राजनीति का शिकार मुसलमान
भारत में मुसलमानों की हालत बद से बद्तर क्यों न हो लेकिन चुनाव
के दौरान मुसलमान खास हो जाते हैं उत्तर प्रदेश के चुनाव के लिए तो बेहद खास। सबसे
अहम सवाल यह है कि जब मुसलमानों के हालत पर दो रिपोर्ट आ चुकी है एक सच्चर कमेटी की
रिपोर्ट जिसमें मुसलमानों के बद्दतर हालत को बताया गया है वहीँ दुसरी रिपोर्ट में उपाय
बताया गया है। और यह रिपोर्ट सालो पहले आई है ऐसे में आज जब चुनाव सर पे है तब केन्द्रीय
मंत्री सलमान खुर्शीद का बयान कि सत्ता में आने के बाद मुसलमानों को 9फीसदी का आरक्षण
दिया जाएगा का मतलब क्या? क्या वह अब तक
सत्ता के बाहर थे? दरअसल यह युवराज और केन्द्रीय मंत्रि का ढोंग
है मुसलमानों को ठगने का। जो आजादी के बाद वे अब तक करते आए हैं।
भारतीय राजनीति में राजनैतिक दल मुसलमानों को वोट बैंक के सिवा
कुछ समझते ही नहीं चुनाव आते खास बना कर वोट ले लेते हैं और फिर अछूत समझकर दरकिनार
कर देते हैं। लेकिन इन सबके लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वे खुद हैं और उनके नाम पर
राजनीति करने वाले नेता जिन्होनें कभी भी उन्हें देश कि मुख्यधारा से जुड़ने ही नहीं
दिया, रही सही कसर कठमुल्लाओं ने पूरी कर दी उनका
फतवा मानो पूरी कौम आजाद भारत में फतवे का गुलाम है। मुसलमानों को अगर इस तंग हाली
से बाहर निकालना है तो खुद से सवाल करना होगा के क्या वे भीख लेना चाहते हैं या हक़।
अगर हक़ लेना चाहते हैं तो उन ठग राजनेताओं को पहचानना होगा जो मजहब के नाम पर भाई
को भाई से बांटते हैं और लालच देकर वोट खरीदने का अमानवीय खेल खेलते हैं।
चुनाव के बाद परिणाम क्या आएगा यह तो भविष्य के गर्भ में छुपा
है लेकिन जरा सोंचिए अगर सत्ता ठगों के हाथ में चला जाएगा तो फुटपाथ पर बसेरा करने
वालों का बसेरा कहां होगा?
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