढ़ाया जाता है। कि 1857 का आंदोलन ये प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। मगर मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ। कि अंग्रेजों को ये लोग परास्त करने में कामयाब नहीं हुए क्यों नहीं हुए क्याेंकि ये जनआंदोलन नहीं था। जनता के सहभाग नहीं था, जनता के लिए आश्वासन नहीं था। इसलिए इसमें जनता का सहभाग नहीं था। इसलिए अंग्रेजों ने इस आंदोलन को कुचल डाला। और कुचलने के बाद में अंग्रेजो ने डायरेक्ट कोकहल किया कोकहल करने के बाद 1860 को भारत में अंग्रेजों ने इणिडयन पीनल कोड लागू किया। इणिडयन पीनल कोड लागू करने के बाद इणिडयन पीनल कोड में आज भी व्यवस्था है। अगर कोर्इ वकील यहां होगा वो जानता है। इसमें प्रोविजन था। कि राज्य के विरोध में राज्यविद्रोह करेगा तो उसे फांसी की सजा होगी। ये प्रावधान की वजह से ब्राह्राण बहुत डर गये थे। इसलिए 1860 के बाद ब्राह्राण एक दय शान्त हो गये। 1860 से 1870 तक शांत कुछ भी नहीं, 1875 को बाम्बे में दयानन्द सरस्वती गुजरात के राजकोट से चलकर तंतारा गांव से ब्राह्राण दयानन्द सरस्वती नाम का ब्राह्राण बाम्बे आया। और बाम्बे आकर उसने आर्य समाज की स्थापना की। हिन्दू समाज की नहीं आर्य समाज की स्थापना की, हम लोेगाें को इतिहास मालूम होना चाहिए। इसलिए बता रहा हूँ दयानन्द सरस्वती हिन्दू शब्द को नहीं मानते थे। दयानन्द सरस्वती ऐसा कहते थे हिन्दू मुगलों दी हुर्इ गाली है। दयानन्द सरस्वती कहते थे मैं नहीं कह रहा हूँ। दयानन्द सरस्वती कहते थे हिन्दू मुगलों की दी हुर्इ गाली है और इसलिए हमें हिन्दू शब्द मंजूर नहीं हैै। दयानन्द सरस्वती कहते थे 1850 में इसलिए हिन्दू समाज नहीं बनाया। आर्य समाज बनाया। तो इस तरह से और ये धार्मिक संगठन था। इसे अंग्रेजो की पालिसी थी। कि धार्मिक कार्य में हस्ताक्षेप न किया जाय। तो हस्ताक्षेपित नहीं किया गया था। ब्राह्राणाें ने टेस्ट किया अंग्रेजो को, फिर 1875 के फिर 10 साल का, फिर वो इतने डरे हुए थे। ब्राह्राण इतने डर हुए थे। कि फिर 10 साल बाद राह देख रहे थे। 75 से लेकर 85 तक कुछ निपटारा तो नहीं कर सके। फिर पकड़ेे गये तो फांसी पर तो नहीं चढ़ाये जायेंगे। डरे हुए थे। इसके 10 साल कोशिश करने के बाद 1885 को ब्राह्राणों ने कांग्रेस नाम का संगठन बनाया। और फिर भी डरे हुए थे तो उन्हाेंने कांगे्रेस का पहला राष्ट्रीय अध्यक्ष सर ए.ओ.áूम नाम का आर्इसीएस का रिटायर्ड अंग्रेज जो अंग्रेज रिटायर्ड हो गया था। आर्इसीएस था। उस अंग्रेज को कांग्रेस का प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। इतने डरे हुए कि कोर्इ ब्राह्राण कांग्र्रेस का अध्ययन करने के लिए राजी नहीं थे और जब कांग्रेस को 125 साल हो गये। तो सोनिया गांधी ने सवेनियर कर दिया। उस सवेनियर में सोनिया ने लिखा कि एक अंग्रेज कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं हुआ। पांच-पांच अंग्रेज कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुुए। ऐसा सोनिया जी ने जब कांगेे्रस को 125 साल हुए तब लिखा। मैं सोनिया जी का âदय से आभारी हूँ कि उन्होंने हमारी जानकारी में इजाफा किया। वरना हम तो यही जानते थे कि एक ही अंग्रेज कांग्रेस का अध्यक्ष बना। मगर सोनिया जी ने बडे़ âदय से ये इतिहास बताया कि पांच-पांच अंगे्रज कांगे्रस के अध्यक्ष बने। यानि पांच-पांच अंग्रेज कांग्रेस के अध्यक्ष ब्राह्राणों ने क्यों बनाये। इसलिए बनाये क्योंकि वे डरे हुए थे एक तो ये कारण था। दूसरा बहुत बड़ा मौलिक कायम था। 1857 से अंग्रेजों का और ब्राह्राणों का डायलाग न था। आपस में संवाद नहीं था। इसलिए ब्राह्राण अंग्रेजों के साथ संवाद शुरू करना चाहते थे और कोर्इ वार्तालाप करना चाहते थे। तो वार्तालाप करने के लिए उन्होंने प्लान बनाया कि कोर्इ अंग्रेज हमारे तरफ से अंग्रेजो से वार्तालाप करे तो ज्यादा बेहतर होगा। चालाकी की बाते हैं। इसको समझना बहुत जरूरी है। कि इस तरह से सर ए.ओ. ह्राूम जो आर्इसीएस रिटायर्ड आफिसर था। उसको कांग्रेस का प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया और उनके द्वारा ब्राह्राणों ने अंग्रेजों को एक बार समझाने की कोशिश की। क्या समझाया? आप हैरान हो जाओगे सुनकर आपने कभी नहीं सुना होगा। क्या समझाया उन्हाेंने अंग्रेजाें को ब्राह्राणों ने समझाया कि तुम भी विदेशी हो हम भी विदेशी हैं। ब्राह्राणों अंग्रेजों को समझाया तुम विदेशी हो हम भी विदेशी हैं। और ये समझाने के लिए तिलक ने तो आर्टिकल होम इन दा बेदास नाम का अंग्रेजी में एक ग्रंथ लिखा। उस ग्रंथ में तिलक ने लिखा इंग्लैण्ड से अंग्रेज लोग जब अमेरिका गये। तो अमेरिका के जो न्यूटीय लोग जो मूलनिवासी थे। उन मूलनिवासियों को अंग्रेज लोगों ने मार डाला। मगर हमारे पुरखे जब भारत में आये। यहां के लोगाें को गुलाम बनाया। मगर यहां के लोगाें को उन्हाेंने अंग्रेजों की तरह मारा नहीं। ये उन्होंने बहुत भारी गलती की।
अंग्रेजाें ने अमेरिका के मूलनिवासियों को मारा मगर हमारे पुरखे भारत में आये। उन्हाेंने यहां के मूलनिवासियों को जैसे अंग्रेजों ने मारा वैसे नहीं मारा ये हमारे पुरखों की बहुत भारी गलती थी। तिलक ने आर्टिक होम इन बेन्दास ये ग्रन्थ मराठी में लिखने के बजाय अंग्रेजी में लिखा। अंग्रेजी में क्याें लिखा? अंग्रेज इसे पढ़े ताकि अंग्रेज को यह पता चले कि यह जो ब्राह्राण है। वो विदेशी हैं और जितने अंग्रेज विदेशी हैैं, उतने ही ब्राह्राण विदेशी है। और वो आज भी विदेशी है क्याेंकि आज भी ये कह रहे हो यहां के मूलनिवासियाें को हमारे पुरखाें ने नहीं मारा इसका मतलब ये कि ब्राह्राण और यहां के मूलनिवासियाें के बीच में दुश्मनी है। तिलक यह बताना चाहता था ग्रंथ के द्वारा कि मूलनिवासी में और ब्राह्राणों में दुश्मनी है। इसलिए अंग्रेज और ब्राह्राण मिलकर गठबंधन बनाये और गठबंधन बनाकर यहां के मूलनिवासियों को गुलाम बनाकर रखे। ब्राह्राणाें ने अंग्रेजों को समझाने की कोशिश की।
1885 से लेकर 1929 तक अब आप हैरान हो जाओगे। सुनकर कि कांग्रेस ने आजादी का प्रस्ताव ही नहीं पारित किया। हम को इतिहास पढ़ाया जाता है कि कांग्रेस ने आजादी का आंदोलन 1885 से शुरू किया। मगर कांग्रेस ने 1929 को आजादी का प्रस्ताव पारित किया। 44वें साल गिनती करो 1885 और 1929 इतने साल तक यानि 43 वर्ष तक उन्हाेंने आजादी का कागज में प्रस्ताव तक नहीं पारित किया। और 1929 को लाहौर कांग्रेस के अधिवेशन में 44वें साल में आजादी का प्रस्ताव पारित किया। इतने साल उन्हाेंने क्यों लगाये। आजादी का प्रस्ताव पारित करने के लिए क्याेंकि वो अंगे्रजों को समझा रहे थे। वो भी विदेशी और हम भी विदेशी तुम और हम मिलकर गठबंधन बनाये। तिलक ने स्वराज्य का आंदोलन ही इसीलिए चलाया था। और लिखे-पढ़ेे को यह समझ में नहीं आता स्वराज्य और स्वतंत्रता में क्या फर्क है। स्वराज्य और स्वतंत्रता में फर्क है। मैं आपके तिलक का भाषण गोरखनाथ अकोला और भुसावल में उन्हाेंने दिया। उन्हाेंने अपने स्वराज्य के भाषण में कहा क्या कहा? हैरान हो जाओगे सुनकर तिलक ने कहा ''स्वराज्य का यह अर्थ है कि अंग्रेजों को भारत से भगाया जाये। तो फिर स्वराज्य का क्या अर्थ है? तिलक ने बताया स्वराज्य का यह अर्थ नहीं है कि अंग्रेजाें को भारत से भगाया जाय।तो फिर स्वराज्य का क्या अर्थ है? तिलक ने बताया स्वराज्य का यह अर्थ है कि 'प्राचीन काल में हमारे मनुस्मृति में लिखा हुआ है। कि राजा जब राज्य संकट चलाता था अर्थात प्रशासन चलाता था। तो उस समय पढ़े-लिखे ब्राह्राणों को लेकर राजा प्रशासन चलाता था। आज का राजा अंग्रेज है। और आज का अंग्रेज राजा आज के पढ़े-लिखे ब्राह्राणों को लेकर यदि प्रशासन चलाना चाहता है। अंंग्रेजों का राजा हमारा भी राजा होगा, अंग्रेजाें का सम्राट हमारा भी सम्राट होगा, अंग्रेजों का शासन हमारा भी शासन होगा। शासन अंग्रेजों का प्रशासन में केवल ब्राह्राणाें के पढ़े-लिखे लोगाें को हिस्सेदारी दे इसका मतलब है कि स्वराज्य का आंदोलन जो बाल गंगाधर तिलक ने चलाया था। उसका मतलब था। राजा अंग्रेज रहे, सम्राट अंग्रेज रहे। प्रशासन में केवल ब्राह्राणों की हिस्सेदारी दे। ये उसका अर्थ है इसका मतलब यह है। कि ब्राह्राण और अंग्रेज मिलकर भारत के प्रजा को गुलाम बनाकर रखे। ब्राह्राणाें ने अंग्रेजों को यह भी समझाने की कोशिश की। देखों आप हमारे ऊपर विश्वास नहीं कर रहे हो। मगर हम आपको विश्वास दिलाने के लिए इतिहास हम बता रहे हैं। जितने दिन मुगल रहे। मुगलों के राज्य में राजपुतो और ब्राह्राणाें की हिस्सेदारी थी। और इसलिए हम लोगों ने मुगलों के विरोध में जो 350 साल तक उन्होंने राज किया। कभी भी उन्होंने आजादी का आंदोलन नहीं चलाया। आप हमारे ऊपर विश्वास क्याें नहीं करते हो। हमने मुगलों के विरोध में आजादी का आंदोलन नहीं चलाया। और उसका कारण था। मुगलों ने सत्ता में हम लोगों को हिस्सेदारी दी थी। यदि आप अंग्रेज लोग हम लोगाें को हिस्सेदारी देते हो। तो हम आपके खिलाफ आजादी का आंदोलन नहीं चलायेंगे। 44वें साल 1885 से लेकर 1828 तक कांग्रेस ने आजादी का प्रस्ताव ही नहीं पारित किया। 1929 को किया 44वें साल में इससे दस्तावेजी प्रमाण के आधार पर यह सिद्ध होता है, इससे प्रमाणित होता है कि ये लोग अंगे्रजों के साथ मिलकर गठबंधन बनाकर यहां के लोगाें को मूलनिवासी को गुलाम रखकर अंग्रेज और ब्राह्राण मिलकर राज करने का आंदोलन चला रहे थे। उस आंदोलन का नाम था स्वराज्य का आंदोलन स्वराज्य का मतलब स्वतंत्रता का आंदोलन नहीं था। हमारे लोगाें को स्वराज्य और स्वतंत्रता प्रश्न भी कोर्इ नहीं है।
साथियों, मैं यह बात इसलिए बता रहा हूँ, कि ब्राह्राणों ने कर्इ जगह लिखकर रखा। उदाहरण 'आर्टिक होम इन द बेदाज में तिलक ने लिखा 'हम विदेशी हैं, डिस्कवरी आफ इणिडया में जवाहर नेहरू ने लिखा हम विदेशी है। जवाहर लाल नेहरू ने इदिरा के नाम लेटर, लेटर्स इंदिरा गांधी अभी भी पढ़ लो उसमें लिखा जवाहर लाल नेहरू न इंदिरा गांधी के लेटर में लिखा कि ''बेटी हम यहां के रहने वाले नहीं है। हम विदेश से यहां आये हुए हैं। मगर हम लोग यहां की प्रजा की सेवा करने के लिए आये हुए हैें। और सेवा करने के लिए मैं अपनी बात जोड़कर समझाता हूं आपको। सेवा करने के लिए बेटी प्रधानमंत्री बनना बहुत जरूरी है। आप को समझाने के लिए ताकि आपको बात समझ में आ जाये। तो ये लेटर्स भी पढ़ लो अभी भी उपलब्ध है। उसके बाद बंगाल का विधा सागर केशव चन्द्र सेन उसने भी लिखकर रखा। उसके बाद है रवीन्द्र नाथ टैगोर, उसके बाद राजाराम मोहनराय इन दोनों का खिस्सा आप लोगाें को बतता हूँ। लन्दन से राजा कलकत्ता आया। कलकत्ता आने के बाद राजा मंच पर बैठा हुआ था। और रवीन्द्र नाथ टैगोर ने राजा के स्वागत के लिए गीत लिखा। क्या गीत है? देखा आपको गीत बताता हूँ क्या गीत है? क्या लिखा? गीत था, वो गाया जा रहा था। तो गीत गाते हुए कह रहे थे। हे जन के अधिनायक, हे गण के अधिनायक, हे मन के अधिनायक तेरी जय हो। जन-गण-मन अधिनायक जय हो। दूबारा बता देता हूँ क्याेंकि हमारे लोग गाते रहते हैं, कभी सोचते नहीं हैे। इसलिए मैं बताता हूँ तो समझ में आना चाहिए। देखो उनके स्वागत के लिए गाये। क्या कहा रवीन्द्र नाथ टैगोर ने क्या कहा अंग्रेज के राजा को हे जन के अधिनायक, हे गण के अधिनायक, हे मन के अधिनायक तेरी जय हो। जन-गण-मन अधिनायक तेरी जय हो। और कितनी बार जय हो, जय-जय-जय-जय हो एक बार ही नहीं हो जय-जय-जय-जय हो। और हमारे लोग सुर और ताल में गाते रहते हैं। कभी सोचते नहीं कि साला यह है क्या लिखा? चार बार लिखा है जय हो और जय क्याें हो? वो लिखा आगे कि तेरी जय क्याें हो? तो लिखा भारत भाग्य विधाता तुम भारत के भाग्य विधाता हो। तेरी जय हो। तो इस तरह से साथियों, ये रवीन्द्र नाथ टैगोर ने ये राजा के स्वागत के लिए ये गीत लिखा। आज हम लोग गा रहे हैं हमको जब आजादी मिलेगी। 48 घण्टे में इसको बदल देंगे। और हमारे कवि लोग कहेंगे कि अरे भार्इ अपना राष्ट्रगान लिखों। जो सच्चा और सही हो।
साथियों यह इस बात का प्रमाण है। राजाराम मोहन राय लन्दन गये। लन्दन में अंग्रेज पत्रकारों ने घेरा और पूछा राजा साहब लन्दन की धरती पर आने के बाद आपको कैसा लगा। तो राजा साहब ने कहा 'अपने बिछड़े हुए भाइयों के बीच आकर बहुत अच्छा लगा रहा है। तो इससे यह प्रमाणित हो गया। कि ये लोग अपने को भारतीय नहीं मानते हैं अंग्रेज लोग के भार्इ मानते हैं आखिरी नाम बताना चाहता हूँ, आखिरी नाम है मोहनदास करम चन्द गांधी ये 1914 तक भारत में ही नहीं थे। लेकिन आजादी का आंदोलन चल रहा था। और ये भारत में ही नहीं थे साउथ अफ्रीका में थे। साउथ अफ्रीका से 1914 में भारत आये। साउथ अफ्रीका में जब वहां थे तो वहां उन्होंने ने एक आंदोलन चलाया था। उस आंदोलन के बार में बताना थोड़ा जरूरी है। उन्होंने एक आंदोलन चलाया था, आंदोलन था। कि पोस्ट आफिस में वहां अंग्रेजों का राज था। और अफ्रिकन का काले लोगाें पर राज था। और भारत के बहुत सारे लोग वहां गये हुए थे। तो वहां उनकी बसात थी। तो जो अंग्रेज लोग थे। वे अफ्रीकन काले लोग और भारतीय लोगाें के साथ एक जैसा व्यवहार करते थे। तो गांधी जी आंदोलन चलाया। पोस्ट आफिस होते थे, पोस्ट आफिस में दो दरवाजे होते थे एक दरवाजे से अंग्रेज लोग आते थे। एक दरवाजे से अफ्रिकन काले लोग और उसके साथ-साथ भारतीय लोग जाते थे। गांधी जी ने आंदोलन चलाया। कि पोस्ट आफिस में जिस दरवाजे से अंग्रेज जाते हैं। या तो अंग्रेज हमको उस दरवाजे से जाने दे या तो हम लोगाें को अलग से तीसरा दरवाजा बनाकर दे। हम काले लोगाें के साथ नहीं जायेगें। ये आंदोलन गांधी जी ने साउथ अफ्रीका में चलाया। जब गांधी जी का नाम नोबेल पारितोषित के लिए शांनित का रिकमण्ट किया गया। तो अफ्रीका के काले लोगाें ने आपजेक्शन लिया। कि गांधी को नोबेल पारितोषित शानित का नहीं दिया जाना चाहिए। तो नोबेल पारितोषित समिति ने पूछा क्याें नहीं दिया जाना चाहिए? तो उन्होंने जवाब दिया कि आंदोलन का स्वरूप किया कि गांधी काले लोगो के साथ गैरबराबरी का वंशभेद का व्यवहार करते हैं। वंशीय भेद करते हैंं। जैसे अंग्रेज लोग वंश भेद करते हैैैंं। वैसे गांधी भी करते है। और वंश भेद दुनिया का सबसे बड़ा अशांति का कारण है। इसलिए गांधी को शानित का नोबेल पारितोषित नहीं दिया जा सकता। तीन बार रिजेक्ट किया गया। गांधी को, गांधी वंश भेद मानते थे। इसका सबूत पेश किया गया। वो बाद में गांधी की बात को स्वीकार किया अंग्रेजों ने कि अंग्रेज जिस रास्ते से जाते हैं उस रास्ते से आपको नहीं जाने दिया जायेगा। और काले लोग के साथ पोस्ट आफिस नहीं जाते हो। तो कोर्इ बात नहीं आपके लिए तीसरा दरवाजा खड़ा किया जायेगा। तो ये तीसरा दरवाजा जो पोस्ट आफिस पर खोले गये थे। वो आज भी इस बात का सबूत है कि गांधी जी वंश भेद को मानते थे। रेसियल डिक्सीमिनेशन को मानते थे।
इसलिए साथियों, जब गांधी जी का पुतला न्यूयार्क में खड़ा किया जा रहा था ओबामा के द्वारा वहां हमारे लोग अम्बेडकर कराइट थे। उन्होंने सोचा कि हजार पांच सौ लोेगों ने मोर्चा निकाला। ओबामा को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने वहां के डेलीगेशन को बुलाया। अरे! भार्इ हम महान क्रांतिकारी का पुतला खड़ा करना चाहते हैं, महात्मा गांधी का आप विरोध क्यों करते हो? मुझे ये समझ में नहीं आता, हमारे लोगों ने ओबामा को कहा फोटो दिखाया पोस्ट आफिस का उसमें तीन दरवाजे थे। इसमें देखो बोले ये तीन दरवाजे हैं। तो कहा इसकी क्या कहानी है तो इसकी कहानी समझायी कि गांधी तुम्हारे जो बाप-दादा काले थे न उसके साथ विद्रोह करते थे तुम उसके पुतला खड़ा करने वाले हो। ओबामा को लोगों ने बताते हुए कहा तुम्हारे बाप-दादा के पिछवाडे़ पर लात मार रहा था। साउथ अफ्रीका में और भेदभाव करते थे। तुम उसके पुतला खड़ा करने वाले हो। तो साथियों वहां भी हंगामा हो गया। ये इतिहास इसलिए आप लोेगों को बता रहा हूँ। कि गांधी ने साउथ अफ्रीका के नेताआें को अंग्रेज के नेताओं को लेटर लिखा। लेटर की कापी मेरे पास है। गांधी जी विरोध में बात सबूत बगैर नहीं हो सकता लेकिन बगैर सबूत के कोर्इ बात नहीं करता। गांधी ने जो लेटर लिखा उस लेटर की कापी मेेरे पास है। किसी को चाहिए मुझसे ले लेना। लेटर में गांधी जी कहते हैं। आप लोगों अफ्रिकन काले लोगाें की तरह मेरे साथ व्यवहार करते हो। आपको ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। आप और हम एक ही स्टाप के लोेग हैं। आपको पैदा करने वाला सेन्सट का मतलब आपको पैदा करने वाला खुन और हमको पैदा करने वाला खुन एक है तो आप हमारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों करते हो? ये लेटर मेेरे पास है। इस लेटर का दस्तावेजी सबूत हैे। कि गांधी जी रेशियल डेक्सीमिनेशन करते थे। जो व्यकित रेशियल डेक्सीमिनेशन करता था। वो इस बात को सिद्ध करता है। कि वो अंग्रेजों को अपना भार्इ मानते थे। और इसलिए यह सारे लोग मिलकर अंग्रेेजों से बात कर रहे हैं।
1928 में भारत में साइमन कमीशन आया। तो गांधी जी कांग्रेस के नेता थे। साइमन कमीशन भारत में आया। तो साइमन चले जा। ऐसा गांधी जी आंदोलन किये। तो अंग्रेजों ने गांधी जी से पूछा अरे भार्इ क्याें चले जाने को कह रहे हो। तो गांधी जी को समझाया। अंगे्रजों ने समझाया कि हम तो भारत के लोगों को प्रतिनिधित्व अधिकार देना चाहते हैं। हम भारत के लोगाें को विधिमण्डलों में और प्रतिनिधित्व देना चाहते हैं। गांधी ने कहा जवाहर से मैं तो इसके विरोध में हूँ। हम सभी लोगों की आजादी का आंदोलन थोड़ी न चला रहा हूँ। और आप सभी लोगाें को अधिकार देना चाहते हो। हम इसके विरोध में है। गांधी जी ने 1928 में साइमन कमीशन चले जाने का आंदोलन चलाया और ये आंदोलन उन्होंने ने नहीं माना जब अंग्रेजों ने नहीं माना। तो 1929 को गांधी जी ने साइमन चलों जाओं का आंदोलन चलाया, 1928 को साइमन चले जाओं का। इस तरह से गांधी जी की जो बात है। वो नहीं मानी गयी।
साथियों बाद में 1930 को राउण्डटेबल कांफ्रेंस हुआ राउण्डटेबल कांफ्रेस में अंग्रेजों ने कहा गांधी जी को बुलाया सलाह मसौरा करके आप क्या कहना चाहते हो बताआें गांधी जी इग्लैण्ड गये राउण्डटेबल कांफ्रेंस में आप हैरान हो जाओगें सुनकर मैं गांधी जी का भाषण आपको बताता हूं। यदि आप का कोर्इ आदमी इग्लैण्ड नहीं जा रहा हो। मैं उधर जाकर आया हूँ। लन्दन जा के आया हूँ। गांधी जी का स्पीच वहां है उपलब्ध है। डाकूमेन्ट है। वहां गांधी जी ने जो भाषण दिया उसमें वो क्या कहते हैं? अंग्रेजों ने गांधी जी को कहा गांधी हम आपको डोमीनियस राज देना चाहता है। तो गांधी जी ने कहा 'यदि अंग्रेज मुझे आजादी देना चाहते हैं। तो आजादी में अछुतों को अलग मताधिकार देना चाहते हैं तो ऐसी आजादी मुझे बिल्कुल नहीं चाहिए। दूबारा बताता हूं क्योंकि ये असमान्य बात है। गांधी जी ने अपने भाषण में कहा यदि अंग्रेज हमें आजादी देना चाहते हैं। और आजादी में अछुतों को अलग मताधिकार देना चाहते हैं तो मुझे ऐसी आजादी बिल्कुल नहीं चाहिए। जिस आजादी में अछूतों को अलग मताधिकार हो। मुझे ऐसी आजादी बिल्कुल नहीं चाहिए। ये डाकूमेन्ट्री हैं। मैं ये ऐलान करके कहता हूं कांग्रेसियों को कि जो मैं बात कह रहा हूँ। गलत साबित करने के लिए मेरे सामने आ जाओं कोर्इ भी नहीं आता। 20 साल से मैं कह रहा हूँ। तो इस तरह से ये जो बात मैं कहीं इसका एक और उदाहरण मेरे सामने हैं कि राउण्डटेबल कांफ्रेंस में जब गांधी जी ने ये बात कही तो बाबा साहब अम्बेडकर ने खडे़ होकर गांधी जी का विरोध किया। जैसे कोर्ट में दो वकील जब लड़ते हैं। तो वकील को पहले पता चल जाता है। कि कौन सा व्यकित हार रहा है कौन सा व्यकित जीत रहा है? जब बाबा साहब अम्बेडकर खड़े हो गये और उन्होंने ने जब बहस की तो गांधी जी को लगा कि मैं जीतने वाला नहीं हूँ। बाबा साहब अम्बेडकर का राउण्डटेबल कांफ्रेंस में समर्थन करने के लिए जलान्धर के वाल्मीकियाें ने खून से लेटर लिखकर के वहां भेजा। वो डाकूमेन्ट आज भी वहां उपलब्ध है। आप हैरान हो जाओगे। बाबा साहब को खून से लेटर लिखा जलान्धर के संग्रामहले हुए वो एमएलए वाल्मीकि जिस मोहल्ले के लोेगों ने किया। उस मोहल्ले का नाम है संग्रामहसे खून से लेटर लिखा। तो इतिहास थे और ये जिन लोगाें का इतिहास हैै। उन वाल्मीकियाें का उन लोगों को इस देश में आजाद भारत में किस तरह से दबाया गया और किस तरह से प्रताडि़त किया गया। वो आप लोग स्वयं इस जीवन को जी रहे हैें। इसलिए साथियों गांधी जी ने जब ऐसा बयान दिया तब बाबा साहब ने प्रतिबाध किया। तो प्रतिबाध करने से पता को चला की मुझे तो हार मिलने वाली है। इसलिए गांधी जी ने लोमड़ी की तरह चाल चला और तुरन्त स्थगन का प्रस्ताव लाया। तो अंग्रेजों ने पूछा आप स्थगन का प्रस्ताव क्यों ला रहे हो। तो गांधी जी ने कहा 'भारत से जो प्रतिनिधि आये हुए हैं, हमें आपस में वार्तालाप करने का मौका दिया जाय, समय दिया जाय। अंग्रेजों ने उनको समय दिया। समय देने के बाद रात में गांधी जी ने मुसलमानों के जो प्रतिनिधि थे। उनको अपने जहां रूके हुए थे उनको वहां खाना खाने के लिए बुलाया और वहां मुसलमानों को खुश करने के लिए गाय का गोश खिलाया। ताकि मुसलमानों को खुश किया जा सके। गांधी जी मुसलमानाें को खाना खिलाने के बाद कहा ये प्लेन पेपर है। और मैं यहां साइन कर देता हूँ। नीचे आपकी जो मांगे हैं लिख लो। मुझे मंजूर हैं। मगर मेरी एक शर्त हैै। ये सब गुप्त वार्ता हो रही थी। गांधी गुप्त वार्ता कर रहे थे। मगर मेरी एक शर्त है। मुसलमानों के नेताओं को कहा मेरी एक शर्त है शर्त क्या है? कल राउन्टेबल कांफ्रेंस की जब मींटिग होगी। तो मुसलमानों को डा. अम्बेडकर का कांफ्रेस में विरोध करना होगा। यदि मुसलमान कांफ्रेन्स में डा. अम्बेडकर का विरोध करते हैं। तो मुसलमानों की सारी मांगे मुझे मंजूर।
मुसलमानों के जो नेता थे। थोड़ी देर के लिए उन्हें चक्कर आया। उन्होंने सोचा ये आदमी बनिया है वो लेना जानता है देना कभी नहीं जानता इसका âदय परिवर्तन कैसे हो गया। जिसका âदय ही नहीं है वह âदय परिवर्तन कैसे हो गया। मुसलमान नेताओं ने थोड़ी देर के लिए सोचा। थोड़ी देर सोचने के बाद मुसलमान नेताओं को समझ में आया। ये देने का मामला नहीं है। ये अछूतों के साथ मुसलमानों को भिड़ाने का मामला है। ये लड़ाने का मामला है ये देने-लेने का मामला नहीं है। मुसलमान नेताओं को तुरन्त समझ में आया। मुसलमान नेताओं ने कहा गांधी जी उन्होंने हाथ जोड़ा गांधी इसका विरोध करो, उसका विरोध करो ये हम से होने वाला नहीं है आपको हमारी बाते मंजूर हो तो बोलो न मंजूर हो तो छोड़ दो। मुसलमान नेता वहां से चले गये। बाबा साहब अम्बेडकर जहां रूके हुए थे। उनके कमरे आये और उनके कमरे जाने के बाद उनको कहा आपके खिलाफ गांधी जी हमारे पास ऐसा प्रस्ताव दिया। बाबा साहब अम्बेडकर के पास डिस्कलोज कर दिया। सीक्रेट बात थी, यानि गुप्त बात थी। बाबा साहब को मालूम हो गयी। बाबा साहब ने अखबारों में स्टेटमेंट बनाया। स्टेटमेंट में बाबा साहब ने कहा गांधी जी हमारे विरोध में है। गुप्त रूप से यदि ऐसे षडयंत्र करते रहे तो उनका महात्मापन मैं सारी दुनिया के सामने नंगा कर दूंगा। गांधी जी को मेरी सलाह है। कि हमारे विरोध में षडयंत्र से वह विरत रहे। तो ज्यादा बेहतर होगा। यह सारी दुनिया का मंच है कोर्इ भारत नहीं और अगर भारत होता तो शायद अखबार मेरी बात नहीं छापते मगर ये लन्दन है यहां मेरी बात जरूर छापी जायेगी। और इस तरह से दुनिया के मंच पे गांधी मैं आपको नंगा कर दूंगा। ये अखबार में बाबा साहब अम्बेडकर ने बयान दिया। दूसरे दिन राउण्डटेबल कांफ्रेस शुरू हो गया। गांधी जी की योजना तो फेल हो गयी। इसलिए गांधी जी ने दूसरे राउण्डटेबल कांफ्रेंस चुपकी लगा लिये कुछ बोले ही नहीं क्याेंकि बोलने की आदत बोतली बंद हो गयी सारी की सारी तो इसलिए गांधी जी जब कोर्इ रिजुलेशन पास नहीं हो रहा था। तो प्रधानमंत्री ने प्रस्ताव रखा। रेक्से मेकडोल ने कि भारत के जितने प्रतिनिधि आये हैं वे सभी प्रतिनिधि प्रधानमंत्री को ये अधिकार बहाल करते हैं यानि राजा को जो अधिकार बहाल करते हैं। कि वो जो भी फैसला देंगे वो माना जायेगा। तो इस तरह से गांधी जी ने सबसे पहले इस प्रस्ताव पर साइन कर दिया। साइन करने के बाद गांधी जी बाहर आये। बाहर आकर गांधी जी ने एक बयान दिया, अखबार वालों को क्या बयान दिया। बयान दिया कि यदि अंग्रेजो ने अम्बेडकर की बातों को स्वीकार किया तो मैं जान
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