सरकारी नसबंदी का घिनौना सच
- Monday, 25 February 2013 10:43
नसबंदी
प्रोत्साहन के लिए मिलने वाले 600 रुपये कहां खत्म हो गए पता ही नहीं
चला.मजदूर परिवारों से जुड़ी नसबंदी पीड़ित महिलाओें के घरों में इसी वजह
से कर्ज के हालात आन पड़े है.औसतन सभी को घाव ठीक करने में 3 से 4 हजार रु.
का खर्च करना पड़ गया है...
अजय बेहरा
पिछले दिनों जनसंख्या नियंत्रण पखवाड़े के दौरान छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में कुल 903 नसबंदी ऑपरेशन के दावों को झूठलाया नहीं जा सकता.लेकिन नसबंदी में इस तरह लापरवाही हुई है कि कई महिलाओ को जीवन-मृत्यु के दौर से जूझना पड़ा. नसबंदी के बाद महिलाओं के पेट में घाव हो गए.जानकार कहते हैं कि ऐसी स्थिति संभवत: नसबंदी के दौरान दूषित इंजेक्शन देने के कारण ही हुई.ये महिलाएं पेट के अंदर घाव लेकर जिंदगी और मौत के बीच दर्द में जझती रही.कुछ महिलाओं ने इलाज करा कर राहत पा लिया.कुछ अभी भी दर्द में जी रही हैं.फिलहाल ऐसे मामले में समोदा गांव की नसबंदी करवाने वाली 7 महिलाओं की अब तक जारी दिक्कतों का खुलासा हुआ है.
अजय बेहरा
पिछले दिनों जनसंख्या नियंत्रण पखवाड़े के दौरान छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में कुल 903 नसबंदी ऑपरेशन के दावों को झूठलाया नहीं जा सकता.लेकिन नसबंदी में इस तरह लापरवाही हुई है कि कई महिलाओ को जीवन-मृत्यु के दौर से जूझना पड़ा. नसबंदी के बाद महिलाओं के पेट में घाव हो गए.जानकार कहते हैं कि ऐसी स्थिति संभवत: नसबंदी के दौरान दूषित इंजेक्शन देने के कारण ही हुई.ये महिलाएं पेट के अंदर घाव लेकर जिंदगी और मौत के बीच दर्द में जझती रही.कुछ महिलाओं ने इलाज करा कर राहत पा लिया.कुछ अभी भी दर्द में जी रही हैं.फिलहाल ऐसे मामले में समोदा गांव की नसबंदी करवाने वाली 7 महिलाओं की अब तक जारी दिक्कतों का खुलासा हुआ है.
गत 12
जनवरी को दुर्ग जिला अस्पताल लाकर इन महिलाओं का नसबंदी नसबंदी प्रोत्साहन
के लिए मिलने वाले 600 रु. इस दौर में कहां खत्म हो गए पता ही नहीं
चला.मजदूर परिवारों से जुड़ी नसबंदी पीड़ित महिलाओें के घरों में इसी वजह
से कर्ज के हालात आन पड़े है.औसतन सभी को घाव ठीक करने में 3 से 4 हजार रु.
का खर्च करना पड़ गया है. महिलाओं की यह स्थिति संभवत:
इसलिये हुई कि इन्फेक्टेड इंजेक्शन का इस्तेमाल किया गया. अब भी उपचार के
बावजूद हाल ऐसा है कि ऑपरेशन से पहले लगाए जाने वाले पेट के इंजेक्शन स्थल
में सभी सातों महिलाओं को गंभीर घाव ठीक करने और दर्द बर्दाश्त करने की
स्थिति है.
घटनाक्रम
के संबंध में मिली जानकारी के मुताबिक गांव की मितानिन केशरी देशमुख, नंदनी
निषाद व कीर्ति देशमुख इन महिलाओं को प्रेरित कर नसबंदी आपरेशन के लिए
जिला अस्पताल लेकर पहुंची थी.जहां 12 दिसंबर से लेकर अगले दिन सुबह 10 बजे
तक ऑपरेशन बाद सभी को ऐहतियात के तौर पर रखा गया.मितानिनों के मुताबिक
समोदा गांव के तीन वार्डों की इन सभी 7 महिलाओं का नसबंदी आपरेशन डा.
विनिता धु्रर्वे ने किया था.इसी दिन कुल दर्जनभर नसबंदी आपरेशन की भी खबर
है.गांव वापस लौटने के बाद नसबंदी पूर्व इंजेक्शन के पेट वाली जगह ने सभी
को हलाकान कर दिया.
इस दौर में घाव बढ़ता गया.मवाद का अनुपात भी लगातार बढ़ रहा था.लगभग 8 दिन बाद पहुंची स्वास्थ्य कार्यकर्ता सुश्री वासनिक ने घावों को देखकर ही दहशत में छुने से मना कर दिया.उन्होंने पीड़ितों में शामिल सविता निषाद का टाका खोलकर पट्टी बदलने के दौरान यह हालात देखे थे.सविता के जेवरा स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचने पर वहां मौजूद चिकित्सक ने भी साफ कहा कि घाव इस कदर गंभीर है कि नसबंदी के टांके खोलने के हालात नहीं है.
बेबसी के दौर में ऐेसे हालातों के बीच सविता समेत सभी नसबंदी पीड़ितों को निजी चिकित्सको की शरण लेनी पड़ी.नसबंदी प्रोत्साहन के लिए मिलने वाले 600 रु. इस दौर में कहां खत्म हो गए पता ही नहीं चला.मजदूर परिवारों से जुड़ी नसबंदी पीड़ित महिलाओें के घरों में इसी वजह से कर्ज के हालात आन पड़े है.औसतन सभी को घाव ठीक करने में 3 से 4 हजार रु. का खर्च करना पड़ गया है।
जागरुकता की इस घटना ने चिंदी कर डाली है.मात्र दो-दो पुत्री वाली सविता देशमुख पति देशमुख व नीलम देशमुख पति विजय समेत सावित्री देशमुख पति राजकुमार, सविता निषाद पति त्रिलोकी, हुलमत निषाद पति रोहित, देवकी देशमुख पति शेखर व चंपा देशमुख के पेट में नसबंदी के हालातों का घाव अभी तक भरा नहीं है.
संबंधित पीड़ितों को नसबंदी के लिए प्रोत्साहित कर जिला अस्पताल तक ले जाने वाली तीनो मितानिनों की सामाजिक स्थिति इस घटना ने खराब कर दी है.ग्रामीण व्यवस्था के लिहाज से सारे के सारे परिजन सारा दोष और तोहमत उन्ही पर मढ़ रहे हैं.वजह और स्थिति स्पष्ट करने पर पीड़ितों के परिजन डेढ़ से दो इंच व्यास वाले पेट के भाव दिखाने लगते हैं.प्रति नसबंदी मात्र डेढ़ सौ रुपए पाने वाली मितानिनों के लिए बेहद लज्जा जनक स्थिति निर्मित हो गई है.मितानिनो के लिए आज हर व्यक्ति से ताने के हालात है।
समोदा के सरपंच अन्नु गौतम प्रशासन ने कहा कि जानकारी के बावजूद इस मामले की सुध नहीं ली है.सभी को मुआवजा दिलवाया जाना और दोषी चिकित्सक और कर्मियों के लिए सजा तय करना जरुरी है.सर्कार का कहना है कि 28 जनवरी से 11 फरवरी तक अभियान के दौरान 903 नसबंदी आपरेशन के अलावा जन्म वृद्धि दर कम करने कापर-टी के 249, ओरल पिल्स के 385 प्रकरण बने.इसके अलावा अभियान में कंडोम के 444 नए उपयोगकर्ता बनाए गए.इस दौरान दुर्ग जिले के स्वास्थ्य केन्द्र निकुम, धमधा, पाटन, उतई, अहिवारा सहित शहरी क्षेत्र के जिला अस्पताल, सौ बिस्तर सुपेला अस्पताल एवं भिलाई 3 अस्पताल में भी नसबंदी के आपरेशन करवाए गए.
दुर्ग जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डा. प्रशांत श्रीवास्तव कहते है, 'प्रभावितों के तत्काल उपचार की व्यवस्था की जा रही है, विलंब से सूचना मिलने के कारणों का पता लगाया जा रहा है.किसी की लापरवाही प्रमाणित होती है तो उसके विरुद्ध नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।'
इस दौर में घाव बढ़ता गया.मवाद का अनुपात भी लगातार बढ़ रहा था.लगभग 8 दिन बाद पहुंची स्वास्थ्य कार्यकर्ता सुश्री वासनिक ने घावों को देखकर ही दहशत में छुने से मना कर दिया.उन्होंने पीड़ितों में शामिल सविता निषाद का टाका खोलकर पट्टी बदलने के दौरान यह हालात देखे थे.सविता के जेवरा स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचने पर वहां मौजूद चिकित्सक ने भी साफ कहा कि घाव इस कदर गंभीर है कि नसबंदी के टांके खोलने के हालात नहीं है.
बेबसी के दौर में ऐेसे हालातों के बीच सविता समेत सभी नसबंदी पीड़ितों को निजी चिकित्सको की शरण लेनी पड़ी.नसबंदी प्रोत्साहन के लिए मिलने वाले 600 रु. इस दौर में कहां खत्म हो गए पता ही नहीं चला.मजदूर परिवारों से जुड़ी नसबंदी पीड़ित महिलाओें के घरों में इसी वजह से कर्ज के हालात आन पड़े है.औसतन सभी को घाव ठीक करने में 3 से 4 हजार रु. का खर्च करना पड़ गया है।
जागरुकता की इस घटना ने चिंदी कर डाली है.मात्र दो-दो पुत्री वाली सविता देशमुख पति देशमुख व नीलम देशमुख पति विजय समेत सावित्री देशमुख पति राजकुमार, सविता निषाद पति त्रिलोकी, हुलमत निषाद पति रोहित, देवकी देशमुख पति शेखर व चंपा देशमुख के पेट में नसबंदी के हालातों का घाव अभी तक भरा नहीं है.
संबंधित पीड़ितों को नसबंदी के लिए प्रोत्साहित कर जिला अस्पताल तक ले जाने वाली तीनो मितानिनों की सामाजिक स्थिति इस घटना ने खराब कर दी है.ग्रामीण व्यवस्था के लिहाज से सारे के सारे परिजन सारा दोष और तोहमत उन्ही पर मढ़ रहे हैं.वजह और स्थिति स्पष्ट करने पर पीड़ितों के परिजन डेढ़ से दो इंच व्यास वाले पेट के भाव दिखाने लगते हैं.प्रति नसबंदी मात्र डेढ़ सौ रुपए पाने वाली मितानिनों के लिए बेहद लज्जा जनक स्थिति निर्मित हो गई है.मितानिनो के लिए आज हर व्यक्ति से ताने के हालात है।
समोदा के सरपंच अन्नु गौतम प्रशासन ने कहा कि जानकारी के बावजूद इस मामले की सुध नहीं ली है.सभी को मुआवजा दिलवाया जाना और दोषी चिकित्सक और कर्मियों के लिए सजा तय करना जरुरी है.सर्कार का कहना है कि 28 जनवरी से 11 फरवरी तक अभियान के दौरान 903 नसबंदी आपरेशन के अलावा जन्म वृद्धि दर कम करने कापर-टी के 249, ओरल पिल्स के 385 प्रकरण बने.इसके अलावा अभियान में कंडोम के 444 नए उपयोगकर्ता बनाए गए.इस दौरान दुर्ग जिले के स्वास्थ्य केन्द्र निकुम, धमधा, पाटन, उतई, अहिवारा सहित शहरी क्षेत्र के जिला अस्पताल, सौ बिस्तर सुपेला अस्पताल एवं भिलाई 3 अस्पताल में भी नसबंदी के आपरेशन करवाए गए.
दुर्ग जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डा. प्रशांत श्रीवास्तव कहते है, 'प्रभावितों के तत्काल उपचार की व्यवस्था की जा रही है, विलंब से सूचना मिलने के कारणों का पता लगाया जा रहा है.किसी की लापरवाही प्रमाणित होती है तो उसके विरुद्ध नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।'
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