सोमवार, 19 अगस्त 2013

‘मैं हिंदू हूं और राष्ट्रवादी हूं’

‘मैं हिंदू हूं और राष्ट्रवादी हूं’


Narendra-Modi
पिछले दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने राॅयटर्स को एक साक्षात्कार दिया। इसमें कही गई बातों की हर तरफ बड़ी चर्चा हुई। कुछ बातों को लेकर विवाद भी हुआ। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनने के बाद नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया यह पहला साक्षात्कार 2014 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से भाजपा का एजेंडा तय करने वाला है। यह एजेंडा राष्ट्रीयता और विकास का है। यह एजेंडा नरेंद्र मोदी का है। हम उस साक्षात्कार को प्रवक्ता के पाठकों के लिए समाचार एजेंसी राॅयटर्स से साभार यथावत पहुंचा रहे हैंः
क्या यह आपको बुरा लगता है कि अब भी लोग आपको 2002 से जोड़कर ही देखते हैं?
लोगों को आलोचना करने का अधिकार है। हम एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं। यहां हर किसी का अपना एक विचार है। मुझे बुरा तब लगता जब मैंने कुछ गलत किया होता। बुरा लगने या गुस्सा आने की बात तो तब होती है न जब आपके अंदर यह भाव आ जाए कि आप चोरी कर रहे थे और पकड़े गए। ऐसा मेरे मामले में नहीं है।
जो हुआ, क्या आपको उसके लिए अफसोस है?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय को दुनिया के प्रतिष्ठित न्यायालयों में गिना जाता है। सर्वोच्च अदालत ने विशेष जांच दल यानी एसआईटी का गठन किया था। इसमें चोटी के और बेहद सक्षम अधिकारियों को रखा गया था। इसके बाद इसकी रिपोर्ट आई। इस रिपोर्ट में मुझे क्लीन चिट दे दी गई। एक और बात। अगर आप गाड़ी चला रहे हों या फिर कोई और चला रहा हो और आप पीछे वाली सीट पर बैठे हों, तब भी अगर कोई कुत्ते का पिल्ला आपकी गाड़ी के नीचे आ जाए तो आपको दुख होगा या नहीं? दुख तो होगा। मैं मुख्यमंत्री बाद में हूं, पहले तो एक इंसान हूं। अगर कहीं भी कुछ बुरा होता है तो इससे दुखी होना स्वाभाविक है।
क्या आपकी सरकार को उस वक्त अलग ढंग से काम करना चाहिए था?
अब तक हमारी राय यही है कि हमने स्थितियों को ठीक करने के लिए अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल किया था।
लेकिन क्या आपको यह लगता है कि आपने 2002 में जो किया था, वह सही था?
बिल्कुल। जितनी बुद्धि मुझे ईश्वर ने दी है, जितना अनुभव मेरे पास था और जो भी मेरे पास उपलब्ध था, उसका मैंने उसका सही इस्तेमाल किया। यही बात एसआईटी ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में कही है।
क्या आपको लगता है कि भारत का नेता धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए?
हां, मैं बिल्कुल ऐसा मानता हूं। लेकिन धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा क्या है? मेरे लिए मेरी धर्मनिरपेक्षता है इंडिया फस्र्ट। मैं कहता हूं कि हमारी पार्टी इस सिद्धांत पर काम करती है कि सबके लिए न्याय और किसी का भी तुष्टिकरण नहीं। यही हमारी धर्मनिरपेक्षता है।
आलोचक आपको तानाशाह कहते हैं। समर्थक आपको निर्णय लेने वाला नेता मानते हैं। आखिरी असली मोदी कौन है?
अगर आप एक नेता हैं तो आपको निर्णय तो लेने पड़ेंगे। अगर आपमें यह क्षमता है तब ही आप नेता बन सकते हैं। ये दोनों एक ही सिक्के के अलग-अलग पहलू हैं। लोग चाहते हैं कि निर्णय लिए जाएं। इसके बाद ही वे किसी को नेता के तौर पर स्वीकार करते हैं। इसलिए यह कोई नकारात्मक चीज नहीं है बल्कि यह तो एक योग्यता है। दूसरी बात यह है कि अगर कोई तानाशाह हो तो फिर वह इतने सालों तक सरकार कैसे चला सकता है? टीम भावना के बगैर आप सफलता की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? इसलिए मैं कहता हूं कि गुजरात की सफलता मोदी की सफलता नहीं है। यह सफलता टीम गुजरात की है।
इस बात पर आप क्या कहेंगे कि आप आलोचकों की बातों को भाव नहीं देते?
मैं हमेशा कहते हैं कि आलोचना में लोकतंत्र की ताकत निहित है। अगर कहीं आलोचना नहीं हो तो जान लीजिए कि वहां लोकतंत्र नहीं है। अगर आप खुद को विकसित करना चाहते हैं तो आपको आलोचनाओं का स्वागत करना चाहिए। मैं खुद को और बेहतर बनाना चाहता हूं। लेकिन मैं आरोपों के खिलाफ हूं। आलोचना और आरोप में काफी फर्क है। आलोचना के लिए आपको रिसर्च करना पड़ेगा, आपको तुलनात्मक अध्ययन करना पड़ेगा। आपको आंकड़े जुटाने पड़ेंगे और आपके पास तथ्यात्मक जानकारी होनी चाहिए। तब जाकर आप आलोचना कर पाएंगे। आज कोई भी इतना मेहनत करने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए सबसे आसान तरीका है आरोप लगाना। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में आरोप कभी भी स्थितियों को सुधार नहीं सकते। इसलिए मैं आरोपों के खिलाफ हूं लेकिन आलोचनाओं का मैं स्वागत करता हूं।
जनमत सर्वेक्षण में आप सबसे लोकप्रिय नेता के तौर पर उभर रहे हैं। इस पर आप क्या कहेंगे?
2003 के बाद बहुत सारे सर्वेक्षण हुए हैं और लोगों ने मुझे सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री चुना है। इसके लिए सिर्फ गुजरात के लोगों ने वोट नहीं किया बल्कि गुजरात के बाहर के लोगों ने भी मुझे पसंद किया। एक बार मैंने इंडिया टुडे समूह के अरुण पुरी को एक पत्र लिखा। मैंने उनसे अनुरोध किया, ‘हर बार मैं ही विजेता बन रहा हूं। इसलिए अगर बार आप गुजरात का नाम अपने सर्वे से निकाल दें। ताकि दूसरों को भी अवसर मिल सके। अगर ऐसा करने के लिए मैं नहीं कहता तो हर बार पहले नंबर पर मैं ही रहता। इसलिए मुझे इस प्रतिस्पर्धा से बाहर रखिए और दूसरों को भी आगे आने का मौका दीजिए।’
आपकी पार्टी के सहयोगी और खुद आपकी पार्टी के लोग कहते हैं कि आपके आने से ध्रुवीकरण होगा। क्या कहेंगे आप?
अगर अमेरिका में डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन के बीच ध्रुवीकरण नहीं होता तो फिर वहां का लोकतंत्र कैसे चलेगा? यह तो होगा ही। यह लोकतंत्र का मूल स्वभाव है। यह लोकतंत्र के बुनियादी गुणों में से एक है। अगर हर आदमी एक ही तरफ जाने लगे तो क्या उसे आप लोकतंत्र कहेंगे?
इस पर आप क्या कहेंगे कि आपके सहयोगी दल अब भी आपको विवादास्पद मानते हैं?
अब तक मैंने न तो अपनी पार्टी के किसी नेता का और न ही अपने सहयोगी दलों में से किसी का इस बारे में औपचारिक बयान देखा है। संभव है कि इस बारे में मीडिया में लिखा जाता हो। मीडिया लोकतंत्र का हिस्सा है। अगर आपके पास कोई नाम हो कि फलां आदमी ने ऐसा कहा है तो फिर मैं इस सवाल का जवाब दे सकता हूं।
आप मुसलमानों को इस बात के लिए कैसे मनाएंगे कि वे आपको वोट दें?
सबसे पहले तो मैं हिंदुस्तान के नागरिकों, मतदाताओं, हिंदुओं और मुसलमानों को यह साफ कर देना चाहता हूं कि मैं बांटने के पक्ष में नहीं हूं। मैं हिंदुओं और सिखों को बांटने के पक्ष में नहीं हूं। और न ही मेरी मंशा हिंदुओं और ईसाइयों को बांटने की है। हर नागरिक और हर मतदाता मेरे लिए हमवतन है। मेरा सिद्धांत यह है कि मैं इस मामले को ऐसे नहीं देखता। बांटने वाली राजनीति लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। धर्म राजनीतिक प्रक्रिया का एक औजार नहीं होना चाहिए।
अगर आप प्रधानमंत्री बनते हैं तो आप किस नेता के रास्ते पर चलना चाहेंगे?
मेरे जीवन का सिद्धांत यह है कि मैं कभी भी कुछ बनने का सपना नहीं देखता। मैं यह सपना देखता हूं कि मुझे क्या करना है। इसलिए अपने आदर्शों से प्रेरित होने के लिए मुझे कुछ बनने की जरूरत नहीं है। अगर मैं अटल बिहारी वाजपेयी से कुछ सिखना चाहता हूं तो मैं उसे गुजरात में लागू कर सकता हूं। इसके लिए मुझे दिल्ली का सपना देखने की जरूरत नहीं है। अगर मुझे सरदार पटेल की कोई चीज अच्छी लगती है तो मैं उसे गुजरात में लागू कर सकता हूं। अगर मुझे गांधाजी की कोई बात अच्छी लगती है तो मैं उसे लागू कर सकता हूं। प्रधानमंत्री की कुर्सी की चर्चा किए बगैर भी हम इन लोगों से अच्छी बातें ग्रहण कर सकते हैं।
आपके हिसाब से अगली सरकार को क्या लक्ष्य हासिल करना चाहिए?
जो भी नई सरकार सत्ता में आएगी तो उसे सबसे पहले लोगों में विश्वास बहाल करना होगा। सरकार कोई नीति लागू करना चाहती है। उसे उस नीति पर आगे बढ़ना चाहिए या नहीं? अगर दो महीने बाद कोई दबाव आता है तो क्या उसे बदल देना चाहिए? क्या वे ऐसा कर सकते हैं कि कोई चीज अभी हो और वे किसी फैसले को 2000 से बदलने लगें? अगर आप कोई बदलाव बहुत पहले जाकर करेंगे तो ऐसी नीतियां नुकसानदेह होंगी। ऐसे में पूरी दुनिया से कौन यहां आएगा? ऐसे में जो भी सरकार सत्ता में आती है उसे लोगों में विश्वास जगाना होगा। उसे लोगों का भरोसा जीतना होगा। हां, नीतियों में स्थायित्व होना चाहिए। अगर वह सरकार लोगों से कोई वादा करती है तो उसे इसका सम्मान करना चाहिए और इसे पूरा करना चाहिए। इसके बाद ही आप खुद को विश्व पटल पर रख सकते हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि गुजरात के आर्थिक विकास को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। इस पर आप क्या कहेंगे?
लोकतंत्र में अंतिम न्यायाधीश कौन होता है? अंतिम न्याय तो मतदाता ही करते हैं। अगर इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता तो यह लोगों को दिखने लगता। अगर मोदी ने कहा है कि वह लोगों तक पानी पहुंचाएगा और अगर वह ऐसा नहीं करे तो लोग कहने लगेंगे कि मोदी ने झूठ बोला और उन तक पानी नहीं पहुंचा। ऐसे में वह मोदी को कैसे पसंद करेगा? लेकिन अगर भारत जैसे समृद्ध लोकतांत्रिक व्यवस्था में मोदी को लगातार तीसरी बार चुना जा रहा है और वह भी तकरीबन दो-तिहाई बहुमत से तो इसका मतलब यह है कि विकास के बारे में जो कहा जा रहा है, वह सही है। सड़कें बनाई गई हैं। बच्चों को शिक्षा मिल रही है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में नए प्रयोग हो रहे हैं। आपातकालीन सेवाओं के लिए 108 नंबर की सेवा उपलब्ध कराई गई है। यह सब लोगों को दिख रहा है। ऐसे में कोई चाहे कितना भी कुछ कहे लेकिन लोग उस पर यकीन नहीं करेंगे। जनता उन्हें खारिज कर देगी। ये जान लीजिए कि जनता बेहद ताकतवर है।
क्या आप और अधिक समावेशी विकास के लिए काम करेंगे?
गुजरात एक ऐसा राज्य है जिससे लोगों को काफी उम्मीदें हैं। हम अच्छा काम कर रहे हैं इसलिए उम्मीदें अधिक हैं। ऐसा होना भी चाहिए। इसमें कोई बुराई नहीं है।
कुपोषण और शिशु मृत्यु दर जैसे संकेतकों पर राज्य के प्रदर्शन के बारे में आप क्या कहेंगे?
शिशु मृत्यु दर के मामले में गुजरात की स्थिति काफी सुधरी है। हिंदुस्तान के दूसरे राज्यों की तुलना में हमारा प्रदर्शन अच्छा है। कुपोषण के मामले में हिंदुस्तान में वास्तविक आंकड़े यानी अभी के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। अगर ऐसे आंकड़े ही नहीं हैं तो फिर आप विश्लेषण कैसे करेंगे? हम समावेशी विकास में यकीन करते हैं। हम यह मानते हैं कि विकास का लाभ अंतिम आदमी तक पहुंचना चाहिए। हम ऐसा ही काम कर रहे हैं।
लोग यह जानना चाहते हैं कि असली मोदी कौन है। हिंदू राष्ट्रवादी या फिर काॅरपोरेट घरानों का पसंदीदा मुख्यमंत्री?
मैं राष्ट्रवादी हूं। मैं देशभक्त हूं। इसमें कोई बुराई नहीं है। मैं जन्म से हिंदू हूं। इसमें कोई बुराई नहीं है। इस लिहाज से आप यह कह सकते हैं कि मैं हिंदू राष्ट्रवादी हूं। क्योंकि मैं जन्म से हिंदू हूं। मैं देशभक्त हूं और इसमें कोई बुराई नहीं है। जहां तक प्रगतिशील, विकास को तरजीह देने वाला और लगकर काम करने वाले नेता के तौर पर पहचान की बात है तो जो वे कह रहे हैं, वैसा है। इसलिए इन दोनों में कोई अंतर्विरोध नहीं है। ये दोनों एक ही पहचान के हिस्से हैं।
ब्रांड मोदी और आपके जनसंपर्क यानी पीआर रणनीति के पीछे जो लोग हैं, उनके बारे में आप क्या कहेंगे?
पश्चिमी दुनिया और भारत में काफी अंतर है। भारत एक ऐसा देश है जहां पीआर एजेंसियां चाहकर भी किसी को कुछ नहीं बना सकतीं। मीडिया भी किसी को कुछ नहीं बना सकती। अगर कोई किसी की गलत तस्वीर लोगों के सामने रखना चाहता है तो मेरे देश के लोग इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हैं। यहां लोगों की सोच अलग है। यहां लोग हिपोक्रेसी को बहुत समय तक बर्दाश्त नहीं करते। अगर आप जैसे हैं, वैसे ही लोगों के बीच खुद को पेश करते हैं तो लोग आपकी बुराइयों को भी स्वीकार करेंगे। लोगों की कमजोरियों को स्वीकार किया जाता है। लोग यह कहेंगे कि जाने दो यह सच्चा आदमी है और काफी मेहनत करता है। मेरा देश अलग ढंग से सोचता है। जहां तक पीआर एजेंसी का सवाल है तो मैंने कभी भी किसी ऐसी एजेंसी की सेवा नहीं ली और यहां तक मैंने कभी भी किसी पीआर एजेंसी के लोगों से मुलाकात की है। मोदी के पास कोई पीआर एजेंसी नहीं है। मैंने कभी कोई ऐसी एजेंसी नहीं रखी।

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