गुरुवार, 7 मार्च 2013

भारतीय राजनीति के 'पाँच दबंग'

 मंगलवार, 5 मार्च, 2013 को 16:17 IST तक के समाचार

मुख्तार अंसारी
मुख्तार अंसारी जेल में रहते हुए चुनाव जीते हैं.
उत्तर प्रदेश में एक पुलिस उपाधीक्षक ज़िया उल-हक़ की हत्या के बाद राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया को अखिलेश मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देना पड़ा. राजा भैया सभी आरोपों से इंकार करते हैं.
लेकिन भारतीय राजनीति में सिर्फ़ वही एकमात्र ऐसे नेता नहीं हैं जिनको दबंगों की श्रेणी में रखा जाता है. अपराध और राजनीति के गठजोड़ की सूची में यूँ तो कई नाम हैं, लेकिन यहाँ प्रस्तुत है एक झलक पाँच 'दबंग' नेताओं की.

मुख़्तार अंसारी

उत्तर प्रदेश के माफ़िया राजनेताओं में मुख़्तार अंसारी सिरमौर माने जाते हैं. उनके ख़िलाफ़ हत्या, अपहरण, फिरौती सहित कई आपराधिक मामले दर्ज हैं.
भारतीय जनता पार्टी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के सिलसिले में उन्हें दिसंबर 2005 में उन्हें जेल में डाला गया था, तब से वो बाहर नहीं आए हैं. जेल में रहते हुए ही उन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते.ये उनकी लगातार चौथी जीत है.
मुख़्तार अंसारी पर आरोप है कि वो ग़ाज़ीपुर और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में सैकड़ों करोड़ रुपए के सरकारी ठेके नियंत्रित करते हैं.
एक दौर में वो बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती के बहुत क़रीब रहे और बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव भी जीते पर 2010 में मायावती ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया.
इसके बाद मुख्तार ने कौमी एकता पार्टी बनाई और 2012 का चुनाव जेल में रहते हुए जीत लिया.

मोहम्मद शहाबुद्दीन

बिहार के सिवान ज़िले में मोहम्मद शहाबुद्दीन का भारी दबदबा रहा है.
सिवान लोकसभा क्षेत्र से चार बार राष्ट्रीय जनता दल के सांसद रह चुके शहाबुद्दीन को भाकपा-माले कार्यकर्ता छोटेलाल गुप्ता की हत्या के इरादे से अपहरण करने के एक मामले में सज़ा हुई है और वो फ़िलहाल जेल में हैं.
नब्बे के दशक में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले-लिबरेशन) के कार्यकर्ता और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र चंद्रशेखर की हत्या की साज़िश रचने का आरोप शहाबुद्दीन पर लगा था.
राजनीति शास्त्र में एम ए और डॉक्टरेट कर चुके शहाबुद्दीन पर कई बार अपने राजनीतिक विरोधियों को डराने-धमकाने के आरोप लगे हैं. सन 2004 के चुनावों में वो जेल के अंदर से ही चुनाव लड़े और जीते थे.
चुनाव नतीजे आने के बाद ही उनके विरोधी उम्मीदवार ओम प्रकाश यादव के कई समर्थकों की हत्या हो गई. वो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के करीबी लोगों में गिने जाते हैं.

अतीक़ अहमद

समाजवादी पार्टी से जुड़े अतीक अहमद 2004 से 2009 तक फूलपुर (इलाहाबाद) से लोकसभा सदस्य रहे.
अब वो जेल में बंद हैं और उन पर हत्या से लेकर फिरौती और मारपीट के लगभग 35 मुक़दमें चल रहे हैं.
समाजवादी पार्टी ने उन्हें 2008 में निकाल दिया. इसके बाद उन्होंने 2009 का चुनाव ‘अपना दल’ के टिकट से लड़ा पर हार गए.
इलाहाबाद में उन्हें माफ़िया सरगना के तौर पर जाना जाता है.

डीपी यादव

दो बार उत्तर प्रदेश विधानसभा और एक बार सांसद रह चुके डीपी यादव को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के डॉन के नाम से जाना जाता है.
पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक़ डीपी यादव ने शराब बेचने के धंधे से अपराध की दुनिया में क़दम रखा. उन्होंने समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह यादव के साथ नज़दीकियाँ बढ़ाईं और 1989 में विधानसभा के लिए चुन लिए गए.
सन 2004 में वो पाला बदल कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. अटल बिहारी वाजपेयी उस दौर में प्रधानमंत्री थे और उन्होंने डीपी यादव को राज्यसभा में मनोनीत कर लिया, पर विवाद पैदा हो जाने के बाद पार्टी ने उन्हें निकाल बाहर किया.
डीपी यादव ने 2007 में राष्ट्रीय परिवर्तन पार्टी बनाई, जिसकी ओर से वो और उनकी पत्नी विधायक चुन लिए गए. बाद में वो बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए परंतु विधानसभा चुनाव हार गए.
उत्तर प्रदेश में 2012 के चुनाव से पहले डीपी यादव ने बहुजन समाज पार्टी से संबंध तोड़ लिए और उनकी अपनी पार्टी का कोई उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया. उन पर हत्या हत्या की कोशिश, ग़ैरक़ानूनी हथियार रखने आदि के कई आपराधिक मामले चल रहे हैं.

रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया

राजा भैया
राजा भैया को अखिलेश यादव ने अपने मंत्रिमंडल में जगह दी थी
पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले में कुंडा क़स्बे के निवासी राजा भैया का अपराध की दुनिया से पुराना संबंध है. भारतीय जनता पार्टी के एक असंतुष्ट विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने उनके ख़िलाफ़ अपहरण और यंत्रणा देने की शिकायत दर्ज की.
तब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती थीं. सरकार के आदेश पर पुलिस अधिकारी आर एस पांडेय के नेतृत्व में राजा भैया को तड़के गिरफ़्तार कर लिया गया और उन पर आतंकवाद विरोधी क़ानून (पोटा) लगाया गया.
लेकिन 2003 में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने राज्य विधानसभा चुनाव जीत लिया और सरकार में आते ही राजा भैया के ख़िलाफ़ पोटा के तहत आरोप वापिस ले लिए. हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने फिर भी राजा भैया को रिहा करने से इंकार कर दिया.
लेकिन राजा भैया को गिरफ़्तार करने वाले पुलिस अधिकारी आरएस पांडेय ने शिकायत दर्ज करवाई कि राजा भैया उन्हें परेशान कर रहे हैं. कुछ समय बाद आर एस पांडेय एक सड़क दुर्घटना में मारे गए.
इस मामले की जाँच सीबीआई कर रही है. पुलिस रिकॉर्ड में राजा भैया और उनके पिता उदयप्रताप सिंह दोनों को हिस्ट्री शीटर बताया गया है. लेकिन दोनों अपराध के आरोपों से इंकार करते रहे हैं.

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