चीनः सांस्कृतिक क्रांति के गड़े मुर्दे उखाड़ने की तैयारी
शनिवार, 30 मार्च, 2013 को 15:59 IST तक के समाचार
चीन का इतिहास सांस्कृतिक क्रांति
की तकलीफ़देह यादों से भरा हुआ है, लेकिन पिछले दो दशकों की आर्थिक तेजी
के शोर में यह मुद्दा अक्सर दबता रहा है.
कई युवाओं के लिए तो यह मुद्दा ज़रा भी भावनात्मक
नहीं है क्योंकि इस पर सार्वजनिक रूप से बातचीत नहीं होती या इसके ज्ञात
स्मारक चिन्हों के बारे में उन्हें पता नहीं है.इस उत्सव के दौरान कई चीनी अपने पूर्वजों की कब्रों को एक हफ़्ते तक साफ़ करते हैं.
चाइना यूथ डेली के साथ ही कई अन्य मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि चॉंगक्विंग के शेपिंग पार्क में स्थित चीनी सांस्कृतिक क्रांति के अवशेष एकमात्र कब्रिस्तान को आगामी 'कब्र की सफ़ाई' के उत्सव के दौरान खोला जाएगा.
लेकिन सदर्न मेट्रोपोलिस डेली के अनुसार पार्क प्रबंधन ने ऐसी ख़बरों को ग़लत बताया है. उसका कहना है कि “कई इलाकों में खतरे की आशंका” के चलते पार्क को आम लोगों के लिए नहीं खोला जाएगा.
क्यों ख़ास है यह कब्रिस्तान?
यह कब्रिस्तान चीन का अकेला कब्रिस्तान है जिसमें कब्र के पत्थरों पर “सांस्कृतिक क्रांति” लिखा गया है. यह ‘रेड गार्ड्स’ और आम लोगों की अंतिम शरण स्थली है. यह सांस्कृतिक क्रांति का ऐसा अकेला स्मारक है जिसे 2009 में सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दी गई.सांस्कृतिक क्रांति की शुरुआती हिंसा में 1966 से 68 के बीच सौ से ज़्यादा ‘रेड गार्ड्स’ और प्रताड़ित स्कूली छात्र और फ़ैक्ट्री मज़दूर मारे गए थे, जिन्हें यहां दफ़न किया गया है. समान्यतः यहां सिर्फ़ मारे गए लोगों के परिजनों को ही आने की अनुमति दी जाती है.
‘रेड गार्ड’ माओत्से तुंग द्वारा संचालित युवाओं का अर्धसैनिक सामाजिक दल था. ‘उत्पात के दशक’ की शुरुआत में 1966-67 के दौरान माओ इस दल का इस्तेमाल अपने दुश्मनों और प्रतिक्रियावादी लगने वालों के उत्पीड़न के लिए करते थे.
सच को सामने आने दो
कितने लोग उस दौरान संघर्ष में या जेलों में मारे गए, आज तक इसकी सही संख्या नहीं पता चल सकी है.चाइना यूथ डेली के टिप्पणीकार वांग झूजिन कहते हैं कि कब्रिस्तान को खोलने से लोगों को सामूहिक हत्याओं और उत्पीड़न के बारे में सच जानने का मौका मिलेगा.
वह कहते हैं, “सच के बिना माफ़ी नहीं मिल सकती, माफ़ी के बिना मिलाप संभव नहीं और मिलाप के बिना कोई भविष्य नहीं है.”
वांग कहते हैं, “सांस्कृतिक क्रांति की विरासत पर बात करते हुए हमें दक्षिण अफ्रीका के सच-माफ़ी-मेल के रास्ते पर बढ़ना चाहिए.”
साठ के दशक के उत्तरार्द्ध में माओ के पूंजीपतियों को हटाने के आह्वान पर सभी वर्गों के युवा आगे आए लेकिन इसके परिणामों को शायद ही कोई याद करना चाहता है.
स्वीकार करना ज़रूरी
रिटायर शिक्षक और शौकिया इतिहासकार ज़ेंग ज़ॉंग ने पिछले पांच साल इस कब्रिस्तान के अध्ययन में लगाए हैं.वह कहते हैं, “लोग उस समय के बारे में बात करना लंबे समय से टालते रहे हैं. कब्रिस्तान को सांस्कृतिक पहचान देना अपने दुखद अतीत की ओर देखने की दिशा में एक छोटा कदम है.”
जॉंग कहते हैं कि सांस्कृतिक क्रांति भले की एक पुरानी याद हो, लेकिन उसके ज़ख्मों को भरा जाना ज़रूरी है. वह कहते हैं कि इन्हीं ज़ख्मों की वजह से वह शेपिंग पार्क पर जाने से 40 साल तक बचते रहे.
चॉंगक्विंग में रहने वाले 62 वर्षीय ही शू सांस्कृतिक क्रांति पर शोध कर रहे हैं. वह कहते हैं,"कब्रिस्तान को धरोहर के रूप में पहचान मिलना न सिर्फ़ उन लोगों को राहत देता है जो उस दौर से बच गए हैं बल्कि यह आगे इस तरह की हिंसा को रोकने में मददगार भी साबित हो सकता है."
वो कहते हैं, “कुछ लोगों को डर लगता है कि अतीत से शांति को ख़तरा हो सकता है. लेकिन हरीकत यह है कि अतीत का सामना करना और पीड़ितों को सांत्वना देना ही सामाजिक स्थायित्व की दिशा में सही कदम है.”
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