रविवार, 14 अप्रैल 2013

Pratap Chatse and Ram Sagar shared डॉ. सुनील यादव's photo.
-बिहार का ऐतिहासिक नाम …मगध है,बिहार का नाम ‘बौद्ध विहारों’शब्द का विकृत रूप माना जाता है,इस की राजधानी पटना है जिसका पुराना नाम पाटलीपुत्र था.!
आज आप को एक ऐसे दर्शनीय जगह लिए चलते हैं जिसके बारे में बहुत लोग जानते हैं.-

बिहार में एक जिला है नालंदा…संस्कृत में नालंदा का अर्थ होता है “ज्ञान देने वाला” (नालम = कमल, जो ज्ञान का प्रतीक है; दा = देना).

कहते हैं कि इस की स्थापना ४७० ई./४५० ई.[?] में गुप्त साम्राज्य के राजा कुमारगुप्त ने की थी। यह विश्व के प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक था जहां १०,००० छात्र और २,००० शिक्षक रहते थे।
भारत में दुनिया के सबसे पहले विश्वविद्यालय तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना सातवीं शताब्दी ईसापूर्व यानी नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना से करीब १२०० साल पहले ही हो गई थी। यह नालंदा भारत का दूसरा प्राचीन विश्वविद्यालय है, जिसका पुनर्निर्मा…ण किया जा रहा है। विश्वविद्यालय की स्थापना से काफी पहले यानी करीब १००० साल पहले गौतम बुद्ध के समय (५०० ईसापूर्व ) से ही नालंदा प्रमुख गतिविधियों का केंद्र रहा है।
तमाम बौद्ध साक्ष्यों में उल्लेख है कि गौतमबुद्ध नालंदा में कई बार आए थे। वहां एक आम के बगीचे में धम्म के संदर्भ में विचार विमर्श किया था। आखिरी बार गौतम बुद्ध नालंदा आए तो मगध के सारिपुत्त ने बौद्ध धर्म में अपनी आस्था जताई। यह भगवान बुद्ध का दाहिना हाथ और सबसे प्रिय शिष्यों में एक था। केवत्तसुत्त में वर्णित है कि गौतम बुद्ध के समय नालंदा काफी प्रभावशाली व संपन्न इलाका था। शिक्षा का बड़ाकेंद्र बनने तक यह घनी आबादी वाला जगह बन गया था। विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद दुनिया के सबसे लोकप्रिय जगहों में शुमार हो गया। बौद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय में यहां अकाल पड़ने का भी उल्लेख है। गौतम बुद्ध का शिष्य सारिपुत्त तो नालंदा में ही पैदा हुआ और यहीं इसका निधन भी हुआ ( सारिपुत्त के निधन की जगह नालका की पहचान की इतिहासकारो ने नालंदा से की है।
बौद्ध अनुयायी सम्राट अशोक ( २५०ईसापूर्व ) ने तो सारिपुत्त की याद में यहां बौद्ध स्तूप बनवायाथा। नालंदा तब भी कितना महत्वपूर्ण केंद्र था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह जैन धर्मावलंबियों के लिए भी महत्वपूर्ण केंद्र था। जैन तीर्थंकर महावीर ने जिस पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया था, वह नालंदा में ही था। नालंदा पाचवीं शताब्दी में आकर शिक्षा के सबसे बड़े केंद्र में तब्दील हो गया।
अब पुनः अपनी स्थापना से करीब १५०० साल बाद विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के फिर से दुनिया का वृहद शिक्षाकेंद्र बनाने की नींव पड़ गई है। आज राज्यसभा ने इससे संबंधित विधेयक को मंजूरी दे दी। गुप्तराजाओं के उत्तराधिकारी औरपराक्रमी शासक कुमारगुप्त ने पांचवीं शताब्दी में इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। गुप्तों के बाद इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं शती तक अंतरर्राष्ट्रीयख्याति रही थी। सातवीं शती में जब ह्वेनसांग आया था उस समय १०००० विद्यार्थी और १५१० आचार्य नालंदा विश्वविद्यालय में थे। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे।

नालंदा विश्वविद्यालय में विद्यार्थी विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, तर्कशास्त्र, गणित, दर्शन, तथा  बौद्ध धर्मों का अध्ययन करते थे। चौथी से सातवीं ईसवी सदी के बीच नालंदा का उत्कर्ष हुआ।



अध्ययन करने के लिए चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, इंडोनेशिया, इरान और तुर्की आदि देशो से विद्यार्थी आते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन्सांग ने भी ईस्वी सन् ६२९ से ६४५ तक यहां अध्ययन किया था तथा अपनी यात्रा वृतान्तों में उसने इसका विस्तृत वर्णन किया है। सन् ६७२ ईस्वी में चीनी इत्सिंग ने यहाँ शिक्षा प्राप्त की।कहा जाता है कि नालंदा विश्वविध्यालय में चालीस हजार पांडुलिपियों सहित अन्य हजारों दुर्लभ हस्त लिखित पुस्तकें थी !

खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था। एक प्राचीन श्लोक के अनुसार आर्यभट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे। आर्यभट के लिखे तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र।

यहाँ के तीन बड़े बड़े पुस्तकालय के नाम थे -:

1. रत्न सागर 2. विढ्ध्यासागर 3. ग्रंथागार
बौद्ध धर्म असल में ब्राहमणवादी गलत कर्म कंडों और जातिगत बटवारे की खिलाफत के रूप में फल फूला और स्वीकार किया गया | समानता और समरसता, ऊच नीच फ़ैलाने वाले ये बात ब्राह्मणों को कतई बर्दास्त नहीं हो रही थी ,परिणाम स्वरुप ब्राह्मणों द्वारा षडीयन्त्र ही मौर्या साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण था| मौर्या साम्राज्य के पतन के बाद बौद्ध धर्म का कोई सरक्षक नहीं बचा और तब कट्टर ब्राह्मणों  ने सभी बौद्ध विहार, बौद्ध मूर्ती,विश्विद्यालय,साहित्य एव ईतिहास को नस्ट करना शुरू किया| इसी कड़ी में नालंदा विश्वविद्यालय की ऐसी दुर्गति करके भारत देश में से समानता और शिक्षा को बंद करके ब्राह्मण धर्म को थोपने के लिए मनुवादी संविधान लागू किया गया |

नालंदा विश्वविद्यालय को इन महास्वार्थी लोगों ने तहस नहस कर दिया और पुस्तकालय में आग लगा दी, कहते हैं यह ६ माह तक जलती रही और आक्रांता इस अग्नि में नहाने का पानी गर्म करते थे.

ये कहा जाता है की बौद्ध भिक्षुओं द्वारा किये सभी शोध इन पुस्तकालयों में सुरक्षित थी जो आज हम टेक्नोलोजी देख रहे है वो पहले है बन चुकी थी ! आज भी पुष्पक विमान बन सकता है जिसकी सरचना रावण संहिता में दिया गयी है ! और सभी चिकित्सा के शोध भी !

आप अंदाज लगा सकते है कि जब आग लगाई गयी तो ६ महीनो तक जलती रही तो कितनी शोध और ग्रन्थ जले होंगे !
-बिहार का ऐतिहासिक नाम …मगध है,बिहार का नाम ‘बौद्ध विहारों’शब्द का विकृत रूप माना जाता है,इस की राजधानी पटना है जिसका पुराना नाम पाटलीपुत्र था.!
आज आप को एक ऐसे दर्शनीय जगह लिए चलते हैं जिसके बारे में बहुत लोग जानते हैं.-

बिहार में एक जिला है नालंदा…संस्कृत में नालंदा का अर्थ होता है “ज्ञान देने वाला” (नालम = कमल, जो ज्ञान का प्रतीक है; दा = देना).

कहते हैं कि इस की स्थापना ४७० ई./४५० ई.[?] में गुप्त साम्राज्य के राजा कुमारगुप्त ने की थी। यह विश्व के प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक था जहां १०,००० छात्र और २,००० शिक्षक रहते थे।
भारत में दुनिया के सबसे पहले विश्वविद्यालय तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना सातवीं शताब्दी ईसापूर्व यानी नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना से करीब १२०० साल पहले ही हो गई थी। यह नालंदा भारत का दूसरा प्राचीन विश्वविद्यालय है, जिसका पुनर्निर्मा…ण किया जा रहा है। विश्वविद्यालय की स्थापना से काफी पहले यानी करीब १००० साल पहले गौतम बुद्ध के समय (५०० ईसापूर्व ) से ही नालंदा प्रमुख गतिविधियों का केंद्र रहा है।
तमाम बौद्ध साक्ष्यों में उल्लेख है कि गौतमबुद्ध नालंदा में कई बार आए थे। वहां एक आम के बगीचे में धम्म के संदर्भ में विचार विमर्श किया था। आखिरी बार गौतम बुद्ध नालंदा आए तो मगध के सारिपुत्त ने बौद्ध धर्म में अपनी आस्था जताई। यह भगवान बुद्ध का दाहिना हाथ और सबसे प्रिय शिष्यों में एक था। केवत्तसुत्त में वर्णित है कि गौतम बुद्ध के समय नालंदा काफी प्रभावशाली व संपन्न इलाका था। शिक्षा का बड़ाकेंद्र बनने तक यह घनी आबादी वाला जगह बन गया था। विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद दुनिया के सबसे लोकप्रिय जगहों में शुमार हो गया। बौद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय में यहां अकाल पड़ने का भी उल्लेख है। गौतम बुद्ध का शिष्य सारिपुत्त तो नालंदा में ही पैदा हुआ और यहीं इसका निधन भी हुआ ( सारिपुत्त के निधन की जगह नालका की पहचान की इतिहासकारो ने नालंदा से की है।
बौद्ध अनुयायी सम्राट अशोक ( २५०ईसापूर्व ) ने तो सारिपुत्त की याद में यहां बौद्ध स्तूप बनवायाथा। नालंदा तब भी कितना महत्वपूर्ण केंद्र था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह जैन धर्मावलंबियों के लिए भी महत्वपूर्ण केंद्र था। जैन तीर्थंकर महावीर ने जिस पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया था, वह नालंदा में ही था। नालंदा पाचवीं शताब्दी में आकर शिक्षा के सबसे बड़े केंद्र में तब्दील हो गया।
अब पुनः अपनी स्थापना से करीब १५०० साल बाद विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के फिर से दुनिया का वृहद शिक्षाकेंद्र बनाने की नींव पड़ गई है। आज राज्यसभा ने इससे संबंधित विधेयक को मंजूरी दे दी। गुप्तराजाओं के उत्तराधिकारी औरपराक्रमी शासक कुमारगुप्त ने पांचवीं शताब्दी में इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। गुप्तों के बाद इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं शती तक अंतरर्राष्ट्रीयख्याति रही थी। सातवीं शती में जब ह्वेनसांग आया था उस समय १०००० विद्यार्थी और १५१० आचार्य नालंदा विश्वविद्यालय में थे। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे।

नालंदा विश्वविद्यालय में विद्यार्थी विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, तर्कशास्त्र, गणित, दर्शन, तथा बौद्ध धर्मों का अध्ययन करते थे। चौथी से सातवीं ईसवी सदी के बीच नालंदा का उत्कर्ष हुआ।



अध्ययन करने के लिए चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, इंडोनेशिया, इरान और तुर्की आदि देशो से विद्यार्थी आते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन्सांग ने भी ईस्वी सन् ६२९ से ६४५ तक यहां अध्ययन किया था तथा अपनी यात्रा वृतान्तों में उसने इसका विस्तृत वर्णन किया है। सन् ६७२ ईस्वी में चीनी इत्सिंग ने यहाँ शिक्षा प्राप्त की।कहा जाता है कि नालंदा विश्वविध्यालय में चालीस हजार पांडुलिपियों सहित अन्य हजारों दुर्लभ हस्त लिखित पुस्तकें थी !

खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था। एक प्राचीन श्लोक के अनुसार आर्यभट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे। आर्यभट के लिखे तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र।

यहाँ के तीन बड़े बड़े पुस्तकालय के नाम थे -:

1. रत्न सागर 2. विढ्ध्यासागर 3. ग्रंथागार
बौद्ध धर्म असल में ब्राहमणवादी गलत कर्म कंडों और जातिगत बटवारे की खिलाफत के रूप में फल फूला और स्वीकार किया गया | समानता और समरसता, ऊच नीच फ़ैलाने वाले ये बात ब्राह्मणों को कतई बर्दास्त नहीं हो रही थी ,परिणाम स्वरुप ब्राह्मणों द्वारा षडीयन्त्र ही मौर्या साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण था| मौर्या साम्राज्य के पतन के बाद बौद्ध धर्म का कोई सरक्षक नहीं बचा और तब कट्टर ब्राह्मणों ने सभी बौद्ध विहार, बौद्ध मूर्ती,विश्विद्यालय,साहित्य एव ईतिहास को नस्ट करना शुरू किया| इसी कड़ी में नालंदा विश्वविद्यालय की ऐसी दुर्गति करके भारत देश में से समानता और शिक्षा को बंद करके ब्राह्मण धर्म को थोपने के लिए मनुवादी संविधान लागू किया गया |

नालंदा विश्वविद्यालय को इन महास्वार्थी लोगों ने तहस नहस कर दिया और पुस्तकालय में आग लगा दी, कहते हैं यह ६ माह तक जलती रही और आक्रांता इस अग्नि में नहाने का पानी गर्म करते थे.

ये कहा जाता है की बौद्ध भिक्षुओं द्वारा किये सभी शोध इन पुस्तकालयों में सुरक्षित थी जो आज हम टेक्नोलोजी देख रहे है वो पहले है बन चुकी थी ! आज भी पुष्पक विमान बन सकता है जिसकी सरचना रावण संहिता में दिया गयी है ! और सभी चिकित्सा के शोध भी !

आप अंदाज लगा सकते है कि जब आग लगाई गयी तो ६ महीनो तक जलती रही तो कितनी शोध और ग्रन्थ जले होंगे !

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