घरेलू हिस्सा में पीडि़त महिलायें!
भारत और पूरे विश्व में घरेलू हिंसा का बढ़ता ग्राफ चिन्ताजनक है जिस प्रकार पुरूष प्रधान देशों में महिलाआें को उपभोग की वस्तु समझा जा रहा है जिसे लेकर समस्याएं बढ़ रही है। जबकि मानवीय जीवन में घर परिवार में पुरूष एवं महिला की बराबर भागीदारी रहती है और लगभग हर क्षेत्र में आज दोनों का कार्य सम्मान है मगर हिंसा के मामले में पुरूष महिला पर भारी पड़ रहा है। इसलिए आज भारत जैसे देश में ब्राह्राणी व्यवस्था के चलते महिलाआें पर अत्याचार बढ़ रहा है वैसे महिलाआें की दुर्गति का मामला आज नया नहीं है इसकी शुरूआत आर्यो के आगमन सें शुरू हो गयी थी जिसका वर्णन उन्हीं के ग्रन्थों से मिलता है तुलसीदास ने तो खुलकर लिखा था ''ढोल, गवार, शूद्र, पशु, नारी यह सब है ताड़न के अधिकारी जो वर्ग अपने ग्रन्थों में ही महिलाआें को पीटने की सलाह देता हो वह महिलाआें की सुरक्षा कहा से करेगा क्याेंकि पिछले एक दशक से तो भारत के शासक वर्ग ने महिलाआें की अनदेखी करके बलात्कार, यौन शोषण, गैंगरेप, नाबालिक बचिचयों के साथ दुष्कर्म, चलती राह में बचिचयाें के साथ छेड़खानी और यहां तक रिश्तेदारी में महिलाआें को भोग विलास की चीज मान लिया है इसके पीछे मूल कारण ब्राह्राणवादी व्यवस्था जिम्मेदार है जो वर्तमान में मानवीय रिश्ते को तार-तार कर दिया है इसलिए महिला अपने ही घर में असुरक्षित होने लगी है महिलाआें को ब्राह्राणवादी डरा-धमकाकर उन्हें अपने लिए उपयोग कर रहे है अब बेचारी महिलायें जाए तो कहा जाये घर में अपने लोग भेडि़ये बन गये है तो बाहर आवारा भेडि़यें मँुह मारने से बाज नहीं आते इसकी वजह से घरेलू हिस्सा की महिलाएं शिकार हो रही है।
हांलाकि जहां तक विदित है कि शिक्षा को बढ़ावा दिये बिना महिला-पुरूष के बीच रिश्ते में सुधार लाना आसान नहीं है जबकि वर्तमान में शासक वर्ग की व्यवस्था में शिक्षा को सुधारने के बजाय शिक्षा व्यवस्था को खत्म किया जा रहा है जिसके चलते 8वीं तक फेेल न करना, मध्याहन भोजन आदि ऐसे फैसले लिये गये है जो महिलाआें को भोग विलास तक रखने के साथ शूद्रों को हाशिये पर लाने का षडयंत्र भी है जहां महिलाआें में जागृति को रोकने का सवाल है उसी के शूद्रों का जुड़ाव भी है।
जहां विश्व में महिलाआें की सिथति मजबूत है वहीं भारत में कमजोर है विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) जो खुलासा किया है उसमें कहा गया है कि पूरे विश्व में एक तिहार्इ महिलाएं यौन शोषण की शिकार है जिससे स्पष्ट होता है।
भारत में सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाआें पर पड़ रहा है और इसी यौन और शारीरिक शोषण ने महिलाआें में मानसिक बीमारियों को जन्म दिया है जिसका प्रभाव नर्इ पिढ़ी पर भी पड़ रहा है जहां भारत देश में मूलनिवासियों पर शोषण का प्रभाव ब्राह्राणवादियों द्वारा हमेशा रहा है जातिय भावना वर्णवाद, वर्चस्ववाद की लड़ार्इ में आज भुखमरी, लाचारी, है। जिसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव महिलाआें पर पड़ा जिसका ज्यादा प्रभाव नर्इ पीढ़ी पर पड़ रहा है जहां शासक वर्ग बहुजनों विरोधी नीतियों पर अमल कर रहा है वहीं आज हमारे सामने समस्याएं विकराल रूप ले चुकी है जिसके चलते हर स्तर पर पिछड़ापन के नतीजे सामने आ रहे है इन समस्याआें का अब एक ही विकल्प है वह है सभी बहुजन वर्गो में जागृति का जागरण करने के साथ अपनी आजादी के लिए राष्ट्रव्यापी जन-आन्दोलन खड़ा करना होगा।
गूगल पर कार्यवाही की तलवार
जहां अमेरिका जैसे देश अपनी शकित को बनाये रखने के लिए सुरक्षा के हर पहलू पर नजर रखता है वहीं भारत में सभी की सुरक्षा की बजाय सिर्फ शासक वर्ग की सुरक्षा की चिन्ता करता है जिसके चलते भारत में बढ़ रही आन्तरिक एक बाहरी सुरक्षा की समीक्षा किये बिना गूगल इन्टरनेट पर सोशल मीडिया पर सुरक्षा को लेकर हमला किया जा रहा है वर्तमान में सोशल मीडिया में फेसबुक, टवीटर, ब्लाग ही ऐसा साधन तकनीकि दुनियां में है जो सच्चार्इ को सामने रख रहा है मगर शासक वर्ग को शायद सच्चार्इ पसन्द नहीं है उन्हें सिर्फ अपना वर्चस्व चाहिए जिसके लिए मानवीय जीवन की कुर्बानी देना जायज लग रहा है इसलिए अब सभी समस्याआें को नजरदाज करके सिर्फ सोशल मीडिया को ही खतरा मानकर कार्यवाही के लिए प्रयास हो रहा है। अन्यथा आज सामाजिक, आर्थिक और सुरक्षा की दृषिट से आन्तरिक एवं बाहरी व्यवस्था को सुधारा गया होता तो समस्याआें की बजाय देश तरक्की करता।
भारत और पूरे विश्व में घरेलू हिंसा का बढ़ता ग्राफ चिन्ताजनक है जिस प्रकार पुरूष प्रधान देशों में महिलाआें को उपभोग की वस्तु समझा जा रहा है जिसे लेकर समस्याएं बढ़ रही है। जबकि मानवीय जीवन में घर परिवार में पुरूष एवं महिला की बराबर भागीदारी रहती है और लगभग हर क्षेत्र में आज दोनों का कार्य सम्मान है मगर हिंसा के मामले में पुरूष महिला पर भारी पड़ रहा है। इसलिए आज भारत जैसे देश में ब्राह्राणी व्यवस्था के चलते महिलाआें पर अत्याचार बढ़ रहा है वैसे महिलाआें की दुर्गति का मामला आज नया नहीं है इसकी शुरूआत आर्यो के आगमन सें शुरू हो गयी थी जिसका वर्णन उन्हीं के ग्रन्थों से मिलता है तुलसीदास ने तो खुलकर लिखा था ''ढोल, गवार, शूद्र, पशु, नारी यह सब है ताड़न के अधिकारी जो वर्ग अपने ग्रन्थों में ही महिलाआें को पीटने की सलाह देता हो वह महिलाआें की सुरक्षा कहा से करेगा क्याेंकि पिछले एक दशक से तो भारत के शासक वर्ग ने महिलाआें की अनदेखी करके बलात्कार, यौन शोषण, गैंगरेप, नाबालिक बचिचयों के साथ दुष्कर्म, चलती राह में बचिचयाें के साथ छेड़खानी और यहां तक रिश्तेदारी में महिलाआें को भोग विलास की चीज मान लिया है इसके पीछे मूल कारण ब्राह्राणवादी व्यवस्था जिम्मेदार है जो वर्तमान में मानवीय रिश्ते को तार-तार कर दिया है इसलिए महिला अपने ही घर में असुरक्षित होने लगी है महिलाआें को ब्राह्राणवादी डरा-धमकाकर उन्हें अपने लिए उपयोग कर रहे है अब बेचारी महिलायें जाए तो कहा जाये घर में अपने लोग भेडि़ये बन गये है तो बाहर आवारा भेडि़यें मँुह मारने से बाज नहीं आते इसकी वजह से घरेलू हिस्सा की महिलाएं शिकार हो रही है।
हांलाकि जहां तक विदित है कि शिक्षा को बढ़ावा दिये बिना महिला-पुरूष के बीच रिश्ते में सुधार लाना आसान नहीं है जबकि वर्तमान में शासक वर्ग की व्यवस्था में शिक्षा को सुधारने के बजाय शिक्षा व्यवस्था को खत्म किया जा रहा है जिसके चलते 8वीं तक फेेल न करना, मध्याहन भोजन आदि ऐसे फैसले लिये गये है जो महिलाआें को भोग विलास तक रखने के साथ शूद्रों को हाशिये पर लाने का षडयंत्र भी है जहां महिलाआें में जागृति को रोकने का सवाल है उसी के शूद्रों का जुड़ाव भी है।
जहां विश्व में महिलाआें की सिथति मजबूत है वहीं भारत में कमजोर है विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) जो खुलासा किया है उसमें कहा गया है कि पूरे विश्व में एक तिहार्इ महिलाएं यौन शोषण की शिकार है जिससे स्पष्ट होता है।
भारत में सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाआें पर पड़ रहा है और इसी यौन और शारीरिक शोषण ने महिलाआें में मानसिक बीमारियों को जन्म दिया है जिसका प्रभाव नर्इ पिढ़ी पर भी पड़ रहा है जहां भारत देश में मूलनिवासियों पर शोषण का प्रभाव ब्राह्राणवादियों द्वारा हमेशा रहा है जातिय भावना वर्णवाद, वर्चस्ववाद की लड़ार्इ में आज भुखमरी, लाचारी, है। जिसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव महिलाआें पर पड़ा जिसका ज्यादा प्रभाव नर्इ पीढ़ी पर पड़ रहा है जहां शासक वर्ग बहुजनों विरोधी नीतियों पर अमल कर रहा है वहीं आज हमारे सामने समस्याएं विकराल रूप ले चुकी है जिसके चलते हर स्तर पर पिछड़ापन के नतीजे सामने आ रहे है इन समस्याआें का अब एक ही विकल्प है वह है सभी बहुजन वर्गो में जागृति का जागरण करने के साथ अपनी आजादी के लिए राष्ट्रव्यापी जन-आन्दोलन खड़ा करना होगा।
गूगल पर कार्यवाही की तलवार
जहां अमेरिका जैसे देश अपनी शकित को बनाये रखने के लिए सुरक्षा के हर पहलू पर नजर रखता है वहीं भारत में सभी की सुरक्षा की बजाय सिर्फ शासक वर्ग की सुरक्षा की चिन्ता करता है जिसके चलते भारत में बढ़ रही आन्तरिक एक बाहरी सुरक्षा की समीक्षा किये बिना गूगल इन्टरनेट पर सोशल मीडिया पर सुरक्षा को लेकर हमला किया जा रहा है वर्तमान में सोशल मीडिया में फेसबुक, टवीटर, ब्लाग ही ऐसा साधन तकनीकि दुनियां में है जो सच्चार्इ को सामने रख रहा है मगर शासक वर्ग को शायद सच्चार्इ पसन्द नहीं है उन्हें सिर्फ अपना वर्चस्व चाहिए जिसके लिए मानवीय जीवन की कुर्बानी देना जायज लग रहा है इसलिए अब सभी समस्याआें को नजरदाज करके सिर्फ सोशल मीडिया को ही खतरा मानकर कार्यवाही के लिए प्रयास हो रहा है। अन्यथा आज सामाजिक, आर्थिक और सुरक्षा की दृषिट से आन्तरिक एवं बाहरी व्यवस्था को सुधारा गया होता तो समस्याआें की बजाय देश तरक्की करता।
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