वर्तमान में उत्तर प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 61 है सरकार इसे 32 तक
लाना चाहती है. जबकि प्रसव के दौरान मृत्यु का शिकार होने वाली महिलाओं की
संख्या यानि मातृ मृत्यु दर 400 प्रति एक लाख प्रसव है. सरकार का इसे 200
करने का लक्ष्य है. उत्तर प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग की कारगुजारी से
कोई भी अंजान नहीं है. एनएचआरएम घोटाले समेत भ्रष्टाचार के अन्य कई मामलों
ने इस महकमे को खोखला करके रख दिया है. जनता का सरकारी अस्पतालों और उनके
चिकित्सकों से विश्वास उठ गया है. लेकिन राज्य सरकार के मुखिया अखिलेश यादव
ने दावा किया है कि प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग की तस्वीर पहले जैसी नहीं
रहेगी. प्रदेश में बदलाव का दौर शुरू हो गया है. समाजवादी सरकार दो साल में
स्वास्थ्य सेवा में देश में एक मिसाल कायम करेगी. यह बात मुख्यमंत्री ने
उ.प्र एंबुलेंस सेवा को हरी झंडी दिखाते हुए कही. प्रदेश में 200 एंबुलेंस
का बेड़ा उतारते हुए उन्होंने बताया कि जल्द ही तकरीबन एक हजार और एंबुलेंस
खरीदी जाएंगी. उन्होंने कहा कि आम जनता तक सस्ती और उच्च श्रेणी की
चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी. उन्होंने इस अवसर पर सरकारी
अस्पतालों में बाह्य रोगी विभाग(ओपीडी) में भर्ती होने वाले रोगियों से
भर्ती शुल्क के रूप में लिए जाने वाले 35 रुपये जमा कराए जाने पर तत्काल
प्रभाव से रोग लगा दी है. अब से सरकारी अस्पतालों में सभी मरीजों को तीन
दिन की बजाए पांच दिन की दवाईयां मुफ्त उपलब्ध कराई जाएंगी. विशेष
परिस्थितियों में 15 दिन की दवाईयां उपलब्ध कराई जाएंगी. गांवों में
स्वास्थ्य सुविधाओं पर बात करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ग्रामीण अंचल
में चिकित्सा सुविधाओ का विस्तार किया जाना सरकार की प्राथमिकता में है.
चिकित्सा सुविधाओं में प्रदेश की जनता को किसी प्रकार की कठिनाइयों का
सामना न करना पड़े, इसके लिए मुख्यालय पर टोल फ्री नंबर 1800-180-5145 भी
काम कर रहा है जिसमें अब तक हजारों शिकायतें आ चुकी हैं. अधिकांश शिकायतों
का निपटारा भी तेजी से कर दिया जाता है. सत्यमेव जयते में आमिर के दवाओं के
विषय पर उठाए गए मुद्दे का असर उत्तर प्रदेश सरकार पर भी होता दिखा है.
यहां की सरकार भी आम जनता की तरह जेनेरिक दवाओं के प्रति जागरूक दिखने लगी
है. अब मरीज अपने चिकित्सकों पर मंहगी दवाओं की जगह सस्ती जेनेरिक दवाएं
लिखने का दबाव डाल रहे हैं. तो सरकार ने भी मरीजों को सस्ती दरों पर दवाएं
उपलब्ध कराने के लिए डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखने के निर्देश दिए हैं.
इसकी शुरूआत राजधानी लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय से हो गई
है.अब यहां के चिकित्सक मरीजों को बाहर से दवाएं खरीदने के लिए पर्चा नहीं
लिख सकेंगें. डॉक्टरों को निर्देश दिए गए हैं कि वे मरीजों को चिकित्सा
विवि के स्टोर में उपलब्ध जेनेरिक दवाएं ही लिखें. अब तक अक्सर डॉक्टर ऐसी
दवाएं लिख रहे थे जो मरीजों को बाहर के मेडिकल स्टोरों से लेनी पड़ती थीं,
जबकि इसी सॉल्ट की जेनेरिक दवाएं सरकारी स्टोर में मरीजों के लिए मुफ्त
उपलब्ध रहती थीं. सरकार के ऐजेंडे में यह शामिल नहीं था, मगर आमिर खान के
कार्यक्रम का असर होता देश सरकार को मजबूरन यह निर्णय लेना पड़ा है. प्रदेश
के प्रत्येक हिस्से में लोगों को जेनेरिक दवाएं उपलब्ध करा पाना कठिन होगा.
सरकार के लिए जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता बनाए रखना सबसे चुनौती पूर्ण
कार्य होगा. डॉक्टरों से जेनिरिक दवाएं मरीजों को लिखवाना भी एक कठिन कार्य
होगा. पहले भी कई बार डॉक्टरों की प्राईवेट प्रेक्टिस पर रोक लगाई गई थी.
फिर भी डॉक्टरों ने प्राईवेट प्रेक्टिस जारी रखी थी.तो फिर इस आदेश को
डॉक्टर कैसे मानेंगें. क्योंकि यह निरणय कहीं न कहीं उनको आर्थिक नुक़सान
पहुंचाता है. जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं की अपेक्षा काफी सस्ती होती
हैं, लेकिन ब्रांडेड कंपनियों से मिलने वाले कमीशन के चक्कर में डॉक्टर अभी
तक इन्हें लिखने से परहेज करते रहे हैं. यह किसी से छिपा नहीं है कि
बड़ी-बड़ी फार्मा कंपनियां अपनी दवाईयां लिखने के एवज में डॉक्टरों को मंहगे
गिफ्ट देती हैं. इसी कारण मरीजों और उनके करीबियों की जेब हल्की हो जाती
है. आमतौर पर देखने में यह आता है कि दस रुपये में मिलने वाली जेनेरिक दवा
ब्रांड के नाम पर मरीज को सौ रूपये तक में थमा दी जाती है. मरीज और उसके
परिवारजन डॉक्टरों का कहर चुपचाप सहते रहते हैं. उन्हें इस बात का डर सताता
रहता है कि अगर उन्होंने मुंह खोला तो धरती का भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर
साहब नाराज हो जाएंगे. चिकित्सकों के कोप से अनपढ़ और पढ़ा-लिखा दोनों ही
तबका भयभीत रहता है. और डॉक्टरों के हौसले बुलंद रहते हैं. बहरहाल, राज्य
सरकार ने जेनेरिक दवाओं का प्रचलन बढ़ाने के लिए पहल तो कर दी है लेकिन इसे
पूरी तरह से अमली जामा पहनाने में काफी समय लगेगा. सरकार ने भले ही घोषणा
कर दी हो लेकिन अफसरशाही और कारपोरेट सेक्टर इसमें रोड़े नहीं अटकाएंगे इस
बात की संभावना बहुत कम दिखती है.
अखिलेश यादव ने प्रदेश में
स्वास्थय सेवाओं की बहाली के लिए नई योजनाओं की घोषणा की है, उनके अनुसार
आने वाले दो सालों में प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर बदल जाएगी. इन
नए वादों और घोषणाओं का क्या होगा, यह जानने के लिए अखिलेश यादव के उस
निर्णय पर नजर डालें जिसके आधार पर एनआरएचएम घोटाले में फंसे प्रदेश के
पूर्व स्वास्थ्य सचिव को जेल जाने के बावजूद उन्हें निलंबित नहीं किया गया
और जमानत पर बाहर आते ही उन्हें राजस्व विभाग का सदस्य बना दिया गया. अब
उनकी पहल से क्या बदलाव होगा या फिर यूं कहें कि आम लोगों को इन घोषणाओं
से कितना त्वरित और दूरगामी लाभ मिलेगा इसका अंदाजा 2014 के आम चुनाव के
परिणाम से हो जाएगा.
स्वास्थ्य विभाग में बहुत काम करने को जरूरत बताते हुए अखिलेश ने
अस्पतालों की बदहाली का जिक्र करते हुए कहा कि डॉक्टरों और नर्सों की कमी
को दूर करने तथा बंद पड़े मेडिकल कॉलेजों को शीघ्र चालू करने के लिए सरकार
तेजी से काम कर रही है. दो वर्षों में स्वास्थय सेवाओं में हुआ बदलाव लोगों
को महसूस होने लगेगा. उन्होंने स्वास्थ्य विभाग से जुड़े कुछ अधिकारियों की
भी खूब प्रशंसा की और कहा कि उनकी सरकार सवास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए
संकल्पित है. इस मौके पर स्वास्थ मंत्री अहमद हसन ने कहा कि सरकार शहरों
में ही नहीं गांव-देहात तक में उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं देने को
बचनबद्ध है. सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर डॉक्टरों की उपस्थिति सुनिश्चित की
जा रही है. सपा के घोषणा पत्र का जिक्र करते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने कहा
कि स्कूल कॉलेजों में पढ़ने वाली लड़कियों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा देने का
प्रावधान भी सरकार द्वारा किया गया है. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश
एम्बुलेंस सेवा के अंर्तगत वर्ष 2012-13 में कुल 972 एम्बुलेंस प्रदेश के
सभी जनपदों में संचालित कराई जाएंगी. इनमें से प्रत्येक जिला चिकित्सालय
में दो तथा प्रत्येक विकास खंड में एक एम्बुलेंस उपलब्ध रहेगी. यह
एम्बुलेंस गर्भवती महिलाओं को मुफ्त दी जाएगी तथा इसके लिए गरीबी रेखा का
कोई प्रतिबंध नहीं होगा.
मुख्यमंत्री मायावती के शासन काल में हुए एनआरएचएम घोटाले के बहाने बसपा
पर हमला करने से भी नहीं चूके. उन्होंने इशारों-इशारों में कह दिया कि यह
घोटाला इतना बड़ा है कि सीबीआई भी उसकी हकीकत का पता नहीं लगा पा रही है.
उन्होंने एनआरएचएम घोटाले में कुछ निर्दोष लोगों के भी फंस जाने की बात
कही. वैसे उन्होंने किसी निर्दोष का नाम तो नहीं लिया लेकिन लोगों ने यही
समझा कि उनका इशारा एक पूर्व नौकरशाह की तरफ है, जिसके निलंबन के सवाल पर
हाल में ही अखिलेश सरकार को काफी फजीहत का सामना करना पड़ा था. सपा के लिए
अपने को बसपा बेहतर साबित करने के लिए स्वास्थ्य सेवाएं एक अच्छा जरिया हो
सकती है.
चिकित्सालय का निर्माण अधर में
फैज़ाबाद मंडल में 300 बेड के मंडलीय चिकित्सालय का निर्माण अधर में लटका
हुआ है. जबकि इस चिकित्सालय को अक्टूबर 2010 में ही स्वास्थ्य विभाग को
स्थानांतरित किया जाना था. प्रदेश सरकार की उठा-पटक के चलते उक्त
चिकित्सालय का निर्माण आज तक पूरा नहीं हो सका है और न ही स्वास्थ्य विभाग
को हस्तानांतरित किया गया है. इसके निर्माण की लागत भी अब तक दुगनी होने का
अनुमान है. चिकित्सालय का निर्माण समय से पूरा न होने और उसके निर्माण को
शीघ्र पूरा कराने के विषय को स्थानीय समाजवादी पार्टी नेताओं और अयोध्या
के सपा विधायक तेजनाराण पांडेय ने विधानसभा चुनाव 2012 में चुनावी मुद्दा
भी बनाया था. सपा की सरकार बनने के बाद सपा विधायक ने एक बार इसके निर्माण
कार्य का निरीक्षण भी किया था और जल्दी ही यहां स्वास्थ्य सेवाएं शुरू
कराने की बात भी कही थी. लेकिन सेवाएं कहीं से शुरु होती नहीं दिख रही हैं.
पड़ोस के जनपद अंबेड़कर नगर के विधायक और प्रदेश के स्वास्थय मंत्री अहमद
हसन का इसी निर्माणाधीन चिकित्सालय के सामने से होकर प्रदेश मुख्यालय
आवागमन होता है. उन्होंने अभी तक इस अस्पताल को देखने की जरूरत भी नहीं
समझी है. इस संबंध में क्षेत्र के लोगों का कहना है कि चिकित्सालय का
निर्माण सिर्फ दिखावे के लिए किया गया है लोगों को इसके द्वारा स्वास्थ्य
सुविधाएं प्रदान किए जाने कोई संभावना नज़र नहीं आ रही है. गौरतलब हो,
स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के ध्येय से फैज़ाबाद के दर्शननगर क्षेत्र
में 300 शैयायुक्त मंडलीय चिकित्सालय की स्थापना शासनादेश सं.
412/पांच-108-5(7)/08 दिनांक 28.03.08 को बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा
स्वीकृति प्रदान की गई थी. उस समय चिकित्सालय के निर्माण कार्य की अनुमानित
लागत 33.68 करोड़ रुपये थी. चिकित्सालय में न्यूरो सर्जरी विभाग व एमआरआई
स्कैन आदि आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने की बात कही गई थी. चिकित्सालय
के निर्माण की ज़िम्मेदारी कार्यदायी संस्था उ.प्र. राजकीय निर्माण निगम
लिमिटेड को सौंपी गई. जिसने जून 2008 में निर्माण कार्य प्रारंभ किया.
प्रारंभ में इसके निर्माण कार्य के समाप्त होने की संभावित तिथि अक्टूबर
2010 थी. लेकिन निर्माण में लगी संस्था को धन अवमुक्त न होने के कारण इसका
निर्माण कार्य धीमी गति से हुआ. हालांकि विधान सभा चुनाव से पहले ही प्रदेश
सरकार ने इसे चालू कराने का दावा किया था. लेकिऩ सरकार बदलने के लगभग 6
माह बाद भी इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका है. कार्यदायी संस्था का
कहना है कि चिकित्सालय का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है सिर्फ विद्युत
कनेक्शन के न होने की वजह से स्वास्थ्य विभाग भवन को लेने के लिए तैयार
नहीं है. चिकित्सालय शुरू होने से पहले ही देख-रेख के अभाव में अव्यवस्थाओं
का शिकार हो गया है. इसका पूरा परिसर चारागाह में तब्दील हो चुका है जहां
कई तरह की खरपतरवार उग आई हैं इसकी देखरेख में लगे कर्मचारी परिसर में कम
सड़कों पर ज्यादा दिखाई देते हैं. बताया जाता है कि कार्यदायी संस्था के
पुराने कर्मचारियों में से अधिकांश का स्थानांतरण हो चुका है. यहां आए नए
कर्मचारियों को परिसर के बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है. वह कुर्सियों
पर बैठे या सोते नज़र आते हैं. परिसर में लगाया गया शिलान्यास का शिलापट भी
गायब हो चुका है. फिर भी कच्छप गति से निर्माणकर्ता संस्था के ठेकेदार
द्वारा वार्ड ब्लॉक का निर्माण कार्य कराया जा रहा है. इस बारे में निर्माण
कार्य करा रहे ठेकेदार प्रतिनिधि ने बताया कि वार्ड ब्लॉक का निर्माण पहले
किसी दूसरे स्थान पर होना था इसलिए यह नहीं बन सका था. अब इसके निर्माण
स्थल का चयन हो चुका है इसलिये इसका निर्माण कार्य कराया जा रहा है.
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