मंगलवार, 9 जून 2015

ओरंगजेब की डायरी से ब्राह्मणों सती प्रथा का भीभत्स रूप

ओरंगजेब की डायरी से ब्राह्मणों सती प्रथा का भीभत्स रूप

शाहजहाँ और ओरंगजेब के फ्रांसीसी डॉक्टर फ्रांकोइस बर्नियर की डायरी से…
****************** सती प्रथा का भीभत्स रूप *********
मैंने कुछ ऐसी स्त्रियों को देखा है जो चिता और अग्नि को देखते ही भयभीत हो जाती हैं और कदाचित अवसर पाकर भाग भी जाती हैं. वे ब्रह्मण जो उस समय बड़े बड़े लट्ठ लिए हुए उनके पास खड़े होते हैं, केवल उन्हें उत्तेजित ही नहीं करते वरन कभी कभी चिता में धकेल भी देते हैं.mughal-empire-hindu2
मैंने स्वयं देखा है कि एक बार ब्राह्मणों ने एक स्त्री को जो चिता से पांच छह कदम दूर ही से हिचकने लगी थी, धकेल दिया और एक बार जब एक स्त्री के कपडे तक आग लगी और उसने भागना चाहा तो ब्राह्मणों ने लम्बे लम्बे बांसों कि सहायता से उसे चिता में फिर धकेल दिया. मैंने प्राय: ऐसी सुन्दर स्त्रियों को देखा है जो ब्राह्मणों के हाथ से बच कर निकल जाती हैं और उन नीच जाति के लोगों में मिल जाती हैं जो यह जानकर कि सती होने वाली युवती सुन्दर है और उसके साथ अधिक संबंधी नहीं होंगे तो उस स्थान पर अधिकता से एकत्र हो जाते हैं . जो स्त्रियां चिता देखकर डर्टी और इस प्रकार भाग जाती हैं वे अपनी जाती वालों से मिलने या उनके साथ रहने की आशा कभी नहीं कर सकतीं क्योंकि वे लोग उसे बहुत बदनाम कर देते हैं और उसके इस अनुचित कार्य से अपने धर्म की अप्रतिष्ठा समझते हैं. जिन लोगों के साथ ये स्त्रियां अपना बचा हुआ जीवन व्यतीत करती हैं, भारत में उनकी गणना बहुत ही नीची जातियों में की जाती है. विपत्ति में पड़ने के भय से कोई मुग़ल ऐसी स्त्री की रक्षा नहीं करता .
mughal-empire-hindu हाँ , कभी कभी कुछ पुर्तगीजों नै जो समुद्र तट पर रहते हैं और जहाँ उनकी विशेष प्रबलता है ऐसी स्त्रियों को बचा लिया है. इन ब्राह्मणों के कृत्यों को देख कर कभी कभी मुझे इतना दुःख और क्रोध हुआ है कि यदि मेरा वश चलता तो मैं उनका गला घोंट देता . मुझे याद है कि लाहौर में एक बहुत ही सुन्दर लड़की को मैंने जलते हुए देखा, मैं समझता हूँ कि उसकी अवस्था बारह वर्ष से अधिक नहीं होगी .वह लड़की उसी तरह चिता के नज़दीक लाई गई. भय के कारण अधमरी सी मालूम होने लगी, वह कांपती और बिलख बिलख कर रोती थी . इतने में तीन चार ब्राह्मण जिनके साथ एक बुढ़िया भी थी और जो उस लड़की को अपनी गोद में लिए हुए थी, आई और उसे चिता पर बैठा दिया, उसके हाथ और पैर बाँध दिए और इस प्रकार उसे जीवित ही जला दिया. यधपि दुःख और क्रोध के कारण उस समय मैं आपे से बाहर हो गया था तथापि मैंने अपने आपको बड़ी कठिनता से – विवश होकर रोका…. ……….
(सन्दर्भ: बर्नियर की भारत यात्रा) साभार

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