धर्म के साये में पलते अधर्म!
हमारा मूलनिवासी समाज धर्म की गहरायी में उतर ही नहीं पाता। आधे-अधूरे विश्वास के साथ वह अच्छे-बूरे में फर्क नहीं कर पाता और इसी कमोवेश में धर्म के साये में अधर्म पनपने लगता है। कोई शक नहीं कि भारत हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, चाहे मंहगाई का हो। या हिंसा का या लूटमार का या धोखाधड़ी का हो, अगर हम अपराध क्षेत्र की ओर देखें तो राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरों की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत हत्याओं के मामले में भी नम्बर वन हैं। जो संख्या दूसरे देशों के मुबाकले सबसे ज्यादा है। प्रश्न यह उठता है कि भारत जैसा धर्मपरायण देश जहाँ धर्मभीरु लोगों की पूरी फौज है। ऐसी वारदातों में इतना आगे कैसे बढ़ गया? धर्म की नज़र से देखें तो हत्या, बलात्कार, चोरी ऐसा महापाप है जो व्यक्ति को पतन और नर्क की खाँई में धकेलता है। जाहिर है रात-दिन धर्म के पोथे खोलकर बैठे ब्राह्मणवादी धर्म पुरोहितों के उपदेशों का असर ज्यादातर होता ही नहीं। इसी तरह से विवाह को धार्मिक अनुष्ठान मानने वाले इस रिश्ते को जन्म जन्मातर का संबंध बताने वाला धर्म तब कहाँ रहता है? जब पति-पत्नी एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं? आग की जिन लपटों के चारों तरफ फेरे दिलाकर ब्राह्मण पुरोहित नवदंपत्ति को एक-दूसरे का साथ देने का वचन दिलाते हैं। क्यों दहेज के नाम पर उन्हीं लपटों में लड़की को जलाकर मार दिया जाता है? छोटी-छोटी बातों पर धार्मिक स्थलो और पण्डे-पुजारियों का चक्कर लगाने वाले लोग अपने को बड़े-बड़े धोखे देने से बाज नहीं आते। ब्राह्मण धर्म का हाल तो यह है कि लोग किसी काम में सफल होने की मनौती मांगते हैं। बाद में चढ़ावा चढ़ाकर अपनी मनौती पूरी करते हैं। क्या यह एक तरह से ईश्वर को घूस देने की कवायद नहीं? ऐसे तो हर धर्म व्यक्ति को सदाचार, ईमानदारी और अहिंसा के मार्ग पर चलने का पाठ पढ़ाता है। फिर क्यों रिश्तों का खून करते वक्त और मानतवा की धज्जियाँ उड़ाते वक्त लोग अपनी धर्म ग्रन्थों का ध्यान नहीं करते? लड़कियों के पहनावे को लेकर ब्राह्मण धर्म गुरूओं द्वारा फतवा जारी किये जाते हैं।
धर्म और नीति की दुहाईयाँ दी जाती है। सदन में हंगामा खड़ा हो जाता है, तो धर्म उसकी सुरक्षा के लिए आगे क्यों नहीं आता? जिस महिला को धार्मिक कर्मकाण्डों के दौरान बराबरी के आसन पर बिठाया जाता है। जिसके बगैर कोई धार्मिक अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता उसे ही घर में कभी समान दर्जा क्यों नहीं मिलता। आये दिन वह घरेलू हिंसा का शिकार बनती है क्यों? पूर्वजों के लिए दान, तप, पूजा कराने वाला व्यक्ति जीते जी अपने माँ-बाप की सेवा नहीं करता। दावा किया जाता है कि ब्राह्मण धर्म अहिंसा का पाठ बढ़ाता है। फिर क्यों धर्म के नाम पर हिंसायें होती है? फिर क्यों हिन्दू और मुस्लिम के नाम पर दंगे होते हैं। ज्यादातर दंगों के पीछे धर्म के धंधेबाजों का ही हाथ होता है।
बिडम्बना यह है कि ब्राह्मणी धर्म ग्रन्थों में ऐसे विधान और कथाएं भरी पड़ी है। जिनके मुताबिक आप चाहे जितना भी पाप कर चुके हों। परमात्मा के नाम का जप कर ले। ईश्वर की प्रार्थना कर ले सारे पाप धुल जायेंगे। पर हकीकत में जो जैसा करता है। उसको उसका फल मिलता है। देखा जाये तो धर्म की उत्पत्ति का आधार भय है। व्यक्ति जब खुद को असहाय और असुरक्षित महसूस करता है तो वह धर्म की तरफ मुखातिब होता है। भले ही घर के बड़े-बुजुर्ग या धर्म पुरोहित यह कह कर व्यक्ति को धार्मिक कर्मकाण्डों के लपेटे में ले लेते हैं कि इससे उन्हें शक्ति मिलेंगी। वे मजबूत बनेंगे। मगर सच तो यह है कि इससे सिर्फ परावलंबन की मनोवृत्ति मजबूत होती है। धर्म के तथाकथित ठेकेदार इन्सान की इसी कमजोरी का फायदा उठाते हैं। वे एक ऐसा वर्ग तैयार करना चाहते हैं, जो उन्हें भरपूर समर्थन दे, ताकि उनका खर्चा-पानी चलता रहे। धर्म व्यक्ति को डरपोक तो बना सकता है। मगर उसकी प्रवृत्ति को बदल नहीं सकता। ज्यादातर लोग सोचते हैं कि जिन्दगी में जितना हासिल हो सके उतना हासिल कर लो। इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। कुछ धर्मस्थलों में जाकर हाथ बांधे ईश्वर से अपनी इच्छा मनवाने का प्रयास करते हैं तो कुछ हाथें में हथियार थामकर मन चाही चीजें दूसरों से छीन लेते हैं। ये है ब्राह्मण धर्म का इतिहास। लेकिन मूलनिवासी बहुजन समाज ब्राह्मण धर्म को हिन्दू धर्म मानता है, लेकिन उसे ये नहीं पता है कि हिन्दू नाम का कोई धर्म ही नहीं है। जिसे हम हिन्दू धर्म कहते हैं।, वह ब्राह्मण धर्म है, और ब्राह्मण धर्म नाम का कोई धर्म ही नहीं है, बल्कि यह मूलनिवासियों को गुलाम बनाने का षड्यंत्र है। इसलिए मूलनिवासी बहुजन समाज को ब्राह्मण धर्म को ध्वस्त करने के लिए भारत मुक्ति मोर्चा के द्वारा चलाये जा रहे राष्ट्रव्यापी जन-आन्दोलन में तन-मन-धन से साथ सहयोग देने की जरूरत है। तभी हम अपनी आजादी को हासिल कर सकते हैं। -जय मूलनिवासी
सुनील कुमार
(इलाहाबाद)
हमारा मूलनिवासी समाज धर्म की गहरायी में उतर ही नहीं पाता। आधे-अधूरे विश्वास के साथ वह अच्छे-बूरे में फर्क नहीं कर पाता और इसी कमोवेश में धर्म के साये में अधर्म पनपने लगता है। कोई शक नहीं कि भारत हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, चाहे मंहगाई का हो। या हिंसा का या लूटमार का या धोखाधड़ी का हो, अगर हम अपराध क्षेत्र की ओर देखें तो राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरों की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत हत्याओं के मामले में भी नम्बर वन हैं। जो संख्या दूसरे देशों के मुबाकले सबसे ज्यादा है। प्रश्न यह उठता है कि भारत जैसा धर्मपरायण देश जहाँ धर्मभीरु लोगों की पूरी फौज है। ऐसी वारदातों में इतना आगे कैसे बढ़ गया? धर्म की नज़र से देखें तो हत्या, बलात्कार, चोरी ऐसा महापाप है जो व्यक्ति को पतन और नर्क की खाँई में धकेलता है। जाहिर है रात-दिन धर्म के पोथे खोलकर बैठे ब्राह्मणवादी धर्म पुरोहितों के उपदेशों का असर ज्यादातर होता ही नहीं। इसी तरह से विवाह को धार्मिक अनुष्ठान मानने वाले इस रिश्ते को जन्म जन्मातर का संबंध बताने वाला धर्म तब कहाँ रहता है? जब पति-पत्नी एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं? आग की जिन लपटों के चारों तरफ फेरे दिलाकर ब्राह्मण पुरोहित नवदंपत्ति को एक-दूसरे का साथ देने का वचन दिलाते हैं। क्यों दहेज के नाम पर उन्हीं लपटों में लड़की को जलाकर मार दिया जाता है? छोटी-छोटी बातों पर धार्मिक स्थलो और पण्डे-पुजारियों का चक्कर लगाने वाले लोग अपने को बड़े-बड़े धोखे देने से बाज नहीं आते। ब्राह्मण धर्म का हाल तो यह है कि लोग किसी काम में सफल होने की मनौती मांगते हैं। बाद में चढ़ावा चढ़ाकर अपनी मनौती पूरी करते हैं। क्या यह एक तरह से ईश्वर को घूस देने की कवायद नहीं? ऐसे तो हर धर्म व्यक्ति को सदाचार, ईमानदारी और अहिंसा के मार्ग पर चलने का पाठ पढ़ाता है। फिर क्यों रिश्तों का खून करते वक्त और मानतवा की धज्जियाँ उड़ाते वक्त लोग अपनी धर्म ग्रन्थों का ध्यान नहीं करते? लड़कियों के पहनावे को लेकर ब्राह्मण धर्म गुरूओं द्वारा फतवा जारी किये जाते हैं।
धर्म और नीति की दुहाईयाँ दी जाती है। सदन में हंगामा खड़ा हो जाता है, तो धर्म उसकी सुरक्षा के लिए आगे क्यों नहीं आता? जिस महिला को धार्मिक कर्मकाण्डों के दौरान बराबरी के आसन पर बिठाया जाता है। जिसके बगैर कोई धार्मिक अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता उसे ही घर में कभी समान दर्जा क्यों नहीं मिलता। आये दिन वह घरेलू हिंसा का शिकार बनती है क्यों? पूर्वजों के लिए दान, तप, पूजा कराने वाला व्यक्ति जीते जी अपने माँ-बाप की सेवा नहीं करता। दावा किया जाता है कि ब्राह्मण धर्म अहिंसा का पाठ बढ़ाता है। फिर क्यों धर्म के नाम पर हिंसायें होती है? फिर क्यों हिन्दू और मुस्लिम के नाम पर दंगे होते हैं। ज्यादातर दंगों के पीछे धर्म के धंधेबाजों का ही हाथ होता है।
बिडम्बना यह है कि ब्राह्मणी धर्म ग्रन्थों में ऐसे विधान और कथाएं भरी पड़ी है। जिनके मुताबिक आप चाहे जितना भी पाप कर चुके हों। परमात्मा के नाम का जप कर ले। ईश्वर की प्रार्थना कर ले सारे पाप धुल जायेंगे। पर हकीकत में जो जैसा करता है। उसको उसका फल मिलता है। देखा जाये तो धर्म की उत्पत्ति का आधार भय है। व्यक्ति जब खुद को असहाय और असुरक्षित महसूस करता है तो वह धर्म की तरफ मुखातिब होता है। भले ही घर के बड़े-बुजुर्ग या धर्म पुरोहित यह कह कर व्यक्ति को धार्मिक कर्मकाण्डों के लपेटे में ले लेते हैं कि इससे उन्हें शक्ति मिलेंगी। वे मजबूत बनेंगे। मगर सच तो यह है कि इससे सिर्फ परावलंबन की मनोवृत्ति मजबूत होती है। धर्म के तथाकथित ठेकेदार इन्सान की इसी कमजोरी का फायदा उठाते हैं। वे एक ऐसा वर्ग तैयार करना चाहते हैं, जो उन्हें भरपूर समर्थन दे, ताकि उनका खर्चा-पानी चलता रहे। धर्म व्यक्ति को डरपोक तो बना सकता है। मगर उसकी प्रवृत्ति को बदल नहीं सकता। ज्यादातर लोग सोचते हैं कि जिन्दगी में जितना हासिल हो सके उतना हासिल कर लो। इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। कुछ धर्मस्थलों में जाकर हाथ बांधे ईश्वर से अपनी इच्छा मनवाने का प्रयास करते हैं तो कुछ हाथें में हथियार थामकर मन चाही चीजें दूसरों से छीन लेते हैं। ये है ब्राह्मण धर्म का इतिहास। लेकिन मूलनिवासी बहुजन समाज ब्राह्मण धर्म को हिन्दू धर्म मानता है, लेकिन उसे ये नहीं पता है कि हिन्दू नाम का कोई धर्म ही नहीं है। जिसे हम हिन्दू धर्म कहते हैं।, वह ब्राह्मण धर्म है, और ब्राह्मण धर्म नाम का कोई धर्म ही नहीं है, बल्कि यह मूलनिवासियों को गुलाम बनाने का षड्यंत्र है। इसलिए मूलनिवासी बहुजन समाज को ब्राह्मण धर्म को ध्वस्त करने के लिए भारत मुक्ति मोर्चा के द्वारा चलाये जा रहे राष्ट्रव्यापी जन-आन्दोलन में तन-मन-धन से साथ सहयोग देने की जरूरत है। तभी हम अपनी आजादी को हासिल कर सकते हैं। -जय मूलनिवासी
सुनील कुमार
(इलाहाबाद)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें