गुरुवार, 7 जून 2012

हमें परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने से पहले सोचना चाहिए...


                       जब जापान जैसा देश अपने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को सुरक्षित नहीं रख पा रहा है तो ऐसे में भारत को भी देश में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने से पहले सोचना चाहिए। देश में हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु में 6 न्यूक्लियर प्लांट स्थापित होने हैं। जैंतापुर (महाराष्ट्र) में 10 हजार मेगावाट क्षमता का दुनिया का सबसे बड़ा न्यूक्लियर प्लांट लगने जा रहा है। भूकंप व सुनामी की लगातार बढ़ रही घटनाओं के चलते विश्व के किसी भी देश के न्यूक्लियर एनर्जी प्लांट सुरक्षित नहीं हैं।
                          हरियाणा के फतेहाबाद क्षेत्र में न्यूक्लियर प्लांट के विरोध में पिछले 2२0 दिनों से आंदोलन चलाया जा रहा है। महाराष्ट्र के तारापुर क्षेत्र में चल रहे न्यूक्लियर एनर्जी प्लांट के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। इस क्षेत्र में जहां लोग बड़े पैमाने पर कैंसर व बांझपन के शिकार हो रहे हैं। जापान के फुकुशिमा दाइची में परमाणु संयंत्र चला रही कंपनी भी भारत में परमाणु संयंत्र स्थापित कर रही है। ऐसे में जब यह कंपनी जापान में अपने संयंत्र को सुरक्षित नहीं रख पा रही है तो वह भारत में संयंत्र  की सुरक्षा की क्या गारंटी दे पाएगी। 
                       हमें ऊर्चा के वैकल्पिक माध्यम सूरज की रोशनी, हवा व पानी तथा समुद्र की लहरों से बनने वाली बिजली की ओर भी ध्यान देना होगा। वर्तमान में देश में 3 फीसदी बिजली न्यूक्लियर से प्राप्त हो रही है। यदि देश में 6 और न्यूक्लियर एनर्जी प्लांट स्थापित हो जाते हैं तो इससे परमाणु बिजली उत्पादन का प्रतिशत 3 से बढक़र 7 फीसदी तक पहुंच जाएगा। इससे बिजली उत्पादन में बहुत ज्यादा फर्क पडऩे वाला नहीं है। ऐसे में हमें वैकल्पिक ऊर्जा के दूसरे माध्मयों पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है।

  • महाराष्ट्र के रत्नागिरी ज़िले में जैतापुर में प्रस्तावित परमाणु संयंत्र के ख़िलाफ़ प्रदर्शन देशभर में फैलते जा रहे हैं 
  • दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि देशभर में तमाम प्रस्तावित परमाणु संयंत्रों को निरस्त किया जाए
  • भारत सरकार ने जैतापुर परमाणु संयंत्र का ठेका फ़्रांसीसी कंपनी अरेवा को केवल इसलिए दिया है क्योंकि फ़्रांस ने न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी में भारत के मदद की थी. जिस तरह का संयंत्र यहाँ लगाने की योजना है उसे फ़्रांस तक में मंज़ूरी नहीं दी गई है.
      
  • रूस और जापान की न्यूक्लियर एनर्जी प्लांट त्रासदी 
  •  हाल  ही  में जर्मनी की गठबंधन सरकार ने फ़ैसला किया है कि वह देश के सभी परमाणु ऊर्जा केंद्र वर्ष 2022 तक बंद कर देगी
  • जापान में भूकंप और सुनामी के बाद फ़ुकुशिमा परमाणु संयंत्र से रोडियोधर्मी लीक के बाद जर्मनी में मार्च में ही सात पुराने परमाणु संयंत्रों को बंद कर दिया गया था. अब वे स्थायी तौर पर बंद रहेंगे
  • अब ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि देश की ऊर्जा ज़रूरतों को अक्षय ऊर्जा - पवन और सौर ऊर्जा से पूरा किया जाएगा.

     6 अरब डॉलर और 80 साल लगे  एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र को नष्ट करने के लिए..................

    जर्मनी में एक उम्र बढ़ने की परमाणु ऊर्जा संयंत्रों समाप्ति की प्रक्रिया 16 वर्ष और डॉलर के अरबों दुर्घटना और अभी भी पूर्ण नहीं की तुलना में अधिक जगह ले ली.

    परमाणु पूर्वोत्तर Lubmin में जर्मनी में सोवियत संघ द्वारा बिजली संयंत्र जब क्षेत्र जर्मन क्षेत्रीय लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया गया था. के बाद बर्लिन की दीवार 1989 में ध्वस्त हो गई, सरकार के आदेश दिए संयंत्र बंद कर दिया, कह रही है यह पश्चिमी मानकों से असुरक्षित है.

    लोगों को 1994 के बाद से संयंत्र Lubmin नष्ट करने लगे.

    कारखाने में श्रमिकों की सुरक्षा के कपड़े.

    उच्च दबाव पानी के जेट विमानों का उपयोग करते हुए श्रमिक को नष्ट करने के लिए.

    विशेषज्ञों की गणना है कि संयंत्र के निराकरण की लागत 3.3 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है.

    रेडियोधर्मी तरल evaporates के बाद, यह रेडियोधर्मी कीचड़ छोड़ देता है.

    कारखाना समाप्ति अभी भी वैज्ञानिक हलकों में एक विवादास्पद विषय है. कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि सरकार सील रिएक्टर होना चाहिए और फिर उन्हें समाप्ति से पहले एक और अधिक कुछ दशकों प्रतीक्षा करें.

    नियंत्रण कक्ष में उपकरण.

    नाई को लोहे के छोटे टुकड़े, और संयंत्र में सुरक्षा निगरानी रेडियोधर्मिता का सही स्तर में कटौती युक्ति बाईं तरफ तस्वीर को देखा.

    रेडियोधर्मी कचरे एक दो अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल के बराबर क्षेत्र के साथ एक इमारत में निहित है. हमारे भविष्य अभी भी अब तक एक बड़ा सवाल है.

    संयंत्र की रेडियोधर्मिता का स्तर तक तो इतना बड़ा है कि सरकार को पूरी तरह से एक कम समय नष्ट नहीं करना चाहता. तो यह की पीड़ा को 50-70 साल के लिए पिछले जाएगा.

    स्रोत- ०(VNEX से)
     त्रियोड़ो
     . कॉम 

Tuesday, 5 April 2011

परमाणु उर्जा खराब है ...मगर क्या सचमुच ?


जब भी कोई विप्पत्ति आती है ... हम आसानी से घबरा जाते हैं और अखबार और टीवी वाले भी आग में घी डालने का काम ही करते हैं ...

एक भयानक प्राकृतिक विप्पत्ति के कारण आज जापान में और कुछ अन्य स्थानों में विकिरण की समस्या उत्पन्न हुई ज़रूर है ... पर हमें डरने के वजाय इन बातों को अच्छी तरह समझना ज़रूरी है ... 

चारों तरफ हल्ला मचा है कि परमाणु उर्जा खराब है ... कारण यह दिया जा रहा है कि जापान में रडियोधर्मी विकिरण फ़ैल गया है ... इसकी वजह से कितने लोगों को तकलीफ हुई है या होगी ये बाद में देखा जायेगा ... पहले तो ये चिल्लाओ कि पूरी दुनिया मरने वाली है .

न्यूक्लियर रिएक्टर और सुरक्षा के उपाय!

जबरदस्त भूकंप और सुनामी के कहर के बाद जापान अब रेडिएशन की खतरनाक मुसीबत का सामना कर रहा है। जिसकी शुरुआत हुई 12 मार्च को जब फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट का रिएक्टर नंबर-1 जोरदार धमाके के साथ फट गया...धमाका इतना जोरदार था कि रिएक्टर इमारत की छत ही उड़ गई। इसके बाद रिएक्टर नंबर-3 और रिएक्टर नंबर-2 भी धमाके से उड़ गए और इन सभी रिएक्टर्स से भाप के साथ धूल का एक बड़ा गुबार फूटता देखा

Tuesday, 22 March 2011

ऊर्जा हमारे जीवन की प्रमुख आवश्यकता है


ऊर्जा हमारे जीवन की प्रमुख आवश्यकता है, चाहे वह किसी भी रूप में हो। भोजन, प्रकाश, यातायात, आवास, स्वास्थ्य की मूलभूत आवश्यकताओं के साथ मनोरंजन, दूरसंचार, पर्यटन जैसी आवश्यकताओं में भी ऊर्जा के विभिन्न रूपों ने हमारी जीवन शैली में प्रमुख स्थान बना लिया है। ऐसा भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति यह सोचे कि पहले भोजन की समुचित व्यवस्था करूं या कलर मोबाइल खरीद लूं। बिना एयरकंडीशनर के किसी अधिकारी के लिए कार्यालय की कल्पना करना कठिन है।
   जीवन शैली का बदलाव हम इस रूप में भी देख सकते हैं कि जो काम दिन के उजाले में सरलता से हो सकते हैं उन्हें हम देर रात तक अतिरिक्त प्रकाश व्यवस्था करके करते हैं। नियमित व संतुलित दिनचर्या छोड़कर हम ऐसा जीवन जीने के आदी होते जा रहे हैं जो हमें अस्पताल, एक्सरे, ईसीजी, आईसीयू के माध्यम से भयंकर खर्चो में उलझा रहा है। हमारी दिनचर्या दिन प्रतिदिन अधिकाधिक ऊर्जा की मांग करती जा रही है।

परम ऊर्जाः चरम विनाश


परमाणु आयोग की योजना इस अत्यंत जहरीले कचरे को कांच में बदल कर एक ही जगह स्थिर कर देने की है। इस कांच बने कचरे को विशेष प्रकार के शीतगृह में 20 साल तक रखा जाएगा। फिर अंत में उसे किसी ऐसी जगह रखना होगा जहां पानी, भूचाल, युद्ध या तोड़-फोड़ की कोई भी घटना हजारों साल तक उसे छेड़ न सके।परमाणु समझौते को लेकर देश में चल रही बहस में ‘बिजली और बम’ की चिंता प्रमुख है। कहा जा रहा है कि अमेरिका के साथ हुए समझौते ने हमारे लिए फिर से परमाणु बिजली बनाने का दरवाजा खोल कर हमारा बम बनाने का रास्ता बंद कर दिया है। लेकिन देश में कुछ अपवाद छोड़ दें तो किसी ने भी परमाणु बिजली पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया है। आज दो-चार पीढ़ियों को कोयले के मुकाबले बेहद साफ सुथरी बिजली, प्रकाश देने के आश्वासन पर यह आने

परमाणु ईंधन : भारत-अमेरिका में करार


भारत और अमेरिका ने भारत द्वारा अमेरिका के इस्तेमाल किए गए परमाणु ईंधन का पुनर्प्रसंस्करण करने के बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसे दोनों देशों के बीच हुए ऐतिहासिक असैन्य परमाणु करार को लागू करने का अंतिम चरण माना जा रहा है।इस समझौते के लागू होने के बाद प्रबंधों और प्रक्रियाओं के जरिये भारत अमेरिका द्वारा इस्तेमाल किए गए परमाणु पदार्थों का पुनर्प्रसंस्करण करेगा। यह पुनर्प्रसंस्करण भारत द्वारा स्थापित संयंत्र में किया जाएगा और इस काम को अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी के सुरक्षा मानकों के तहत अंजाम दिया जाएगा।

समझौते पर अमेरिकी विदेश विभाग के मुख्यालय में अमेरिका के राजनीतिक मामलों के उप मंत्री बिल बर्न्‍स और अमेरिका में भारतीय राजदूत मीरा शंकर ने हस्ताक्षर किए। विदेश विभाग ने एक बयान में कहा कि राष्ट्रपति ओमाबा के नेतृत्व में विचार-विमर्श के जरिये तय किए गए प्रबंध में ऐतिहासिक भारत अमेरिकी परमाणु सहयोग पहल को सफलतापूर्वक अंजाम देने की मजबूत प्रतिबद्धता झलकती है। यह समझौता अमेरिकी परमाणु ईंधन आपूर्तिकर्ताओं के लिए भारत के साथ कार्य करने की अनिवार्य शर्त थी। भारतीय दूतावास ने कहा कि समझौते पर हस्ताक्षर किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम हैं। यह दोनों देशों के बीच मजबूत होते संबंधों और बढ़ते सहयोग को प्रदर्शित करता है। बयान में कहा कि इस समझौते के जरिये भारत आईएईए के सुरक्षा मानकों के तहत अमेरिका के परमाणु ईंधन का पुनर्प्रसंस्करण कर पाएगा और इससे अमेरिकी कंपनियों को भारत के तेजी से बढ़ रहे परमाणु उर्जा क्षेत्र में भागीदारी का अवसर मिल सकेगा। मीरा शंकर ने इस अवसर पर अपनी टिप्पणी में कहा कि इसके साथ ही हमने परमाणु उर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के मकसद से सहयोग के लिए किए गए हमारे द्विपक्षीय समझौते को लागू करने की दिशा में हमने एक अन्य महत्वपूर्ण कदम उठाया है। उन्होंने कहा कि भारतीय और अमेरिकी वार्ताकारों ने जो कठिन और कुशल कार्य किया है उसके चलते एक साल के निर्धारित समय से काफी पहले आपसी विचार विमर्श पूरा कर लिया गया। इससे पता चलता है कि दोनों देशों के बीच साथ में काम करने की आदत तेजी से बढ़ रही है। भारतीय राजदूत ने कहा कि आज हस्ताक्षर किया गया समझौता तथा कुछ दिन पहले नई दिल्ली में आतंकवाद निरोधक पहल भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते संबंधों के मजबूत होने का परिचायक है। उन्होंने शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु उर्जा के इस्तेमाल के मकसद से ऐतिहासिक द्विपक्षीय सहयोग-123 समझौते पर दो साल साल पहले दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत प्रावधान है कि आईएईए सुरक्षा मानकों के तहत भारतीय राष्ट्रीय सुविधा में अमेरिका की परमाणु सामग्री का पुनप्र्रसंस्करण किया जाएगा। (भाषा)
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भारत अमेरिका परमाणु सहयोग में अभी भी अ़डचनें


भारतअमेरिका परमाणु सहयोग में अभी भी अ़डचनें
, लेकिन अमेरिका अभी उससे संतुष्ट नहीं है। वह अमेरिकी कंपनियों की सुविधा को देखते हुए उसमें बदलाव चाहता है। उधर, अमेरिकी सरकार सीधे भारत सरकार से इस संदर्भ में संपर्क बनाए हुए है, तो इधर यहां दिल्ली में स्थित अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोयमर भी भारतीय विदेश विभाग से संपर्क साधे हुए हैं।
रोचक यह है कि अमेरिकी सरकार अपनी कंपनियोंंं के लिए तो हर सुविधा चाहती है, लेकिन वह भारत को जरूरी रियायतें देने के प्रति अभी भी उदासीन है। अमेरिका का वायदा था कि भारत के

Sunday, 6 March 2011

भगवान बचाएं परमाणु ऊर्जा से !

जिस पदार्थ की राख या बचा हुआ हिस्सा रेडियोधर्मी होकर अगले ढाई लाख वर्षों तक जहरीला बना रहे, ऐसे पदार्थ के जहरीलेपन की सीमा की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारत में पिछले कुछ वर्षों से ऊर्जा के क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा को लेकर सुनहरे सपने दिखाए जा रहे हैं। यह आलेख परमाणु ऊर्जा के खतरों के बारे में है। पानी-पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों को सामने लाने का प्रयास यहां किया गया है।इस वक्त दुनियाभर में 438 परमाणु रिएक्टर कार्यरत हैं। परमाणु ऊर्जा उद्योग के सुझावों के अनुसार जीवाश्म ईंधन पर आधारित ऊर्जा संयंत्रों को परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से बदलने के लिए 1000 मेगावाट के 2 से 3 हजार नए परमाणु संयंत्र निर्मित करना होंगे।

तारापुर विद्युत रिएक्टर पुनर्संस्करण संयंत्र का उद्घाटन


प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने महाराष्ट्र के तारापुर स्थित बार्क में 100 टन सालाना क्षमता वाले विद्युत रिएक्टर पुनर्संस्करण संयंत्र का उद्घाटन 7 जनवरी 2011 को किया. तारापुर में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC: Bhabha Atomic Research Centre) में यह दूसरा विद्युत रिएक्टर पुनर्सस्करण संयंत्र हो गया. इसकी स्थापना से नाभिकीय ईंधन चक्र के उप उत्पादों यानी अवशिष्ट (कचरा) पदार्थों का बेहतर प्रबंधन व इस्तेमाल करने में भारत की क्षमता में वृद्धि होनी तय है, स्वदेशी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से निकले अवशिष्ट पदार्थों को विद्युत रिएक्टर पुनर्संस्करण संयंत्र के द्वारा पुनः फास्ट ब्रीडर रिएक्टर में इस्तेमाल के लिए तैयार किया जाएगा. फास्ट ब्रीडर रिएक्टर से देश के लिए स्थायी और स्वच्छ ऊर्जा का निर्माण किया जाता है. भारत में कुल 3 परमाणु पुनर्संस्करण संयंत्र हैं: तारापुर, ट्राम्बे और कलपक्कम में. तीनों की कुल सालाना क्षमता 230 टन है.

वर्तमान एवं भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए यूरेनियम का पुनर्चक्रण एवं उचित उपयोग भारत जैसे विकासशील देश के लिए आवश्यक है.
jagranjosh

परमाणु विद्युत ऊर्जा का उत्पादन बढ़ा


उच्च संवर्धित यूरेनियम की उपलब्धता के कारण परमाणु विद्युत उत्पादन में वर्ष 2009 में बढ़ोतरी देखी गई. अप्रैल-दिसंबर 2009 में यह बढ़ोतरी 19% पाई गई जबकि सिर्फ दिसंबर 2009 में यह 39% पाई गई .झारखंड के तुरमडीह मिल से उच्च संवर्धित यूरेनियम की दोगुनी आपूर्ति के कारण राजस्थान, मद्रास और तारापुर एटमिक पावर स्टेशन में विद्युत उत्पादन बढ़ा. फ्रांस और रूस से मिलने वाले परमाणु ईंधन भी बढ़ोतरी के कारण रहे. साथ ही असंतुलित मानसून के वजह से जल विद्युत ऊर्जा में कमी देखी गई

कैगा अटॉमिक पावर प्लांट की चौथी इकाई प्रारम्भ


कर्नाटक की कैगा अटॉमिक पावर प्लांट की चौथी इकाई का संचालन 27 नवंबर 2010 को शुरू हो गया. यह भारत का 20वां न्यूक्लियर पावर प्लांट है. इस इकाई की उत्पादन क्षमता 220 मेगावाट है. इसके शुरू होने के बाद देश की परमाणु ऊर्जा के उत्पादन की क्षमता 4560 मेगावाट से बढ़कर 4780 मेगावाट हो गई.

Monday, 28 February 2011

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी


आई0ए0ई0ए0 (इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी) एक स्वायत्त विश्व संस्था है, जो इस बात की निगरानी करती है कि परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग हो। वह परमाणु ऊर्जा के सैन्य उपयोग को हरसंभव रोकने की कोशिश करती है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी का गठन 29 जुलाई, 1957 को हुआ था।  अलबरदेई  को  वर्ष  2005  का शांति का नोबेल पुरस्कार मिला है। इसके पहले सेक्रेटरी जनरल डब्लयू.स्टíलंग कोल (1957-1961) थे, इसका मुख्यालय वियना आस्ट्रिया  में है। संस्था ने 1976 में रूस   के चेरनोबल में हुई नाभिकीय दुर्घटना के बाद अपने नाभिकीय सुरक्षा कार्यक्रम को विस्तार दिया है। वर्तमान में इसके महासचिव युकिया अमानो हैं। अलबारदेई को संयुक्त रूप से २००५ का शांति नोबेल पुरस्कार दिया गया। इसके सबसे पहले महासचिव डब्ल्यू स्टर्लिंग कोल (१९५७-१९६१) थे। आईएईए बोर्ड के ३५ सदस्य देशों में से २६ नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह सदस्य देश हैं

Sunday, 9 January 2011

भारत ब्रिटेन के मध्य असैन्य परमाणु करार समझौते पर हस्ताक्षर

2010  में ब्रिटेन ने भारत के साथ असैन्य परमाणु करार समझौते पर हस्ताक्षर किए. भारत की ओर से परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष श्रीकुमार बनर्जी और ब्रिटिश उच्चायुक्त रिचर्ड स्टाग ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किये. इस समझौते के द्वारा ब्रिटिश कम्पनियों को उपकरण एवं उत्पाद निर्यात करने तथा भारत में रिएक्टर डिजाइन की आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बनने का अवसर प्राप्त हुआ.

Monday, 6 December 2010

भारत और फ्रांस के बीच परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में पांच समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।

परमाणु क्षतिपूर्ति उत्तरदायित्व कानून की वजह से थमा पड़ा देश का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम अब रफ्तार पकड़ने जा रहा है। सोमवार को भारत और फ्रांस के बीच दो परमाणु बिजली संयंत्रों की स्थापना सहित परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में पांच समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। हालांकि अभी बिजली संयंत्रों से जुड़े तकनीकी मुद्दों और कीमतों पर निर्णायक बातचीत बाकी है।
फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने यहां के कानूनों को परमाणु ऊर्जा व्यापार के लिए अनुकूल बताकर अमेरिका समेत दूसरे पश्चिमी देशों पर हमारे परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में भागीदारी का दबाव बढ़ा दिया है। फ्रांस के साथ नाभिकीय साझीदारी के नए युग में पहुंचने को भारत एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देख रहा है। सरकोजी की इस यात्रा के दौरान परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में 'अस्पृश्यता' खत्म करने की भारतीय खेमे की कोशिशें सफल होती दिख रही हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सरकोजी के बीच प्रतिनिधिमंडलीय स्तर की वार्ता के बाद पांच समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। इनमें सबसे अहम महाराष्ट्र में दो परमाणु बिजली संयंत्रों की स्थापना के लिए अरेवा और भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड [एनपीसीआईएल] के बीच हुआ आधारभूत समझौता रहा। इसके तहत राज्य के जैतपुर में करीब 25 अरब डॉलर की लागत से 1650 मेगावाट के दो 'यूरोपीय प्रेशराइज्ड रिएक्टर' स्थापित किए जाएंगे।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संयुक्त प्रेसवार्ता में कहा 'अरेवा और एनपीसीआईएल ने दो मसौदों पर दस्तखत किए हैं, लेकिन अभी कीमतों और दूसरे तकनीकी मसलों पर बातचीत अंतिम दौर में है।' हालांकि सरकोजी के अनुसार 'कीमत और दूसरे तकनीकी मुद्दे सुलटा लिए गए हैं।' उच्चच्दस्थ सूत्र दोनों नेताओं के बयानों में विरोधाभास नहीं देख रहे हैं। उनका कहना है कि फ्रांस आश्वस्त है कि भारतीय कानून उसकी कंपनियों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेंगे और कोई भी मसला ऐसा नहीं है जो कि हल न हो सके।
फ्रांस ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में जो चार अन्य समझौते किए हैं, उनमें जैतपुर परियोजना से जुड़ा 'तत्काल कार्य समझौता' है। इसके तहत यहां से 10 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है। तीसरा समझौता परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के आंकड़ों की गोपनीयता सुनिश्चित करने, चौथा परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी और पांचवा परमाणु ऊर्जा पर बौद्धिक संपदा अधिकार का है।
दुनिया की प्रमुख ताकत फ्रांस का यह रुख भारत के परमाणु कार्यक्रम के लिए बेहद अहम है। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश अभी भारतीय कानूनों पर आपत्ति के नाम पर यहां आने से कतरा रहे हैं। अब हमारे परमाणु कानूनों के समर्थन में सरकोजी के झंडा उठाने से अन्य देशों की हिचकिचाहट खत्म होने और परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के रफ्तार पकड़ने की उम्मीद बलवती हो गई है।
 sabhar-jagran

Monday, 15 November 2010

परमाणु दायित्व विधेयक-2010

परमाणु दायित्व विधेयक और इससे संबंधित उठे विवादों को लेकर पिछले कुछ समय से काफी चर्चा है। आखिर यह पूरा मामला क्या है?

विधेयक की रूपरेखा
दरअसल इसके लागू होने के बाद ऐसा कानून बनेगा, जिससे असैन्य परमाणु संयंत्र में दुर्घटना होने की स्थिति में संयंत्र के संचालक (ऑपरेटर) की जिम्मेदारी तय की जा सके। इसी कानून से दुर्घटना प्रभावित लोगों को मुआवजा मिल सकेगा। अमेरिका और भारत के बीच अक्टूबर, 2008 में असैन्य परमाणु समझौता हुआ था। असल में अमेरिका और अन्य परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों से भारत को तकनीक और परमाणु सामग्री की आपूर्ति तभी शुरू होने की बात थी, जब वह परमाणु दायित्व विधेयक के जरिए एक कानून बना ले।

विवादित धारा 17
धारा 17 (बी) दुर्घटना में आपूर्तिकर्ता के दायित्व से जुड़ी है। यह विवाद परमाणु आपूर्तिकर्ताओं को परिवहन के दौरान या इसके बाद होने वाली दुर्घटनाओं को लिए जवाबदेह ठहराने को लेकर था। विधेयक में आपूर्तिकर्ताओं को जवाबदेह नहीं ठहराया गया था, लेकिन अब संशोधित मसौदे के मुताबिक परमाणु संयंत्र का संचालक आपूर्तिकर्ता से मुआवजा तब मांग सकेगा, जब- (ए) उसके ऐसे अधिकार का उल्लेख सौदे में लिखित रूप से हो, (बी) परमाणु दुर्घटना घटिया या खराब उपकरणों की आपूर्ति की वजह से हुई हो, और (सी) परमाणु दुर्घटना किसी व्यक्ति या फर्म की मंशा या चूक के कारण हुई हो।
इस धारा की शब्दावली को लेकर भी विवाद उठा था। धारा 17 के उपबंध (अ) और (ब) के बीच ‘और’ शब्द के इस्तेमाल को लेकर विवाद पैदा हुआ। विरोध के बाद सरकार ने ‘और’ शब्द को निकाल दिया था, लेकिन ‘इरादे (इन्टेंट)’ शब्द को शामिल कर दिया। विपक्ष ने इस शब्द का यह कहकर विरोध किया कि परमाणु हादसे के संबंध में इरादा शब्द के जिक्र से आपूर्तिकर्ता को उसकी जिम्मेदार से बच निकलने का रास्ता मिल सकता है, क्योंकि इस तरह की किसी दुर्घटना में इरादा साबित करना मुश्किल होगा। अब संशोधन के तहत धारा 17 बी से यह शब्द भी हटा लिया गया है। यहां ऑपरेटर या संचालक न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया होगी, जबकि अमेरिका की जीई और वेस्टिंगहाउस तथा फ्रांस की अरेवा जैसी कंपनियां आपूर्तिकर्ता होंगी।

अन्य विवाद
इस विधेयक में मुआवजे की राशि को लेकर भी विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई थी। पहले इसके लिए विधेयक में संचालक को अधिकतम 500 करोड़ रुपयों का मुआवजा देने का प्रावधान था, लेकिन विपक्ष की आपत्ति के बाद सरकार ने इसे तीन गुना करके 1500 करोड़ रुपए करने को मंजूरी दे दी। मुआवजे के लिए दावा करने की समय सीमा को लेकर भी सरकार और विपक्ष के बीच काफी मतभेद थे। अब सरकार ने दावा करने की समय सीमा को 10 से बढ़ाकर 20 वर्ष करने का निर्णय लिया है। असैन्य परमाणु क्षेत्र में निजी कंपनियों का प्रवेश भी विवादित विषय रहा। सीएससी भी एक विवादित विषय रहा। सीएससी (कन्वेंशन फॉर सप्लीमेंटरी कंपेनसेशन) एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिस पर हस्ताक्षर करने का मतलब होगा कि किसी भी दुर्घटना की स्थिति में दावाकर्ता सिर्फ अपने देश में मुआवजे का मुकदमा कर सकेगा। यानी दावाकर्ता को किसी अन्य देश की अदालत में जाने का अधिकार नहीं होगा।
साभार - अमर उजाला

Thursday, 28 October 2010

परमाणु समझौता भारत ने किए सीएससी पर दस्तखत

अमेरिकी कंपनियों की चिंताओं को दूर करते हुए भारत ने अनुपूरक क्षतिपूर्ति संधि (सीएससी) पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पूर्वी एशियाई देशों की तीन दिवसीय यात्रा के दौराना टोकियो से रवाना होते समय सीएससी पर हस्ताक्षर के बाद आईएईए से संफ करने को हरी झंडी दी थी। गौरतलब है कि हाल ही में अमेरिका ने कहा था कि बिना सीएससी पर हस्ताक्षर किए भारत के साथ परमाणु करार में गतिरोध उत्पन्न हो सकता है।

करार-कितनी हक़ीक़त-कितना फ़साना

अमेरिकी कवि मार्क ट्वैन ने कहा था कि जब तक सच जूता पहन रहा होता है तब तक झूठ पूरी दुनिया का आधा चक्कर लगा चुका होता है.
भारत-अमेरिका परमाणु करार के बारे में ऐसा ही कुछ कहा जा सकता है. परमाणु करार को लेकर जितनी सच्चाई है उससे कई गुना ज्यादा है इससे जुड़ी मनगढंत कहानियां. ये कहानियां परमाणु करार के समर्थकों और विरोधियों ने गढ़ रखे हैं.

परमाणु करार – कांग्रेस द्वारा एक पत्थर से कई शिकार

सारे देश में एक “अ-मुद्दे” पर बहस चल रही है, जबकि मुद्दा होना चाहिये था “भारत की ऊर्जा जरूरतें कैसे पूरी हों?”, लेकिन यही भारतीय राजनीति और समाज का चरित्र है। इस वक्त हम विश्लेषण करते हैं भारत की अन्दरूनी राजनीति और उठापटक का… कहते हैं कि भारत में बच्चा भी पैदा होता है तो राजनीति होती है और जब बूढ़ा मरता है तब भी… तो भला ऐसे में परमाणु करार जैसे संवेदनशील मामले पर राजनीति न हो, यह नहीं हो सकता…।

कलाम, काकोड़कर और परमाणु करार

समूचे देश में इस समय परमाणु करार को लेकर “बेकरार और तकरार” जारी है, यहाँ तक कि “निठल्ला चिंतन” भी कई लोग एक साथ कर रहे हैं। जहाँ एक ओर वामपंथी अपने पुरातनपंथी विचारों से चिपके हुए हैं और चार साल तक मजे लूटने के बाद अचानक इस सरकार में उन्हें खामियाँ दिखाई देने लगी हैं, तो दूसरी ओर भाजपा है, जो सोच रही है कि बढ़ती महंगाई, फ़टी-पुरानी

तर्को से परे वाम दल

असैन्य परमाणु समझौते पर मतभेद दूर करने के लिए गठित समिति की दूसरी बैठक में भी कोई नतीजा न निकलने पर आश्चर्य नहीं। संभवत: इस समिति की आगामी बैठकें भी परिणाम विहीन रहेंगी, क्योंकि वाम दल तो यह ठान चुके हैं कि उन्हें इस समझौते पर अपनी हठधर्मिता का परित्याग किसी भी मूल्य पर नहीं करना है। इस मामले में वाम दल तर्क का जवाब तर्क से देने के लिए भी नहीं तैयार। उन्होंने साफ कहा कि उन्हे इस करार पर सरकार की कोई एक दली

ऊर्जा स्रोतों का लेखा-जोखा

करार पर भ्रम बरकरार

समझौते में निगरानी करने वालों के लिए इंस्पेक्टर यानी निरीक्षक के बजाए एक्सपर्ट यानी विशेषज्ञ शब्द का इस्तेमाल किया गया है। इससे यह भी साफ हो रहा है कि भारत ने समझौते के तहत अपने परमाणु संयंत्रें तक विदेशी ताकतों को पहुंचने की अनुमति प्रदान कर दी है।
आखिरकार भारत और अमेरिका ने परमाणु करार को आखिरी रूप दे ही डाला। दोनों तरफ के सक्षम लोगों ने करार के आखिरी मसौदे पर हस्ताक्षर कर दिए और इस करार ने अमली रूप ले लिया। इस करार का विरोध करने वालों की हर बात की अनदेखी करते हुए मनमोहन सिंह ने इसे

वैकल्पिक ऊर्जा की आवश्यकता

करार की कैद


अमरीका का आणविक ऊर्जा एक्ट 1994 भी एन.पी.टी. को ही वैश्विक परमाणु संधि का मूल आधार मानना है। इस अधिनियम की धारा 123 के तहत जिन छूटों का जिक्र आज हो रहा है, वे सर्वव्यापी नहीं हैं।डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रगश् सरकार परमाणु मुद्दे पर हासिल विश्वासमत को ‘सेन्स ऑफ हाउस’ यानि कि लोक सभा की धारणा बताने से नहीं चूक रही है। लेकिन एक सवाल पर सरकार निरुत्तर है। वह यह कि जब परमाणु मुद्दे से जुड़े सभी पहलू संसद के पटल पर रखे ही नहीं गए, तब लोक सभा किस आधार पर कोई धारणा बना सकती है?

करार पर वार की दरकार

भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के लागू हो जाने से फायदा कम लेकिन नुकसान ज्यादा दिख रहा है। इसके बावजूद देश के नीति निर्धारकों पर सनकीपन इस कदर हावी है कि वे तमाम तथ्यों और अध्ययनों को झुठलाते हुए इस करार को अंतिम रूप दे रहे हैं। समझोते के पक्ष में माहौल बनाने के लिए सत्तापक्ष सरकारी मशीनरी का ईस्तेमाल करते हुए जमकर प्रोपेगंडा कर रहा है।
भारत और अमेरिका के बीच होने वाले परमाणु करार को लेकर हर तरफ चर्चाएं चल रही हैं। करार के मसले पर ही पैदा हुए विवाद ने वाम मोर्चा को सरकार से अलग किया। इसके बाद मनमोहन

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर गत तीन वर्षों से चर्चा का ज्वलंत विषय रहा है।

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर गत तीन वर्षों से चर्चा का ज्वलंत विषय रहा है। अब आईएईए व एनएसजी की मंजूरी मिलने के बाद यह अमेरिकी कांग्रेस में प्रस्तुत होने के बाद सम्पन्न होने गया है।
परमाणु करार भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह व अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के संयुक्त प्रयत्नों का प्रतिफल है। इससे पिछले तीन दशकों से अधिक समय से विश्व-परमाणु बिरादरी में अलग-अलग पड़े भारत को अपनी पुनर्प्रतिष्ठा प्राप्त करने में मदद मिली है।

व्यापार गोष्ठी: परमाणु करार देश के साथ छल या उपलब्धि?


बीएस टीम /  September 15, 2008



भारत का स्टेटस बिल्कुल बदल जाएगा
सतेंद्र नाथ 'मतवाला'
कालीकुंज बैरिहवां, गांधी नगर, बस्ती, उत्तर प्रदेश

परमाणु करार भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि है। इससे भारत का स्टेटस बिल्कुल बदल गया है। एनएसजी से अनुमति मिलने के बाद परमाणु ईंधन व तकनीक के मामले में अग्रणी देशों से हमें अलग से समझौते करने होंगे। वैश्विक धरातल पर भारत की स्थिति अब और विशिष्ट हो गई है।

दो-दो बार परमाणु परीक्षण करने के बाद भी भारत परमाणु अप्रसार संधि के दायरे में नहीं आता है। इस तरह भारत को अपने ढंग से काम करने की आजादी मिली हुई है। इस तरह से सब कुछ भारत के पक्ष में हैं, इस मामले में एनएसजी कोई बाधा नहीं बन सकता।

अनुपूरक क्षतिपूर्ति संधि

अमेरिकी कंपनियों की चिंताओं को दूर करते हुए भारत ने अनुपूरक क्षतिपूर्ति संधि (सीएससी) पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पूर्वी एशियाई देशों की तीन दिवसीय यात्रा के दौराना टोकियो से रवाना होते समय सीएससी पर हस्ताक्षर के बाद आईएईए से संफ करने को हरी झंडी दी थी। गौरतलब है कि हाल ही में अमेरिका ने कहा था कि बिना सीएससी पर हस्ताक्षर किए भारत के साथ परमाणु करार में गतिरोध उत्पन्न हो सकता है।

करार से आगे की बेकरारी

परमाणु समझौते पर अंतिम मुहर भी लग गई। भारतीय विदेशमंत्री प्रणब मुखर्जी और अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस ने शुक्रवार को वॉशिंगटन डीसी में समझौते के कागजों पर हस्ताक्षर करने के बाद अमेरिकी विदेश विभाग के बेंजामिन फ्रैंकलिन हाल में जिस गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाया उससे साफ पता चल रहा था कि दोनों सरकारों ने इस दिन का न जाने कितने दिनों से इंतजार किया है।

अमेरिकी विदेशमंत्री कोंडोलीजा राइस ने कहा कि समझौते के साथ ही दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र अपने मूल्यों के आधार पर आज एक मंच पर हैं।

गैर जरूरी है परमाणु करार

दैनिक जागरण अपने संपादकीय के माध्यम से सदैव परमाणु करार का खुलकर समर्थन करता है और यह आभास कराता है कि जो इस करार का विरोध कर रहे हैं वे राष्ट्र हित की उपेक्षा कर रहे हैं। उदाहरणस्वरूप 13 जून और 25 जून का संपादकीय देखा जा सकता है। मैं इन संपादकीय में उठाए गए प्रश्नों का उत्तर देना चाहता हूं और विनम्रतापूर्वक यह भी कहना चाहता हूं कि जो लोग परमाणु करार का विरोध कर रहे हैं वे राष्ट्र विरोधी नहीं हैं। परमाणु करार विरोधी पूरी दृढ़ता के साथ विश्वास रखते हैं कि इस करार का विरोध राष्ट्रीय हित में है। इस मुद्दे

परमाणु करार पर इतनी उदारता क्यों ?

यह देश की लिए बड़े सुकून और खुशी की बात है की देश की उर्जा जरूरतों के मद्देनजर अमेरिका से परमाणु करार को करने हेतु अन्तराष्ट्रीय स्तर के परमाणु इधन आपूर्ति कर्ता देशों ने भी बिना किसी शर्त मंजूरी दे दी है । अर्थात परमाणु करार पर अब भारत और अमेरिका के बीच कोई रोड़ा नही है । यह एक उपलब्धि भरी बात है की भारत द्वारा सी टी बी टी और एन पी टी जैसी परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए बगैर भारत को उसकी आवश्यकता हेतु अन्तराष्ट्रीय बाज़ार से परमाणु संसाधन सप्लाई करने की मंजूरी मिली है साथ ही

परमाणु करार ...एक और कदम

भारत-अमरीका के बीच हुए असैन्य परमाणु करार को लागू करने की राह में भारत अब एक और कदम अपनी ओर से आगे बढ़ गया है। मई में हुए ग्रीष्मकालीन सत्र में सरकार ने विवादित परमाणु दायित्व विधेयक लोकसभा में पेश किया था, तब भाजपा समेत अन्य विपक्षी दलों के हंगामे, वाकआउट के कारण बात आगे नहींबढ़ पायी थी। इसके पहले मार्च में जब यह कोशिश की गयी तो यूपीए के समर्थक राजद व सपा के विरोध के कारण यह विधेयक आगे नहींलाया जा सका। मई तक राजद व सपा को सरकार ने मना लिया और अब अगस्त में भाजपा

परमाणु व्यापार की चकाचौंध

भारत-अमरीका परमाणु करार पूरा हो चुका है, अब आगे क्या होगाक् पिछले तीन सालों से सरकार पौराणिक किरदार अर्जुन की तरह करार पर निगाहें टिकाए हुए थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी अपने अटूट समर्पण आत्मसंतुष्टि है। अमरीकी राष्ट्रपति बुश भी कडे विरोध के बावजूद करार को मंजूरी दिलाने में कामयाबी से प्रफुल्लित हैं। सिंह और बुश दोनों कार्यकाल के अंतिम दौर में हैं और उनके लिए यह करार उनकी विदेश नीति की सबसे बडी उपलब्धि होगी। भारत में कहानी तब तक

परमाणु करार लागू अब आगे?

 अमेरिका भारत को विशेष रूप से अपने लिए एक बड़े परमाणु बाजार में तब्दील करने में सफल हो चुका है। जैसा कि पहले ही उल्लेख किया जा चुका है भारत ने अमेरिका को यह राजनीतिक भरोसा दिलाया है कि वह उसके लिए अपने आण्विक व्यवसाय का 50 प्रतिशत आरक्षित रखेगा। इस बात का संकेत एनएसजी से मिली राहत के तीन दिनों के भीतर ही आयी अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडलीजा राइस के उस बयान से भी मिलता है जिसमें उन्होंने मांग की थी कि भारत अमेरिकी हितों का ख्याल रखे और जब तक अमेरिकी कांग्रेस 123 करार को पारित नहीं करती तब तक अमेरिकी एनएसजी के अन्य सदस्यों के साथ द्विपक्षीय व्यापार नहीं शुरू करे।

Wednesday, 27 October 2010

एक विषय जिस पर खुलकर चर्चा की जरूरत है

एक विषय जिस पर खुलकर चर्चा की जरूरत है........
पिछले साल जिस परमाणू समझौते के लिए भारत में इतना विरोध प्रदशर्न हुआ वह भारत छोड़ो आन्दोलन या किसी सत्याग्रह से कम नहीं था। लगभग पूरा देश दो पक्षों में बटा हुआ आ रहा था। इसमें खास बात यह थी बहुत कम लोग ही लोग इसमें बारे में विस्तार से जानते थे कि इस समझौते में किसको क्या मिलेगा और कौन क्या खोएगा। समर्थन करने वाले लोग एक राजनैतिक पार्टी नेतृत्व के निर्णय को शिरोधार्य कर थे या कहें पार्टी नेता के पक्ष में निष्ठा व्यक्त कर रहे थे जिनमें जनसामान्य से लेकर पॄे लिखे और तकनीकी क्षेत्र के विद्वान भी शामिल थे और विरोध में पूरा विपछ खड़ा था।

परमाणु ईंधन के पुन: प्रसंस्करण समझौते के तय होने के बाद

एक बड़े व्यापारिक समूह ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के पूर्ण क्रियान्वयन के लिए जरूरी अन्य दो कार्यों को शीघ्र निपटाने की मांग की है। 
असैन्य परमाणु समझौते के तहत अमेरिका से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से पहले भारत-अमेरिका को परमाणु अप्रसार की गारंटी देने वाले समझौते पर हस्ताक्षर करने हैं और भारत द्वारा एक परमाणु उत्तरदायित्व कानून को पारित किए जाने की आवश्यकता है।

परमाणु ईंधन : भारत-अमेरिका में करार

भारत और अमेरिका ने भारत द्वारा अमेरिका के इस्तेमाल किए गए परमाणु ईंधन का पुनर्प्रसंस्करण करने के बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसे दोनों देशों के बीच हुए ऐतिहासिक असैन्य परमाणु करार को लागू करने का अंतिम चरण माना जा रहा है।
इस समझौते के लागू होने के बाद प्रबंधों और प्रक्रियाओं के जरिये भारत अमेरिका द्वारा इस्तेमाल किए गए परमाणु पदार्थों का पुनर्प्रसंस्करण करेगा। यह पुनर्प्रसंस्करण भारत द्वारा स्थापित संयंत्र में किया जाएगा और इस काम को अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी के सुरक्षा मानकों के

भारत अमेरिका परमाणु सहयोग में अभी भी अ़डचनें

भारत अमेरिका परमाणु सहयोग में अभी भी अ़डचनें.., लेकिन अमेरिका अभी उससे संतुष्ट नहीं है। वह अमेरिकी कंपनियों की सुविधा को देखते हुए उसमें बदलाव चाहता है। उधर, अमेरिकी सरकार सीधे भारत सरकार से इस संदर्भ में संपर्क बनाए हुए है, तो इधर यहां दिल्ली में स्थित अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोयमर भी भारतीय विदेश विभाग से संपर्क साधे हुए हैं।
रोचक यह है कि अमेरिकी सरकार अपनी कंपनियोंंं के लिए तो हर सुविधा चाहती है, लेकिन वह भारत को जरूरी रियायतें देने के प्रति अभी भी उदासीन है। अमेरिका का वायदा था कि भारत के
लिए परमाणु उपकरणों तथा उच्च तकनीक के निर्यात को सरल बनाने के लिए वह अपनी कुछ घरेलू नीतियों में बदलाव लाएगा, लेकिन अब वह इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रहा है। परमाणु उपकरणों, तकनीक तथा सामग्री के निर्यात संबंधी संघीय नियमावली ‘सीएफआर’ (कोड ऑफ फेडरल रेगुलेशन) में भारत के प्रति आवश्यक बदलाव का वायदा वह नहीं पूरा कर रहा है।
अमेरिकी ऊर्जा विभाग चाहता है कि भारत सरकार इस तरह का अधिकृत वायदा करे कि वह अमेरिकी परमाणु सामग्री व उपकरणों का केवल शांतिपूर्ण काया] के लिए उपयोग करेगा। वह इस तरह का वायदा (अंडर टेकिंग) सीधे भारत सरकार से चाहता है, न कि एनपीसीआईएल (न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लि) से, जिसे भारत सरकार ने अमेरिकी कंपनियों द्वारा स्थापित परमाणु रियेक्टरों का संचालक (ऑपरेटर) नियुक्त किया है। भारत के विदेश विभाग का कहना है कि उसने परमाणु सहयोग के संदर्भ में १२३ समझौते के समय ही स्पष्ट रूप से अमेरिका को अधिकृत विश्वास दिलाया था (‘प्लेज’ किया था), जिसके प्रति उत्तर में अमेरिका ने भी वायदा किया था कि वह भारत के लिए अपने निर्यात नियमों का अनुकूलन करेगा तथा भारत को परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्र तकनीक पर नियंत्रण रखने वाली तमाम संस्थाआें, ‘वैसेनार एजेंरमेंट’, ‘

परम ऊर्जाः चरम विनाश

परमाणु आयोग की योजना इस अत्यंत जहरीले कचरे को कांच में बदल कर एक ही जगह स्थिर कर देने की है। इस कांच बने कचरे को विशेष प्रकार के शीतगृह में 20 साल तक रखा जाएगा। फिर अंत में उसे किसी ऐसी जगह रखना होगा जहां पानी, भूचाल, युद्ध या तोड़-फोड़ की कोई भी घटना हजारों साल तक उसे छेड़ न
सके।परमाणु समझौते को लेकर देश में चल रही बहस में ‘बिजली और बम’ की चिंता प्रमुख है।

भगवान बचाएं परमाणु ऊर्जा से !

जिस पदार्थ की राख या बचा हुआ हिस्सा रेडियोधर्मी होकर अगले ढाई लाख वर्षों तक जहरीला बना रहे, ऐसे पदार्थ के जहरीलेपन की सीमा की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारत में पिछले कुछ वर्षों से ऊर्जा के क्षेत्र में परमाणु
ऊर्जा को लेकर सुनहरे सपने दिखाए जा रहे हैं। यह आलेख परमाणु ऊर्जा के खतरों के बारे में है। पानी-पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों को सामने लाने का प्रयास यहां किया गया है।

परमाणु दायित्‍व विधेयक-2010

परमाणु दायित्‍व विधेयक-2010 पर विचार करने वाली संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि परमाणु प्रतिष्‍ठान में किसी हादसे के लिए संबंधित कंपनी को ही जिम्‍मेदार ठहराए जाने की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए और इसके लिए हर्जाने की रकम 500 करोड़ रुपये से बढ़ा कर 1500 करोड़ रुपये की जानी चाहिए। विज्ञान व तकनीक मंत्रालय से जुड़ी स्‍थायी संसदीय समिति की

Tuesday, 26 October 2010

परमाणु ऊर्जा से पैदा होगी 63,000 मेगावॉट बिजली

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम परमाणु ऊर्जा निगम ने अगले 25 सालों में 63,000 मेगावाट परमाणु बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा है। सरकार ने हाल ही में आठ स्थानों पर 15 नए परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने के प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दी है।
परमाणु ऊर्जा निगम के अध्यक्ष एस.के. जैन ने इस बात का

भारत अमेरिका असैनिक परमाणु करार

भारत अमेरिका असैनिक परमाणु करार, भारत के रूप में भी जाना जाता अमेरिका परमाणु करार, अमेरिका के संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के गणराज्य के बीच नागरिक परमाणु सहयोग पर एक द्विपक्षीय समझौते को संदर्भित करता है. इस समझौते के लिए एक रूपरेखा 18 जुलाई 2005 भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संयुक्त बयान और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज व. बुश, जिसके तहत भारत को अपने

भारत-अमेरिका परमाणु करार से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें

एनपीटी क्या है?


एनपीटी को परमाणु अप्रसार संधि के नाम से जाना जाता है। इसका मकसद दुनिया भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना है। पहली जुलाई 1968 से इस समझौते पर हस्ताक्षर होना शुरू हुआ। अभी इस संधि पह हस्ताक्षर कर चुके देशों की संख्या 189 है। जिसमें पांच के पास आणविक हथियार हैं। ये देश हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, प्रफांस, रूस और चीन। सिर्फ चार संप्रभुता संपन्न देश इसके सदस्य नहीं हैं। ये हैं- भारत, इजरायल, पा

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के रास्ते में करीब साढ़े तीन साल में आए महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव एक नजर में :

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के रास्ते में करीब साढ़े तीन साल में आए महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव एक नजर में :


* 18 जुलाई 2005 : प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग पर वाशिंगटन में एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए।

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