रविवार, 4 अगस्त 2013

विभाजन की कहानी नई पीढ़ी को बताई जाये

विभाजन की कहानी नई पीढ़ी को बताई जाये


 partition of indiaअनिल गुप्ता
अनेक दिनों से समय के अभाव के कारण ’भाग मिल्खा भाग’ फिल्म देखने का कार्यक्रम टल रहा था.कल बेटे ने बेंगलोर से फोन पर पूछा कि अभी तक देखी या नहीं, तो आज फिल्म देख ही ली.वैसे तो फिल्म उड़न सिख मिल्खा सिंह के जीवन से प्रेरित है लेकिन फिल्म का कथानक पाकिस्तान के जन्म के समय जो कत्लेआम हुआ था उसके इर्द गिर्द बुना गया था.फरहान अख्तर ने मिल्खा सिंह की भूमिका बहुत अच्छे से निभाई है.
पाकिस्तान बनने के बाद काफी समय तक फिल्म निर्माता नेहरु युग कि छाया के कारण उस समय की स्थिति को दर्शाने से बचते रहे हैं.लेकिन इधर पिछले दो दशकों में इस बारे में फिल्म और टीवी सीरियल निर्माताओं का दृष्टिकोण बदला है.सबसे पहले टीवी सीरियल ’बुनियाद’ में एक दृश्य में लोगों को चर्चा करते दिखाया गया था कि ”गांधीजी ने कह दिया है कि पाकिस्तान बनने का ये मतलब नहीं है कि वहां हिन्दू नहीं रह सकते हैं.और जो जहाँ हैं वो वहीँ रहेंगे.”उसके फ़ौरन बाद ही पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं का कत्लेआम शुरू हो गया था.कमल हासन कि फिल्म ”हे राम” में भी कुछ हिंसा के दृश्य दिखाए गए थे.सन्नी देओल की फिल्म ”ग़दर” में एक ट्रेन को दिखाया गया था जो पाकिस्तान से आई थी और जिसमे वहां से भाग कर आ रहे हिन्दुओं की लाशें भरी थी तथा ट्रेन पर खून से लिखा था ”हिन्दू कुत्तों,खून बहाना हमसे सीखो”.अब ’भाग मिल्खा भाग’ में पाकिस्तान के जन्म के समय के कत्ले आम और औरतों, बच्चों तथा पुरुषों कि लाशों को दिखाया गया है.
वास्तव में पाकिस्तान का जन्म सभ्य कहे जाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य की एक ऐसी साज़िश थी जो कई दशक के प्रयासों के बाद अमल में लायी गयी थी.१८५७ में इस देश के हिन्दू और मुसलमान दोनों ने अंग्रेज के विरुद्ध स्वतंत्रता के लिए युद्ध लड़ा था.ये युद्ध कई कारणों से फेल हो गया.एक कारण था कि बहादुरशाह जफ़र को लडाई का नेता घोषित करने से पंजाब ने इस लडाई में भाग नहीं लिया क्योंकि पंजाब, विशेषकर सिख,मुग़ल बादशाह को अपना दुश्मन मानते थे और उसके नेतृत्व में लड़ना उन्हें गवारा नहीं था.हालाँकि ये भी एक ऐतिहासिक सत्य है कि बहादुरशाह ज़फर ने पूरे स्वातंत्र्य समर में तलवार उठाकर उसका वजन भी नहीं आँका था और दिल्ली पर अंग्रेजों का कब्ज़ा होते ही वो लाल किले से भागकर हुमायूँ के मकबरे में छिप गया था जहाँ से उसे अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था.इस घटना से अंग्रेजों ने उल्टा सबक लिया कि सिख उनके प्रति वफादार हैं जबकि ये बात बिलकुल गलत थी.लेकिन इस ग़लतफ़हमी के कारण अंग्रेजों ने सिखों को उनकी आबादी के अनुपात से कहीं अधिक फ़ौज में भर्ती किया.और मुसलमानों को जो फेवर मुग़ल सत्ता के रहते मिलता था वो समाप्त हो गया.इससे परेशान होकर सैय्यद अहमद नामक एक अंग्रेजों के कर्मचारी द्वारा इस आशय के लेख लिखे कि हिन्दुओं और मुसलमानों में कुछ भी समानता नहीं है.वो दोनों तो दो अलग कौमें हैं.इस बात को सूत्र बनाकर अंग्रेजों ने मुसलमानों के बीच हिन्दुओं के खिलाफ जहर भरना शुरू कर दिया.अंग्रेजों और सर सैय्यद अहमद के बीच हुए पत्राचार का विस्तार से उल्लेख १९४६ में प्रकशित अशोक मेहता और अच्युत पटवर्धन कि पुस्तक ”कम्युनल ट्राएंगल इन इण्डिया” में किया गया है.सबसे पहले १९०५ में बंग भंग कि योजना लागू कीगई लेकिन इसका सभी राष्ट्रवादी नेताओं विशेषकर लाल,बाल और पाल(लाला लाजपत राय,बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चन्द्र पाल) के नाम से मशहूर नेताओं ने उग्र विरोध किया.रविन्द्र नाथ टेगोर भी इसमें कूद पड़े थे.अतः इसे वापिस लेना पड़ा था.इसके बाद १९०६ में सर आगा खान को मोहरा बनाकर एक मुस्लिम शिष्टमंडल से एक ज्ञापन लिया गया जिसमे मुसलमानों के लिए प्रथक राजनीतिक अधिकारों की मांग की गयी.जो मुस्लिम अलगाववाद का आधार बना.और इसी में से मुस्लिम होमलेंड कि मांग पैदा हुई.१९३३ में केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे चौधरी रहमत अली ने सर्व प्रथम पाकिस्तान शब्द का प्रयोग किया और इस नाम से एक अलग मुस्लिम देश की मांग रखी.१९४६ तक सभी कांग्रेसी नेता इस मांग को हवा में उड़ाते रहे.अगस्त १९४६ को मुसलमानों ने डायरेक्ट एक्शन शुरू कर दिया जिसमे हजारों हिन्दुओं कि हत्या, हजारों का बलात धर्मपरिवर्तन और हजारों का शीलभंग हुआ.लेकिन फिर भी महात्मा गाँधी ने कहा कि पाकिस्तान बनेगा तो मेरी लाश पर बनेगा.
१९४६ तक अंग्रेजों को लग चूका था कि अब भारत को अधिक दिन तक अपने अधीन नहीं रखा जा सकेगा.अब उसने भारत के दो टुकड़े करने की योजना पर अमल शुरू कर दिया.भारत में गवर्नर जर्नल के रूप में लार्ड माऊंटबेटन को भेज गया जिसके नेहरुजी से अन्तरंग सम्बन्ध थे.मई १९४७ में ये तय हो गया कि भारत में आज़ादी अप्रेल १९४८ कि बजाय अगस्त १९४७ में ही देदी जाएगी.माऊंटबेटन के जीवनीकार फिलिप जिगलर ने लिखा है कि एक जून १९४७ को ये विचार बना कि गांधीजी देश के विभाजन के लिए तैयार नहीं होंगे अतः नेहरूजी को साधा जाये.इस काम के लिए लेडी एडविना माऊंटबेटन २ जून की दोपहर में ग्यारह बजे नेहरूजी के पास गयीं और तीन घंटे तक बंद कमरे में ’वार्ता’ हुई.इसके बाद नेहरूजी ने पाकिस्तान बनने की स्वीकृति देदी.लेकिन इसके बाद भी गांधीजी और नेहरु पकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं कि सुरक्षा के प्रति अपराधिक लापरवाही के शिकार बने रहे और ये कहते रहे कि हिन्दुओं को इधर आने कि आवश्यकता नहीं है.इस भ्रम निर्माण के कारण लाखों हिन्दुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.यदि समय रहते उन्हें आगाह कर दिया होता तो शायद उनकी जान बच जाती.विभाजन के समय हिन्दुओं को यथासंभव सुरक्षित निकालकर भारत भेजने का काम रा.स्व.स. के स्वयंसेवकों ने अपनी जान पर खेलकर किया और सेंकडों स्वयंसेवकों ने अपनी जान कि आहुति देदी.इस बारे में प्रसिद्द पत्रकार श्री मानिक चन्द्र वाजपेयी जी कि पुस्तक ”ज्योति जला निज प्राण की”में अनेकों प्रसंग संघ के स्वयंसेवकों की आहुति के दिए हैं.
आजादी के लगभग सात दशक बाद अब समय आ गया है जब उस समय की पूरी कहानी नयी पीढ़ी को बताई जाये.इसके लिए सबसे सशक्त माध्यम फिल्म है.अतः जिस प्रकार नाजी अत्याचारों पर शिंडलर्स लिस्ट नामक फिल्म बनी उसी प्रकार विभाजन की कहानी और उसमे मारे गए बीस लाख लोगों (अधिसंख्य हिन्दू) के बारे में नयी पीढ़ी को बताया जाना चाहिए.क्या कोई फिल्म निर्माता इस विषय को लेगा??

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