शनिवार, 18 मई 2013
महिलाओं को स्वाभिमानी बनना होगा-सुषमा मोध
सहारनपुरदै.मू.समाचार
सम्पूर्ण भारत में चल रहे सामाजिक जन जागृति के तहत सहारनपुर में र्इ-दिलेराग के निवास स्थान पर राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ की एक विचार गोष्ठी का आयोजन दिनांक-3042013 में किया गया। इस गोष्ठी में सहारनपुर मण्डल में एक दिवसीय राष्ट्रीय मूलनिवासी महिला संघ का सम्मेलन 1052013 में होने वाले सम्मेलन को सफल बनाने पर विचार किया गया। सम्मेलन को सफल बनाने के लिए आयु. सुषमा मोघ (जिला अध्यक्ष, राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ सहारनपुर) ने कहा कि हमें आज से ही घर-घर जाकर इसका प्रचार करना होगा और छोटी-छोटी मीटिंग लेकर महिलाआें के लिए खोर्इ हुर्इ आजादी को दुबारा प्राप्त करने के लिए अब संघर्ष करना होगा। आजाद भारत में महिला आज दोहरी गुलाम बनी हुर्इ है। सबसे पहले तो वह मानसिक गुलाम और फिर सामाजिक गुलाम बनी हुर्इ है। दुनियां की आधी आबादी महिलाआें की है। लेकिन स्वतंत्रता के आधार पर वह आजाद नहीं है। आज देश में महिलाआें के साथ हो रहे अन्याय, अत्याचार से लड़ने के लिए महिलाआें को आगे आना पड़ेगा। घर से निकलते वक्त महिलाआें को अपने अन्दर का डर खत्म कर देना चाहिए। और निडर होकर घर से बाहर निकलना चाहिए। इसका एक उदाहरण है कि हमेशा बलि का बकरा भेड़, बकरियाें की तरह महिलाआें को ही बनाया जाता है। शेर की कोर्इ बलि नहीं देता है। इसलिए तुम घर से बाहर निकलकर शेरनी बन जाओ। तुम्हे कोर्इ न ही छेड़ सकता नहीं तुम्हे कोर्इ गुलाम बना कर रख सकता है।
आयु. मिथलेश (मण्डल महासचिव, रा.मू.म.संघ) ने अपने विचार में कहा कि जब तक समाज की महिलायं घर से बाहर निकल कर सामाजिक कार्यो में अपना योगदान नहीं देगी। उन्हें समाज की जानकारी नहीं मिलेगीं। और समाज में फैली, स्त्रीवाद, अन्धविश्वास, पाखण्डवाद को दूर करने के लिए ज्ञान की ज्योति जलानी होगी। शिक्षा का प्रकाश फैलाना होगा। सामाजिक जन-आन्दोलन कर अपनी
महिलाआें को बताना होगा कि हमारे महापुरूषाें ने अपना सारा जीवन समाज को सुधारने के लिए बलिदान कर लिया। इसी कड़ी को आगे बढ़ाने के लिए और अपनी आने वाली पीढ़ी को एक अच्छे और आधुनिक भारत को नर्इ दिशा देने के लिए हमें सामाजिक जन-जागृति की आवश्यकता है। इस कार्य की जिम्मेदारी हम महिलाआें की है।
आयु. प्रतिभा बर्मन (मण्डल अध्यक्ष) ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि भारत की महिला 66 वर्ष में भी आजाद नहीं हुर्इ है। इसके लिए यहां की मनुवादी व्यवस्था जिम्मेदार है। लेकिन हम कब तक मनुवादियों को ही दोषी मानते रहेगे। हमें अपनी आजादी को प्राप्त करने के लिए स्वयं संघर्ष करना होगा और इसका एक उदाहरण है सावित्री बार्इ फुले जिन्होने महिलाआें को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और सामाजिक क्रानित के अग्रदूत शिक्षा के प्रकाश पुंज, महात्मा ज्योति राव फुले के अनुयायाें के साथ कन्धो से कन्धे मिलाकर समाज में क्रानित की नर्इ ज्योति पैदा कर दी और समाज को एक नर्इ दिशा प्रदान की है। हम महिलाआें को उनका अनुशरण करना चाहिए।
(बुझी हुर्इ मोमबŸाी से घर किसी का जला नहीं चाहे आप लो लाख कही पर मौत का दिन टल नहीं। डटने और भिड़ने के बिना सपना किसी का फला नहीं झोक दो अपना सब बहानो से होगा भला नहीं)
आयु.अशु गौतम (वरिष्ठ समाज सेवी) ने अपने संचालनीय भाषण में कहा कि जब तक महिलाएं अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को नहीं निभायेगी तब तक महिलाआें के अन्दर निडरता को भावना नहीं आयेगी और समाज में महिलाआं की भागेदारी बराबर नहीं होगी तब तक महिलाआें का हर स्तर पर शोषण होता रहेगा। अपने मान-सम्मान, स्वाभिमान के लिए महिलाआें को हर मोर्चे पर संघर्ष करना होगा अपने अधिकारों की लड़ार्इ के लिए हमें स्वयं ही तैयार होना पड़ेगा और भारत की महिलाआें को इस गुलामी से निजात दिलानी होगी मीटिंग में बामसेफ की प्रदेश संगठन मंत्री मा. राजेश्वर दयाल, मण्डल अध्यक्ष मा.चन्द्र किरण, जिला अध्यक्ष पी.सी मोधा, दिलेराम एव एम.पी.सिंह आदि उपसिथत थे राष्ट्रीय मूलनिवासी महिला निधि में आयु. आंशु गौतम ने 1000 और आयु. स्नेह लता ने 500 रूपये सहयोग शासि प्रदान किया।
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