गांधी, महात्मा या दुरात्मा.(?)-
दिल्ली की तरफ जो रेलगाड़िया आ रही थी, उनमे हिन्दू इस प्रकार भरे थे जैसे माल की बोरिया एक के ऊपर एक रखी जाती हैं. अन्दर ज्यादातर मरे हुए ही थे, गला कटे हुए. रेलगाड़ी के छप्पर पर बहुत से लोग बैठे हुए थे, डिब्बों के अन्दर सिर्फ सांस लेने भर की जगह बाकी थी. बैलगाड़िया, ट्रक्स हिन्दुओं से भरे हुए थे. रेलगाड़ियों पर लिखा हुआ था-"आज़ादी का तोहफा"
रेलगाड़ी में जो लाशें भरी हुई थी उनकी हालत कुछ ऐसी थी की उनको उठाना मुश्किल था, दिल्ली पुलिस को फावड़ें में उन लाशों को भरकर उठाना पड़ा. ट्रक में भरकर किसी निर्जन स्थान पर ले जाकर, उन पर पेट्रोल के फवारे मारकर उन लाशों को जलाना पड़ा इतनी विकट हालत थी उन मृतदेहों की... भयानक बदबू......
सियालकोट से खबरे आ रही थी की वहां से हिन्दुओं को निकाला जा रहा हैं. उनके घर, उनकी खेती, पैसा-अडका, सोना-चाँदी, बर्तन सब मुसलमानों ने अपने कब्जे में ले लिए थे. मुस्लिम लीग ने सिवाय कपड़ों के कुछ भी ले जाने पर रोक लगा दी थी. किसी भी गाडी पर हल्ला करके हाथ को लगे उतनी महिलाओं-बच्चियों को भगाया गया. बलात्कार किये बिना एक भी हिन्दू स्त्री वहां से वापस नहीं आ सकती थी...बलात्कार किये बिना.....? जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आई वो अपनी वैद्यकीय जांच करवाने से डर रही थी. डॉक्टर ने पूछा क्यों ??? उन महिलाओं ने जवाब दिया,,हम आपको क्या बताये हमें क्या हुआ हैं ? हम पर कितने लोगों ने बलात्कार किये हैं हमें भी पता नहीं हैं...उनके सारे शारीर पर चाकुओं के घाव थे. "आज़ादी का तोहफा"
जिन स्थानों से लोगों ने जाने से मना कर दिया, उन स्थानों पर हिन्दू स्त्रियों की यात्रा (धिंड) निकाली गयी. उनको बाज़ार सजाकर बोलियाँ लगायी गयी. 1947 के बाद दिल्ली में 400000 हिन्दू निर्वासित आये... और इन हिन्दुओं को जिस हाल में यहाँ आना पड़ा था,, उसके बावजूद पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने ही चाहिए ऐसा महात्मा जी का आग्रह था...क्योकि एक तिहाई भारत के टुकडे हुए हैं तो भारत के खजाने का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान को मिलना चाहिए था.? विधि मंडल ने विरोध किया,,पैसा नहीं देगे... और फिर बिरला भवन के 'पेंटागन' में महात्मा जी अनशन पर बैठ गए... पैसे दो,, नहीं तो मैं मर जाउगा... एक तरफ अपने मुहँ से ये कहने वाले महात्मा जी, कि हिंसा उनको पसंद नहीं हैं, दूसरी तरफ जो हिंसा कर रहे थे उनके लिए अनशन पर बैठ गए... दिल्ली में हिन्दू निर्वासितों के रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी. इससे ज्यादा बुरी बात ये थी की दिल्ली में खाली पड़ी मस्जिदों में हिन्दुओं ने शरण ली तब बिरला भवन से महात्मा जी ने भाषण में कहा की दिल्ली पुलिस को मेरा आदेश हैं मस्जिद जैसी चीजों पर हिन्दुओं का कोई ताबा नहीं रहना चाहिए. निर्वासितों को बाहर निकालकर मस्जिदे खाली करे..क्योंकि महात्मा जी की दृष्टी में जान सिर्फ मुसलमानों में थी हिन्दुओं में नहीं...जनवरी की कडकडाती ठंडी में हिन्दू महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों को हाथ पकड़कर पुलिस ने मस्जिद के बाहर निकाला. गटर के किनारे रहो लेकिन छत के नीचे नहीं. क्योकि तुम हिन्दू हो... 4000000 हिन्दू भारत में आये थे, ये सोचकर कि ये भारत हमारा हैं... ये सब निर्वासित गांधीजी से मिलने बिरला भवन जाते थे तब गांधीजी माइक पर से कहते थे- "क्यों आये यहाँ अपने घर बार बेचकर,, वहीँ पर अहिंसात्मक प्रतिकार करके क्यों नहीं रहे?? यही अपराध हुआ तुमसे अभी भी वही वापस जाओ..." और ये 'महात्मा' क्या सोचकर पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने निकले थे ?
सरदार पटेल ने कहा कि ठीक है, अगर भाई को एस्टेट में से हिस्सा देना पड़ता हैं तो कर्ज की रकम का हिस्सा भी चुकाना पड़ता हैं.? गांधी ने कहा बराबर हैं... पटेल जी ने कहा,"फिर दुसरे महायुद्ध के समय अपने देश ने 110 करोड़ रुपये कर्ज के रूप में खड़े किये थे, अब उसका एक तृतीय भाग पाकिस्तान को देने को कहिये, आप तो बैरिस्टर हैं आपको कायदा पता हैं." गांधीजी ने कहा- नहीं ये नहीं होगा.?? सभी पाठकों से निवेदन है कि 'मुस्लिम पूर्वाग्रह' से ग्रस्त कथित 'महात्मा' का सत्यापन स्वयं करें...
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