बुधवार, 17 सितंबर 2014

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सामाजिक क्रान्ति के प्रतीक मूलनिवासी समाज के नायक, धनगर (गड़रिया) समाज में जन्मे पेरियार ई.वी. रामासामी नायकर का जन्म दक्षिण भारत में 17 सितम्बर 1879 मंे तमिलनाडू राज्य के इरोडे नगर में हुआ था उनके पिता का नाम वैंकटानायकर तथा माताजी नाम चिन्ताथाई अम्मा था। बालक पेेरियार आठ वर्ष की आयु में साधारण स्कूल में शुरू हुई तथा दो वर्ष शिक्षा पाने के बाद बालक पेरियार ने स्कूल छोड़ दिया इससे यह साबित होता हैं उस समय में स्कूली शिक्षा कैसी रही होगी। कारण स्पष्ट हैं कि रामासामी को भी वर्णाश्रम के मजबूत बनाने के लिए शिक्षा दी जाती हैं। जिससे उन्हें शिक्षा से नफरत हो गयी और उन्होने स्कूल को छोड़ दिया। पेरियार ई.वी. रामासामी नायकर ने विदेशी यूरेशियन ब्राह्मणों द्वारा शोषित मूलनिवासी अनार्य, द्रविड़, शूद्र, अवर्ण, पिछड़ा बहुजन समाज को आजाद कराने के लिए समकालीन कुरीतियों, धार्मिक अन्धविश्वास, और सामाजिक असमानता ने उन्हे प्रबित किया और वे अपने उद्देश्य के लिए संघर्ष के रास्ते पर निकल पड़े गरीबों की बस्तियों में जाकर उनकी समस्याओं का समाधान करना उनका मूल कर्तव्य बन गया उन्होने किताबी ज्ञान को उपर्याप्त बताया। कालान्तर में उन्नीस साल में उनका विवाह नागम्माई से हो गया वे तर्क संस्कृति के प्रति मूर्ति थे। आपको लोकप्रियता के कारण आपको नगर का मजिस्ट्रेट तथा नगरपालिका का अध्यक्ष बनाया गया। उस समय मूलनिवासी समाज सवर्णाे के अत्याचार से त्रस्त थे छुआ छूत की बीमारी चारांे और फैली हुई थी जिसके कारण अष्पृश्य लोगांे की वस्तियों में तिरस्कार, निर्दयता काकहर ढाया जा रहा था इसके बाद रामासामी ने ब्राह्मणवादी निरंकुश व्यवस्था को उखाड़ फेकने का व्यापक आन्दोलन छेड़ दिया उन्होने जगह जगह धूम धूम कर तीखे किन्तु सत्य तर्क संगत भाषण से मूलनिवासियों को ज्ञान बल का धन बल और जनबल को समाप्त करने उद्देश्य से फैलाई जा रही शराब की प्रवृन्ति के खत्म करने के लिए नशा बन्दी आन्दोलन चलाया। पेरियार रामासामी नायकर के विविध विषयों समाज, धर्म ईश्वर, राजनीति एवं अष्पृश्यता के सम्बन्ध मंे कथित लेकिन स्वतन्त्र विचार आज भी मूलनिवासी समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। उन्होने कहा था स्वराज्य के लिए बलिदान की बात कर रहे हैं यदि हमंे को स्वराज्य मिला तो वह सभी के लिए स्वराज्य होना चाहिए आज लोगों के मन में यह भय बढ़ता जा रहा हैं हमें यह देखना होगा कि प्रत्येेक जाति एवं वर्ग सुरक्षित होकर प्रगति कर सकें आज के समय में करोड़ो लोग सोचनीय स्थिति में हैं और दुश्मन चुप हैं इसका एक मात्र उपाय यही हैं कि सभी 85 प्रतिशत मूलनिवासियों को जीवन के सभी क्षेत्रों में संवैधानिक प्रतिनिधित्व दे सभी मूलनिवासियों को संवैधानिक प्रतिनिधित्व देने के लिए उन्होने एक सिद्धान्त दिया जिसे जातीय प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त कहते है। समाज मंे जागृति के लिए चलाये जा रहे दैनिक मूलनिवासी नायक की तीसरी वर्ष गांठ पर और पेरियार रामासामी नायकर के जन्म दिन के अवसर पर पर दैनिक मूलनिवासी नायक परिवार की ओर से मूलनिवासी बहुजन समाज को हार्दिक शुभकामनाये

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