नशीली दवाओं का बढ़ता दुरूपयोग
आज के दिन कोई सरकारी छुट्टी तो नहीं है, और न ही सरकार ने ऐसी कोई घोषणा की है. परन्तु फिर भी आज एक महत्त्वपूर्ण दिन है. जिससे याद रखना हमारे जैसे देश के लिए बहुत जरुरी है, आज विश्वभर में International Day against Drug Abuse मनाया जा रहा है. यह दिवस नशीली दवाओं के खिलाफ़ जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है. 1987 में पहली बार यह दिवस अस्त्तित्व में आया था. हर साल अपनी अलग थीम के माध्यम से जनता में जागरूकता पैदा करता है, ताकि लोग नशीली दवाओं के सेवन से बच सकें. इस साल की थीम है, “आशा का एक सन्देश: नशीली दवाओं से होने वाले विकारों को रोका जा सकता है,” नशा एक बुरी लत है, जिसकी लत लग जाने के बाद उसकी गिरफ्त से अपने को छुड़ाना नामुमकिन है, यह दुख की बात है कि आज हमारे देश की एक बड़ी जनसंख्या अपने आप को नशे के कारण नष्ट कर रही है। इसका सबसे बड़ा शिकार हमारा युवा वर्ग है, वही युवा जिसके हाथों में देश के भविष्य की बागडोर है, जिन्हें भारत निर्माण करना है, देश का संचालन करना है। आज वही युवा पीढ़ी नशे के अंधकार में अपने जीवन को धकेल रहा हैं। अगर मादक पदार्थों की बात करें, तो नशीली दवाओं का सेवन सभी वर्गों में बढ़ता चला जा रहा है। नशीली दवाओं की बढ़ती लत पूरी पीढ़ी के एक बड़े हिस्से को निगलने को तैयार है। यह सामाजिक और मानवीय स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। हमारी युवा पीढ़ी नशीली दवाओं की ओर बड़ी तेजी से आकर्षित हो रही है, इसका मुख्य कारण यह है कि ये नशीली दवाएं (जो प्रतिबंधित भी हैं और जिनकी देश में बड़े पैमाने पर तस्करी भी हो रही है) अन्य मादक पदार्थों से कम मूल्य पर सरलता से उपलब्ध हैं। जिस कारण युवा पीढ़ी इनकी ओर तेजी से आकर्षित हो रही है। अगर नशे की लत और मादक द्रव्यों के बढ़ते उपयोग के दुष्परिणाम पर नज़र दौड़ायें, तो हम खुली आँखों से साफ़ तौर पर देख सकते हैं कि आज की यह भयावह स्थिति आगे के लिए खतरनाक हालात पैदा कर सकती है, ऐसे में यह स्थिति सामाजिक व्यवस्था और सामाजिक एवं वैयक्तिक स्वास्थ्य को लेकर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह होगी।
एक सरकारी संगठन द्वारा किये गए सर्वे के आंकड़ों को देखें तो भी यही बात सामने आती है कि बच्चों और किशोरों के बीच मादक पदार्थों के सेवन की घटनाएं, सामान्य से काफी अधिक है। जोकि हमारे जैसे विकासशील देश के लिए चिंताजनक है। देश में 15 वर्ष से कम उम्र के लगभग 63.6 फीसदी बच्चे मादक पदार्थों से ग्रस्त पाए गए है। वहीँ एक और सर्वेक्षण के अनुसार देश में 20 वर्ष से कम आयु वर्ग के युवा दवा और मादक द्रव्यों के सेवन में शामिल हैं ऐसे युवाओं की संख्या लगभग 13.1 फीसदी है। एक सर्वेक्षण यह भी दर्शाता है कि भारत में युवाओं द्वारा खासतौर पर हेरोइन, अफीम, शराब, भांग और अन्य नशीली दवाएं (जो सरकार द्वारा प्रतिबंधित श्रेणी में रखी गयी हैं) का इस्तेमाल किया जाता है। इन नशीली दवाओं में मुख्य रूप से फेंसीड्रिल सीरप, स्पॉस्मोशिप टेबलेट-कैप्सूल, प्रोक्सीवीन कैप्सूल रेक्सकॉफ व कोरेक्स सीरप शामिल हैं, इसके अलावा फ्लूड, डीजल और पेट्रोल को भी मादक द्रव्यों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
आज हमारे युवा अपने जीवन को पूर्ण रूप से तबाह करने की राह पर चल दिए हैं, सभी राज्यों में कुल मिलाकर देखें तो पता चलता है कि नशे से पीड़ित लोगों में 0.4 और 4.6 फीसदी मामलों में बच्चे शामिल हैं। साथ ही भारत में लगभग 55,000 बच्चे प्रतिदिन तम्बाकू के शिकार होते हैं, और अगर वहीँ अमेरिका की बात करें तो केवल 3000 बच्चे ही इस लत से ग्रस्त होते हैं, जबकि अन्य विकसित देशों में तो युवाओं में नशे की लत उनकी संस्कृति और जीवन शैली से जुडी है। परन्तु भारतीय संस्कृति में नशा करना वर्जित है, तो साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि देश में नशा सेवन करने की प्रवृति पश्चिमी जीवन शैली से मिली है। पश्चिमी जीवन शैली के प्रति प्रेम इसका एक कारण हो सकता है। इसके अलावा आधुनिकीकरण और खुले समाज की नीति भी उसके लिए जिम्मेदार हैं।
अगर हम भारत के राज्यों के बात करें तो पड़ोसी देशों की सीमाओं से लगे राज्यों में तो मामला बहुत गम्भीर रूप ले चुका है, खासकर अगर पंजाब को देखें तो पता चलता है कि देश के सबसे अधिक युवा पंजाब में ही हैं जो नशीली दवाओं के सेवन से अपने को बर्बाद करने की राह पर चल पड़े हैं। नशीली दवाओं की तस्करी और आसानी से इन नशीले पदार्थों की उपलब्धता, युवाओं को किसी लायक नहीं छोड़ रही है, कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हालात को काबू करने की जरूरत है। अब यहाँ एक सवाल खड़ा हो जाता है कि सरकार क्या कर रही है? दरअसल वास्तविकता तो यह है कि मादक द्रव्यों का उत्पादन एवं विक्रय राजकीय राजस्व प्राप्ति का सशक्त साधन बनता जा रहा है। जिसके मोह से सरकार मुक्त नहीं हो पा रही है। इसलिए अब तक इसे काबू करने की कोई नीति नहीं बनाई गई है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा कुछ समय पहले नशीली दवाओं को लेकर एक राष्ट्रीय नीति बनाई जाने की बात हो रही थी, जो आज तक बन नहीं पायी है। हालांकि (एनडीपीएस) स्वापक औषधि और मन: प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 अस्तित्व में है, परन्तु यह कारगर साबित नहीं हो पाया, इसलिए एक नई नीति को बनाने की बात हो रही थी, जिसे इस एक्ट के तहत शामिल किया जाना था।
जो भी हो सरकार के साथ-साथ हमारे भी कुछ कर्त्तव्य है, जो हमें पूरे करने चाहिए, सबसे पहले हमें युवाओं को नशे से होने वाली हानियों से अवगत करना चाहिए, नशे का विरोध बड़े पैमाने पर सामाजिक तौर पर होना चाहिए, हमें युवाओं को नशा न करने के लिए प्रेरित करना चाहिए, उन कारणों का पता कर उन्हें नष्ट करना चाहिए, जिसके कारण युवा नशे कि ओर निरंतर बढ़ रहे हैं। साथ ही सरकार को भी नशे से सम्बंधित सभी मादक पदार्थों पर रोक लगनी चाहिए, प्रतिबंधित दवाओं की तस्करी पर सख्ती से लगाम लगाने के लिए कड़े प्रयास करने चाहिए, ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए जो युवाओं की काउंसलिंग कर उन्हें नशे से दूर रहने के लिए प्रेरित करें, साथ ही सरकार को नशे से सम्बंधित विज्ञापनों पर भी रोक लगानी चाहिए। तभी जाकर हम यह कह सकते हैं कि देश नशामुक्त हो रहा है, वर्ना हालात तो हम सबके सामने हैं।
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