.देवदासी प्रथा एक घिनौना रूप जिसे धर्म के नाम पर सहमति प्राप्त !
.देवदासी प्रथा एक घिनौना रूप जिसे धर्म के नाम पर सहमति प्राप्त ( सच का आईना )
धर्म के नाम पर महिलाओं के साथ यौनाचार होगा तो भारत जैसे मुल्क का भविष्य क्या होगा
देवदासी
प्रथा भारत के दक्षिणी पश्चिम हिस्से में सदियों से चले आ रहे धार्मिक
उन्माद की उपज है ! धर्म के नाम औरतों के साथ हो रहे यौनाचार का इतिहास
बहुत पुराना है ! भारत के कुछ क्षेत्रों में धर्म और आस्था के नाम पर
महिलाओं को वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेला जाता है ! महिलायें सामाजिक और
पारिवारिक दवाब के चलते हुये इस धार्मिक कुरीत का हिस्सा बनने को मजबूर हो
जाती हैं ! कुछ दिनों पहले वेलोर पर खबर कुछ ऐसी थी कि १२-१३ साल की
बच्चियों को देवदासी बनाया गया जिसके तहत इन किशोरियों का विवाह किसी
मंदिर या देव से कर दिया जाता है ! घोषित
रूप से ब्रह्मचार्य का पालन करना होता है ! पर विशेष अधिकार के तौर पर
हिन्दू संस्कारो से इतर वैवाहिक संस्था को तार- तार कर के पुरुष सन्सर्ग भी
कर सकती है !. इस प्रथा के तहत उन किशोरियों को अगले कुछ सालों तक देवियों
और देवताओं की सेवा मे अपना जीवन व्यतीत करना होगा ! बालिकायें ये समझ
रहीं थी कि समाज मे उनका दर्जा जरुर कुछ श्रेष्ठ हो गया है ! पर वो मासूम
क्या जाने कि देवदासी प्रथा के तहत उनकी आज़ादी छिन गई है इस बात से अनजान
ये बच्चियां सिर्फ इस बात से खुश हो रहीं थी कि अब उन्हें मंदिर की
स्वामिनी, और देख-रेख का अधिकार प्राप्त हो गया है !
इस स्थिती में रहने के दौरान वस्त्र और अच्छा खाना खाने को मिलेगा साथ ही
उस गरीबी से भी छुटकारा जिनके साथ वह पैदा हुई थी ! कमर के उपरी हिस्से तक
निर्वस्त्र इन बच्चियो के सर पर मटकियां रख कर जुलुस भी निकाला गया ! सरकार
आँखें बंद करके सारे नज़ारे को नजरअंदाज करती रही ! क्या यही है हमारे देश
का भविष्य ? भीड़ के आगे प्रतिनिधितित्व करती ये अल्लहड् किशोरियां जब
परिपक्व होगी ! फिर बढती हुई उम्र और मातृत्व की लालसा जब चरम पर होगी ,तो ये यादें क्या उन्हें एक सम्मानित जीवन की नींव रखने देंगी ? इन कड़वी यादों के साथ कैसे जी पाएंगी ये ? दूसरी ओर एक खुशहाल जिंदगी न मिल पाना और समाज द्वारा नकार दिया जाना इनके क़दमों को क्या वेश्यावृति की ओर नहीं ले जाएगा ? क्या इसका जवाब है इन धर्म के ठेकेदारों के पास ? न चाहते हुए भी उन्हें वेश्यावृति के गहरे दलदल मे ढकेल दिया जाएगा !
जाहिरा तौर पर देखा जाए तो सभी धर्मों में मिलती जुलती धारणाएं जुड़ी हैं !
अगर
हम अपने पीछे के इतिहास के आइने को देखें तो यह समझना बहुत ही आसान है कि
छठी और दसवीं शत्ताब्दी मे इसका क्या स्वरुप था और बाद मे यह कितना विकृत
हो गया था प्रान्तीय राजाओं और सामंतो के लिए यह भोग विलास, और समाज में अपनी प्रतिष्ठा की पहचान बन चुका था !
अब ईसाई धर्म के तहत ही देख लीजिए चर्च और कॉन्वेंटस में नन रहने लगीं जो चिरकुमारियों के नाम से जानी जाने लगीं ! कैथोलिक
चर्च में भी सैक्स से सम्बंधित खेल के खुले-खुलासे होते आ रहे है ! दूर
क्यों जाते है कुछ दिनों पहले ही एक नन ने पादरियों के व्यभिचार का
सनसनीखेज खुलासा किया था ! नन ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि पादरी ननों
के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं ! इससे जब वह गर्भवती हो जाती है ! तो
बच्चों को गर्भ में ही मार देते है !
नन सिस्टर मैरी चांडी ने अपनी आत्मकथा `ननमा निरंजवले सवस्ति` में
लिखा है कि मैंने वायनाड गिरजाघर में हाशिल अनुभवों को सहेजने की कोशिश की
है ! चर्च के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता की वजाय वासना से भरी थी ! एक
पादरी ने मेरे साथ बलात्कार करने की कोशिश की थी ! मैंने उस पर स्टूल चलाकर
इज्जत बचाई थी !` उनके मुताबिक़ चर्च में नर्सें सैक्सी किताबें पढ़तीं थी !
नन सिस्टर जेस्मी ने `आमेन : द ऑटोबायोग्राफी` नामक किताब लिखकर धार्मिक पाखंडों का खुलासा किया था !
अब
देखिये महात्मा बुद्द मठों में औरतों का प्रवेश वर्जित था ! उनका मत था कि
औरतों की मौजूदगी व्यक्ति के मन को काम वासना के लिए आकर्षित करती है ! पर
उनके महाप्रयास के बावजूद भी औरतों के लिए मठ के द्वार खुल गये ! बौद्ध
धर्म की कारगुजारियां पूरी तरह तंत्र पर ठहर गई और तंत्र प्रणाली में औरतों
की देह को मोक्ष का नाम देकर औरतों को छला जाने लगा !
हिंदू
धर्म के तहत मंदिरों में देवदासी प्रथा का प्रचलन शुरू हो गया ! और यहीं
बेबीलोन के मंदिरों में देवदासियां रहा करती थी ! जैन धर्म के संतों के साथ
साध्वियां भी होती थी !
देवदासी
प्रथा के चलते ऊँची जाति की महिलायें मंदिरों में खुद को समर्पित करके
देवता की सेवा में लीन रहती थी ! और देवता खुश हो जाये इसलिए मंदिरों में
नृत्य करतीं थी ! देवदासी प्रथा से जुड़ी महिलाओं के साथ मंदिर से जुड़े
पुजारियों ने ये कहकर शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए कि शारीरिक सम्बन्ध
बनाने से उनके और भगवान के बीच संपर्क स्थापित होता है ! धीरे-धीरे पुजारी
इसे अपना अधिकार समझने लगे और सामाजिक रूप से किसी ने भी हस्तक्षेप नहीं
किया ! सही मायने में कहा जाए तो वह किसी अन्य व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकती ! सभी पुरुषों में देवी-देवता का अक्श मान उसकी इच्छा पूर्ति करती हैं !
इस कुप्रथा को सबसे ज्यादा बढावा देने वाले (चोल वंश के राजा ) थे ! सदियां गुजर गई फिर भी ये प्रथा ज्यों की त्यों चली आ रही है, कुछ
भी ना बदला अगर बदले तो सिर्फ हमारे बाहरी आवरण जो दिखावे की भेंट चढ़ कर
इस कुप्रथा की जड़ों को इतनी मजबूत और गहरी कर रहे है कि वो इन बच्चियों
के सुनहरे वर्तमान और भविष्य पर भारी पड़ रहे हैं ! प्रशासन को कोई खबर
नहीं है ! यह शुद्ध रूप से धर्मक्षेत्र की वेश्यावृत्ति है,जिसे
धार्मिक स्वीकृति हासिल है इतिहास गवाह है कि राजा-महाराजाओं ने अपने
महलों में देवदासियों को रखने का चलन शुरू किया था ! मुग़ल-काल में जब
देवदासियों की संख्या जरुरत से ज्यादा बढ़ गई तो देवदासियों के पालन पोषण
में कठिनाई आने के कारण उन्हें सार्वजानिक सम्पत्ति बना दिया गया!
विचार करने की बात ये है कि आंध्र-प्रदेश के 14 और कर्नाटक के 10
जिलों
में ये प्रथा बदस्तूर अभी भी जारी है ! खबर है कि उड़ीसा के पुरी मंदिर
में एक देवदासी है ! लेकिन आंध्र-प्रदेश ने 16,624 देवदासियां का आंकड़ा
पेश किया ! जब महिला आयोग ने देवदासियों के लिए भत्ते का एलान किया ! तब
आयोग को 8793 आवेदन मिले !
जिसमें से 2479 को भत्ता दिया गया ! बाकी 6314 कि पात्रता सही नहीं थी !
यहाँ
पर में ये बताना चाहूंगी कि हिंदू धर्म में देवदासियां ऐसी स्त्रियों को
कहते हैं जिनका विवाह मंदिर या अन्य किसी भी धार्मिक प्रतिष्ठान से कर दिया
जाता है ! इनका काम नृत्य , संगीत सीखना और मंदिरों की देखभाल करना होता है ! समाज में इन्हें एक उच्च दर्जा प्राप्त होता है !
परम्परागत रूप से ब्रह्मचारी होना और साथ – साथ पुरुषों से सम्भोग का अधिकार भी होना ये एक अनुचित और गलत सामाजिक प्रथा है ! दक्षिण भारत में इसका प्रचलन मुख्य रूप से था !
अब देखिये यहाँ सवाल ये उठता है कि अगर कोई मौत हो जाती है तो गाजे -बाजे के साथ मौत का जनाजा निकलता है ! और लोगो को खबर हो जाती है, पर
यहां तो गाजे-बाजे के साथ इन बच्चियों के भविष्य का तमाशा निकाला जाता है !
सदियो से चली आ रही परम्परा का अब समाप्त होना बहुत ही आवश्यक है ! इस
प्रथा के समाप्त होने से कहीं ज्यादा उन बच्चियों के भविष्य की नींव का
मजबूत होना बहुत आवश्यक है ! क्योंकि उनके ऊपर हमारे भारत का भविष्य है, उनके
जैसे परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधरनी बहुत जरुरी है ! देखा जाये तो
बीसवीं सदी में देवदासियों कि स्थिती में कुछ सुधार आया ! पेरियार जैसे कई
नेताओं ने इस प्रथा को समाप्त करने की भरसक कोशिश की ! देवदासी प्रथा हमारी
संस्कृति पर एक काला दाग है ! ये प्रथा हमारे इतिहास का वो काला पन्ना है
जिसे अब समाप्त होना चाहिए ! आज के युग में इसका कोई औचित्य नहीं है !
देवदासी की परम्परा हमारे समाज का एक घृणित चेहरा है ! इसपर तत्काल प्रभाव
से रोक लगानी चाहिए ! सरकार को चाहिए कि इस विषय को गंभीरता से लें और
हमारे देश की कानून व्यवस्था के तहत कोई ठोस कदम उठाए , जिससे न केवल इस कुप्रथा का उन्मूलन हो , बल्कि देवदासियों और उनके बच्चों को भी पुनर्वासित किया जा सके , ताकि वे इस कुप्रथा की गिरफ्त से बाहर आयें !
…...सुनीता दोहरे .....
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