गुरुवार, 20 नवंबर 2014

सेक्युलरिज़्म, मीडिया का प्रोपेगंडा: नानावटी

सेक्युलरिज़्म, मीडिया का प्रोपेगंडा: नानावटी


गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद का एक दृश्य
पिछले तीन दशक में भारतीय राजनीति में दो बड़े हादसे हुए हैं, 1984 में सिख विरोधी दंगे और 2002 के गुजरात दंगे.
इन दोनों दंगों की जाँच के लिए बने आयोग की अगुवाई जस्टिस (रिटायर्ड) जीटी नानावटी ने की है.
सिख विरोधी दंगों की जांच उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने सौंपी थी. वहीं 2002 के दंगों की जांच उन्हें गुजरात सरकार ने सौंपी.
मीडिया में अटकले हैं कि मंगलवार को गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन को सौंपी गई अंतिम रिपोर्ट में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी है.
क्या कहते हैं जस्टिस जीटी नानावटी?

जस्टिस नानावटी से ख़ास बातचीत

गुजरात दंगे की एक पीड़ित महिला
जस्टिस जीटी नानावती को लगता है कि जबतक लोग शिक्षित नहीं होंगे दंगे होते रहेंगे
नानावटी-शाह आयोग ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए 24 एक्सटेंशन और 12 साल लिए. क्या रिपोर्ट देर से देने का कोई दबाव था?
मेरी छवि ऐसी है कि किसी ने कभी रिपोर्ट के बारे में मुझसे बात करने की हिम्मत नहीं की. मुझ पर किसी का कोई दबाव नहीं था.
पहले तो विशेष जांच दल (एसआईटी) से कागज़ात लेने में देरी हुई. एसआईटी के नौ हज़ार पेज हमें इसी साल के मध्य में मिले. उसके बाद तीस्ता सीतलवाड़ के दावे और उनके सहयोगी रईस ख़ान और अन्य गवाहों का तीस्ता को झुठलाना. इस प्रकरण में काफ़ी समय गया. फिर संजीव भट्ट सच कह रहे हैं या झूठ, यह सिद्ध करने में वक़्त लगा.
क्या गुजरात दंगों में लोगों को भड़काया गया था? आपको इसका कोई सबूत मिला है क्या?
जब कोई हादसा होता है तो कुछ लोग नफरत का फ़ायदा उठाते हैं. लोगों को भड़काया जाता है, ऐसा होता है तभी तो रोज़ दंगे नहीं होते. पर आयोग इसका पता कैसे लगा सकता है. कोई हमें बताएगा, तभी हमें पता लगेगा.
गुजरात में दंगे समय रहते क्यों नहीं रुक पाए? क्या सरकार इसमें विफल रही?
गुजरात सरकार और पुलिस सतर्क थी. लेकिन पुलिस बल की कमी के कारणदंगों को बड़े पैमाने पर फैलने से रोका नहीं जा सका.
गुजरात दंगों के दौरान मदद की अपील करते कुतबुद्दीन अंसारी
क्या आप जांच के लिए उन सभी लोगों का जवाब ले पाए जो इन दंगों से जुड़े थे या उन्हें इस बारे में कुछ पता था?
हमने दो बार अधिसूचना जारी की कि जिसके पास भी 2002 के दंगों के बारे में जानकारी है, वह आगे आए. लेकिन न कोई राजनेता आया और न कोई बड़ा पत्रकार. सरकारी अधिकारियों का कहना था कि बहुत पुरानी बात है, उन्हें घटनाओं को याद करने में देर लगेगी. उन्हें समय देना हमें भी मुनासिब लगा था.
आपकी 2008 की रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट की निंदा की गई थी. दंगा पीड़ित उसे अपने साथ अन्याय बता रहे थे. क्या आपकी अंतिम रिपोर्ट से दंगा पीडितों को न्याय मिलेगा?
न्याय क्या होता है? आप जो मानते हैं, वह अगर मैंने लिखा तो न्याय और वह नहीं लिखा तो अन्याय. रिपोर्ट पर लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी, मैं इसे ज़्यादा तवज्जो नहीं देता.
गुजरात में दंगाइयों की भीड़
सेक्युलरिज़्म पर आपकी क्या राय है?
सेक्युलरिज़्म तो केवल मीडिया का एक प्रोपेगंडा है. सेक्युलरिज़्म भी जस्टिस की तरह ही होता है जिस पर हर कोई अपनी राय रखता है. दंगे होते रहे हैं और होते रहेंगे, जब तक लोग शिक्षित नहीं होगे.

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