बापू बिकता है ..खरीदने वाला चाहिए
गाँधी के नाम पर सियासत करने वाले गाँधी
परिवार ने तो इस घटना का नोटिस भी लेना मुनासिब नहीं समझा . खुछ सेकुलर
बुद्धिजीवी चंद टी वी चेनलों पर अपना गला साफ़ करते ज़रूर देखे गए. टी वी
एंकर भी खूब आक्रोश का दिखावा कर रहे थे , मगर गाँधी की विरासत पर काबिज़
गांधियों से प्रशन करने की हिम्मत वह भी न कर पाए. करे भी कैसे ? सरकार
से विज्ञापन की सुपारी जो ले रखी है ! . राष्ट्रपिता की विरासत आम सामान की
माफिक बिक रही है और अब तो बापू का खून भी एक बिकाऊ माल हो कर रह गया .
सरकार का काम तो कानून बनाना है, सो बना दिया की कोई भी राष्ट्रपिता की
विरासत को नहीं बेच सकता ! रही बात आदर्शों की ,उन्हें तो ये कभी के
बेच-खा गए हैं.
अब तो बापू की मुस्कान युक्त ५००-१००० के
नोट ही गांधीजी की विरासत हैं इन्हें खूब संभाल कर रखा है . जब देश की
तिज़ोरिओं में ज़गह नहीं बची तो स्विस बैंको में पहुचा दिए … बापू बिकता है
खरीदने वाला चाहिए !!!!!
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