सोमवार, 11 मार्च 2013

भारत को देह की राजधानी न बनाएं

Illustration by Iqbal Sachdevaसमृद्ध समाज के लिए आदर्श सिद्धांत एवं तर्कसंगत विधि विधान की आवश्यकता होती है. हर तरह से परिपूर्ण समाज ही विकसित राष्ट्र की कल्पना का बोध कराता है. भारत सभ्यता की विकास स्थली रहा है. सिन्धु घाटी की सभ्यता ने सम्पूर्ण विश्व पर अपनी छाप छोड़ी. परन्तु, आज सभ्यता एवं संस्कृति की जन्भूमि भारत स्वयं आदर्श समाज एवं बेहतर विधि व्यवस्था के लिए लालायित दिख रहा है.
देश की राजधानी दिल्ली में खुलेआम चलती बस में सामूहिक बलात्कार की घटना ने सम्पूर्ण राष्ट्र को चिंतित कर दिया है. यह अत्यधिक गंभीर, निंदनीय एवं भयावह स्थिति लगती है – जब चप्पे चप्पे पर फैले सुरक्षा तंत्र से लैस दिल्ली की यह दशा है तो बाकी देश में आलम क्या होगा ! यह एक बड़ा सवाल है. लचर कहाँ है, इसे ढूंढ निकालने की आवश्यकता है.
महिलाओं की स्थिति बता रही है – ‘हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम’. वहीँ दूसरी तरफ मर्दों की स्थिति बयां करती है – ‘वह क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती’.
जो भी हो निष्ठापूर्वक समीक्षा तो बनती है. यह अलग बात है कि सच कड़वा होता है – सदियों से पुरुष-प्रधान भारत में पुरुष मानव-तन में तो दिखते जरूर हैं लेकिन मानवीय आचरण एवं व्यवहार उनमें दिखाई नहीं देता.
सेक्स के मामले में जानवरों का भी निर्धारित समय एवं अपना तौर तरीका है. परन्तु यहाँ मर्दों का कोई माप दंड नहीं है. अजीब विडंबना है.
भारतीय क़ानून बलात्कारियों को मृत्यु दंड नहीं देता. हाँ कभी-कभी जुर्म कितना संगीन है यह देखते हुए आजीवन कारावास का प्रावधान हो जाता है. एक तरह से देखा जाए तो मुजरिमों को सजा दी ही नहीं जाती. सजा तो सुधार के दृष्टिकोण से दिया जाता है – जैसे मुजरिमों के आश्रितों की संख्या को देखते हुए उनकी सजा माफ़ भी कर दी जाती है.
भारतीय पुरुषों को दानव बनाने में शराब का भी महत्वपूर्ण योगदान है. एक शराबी जब शराब पी लेता है तो वह आदमी तो आदमी जानवर भी नहीं रह जाता.
राज्य सरकारों ने शराब को राजस्व का बड़ा स्रोत बना रखा है. बिना शराब अब कोई पार्टी नहीं होती. भारतीय समाज में मर्द औरतों को बच्चा पैदा करने की मशीन और दिल बहलाने का साधन समझते हैं. यह मानसिकता आम है. इसलिए एक महिला जब निकलती है तो बच्चे से बुढे तक सभी आँखें फाड़-फाड़ कर देखते हैं.
जब महिलाएं राष्ट्र निर्माण हेतु रोज़गार की तलाश में निकलती हैं तो इन्हें फिल्मिस्तान में कास्टिंग काऊचों से गुजरना पड़ता है. निजी कंपनियों के मालिक एवं अधिकारियों के हवस का शिकार बनना पड़ता है.
धार्मिक कानूनों को भारतीय मर्द इस बाबत सरे से नकार देते हैं. हाँ वोट, जायदाद, शादी-ब्याह में वह धार्मिक हो जाते हैं. मगर औरतों के मामले में वह अधर्मी ही बने रहते हैं. धर्म के ठेकेदार भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते.
बलात्कार से पीड़ित महिला जब थाने में प्राथमिकी दर्ज करने जाती है तो पुलिसिया बदसलूकी, न्यायालय में वकीलों की अमर्यादित जिरह और जिस समाज की पीडिता है उस समाज का मिजाज एवं भद्दा मखौल महिला को आत्महत्या तक के लिए विवश कर देता है.
महिला घूँघट वाली हो, नकाब वाली हो या अर्धनग्न वह तो मजबूर है. किसी भी लिबास में उसका बलात्कार होना है और बलात्कार के बाद सभी यातनाएं झेल झेल आत्महत्या तक का निर्णय लेना है.
Protest at Raisina Hill. Photo by Vishnu Vijay.अगर यूँ कहा जाय कि उन्हें पूर्णतः मानवाधिकार मिला ही नहीं है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. आज पूरे विश्व में बोलने, सोचने, रहने सहने, शादी ब्याह एवं अन्य मामलों की आजादी पर बहस चल रही है. मान लिया जाए कि औरतें अर्धनग्न सड़कों पर आ जाती हैं तो इसका यह मतलब तो नहीं कि उनके साथ बलात्कार हो.
अगर ऐसा होता है और मुजरिमों के विरूद्ध क़ानून, धर्म और समाज सभी घुटने टेक देते हैं तो इसको क्या कहेंगे ? भारतीय संस्कृति एवं विभिन्न धर्मों में मर्दों के नंगे रहने पर भी प्रतिबन्ध है. उनकी शारीरिक बनावट से भी स्त्रियों में और मर्दों में नंगेपन के कारण सेक्स अपील होता है. अब सवाल उठता है कि क्या भारतीय मर्द अपने शारीर का नग्न प्रदर्शन सड़कों पर नहीं करते ! उत्तर होगा करते हैं. तो उनके नंगा सड़क पर निकलने से उनके साथ बलात्कार (समलैंगिक सेक्स) होता है क्या ?
यदि ऐसा नहीं होता तो अर्धनग्न महिलाओं का सड़क पर आना बलात्कार का कारण नहीं है. भारतीय मर्दों में मानवीय संवेदना का अभाव बलात्कार का बड़ा कारण है.
बलात्कार जैसी ज्वलंत समस्या पर आसाराम बापू या मोहन भागवत को या किसी भी बुद्धिजीवी, दार्शनिक या महापुरुष को टिप्पणी करने अथवा विचार रखने से पूर्व भारतीय महिलाओं की  दशा का अध्ययन एक विद्यार्थी के जैसे करके ही देना चाहिए. ऐसे महापुरुषों की वाणी देश को दिशा दे सकती है. यदि यह जल्दबाजी में टिप्पणी दे गए तो इस देश की सारी मर्यादाएं खंडित हो जायेंगी. न तो धर्म बचेगा और ना ही हम विकसित राष्ट्र के श्रेणी में खड़ा हो पायेंगे.
जनता दल (यु) के राष्ट्रीय महासचिव आफाक खान कहते हैं कि भारतीय मूल्यों को बरक़रार रखने के लिए महिलाओं को उनका पूरा अधिकार तो मिलना ही चाहिए साथ ही किसी को यह हक भी नहीं मिलना चाहिए कि वह पराई महिलाओं पर हवस की नजर डाले. ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त क़ानून बनना चाहिए.
सन्डे इंडियन के बिहार ब्यूरो चीफ संजय उपाध्याय के अनुसार बलात्कारियों के लिए क्रूरतम सजा का प्रावधान होना चाहिए. नपुंसक बनाने का कानून तो बने ही, जिसने बलात्कार के बाद हत्या की हो उसे अविलम्ब फांसी देने की भी व्यवस्था होनी चाहिए.
आम लोगों में चर्चा हो रही है – पहले तो दलितों एवं दबे कुचले समुदाय की महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को मीडिया, सरकार, जन प्रतिनिधि और समाज अनसुनी कर देते थे. मानो कि ऐसी घृणित घटनाओं ने कभी भी उनकी संवेदना को नहीं छेड़ा. अब हर जगह बेचैनी देखी जा रही है. ऐसा क्यूँ ! सभ्यता एवं संस्कृति का गुलदस्ता भारत को किसकी नज़र लग गयी है ? इसका पता करके बीमार भारत का समुचित उपचार करना समय की पुकार है.
लोग यह भी कह रहे हैं कि खुद भारतीय सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस बलात्कार करती रही है. महिलाओं के साथ अत्याचार आम हो गया है. देश के किसी भी कोने में इनकी इज्ज़त सुरक्षित नहीं है. अब माँ को माँ, बहन को बहन, और बेटी को बेटी कहने में भी शर्म महसूस हो रही है. क्या जिससे भारत का सर शर्म से नहीं झुक रहा ?
भारत में महिलाओं पर ही अधिक अन्याय अत्याचार क्यूँ ? इसको भी समझने की आवश्कयता है. सच पूछा जाए तो हम महिलाओं का आदर तो जरूर करते हैं, परन्तु इन्हें इनका मौलिक अधिकार नहीं देते. जब ये अधिकार से वंचित रहेंगी तो इनकी कोई भी कमजोरी इनके लिए घातक सिद्ध हो सकती है.
अब तो यहाँ तक बयानबाजी हो रही है कि पहले भारतीय समाज में पर्दा (घूंघट) औरतों का आभूषण था. सनातनी आदर्शों के अनुसार इनकी पूजा हुआ करती थी. मगर अचानक भारतीय महिलाओं पर ज़ुल्म का पहाड़ क्यूँ टूटा ? क्या उन्होंने अपना पुराना तौर तरीका छोड़ दिया ?
लोग विदेशी सभ्यता-संस्कृति-शिक्षा को भी दोषी बता रहे हैं. परन्तु अपने अन्दर झाँक कर अभी भी नहीं देख रहे. भारतीय मर्दों को वहशी जानवरों का सलूक करने का लाइसेंस है क्या ? परिस्थितियां ऐसी दिख रही हैं जैसे हमारे पूरे सोसल इंजीनियरिंग पर ही प्रश्नवाचक चिन्ह लग गया हो.
चर्चा यह भी हो रही है कि इस्लाम के आदर्श संहिता से पूरा विश्व लाभान्वित हुआ, तो क्या बलात्कार से सम्बंधित इस्लामी कानूनों को भारत में लागू किया जाएगा ! चौथी दुनिया के पत्रकार इम्त्याजुल हक कहते हैं कि बलात्कार से सम्बंधित इस्लाम का कानून तो अवश्य ही भारतीय संविधान में संसोधन कर लाना चाहिए.
स्वतंत्र भारत में समानता लाने का प्रयास अब हर किसी को करना होगा. औरतों की स्थिति पर गंभीरता से कदम उठाने होंगे. बेहतर समाज बनाना होगा. व्यक्तिगत स्वार्थ, जातिगत स्वार्थ एवं धार्मिक स्वार्थ से उठकर इस दिशा में कड़े कानून एवं मापदंड तय करने होंगे.
पूरा देश सामूहिक बलात्कार पर बौखला गया है. कानून बनाने वाले भी हरकत में आयेंगे क्या !
दिल्ली सामूहिक बलात्कार कांड पर देश-विदेश में ग़म व गुस्सा बदस्तूर जारी है. इतना होने के बावजूद आये दिन बलात्कार, सामूहिक बलात्कार एवं छेड़ छाड़ की घटनाएं सुनायी दे रही हैं. कुकर्म में लिप्त असमाजिक तत्व अपनी घृणित आदतों से बाज नहीं आ रहे. आखिर देश में ऐसे अंधकार की घटा कब छंटेगी ?
अब तो कोई नबी, पैगम्बर अथवा ऋषि मुनि नहीं आने वाले. यह काम भारत वंशियों को खुद ही करना पड़ेगा. बुजुर्ग यह भी कह रहे हैं कि अब विद्यालयों में तथा घरों में भारत के आदर्श मूल्यों, सभ्यता एवं संस्कृति की शिक्षा अनिवार्य रूप से देनी ही होगी. हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई- जैन सभी अपने शिक्षण संस्थानों में भी अनिवार्य रूप से सामाजिक शिक्षा को अनिवार्य करें तथा भारत के एक एक नागरिक को भारत के अभूतपूर्व गौरव से परिचित कराएं.
राष्ट्रीय सहारा के पत्रकार संजय ठाकुर कहते हैं कि देश में ठोस क़ानून बनाने का समय अब आ गया है. बलात्कार के दंश से भारत को अब निकालना ही होगा.
हवाला यह भी दिया जा रहा है कि बलात्कार से कुपित तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कहा था कि बलात्कारियों को फांसी देना चाहिए. भारतीय जनता पार्टी की सुषमा स्वराज ने भी लोक सभा यही मांग की है. ऐसा लग रहा है कि बलात्कार की सजा मौत आज पूरा हिंदुस्तान चाहता है.

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