शुक्रवार, 9 मई 2014

स्त्रियों को अपंग बनाने की दर्दनाक प्रथा!


स्त्रियों को अपंग बनाने की दर्दनाक प्रथा!

rape-file_5औरतों के प्रति दुनिया के हर समाज में आदि काल से भेदभाव रहा है, जो वहां की अलग-अलग प्रथाओं में दृष्टिगोचर भी होता रहा है। ऐसे ही चीनी समाज में जिंदगी भर के लिए महिलाओं को अपंग बनाने की प्रथा रही है। बेटी के दो साल का होते ही उसके पैर बांध दिए जाते थे ताकि वह बड़े न हो सकें और पुरुषों को आकर्षित कर सकें। इसकी वजह से औरतें ताउम्र एक अपाहिज की तरह जीवन जीती थी।
पैरों को बांधकर पत्‍थर से कुचल दिया जाता था
बेटी जब दो साल की होती थी तो उसके पैर बांध दिए जाते थे। एक बीस फीट लंबा सफेद कपड़ा लड़कियों के पैरों पर लपेटा जाता था। अंगूठे के अलावा पैर की सभी अंगुलियों को भीतर की तरफ मोड़ते हुए कपड़ा लपेटा जाता था। फिर लपेटे हुए पैर के उभरे हिस्‍से को एक बड़े पत्‍थर से कुचल दिया जाता था और छोटी बच्चियां दर्द से बिलबिला उठती थीं।
आवाज दबाने के लिए मुंह में कपड़ा ठूंसा जाता था
बेटियां जब दर्द से चीखती थीं तो उनकी माएं उनका चीखना-चिल्‍लाना बंद करने के लिए उनके मुंह में कपड़ा ठूंस देती थी। पैर को पत्‍थर से कुचलने की यह क्रिया कोई एक दिन नहीं, बल्कि बार-बार वर्षों तक दोहराई जाती थी। पैरों की सारी हड्डियां कुचल देने के बाद भी पैरों को मोटे कपड़े में दिन-रात बांध कर रखना पड़ता था, क्‍योंकि जैसे ही पैरों को कपड़े के बंधन से आजार किया जाता था, फौरन बढ़ना शुरू कर देते थे।
परिवार की समृद्धि और स्‍त्री समर्पण के प्रतीक थे ये अपाहिज पैर!
बेटियां कराहती रहती थीं और हाथ जोड़कर अपनी माओं से मिन्‍नत करती थीं कि उनके पैरों को खोल दिया जाए, लेकिन माएं भी रोतीं लेकिन उनके पैरों को नहीं खोलती थीं। माएं अपनी मजबूरी दर्शातीं और कहतीं, यदि उन्‍होंने उनके पैरों को खुला छोड़ दिया तो ये पैर उसकी सारी जिंदगी बर्बाद कर देंगे। उनकी भविष्‍य की खुशी उनके पैर को कुचलने में ही है। कुचले पैर पारिवारिक समृद्धि और स्‍त्री के समर्पण के प्रतीक थे।
मां की दया बेटियों पर भारी पड़ती थी
कभी-कभी किसी मां को अपनी बेटी पर तरस आ जाता और वह बंधी हुई पट्टियां खोल देती। वही बेटी बड़ी होने पर जब पति और परिवार की अवहेलना और समाज के तिरस्‍कार का पात्र बनतीं तो वह अपनी मां को इतना कमजोर होने के लिए कोसती।
दुल्‍हन का स्‍कर्ट उठाकर होता था पैरों का निरीक्षण
उन दिनों जब भी किसी लड़की की शादी होती तो सबसे पहले दुल्‍हे के परिवार वाले उस पैरों का मुआयना करते। बड़े पैर, यानी औसत साइज के पैर देखकर ससुराल वालों को सबके सामने शर्मिंदा होना पड़ता। सास घर आई बहू की लंबी स्‍कर्ट उठाकर पहले उसके पांव देखती और अगर पांव तीन-चार इंच से लंबे हुए तो वह तिरस्‍कार की मुद्रा में स्‍कर्ट को नीचे उतारकर उसे अकेले सब रिश्‍तेदारों की आलोचना भरी निगाहों का शिकार होने के लिए छोड़कर नाराजगी से कमरे से बाहर चली जाती। वे रिश्‍तेदार लड़की के पैरों को हिकारत से घूरते और अपनी नाखुशी जाहिर करते हुए उसे अपमानित करते।
पुरुषों को उत्‍तेजित करते थे महिलाओं के ये बंधे पैर!
करीब एक हजार साल पहले किसी चीनी सम्राट के हरम की किसी महिला द्वारा इसकी शुरुआत माना जाता है। छोटे-छोटे पैरों पर बत्‍तखों की तरह फुदक-फुदक कर चलती हुई औरतें न सिर्फ पुरुषों के लिए उत्‍तेजक मानी जाती थी, बल्कि पुरुष इन छोटे बंधे हुए पैरों के साथ खेलते हुए उत्‍तेजित होते थे, क्‍योंकि वे पैर हमेशा बेहद खूबसूरत कसीदेदार जूतों से ढके रहते थे।
पट्टियां खोलते ही दुर्गंध से भर उठता था कमरा
युवा होने के बाद भी औरतें अपने पैरों की पट्टियां खोल नहीं सकती थीं, क्‍योंकि उन्‍हें खोलते ही पैर बढ़ना शुरू कर देते थे। इन पट्टियों को सिर्फ थोड़ी देर के लिए रात को सोते समय ढीला कर दिया जाता था और नरम सोल वाले जूते पहन लिए जाते थे। पुरुष कभी इन पैरों को नंबा नहीं देख पाते थे, क्‍योंकि पट्टियां खोलते ही गली हुई त्‍वचा की सड़ांध चारों और दुर्गंध बिखेरती थी।
1917 तक चीन में चलती रही थी यह प्रथा
बुढ़ापे तक महिलाएं इस बंधे हुए पैर के दर्द से कराहती रहती थीं। पैरों के उभरे हुए हिस्‍से की कुचली हुई हड्डियों में तो दर्द होता ही था, उससे भी ज्‍यादा तकलीफ अंगुलियों के नाखूनों में होती थी। नीचे की तरफ लगातार मोड़ने के कारण उनके नाखुन पीछे की ओर बढ़ गए होते थे। 1917 तक यह प्रथा चीन में चल रही थी। उसके बाद ही इस प्रथा का बहिष्‍कार किया गया।
स्रोत: जुंग चांग की सर्वाधिक चर्चित कृति ‘वाइल्‍ड स्‍वॉन्‍स’(Wild Swans: Jung Chang) कौटुंबिक आत्‍मकथा है, जो तीन पीढ़ी की स्त्रियों का जीवन समेटती हैं। इसमें लेखिका की दादी, मां और खुद लेखिका शामिल हैं। चीन में प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद इसकी 10 मिलियन से अधिक प्रतियां बिकीं।
ये किताब चीन के तात्‍कालिक सामाजिक-सांस्‍कृतिक परिवेश में स्‍त्री के जीवन को दहला देने वाला चित्र प्रस्‍तुत करती हैं। इस पुस्‍तक को ‘एन सी आर बुक अवॉर्ड’ और ‘ब्रिटिश बुक ऑफ द ईयर’ जैसे दो बड़े पुरस्‍कार मिल चुके हैं।
Related posts:
  1. छह परिजनों समेत आठ लोगों की दर्दनाक मौत
  2. डाक्टर-इंजीनियर बनाने का दबाव बच्चे के लिये घातक
  3. दुष्कर्मियों को नपुंसक बनाने की मांग
  4. पत्नी को बहन बनाने का दबाव डाला
  5. रिलेशनशिप को मजबूत बनाने के लिये ना करें ऐसा

कोई टिप्पणी नहीं:

 रानी फाॅल / रानी जलप्रपात यह झारखण्ड राज्य के प्रमुख मनमोहन जलप्रपात में से एक है यहाँ पर आप अपनी फैमली के साथ आ सकते है आपको यहां पर हर प्...