बापू बिकता है ..खरीदने वाला चाहिए
पूरे
का पूरा बापू बिक गया और बापू के नाम पर सत्ता सुख भोग रहे ‘गांधियों ‘को
पता भी नहीं चला ?….. बापू के एक कतरा खून की बोली ११,७०० ब्रिटिश पौंड
अर्थात ९६०२२५.५५२ गाँधी छाप रुपैय्या लगाई गयी ! ब्रिटेन में बापू के
चरखे और ऐनक के साथ साथ बापू के खून से सनी मिटटी युक्त घास की बोली लगाई
गई .चरखा जो की चालू अवस्था में था ३९,७८० पौंड अर्थात ३२६४७६६.८७ रूपए का
बिका जबकि ऐनक जिसे बापू ने १८९० में खरीदा था ,की बोली २६००० पौंड अर्थात
२१३३८३४.५६ रूपए पर टूटी. खून की कीमत सबसे कम आंकी गयी…..महज़ ११,७०० पौंड
. कहते हैं इसे एक शख्स पी पी नाम्बियार ने ३० जनवरी १९४८ को बापू के वध
स्थल से इक्कठा कर ६४ वर्ष संजो कर रक्खा . बापू की धरोहर को किसी अज्ञात
भारतीय ने खरीदा है. ज़ाहिर है वह कोई भारत सरकार का नुमानिन्दा या
गाँधीवादी नहीं होगा. इससे पहले भी जब बापू की धरोहर की बोली लगी तो एक
शराब के व्यापारी ने भारी भरकम बोली दे कर उन्हें खरीदा और बापू के मद्द
निषेध के सिद्धांत इस नए गाँधी वादी का मुंह ताकते रह गए.
गाँधी के नाम पर सियासत करने वाले गाँधी
परिवार ने तो इस घटना का नोटिस भी लेना मुनासिब नहीं समझा . खुछ सेकुलर
बुद्धिजीवी चंद टी वी चेनलों पर अपना गला साफ़ करते ज़रूर देखे गए. टी वी
एंकर भी खूब आक्रोश का दिखावा कर रहे थे , मगर गाँधी की विरासत पर काबिज़
गांधियों से प्रशन करने की हिम्मत वह भी न कर पाए. करे भी कैसे ? सरकार
से विज्ञापन की सुपारी जो ले रखी है ! . राष्ट्रपिता की विरासत आम सामान की
माफिक बिक रही है और अब तो बापू का खून भी एक बिकाऊ माल हो कर रह गया .
सरकार का काम तो कानून बनाना है, सो बना दिया की कोई भी राष्ट्रपिता की
विरासत को नहीं बेच सकता ! रही बात आदर्शों की ,उन्हें तो ये कभी के
बेच-खा गए हैं.
अब तो बापू की मुस्कान युक्त ५००-१००० के
नोट ही गांधीजी की विरासत हैं इन्हें खूब संभाल कर रखा है . जब देश की
तिज़ोरिओं में ज़गह नहीं बची तो स्विस बैंको में पहुचा दिए … बापू बिकता है
खरीदने वाला चाहिए !!!!!
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