पाकिस्तान के पेशावर में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकियों ने एक स्कूल पर हमला कर करीब 150 लोगों की हत्या कर दी. साथ ही इस हमले में सैकडों लोग घायल हुए. पाकिस्तान आतंकियों का गढ़ बन चुका है. अब तक पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठन भारत और दूसरे देशों के नागरिकों को निशाना बनाते रहे लेकिन इस बार उन्होंने पाकिस्तान के पेशावर में आतंक का ऐसा खेल खेला जिससे इंसानियत मर गई. तमाम मीडिया रिपोर्ट्स, अखबारों और चश्मदीदों ने स्कूल के अंदर की जो कहानी बताई उससे हर इंसान का दिल दहल उठा. पेश है, पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल में हुए हमले की पूरी कहानी.
16 दिसंबर के उस दिन, पाकिस्तान के पेशावर शहर में सब कुछ नार्मल था. किसी को इस बात की भनक तक नहीं थी कि आने वाले चंद घंटो में पेशावर शहर में मौत का ऐसा तांडव होने वाला है जो पूरी दुनिया को हिलाकर रख देगा. शहर के कैंट इलाके के बीचों-बीच आर्मी पब्लिक स्कूल स्थित है. यहीं पास में सेना के कोर कमांडर का दफ्तर है. फ्रंट गेट पर सिक्योरिटी थी. गेट पर स्कूल का मोटो लिखा है राइज एंड शाइन. मतलब यह कि बड़ा बनो और पूरी दुनिया में छा जाओ. यह किसी को पता नहीं था कि स्कूल के बच्चे न तो बड़े हो पायेंगे और न ही अपनी चमक से दुनिया को रौशन कर पायेंगे. स्कूल के अंदर हर दिन की तरह बच्चे अपनी-अपनी क्लास में पढ़ रहे थे. कुछ क्लास के बच्चों की परीक्षा थी. कुछ बच्चे परीक्षा खत्म कर धूप में हंसी मजाक कर रहे थे. स्कूल के ऑडिटोरियम में कुछ बच्चों को फर्स्ट एड की ट्रेनिंग दी जा रही थी. ज्यादातर बच्चे क्लास रूम में थे. टीचर्स उन्हें पढ़ा रहे थे.
इस आर्मी पब्लिक स्कूल के पीछे एक कब्रिस्तान है. कब्रिस्तान से सटा एक मोहल्ला है जिसे पेशावर में बिहारी कॉलोनी कहा जाता है. पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक आतंकी एक कार में आए थे. ये कार इस्लामाबाद से चोरी की गई थी. लोगों का ध्यान हटाने के लिए आतंकियों ने स्कूल के पीछे बिहारी कॉलोनी के पास कार में आग लगा दी थी और कब्रिस्तान की ओर से स्कूल की तरफ बढ़ गए. करीब पौने बारह बजे कब्रिस्तान की ओर से यानि स्कूल के पीछे की दीवार को फांदकर तहरीक -ए-तालिबान पाकिस्तान के छह आतंकी स्कूल परिसर में दाखिल हुए. आतंकियों को पता था कि उन्हें क्या करना है. उन्हें न किसी को धमकी देनी थी, न ही किसी को अगवा करना था. उन्हें सिर्फ मौत का खेल खेलना था. इसलिए स्कूल परिसर में दाखिल होते ही उन्हें जहां कहीं भी बच्चे नज़र आये वो उन पर गोलियां दागने लगे.
अजमल खान और आमिर अमीन दोनों परीक्षा देने के बाद कॉलेज के कॉरिडोर मे टहल रहे थे. अचानक से उन्हें गोलियों की आवाज सुनाई दी. दोनों ने पलटकर देखा तो उन्हें दो आतंकी नज़र आये जो गोलियां चलाते और चिल्लाते हुये उनकी तरफ बढ़ रहे थे. दोनों इंटरमीडिएट के छात्र थे. उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि स्कूल पर आतंकियों का हमला हो गया है. दोनों भागने लगे. दोनों केमेस्ट्री लैब में जाकर छिप गये, लेकिन एक आंतकी उनके पीछे-पीछे केमेस्ट्री लैब तक पहुंच गया और अंधाधुंध गोलियां चलाने लगा. आमिर पीछे था, अजमल सामने था, गोलियां अजमल को लग रहीं थीं, खून के छींटे आमिर के शरीर पर पड़ रहे थे. जब आतंकी को यह भरोसा हो गया कि दोनों मारे गये हैं तो वह वहां से चला गया. आमिर की गोद में अजमल की जान गई. वह सदमे में था. वह अपनी जगह से हिल भी नहीं सकता था क्योंकि उसे डर था कि कहीं आतंकी फिर से वापस न आ जायें. आमिर को भी गोलियां लगी थीं. उसके शरीर से भी खून निकल रहा था. दर्द और सदमे को ये बच्चा बर्दाश्त नहीं कर सका और बेहोश हो गया. अब वह अस्पताल में है, सहमा हुआ है, दोस्तों को याद करता है और केमेस्ट्री लैब की घटना को याद करता है. उसने बताया कि केमेस्ट्री लैब में 4 टीचर और 6 लड़के थे जो वहां छिपने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन आतंकियों ने सबको मार डाला. मरने वालों के सिर पर गोलियां लगी थीं.
इस आर्मी पब्लिक स्कूल के पीछे एक कब्रिस्तान है. कब्रिस्तान से सटा एक मोहल्ला है जिसे पेशावर में बिहारी कॉलोनी कहा जाता है. पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक आतंकी एक कार में आए थे. ये कार इस्लामाबाद से चोरी की गई थी. लोगों का ध्यान हटाने के लिए आतंकियों ने स्कूल के पीछे बिहारी कॉलोनी के पास कार में आग लगा दी थी और कब्रिस्तान की ओर से स्कूल की तरफ बढ़ गए. करीब पौने बारह बजे कब्रिस्तान की ओर से यानि स्कूल के पीछे की दीवार को फांदकर तहरीक -ए-तालिबान पाकिस्तान के छह आतंकी स्कूल परिसर में दाखिल हुए. आतंकियों को पता था कि उन्हें क्या करना है. उन्हें न किसी को धमकी देनी थी, न ही किसी को अगवा करना था. उन्हें सिर्फ मौत का खेल खेलना था. इसलिए स्कूल परिसर में दाखिल होते ही उन्हें जहां कहीं भी बच्चे नज़र आये वो उन पर गोलियां दागने लगे.
अजमल खान और आमिर अमीन दोनों परीक्षा देने के बाद कॉलेज के कॉरिडोर मे टहल रहे थे. अचानक से उन्हें गोलियों की आवाज सुनाई दी. दोनों ने पलटकर देखा तो उन्हें दो आतंकी नज़र आये जो गोलियां चलाते और चिल्लाते हुये उनकी तरफ बढ़ रहे थे. दोनों इंटरमीडिएट के छात्र थे. उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि स्कूल पर आतंकियों का हमला हो गया है. दोनों भागने लगे. दोनों केमेस्ट्री लैब में जाकर छिप गये, लेकिन एक आंतकी उनके पीछे-पीछे केमेस्ट्री लैब तक पहुंच गया और अंधाधुंध गोलियां चलाने लगा. आमिर पीछे था, अजमल सामने था, गोलियां अजमल को लग रहीं थीं, खून के छींटे आमिर के शरीर पर पड़ रहे थे. जब आतंकी को यह भरोसा हो गया कि दोनों मारे गये हैं तो वह वहां से चला गया. आमिर की गोद में अजमल की जान गई. वह सदमे में था. वह अपनी जगह से हिल भी नहीं सकता था क्योंकि उसे डर था कि कहीं आतंकी फिर से वापस न आ जायें. आमिर को भी गोलियां लगी थीं. उसके शरीर से भी खून निकल रहा था. दर्द और सदमे को ये बच्चा बर्दाश्त नहीं कर सका और बेहोश हो गया. अब वह अस्पताल में है, सहमा हुआ है, दोस्तों को याद करता है और केमेस्ट्री लैब की घटना को याद करता है. उसने बताया कि केमेस्ट्री लैब में 4 टीचर और 6 लड़के थे जो वहां छिपने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन आतंकियों ने सबको मार डाला. मरने वालों के सिर पर गोलियां लगी थीं.
एक आतंकी केमिस्ट्री लैब में घुसा था लेकिन बाकी आतंकी दूसरी कक्षाओं की ओर बढ़ गये. हर क्लास की एक ही कहानी थी. आतंकी क्लास में घुसते और अंधाधुंध गोलियां चलाने लगते. गोलियों की आवाज सुनकर बच्चे दहशत में आ जाते. बच्चों के सिर में गोली, छाती में गोली, आंख में गोली. जो बच्चा इन आतंकियों के सामने आया उसे इन हैवानों ने छलनी कर दिया. हादसे में बचे एक बच्चे ने बताया कि आतंकी उसकी क्लास में घुसते ही गोलियां चलाने लगे.
एक आतंकी केमिस्ट्री लैब में घुसा था लेकिन बाकी आतंकी दूसरी कक्षाओं की ओर बढ़ गये. हर क्लास की एक ही कहानी थी. आतंकी क्लास में घुसते और अंधाधुंध गोलियां चलाने लगते. गोलियों की आवाज सुनकर बच्चे दहशत में आ जाते. बच्चों के सिर में गोली, छाती में गोली, आंख में गोली. जो बच्चा इन आतंकियों के सामने आया उसे इन हैवानों ने छलनी कर दिया. हादसे में बचे एक बच्चे ने बताया कि आतंकी उसकी क्लास में घुसते ही गोलियां चलाने लगे. पूरी क्लास के सामने महिला टीचर के शरीर में आग लगा दी. फिर गोलियों से उसके जलते हुए शरीर को भून डाला. चौथी क्लास के एक छात्र जिशान ने बताया कि आतंकी क्लास में घुसते ही गोलियां बरसाने लगे. सबसे पहले टीचर को निशाना बनाया, इसके बाद बंदूक की नली बच्चों की तरफ मोड़ दी. क्लास रूम में बच्चे अपनी-अपनी सीटों पर बैठे थे इसलिए ये दरिंदे छोटे-छोटे मासूम बच्चों के सीने और सिर को निशाना बनाकर गोलियां दाग रहे थे. कुछ कक्षाओं में भगदड़ मच गई. इस दौरान कुछ बच्चे जमीन पर गिर गए तो इन कायरों ने उनकी पीठ पर गोलियां दाग दीं.
चौदह साल का शाहनवाज़ खान अस्पताल में भर्ती है. वो अपनी क्लास की कहानी बताता है जिससे पता चलता है कि आंतकी कितने निर्दयी और क्रूर थे. उसकी क्लास में टीचर इंग्लिश ग्रामर पढ़ा रहे थे. जब अचानक से गोलियों की आवाज सुनाई दी, तो टीचर ने कहा कि शायद यह आवाज़ ऑडिटोरियम में चल रहे फर्स्ट एड के डेमोंशट्रेशन से आ रही है. लेकिन जैसे ही गोलियों के साथ बच्चों की चीखें सुनाई दीं तो सब सहम गए. इसके बाद टीचर ने दरवाजे से बाहर झांककर देखा और घबराते हुए बच्चों से बेंच के नीचे छिप जाने को कहा. जब तक टीचर गेट बंद कर पाते, दरवाजे पर एक जोरदार धक्का लगा और वह जमीन पर गिर गए. शाहनवाज ने बताया कि इसके बाद दो आदमी हाथ में बंदूक लिए क्लास रूम में दाखिल हुए. दोनों ने आर्मी की ड्रेस पहन रखी थी. क्लास में घुसते ही एक आतंकी ने कहा कि सब शांत होकर बैठ जाओ और जैसा कहा जाये वैसा करो. इसके बाद एक आतंकी ने कहा कि आठ लोग जो यहां से बाहर जाना चाहते हैं अपने-अपने हाथ खड़े करें. इतना बोलते ही क्लास के सभी बच्चों ने अपने हाथ खड़े कर दिये. सभी बच्चे कांप रहे थे और डर के मारे सहमे हुए थे. इसके बात आतंकियों ने आठ बच्चों को चुना और उन्हें ब्लैक बोर्ड के सामने खड़ा कर दिया और कहा कि अपने दोस्तों को देखो. धक्का देकर टीचर को उनकी चेयर पर बैठाया और कहा कि अपने प्यारों को मरते हुए देखो. इसी तरह हमारे बच्चों को भी मारा जा रहा है. इतना कहते ही एक आतंकी ने आठों बच्चों के शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया. कुछ तो धड़ाम से जमीन पर गिर गये और कुछ दर्द से कराहते हुए मौत से जूझते रहे. जब तक उनकी मौत नहीं हो गई तब तक गोलियां चलती रहीं. इसके बाद दूसरे आतंकी ने कहा कि अब आठ और बच्चे मुझे चाहिए. कौन-कौन बाहर जाना चाहता है.
चौदह साल का शाहनवाज़ खान अस्पताल में भर्ती है. वो अपनी क्लास की कहानी बताता है जिससे पता चलता है कि आंतकी कितने निर्दयी और क्रूर थे. उसकी क्लास में टीचर इंग्लिश ग्रामर पढ़ा रहे थे. जब अचानक से गोलियों की आवाज सुनाई दी, तो टीचर ने कहा कि शायद यह आवाज़ ऑडिटोरियम में चल रहे फर्स्ट एड के डेमोंशट्रेशन से आ रही है. लेकिन जैसे ही गोलियों के साथ बच्चों की चीखें सुनाई दीं तो सब सहम गए.
अपने-अपने हाथ खड़े करो. इस बार क्लास में एक भी हाथ ऊपर नहीं उठा. इसके बाद आतंकी ने एक बच्चे को पकड़कर खींचने की कोशिश की. लेकिन उसे कुछ बच्चों ने पकड़ लिया. बच्चे आपस में एक दूसरे को पकड़े हुए थे. इसके बाद दोनों आतंकियों ने अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरू कर दीं. शाहनवाज को दो गोलियां लगीं. उसके क्लास के कई बच्चों की मौत हो गई. टीचर के कंधे में एक और छाती में एक गोली लगी, बावजूद इसके वह बच गए. उनका भी इलाज अस्पताल में चल रहा है. पत्रकारों ने जब उनसे बात की तो वह फफक-फफक कर रोने लगे. वह कहने लगे कि अल्लाह गवाह है कि मैंने अपने बच्चों की मदद करने की बहुत कोशिश की. लेकिन उन्हें बचा न सका.
सबसे ज्यादा मौतें ऑडिटोरियम के अंदर हुईं. यहां काफी बच्चे थे. यहां बच्चों को फर्स्ट एड की ट्रेनिंग दी जा रही थी. आतंकी यहां सबसे आखिर में पहुंचे थे. ऑडिटोरियम के पीछे का दरवाजा बंद था. आंतकी ऑडिटोरियम में सामने वाले दरवाजे से दाखिल हुए. सबसे ज्यादा खून खराबा ऑडिटोरियम के इसी दरवाजे पर हुआ. जब सुरक्षा अधिकारी वहां पहुंचे तो ऑडिटोरियम के गेट पर उन्होंने बच्चों की लाशों का ढेर देखा. बच्चे अपनी जान बचाकर ऑडिटोरियम से बाहर निकलना चाहते थे लेकिन आतंकियों की नज़र शायद उसी गेट पर लगी थी. जिस किसी ने भी ऑडिटोरियम से बाहर निकलने की कोशिश की, आतंकियों ने उसे मार गिराया. इसी वजह से गेट पर एक के ऊपर एक लाशें इकट्ठी होती गईं.
सोलह साल का शाहरुख उस वक्त ऑडिटोरियम में मौजूद था. उसने बताया कि अचानक से चार बंदूकधारी आतंकी ऑडिटोरियम में दाखिल हुए और वहां मौजूद बच्चों पर अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरू कर दिया. गोलियों की आवाज के बीच उसने अपने टीचर को यह चिल्लाते हुए सुना कि नीचे लेट जाओ. डेस्क के नीचे छिप जाओ. गोलियों की आवाज बंद होते ही शाहरुख को एक भारी सी आवाज सुनाई दी. उसने कहा कि बहुत सारे बच्चे बेंच के नीचे छिपे हैं मारो उन्हें. बेंच के नीचे गोलियां चलाओ. शाहरुख बेंच के नीचे छिपा था. उसने देखा कि दो काले जूते उसकी तरफ बढ़ रहे हैं. उसे समझ में आ गया कि ये जूते उन्हीं आतंकियों के हैं जो बच्चों पर गोलियां चला रहे हैं. शाहरुख के दोनों पैरों में गोलियां लगी थीं. घुटनों के नीचे उसे जोर का दर्द हो रहा था. उसने देखा कि काले जूते वाला शख्स बेंच के नीचे बच्चों को ढूंढ रहा था. बच्चों को देखते ही उनपर गोलियां दाग रहा था. शाहरुख के आखों के सामने मौत मंडरा रही थी लेकिन उसका दिमाग चल रहा था. उसने अपनी टाई निकाली और मोड़ कर अपने मुंह के अंदर ठूंस ली ताकि पैरों के दर्द की वजह से उसकी आह न निकले. वह आंखे बंद करके एक मुर्दा होने की एक्टिंग करने लगा. डर के मारे उसका शरीर कांप रहा था. आंख बंद करके वह फिर से गोली लगने का इंतजार करता रहा. कुछ देर बाद गोलियों की आवाज शांत हो गई. उसने आंखें खोलकर देखा तो आतंकी वहां से जा चुके थे. शाहरुख ने उठने की कोशिश की लेकिन उसके पैरों ने जवाब दे दिया. वह रेंगने लगा. रेंगते हुए जब वह ऑडिटोरियम से बाहर निकला और दूसरे कमरे में पहुंचा. वहां उसने स्कूल की एक महिला कर्मचारी को देखा, वह कुर्सी पर बैठी हुई थी और उसका शरीर जल रहा था. उसके जलते हुए शरीर से खून निकल रहा था. शाहरुख रेंगते हुए उस कमरे के दरवाजे के पीछे छिप गया और थोड़ी देर बाद बेहोश हो गया. जब उसकी आंखें खुलीं तो वह अस्पताल के बेड पर था.
स्कूल के अंदर आतंकी खून की होली खेल रहे थे और बाहर पाकिस्तानी आर्मी स्कूल के अंदर दाखिल होने की तैयारी कर रही थी. कैंट एरिया नजदीक था, इसलिए मदद समय पर पहुंच गई. स्कूल के बाहर के इलाके को आर्मी ने अपने नियंत्रण में ले लिया था. स्कूल के ऊपर हेलीकॉप्टर मंडराने लगे. आर्मी ने अंदर का जायजा लिया और आर्मी स्कूल के अंदर दाखिल हो गई. आतंकी जगह बदल-बदल कर आर्मी से लड़ते रहे. स्कूल परिसर के अंदर आर्मी ने एक तरफ से आतंकियों की खोज शुरू की. यही वह वक्त था जब स्कूल से घायल बच्चों और बच्चों की लाशों को बाहर भेजा जाने लगा. टीवी के जरिए पूरी दुनिया इस खौफनाक मंजर को देख रही थी. एक तरफ सेना बच्चों को अस्पताल भी भेज रही थी दूसरी तरफ आतंकियों के साथ उनकी झड़प भी जारी थी. आर्मी स्कूल के बाहर स्टूडेंट्स के अभिभावकों की भीड़ जमा थी. अपार हिम्मत वाले पिताओं का चेहरा सहमा हुआ नज़र आ रहा था. गोद सूनी हो जाने का खौफ स्कूल के बाहर खड़ी हर मां की आंखों में साफ-साफ नज़र आ रहा था. स्कूल के बाहर आलम यह था कि जिनके बच्चे इस स्कूल मे नहीं पढ़ते थे वह भी फूट-फूटकर रो रहे थे.
पाकिस्तानी एजेंसियों के हवाले से यह खबर आई कि हमलावर लगातार अपने गिरोह के सरगना से बात कर रहे थे. एक आतंकी ने अपने आकाओं से फोन पर बात कर यह पूछा कि सारे बच्चों को उन्होंने मार दिया है, अब उन्हें आगे क्या करना है? उन्हें आदेश मिला कि आर्मी भी स्कूल के अंदर दाखिल हो गई है आर्मी से लड़ो और उन्हें मारो. पकड़े जाने से पहले खुद को बम धमाके से उड़ा लो. आंतकवादियों ने अपने आकाओं के हर हुक्म का पालन किया और एक-एक करके छह में से चार आतंकियों ने आत्मघाती बम धमाके में खुद को मार डाला. अन्य दो आतंकियों को पाकिस्तान आर्मी के जवानों ने मार गिराया.
इस हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने ली. यह फजलुल्लाह का नेटवर्क है. सभी हमलावर तहरीक-ए-तालीबान पाकिस्तान के सदस्य थे. ये एक आतंकी संगठन है लेकिन ये खुद को इस्लामिक जिहाद करने वाले सैनिक मानते हैं. तहरीक-ए-तालिबान द्वारा घोषित तीन प्रमुख लक्ष्य इस प्रकार हैं: पाकिस्तान में शरिया क़ानून स्थापित करना, पाकिस्तान की सरकार के खिलाफ विद्रोह और अफ़ग़ानिस्तान में नाटो सेना के खिलाफ मुहिम चलाना. फजलुल्लाह के प्रवक्ता मोहम्मद खुरासानी के मुताबिक स्कूल पर हमला करके वे पाकिस्तान सरकार से बदला ले रहे हैं. यह नार्थ-वजीरिस्तान में चल रहे सैनिक ऑपरेशन और पुलिस कस्टडी में मारे गए तालिबानी साथियों की मौत का बदला है. स्कूल में हमला होने के 2 घंटे के अंदर ही तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने पेशावर हमले की जिम्मेदारी ले ली, नहीं तो पाकिस्तान में यह अफवाह फैलने लगी थी यह हमला भारत द्वारा प्रायोजित है. जिस वक्त स्कूल के अंदर आर्मी ऑपरेशन चल रहा था उस वक्त ही तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने यह भी कहा कि स्कूल में दाखिल आंतकवादी लगातार उनके संपर्क में हैं. पाकिस्तानी तालिबान ने यह भी कहा कि आंतकियों को ये हिदायत दी गई थी कि वे छोटे बच्चों को न मारें. अजीब बात है कि बड़ों को ढूंढने वह स्कूलों में जाते हैं. जब बच्चों को नहीं मारना था तो स्कूल में ये आतंकी क्या करने करने गये थे?
पाकिस्तान में इस हादसे को लेकर लोगों में बहुत नाराजगी है. पाकिस्तान सरकार की तरफ से आतंकवाद को जड़ से खत्म करने की बातें हो रही हैं. नोट करने वाली बात यह है कि तालिबान द्वारा स्कूल पर हमला करने का यह कोई पहला वाकया नहीं है. मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक पाकिस्तान में अब तक 1000 से ज्यादा स्कूलों पर हमले हो चुके हैं. सैकड़ों बच्चे और बच्चियों की मौत पहले भी हो चुकी है. लेकिन पाकिस्तान में आतंकी संगठन का वर्चस्व तब भी कायम था और आज भी कायम है. पेशावर हमले के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठता है क्या पाकिस्तान में आतंकवाद खत्म हो पाएगा? क्या पाकिस्तान में फल-फूल रहे आतंकी संगठनों का खात्मा हो पाएगा? क्या पाकिस्तान की आर्मी इन आतंकियों को पाकिस्तानी सरजमीं से बाहर फेंकने में कामयाब हो पायेगी? या यह घटना भी पिछले हजारों हमलों की तरह भुला दी जायेगी?
सबसे ज्यादा मौतें ऑडिटोरियम के अंदर हुईं. यहां काफी बच्चे थे. यहां बच्चों को फर्स्ट एड की ट्रेनिंग दी जा रही थी. आतंकी यहां सबसे आखिर में पहुंचे थे. ऑडिटोरियम के पीछे का दरवाजा बंद था. आंतकी ऑडिटोरियम में सामने वाले दरवाजे से दाखिल हुए. सबसे ज्यादा खून खराबा ऑडिटोरियम के इसी दरवाजे पर हुआ. जब सुरक्षा अधिकारी वहां पहुंचे तो ऑडिटोरियम के गेट पर उन्होंने बच्चों की लाशों का ढेर देखा. बच्चे अपनी जान बचाकर ऑडिटोरियम से बाहर निकलना चाहते थे लेकिन आतंकियों की नज़र शायद उसी गेट पर लगी थी. जिस किसी ने भी ऑडिटोरियम से बाहर निकलने की कोशिश की, आतंकियों ने उसे मार गिराया. इसी वजह से गेट पर एक के ऊपर एक लाशें इकट्ठी होती गईं.
सोलह साल का शाहरुख उस वक्त ऑडिटोरियम में मौजूद था. उसने बताया कि अचानक से चार बंदूकधारी आतंकी ऑडिटोरियम में दाखिल हुए और वहां मौजूद बच्चों पर अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरू कर दिया. गोलियों की आवाज के बीच उसने अपने टीचर को यह चिल्लाते हुए सुना कि नीचे लेट जाओ. डेस्क के नीचे छिप जाओ. गोलियों की आवाज बंद होते ही शाहरुख को एक भारी सी आवाज सुनाई दी. उसने कहा कि बहुत सारे बच्चे बेंच के नीचे छिपे हैं मारो उन्हें. बेंच के नीचे गोलियां चलाओ. शाहरुख बेंच के नीचे छिपा था. उसने देखा कि दो काले जूते उसकी तरफ बढ़ रहे हैं. उसे समझ में आ गया कि ये जूते उन्हीं आतंकियों के हैं जो बच्चों पर गोलियां चला रहे हैं. शाहरुख के दोनों पैरों में गोलियां लगी थीं. घुटनों के नीचे उसे जोर का दर्द हो रहा था. उसने देखा कि काले जूते वाला शख्स बेंच के नीचे बच्चों को ढूंढ रहा था. बच्चों को देखते ही उनपर गोलियां दाग रहा था. शाहरुख के आखों के सामने मौत मंडरा रही थी लेकिन उसका दिमाग चल रहा था. उसने अपनी टाई निकाली और मोड़ कर अपने मुंह के अंदर ठूंस ली ताकि पैरों के दर्द की वजह से उसकी आह न निकले. वह आंखे बंद करके एक मुर्दा होने की एक्टिंग करने लगा. डर के मारे उसका शरीर कांप रहा था. आंख बंद करके वह फिर से गोली लगने का इंतजार करता रहा. कुछ देर बाद गोलियों की आवाज शांत हो गई. उसने आंखें खोलकर देखा तो आतंकी वहां से जा चुके थे. शाहरुख ने उठने की कोशिश की लेकिन उसके पैरों ने जवाब दे दिया. वह रेंगने लगा. रेंगते हुए जब वह ऑडिटोरियम से बाहर निकला और दूसरे कमरे में पहुंचा. वहां उसने स्कूल की एक महिला कर्मचारी को देखा, वह कुर्सी पर बैठी हुई थी और उसका शरीर जल रहा था. उसके जलते हुए शरीर से खून निकल रहा था. शाहरुख रेंगते हुए उस कमरे के दरवाजे के पीछे छिप गया और थोड़ी देर बाद बेहोश हो गया. जब उसकी आंखें खुलीं तो वह अस्पताल के बेड पर था.
स्कूल के अंदर आतंकी खून की होली खेल रहे थे और बाहर पाकिस्तानी आर्मी स्कूल के अंदर दाखिल होने की तैयारी कर रही थी. कैंट एरिया नजदीक था, इसलिए मदद समय पर पहुंच गई. स्कूल के बाहर के इलाके को आर्मी ने अपने नियंत्रण में ले लिया था. स्कूल के ऊपर हेलीकॉप्टर मंडराने लगे. आर्मी ने अंदर का जायजा लिया और आर्मी स्कूल के अंदर दाखिल हो गई. आतंकी जगह बदल-बदल कर आर्मी से लड़ते रहे. स्कूल परिसर के अंदर आर्मी ने एक तरफ से आतंकियों की खोज शुरू की. यही वह वक्त था जब स्कूल से घायल बच्चों और बच्चों की लाशों को बाहर भेजा जाने लगा. टीवी के जरिए पूरी दुनिया इस खौफनाक मंजर को देख रही थी. एक तरफ सेना बच्चों को अस्पताल भी भेज रही थी दूसरी तरफ आतंकियों के साथ उनकी झड़प भी जारी थी. आर्मी स्कूल के बाहर स्टूडेंट्स के अभिभावकों की भीड़ जमा थी. अपार हिम्मत वाले पिताओं का चेहरा सहमा हुआ नज़र आ रहा था. गोद सूनी हो जाने का खौफ स्कूल के बाहर खड़ी हर मां की आंखों में साफ-साफ नज़र आ रहा था. स्कूल के बाहर आलम यह था कि जिनके बच्चे इस स्कूल मे नहीं पढ़ते थे वह भी फूट-फूटकर रो रहे थे.
पाकिस्तानी एजेंसियों के हवाले से यह खबर आई कि हमलावर लगातार अपने गिरोह के सरगना से बात कर रहे थे. एक आतंकी ने अपने आकाओं से फोन पर बात कर यह पूछा कि सारे बच्चों को उन्होंने मार दिया है, अब उन्हें आगे क्या करना है? उन्हें आदेश मिला कि आर्मी भी स्कूल के अंदर दाखिल हो गई है आर्मी से लड़ो और उन्हें मारो. पकड़े जाने से पहले खुद को बम धमाके से उड़ा लो. आंतकवादियों ने अपने आकाओं के हर हुक्म का पालन किया और एक-एक करके छह में से चार आतंकियों ने आत्मघाती बम धमाके में खुद को मार डाला. अन्य दो आतंकियों को पाकिस्तान आर्मी के जवानों ने मार गिराया.
इस हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने ली. यह फजलुल्लाह का नेटवर्क है. सभी हमलावर तहरीक-ए-तालीबान पाकिस्तान के सदस्य थे. ये एक आतंकी संगठन है लेकिन ये खुद को इस्लामिक जिहाद करने वाले सैनिक मानते हैं. तहरीक-ए-तालिबान द्वारा घोषित तीन प्रमुख लक्ष्य इस प्रकार हैं: पाकिस्तान में शरिया क़ानून स्थापित करना, पाकिस्तान की सरकार के खिलाफ विद्रोह और अफ़ग़ानिस्तान में नाटो सेना के खिलाफ मुहिम चलाना. फजलुल्लाह के प्रवक्ता मोहम्मद खुरासानी के मुताबिक स्कूल पर हमला करके वे पाकिस्तान सरकार से बदला ले रहे हैं. यह नार्थ-वजीरिस्तान में चल रहे सैनिक ऑपरेशन और पुलिस कस्टडी में मारे गए तालिबानी साथियों की मौत का बदला है. स्कूल में हमला होने के 2 घंटे के अंदर ही तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने पेशावर हमले की जिम्मेदारी ले ली, नहीं तो पाकिस्तान में यह अफवाह फैलने लगी थी यह हमला भारत द्वारा प्रायोजित है. जिस वक्त स्कूल के अंदर आर्मी ऑपरेशन चल रहा था उस वक्त ही तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने यह भी कहा कि स्कूल में दाखिल आंतकवादी लगातार उनके संपर्क में हैं. पाकिस्तानी तालिबान ने यह भी कहा कि आंतकियों को ये हिदायत दी गई थी कि वे छोटे बच्चों को न मारें. अजीब बात है कि बड़ों को ढूंढने वह स्कूलों में जाते हैं. जब बच्चों को नहीं मारना था तो स्कूल में ये आतंकी क्या करने करने गये थे?
पाकिस्तान में इस हादसे को लेकर लोगों में बहुत नाराजगी है. पाकिस्तान सरकार की तरफ से आतंकवाद को जड़ से खत्म करने की बातें हो रही हैं. नोट करने वाली बात यह है कि तालिबान द्वारा स्कूल पर हमला करने का यह कोई पहला वाकया नहीं है. मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक पाकिस्तान में अब तक 1000 से ज्यादा स्कूलों पर हमले हो चुके हैं. सैकड़ों बच्चे और बच्चियों की मौत पहले भी हो चुकी है. लेकिन पाकिस्तान में आतंकी संगठन का वर्चस्व तब भी कायम था और आज भी कायम है. पेशावर हमले के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठता है क्या पाकिस्तान में आतंकवाद खत्म हो पाएगा? क्या पाकिस्तान में फल-फूल रहे आतंकी संगठनों का खात्मा हो पाएगा? क्या पाकिस्तान की आर्मी इन आतंकियों को पाकिस्तानी सरजमीं से बाहर फेंकने में कामयाब हो पायेगी? या यह घटना भी पिछले हजारों हमलों की तरह भुला दी जायेगी?
भारत में भी हुईं आंखें नम
पाकिस्तान के पेशावर में हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से फोन पर बात की. मोदी ने नवाज को सांत्वना देते हुए कहा कि हमारा देश दुख की घड़ी में आपके साथ हैं. नरेंद्र मोदी ने कहा कि शिक्षा के मंदिर में इस तरह मासूम बच्चों की निर्मम हत्या न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि पूरी मानवता के खिलाफ हमला है. गृहमंत्री राजनाथ सिंह और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भी पेशावर के आतंकवादी हमले की भर्त्सना की. संसद के दोनों सदनों में भी इस भयावह नरसंहार पर घोर आक्रोश और दुख व्यक्तकिया गया. लोकसभा ने सभी तरह के आतंकवाद से दृढ़ता से मुक़ाबला करने का संकल्प व्यक्तकरते हुए एक निंदा प्रस्ताव भी पारित किया. संसद के दोनों सदनों में कुछ पलों का मौन रखकर आतंकी हमले में मारे गए लोगों के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्तकी गई. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सिडनी और पेशावर के आतंकी हमलों पर अपनी ओर से लोकसभा में दिए बयान में कहा कि ये दोनों घटनाएं मानवता में विश्वास रखने वाले सभी लोगों के लिए एक पुकार है कि वे मिलकर आतंकवाद का समूल नाश करें. प्रधानमंत्री नरंेंद्र मोदी की अपील के बाद देश भर के तमाम स्कूलों में असेंबली के वक्तदो मिनट का मौन रखकर पेशावर के आतंकी हमले में मारे गए बच्चों को श्रद्धांजलि दी गई.
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