खास बात
** डाक्टर रिताम्बरा हेब्बार(२००७): ह्यूमन सिक्यूरिटी एंड द केस ऑव फार्मस् स्यूसाइड इन इंडिया-ऐन एक्सपोलोरेशन http://humansecurityconf.polsci.chula.ac.th/Documents/Pres
entations/Ritambhara.pdf
*** सीपी चंद्रशेखर, जयति घोष (2005):द बर्डेन ऑव फार्मर्स डेट, माइक्रोस्केन
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित एक्सीडेंटल डेथ एंड स्यूसाइड इन इंडिया-2012 नामक दस्तावेज के अनुसार- http://ncrb.gov.in/
मूल दस्तावेज के लिए कृपया यहां क्लिक करें
• साल 2012 में एक लाख से ज्यादा(1,35,445) लोगों ने आत्महत्या के चलते जान गंवायी।
• साल 2002-2012 के दशक में भारत में आत्महत्या की तादाद में 22.7 फीसदी की बढोत्तरी हुई। साल 2002 में आत्महत्या करने वालों की संख्या 1,10,417 थी जो साल 2012 में बढ़कर 1,35,445 हो गई। इस अवधि में देश की आबादी में बढ़ोत्तरी 15 फीसदी की हुई है।
• आत्महत्या करने वाले लोगों में स्वरोजगार में लगे लोगों की तादाद सबसे ज्यादा यानि 38.7% थी और इस तादाद में 11.4% लोग खेती-बाड़ी या इससे संबद्ध काम में लगे थे। स्वरोजगार में लगे जितने लोगों ने साल 2012 में आत्महत्या की उसमें 4.7% किसी ना किसी तरह का व्यवसाय करते थे जबकि 2.9 फीसदी लोग हाथ के हुनर से जीविका चलाने वाले लोगों में थे।
• आर्थिक हैसियत में अचानक बदलाव 2 फीसदी मामलों में आत्महत्या की वजह रहा जबकि गरीबी आत्महत्या के 1.9 फीसदी मामलों में मुख्य कारण रही।
• मिजोरम में जितने लोगों ने साल 2012 में आत्महत्या की उसमें 38.2% लोग बेरोजगार थे। साल 2012 में दिल्ली में आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में बेरोजगारों की संख्या 19.4% थी।
• आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में सरकारी नौकरी करने वाले लोगों की संख्या 1.4% थी जबकि निजी क्षेत्र में नौकरी करने वाले लोगों की कुल संख्या 9.4%। आत्महत्या करने वाले लोगों में सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरी करने वाले लोगों की संख्या 1.8 फीसदी थी।
• आत्महत्या करने वाले लोगों में छात्रों का प्रतिशत 5.5% था जबकि बेरोजगार लोगों का संख्या 7.4% थी।
• साल 2012 में जितने लोगों ने आत्महत्या की उसमें ज्यादातर(23.0%) प्राथमिक स्तर तक शिक्षा प्राप्त थे। आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में निरक्षर लोगों की संख्या 19.7 फीसदी थी जबकि आत्महत्या के 23 फीसदी मामलों में इस नियति के शिकार व्यक्ति माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त थे।
• आत्महत्या करने वाले लोगों में मात्र 3.4% स्नात्क स्तर की शिक्षा प्राप्त थे जबकि स्नात्तकोत्तर स्तर की शिक्षा प्राप्त ऐसे व्यक्तियों की संख्या आत्महत्या करने वाले कुल लोगों की कुल तादाद में 0.6 फीसदी थी।
• आंध्रप्रदेश में 34.7%, पंजाब में 33.8% और राजस्थान में 32.0% फीसदी मामलों में पाया गया कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति निरक्षर है। गुजरात में 36.2% मामलों में, पश्चिम बंगाल में 34.5% मामलों में और मेघालय में 33.6% मामलों में पाया गया कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति अपर-प्राइमरी स्तर तक शिक्षा प्राप्त है।
• साल 2012 में सर्वाधिक(12.5% ) आत्महत्याएं तमिलनाडु(16,927) में हुईं। आत्महत्याओं की तादाद के मामले में महाराष्ट्र दूसरे नंबर ( आत्महत्याओं की कुल संख्या-16,112) पर रहा। पश्चिम बंगाल में आत्महत्याओं की तादाद 14,957, आंध्रप्रदेश में 14,238 और कर्नाटक में 12,753 रही जो देशस्तर पर आत्महत्याओं की कुल तादाद का क्रमश 11.9%, 11.0%, 10.5% और 9.4% है।
• आत्महत्या करने वालों में 25.6 फीसदी ने ‘पारिवारिक समस्याओं की वजह से ऐसा कदम उठाया जबकि 20.8 फीसदी मामलों में आत्महत्या की वजह बीमारी रही।
• आत्महत्या करने वालों की कुल संख्या में गृहणियों की तादाद 21,904 थी जो आत्महत्या करने वाली महिलाओं की कुल संख्या का 53.8% फीसदी है और आत्महत्या करने वाले कुल लोगों की संख्या का 18.2% फीसदी।
• साल 2012 में सर्वाधिक(12.5% ) आत्महत्याएं तमिलनाडु(16,927) में हुईं। आत्महत्याओं की तादाद के मामले में महाराष्ट्र दूसरे नंबर (आत्महत्याओं की कुल संख्या-16,112) पर रहा। पश्चिम बंगाल में आत्महत्याओं की तादाद 14,957, आंध्रप्रदेश में 14,238 और कर्नाटक में 12,753 रही जो देशस्तर पर आत्महत्याओं की कुल तादाद का क्रमश 11.9%, 11.0%, 10.5% और 9.4% है।
• आत्महत्या करने वालों में 25.6 फीसदी ने ‘पारिवारिक समस्याओं की वजह से ऐसा कदम उठाया जबकि 20.8 फीसदी मामलों में आत्महत्या की वजह बीमारी रही।
• आर्थिक हैसियत में अचानक बदलाव 2 फीसदी मामलों में आत्महत्या की वजह रहा जबकि गरीबी आत्महत्या के 1.9 फीसदी मामलों में मुख्य कारण रही।
र्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित एक्सीडेंटल डेथ्स् एंड स्यूसाईड-2011 नामक दस्तावेज के अनुसार, http://ncrb.nic.in/:
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो द्वारा प्रस्तुत एक्सीडेंटल डेथ एंड स्यूसाइड (2010) नामक दस्तावेज के अनुसार-http://ncrb.nic.in/
• साल २००९ में
आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में केवल 3.1% फीसदी
स्नातक-परास्नातक थे। सिक्किम में आत्महत्या करने वाले लोगों में 51.9% फीसदी निरक्षर थे
जबकि गुजरात में आत्महत्या करने वालों में. 36.5% फीसदी तादाद
प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त लोगों की थी। मिजोरम में आत्महत्या के शिकार
लोगों में 68.1% फीसदी और पुद्दुचेरी में आत्महत्या के शिकार लोगों में 59.1% तादाद
माध्यमिक स्तर तक की शिक्षाप्राप्त लोगों की थी।
मीता और राजीव लोचन द्वारा प्रस्तुत- फार्मस् स्यूसाइड- फैक्ट एंड पॉसिबल प़लिसी इन्टरवेंशनस्(२००६) किसानों की आत्महत्या पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसमें कतिपय पूर्ववर्ती अध्ययनों मसलन(मिश्र और दांडेकर तथा अन्य) का जायजा लिया गया है और उनकी खामियों की रोशनी में कहीं ज्यादा समग्र अध्ययन प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है। इस अध्ययन के अनुसार-,
http://www.yashada.org/organisation/FarmersSuicideExcerpts.pdf
• आत्महत्याओं का प्रमुख केंद्र महाराष्ट्र का यवतमाल जिला रहा है। सूबे के क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2000, 2001, 2002, 2003 और 2004 यहां क्रमश 640, 819, 832, 787 और 786 किसानों ने आत्महत्या की।
• आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर पुरुष और ३०-५० आयुवर्ग के लोग थे। ये शादीशुदा और शिक्षित किसान थे। इनके ऊपर बेटी या बहन का ब्याह करने जैसी गहन सामाजिक जिम्मेदारी भी थी।आत्महत्या करने वाले ज्यादातर किसानों में दो बातें समान थीं। एक तो यह कि इन किसानों ने समय के किसी बिन्दु पर अपने को पारिपारिक द्वन्दों को सुलझाने में तथा धन के अभाव में कर्ज चुकता करने में अत्यंत असहाय महसूस किया, दूसरे इन लोगों को किसी ऐसे व्यक्ति या संस्था की मदद भी ना मिली जो इन्हें कारगर पारिवारिक या सार्वजनिक मुद्दे पर सलाह देती या फिर किसी तरह से सहारा साबित होती।
• अध्ययन के अनुसार लोगों ने सरकार द्वारा चलायी जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी ना होने की बात कही। उन्हे इस बात की भी कोई खास जानकारी नहीं थी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी भी कोई चीज होती है जिसका मार्केंटिंग पर असर पड़ता है।किसानों के पास तकनीकीपरक जानकारी बड़ी कम थी और उन्हें इसके बारे में वक्त जरुरत बताने वाला भी कोई(व्यक्ति या संस्था) नहीं था। ज्यादातर किसानों को फसल बीमा के बारे में भी सूचना नहीं थी।
•आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर हिन्दू धर्म के मानने वाले किसान थे। इसका एक कारण संभवतया हिन्दू धर्म में कतिपय हालात में देहत्याग करने के बारे में देशना का मौजूद होना है।
• शराबनोशी और मादक द्रब्यों की लत के लक्षण ग्रामीण आबादी में अध्ययन के दौरान देखने में आये।
• आत्महत्या करने वाले पर सबसे ज्यादा बोझ उस स्थिति में पड़ा जब उसने कर्जा अपने ही किसी रिश्तेदार से लिया हो और यह रिश्तेदार तगादा कर रहा हो। महाजन और बैंक इस मामले में रिश्तेदारों से कहीं कम दबावकारी साबित हुए।
दस सूत्री सुझाव:
1.सरकारी कारिन्दों और ग्रामीण समुदाय के बीच मोलजोल बढ़ना चाहिए। इसके लिए दौरा, रात्रि विश्राम और ग्रामसभा जैसे उपायों का सहारा लिया जा सकता है। प्रशासन के हर स्तर के अधिकारी ग्राम समुदाय से ज्यादा से ज्यादा मेलजोल रखने की कोशिश करें।
2. स्थानीय समुदाय, खासकर किसान समुदाय पर गहरी नजर रखी जाय और उनके बीच किसी तरह के आर्थिक, सामाजिक या मनोवैज्ञानिक संताप के लक्षण नजर आयें तो सामाजिक-आध्यात्मिक-मनोवैज्ञानिक मदद पहुंचायी जाय।
3. जो प्रावधान किसानों और खेतिहर मजूरों के हितों की रक्षा में पहले से मौजूद हैं, मसलन मनी लेंडिंग एक्ट या फिर न्यूमतम मजदूरी का कानून, उन पर कड़ाई से अमल हो।
4. कृषि विस्तार की गतिविधियों की कार्यसक्षमता में इजाफा किया जाय।
5. सरकार समाज कल्याण के नाम पर जिन योजनाओं के तहत मदद मुहैया करा रही है उनकी कारकरदगी बढ़ायी जाय।
6. ग्रामीण आबादी की सेवा में प्रशिक्षित और तनख्वाहयाफ्ता कर्मियों को लगाया जाय। तुरंत मदद देने की जरुरत है।
7. दूरगामी बदलाव के लिए स्कूली शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए। साथ ही ग्राम और तालुके के स्तर पर समुचित मात्रा में व्यावसायिक शिक्षा भी दी जाय ताकि लोग मौजूदा समय की व्यापारिक और वाणिज्यिक जटिलताओं को समझ सकें।
8. मीडिया से कहा जाय कि वह आत्महत्या की खबरों को ज्यादा सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत ना करे क्योंकि ऐसी खबरों से आत्महत्या की प्रवृति जोर पकड़ती है।
9. मृतक के परिवार को मुआवजा के रुप में धन प्रदान करने की जगह परिवार के सदस्य को रोजगार प्रदान किया जाय या फिर कोई योग्य व्यवसाय खोलने में मदद दी जाय।
•
राष्ट्रीय स्तर पर हुई कुल आत्महत्याओं में
किसान-आत्महत्याओं का प्रतिशत साल 1996 में 15.6% , साल 2002 में 16.3% साल 2006 में
14.4% , साल 2009 में 13.7% तथा साल 2010 में 11.9% तथा साल 2011 में 10.3%
रहा है। #
•
साल 2011 में जितने लोगों ने भारत में
आत्महत्या की उसमें, 18.1 फीसद तादाद गृहणियों की थी।
किसानों की संख्या आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में 10.3 फीसदी थी जबकि सरकारी नौकरी करने वालों की
तादाद आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में 1.2 फीसदी, प्राईवेट नौकरी करने वालों की 8.2 फीसदी, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में काम करने वालों की 2.0 फीसदी, छात्रों की 5.7 फीसदी, ब्रेरोजगार लोगों की 7.7 फीसदी तथा वणिज-व्यवसाय के क्षेत्र में
स्व-रोजगार में लगे लोगों की संख्या आत्महत्या करने वाले कुल लोगों की तादाद में
5.3 फीसदी थी तो स्वरोजगार में लगे पेशेवर लोगों की संख्या 3.1 फीसदी जबकि इससे
भिन्न किसी अन्य तरह के काम को स्वरोजगार के तौर पर अपनाने वाले लोगों की तादाद
19.5 फीसदी। #
•
साल 2011 में भारत में जिन 135585 लोगों ने
आत्महत्या की उसमें स्वरोजगार में लगे
लोगों का प्रतिशत 38.28 ( कुल. 51901) था।
#
•
साल 2011 में स्वरोजगार में लगे कुल 51901
लोगों ने आत्महत्या की। इसमें किसानों की संख्या 14027 यानी 27.03 फीसदी है।#
• साल 1997 -
2006 यानी दस सालों की अवधि में भारत में
1,66,304 किसानों ने आत्महत्या की।*
•
साल 1997
- 2006 के बीच किसानों की आत्महत्या में
सालाना 2.5 फीसद चक्रवृद्धि दर से बढ़त
हुई।*
•
आत्महत्या करने वाले किसानों में ज्यादातर
नकदी फसल की खेती करने वाले थे, मिसाल के लिए
कपास(महाराष्ट्र), सूरजमुखी,मूंगफली और गन्ना(खासकर कर्नाटक में)।**
•
सेहत की खराब दशा, संपत्ति को लेकर पारिवारिक विवाद, घरेलू कलह
और बेटी को ब्याहने की गहन सामाजिक जिम्मेदारी सहित शराब की लत ने किसानों को कर्ज
ना चुकता कर पाने की स्थिति में आत्महत्या की तरफ ढकेला।**
• जिन
स्रोतों से किसानों ने कर्ज लिया उनमें महाजन एक प्रमुख स्रोत रहे। २९ फीसदी
कर्जदार किसानों ने महाजनों से कर्ज हासिल किया। ***.
#
National Crime Records Bureau, http://ncrb.nic.in/
http://ncrb.nic.in/adsi/data/ADSI1996/table-5s.pdf ** डाक्टर रिताम्बरा हेब्बार(२००७): ह्यूमन सिक्यूरिटी एंड द केस ऑव फार्मस् स्यूसाइड इन इंडिया-ऐन एक्सपोलोरेशन http://humansecurityconf.polsci.chula.ac.th/Documents/Pres
entations/Ritambhara.pdf
*** सीपी चंद्रशेखर, जयति घोष (2005):द बर्डेन ऑव फार्मर्स डेट, माइक्रोस्केन
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित एक्सीडेंटल डेथ एंड स्यूसाइड इन इंडिया-2012 नामक दस्तावेज के अनुसार- http://ncrb.gov.in/
मूल दस्तावेज के लिए कृपया यहां क्लिक करें
• साल 2012 में एक लाख से ज्यादा(1,35,445) लोगों ने आत्महत्या के चलते जान गंवायी।
• साल 2002-2012 के दशक में भारत में आत्महत्या की तादाद में 22.7 फीसदी की बढोत्तरी हुई। साल 2002 में आत्महत्या करने वालों की संख्या 1,10,417 थी जो साल 2012 में बढ़कर 1,35,445 हो गई। इस अवधि में देश की आबादी में बढ़ोत्तरी 15 फीसदी की हुई है।
• आत्महत्या करने वाले लोगों में स्वरोजगार में लगे लोगों की तादाद सबसे ज्यादा यानि 38.7% थी और इस तादाद में 11.4% लोग खेती-बाड़ी या इससे संबद्ध काम में लगे थे। स्वरोजगार में लगे जितने लोगों ने साल 2012 में आत्महत्या की उसमें 4.7% किसी ना किसी तरह का व्यवसाय करते थे जबकि 2.9 फीसदी लोग हाथ के हुनर से जीविका चलाने वाले लोगों में थे।
• आर्थिक हैसियत में अचानक बदलाव 2 फीसदी मामलों में आत्महत्या की वजह रहा जबकि गरीबी आत्महत्या के 1.9 फीसदी मामलों में मुख्य कारण रही।
• मिजोरम में जितने लोगों ने साल 2012 में आत्महत्या की उसमें 38.2% लोग बेरोजगार थे। साल 2012 में दिल्ली में आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में बेरोजगारों की संख्या 19.4% थी।
• आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में सरकारी नौकरी करने वाले लोगों की संख्या 1.4% थी जबकि निजी क्षेत्र में नौकरी करने वाले लोगों की कुल संख्या 9.4%। आत्महत्या करने वाले लोगों में सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरी करने वाले लोगों की संख्या 1.8 फीसदी थी।
• आत्महत्या करने वाले लोगों में छात्रों का प्रतिशत 5.5% था जबकि बेरोजगार लोगों का संख्या 7.4% थी।
• साल 2012 में जितने लोगों ने आत्महत्या की उसमें ज्यादातर(23.0%) प्राथमिक स्तर तक शिक्षा प्राप्त थे। आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में निरक्षर लोगों की संख्या 19.7 फीसदी थी जबकि आत्महत्या के 23 फीसदी मामलों में इस नियति के शिकार व्यक्ति माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त थे।
• आत्महत्या करने वाले लोगों में मात्र 3.4% स्नात्क स्तर की शिक्षा प्राप्त थे जबकि स्नात्तकोत्तर स्तर की शिक्षा प्राप्त ऐसे व्यक्तियों की संख्या आत्महत्या करने वाले कुल लोगों की कुल तादाद में 0.6 फीसदी थी।
• आंध्रप्रदेश में 34.7%, पंजाब में 33.8% और राजस्थान में 32.0% फीसदी मामलों में पाया गया कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति निरक्षर है। गुजरात में 36.2% मामलों में, पश्चिम बंगाल में 34.5% मामलों में और मेघालय में 33.6% मामलों में पाया गया कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति अपर-प्राइमरी स्तर तक शिक्षा प्राप्त है।
• साल 2012 में सर्वाधिक(12.5% ) आत्महत्याएं तमिलनाडु(16,927) में हुईं। आत्महत्याओं की तादाद के मामले में महाराष्ट्र दूसरे नंबर ( आत्महत्याओं की कुल संख्या-16,112) पर रहा। पश्चिम बंगाल में आत्महत्याओं की तादाद 14,957, आंध्रप्रदेश में 14,238 और कर्नाटक में 12,753 रही जो देशस्तर पर आत्महत्याओं की कुल तादाद का क्रमश 11.9%, 11.0%, 10.5% और 9.4% है।
• आत्महत्या करने वालों में 25.6 फीसदी ने ‘पारिवारिक समस्याओं की वजह से ऐसा कदम उठाया जबकि 20.8 फीसदी मामलों में आत्महत्या की वजह बीमारी रही।
• आत्महत्या करने वालों की कुल संख्या में गृहणियों की तादाद 21,904 थी जो आत्महत्या करने वाली महिलाओं की कुल संख्या का 53.8% फीसदी है और आत्महत्या करने वाले कुल लोगों की संख्या का 18.2% फीसदी।
• साल 2012 में सर्वाधिक(12.5% ) आत्महत्याएं तमिलनाडु(16,927) में हुईं। आत्महत्याओं की तादाद के मामले में महाराष्ट्र दूसरे नंबर (आत्महत्याओं की कुल संख्या-16,112) पर रहा। पश्चिम बंगाल में आत्महत्याओं की तादाद 14,957, आंध्रप्रदेश में 14,238 और कर्नाटक में 12,753 रही जो देशस्तर पर आत्महत्याओं की कुल तादाद का क्रमश 11.9%, 11.0%, 10.5% और 9.4% है।
• आत्महत्या करने वालों में 25.6 फीसदी ने ‘पारिवारिक समस्याओं की वजह से ऐसा कदम उठाया जबकि 20.8 फीसदी मामलों में आत्महत्या की वजह बीमारी रही।
• आर्थिक हैसियत में अचानक बदलाव 2 फीसदी मामलों में आत्महत्या की वजह रहा जबकि गरीबी आत्महत्या के 1.9 फीसदी मामलों में मुख्य कारण रही।
र्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित एक्सीडेंटल डेथ्स् एंड स्यूसाईड-2011 नामक दस्तावेज के अनुसार, http://ncrb.nic.in/:
--साल 2011 में प्रति घंटे 16 लोगों ने आत्महत्या की।
--पुरुषों के मामले में आत्महत्या की मुख्य वजह सामाजिक-आर्थिक
रहे जबकि महिलाओं के मामले में भावनात्मक और निजी कारण।
--आत्महत्या करने वाले पुरुषों में 71.1% विवाहित थे जबकि महिलाओं में 68.2% विवाहित थीं।.
--लगातार तीन सालों से बाकी राज्यों की अपेक्षा पश्चिम बंगाल
में आत्महत्या करने वालों की तादाद ज्यादा बनी हुई है। साल 2009 में आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में पश्चिम बंगाल के 11.5% लोग थे,
साल 2010 में 11.9% फीसदी और साल 2011 में 12.2%.
--पश्चिम बंगाल (12.2%), महाराष्ट्र और तमिलनाडु (प्रत्येक 11.8%), आंध्रप्रदेश (11.1%) और कर्नाटक (9.3%)
से आत्महत्या करने वाले लोगों की तादाद, आत्महत्या करने वाले कुल लोगों की तादाद में 56.2% फीसदी रही।.
--साल 2011 में किसान
आत्महत्याओं की संख्या() पिछले साल यानी 2010 के मुकाबले कम रही। साल 2010 में 15,933 किसानों ने आत्महत्या की थी। साल 2011 में छत्तीसगढ़ में किसी किसान ने आत्महत्या नहीं की जबकि साल 2010 में छत्तीसगढ़ में 1422 किसानों ने आत्महत्या की थी।
--महाराष्ट्र में साल 2011 में 3,337 किसानों ने आत्महत्या की। साल 2010 में महाराष्ट्र में 3,141 किसानों ने आत्महत्या की थी।
--साल 2004-2011 के बीच किसान-आत्महत्याओं की संख्या में कमी के रुझान हैं। साल 2004 में सर्वाधिक यानी 18,241 किसानों ने आत्महत्या की।
--साल 2004 से अबतक(2011)
केंद्र में मौजूद यूपीए सरकार के शासन की अवधि में देश
में कुल 1.18 लाख किसानों ने आत्महत्या की है। गुजरात, कर्नाटक, और यूपी में साल 2004 के बाद से किसान-आत्महत्याओं की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई
है।
--पूर्वोत्तर के राज्य असम से भी किसान-आत्महत्या की संख्या
चिंताजनक है। यहां साल 2010 में कुल 269
किसानों ने आत्महत्या की जबकि साल 2011 में 312 किसानों ने।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो द्वारा प्रस्तुत एक्सीडेंटल डेथ एंड स्यूसाइड (2010) नामक दस्तावेज के अनुसार-http://ncrb.nic.in/
·
देश में हर घंटे
घंटे 15 व्यक्ति आत्महत्या करते हैं।
·
साल 2010 में एक
लाख से ज्यादा(1,34,599) व्यक्तियों ने आत्महत्या की।
·
आत्महत्या करने
वालों में 26.3% फीसदी प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त थे जबकि 22.7% फीसदी की
शिक्षा माध्यमिक स्तर की थी और 19.8% फीसदी निरक्षर थे।
·
देश में प्रति 5
आत्महत्याओं में 1 आत्महत्या गृहिणी(हाऊसवाईफ) ने की।
·
आत्महत्या करने
वालों में 41.1% फीसदी स्वरोजगार में लगे थे जबकि 7.5% फीसदी बेरोजगार थे।
आत्महत्या करने वाले कुल लोगों की तादाद में सरकारी नौकरी करने वालों की संख्या
मात्र 1.4% फीसदी है।
·
आत्महत्या के
आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि आत्महत्या करने वाले पुरुषों के लिए
सामाजिक-आर्थिक कारण जिम्मेदार रहे जबकि आत्महत्या करने वाली महिलाओं के लिए
भावनात्मक और निजी कारण।
·
पारिवारिक कारणों
से आत्महत्या करने वालों की तादाद कुल आत्महत्या करने वालों में 23.7% फीसदी और
बीमारी के कारण आत्महत्या करने वालों की तादाद
21.0% फीसदी रही। इन दो कारणों से कुल आत्महत्या करने वालों में 44.7%
फीसदी ने जीवनलीला का अंत किया ।
·
जायदाद के विवाद के
कारण खुदकुशी करने वालों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी(48.0%) हुई है।
·
पाँच राज्य- केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में 60 और उससे ज्यादा की उम्र के लोगों में
आत्महत्या करने वालों की तादाद 65.8 फीसदी है।
·
आत्महत्या करने
वाले कुल व्यक्तियों में पश्चिम बंगाल से 11.9% , आंध्रप्रदेश से 11.8% , तमिलनाडु से 12.3% , तथा महाराष्ट्र से 11.8% और कर्नाटक से 9.4% फीसदी थे। यानी कुल 57.2%
फीसदी व्यक्ति मात्र इन्हीं राज्यों के थे।
·
पश्चिम बंगाल में
सबसे ज्यादा लोगों(11.9%) ने आत्महत्या
की।
·
आत्महत्या करने
वाले कुल लोगों की तादाद में 57 फीसदी लोग दक्षिण के राज्यों आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु
से थे।
·
ऐसे मामले जब पूरा
परिवार आत्महत्या करने को मजबूर हुआ सबसे ज्यादा(23) बिहार से रहे, इसके बाद केरल(22), मध्यप्रदेश(21) और आंध्रप्रदेश(20) का स्थान है।
नेशनल
क्राइम रिकार्ड ब्यूरो द्वारा प्रस्तुत एक्सीडेंटल डेथ एंड स्यूसाइड (2009) नामक
दस्तावेज के अनुसार- http://ncrb.gov.in/CD-ADSI2009/suicides-09.pdf http://ncrb.gov.in/CD-ADSI2009/snapshots.pdf
• देश में साल 2009 में एक
लाख से अधिक (1,27,151) लोगों ने आत्महत्या की। पिछले साल जितने लोगों ने
आत्महत्या( (1,25,017) की उसकी तुलना में यह 1.7% फीसदी अधिक है।
• देश में आत्महत्या
की तादाद एक दशक (1999–2009) में 15.0% ( साल 1999 मे 1,10,587 से बढ़कर
साल 2009 में 1,27,151 ) बढ़ी है।.
• साल 2009 में जितने
लोगों ने आत्महत्या की उसमें स्वरोजगार में लगे लोगों की तादाद 39.8%
है।इसमें 13.7% की तादाद
खेती-किसानी में लगे लोगों की है जबकि 6.1% व्यापार से जुड़े
हैं और 2.9% पेशेवर कोटि के हैं।.
• साल 2009 में मिजोरम में जितने लोग आत्महत्या के शिकार
हुए उसमें 55.1% खेती-किसानी से जु़ड़े थे।मणिपुर में आत्महत्या करने वाले
लोगों की कुल संख्या में 29.6% फीसदी
तादाद बरोजगारी की थी।
• यद्यपि महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या की तादाद 2008 के
मुकाबले 2009 में घटी(930 की कमी) है फिर भी किसानों की
आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र लगातार दसवें साल भी देश में सबसे आगे (2,872 किसान
आत्महत्याएं) बना हुआ है।
• साल 2009 में कुल 17,368 किसानों
ने आत्महत्या की यानी साल 2008 के मुकाबले एक साल के अंदर किसानों की
आत्महत्या की तादाद में 1,172 आत्महत्याओं की बढोतरी हुई है।
• किसानों की आत्महत्या की तादाद में पिछले साल के मुकाबले 7 फीसदी की
रफ्तार से बढ़ोतरी हुई है।
• साल 2009 में 1,27,151 लोगों ने
आत्महत्या की। एक साल के अंदर आत्महत्या की दर देश में 1.7% फीसदी
बढ़ी है।पिछले साल कुल आत्महत्याओं की तादाद 1,25,017 थी।
• साल 2009 में देश
में प्रतिदिन 348 लोगों ने आत्महत्या की इसमें किसान-आत्महत्याओं की संख्या
प्रतिदिन 48 रही। साल 2004 के बाद से प्रतिदिन औसतन 47 किसानों
ने आत्महत्या की है यानी हर 30 मिनट पर एक किसान आत्महत्या।
• साल 2009 में जितने
लोगों ने आत्महत्या की उसमें निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों
की तादाद क्रमश 8.4% और 2.3% फीसदी रही
जबकि बेरोजगारों की तादाद 7.8% फीसदी।.
• साल 2009 में
आत्महत्या करने वाले कुल लोगों की संख्या में सरकारी नौकरी करने वालों की तादाद 1.3% फीसदी है
जबकि इस साल जितनी महिलाओं ने आत्महत्या की उसमें हाऊसवाइफ(गृहिणी) की संख्या 25,092 यानी 54.9% रही जो
आत्महत्याओं की कुल संख्या का 19.7% है।
• आत्महत्या करने
वाले लोगों में जो नियमित वेतनभोगी थे उनमें 40.9% की उम्र 30-44 साल की थी
जबकि आत्महत्या करने वाले कुल बेरोजगारों में 39.0 फीसदी इस आयु-वर्ग
के थे।
• पश्चिम बंगाल में
आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या सर्वाधिक (14,648) रही जो कुल
आत्महत्याओं का 11.5% है। इसके बाद नंबर आंधप्रदेश का रहा जहां
कुल 14,500 लोगों ने आत्महत्या की। तमिलनाडु में आत्महत्या करने वालों
की संख्या 14,424 , महाराष्ट्र में 14,300 और
कर्नाटक में 12,195 रही जो देश में हुई कुल आत्महत्याओं का
क्रमश 11.4%, 11.3%, 11.2% और 9.6% फीसदी है।
• देश में हुई कुल
आत्महत्या का 55.1% हिस्सा केवल इन पांच राज्यों में केंद्रित है।
• राष्ट्रीय स्तर पर
देखें तो सामूहिक-पारिवारिक आत्महत्या की जिन घटनाओं की सूचना मिली है उसमें
आत्महत्या करने वालों की तादाद 209 है। इसमें पुरुषों की संख्या 95 और महिलाओं की
114 है। 14 राज्यों और 3 केंद्रशासित
प्रदेशों ने इस शीर्षक से जानकारी मुहैया नहीं करायी।
• ‘पारिवारिक कलह ’ और ‘बीमारी’ की वजह से
आत्महत्या करने वालों की संख्या क्रमश 23.7% और 21.0% है। पारिवारिक
कलह और नशे की आदत के कारणों से आत्महत्या करने वालों की तादाद पिछले तीन सालों से
बढ़ रही है।
• आत्महत्या करने
वाले लोगों में अधिकतर (23.7%) माध्यमिक स्तर तक शिक्षित थे। आत्महत्या
करने वाले कुल लोगों में निरक्षर और प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त लोगों की
संख्या क्रमश 21.4% फीसदी और 23.4% फीसदी थी।.
मीता और राजीव लोचन द्वारा प्रस्तुत- फार्मस् स्यूसाइड- फैक्ट एंड पॉसिबल प़लिसी इन्टरवेंशनस्(२००६) किसानों की आत्महत्या पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसमें कतिपय पूर्ववर्ती अध्ययनों मसलन(मिश्र और दांडेकर तथा अन्य) का जायजा लिया गया है और उनकी खामियों की रोशनी में कहीं ज्यादा समग्र अध्ययन प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है। इस अध्ययन के अनुसार-,
http://www.yashada.org/organisation/FarmersSuicideExcerpts.pdf
• आत्महत्याओं का प्रमुख केंद्र महाराष्ट्र का यवतमाल जिला रहा है। सूबे के क्राईम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2000, 2001, 2002, 2003 और 2004 यहां क्रमश 640, 819, 832, 787 और 786 किसानों ने आत्महत्या की।
• आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर पुरुष और ३०-५० आयुवर्ग के लोग थे। ये शादीशुदा और शिक्षित किसान थे। इनके ऊपर बेटी या बहन का ब्याह करने जैसी गहन सामाजिक जिम्मेदारी भी थी।आत्महत्या करने वाले ज्यादातर किसानों में दो बातें समान थीं। एक तो यह कि इन किसानों ने समय के किसी बिन्दु पर अपने को पारिपारिक द्वन्दों को सुलझाने में तथा धन के अभाव में कर्ज चुकता करने में अत्यंत असहाय महसूस किया, दूसरे इन लोगों को किसी ऐसे व्यक्ति या संस्था की मदद भी ना मिली जो इन्हें कारगर पारिवारिक या सार्वजनिक मुद्दे पर सलाह देती या फिर किसी तरह से सहारा साबित होती।
• अध्ययन के अनुसार लोगों ने सरकार द्वारा चलायी जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी ना होने की बात कही। उन्हे इस बात की भी कोई खास जानकारी नहीं थी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी भी कोई चीज होती है जिसका मार्केंटिंग पर असर पड़ता है।किसानों के पास तकनीकीपरक जानकारी बड़ी कम थी और उन्हें इसके बारे में वक्त जरुरत बताने वाला भी कोई(व्यक्ति या संस्था) नहीं था। ज्यादातर किसानों को फसल बीमा के बारे में भी सूचना नहीं थी।
•आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर हिन्दू धर्म के मानने वाले किसान थे। इसका एक कारण संभवतया हिन्दू धर्म में कतिपय हालात में देहत्याग करने के बारे में देशना का मौजूद होना है।
• शराबनोशी और मादक द्रब्यों की लत के लक्षण ग्रामीण आबादी में अध्ययन के दौरान देखने में आये।
• आत्महत्या करने वाले पर सबसे ज्यादा बोझ उस स्थिति में पड़ा जब उसने कर्जा अपने ही किसी रिश्तेदार से लिया हो और यह रिश्तेदार तगादा कर रहा हो। महाजन और बैंक इस मामले में रिश्तेदारों से कहीं कम दबावकारी साबित हुए।
दस सूत्री सुझाव:
1.सरकारी कारिन्दों और ग्रामीण समुदाय के बीच मोलजोल बढ़ना चाहिए। इसके लिए दौरा, रात्रि विश्राम और ग्रामसभा जैसे उपायों का सहारा लिया जा सकता है। प्रशासन के हर स्तर के अधिकारी ग्राम समुदाय से ज्यादा से ज्यादा मेलजोल रखने की कोशिश करें।
2. स्थानीय समुदाय, खासकर किसान समुदाय पर गहरी नजर रखी जाय और उनके बीच किसी तरह के आर्थिक, सामाजिक या मनोवैज्ञानिक संताप के लक्षण नजर आयें तो सामाजिक-आध्यात्मिक-मनोवैज्ञानिक मदद पहुंचायी जाय।
3. जो प्रावधान किसानों और खेतिहर मजूरों के हितों की रक्षा में पहले से मौजूद हैं, मसलन मनी लेंडिंग एक्ट या फिर न्यूमतम मजदूरी का कानून, उन पर कड़ाई से अमल हो।
4. कृषि विस्तार की गतिविधियों की कार्यसक्षमता में इजाफा किया जाय।
5. सरकार समाज कल्याण के नाम पर जिन योजनाओं के तहत मदद मुहैया करा रही है उनकी कारकरदगी बढ़ायी जाय।
6. ग्रामीण आबादी की सेवा में प्रशिक्षित और तनख्वाहयाफ्ता कर्मियों को लगाया जाय। तुरंत मदद देने की जरुरत है।
7. दूरगामी बदलाव के लिए स्कूली शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए। साथ ही ग्राम और तालुके के स्तर पर समुचित मात्रा में व्यावसायिक शिक्षा भी दी जाय ताकि लोग मौजूदा समय की व्यापारिक और वाणिज्यिक जटिलताओं को समझ सकें।
8. मीडिया से कहा जाय कि वह आत्महत्या की खबरों को ज्यादा सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत ना करे क्योंकि ऐसी खबरों से आत्महत्या की प्रवृति जोर पकड़ती है।
9. मृतक के परिवार को मुआवजा के रुप में धन प्रदान करने की जगह परिवार के सदस्य को रोजगार प्रदान किया जाय या फिर कोई योग्य व्यवसाय खोलने में मदद दी जाय।
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