सोमवार, 24 जून 2013

जुर्म और अधिकार

जुर्म भी इस देश में है, मांगना अधिकार
शासक हमेशा बहुजनाें का, कर रहा प्रतिकार।
षडयंत्र करता जा रहा है कर रहा असहाय
जिस तरह से नष्ट हो, भारत का जन समुदाय।
छीनता जंगल, जमीने, छीनता जल, जान
छीनकर अधिकार को, वह कर रहा शमशान।
सीख कर इतिहास से, वह कर रहा उपचार,
हूँ हितैषी बहुजनाें का, कर रहा प्रचार।
भुखमरी, बेकारी से वह कर रहा लाचार,
 कर रहा है आज भी, वह घोर अत्याचार।
शील से सुलझा न सकता, कर रहा आघात
गोलियाें, विस्फोटकाें की, कर रहा बरसात।
मूल होता देश का, न करता घिनौना कार्य,
नर विध्वंसक, आततायी है वही ये आयी।
नीतियां बदली नहीं, बदला नहीं उíेश्य,
भेष केवल बदलता, मूल अब भी शेष।
नक्सल और आतंक का है, जन्मदाता कौन,
खोज लो बहुजन, इसे अब तो रहो न मौन।
वक्त रहते चेत जाओ, लक्ष्य अपना भेद,
देश को आजाद कर, उसको यहां से खेद।
स्वच्छ होगा देश अपना, जब मिटेगी भ्रांति,
राष्ट्र हित में होयेगी जब, बहुजनों की क्रानित।
देर अब करना नहीं, लो बहुजनों संकल्प,
'भारत मुकित मोर्चा है, मात्र एक विकल्प।
आर.एन.मौर्य, उन्नाव

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