सोमवार, 24 जून 2013

प्रकृति से खिलवाड़, आपदायें, अंधविश्वास और सरकार का रवैया?
भारत में शासक वर्ग के वर्चस्व के चलते विकास का नजरिया एक तरह से गायब हो गया है जो सिर्फ लूट को महत्व दे रहा हेै इसलिए मानवीय जीवन को जहाँ हाशिये पर पहुँचा दिया है वही अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति की कोख को छलनी करने का कार्य जोरो पर हो रहा है। जिसका नतीजा प्रतिकूल हो रहा है। एक तरफ सिर्फ ब्राह्राण धर्म को सर्वोपरि मानकर 33 करोड़ देवी देवताओं का बड़ा जाल जहां तहा बिझाकर उन्हें पूजवाने और उन पर लोगों को ठगने का गोरख धन्धा बना रखा है। जिसे भली-भंति फलने-फूलने के लिए अंधविश्वास के आगे झूकना शुरू करा दिया और जहां बहुजन लोग उन्हीें के साथ अपना किमती समय गंवाकर मेहनत के रूपयों से जिन्दगी सवाँरने के बजाय देवो की धरती जो प्रचारित कर उŸाराखण्ड में ब्राह्राणों ने एक के बाद एक मनिदरों का निर्माण करवाया अनेक कहानियाँ मठी जिसके चलते देव स्थान (मनिदरों की बहार) बनाये गये अंधविश्वासी लोगों के आने के लिए सुखसुविधाओं के नाम पर, लूट को बढ़ावा देने के नाम पर, सुविधाआें के चलते प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दिया जो यह भी भूल गये की अंधविश्वास में मानव के साथ प्रकृति को छलनी पर उन्हें बकसने के योग्य नहीं है। मगर लोगाें की अंधभकित को देखकर यह भूल गये कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ मंहगा पड़ेगा जहां ऐसे कारनामे करने वाले दबंग एवं तत्सम वर्ग को विशेषकर ब्राह्राण है मगर प्रकृति का कहर सब पर टूट पड़ा है।
वर्तमान में जो बाढ़ का प्रकोप हुआ जिससे लोगों को शिक्षा लेनी चाहिए कि मेहनत करने और अपने दिमाग का सही उपयोग करने से ही सब कुछ सुख और साधन सम्पन्न होगे बिना मेहनत  कुछ भी नहीें, मनिदर में भगवान कहीं नहीं है भगवान के अंधविश्वास से सिर्फ मन को दिलासा देना है।
वास्तविकता आपकी मेहनत और लगन होती है मगर लोग वास्तविकता को पहचाने बिना अंधविश्वास की अंधभकित में जा रहे है। जिसका नतीजा भारत देश के साथ सारी दुनिया देख रही है। जो प्रकृति से खिलवाड़ हुआ तो एक चरम सीमा पार होने के बाद आपदायें आना शुरू हो जाती है वहीं उŸाराखण्ड में हो रहा है। जहाँ देव अपने मनिदर एवं मूर्तियों को बच्चा नहीं पा रहा है वह दुनिया को क्या बचायेगा।
सरकारें भारत में अलग-अलग प्रान्तो में अनेक प्रकार से आने वाली अपादाआें से निपटने की कार्ययोजना आज तक नहीं बना पार्इ 6 दशक गुजरने के बाद भी प्रकृति विपदा से बचने के लिए कोर्इ कारगर कार्य नहीं हुआ है जब ऐसी समस्याएं विकराल रूप धारण करती है तब थोड़े दिनों के कार्ययोजना की सुगबुगहट होती है पिछले कुछ सालाें से विपदाओं से निपटने के लिए अलग से विभाग बनाया गया है जिसके कर्मचारियों पर करोड़ो खर्च हो रहे है मगर आपदाओं से निपटने का कोर्इ कारगर उपाय नहीं है जहां सरकारों द्वारा दिखावे की घोषणाएं होती है वह भी दिखावे मात्र की होती है ऐसे कठिन विपŸाि में भी षडयंत्र और घोटाले होते है घोटाला करने वाले साधारण कर्मचारी नहीं ब्राह्राणवादी कर्मचारी करते है गरीबाें को सिर्फ हाथ सामने कर कागजी कार्यवाही की जाती है मगर वास्तविकता देखकर लगता नहीं कि आज देश के योजनाएं सिर्फ दिखावे की बनकर रह गर्इ है। इसलिए उŸाराखण्ड ब्राह्राणों का गढ़ है जहां कमार्इ के साधन के रूप में सबसे अधिक मनिदर एवं धर्मशालाएं है जो उनके माध्यम से चलती है। उनकी दिनचर्या है मगर मीडिया द्वारा प्रचार लगातार हो रहा है कि निस्पक्ष रूप से सहायता की जाये मगर इससे पूर्व सुनामी लहर आर्इ गुजरात में भूकंम्प आया और राजस्थान में बाड़मेर में बाढ़ आर्इ तब लोगाें की समस्या पर इतना प्रचार क्याें नहीं हुआ? जितना आज हो रहा है। आज भारत को शासक वर्ग ने अपनी गिरफ्त में ले रखा है बहुजनाें के साथ नाइंसाफी हो रही है। ब्राह्राणवादियों के षडयंत्र जारी है। आदिवासियों का जंगल, जमीन पर पूंजीपति डोरे डालकर प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर अपने स्वार्थ को पूरा करने पर तुले है। वहीं प्रकृति अपना असली रूप दिखा रही है। इनसे सबक लेना चाहिए? और प्रकृति संसाधनों का बचाव एवं सही उपयोग करना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी आपदाआें से बचा जा सके।

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