'इंडियाज़ डॉटर' पर क्या कहते हैं लोग?
महज तीन मिनट में क़रीब तीन हज़ार से अधिक लोगों ने इस डॉक्यूमेंट्री पर अपने विचारों को साझा किया. इनमें से कुछ प्रतिक्रियाएं यहां पढ़ें-
शारवी क्षीरसागर के अनुसार, "यह रोक असंवैधानिक है".
कनिष्क पॉल का कहना है, "मैं इस डॉक्यूमेंट्री के बनाने और दिखाने का समर्थन करता हूं. यह अभियुक्त के लिए मंच नहीं है, बल्कि यह समाज के एक तबके की उस मानसिता को उजागर करता है जो यह सोचते हैं कि बलात्कार के लिए बलात्कारी की बजाय पीड़िता ही दोषी है. यह न भारत विरोधी है और न ही पुरुष विरोधी, बल्कि यह एक बर्बर और अमानवीय कृत्य के ख़िलाफ़ आवाज़ है."
एक व्हाट्सऐप यूज़र का कहना है कि डॉक्यूमेंट्री पूरे भारत की बात नहीं करती. इनका कहना है, "आप 125 करोड़ भारतीयों की भावनाओं के साथ क्यों ख़ेल रहे हैं? यदि बलात्कारी की मानसिकता समझना आपका ध्येय था तो आपने डॉक्यूमेंट्री कई देशों से बलात्कारियों को लेकर बनाई होती. अमरीका में रेप के मामले सबसे अधिक हैं. महज़ दो-तीन लोगों की मानसिकता की वजह से आप 125 करोड़ भारतीयों की बेइज़्ज़ती नहीं कर सकते."
अभय कुमार कहते हैं, "बीबीसी स्वतंत्र है लेकिन दूसरों के निजी जीवन के साथ वह नहीं खेल सकता."
प्रभजोत चीमा ने एक वीडियो के ज़रिए कहा, "एक बलात्कारी का साक्षात्कार करना ग़लत था." (इस वीडियो में आवाज़ नहीं है.)
एक व्हाट्सऐप यूज़र ने 4 मार्च को अपने विचार साझा किए थे. अगले दिन इन्होंने दोबारा बीबीसी से संपर्क किया.
तूलिका सक्सेना कहती हैं, "डॉक्यूमेंट्री भारतीय पुरुषों की मानसिकता को खुले में ले कर आता है. नेताओं और अमीर लोगों का इस तरह के अपराधों में शामिल होने पर बच कर निकल जाने को उठाया तो गया है, पर चुनौती नहीं दी गई है. मुझे नहीं लगता कि इस कार्यक्रम पर रोक लगाई जानी चाहिए. इस तरह के प्रतिबंध देश के लिए सही नहीं."
कृष्णा अग्रवाल कहती हैं, "यह डॉक्यूमेंट्री भारत के हर तबके के लोगों की आंखें खोल देगी. यह हमें अपराधी के मन के भीतर झांकने में मदद करती है. हमारे लिए यह एक मौके की तरह है."
क्रिस्टीना वाज़ के अनुसार, "मुझे आश्चर्य है कि अधिकारी एक अपराधी के आपत्तिजनक शब्दों के ख़िलाफ कार्रवाई करने की बजाय इस डॉक्यूमेंट्री के पीछे पड़े हैं. मुझे आश्चर्य है कि एक वकील कहता है कि अगर उसकी बेटी उसके परिवार के लिए शर्म का कारण बनती है तो वह उसकी हत्या कर देगा. ये ऐसे पुरुष हैं जो कभी औरत को बराबरी का दर्जा नहीं दे पाएंगे. भारत में एक बेटी की मां होने के नाते यह वाकई भयानक और परेशान करने वाला है. जब आवाज़ को दबा दिया जाता है या जब नफ़रत फैलाने वाले अपराधियों को अपने अपराधों को सही ठहराने दिया जाता है तब लोकतंत्र कहां होता है?"
रवि असरानी कहते हैं, "मैं इस इंटरव्यू के प्रसारण के पक्ष में नहीं हूँ. महिलाओं पर बलात्कारी के विचार भारत या दुनिया भर में पुरुषों के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते. एक सम्माननीय चैनल पर इस तरह के विचारों को मंच प्रदान करना इस तरह के अप्रिय विचारों को वैध बनाने और उनके साथ सहमत लोगों को बढ़ावा देना होगा. कृपया ऐसा न करें, इससे गरिमा और शिष्टता को ठेस पहुंचेगी."
रवि कांत कहते हैं, "एक ख़ौफ़नाक और दर्दनाक घटना पर डॉक्यूमेंट्री पर रोक नहीं होनी चाहिए. हमें मानना पड़ेगा कि हमारे समाज में इस तरह के विकृत रवैये से ग्रसित लोग हैं. हम इसका इलाज तभी कर पाएंगे जब हम इसके कारण समझेंगे."
जयदीप कहते हैं, "डॉक्यूमेंट्री सच्चाई दिखाता है. पीड़िता और उसके परिवार वालों का दर्द और ऐसे समाज को समझने के लिए जहां पुरुष महिलाओं को वस्तु की तरह देखते हैं. यह डॉक्यूमेंट्री सभी को देखनी चाहिए. समय पर न्याय देना एक कदम हो सकता है. शिक्षा और सशक्तिकरण लंबे अवधि के समाधान हैं."
निशा चेनानी कहती हैं, "भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लड़के और लड़की को एक ही परिवार में पालने की तरह हैं- यानी दो अलग नियमों के साथ."
अशोक कुमार सिंह को लगता है कि डॉक्यूमेंट्री ग़ैर-ज़िम्मेदाराना थी. सिंह कहते हैं, "बीबीसी को अन्य देशों के सामाजिक और राजनीतिक संतुलन को बिगाड़ने में मज़ा आता है. यही वजह है कि बीबीसी ने एक बलात्कारी का इंटरव्यू लिया और रोक के बावजूद समय से पहले इसका प्रसारण किया."
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर
दिसंबर
2012 में दिल्ली में एक छात्रा के साथ हुए गैंगरेप और उसकी हत्या पर बनी
डॉक्यूमेंट्री पर भारत में भी प्रतिक्रियाएं हो रही हैं.
बुधवार रात
डॉक्यूमेंट्री 'इंडियाज़ डॉटर' ब्रिटेन में प्रसारित की गई. भारत में इस पर
रोक के चलते इसे नहीं दिखाया गया पर इंटरनेट के ज़रिए देश में काफी लोगों
ने इसे देखा.महज तीन मिनट में क़रीब तीन हज़ार से अधिक लोगों ने इस डॉक्यूमेंट्री पर अपने विचारों को साझा किया. इनमें से कुछ प्रतिक्रियाएं यहां पढ़ें-
शारवी क्षीरसागर के अनुसार, "यह रोक असंवैधानिक है".
कनिष्क पॉल का कहना है, "मैं इस डॉक्यूमेंट्री के बनाने और दिखाने का समर्थन करता हूं. यह अभियुक्त के लिए मंच नहीं है, बल्कि यह समाज के एक तबके की उस मानसिता को उजागर करता है जो यह सोचते हैं कि बलात्कार के लिए बलात्कारी की बजाय पीड़िता ही दोषी है. यह न भारत विरोधी है और न ही पुरुष विरोधी, बल्कि यह एक बर्बर और अमानवीय कृत्य के ख़िलाफ़ आवाज़ है."
डॉक्यूमेंट्री सच्चाई दर्शाता है
दिल्ली की सौम्या सुरूचि कहती हैं, "डॉक्यूमेंट्री सच्चाई दर्शाता है. यह दिल्ली या भारत केंद्रित नहीं है बल्कि बलात्कार की समस्या और इस तरह के जघन्य अपराध के कारणों को संबोधित करता है."
एक व्हाट्सऐप यूज़र का कहना है कि डॉक्यूमेंट्री पूरे भारत की बात नहीं करती. इनका कहना है, "आप 125 करोड़ भारतीयों की भावनाओं के साथ क्यों ख़ेल रहे हैं? यदि बलात्कारी की मानसिकता समझना आपका ध्येय था तो आपने डॉक्यूमेंट्री कई देशों से बलात्कारियों को लेकर बनाई होती. अमरीका में रेप के मामले सबसे अधिक हैं. महज़ दो-तीन लोगों की मानसिकता की वजह से आप 125 करोड़ भारतीयों की बेइज़्ज़ती नहीं कर सकते."
अभय कुमार कहते हैं, "बीबीसी स्वतंत्र है लेकिन दूसरों के निजी जीवन के साथ वह नहीं खेल सकता."
नेताओं के वक्तव्य शामिल करने थे
डॉक्टर तरुण कहते हैं, "डॉक्यूमेंट्री में मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं की भी बात शामिल करनी चाहिए थी, जिन्होंने कहा था कि लड़के तो लड़के होते हैं, वे बलात्कार जैसी ग़लतियाँ करेंगे पर आप उन्हें फांसी नहीं दे सकते. मुझे लगता है कि भारत के शिक्षित इसलिए नाराज़ है क्योंकि बीबीसी ने इसे शामिल नहीं किया. उन्हें लगता है कि बीबीसी को ऐसे नेताओं से डर है."
प्रभजोत चीमा ने एक वीडियो के ज़रिए कहा, "एक बलात्कारी का साक्षात्कार करना ग़लत था." (इस वीडियो में आवाज़ नहीं है.)
एक व्हाट्सऐप यूज़र ने 4 मार्च को अपने विचार साझा किए थे. अगले दिन इन्होंने दोबारा बीबीसी से संपर्क किया.
कुछ और लोगों की प्रतिक्रिया
अजिंक्य लोखे कहते हैं, "डॉक्यूमेंट्री महिलाओं के प्रति केवल कुछ भारतीय पुरुषों की मानसिकता को बताता है. इस मानसिकता के बदलने की ज़रुरत है ताकि भविष्य में ऐसी डॉक्यूमेंट्री फिल्में न बनाई जा सकें."तूलिका सक्सेना कहती हैं, "डॉक्यूमेंट्री भारतीय पुरुषों की मानसिकता को खुले में ले कर आता है. नेताओं और अमीर लोगों का इस तरह के अपराधों में शामिल होने पर बच कर निकल जाने को उठाया तो गया है, पर चुनौती नहीं दी गई है. मुझे नहीं लगता कि इस कार्यक्रम पर रोक लगाई जानी चाहिए. इस तरह के प्रतिबंध देश के लिए सही नहीं."
कृष्णा अग्रवाल कहती हैं, "यह डॉक्यूमेंट्री भारत के हर तबके के लोगों की आंखें खोल देगी. यह हमें अपराधी के मन के भीतर झांकने में मदद करती है. हमारे लिए यह एक मौके की तरह है."
क्रिस्टीना वाज़ के अनुसार, "मुझे आश्चर्य है कि अधिकारी एक अपराधी के आपत्तिजनक शब्दों के ख़िलाफ कार्रवाई करने की बजाय इस डॉक्यूमेंट्री के पीछे पड़े हैं. मुझे आश्चर्य है कि एक वकील कहता है कि अगर उसकी बेटी उसके परिवार के लिए शर्म का कारण बनती है तो वह उसकी हत्या कर देगा. ये ऐसे पुरुष हैं जो कभी औरत को बराबरी का दर्जा नहीं दे पाएंगे. भारत में एक बेटी की मां होने के नाते यह वाकई भयानक और परेशान करने वाला है. जब आवाज़ को दबा दिया जाता है या जब नफ़रत फैलाने वाले अपराधियों को अपने अपराधों को सही ठहराने दिया जाता है तब लोकतंत्र कहां होता है?"
रवि असरानी कहते हैं, "मैं इस इंटरव्यू के प्रसारण के पक्ष में नहीं हूँ. महिलाओं पर बलात्कारी के विचार भारत या दुनिया भर में पुरुषों के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते. एक सम्माननीय चैनल पर इस तरह के विचारों को मंच प्रदान करना इस तरह के अप्रिय विचारों को वैध बनाने और उनके साथ सहमत लोगों को बढ़ावा देना होगा. कृपया ऐसा न करें, इससे गरिमा और शिष्टता को ठेस पहुंचेगी."
रवि कांत कहते हैं, "एक ख़ौफ़नाक और दर्दनाक घटना पर डॉक्यूमेंट्री पर रोक नहीं होनी चाहिए. हमें मानना पड़ेगा कि हमारे समाज में इस तरह के विकृत रवैये से ग्रसित लोग हैं. हम इसका इलाज तभी कर पाएंगे जब हम इसके कारण समझेंगे."
जयदीप कहते हैं, "डॉक्यूमेंट्री सच्चाई दिखाता है. पीड़िता और उसके परिवार वालों का दर्द और ऐसे समाज को समझने के लिए जहां पुरुष महिलाओं को वस्तु की तरह देखते हैं. यह डॉक्यूमेंट्री सभी को देखनी चाहिए. समय पर न्याय देना एक कदम हो सकता है. शिक्षा और सशक्तिकरण लंबे अवधि के समाधान हैं."
निशा चेनानी कहती हैं, "भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लड़के और लड़की को एक ही परिवार में पालने की तरह हैं- यानी दो अलग नियमों के साथ."
अशोक कुमार सिंह को लगता है कि डॉक्यूमेंट्री ग़ैर-ज़िम्मेदाराना थी. सिंह कहते हैं, "बीबीसी को अन्य देशों के सामाजिक और राजनीतिक संतुलन को बिगाड़ने में मज़ा आता है. यही वजह है कि बीबीसी ने एक बलात्कारी का इंटरव्यू लिया और रोक के बावजूद समय से पहले इसका प्रसारण किया."
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