गुरुवार, 7 मार्च 2013

अब साँसें देंगी कैंसर का पता

 गुरुवार, 7 मार्च, 2013 को 08:40 IST तक के समाचार

एक अध्ययन के नतीजों से पता चला है कि सामान्य साँस परीक्षण (ब्रेथ टेस्ट) से पेट के कैंसर का पता लगाना संभव है.
इसराइल और चीन के वैज्ञानिकों ने पेट की समस्या से जूझ रहे करीब 130 रोगियों में कैंसर का पता लगाने के लिए एक परीक्षण किया. इस परीक्षण के 90 फीसदी नतीजे सही आए.
ब्रिटिश कैंसर जर्नल का दावा है कि यह परीक्षण (ब्रेथ टेस्ट) इस कैंसर को पहचान पाने के तरीकों और गति में बड़ा परिवर्तन ला सकता है.
लंदन में हर साल करीब 7,000 लोगों को पेट के क्लिक करें कैंसर की समस्या से जूझना पड़ता है, और इसमें से अधिकांश में यह रोग विकसित अवस्था में पहुंच चुका होता है.
इलाज के बावजूद 40 फीसदी रोगी ज्यादा से ज्यादा एक साल तक जीते हैं. क्लिक करें पाँच साल के इलाज के बाद मात्र 20 फीसदी ही जीवित रह पाते हैं.
वर्तमान में पेट के क्लिक करें कैंसर का इलाज करने के लिए डॉक्टर घूमते हुए कैमरे और जांच की मदद से आहार नली और मुंह के बीच मौजूद पेट की रेखाओं की बायोप्सी करते हैं.
इस नए परीक्षण के जरिए बाहर छोड़ी गई साँसों का रासायनिक खाका देखा जा सकता है. ये रासायनिक खांचें पेट के कैंसर से पीड़ित व्यक्ति में अलग-अलग दिखाई देते हैं.

कार्बनिक मिश्रण की गंध

"हमें ऐसे परीक्षणों की जरूरत है, जिससे पेट के कैंसर का पता जल्द से जल्द लगाया जा सके, तभी रोगियों के ‘दीर्घायु जीवन’ को संभव बनाया जा सकता है"
लंदन कैंसर अनुसंधान के निदेशक केट लॉ
कैंसर से वाष्पशील कार्बनिक मिश्रण की एक खास गंध आती है और यदि सही मेडिकल किट का इस्तेमाल किया जाए, तो इसी गंध के सहारे कैंसर का पता लगाया जा सकता है.

इस परीक्षण के पीछे जो विज्ञान है, वह नया नहीं है- कई शोधकर्त्ता पहले से ही फेफड़े सहित विभिन्न प्रकार के कैंसर में सांस परीक्षण की संभावनाओं का पता लगाने में लगे हुए हैं.

मगर इसराइली तकनीकी संस्थान के प्रोफेसर होसाम हैक की कोशिशें बताती हैं कि पेट के कैंसर की पहचान करने का यह तरीका बेहद कारगर साबित हुआ है.

इस परीक्षण में 37 रोगी पेट के कैंसर, 32 पेट के अल्सर और 61 पेट से संबंधित अन्य परेशानियों से पीड़ित थे.

साँस परीक्षण (ब्रेथ टेस्ट) पेट के इन विभिन्न बीमारियों के बीच के सही-सही अंतर को 100 में से 90 बार पता लगाने में कामयाब हो सकता है. यही नहीं, यह टेस्ट पेट के कैंसर की प्रारंभिक और अंतिम अवस्था के बीच के अंतर को भी ढूंढने में माहिर होगा.

अब यह टीम इन परीक्षणों को ज्यादा प्रामाणिक बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा रोगियों के बीच बड़े पैमाने पर अध्ययन कर रही है.

लंदन में स्थित कैंसर अनुसंधान के क्लीनिकल रिसर्च के निदेशक केट लॉ कहते है, “इस नए परीक्षण के नतीजे उत्साहजनक हैं- हालांकि, इन नतीजों की पुष्टि के लिए अभी हमें बड़े पैमाने पर परीक्षण करने की जरूरत होगी.”

“क्योंकि ज्यादातर पेट के कैंसर का इलाज उस अवस्था में हो पाता है जहां सर्जरी के लिहाज से मामला हाथ से बाहर जा चुका होता है. इसलिए केवल पांच फीसदी रोगी का इलाज ही सर्जरी के जरिए हो पाता है. हमें ऐसे परीक्षणों की जरूरत है, जिससे पेट के कैंसर का पता जल्द से जल्द लगाया जा सके, तभी रोगियों के ‘दीर्घायु जीवन’ को संभव बनाया जा सकता है ”

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