दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहते हैं मुलायम
अखिलेश वाजपेयी/लखनऊ
Story Update :
Saturday, September 22, 2012 10:07 AM
मुलायम सिंह यादव कांग्रेस के दुश्मन भी दिखना चाहते हैं और परदे के पीछे दोस्ती
का दरवाजा भी खुला रखना चाहते हैं। वह केंद्र सरकार से फायदा भी लेना चाहते हैं
तो यह भी चाहते हैं कि सरकार अगर जल्दी विदा हो जाए तो यूपी में उनको इसका लाभ
मिले। पर, वह मुस्लिम वोटों की नाराजगी के भय से सरकार
गिराने का अपयश भी नहीं लेना चाहते। मुलायम के मन में तीसरे मोर्चे का सपना और
केंद्र में सरकार संचालन के सूत्रधार बनने की कल्पना तो है लेकिन वह यह भी नहीं
चाहते कि सपा की किसी चाल से बसपा और कांग्रेस में दोस्ती गहरी हो जाए।
अखाड़े के दांवपेच में माहिर मुलायम सिंह यादव सियासत में दो नांवों की सवारी की
कहावत को चरितार्थ करते दिख रहे हैं। एफडीआई पर सरकार के खिलाफ सड़क पर वामपंथी
संगठनों के मित्रों के हाथ में हाथ डालकर संघर्ष और अगले दिन ही सांप्रदायिक
शक्तियों को रोकने के नाम पर केंद्र सरकार को बाहर से समर्थन का ऐलान करके मुलायम
फिलहाल यही कोशिश कर रहे हैं। यह बात दीगर है कि वह कब तक और कहां तक दो नावों पर
सवारी कर पाते हैं। पर, मुलायम की कोशिश इस असंभव को संभव कर दिखाने
की ही है।
सांप्रदायिक
शक्तियां तो बहाना हैं
मुलायम भले ही कांग्रेस को समर्थन की वजह सांप्रदायिक
शक्तियों को मजबूत न होने देने की बता रहे हों लेकिन यही अकेली वजह नहीं है। इसके
पीछे मुलायम की अपनी गणित है। वह केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर उसे अपनी अंगुली पर
नचाना चाहते हैं और साथ ही उत्तर प्रदेश के लिए केंद्र से विभिन्न योजनाओं में
ज्यादा से ज्यादा लाभ हासिल कर लेना चाहते हैं। अभी हाल में प्रमोशन में आरक्षण
पर संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराने से केंद्र का पीछे हटना मुलायम के दबाव
की बानगी है।
मायावती का डर भी
सपा नेता मुलायम सिंह
यादव और बसपा नेता मायावती सिर्फ राजनीतिक विरोधी ही नहीं हैं बल्कि इनके बीच
दुश्मनी निजी स्तर तक है। दोनों एक-दूसरे को आगे
बढ़ते नहीं देख सकते। मुलायम जानते हैं कि उनके समर्थन लेने से भी सरकार के
अस्तित्व पर फिलहाल कोई असर नहीं आने वाला। इसीलिए वह दुश्मनी व दोस्ती का खेल
साथ-साथ खेलना चाहते हैं। वह नहीं चाहते कि उनके
समर्थन वापस लेने का फायदा उठाकर बसपा व कांग्रेस की दोस्ती इतनी गहरी हो जाए कि
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में दोनों के बीच तालमेल या गठबंधन का कोई नया
समीकरण बन जाए।
कांग्रेस को खड़ा न होने देने की गणित
मुलायम नहीं चाहते कि उनकी तरफ से कोई ऐसा कदम उठे जिससे
कांग्रेस को यूपी में सपा के सामने खड़ा होने का मौका मिल जाए। वह लोकसभा चुनाव
तक अपनी तरफ से यही माहौल बनाकर रखना चाहते हैं कि सपा के लिए कांग्रेस कोई
चुनौती नहीं है। बाहर से समर्थन जारी रखने की घोषणा करके मुलायम यह संदेश बनाए
रखना चाहते हैं कि सपा की बदौलत ही कांग्रेस सत्ता में है।
मुस्लिम वोट की मजबूरी
पिछले दो दशक से यादव
व मुस्लिम वोटों के समीकरण से सियासत में महत्वपूर्ण मुकाम हासिल करने वाले
मुलायम किसी भी स्थिति में मुस्लिम वोटों की नाराजगी का जोखिम मोल नहीं लेना
चाहते। वह जानते हैं कि महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्य लोगों की तरह
मुस्लिम मतदाता भी केंद्र सरकार से निराश व नाराज हैं लेकिन यह मतदाता किसी भी
स्थिति में कोई ऐसा काम पसंद नहीं करेगा, जिससे भाजपा को
मजबूत होने या सरकार बनाने का मौका मिले। यह हकीकत भी उन्हें पता है, इसीलिए वह लड़ते भी दिखना चाहते हैं और सरकार भी बनाए रखना चाहते हैं।
मायावती भी मजबूर
मुलायम अगर मायावती के
कारण सरकार को बाहर से समर्थन को मजबूर हैं तो मायावती भी मुलायम के कारण सरकार
को समर्थन को मजबूर हैं। उन्हें पता है कि उत्तर प्रदेश में सपा सरकार के खिलाफ
अभी उतना गुस्सा नहीं है जिसका चुनाव में लाभ उठाया जा सके। इसलिए वह इस समय कोई
ऐसी स्थिति नहीं खड़ी करना चाहतीं, जिससे चुनाव की नौबत बन जाए। मायावती आशंकित है कि जल्दी चुनाव हुए तो सपा को फायदा मिल जाएगा।
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