ब्रिटेन का सबसे गरीब शहर: जहां दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं
शनिवार, 1 जून, 2013 को 07:43 IST तक के समाचार
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शहर जो कभी अपने मस्त डिजाइनों वाले साइकिल और जूतों, रॉबिन
हुड, डीएच लॉरेंस जैसे ब्राण्डों के लिए दूर-दूर तक मशहूर था, आज दो वक्त
की रोटी जुटाने में खुद को असमर्थ पा रहा है.
ब्रिटेन का वह शहर है नॉटिंघम. आजकल ये देश के सबसे क्लिक करें
अभावग्रस्त शहर के रुप में चर्चा में है.
एक आंकड़े के अनुसार टैक्स चुकाने के बाद एक औसत ब्रितानी परिवार की सलाना आमदनी, 16,034 पाउण्ड बनती है जबकि नॉटिंघम में यह मात्र 10,834 पाउण्ड ही है.
तकाजे पर तकाजा
"दिन भर में एक टोस्ट के अलावा हमें खाने को कुछ भी नसीब नहीं होता. यह हेल्दी तो नहीं, मगर सस्ता जरूर है.”"
माइकेल, मेडोज का एक शहरी
यहां उधार देने वाले लोग अपने ग्राहक की हैसियत के अनुसार उन्हें कर्ज देते है, लेकिन स्थिति इतनी आसान नहीं है.
मेडोज पार्टनरशिप ट्रस्ट की शेरोन मिल्स बताती हैं कि ऐसा क्यों है?
शेरोन मिल्स ने मुझे बताया, "आप हैरान परेशान हैं, और आपके बच्चे को तीन दिनों से एक दाना तक नसीब नहीं हुआ है. ऐसे में आपके दरवाजे पर कोई व्यक्ति पैसे लेकर हाजिर हो जाए, तो वो किसी मसीहा से कम नहीं लगता."
मगर मिल्स अगले ही पल बताती हैं, "मगर यही मसीहा कब भेड़िए का ऱुप ले लेगा, आपको पता नहीं चलेगा."
वे कहती हैं, "उसे पता है, आपकी तनख्वाह महीने की कौन सी तारीख को हाथ में आती है. अपने उधार दिए गए पैसे लेने के लिए वह उस दिन बिना एक पल की देर किए, दरवाजे पर तकाजा देने के लिए हाजिर रहता है."
'ड्रेसिंग गाऊन'
मैं माइकल से मिला. एक 20 साल का लंबा तगड़ा युवक.
माइकल ने मुझे बताया, "ऐसा लगता है मानों मैं किसी कैदखाने में रह रहा हूं."
उसने कहा, "एक टोस्ट के अलावा हमें खाने को कुछ भी नसीब नहीं होता, ये सेहतमंद नहीं है, मगर सस्ता जरूर है."
माइकेल सारा दिन मटरगश्ती और अड्डेबाजी करता है.
35 साल की राचेल ओल्डफील्ड बताती हैं, "दोपहर के 3.30 बजने वाले हैं. मगर देखो, सारे लोग अपने ड्रेसिंग गाउन में टहल रहे है. सब हताशा के मारे हुए हैं."
"मैं मेडोज में रहती हूं. इसलिए इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हूं कि मैं कौन हूं, और क्या कर सकती हूं."
राचेल ओल्डफील्ड, मेडोज की एक शहरी
राचेल बताती हैं कि उनका मूड उस दिन कैसे खराब हो जाता है.
वे बताती हैं, "मैं उस दिन दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रही होती हूं. मन ही मन प्लानिंग चलती रहती है कि आज दोस्तों के पास जाऊंगीं, हम बाहर खाना खाएंगे. मगर अफसोस, ऐसा कभी नहीं होता. क्योंकि तब तक पैसे देनदारों की जेब में पहुंच चुके होते हैं."
जिंदा रहने का संघर्ष
राचेल को हर महीने के अंत में तनख्वाह मिलती है. उनके सारे पैसे किराए और बिल भरने में खत्म हो जाते हैं.महीने के बाकी दिन उन्हें 140 पाउण्ड के टैक्स क्रेडिट और 134 पाउण्ड के चाइल्ड बेनीफिट पर गुजारने होते हैं.
हालांकि वे खुद को गरीब नहीं मानतीं. वे तर्क देती हैं कि उनकी बेटी चॉकलेट खरीदती है और बेटा फुटबाल खेलता है...
वह मेडोज में रहने वाले और लोगों के बनिस्पत खुद को भाग्यशाली मानती हैं.
उम्मीदों का दामन
मेडोज के लोगों में पल रहे अभाव का सबसे बड़ा सबूत यह है कि यहां कोई वीकेंड नहीं मनाता.अब्दुल हक मेडोज में साल 1973 में आकर बस गए. अभी वो जोड़ के दर्द की तकलीफ और मधुमेह की बीमारी से जूझ रहे हैं.
शारीरिक अक्षमता के लिए अब्दुल को जो गुजारा भत्ता मिलता है, उन्हें उसी पर गुजारा करना पड़ता है.
वे बताते हैं, "मैं पिछले छह सालों से छुट्टियां मनाने कहीं नहीं गया. यह संभव भी नहीं है. हमारी हैसियत इतनी नहीं है. इसलिए मैं टहल कर ही अपना मन बहला लेता हूं."
मगर मेडोज के लिए एक अच्छी खबर है. यहाँ एक नया फूड बैंक खुला है.
यहां बच्चों के लिए दूध और ब्रेड किफायती दरों पर उपलब्ध की जा रही है.
लोगों ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है. आमदनी का स्तर बढ़ाने के लिए जड़ी-बूटियों की खेती शुऱू की गई है.
आशा है कि यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी और मेडोज एक दिन जरूर इन चुनौतियों को जीत लेगा.
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