रविवार, 5 मई 2013

सरबजीत सिंह: कब क्या हुआ

 शनिवार, 4 मई, 2013 को 06:54 IST तक के समाचार

सरबजीत सिंह का कहना था कि वे गलती से सीमा पार कर पाकिस्तान चले गए थे.
सरबजीत सिंह को 1990 में पाकिस्तान के क्लिक करें लाहौर और फ़ैसलाबाद में हुए चार बम धमाकों के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. इन धमाकों में क़रीब 10 लोगों की मौत हो गई थी.
आइए जानते हैं कि सरबजीत सिंह के साथ कब और क्या हुआ.
अगस्त 1990 :क्लिक करें सरबजीत सिंह को मनजीत सिंह के नाम से भारत से लगती कौसर सीमा पर गिरफ्तार किया गया. क्लिक करें सरबजीत ने तर्क दिया कि वे भारतीय पंजाब के तरन तारन के निवासी हैं और पेशे से किसान हैं.
उनका कहना था कि वे गलती से सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंच गए थे.
अकतूबर 1990: सरबजीत पर जासूसी और बम धमाके कराने का आरोप लगा. लाहौर की एक अदालत में मुक़दमा चला. इस अदालत ने उन्हें मौत की सज़ा सुनाई. निचली अदालत के इस फैसले पर हाई कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगा दी.

दया याचिका खारिज

"सरबजीत को 1990 की मई-जून में कराची बम धमाकों का अभियुक्त बनाया गया है, जबकि वास्तव में 27 जुलाई 1990 को दर्ज एफआईआर में मनजीत सिंह को इन धमाकों का अभियुक्त बताया गया था."
ओवैश शेख, सरबजीत सिंह के वकील
मार्च 2006: पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने सरबजीत की दया याचिका खारिज करते हुए उन्हें सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा.
मार्च 2008: सरबजीत सिंह ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के यहां दया याचिक दायर की. उनकी यह याचिका खारिज कर दी गई. पाकिस्तान की समाचार एजेंसियों के हवाले से खबर आई कि सरबजीत सिंह को एक अप्रैल को फांसी दे दी जाएगी. लेकिन 19 मार्च को आई खबर में बताया गया कि सरबजीत की फांसी पर 30 अप्रैल तक के लिए रोक लगा दी गई है.
भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने संसद को बताया कि सरबजीत सिंह की फाँसी 30 अप्रैल तक के लिए टाल दी गई है.
इसी साल पाकिस्तान में मानवाधिकार मामलों के पूर्व मंत्री अंसार बर्नी ने राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के पास एक सरबजीत की एक दया याचिका दायर की. बर्नी ने उनसे अपील की कि सरबजीत की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया जाए या उन्हें रिहा कर दिया जाए.
साल 2011: सरबजीत सिंह का मामला एक बार फिर पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. उनके पाकिस्तानी वकील ओवैश शेख ने असली आरोपी मनजीत सिंह के खिलाफ जुटाए तमाम सबूत पेश करते हुए मामला फिर से खोलने की अपील की.
उन्होंने दावा किया कि सरबजीत सिंह बेगुनाह हैं और वो मनजीत सिंह के किए की सजा काट रहे हैं.
ओवैश शेख का कहना था सरबजीत को 1990 की मई-जून में कराची बम धमाकों का अभियुक्त बनाया गया है, जबकि वास्तव में 27 जुलाई 1990 को दर्ज एफआईआर में मनजीत सिंह को इन धमाकों का अभियुक्त बताया गया है.
पाकिस्तान का कहना था कि सरबजीत ही मनजीत सिंह है, जिन्होने बम धमाकों को अंजाम दिया था.

रिहाई की अपील

मई 2012: भारत की एक जेल में बंद पाकिस्तानी नागरिक खलील चिश्ती को सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने के लिए पाकिस्तान जाने की इजाजत दी. इसके भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से सरबजीत सिंह को रिहा करने की अपील की.
सरबजीत सिंह का परिवार
हमके की खबर आने के बाद सरबजीत सिंह के परिवार के सदस्य पाकिस्तान गए थे.
इसी महीने में सरबजीत सिंह ने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के पास पांचवी दया याचिका दायर की.
जून 2012: पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने सरबजीत की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया, अधिकारियों ने कहा कि भारत से कैदी की अदला-बदली के तहत सरबजीत सिंह को रिहा किया जाएगा.लेकिन बाद में अधिकारियों ने कहा कि सरबजीत को नहीं बल्कि सुरजीत सिंह को रिहा किया जाएगा.
सुरजीत सिंह को 1980 में जासूसी के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
अगस्त 2012: सरबजीत सिंह ने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के पास नई दया याचिका दायर की.
अप्रैल 2013: लाहौर की कोट लखपत जेल में छह क़ैदियों ने सरबजीत सिंह पर ईंट और धारदार हथियार से हमला किया. इस हमले में उनके सिर में गंभीर चोटें आईं और वे कोमा में चले गए. उनका लाहौर के जिन्ना अस्पताल में इलाज चल रहा था.इलाज के दौरान ही उनकी मौत हो गई.

सरबजीत को इतनी तवज्जो क्यों?

 रविवार, 5 मई, 2013 को 09:39 IST तक के समाचार

सरबजीत सिंह
लगभग 22 वर्षों से सरबजीत जासूसी के आरोपों में पाकिस्तानी जेल में बंद थे
सरबजीत तो अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनकी मौत को लेकर भारत में जिस तरह की ज़बरदस्त प्रतिक्रिया देखने को मिली है, उससे उनकी क्लिक करें ज़िंदगी और मौत की गुत्थी और उलझ गई है.
पाकिस्तानी जेल में हमले के बाद दम तोड़ने वाले भारतीय कैदी क्लिक करें सरबजीत सिंह की जिंदगी के दो पहलू हैं. एक वो जो हम जानते हैं और दूसरा वो जो छिपा हुआ है या फिर जो अस्तित्व में ही नहीं है.
तो सरबजीत कौन थे? वो या तो एक साधारण किसान या मज़दूर थे जो सरहद पार करके पाकिस्तान पहुंच गए थे और वहां उन्हें गिरफ़्तार करके एक झूठे मुकदमे में फंसाया गया.
या फिर वो शराब के मामूली तस्कर थे जैसा कि अखबारों के अनुसार उन्होंने गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तानी पुलिस को बताया था. लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में पुलिस किसी से भी कोई जुर्म कबूल करवा सकती है, लिहाजा इस बयान की सच्चाई पर पूरी तरह यकीन नहीं किया जा सकता है.
और तीसरा पहलू ये कि वो संभवतः भारतीय जासूस थे, जिन्होंने पाकिस्तान में धमाके किए थे और इस जुर्म के लिए उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई.

आम कैदी 'राष्ट्रीय नायक'

इनका मुकदमा सुप्रीम कोर्ट तक गया और बाद में राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने उनकी दया याचिका खारिज कर दी. मतलब अगर उन पर बम धमाकों के आरोप सही थे, तो वो एक ‘चरमपंथी’ थे.
लेकिन वो खुद हमेशा अपनी बेगुनाही का दावा करते रहे और जाहिर है कि भारत सरकार ने कभी उन्हें अपना जासूस नहीं माना.
अब दो सवाल उठते हैं. एक तो ये कि उन्हें क्यों कत्ल किया है. इसका जवाब शायद उस न्यायिक जांच में मिल जाए, जिसका आदेश पाकिस्तानी पंजाब के मुख्यमंत्री ने दिया है.
सरबजीत सिंह
तिरंगे में लिपटा कर सरबजीत का अंतिम संस्कार किया गया
दूसरा पहलू ये है कि पाकिस्तानी की जेल में बंद एक भारतीय कैदी से राष्ट्रीय नायक तक का सफर उन्होंने कब तय किया.
जहां तक मुझे मामूल है जेल में कातिलाना हमले से पहले ये रुतबा उन्हें कभी नहीं दिया गया था. सरबजीत के साथ ज्यादती हुई, इससे तो इनकार नहीं किया जा सकता है.
उनके परिवार के दुख में शामिल होना इंसानी तकाजा है, लेकिन उनकी मौत की खबर आने के बाद जो कुछ भारत में हुआ है, उसे समझना भी आसान नहीं है.
तो बीते एक हफ्ते में ऐसा क्या हुआ कि प्रधानमंत्री ने उन्हें 'भारत का बहादुर लाल' करार दे दिया. उनके शव को लाने के लिए विशेष विमान भेजा गया.
देश का शीर्ष नेतृत्व पीड़ित परिवार से मिलने के लिए क्लिक करें लाइन लगा कर खड़ा हो गया. पंजाब की सरकार ने उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी और उनके परिवार को एक करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता का भी एलान किया.
उनकी बेटियों को सरकारी नौकरी देने का वादा किया गया और पंजाब में तीन दिन के शोक का एलान किया गया है.

इतनी अहमियत क्यों?

आम तौर पर ये सब उन लोगों के लिए किया जाता है जिन्होंने देश के लिए अमूल्य योगदान दिया हो, किसी उद्देश्य के लिए लड़े हो या फिर देश के लिए लड़ते हुए अपनी जान कुरबान कर दी हो.
सरबजीत सिंह का परिवार
सरबजीत के परिवार ने उनकी रिहाई के लिए हर मुमकिन कोशिश की
लेकिन हमेशा नहीं. क्योंकि ये लोकतंत्र है जो राजनीति से संचालित होती है और रानजीति कभी मौका परस्ती से ज़्यादा दूर नहीं होती है.
इसलिए दिसंबर में जब एक मासूम लड़की के सामूहिक बलात्कार और मौत ने देश के जमीर को झंकझोड़ा और गुस्से में लोग सड़कों पर उतर आए तो केंद्र और राज्य सरकार ने मुआवज़े के लिए सरकारी खज़ाने का मुंह खोल दिया.
लेकिन जब बलात्कार का शिकार पांच साल की दो बच्चियां दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती थी तो उन्हें देखने के लिए कोई नहीं गया.
उनका इलाज सरकारी अस्पताल के गंदे बिस्तरों पर ही हुआ और फिर उनके बेबस मां बाप उन्हें उनकी गुमनाम जिंदगी में वापस ले गए.
सरबजीत की मौत पर गुस्से और दुख का इज़हार समझ में आता है, लेकिन ये समझ से परे है कि उनकी ज़िंदगी कैसे किसी अन्य आम भारतीय की जिंदगी से कीमती थी?


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