बाबाओं पर भारतीयों को इतना भरोसा क्यों?
- 2 घंबीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली
मुझे नहीं लगता कि हिसार के सतलोक आश्रम में मंगलवार को पुलिस और बाबा रामपाल समर्थकों की भिड़ंत से पहले ज़्यादा लोग इस विवादित संत के बारे में जानते भी होंगे.
लेकिन फिर भारत एक अरब से ज़्यादा लोगों का देश है और इसमें हज़ारों बाबा या गुरू हैं. रईस लोगों के गुरू हैं, थोड़े कम पैसे वालों के गुरू हैं और ग़रीब लोगों के भी.
कई गुरुओं के अपने गृहक्षेत्र के साथ ही विदेशों में भी भारी भक्त हैं. राजनेता, फ़िल्म अभिनेता, क्रिकेटर्स, नौकरशाह और आम आदमी सब इनके भक्तों में शामिल हैं.
आख़िर क्या बात है कि भारत में इतने संत-बाबा हैं और उनका ख़ासा प्रभाव भी है?
पढ़िए, सौतिक बिस्वास की रिपोर्ट
लोग अच्छी तरह जानते हैं कि विश्व प्रसिद्ध क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर साईं बाबा के भक्त हैं, जिनका रहस्य और प्रभाव 2011 में उनकी मौत के बाद भी कायम है.
गुरू का प्रभाव
जब नेता सलाह के लिए इनके पास आते हैं तो ये गुरू अपना प्रभाव दिखाते भी हैं.
समाजशास्त्री शिव विश्वनाथन कहते हैं कि किसी गुरू से नज़दीकी नेता को स्वीकार्यता दिलाती है और उसकी शक्ति बढ़ाती है.
देश की सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, जब-तब सलाह के लिए अपने योग गुरू धीरेंद्र ब्रह्मचारी से सलाह करती थीं.
बहुत से गुरू सफल उद्यमी भी हैं जो भारी व्यापारिक साम्राज्य चलाते हैं- पारंपरिक दवाएं, स्वास्थ्य उत्पाद, योग कक्षाएं और आध्यात्मिक उपचार बेचते हैं. वह स्कूल, कॉलेज और अस्पताल चलाते हैं.
डॉक्टर विश्वनाथन के अनुसार, बहुत से गुरु भारत की सबसे जानी-मानी कंपनी खड़ी कर सकते हैं.
पंजाब के एक बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह, एक प्रमुख धार्मिक पंथ के मुखिया हैं. वह रॉक कन्सर्ट में प्रदर्शन करते हैं और फ़िल्मों में काम कर चुके हैं.
कुछ गुरु योग में पारंगत हैं तो बाकी प्रवचनों के लिए जाने जाते हैं. हालाँकि भारत की सबसे प्रसिद्ध महिला गुरु माता अमृतानंदमयी लोगों को आशीर्वाद देने और उपचार के लिए गले लगाने के कारण मशहूर हुई थीं.
'प्रायोगिक औषधि'
इन गुरुओं को परमार्थ पर भी यकीन हैं जिसे बड़ी कंपनियां 'कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी' या वापस समाज में निवेश करने और पर्यावरण की रक्षा करना कहती हैं.
इसलिए यह सूखाग्रस्त गांवों में पीने के पानी की आपूर्ति करते हैं, क़ैदियों और नशे के आदियों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम चलाते हैं, रक्तदान शिविर आयोजित करते हैं और ग़रीब बच्चों के लिए स्कूल खोलते हैं.
कुछ तो क्रिकेट स्टेडियम बनवाते हैं और शाकाहार को बढ़ावा देते हैं. अचरज की बात नहीं है कि भक्त इन गुरुओं के पीछे पागल रहते हैं.
पंजाब के एक बाबा आशुतोष महाराज को डॉक्टरों ने इस साल जनवरी में मृत घोषित कर दिया था. लेकिन उनके समर्थक उनके शरीर को एक डीप फ़्रीज़र में इस उम्मीद में रखे रहे कि वह वापस ज़िंदा हो जाएंगे.
हालाँकि इन गुरुओं से बहुतों पर यौन हिंसा, ग़ैरकानूनी ज़मीन के सौदों और हत्या तक के आरोप हैं, लेकिन यह अपने वफ़ादार भक्तों के बीच भारी लोकप्रिय रहते हैं.
क्या है राज़?
तो भारत के इन गुरुओं के साथ लोगों के स्थाई संबंधों का राज़ क्या है?
एक- तेज़ी से शहरीकरण के देश में, जहां महत्वाकांक्षाओं के साथ ही हताशा और भ्रम भी उबाल पर हैं, ये गुरू अस्थिर जनमानस के लिए प्रायोगिक औषधि की तरह हैं.
लोग उनके शिष्य यह सोचकर बनते हैं कि वह उनकी ज़िंदगी में बड़ा बदलाव लाने में मदद कर सकते हैं. वह उनसे अपने गंभीर रूप से बीमार परिजनों के चमत्कारिक इलाज की उम्मीद करते हैं.
गुजरात के साबरकांठ ज़िले में एक गुरू हैं जिनके हज़ारों बीमार अनुयाई हैं, जिन्हें वह जादू से ठीक करने का वादा करते हैं. इनमें से बहुत से मर जाते हैं, लेकिन आस्था फिर भी कायम रहती है.
इसके अलावा, बहुत से भारतीय जादू, चमत्कार और विश्वास से उपचार (फ़ेथ हीलिंग) पर भी यकीन करते हैं.
'जादू और चमत्कार'
समाजशास्त्री दिपांकर गुप्ता कहते हैं कि अन्य धर्मों के मुक़ाबले हिंदुत्व जादू पर ज़्यादा यकीन करता है, क्योंकि 'हिंदुत्व' में सहभागिता पर एक भी किताब नहीं है.
वह कहते हैं, "अगर आप सहभागिता में हैं तो आप एक साथ मिलकर प्रार्थना करते हैं, आपको तसल्ली देने के अन्य तरीके होते हैं."
लेकिन बहुत से भारतीय अपनी ज़िंदगी में सुधार के लिए गुरुओं के चमत्कार पर निर्भर करते हैं.
डॉक्टर गुप्ता कहते हं, "बाबाओं को यकीनन जादूगरों के रूप में देखा जाता है जो चमत्कार का वादा करते हैं. आप किसी गुरू के पास इसलिए जाते हैं कि वह आपके लिए कुछ करेगा. जहां तक हम धर्म को जानते हैं यह सिर्फ़ बाहरी चमक ही है और यह गुरुओं को पहले स्थान पर नहीं रखता."
तो जब तक जादू और चमत्कारों पर यकीन रहेगा और अनिश्चितता बनी रहेगी, भारत के गुरु भी चलते रहेंगे.
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