तेजाब हमले ने बनाया 'जिंदा लाश'
शनिवार, 21 अप्रैल, 2012 को 05:33 IST तक के समाचार
पाकिस्तान में मानवाधिकार गुटों
का कहना है कि तेजाब हमले की पीड़ितों को पिछले साल लागू हुई सख्त सजा के
बावजूद अब भी न्याय नहीं मिल रहा है.
एक अनुमान के मुताबिक हर साल डेढ़ सौ से ज्यादा महिलाओं पर उनके पति या ससुराल वाले तेजाब फेंकते हैं.***********************************************************
पंजाब प्रांत के मुल्तान शहर के निश्तर अस्पताल में तेजाब के हमले से पीड़ित शादीशुदा और चार बच्चों की मां शमा का इलाज चल रहा है. उनका 15 प्रतिशत शरीर जल चुका है. तेजाब के हमले के निशान उनके पूरे चेहरे पर साफ नजर आ रहे हैं.
शमा कहती हैं कि उन पर तेजाब डालने वाला उनका पति था.
उन्होंने बताया, "वैसे तो लड़ाई-झगड़ा रहता था अक्सर लेकिन उस दिन सोने के पहले मेरे पति ने मुझसे कहा कि तुम्हें अपनी खूबसूरती पर बहुत गुरुर है. मैंने उनसे कहा कि मुझे परेशान मत करो, ऐसी कोई बात नहीं है, तुम जाकर सो जाओ. वो वहां से चला गया. उसके बाद आधी रात को वो मुझ पर तेजाब फेंक कर भाग गया.”
शमा बताती हैं कि उनका पति उनका मोबाइल फोन भी अपने साथ ले गया ताकि वो मदद के लिए किसी को न बुला सकें.
'जिंदा लाश से बदतर जिंदगी'
शमा हमें अपनी वो तस्वीर दिखाती हैं जो चार महीने पहले किसी बच्चे की जन्मदिन पार्टी में खींची गई थी. तस्वीर से बड़े सलीके से तैयार हुई, सोने के बुंदे पहने एक खूबसूरत महिला झांक रही है. लेकिन तेजाब के हमले ने उस शमा का नामोनिशान मिटा दिया है.वो कहती हैं, "दुख होता है कि मैं क्या थी और क्या हूं. मेरे जिंदगी से सब रंग खत्म हो चुके हैं. जिंदा लाश समझती हूं अपने आप को, जिंदा लाश से भी बदतर समझती हूं खुद को. मुझे लगता है कि मुझे जीने का कोई हक नहीं है."
शमा का इलाज कर रहे डॉक्टर उनका दर्द कम करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वो उसकी निराशा को कम नहीं कर सकते.
"पाकिस्तान के ज्यादातर इलाकों में औरतों के लिए मामला दर्ज कराना बहुत मुश्किल है. अगर महिला, पुरुष की बात नहीं मानती तो आप उस पर तेजाब फेंक कर एक सेंकड में उसका सारा जीवन बरबाद कर सकते हैं. और अगर वो आदमी पकड़ा भी जाता है तो पाकिस्तान के ज्यादातर हिस्सों में वो पुलिस को घूस देकर बच सकता है."
मारवी मेमन, पूर्व सांसद
वो कहती हैं, "भविष्य के बारे में कुछ कह नहीं सकती. हो सकता है कि मैं जिंदा ही न रहूं. मैं कोशिश करूंगी कि अपने बच्चों के लिए मैं खुद को पहले जैसा बनाऊं लेकिन कुछ कह नहीं सकती. लेकिन अगर नहीं हो पाया, तो मैं भी वही करूंगी जो एक-दो लड़कियों ने किया, यानी अपना खात्मा कर दिया."
प्लास्टिक सर्जन डा. बिलाल सईद ने तेजाब हमले की शिकार सैकड़ो महिलाओं का इलाज किया है. वो कहते हैं कि इनमें से कई जिंदा नहीं रहना चाहतीं.
डा सईद ने बताया, " हमने देखा है कि ऐसी मरीज ज्यादातर घर की चारदीवारी में ही रहती हैं, वो कहीं आती-जाती नहीं हैं और आखिर में या तो उनकी मौत हो जाती है या फिर वो आत्महत्या कर लेती हैं."
इंसाफ की राह मुश्किल
इस अस्पताल में हर हफ्ते ही एक या दो तेजाब हमलों से पीड़ित महिलाएं भर्ती होती हैं.लेकिन इन हमलों के खिलाफ अभियान चला रहे लोगों का कहना है इनमें से अधिकतर मामले अदालत तक पहुंचते ही नहीं और ज्यादातर पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिलता.
इस कानून को पूर्व सांसद मारवी मेमन ने संसद में पेश किया था. वो कहती हैं कि अब भी ज्यादातर हमलावर साफ साफ बच जाते हैं.
मारवी कहती हैं, "सच्चाई ये है कि पाकिस्तान के ज्यादातर इलाकों में औरतों के लिए मामला दर्ज कराना बहुत मुश्किल है. किसी भी महिला पर तेजाब फेंकना उसे सजा देने का सबसे आसान तरीका है क्योंकि अगर महिला, पुरुष की बात नहीं मानती तो आप उस पर तेजाब फेंक कर एक सेंकड में उसका सारा जीवन बरबाद कर सकते हैं. और अगर वो आदमी पकड़ा भी जाता है तो पाकिस्तान के ज्यादातर हिस्सों में वो पुलिस को घूस देकर बच सकता है."
वापस लौटने की मजबूरी
उधर निश्तर अस्पताल में तेजाब हमले की शिकार एक और महिला दाखिल हुई हैं.इनका नाम मकसूद है. उनकी पूरी त्वचा तेजाब से जली हुई है और उनकी दाईं आंख पूरी तरह बंद है. मकसूद बताती हैं कि तेजाब फेंकने वाला उनका दामाद था.
मकसूद कहती हैं, "वो छत तोड़ कर अंदर आया और उसने मुझ पर तेजाब फेंक दिया. हमारे इलाके में रात को बिजली नहीं होती है. अगर बिजली होती तो हम उसे पकड़ सकते थे. हमारी उससे पैसे को लेकर बहस हुई थी."
लेकिन मकसूद के दामाद को पकड़ लिया गया था और वो अब हिरासत में हैं.
डॉक्टरों का कहना है कि सामाजिक दबाव या आर्थिक कारणों से कई पीड़ित महिलाएं अपने हमलावर, यानी पति या ससुराल वालों के पास वापस लौटने के लिए
उधर शमा चाहती हैं कि उनके पति के चेहरे पर भी तेजाब फेंक कर उन्हें सजा दी जाए लेकिन वो अब भी फरार है.
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