हमला जो जिस्म नहीं ज़हन भी छलनी कर देता है...
शुक्रवार, 8 मार्च, 2013 को 09:17 IST तक के समाचार
महिला दिवस के मौके पर औरतों की
दशा और दिशा से जुड़े कई मसलों पर बहस होती आई है. लेकिन एक मुद्दा ऐसा भी
है जो आमतौर पर हाशिए पर ही रहा है- महिलाओं पर तेज़ाब फेंके जाने का
मुद्दा. कम ही होता है जब ऐसी घटनाएँ अख़बारों की सुर्खियों में हो या
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तेज़ाब हमले के बाद ज़िंदा लाश हूँ: अनु की कहानीभारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में ये बेहद गंभीर समस्या है. एसिड अटैक न सिर्फ किसी महिला के चेहरे को खराब कर देता है या उसकी आँखों की रोशनी छीन लेता है लेकिन उसे समाज में दोयम दर्जे का नागरिक बना देता है. हो सकता है उसकी जान न जाए, पर ज़िंदगी बेहद बोझिल और दर्दनाक होकर रह जाती है.
तेज़ाब हमलों की समस्या
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लचर कानून व्यवस्था, दोषियों का छूट जाना
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तेज़ाब की बिक्री में रेगोलूशन नहीं
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पीड़ितों के इलाज की ज़िम्मेदारी किसकी
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पीड़ितों के मनोवैज्ञानिक और आर्थिक पुनर्वास की समस्या
इस पर कोई आधिकारिक आँकड़ें तो नहीं मिल पाए लेकिन भारत में भी पिछले एक दशक में तेज़ाब हमलों में वृद्धि हुई है. स्वयंसेवी संस्था एसिड सरवाइवल ट्रस्ट इंटरनेशनल ( एएसटीआई) के मुताबिक भारत में हर साल एसिड अटैक के करीब 500 मामले होते हैं.
जिस्म ही नहीं ज़हन भी छलनी
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नवंबर 2012- पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में बेटी पर तेज़ाब फेंका
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मार्च 2012- इंग्लैंड में नस्लवादी हमले में एक काली महिला पर तेज़ाब फेंका
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फरवरी 2012- इंग्लैंड में एक मॉडल पर उसके पूर्व बॉयफ्रेंड ने तेज़ाब फिंकवाया
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2007- कंबोडिया की 23 साल की विवियाना पर हमला. चेहरा, हाथ और छाती जली
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2004- ईरान में शादी के लिए मना करने पर 24 साल की अमेना पर लड़के ने तेज़ाब फेंका
एसिड सर्वाइवर्स ट्रस्ट इंटरनेशनल के अनुसार दुनिया के करीब 23 देशों में हाल के वर्षों में एसिड हमलों की घटनाएँ हुईं. इनमें अमरीका, ब्रिटेन, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों के भी नाम हैं. लेकिन ये इन देशों में दूसरी जगहों की अपेक्षा हमलों की संख्या बेहद कम है. महिलाओं पर एसिड हमलों की सबसे अधिक घटनाएँ भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश के अलावा कंबोडिया में दर्ज की गई हैं.
ईरान में 2004 में शादी के लिए मना करने पर 24 साल की अमेना पर एक लड़के ने तेज़ाब फेंक दिया था जबकि कंबोडिया में 23 की विवियाना पर एसिड अटैक में उनका चेहरा, हाथ और छाती जल गई थी. ऐसी और कितनी ही घटनाएँ हैं जो महज़ आँकड़ें बन कर रही गई हैं.
विशेषज्ञ इस जुर्म के लिए लचर कानून व्यवस्था को भी ज़िम्मेदार मानते हैं.
आमतौर पर इन हमलों की शिकार महिलाएं होती हैं. घरेलू हिंसा, टूटा प्रेम संबंध जैसे कई मामलों में गाज महिला पर आकर गिरती है. कई मामलों में देखा जाता है कि दोषी ज़मानत पर रिहा हो जाते हैं और उनकी ज़िंदगी आगे बढ़ जाती है. जबकि पीड़ित की ज़िंदगी वहीं की वहीं थम कर रह जाती है.
लेकिन इस सब के बावजूद भारत जैसे देशों में एसिड अटैक के मामले सुर्खियों से दूर और सरकारी निगाह से परे कहीं भटकते रहते हैं.
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