रविवार, 23 सितंबर 2012

देवदूत मददगार
एंजल्स के विवरणों में जो एक बात सामान्य पायी जाती है, वह है ‘बीइंग्स ऑफ लाइट यानी प्रकाशमय प्राणी। कई जगह इनके लंबे आकार, शक्ति और प्रभाव के चलते इन्हें दिखने में डरावना बताया गया है तो कहीं सम्मोहक। इसी तरह इन्हें पंखों और कई जगह प्रभामंडल से युक्त दिखाया गया है। पंख और प्रभामंडल का यह पाश्चात्य विचार प्राचीन धर्म और पौराणिक साहित्य से प्रेरित है
आध्यात्मिक जगत में देवदूतों या फरिश्तों (एंजल्स) का महत्व कम नहीं है। इन्हें शक्तिशाली आध्यात्मिक सत्ता माना जाता है जो ईश्वर और व्यक्ति के बीच संदेशवाहक या माध्यम का काम करते हैं। ‘एंजल्स’ ग्रीक शब्द एंजेलोस से बना है, जिसका अर्थ दूत यानी ‘मैसेंजर’ है। परंपरागत तौर पर इन्हें अलौकिक प्राणी के रूप में माना गया जो कि ईश्वर और मनुष्य के बीच सेतु का काम करते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि प्राकृतिक जगत पर इनका अधिकार होता है। दुनिया की कई संस्कृतियों और धर्मो में देवदूतों का जिक्र है लेकिन जिन प्रमुख धर्मो में इन्हें सर्वाधिक महत्व दिया जाता है, वे हैं- ईसाई, इस्लाम और यहूदी। बाइबल वास्तविक तौर पर इनके अस्तित्व को स्वीकारती है। ईसाइयों के इस पवित्र धर्मग्रंथ में 250 से ज्यादा बार एं जल्स का संदर्भ आया है। इनके अलावा इनका जिक्र बेबीलोन, सुमेर, मिस्र, यूनान आदि के साहित्य में भी पाया जाता है। हिंदू धर्म में एंजल्स या देवदूत का विचार ईसाइयत या इस्लाम की तरह नहीं है। हालांकि हिंदू धर्म कुछ खास पारलौकिक सत्ताओं में विश्वास करता है जो उन कायरे को करने में सक्षम हैं जिन्हें सामान्य मनुष्य नहीं कर सकता। इन्हें कई हिंदू ‘देव’ या ‘देवी’ के रूप में पूजते हैं। इसी तरह इन्हें अवतार तथा ‘अर्ध दैवी सत्ता’ भी माना जाता है जिनमें अप्सरा, गंधर्व और सिद्ध शामिल हैं।ंिहंदू धर्म में आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिये एंजल्स की तुलना में गुरुओं का महत्व ज्यादा है। भौतिक देह त्यागने के बाद भी गुरु अपने शिष्यों का मार्गदर्शन सपने, दृष्टि या आभास के जरिये कर सकता है। इसी तरह सपने के माध्यम से शिष्य अपने गुरु से मंत्र के रूप में दीक्षा या आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इस्लाम में एंजल्स की धारणा पाश्चात्य विचारधारा से अलग है। इस्लाम के मुताबिक, एंजल्स या फरिश्ते की रचना ईश्वर ने प्रकाश से की है और आमतौर पर उन्हें नहीं देखा जा सकता। चूंकि उनमें निजी स्वतंत्र इच्छा-शक्ति नहीं होती, इसलिए उन्हें सर्वशक्तिमान ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करना पड़ता है। कर्म की स्वतंत्रता के अभाव में वे ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकते। ईश्वर ने हर कार्य के लिए अलग-अलग एंजल्स नियुक्ति किये है। चूंकि एंजल्स ईश्वर की रचना हैं न कि ईश्वर, इसलिए
मुस्लिम उनकी पूजा नहीं करते। बौद्धों में एंजल्स को देव कहा गया है। थियोसॉफी की शिक्षाओं में एंजल्स को देवा कहा जाता है। विश्वास किया जाता है कि इनका वास सौरमं डल के ग्रहों के वायुमंडल (प्लैनेटरी एंजल्स) या सूर्य के भीतर (सोलर एंजल) है और इनका कार्य प्रकृति के क्रमविकास में मदद करना है। इन्हें आध्यात्मिक क्रमविकास में अलग पंक्ति का माना जाता है जिसे ‘देवा इवोल्यूशन’ कहा जाता है। इन्हें मानव आकार में रंग-बिरंगी ज्वालाओं की तरह बताया गया है। थियोसॉफी विचारधारा को मानने वालों का कहना है कि तृतीय नेत्र के सक्रिय होने के बाद देवों के अतिरिक्त परियों, बौनों आदि प्राकृतिक आत्माओं को भी देखा जा सकता है। एंजल्स को अलग-अलग धर्मो में भले कई नामों से जाना जाता हो लेकिन हर जगह इनका आशय परोपकारी तथा मार्गदर्शक आत्मा से ही है, जैसे कि रक्षक आत्मा (गार्जियन स्पिरिट)। सबके कार्य एक जैसे ही हैं- मददगार देवदूत की तरह।
एंजल्स के विवरणों में जो एक बात सामान्य पायी जाती है, वह है ‘बीइंग्स ऑफ लाइट’ यानी प्रकाशमय प्राणी। कई जगह इनके लंबे आकार, शक्ति और प्रभाव के चलते इन्हें देखने में डरावना बताया गया है तो कहीं सम्मोहक। इसी तरह इन्हें पंखों और कई जगह प्रभामंडल से युक्त दिखाया गया है। पंख और प्रभामंडल का यह पाश्चात्य विचार प्राचीन धर्म और पौराणिक साहित्य से प्रेरित है। मनुष्य जैसे दिखने वाले, लेकिन पंखों से युक्त देवदूतों के चित्रों के पीछे उन्हें ऐसी परोपकारी आत्मा की तरह दर्शाना था जो ‘उच्च लोक’ या स्वर्ग से आये थे। पंख इस बात को सरलता से व्यक्त कर देते हैं कि एंजल्स आत्मलोक से पृथ्वी तक आसानी से आ औ र जा सकते हैं। कई प्राचीन देवताओं को इसी तरह पक्षी तथा पंखों वाले प्राणी के रूप में दर्शाया गया है, जैसे कि मिस्र में। चौथी सदी तक पाश्चात्य संस्कृति में एंजल्स को बड़े स्तर पर पंखयुक्त दिखाया जाने लगा, हालांकि पौर्वत्य धर्मो में पंखों का इस्तेमाल नहीं किया गया। दुनिया की अनेक संस्कृतियों में भी अपने देवताओं-नायकों को पंखों में चित्रित किया गया है। ईसाई कलाकारों ने यूनानी कला से प्रेरित होकर देवदूतों को पंखों में चित्रित किया। जहां तक एंजल्स के पंखयुक्त होने की बात है, तो इसे महज मिथ माना जाता है। चूंकि ये आत्माएं हैं, इसलिए ईश्वर की तरह एंजल्स भी शरीर धारण नहीं करते। इन्हें पंखयुक्त देवकन्या या फिर शिशु की तरह दर्शाना मात्र कल्पना है। हिब्रूज में इन्हें हवा और आग की लपटें कहा गया है ले किन फरिश्तों में इतनी सामथ्र्य होती है कि जब वे अपना फर्ज निभा रहे हों, तब वे मनुष्य के रूप में प्रकट हो सकते हैं।
ईसाई धर्मग्रंथों में मुख्यत: नौ प्रकार के एंजल्स का वर्णन है जिनके अलग-अलग उत्तरदायित्व हैं। कुछ धर्मग्रंथ कहते हैं कि इनकी संख्या इतनी ज्यादा है कि मनुष्य इन्हें गिन नहीं सकते। इनमें आर्केन्जल्स (महादूत) सबसे उच्च श्रेणी के हैं। इनको स्वर्ग के अलावा पृथ्वी पर भी सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाती है। उदाहरण के लिए, पूरे इतिहास काल में आर्केन्जल (गैब्रियल) को बड़े संदेश भेजने के लिए जाना जाता है। ईसाइयों का विश्वास है कि ईश्वर ने वर्जिन मैरी को यह सू चना भेजने के लिए कि वह पृथ्वी पर जीसस क्राइस्ट की मां बनेंगी, गैब्रियल को ही भेजा। इसी तरह कहा गया है कि ईश्वर ने पृथ्वी पर हर आदमी की रक्षा के लिए ‘गार्जियन एंजल’ (अभिभावक देवदूत) भेजा हुआ है, जो मुसीबत के समय उनकी मदद करता है। लेकिन बड़े स्तर के कायरे के लिए अकसर महादूत या आर्केन्जल को ही भेजा जाता है। मुस्लिम मानते हैं कि गैब्रियल ने संपूर्ण कुरान मोहम्मद साहब को संप्रेषित की। कुछ धर्म ग्रंथों में चंद आर्केन्जल्स के नाम मिलते हैं, जबकि कुछ में इनकी संख्या ज्यादा बतायी गयी है। ज्यादातर धार्मिक विवरणों में आर्केन्जल्स को पुरुष के तौर पर दर्शाया गया है जबकि अधिकतर लोगों का विश्वास है कि एंजल्स का कोई लिंग (जेंडर) नहीं होता और वे मनुष्यों के सामने जिस रूप में चाहें, प्रकट हो सकते हैं। पश्चिमी देशों में एंजल्स को देखने के अकसर दावे किये जाते हैं। ब्रिटेन में वर्ष 2002 में इस पर अध्ययन हुआ था जिसमें अलग-अलग लोगों ने पिछले 25 वर्षो में 192 बार मनुष्य जैसी दयालु सत्ता को देखने का दावा किया। इसी तरह 127 बार मित्रवत सत्ता, 99 बार मददगार सत्ता, 104 बार एंजल्स और 41 बार संतों को देखने की रिपोर्ट सामने आयी। दिलचस्प बात यह थी कि इनमें सभी पारलौकिक सत्ताओं को मानवीय रूपों में देखने का दावा किया गया। इस तरह की सभी सूचनाएं पुलिस से हासिल की गयी थीं। ब्रिटेन की तुलना में वेल्स में एंजल्स के रूप में संत और संन्यासियों को देखे जाने की ज्यादा रिपोर्टे दर्ज हुई। इस मामले में अनुभव प्राप्त 350 लोगों के इंटरव्यू लियेगयेथे जिन्होंने तरह-तरह से इन्हें महसूस किया। इनमें मुख्य थे- खतरे के प्रति आगाह करने के लिए दृश्य तथा ध्वनि का अहसास, खतरनाक स्थिति से बचाने के लिए स्पर्श, धक्का या ऊपर उठाना आदि। वर्ष 2008 में अमेरिका की बेलॉर यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज ऑफ रिलीजन’ ने इस पर सव्रेक्षण किया जिसे ‘टाइम’ पत्रिका ने प्रकाशित किया था। इस सव्रे में 55 फीसद अमेरिकियों, जिनमें पांच में से एक धार्मिक नहीं था, का विश्वास था कि वे अपने जीवनकाल में गार्जियन एंजल द्वारा बचाये गये। इससे पहले 2007 में हुए प्यू पोल में 68 फीसद अमेरिकियों ने माना कि एंजल्स का अस्तित्व है। एंजल्स में विश्वास करने वालों में सबसे ज्यादा (81) प्रतिशत किशोरों का था। कनाडा में 1,000 लोगों से इस बारे में पूछे गये सवालों में 87 फीसद ने एंजल्स पर विश्वास जताया।
दिनेश रावत

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