बुधवार, 26 जून 2013

आरक्षण के जनक लोकराजा राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज के 139 जयन्ती के अवसर पर सभी मूलनिवासी परिवार की ओर से सुबेच्छायें!

आरक्षण के जनक लोकराजा राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज के 139 जयन्ती के अवसर पर सभी मूलनिवासी परिवार की ओर से सुबेच्छायें!
लोकराजा राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जून 1874 को हुआ था। शाहूजी महाराज का अलसी नाम यशवंत था तथा लोग उन्हें बाबासाहब कहते थे। राजर्षि छत्रपति शाहू-महाराज का विवाह 17 वर्ष की उम्र में 1 अप्रैल, 1891 को बड़ौदा के गुणाजीराव खानविलकर की सुकन्या लक्ष्मीबार्इ से हुआ। उनका राजाभिषेक 2 अप्रैल 1894 अर्थात 20 वर्ष की उम्र में सम्पन्न हुआ। राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज ने 1894 से 1922 मतलब 28 वर्ष राज्य का कार्यभार संभाला जिसकी भूरी-भूरी प्रसंशा सारे विश्व में हुर्इ। शाहूजी महाराज ने अपने राज्य में राष्ट्रपति जोतिराव फुले का उíेश्य सत्य की खोज और सत्य की प्रस्थापना करने वाले समाज का निर्माण करना था। और इसी के लिए उन्होंने शिक्षा की शुरूआत की। इसलिए शाहूजी महाराज ने अपने राज्य में इसकी  शुरूआत की और अपने महान गुरू के कार्य को आगे बढ़ाया। उन्हाेंने सम्पूर्ण राज्य का दौरा कर निरीक्षण किया। राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज के राज्यभिषेक के समय सिर्फ 158 गांवों में पाठशालाएं थी। जबकि मृत्यु के समय तक इनकी संख्या वे 579 तक पहुँचा चुके थे।
राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज आरक्षण के आध जनक है। आरक्षण के नायक है। वे आधुनिक काल में सम्पूर्ण भारत में एकमात्र राजा है जिन्हाेंने ब्राह्राणेŸारों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण दिया।
राष्ट्रपति जोतिराव फुले ने एक सलाह दी थी कि बहुजन समाज के होनहार व होशियार बच्चों को शिक्षा में सहायता करो। इस सलाह का शब्दश: पालन राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज व श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड दोनों ने किया व अपनी रियासत की तरफ से बहुजन समाज के होशियार व होनहार बच्चों की शिक्षा में सहायता की। राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज व श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड ने बाबासाहब अम्बेडकर को विदेश में शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता की।
राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज ने न केवल गाँव के अन्दर के शूद्रों (पिछड़ा वर्ग) व गाँव के बाहर के अस्पृश्य वर्ग बलिक अपराधी जनजाति के लिए भी कार्य किया। समाज ने सैकड़ों वर्ष जिन्हें पास तक फटकने नहीं दिया वह अपराधी मानकर जिनकी सदियों तक उपेक्षा की उन घुमन्तू जातियों को भी उन्हाेंने अपने âदय से लगाया। उनकी सैेकड़ाें वर्षो की दरिद्रता दूर की व मनुष्य की तरह जीने का अधिकार दिया।
राजर्षि शाहूजी महाराज ने मुसिलम बंधुआें की प्रगति के लिए विशेष प्रयास किए। मराठा बन्धुआें की तरह ही मुसिलम समाज अनेक दृषिट से पिछडत्रा था। उस काल में स्वयं महाराज ने आगे आकर मुसिलम समाज के प्रतिषिठत लोगों की बैठक बुलार्इ व ''मोहमडन एजूकेशन सोसाइटी की स्थापना की वह उसके माध्यम से वे ''मुसिलम बोर्डिंग आरंभ किए। और इसमें विशेष बात यह थी कि महाराज स्वयं बोर्डिंग के अध्यक्ष बने। उनके राज्य में 1917 में विधवा सित्रयाँ  के जीवन में उजाला भरने हेतु पुनर्विवाह का कानून बनाया। स्त्री शिक्षा के साथ ही उनके अधिकारों को सुनिशिचत करने व उनके विरूद्ध अत्याचारों को रोकने के विशेष प्रत्यन किए। विवाह का कानूनन पंजीकरण भी शुरू किया। राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज हम सब को छोड़कर चले।

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